भक्त पीपा और पतिव्रता सीता की प्रेरणादायक कथा


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संत पीपा ठाकुर या राव पीपा, एक धार्मिक आत्मा थे। सरदार पीपा एक शाही राजपूत योद्धा समुदाय से संबंधित थे। वह शक्ति देवी दुर्गा के महाभक्त थे तथा संतों के सत्संगों का आयोजन करवाया करते थे। गीगनौर (नागौर) के शासक पीपा वैरागी जब तक स्वामी रामानंद जी की शरण में नहीं आए, उनको यह नहीं पता था कि माता दुर्गा से ऊपर भी कोई अन्य सर्वोत्तम भगवान है, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांडों के सृष्टिकर्ता हैं और मोक्ष के प्रदाता हैं। जब सन् 1398 में परमेश्वर कबीर जी अपनी प्रिय आत्माओं (हम मानव धारी प्राणियों) को ब्रह्म काल के जाल से मुक्त कराने के इरादे से अपने सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार करने के लिए धरती पर प्रकट हुए थे, उस समय कबीर परमेश्वर के आदेशानुसार स्वामी रामानंद जी ने परमेश्वर कबीर साहिब के गुरु की भूमिका निभाई थी। परमेश्वर ने बताया था कि ब्रह्म काल अव्यक्त रहता है क्योंकि उसे सूक्ष्म मानव शरीरों से निकलने वाले गंध को खाने का श्राप लगा हुआ है और वह बदले की भावना से परमेश्वर की आत्माओं को पीड़ित करता है और उन्हें गलत धार्मिक क्रियाओं में लगाता है।

परमेश्वर ने काशी, उत्तर प्रदेश के सुप्रसिद्ध महर्षि रामानंद जी को सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान से परिचित कराया था। इसके बाद उन्होंने मनमानी पूजा छोड़ दी और परमेश्वर कबीर जी के द्वारा बताए सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान को उनके द्वारा प्रसारित किया जाने लगा। इस दौरान भक्त पीपा ठाकुर भी स्वामी रामानंद के शिष्य बने थे।

इस लेख में हम उन सच्ची घटनाओं को बताएंगे जो भगत पीपा राजा के जीवन में घटित हुईं थी। जिससे उन्हें यह मानने में मदद मिली कि कबीर ही पूर्ण परमात्मा हैं और बाकी सभी ब्रह्म काल के लोक में देवताओं से अधिक कुछ ओर नहीं हैं, ये सभी जन्म और मृत्यु के दुष्चक्र में फंसे हैं, इसलिए उनकी पूजा नहीं की जानी चाहिए। पूर्ण परमात्मा अपने दृढ़ भक्तों के लिए चमत्कार करते हैं, ताकि उनका विश्वास बनाए रखा जा सके। क्योंकि केवल परम अक्षर ब्रह्म/सतपुरुष ही सुखों के सागर है और समस्या के समय भक्तों को परमेश्वर कबीर से ही राहत मिलती है। वे असंभव को भी संभव करते हैं, क्योंकि वे सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ हैं।

आइए हम और गहराई में जाएँ और भक्त पीपा जी के बारे में विस्तार से जानें। इस लेख में हम जानेंगे:

  • राजा पीपा का वैराग्य धारण करना।
  • पीपा-सीता सात दिनों तक नदी में रहे और फिर बाहर जीवित निकले।
  • भगवान ने पीपा की पत्नी सीता की इज्जत बचाई।
  • पीपा जी ने एक मुस्लिम महिला को राम नाम के महत्व की शिक्षा दी।
  • राजा पीपा जी का वैराग्य

एक राजपूत राजा पीपा ठाकुर थे जो राजस्थान के गीगनौर नामक शहर में शासन करते थे। (गीगनौर का वर्तमान नाम नागौर है।) उनकी तीन पत्नियां थीं। पटरानी (पहली पत्नी) का नाम सीता था। उस समय काशी शहर (उत्तर प्रदेश) में आचार्य रामानंद जी निवास करते थे। उन्होंने परमेश्वर कबीर जी से वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया था, जिसे जानने के बाद वे उस वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार किया करते थे। इसलिए वे अनेक स्थानों पर मण्डली बनाकर जाया करते थे। एक बार स्वामी रामानंद जी गीगनौर शहर गए। राजा को पता चला कि स्वामी रामानंद आचार्य जी आए हुए हैं। वे बहुत प्रसिद्ध थे। राजा पीपा ठाकुर देवी दुर्गा के दृढ़ भक्त थे। वह देवी को परम शक्ति मानता था। उनकी यह मान्यता थी कि उनके राज्य में खुशहाली केवल देवी की कृपा से ही होती है। राजा को पता चला कि स्वामी रामानंद जी माता दुर्गा से ऊपर के भगवान का उल्लेख करते हैं और कहते हैं कि देवी दुर्गा की शक्ति जन्म-मृत्यु के चक्र और चौरासी लाख जीवों के शरीरों में दु:ख को खत्म नहीं कर सकती। राजा को यह सुनकर अच्छा नहीं लगा। 

