संत दादू दयाल जी की कथा, उन्हें बूढ़ा बाबा रूप में मिलने वाला कौन था?


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ब्रह्म काल के लोक में फंसी ज्ञानहीन आत्माएँ शांतिपूर्ण जीवन की तलाश में हैं लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि काल लोक और उसके आगे सतलोक में केवल सतपुरुष कबीर साहेब से ही शांति और सुख प्राप्त किया जा सकता है, जो कि सृष्टि रचयिता और परम सुख दायक हैं। वह शाश्वत सतलोक में वास करते हैं। वह मुक्ति के प्रदाता हैं, इसलिए वह खुद इस मृत्युलोक में सशरीर प्रकट होते हैं और अपने दृढ़ भक्तों से मिलते हैं। वह उन्हें तत्वज्ञान देते हैं, सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान करते हैं और उन्हें शैतान ब्रह्म काल के जाल (बंधन) से मुक्ति दिलाते हैं। इसी संदर्भ में परमेश्वर कबीर जी संत दादू साहिब जी को मिले, जिनके बारे में इस लेख में निम्नलिखित जानकारी प्रदान की जाएगी:

  • संत दादू दयाल कौन थे?
  • परमेश्वर कबीर जी द्वारा दादू जी को सतलोक ले जाना
  • दादू साहिब द्वारा परमेश्वर कबीर जी की महिमा का गुणगान
  • दादू दयाल जी की अमृतवाणी में सतनाम का संकेत
  • संत गरीबदास जी द्वारा प्रमाण, दादू जी को बूढ़े बाबा रूप में परमेश्वर कबीर जी मिले

संत दादू दयाल कौन थे?

संत दादू दयाल जी का जन्म गुजरात प्रांत के अहमदाबाद में सन् 1544 (वि. स. 1601) को हुआ था, जिन्हें परमेश्वर कबीर जी एक बूढ़े बाबा के रूप में सन् 1551 में मिले थे। दादू जी बहुत दयालु स्वभाव के एक कवि व संत थे यही वजह है कि उन्हें दादू दयाल के नाम से भी जाना जाता है। जिन्होंने अपने उपदेशों में परमेश्वर कबीर जी की महिमा गाते हुए बताया कि सर्वशक्तिमान एकमात्र कबीर साहिब जी हैं। उनके अनुयायी 'दादूनवासी' कहलाए जाते थे तथा उनके नाम से चलने वाले पंथ को 'दादू पंथ' के नाम से जाना जाता है।

परमेश्वर कबीर द्वारा दादू जी को सतलोक ले जाना

संदर्भ - पुस्तक मुक्तिबोध - पृष्ठ 488, कबीर सागर का सरलार्थ - पृष्ठ 572, परिभाषा प्रभु की - पृष्ठ 241-242, मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरआन - पृष्ठ 243-244, कबीर बड़ा या कृष्ण - पृष्ठ 300-301 और ज्ञान गंगा - पृष्ठ 78-79 जिनके लेखक हैं तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से।

जब दादू जी 7-8 वर्ष की आयु में गली में बच्चों के साथ खेल रहे थे। तब कबीर परमेश्वर दादू जी को एक जिन्दा महात्मा (बूढ़े बाबा) का रूप बनाकर मिलते हैं। कबीर परमेश्वर ने दादू जी को भक्ति के बारे में जानकारी दी कि बेटा प्रभु की भक्ति किया करो। जैसे बच्चे को दादा-दादी कथा सुनाते हैं ऐसे दादू जी प्यार से सुनने लगे। फिर दादू जी ने कहा कि बाबा आप कहाँ से आए हो? मुझे बहुत प्यारे लग रहे हो। आप कौन हो बाबा? मुझे भी अपने साथ ले चलो। कबीर साहेब ने कहा कि मैं सतलोक से आया हूँऔर मेरा नाम कबीर है और मैं काशी में रहता हूँ। तो दादू जी ने कहा कि बाबा आप मुझे अपने साथ रखो। कबीर साहेब ने कहा कि पहले आप मेरे से नाम उपदेश (नाम दीक्षा) लो। दादू जी ने कहा कि आप जो चाहे वो दो परन्तु आप जो बता रहे हो कि वहाँ पर जन्म-मरण नहीं है, न ही कोई दुःख है, वहाँ पर ले चलो।

कबीर साहेब ने उन्हें प्रथम उपदेश अपने लौटे से जल मन्त्रित करके एक पान के पत्ते पर डालकर पिलाया। जिससे दादू जी तीन दिन और रात अचेत (मूर्छित) रहे। दादू जी के साथ खेल रहे बच्चे गांव आए और बताया कि एक बुजुर्ग आया और दादू को जादूई पानी पिलाया, जिससे यह बेहोश हो गया। वहीं कबीर साहेब ने उनके शरीर में थोड़ा-थोड़ा स्वांस छोड़ दिया इसलिए घर वालों ने दादू के शरीर को जलाया नहीं। उनकी आत्मा को लेकर कबीर परमेश्वर सत्यलोक (सतलोक) गये। वहाँ पर सत्यलोक दिखाया। तीसरे दिन जब दादू जी की आत्मा वापिस आई तो उन्होंने कबीर साहेब की महिमा गाई। जिसके बाद दादू जी रोते हुए भटकते हुए यही कहते फिर रहे थे कि "बुढ़ा बाबा मुझे दर्शन दो।"