राजा ने स्वामी जी को अपने महल में बुलवाया और पूछा, 'आप कहते हैं कि शक्ति/देवी दुर्गा से ऊपर अन्य एक परमेश्वर है। देवी दुर्गा की पूजा करके जन्म-मृत्यु, चौरासी लाख योनियों में भटकने की स्थिति हमेशा बरकरार रहेगी, जन्म-मृत्यु और चौरासी लाख जीवों के शरीरों में होने वाले दु:ख को परमेश्वर की भक्ति के बिना नहीं मिटाया जा सकता है।' राजा ने कहा कि हर अमावस्या के दिन मैं देवी दुर्गा के 'जागरण' का आयोजन करता हूँ, भंडारा करता हूँ। देवी मेरे सामने प्रकट होकर दर्शन देती है और मेरे साथ बात करती है। स्वामी रामानंद जी ने कहा कि तुम इसे देवी से ही स्पष्ट कर लो। हम इस ओर फिर से छ: महीने बाद आयेंगे, तब हम आपसे मिलेंगे। स्वामी जी चले गए।

देवी दुर्गा ने दिए दर्शन, कहा मैं मोक्ष प्रदान करने में अक्षम

अगले अमावस्या के दिन राजा ने 'देवी के जागरण' का आयोजन किया और देवी ने उसे दर्शन दिए। राजा ने पूछा, 'माँ! आप मेरे जन्म-मृत्यु और चौरासी लाख योनियों के दु:ख को खत्म कर दो।' देवी दुर्गा ने कहा, 'राजन, अपने राज्य के लिए खुशियां मांगो। इसका विस्तार मांगो। मैं सब कुछ प्रदान कर सकती हूँ, लेकिन जन्म-मृत्यु और चौरासी लाख योनियों के दु:ख को खत्म करना मेरी शक्ति से परे है।' यह कहकर, देवी अंतर्ध्यान हो गई। राजा पीपा ठाकुर बेचैन हो गए कि यदि जन्म और मृत्यु का कष्ट समाप्त नहीं हो सकता, तो ऐसी भक्ति का क्या मतलब है। स्वामी जी कब आएंगे? छ: महीने बहुत लम्बा समय है।

निराश पीपा वैरागी हाथी पर सवार होकर काशी में स्वामी रामानंद के आश्रम में उनसे मिलने के लिए पहुंच गए। उन्होंने द्वारपाल से कहा, 'स्वामी जी को सूचित करो कि राजा पीपा उनसे मिलने आए हैं।' स्वामी जी ने कहा, 'मैं राजाओं से मिलता नहीं, मैं भगतों और सेवकों से मिलता हूँ।' जब राजा को यह जवाब मिला, तो उन्होंने तुरंत सारे हाथी, सोने के मुकुट आदि को बेच दिया और फिर आश्रम आए और कहा, गीगनौर से एक पीपा दास स्वामी जी से मिलने आया है। स्वामी जी बहुत खुश हुए। भक्त पीपा ने कहा, अब मैं आपके साथ ही अपना जीवन बिताऊँगा। स्वामी जी ने कहा, तुम अपने महल चले जाओ, मैं जल्द ही आऊँगा। मैं तुम्हें तुम्हारे घर से सही तरह से वैरागी बनाने के बाद लेकर आऊँगा। स्वामी जी यह जानते थे कि इस तरह से संन्यास लेने से कुछ दिनों बाद रानी आएगी और हलचल मचाएगी। इसलिए उन्होंने रानियों के सामने ही पीपा को वैरागी बनाने को उपयुक्त माना।