फिर दादू जी ने एक दिन साबरमती नदी पर जाकर कहा कि हे बाबा, हे प्रभु या तो आज दर्शन दे दो नहीं तो आपका दास आज यहाँ पर आत्महत्या करेगा। ऐसा सोचकर कुछ समय निर्धारित कर दिया कि यदि इस समय तक आपने दर्शन दे दिए तो आपका दास जीवित रह जायेगा, नहीं तो इस साबरमती में डूब कर मरूँगा। जब वह समय बीत गया और प्रभु ने दर्शन नहीं दिए तो दादू जी ने साबरमती नदी में टक्कर मारी यानि नदी में कूद गए। वहाँ से कबीर परमेश्वर ने उन्हें उठाया और बाहर लाकर बैठा दिया तथा परमेश्वर कबीर जी उसी बूढ़ा बाबा का रूप बनाकर दादू जी को दिखाई दिए और फिर कहा कि बेटा मैं कबीर हूँ जो आपको सत्यलोक दिखा कर लाया था। उसके बाद दादू जी को फिर भी मिलते रहे और उनको सतनाम व सारनाम देकर पार किया।

दादू साहिब द्वारा परमेश्वर कबीर जी की महिमा का गुणगान

इसके बाद, दादू जी ने परमेश्वर कबीर जी की महिमा का गुणगान इस प्रकार किया है:

जिन मोकुं निज नाम दिया, सोइ सतगुरु हमार। दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजनहार।।

दादू नाम कबीर की, जै कोई लेवे ओट। उनको कबहू लागे नहीं, काल बज्र की चोट।।

दादू नाम कबीर का, सुनकर कांपे काल। नाम भरोसे जो नर चले, होवे न बंका बाल।।

जो जो शरण कबीर के, तरगए अनन्त अपार। दादू गुण कीता कहे, कहत न आवै पार।।

कबीर कर्ता आप है, दूजा नाहिं कोय। दादू पूरन जगत को, भक्ति दृढ़ावत सोय।।

ठेका पूरन होय जब, सब कोई तजै शरीर। दादू काल गँजे नहीं, जपै जो नाम कबीर।।

आदमी की आयु घटै, तब यम घेरे आय। सुमिरन किया कबीर का, दादू लिया बचाय।।

मेटि दिया अपराध सब, आय मिले छनमाँह। दादू संग ले चले, कबीर चरण की छांह।।

सेवक देव निज चरण का, दादू अपना जान। भृंगी सत्य कबीर ने, कीन्हा आप समान।।

 दादू अन्तरगत सदा, छिन-छिन सुमिरन ध्यान। वारु नाम कबीर पर, पल-पल मेरा प्रान।।

 सुन-सुन साखी कबीर की, काल नवावै माथ। धन्य-धन्य हो तिन लोक में, दादू जोड़े हाथ।।

 केहरि नाम कबीर का, विषम काल गज राज। दादू भजन प्रतापते, भागे सुनत आवाज।।

पल एक नाम कबीर का, दादू मनचित लाय। हस्ती के अश्वार को, श्वान काल नहीं खाय।।

सुमरत नाम कबीर का, कटे काल की पीर। दादू दिन दिन ऊँचे, परमानन्द सुख सीर।।

 दादू नाम कबीर की, जो कोई लेवे ओट। तिनको कबहुं ना लगई, काल बज्र की चोट।।

 और संत सब कूप हैं, केते झरिता नीर। दादू अगम अपार है, दरिया सत्य कबीर।।

इसी तरह सतलोक जाने के बाद परमेश्वर कबीर साहिब संत गरीबदास जी महाराज, संत मलूक दास और संत घीसा दास जी को भी मिले। साथ ही, सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव जी को भी कबीर परमेश्वर जिंदा महात्मा के रूप में मिले थे। जिसका उल्लेख पवित्र कबीर सागर के 'अगम निगम बोध' के पृष्ठ संख्या 44 (1734) पर श्री नानक जी के शब्द से मिलता है।

वाह वाह कबीर गुरु पूरा है।
 पूरे गुरु की मैं बलि जावाँ जाका सकल जहूरा है।
 अधर दुलीचे परे है गुरुवन के, शिव ब्रह्मा जहाँ शूरा है।
 श्वेत ध्वजा फरकत गुरुवन की, बाजत अनहद तूरा है।
 पूर्ण कबीर सकल घट दरशै, हरदम हाल हजूरा है।
 नाम कबीर जपै बड़भागी, नानक चरण को धूरा है।

दादू दयाल जी की अमृतवाणी में सतनाम का संकेत

संत दादू जी ने परमेश्वर कबीर जी द्वारा प्रदान किये गए स्वांस उस्वांस के मंत्र यानि दो अक्षर के मंत्र सतनाम की शक्ति का संकेत देते हुए कहा है,