पीपा व सीता द्वारा स्वामी रामानंद को गुरु धारण करना

स्वामी रामानंद जी एक महीने के बाद पीपा जी के पास पहुंच गए। राजा पीपाराम ठाकुर ने स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु बनाया। राज्य त्यागकर उन्होंने स्वामी जी के साथ काशी जाने की इच्छा जताई। राजा के साथ तीनों पत्नियों ने भी महल छोड़कर संन्यास लेने का निर्णय लिया। राजा चिंतित हो गया। पीपाराम ने गुरु रामानंद जी से कहा कि 'वर्तमान में तो वे उत्साह से भरपूर हैं, लेकिन साधारण भोजन, भूमि पर सोने और अन्य समस्याओं को ज्यादा समय तक वे नहीं सहन कर सकेंगी। वे मेरी भक्ति की बाधक बन जाएंगी।' तब स्वामी रामानंद ने तीनों रानियों से कहा, 'तुम अपने आभूषण उतार लो और फिर हमारे साथ चल सकती हो।' रानी सीता ने अपने आभूषणों और महंगे कपड़ों को त्याग दिया और एक सादी साड़ी पहनकर अपने पति के साथ जाने को तैयार हो गई। लेकिन अन्य दो रानियों ने कह दिया कि हम आभूषण नहीं छोड़ सकते। तब राजा ने कहा, 'गुरुजी, भक्ति में सीता भी बाधा बनेगी।' स्वामी जी ने कहा कि सीता! तुम्हें निःवस्त्र होकर रहना होगा, तभी तुम हमारे साथ चल सकोगी।' सीता ने कहा, स्वामी जी! अभी वस्त्र उतार देती हूँ। यह कहकर कपड़ों के बटन खोलने लगी। स्वामी रामानंद जी ने कहा कि बेटी बस कर। यह तुम्हारी परीक्षा थी और जिसमें तुम सफल हुई। इस प्रकार के दृढ़ भक्तों के विषय में सूक्ष्म वेद में कहा गया है:

लोक लाज मर्याद जगत की, तृण ज्यूं तोड़ बगावै।

तब कोई राम भक्त गति पावै।।

फिर स्वामी रामानंद जी ने राजा पीपा से कहा कि तुम सीता को साथ ले लो। वह तुम्हारी भक्ति में कोई बाधा नहीं डालेगी। तब उन्होंने पीपा जी और सीता जी को एक साथ आश्रम में ले आए। उन दोनों ने काशी में रहकर भक्ति की और वहां साधारण जीवन बिताया। वे जो भी मिलता, वही खाते थे, और जो भी कपड़े मिलते, वही पहनते थे।

पीपा व सीता सात दिनों तक नदी के अंदर रहकर जीवित बाहर आए

पीपा दरिया में कूद गए, जिन कैसी करी ढिठाई।

वो नर पाला जीत गए जिन, सिर धड़ की बाजी लाई।।

भगत पीपा और सीता जी सत्संग में सुनते थे कि भगवान श्रीकृष्ण की द्वारिका नामक नगरी समुद्र में डूब गई थी। समुद्र के अंदर अभी भी वे सभी महल स्थित हैं। वह एक बहुत ही सुंदर नगरी थी। एक दिन पीपा जी और सीता जी काशी शहर से लगभग चार-पाँच किलोमीटर दूर गंगा नदी के किनारे की ओर गए। वहां पर एक द्वारिका नाम का आश्रम था। आश्रम से कुछ दूरी पर एक पेड़ के नीचे एक पाली बैठा था। पीपा और सीता ने चर्चा करना शुरू किया कि श्रीकृष्ण जी की द्वारिका पानी में है। पता नहीं कहाँ है। अगर कोई सही जगह बता दे, तो हम भगवान के दर्शन कर लें।

पाली ने पीपा और सीता से किया मजाक

पाली ने सब बातें सुनी और बोला कौन-सी नगरी की बातें कर रहे हो? पीपा व सीता ने कहा कि द्वारिका की। पाली ने कहा वह सामने द्वारिका आश्रम है। पीपा-सीता ने कहा, यह नहीं, जिसमें भगवान कृष्ण जी तथा उनकी पत्नी व ग्वाल-गोपियाँ रहती थी। पाली ने कहा, अरे! वह नगरी तो इसी दरिया (नदी) के जल में है यहाँ से 100 फुट आगे जाओ। वहाँ नीचे जल में द्वारिका नगरी है। संत भोले तथा विश्वासी होते हैं। स्वामी रामानंद जी प्रचार के लिए 15 दिन के लिए आश्रम से बाहर गए थे। दोनों पीपा तथा सीता ने विचार किया कि जब तक गुरु जी प्रचार से लौटेंगे, तब तक हम भगवान की द्वारिका देख आते हैं। दोनों की एक राय बन गई। उठकर उस स्थान पर जाकर दरिया में छलाँग लगा दी।