अबही तेरी सब मिटै, जन्म मरन की पीर।
स्वांस उस्वांस सुमिरले, दादू नाम कबीर।।

कोई सर्गुन में रीझ रहा, कोई निर्गुण ठहराय।
दादू गति कबीर की, मोते कही न जाय।।

संत गरीबदास जी द्वारा प्रमाण, दादू जी को बूढ़े बाबा रूप में परमेश्वर कबीर जी मिले

आदरणीय संत गरीबदास जी ने अपनी वाणी में परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त ज्ञान को इस प्रकार बताया है कि :-

गरीब, दादू कूं सतगुरू मिले, देई पान का पीक।
बूढ़ा बाबा जिसे कहें, यह दादू की नहीं सीख।।

अर्थात् संत दादू जी को सतगुरू रूप में कबीर परमेश्वर (अल्लाह) मिले थे जो एक जिंदा बाबा के वेश में थे। उन्होंने दादू जी को पान के पत्ते के ऊपर अपने मुख से निकाला जल डालकर दीक्षा के समय पिलाया था जो व्यक्ति यह कहते हैं कि दादू को वृद्ध (बूढ़ा) बाबा मिला था जो मंत्र-तंत्र विद्या को जानने वाला था, यह दादू ने नहीं बताया।

गरीब, हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, काशी मांही कबीर हुआ।।

अर्थात् संत गरीबदास जी ने बताया है कि हम सब यानि मुझ गरीबदास, सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम, सिख धर्म प्रवर्तक नानक जी तथा संत दादू जी को कबीर परमेश्वर जी ने पार किया जो काशी शहर में जुलाहे जाति में आये थे। फिर उन्होंने कहा है कि:-

गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मंड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरू पुरूष कबीर हैं, कुल के सृजनहार।।

अर्थात् सर्व ब्रह्मंडों के उत्पत्तिकर्ता यानि सारी कायनात के सृजनकर्ता मेरे सतगुरू तथा परमेश्वर कबीर जी हैं। उन्होंने सब लोकों, तारागण तथा सब नक्षत्रों (सूर्य, चाँद, ग्रहों) को बनाकर अपनी शक्ति से रोका हुआ है जिसे विज्ञान की भाषा में गुरूत्वाकर्षण शक्ति कहते हैं। उस सृजनहार कबीर के ऊपर इस सारी रचना (अनंत करोड़ ब्रह्मांडो) का कोई भार नहीं है। जैसे वैज्ञानिक ने वायुयान (Airplane) बनाकर उड़ा लिया। स्वयं भी उसमें सवार हो गया। जिस प्रकार उस वायुयान का वैज्ञानिक के ऊपर कोई भार नहीं है, उल्टा उसके ऊपर सवार है। इसी प्रकार कबीर परमेश्वर सब लोकों की रचना करके उनके ऊपर सवार है तथा सारे जीव सवार कर रखे हैं।

वहीं संत गरीबदास जी महाराज ने अमरग्रन्थ (सद्ग्रंथ) साहिब के अध्याय "अथ ब्रह्म बेदी" में कहा है

नानक दादू अगम अगाधू, तेरी जहाज खेवट सही।
सुख सागर के हंस आये, भक्ति हिरम्बर उर धरी।।

सरलार्थ :- इसी कबीर परमात्मा ने मेरे की तरह संत नानक जी, संत दादू जी को दर्शन दिए थे ये दोनों संत बहुत अगम अगाधु (पहुँचे हुए थे तथा काल ब्रह्म से आगे की भक्ति के अधिकारी) थे। आप श्री नानक जी तथा श्री दादू जी की जहाज अर्थात् भक्ति के जहाज के सही (वास्तविक) खेवट (नौका तथा जहाज को चलाने) परमेश्वर कबीर जी हैं। संत नानक साहेब तथा संत दादू दास साहेब जैसे हँस अर्थात् निर्विकार भक्त सुखसागर (जहां केवल सुख ही सुख हो अर्थात् सत्यलोक) से आए थे। उनके हृदय में हिरंबर (स्वर्ण तुल्य बहुमुल्य) भक्ति की चाह थी अर्थात् ये हँस आत्माऐं सत्य भक्ति के अधिकारी थे। इसलिए इन अच्छी आत्माओं को परमेश्वर कबीर जी स्वयं आकर मिले थे।

निष्कर्ष

परमेश्वर कबीर, जिन्होंने संत दादू दयाल जी को सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया और उन्हें पूर्ण मोक्ष दिया, पुनः पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं और सच्चे मुक्ति मंत्र प्रदान कर रहे हैं। जिसको जपने से आत्मा सुखसागर यानी वास्तविक निवास स्थान सतलोक में पहुंचती है। वे महान तत्वदर्शी संत, सतगुरु रामपाल जी महाराज के रूप में लीला रच रहे हैं, वे इस जगत के मुक्तिदाता हैं। सभी से प्रार्थना है कि उनकी शरण लें और जन्म मृत्यु के इस दुष्चक्र से मुक्ति पाने और सतलोक की एक अंतिम यात्रा के पात्र बनें।