आसपास खेतों में किसान काम कर रहे थे। उन्होंने देखा कि दो स्त्री-पुरुष दरिया में कूद गए हैं। आत्महत्या कर ली है। सब दौड़कर दरिया के किनारे आए। पाली से पूछा कि क्या कारण हुआ? ये दोनों मर गए, आत्महत्या क्यों कर ली? पाली ने सब बात बताई। कहा कि मैंने तो मजाक किया था कि दरिया (नदी) के अंदर भगवान की द्वारिका नगरी है। इन्होंने दरिया में द्वारिका देखने के लिए प्रवेश ही कर दिया और छलांग लगा दी। बड़ी आयु के व्यक्तियों ने कहा कि आपने गलत किया, आपको पाप लगेगा। भक्त तो बहुत सीधे-साधे होते हैं। फिर सब अपने-अपने काम में लग गए। यह बात आसपास के गाँव तथा काशी में आग की तरह फैल गई। काशी के व्यक्ति जानते थे कि वे राजा-रानी थे, दरिया में डूबकर मर गए। 

पीपा व सीता के लिए परमेश्वर कबीर जी ने नदी के भीतर रची द्वारिका

परमेश्वर के विधान में लिखा है:

गरीब, सो छल छिद्र मैं करूं, अपने जन के काज।

हरणाकुश ज्यूं मार हूँ, नरसिंघ धरहूँ साज।।

संत गरीबदास जी ने बताया है कि परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि जो मेरी शरण में किसी जन्म में आया है, मुक्त नहीं हो पाया, मैं उसको मुक्त करने के लिए कुछ भी लीला कर देता हूँ। जैसे प्रहलाद भक्त की रक्षा के लिए नरसिंह रूप {मुख और हाथ शेर (Lion) के, शेष शरीर नर यानि मनुष्य का} धारण करके हिरण्यकशिपु को मारा था।

इसी विधान अनुसार, परमात्मा ने भक्तों का शुद्ध हृदय देखकर उस दरिया में द्वारिका की रचना कर दी। श्री कृष्ण तथा रूकमणि आदि-आदि सब रानियाँ, ग्वाल, बाल गोपियाँ सब उपस्थित थे। भगवान श्री कृष्ण रूप में विद्यमान थे। सात दिन तक दोनों द्वारिका में रहे। चलते समय श्री कृष्ण रूप में विराजमान परमात्मा ने अपनी ऊँगली से अपनी अंगूठी (छाप) निकालकर भक्त पीपा जी की ऊँगली में डाल दी जिस पर कृष्ण लिखा था। सातवें दिन उसी समय दिन के लगभग 11 बजे दरिया से उसी स्थान से निकले। कपड़े सूखे थे। दोनों दरिया किनारे खड़े होकर चर्चा करने लगे कि अब कई दिन यहाँ दिल नहीं लगेगा। खेतों में कार्य कर रहे किसानों ने देखा कि ये तो वही भक्त भक्तनी हैं जिन्होंने दरिया में छलाँग लगाई थी। आसपास के वे ही किसान फिर से उनके पास दौड़े-दौड़े आए और कहने लगे कि आप तो दरिया में डूब गए थे। जिन्दा कैसे बचे गए? सातवें दिन बाहर आए हो, कैसे जीवित रहे? दोनों ने बताया कि हम भगवान श्रीकृष्ण जी के पास द्वारिका में रहकर आये हैं। उनके साथ खाना खाया। रूकमणि जी ने अपने हाथ से खाना बनाकर खिलाया। वे बहुत अच्छी हैं। भगवान श्री कृष्ण भी बहुत अच्छे हैं। 

परमेश्वर कबीर जी द्वारा कृष्ण रूप में दी गई अंगूठी

पीपा और सीता ने कहा, देखो! भगवान ने छाप (अंगूठी) दी है। इस पर उनका नाम लिखा है। यह सब बातें सुनकर सब आश्चर्य कर रहे थे। यह बात भी आसपास के क्षेत्र तथा काशी में फैल गई। सब उनको देखने तथा भगवान द्वारा दी गई छाप को देखने, उसको मस्तिक से लगाने आने लगे। स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में मेला-सा लगने लगा। स्वामी जी भी उसी दिन प्रचार से लौटे थे। उन्होंने यह समाचार सुना तो हैरान थे। छाप देखकर तो सब कोई विश्वास करता था। वैसी छाप (अंगूठी) पृथ्वी पर नहीं थी। उस अंगूठी को एक पुराने श्री विष्णु के मंदिर में रखा गया। कुछ साधु कहते हैं कि वह अंगूठी वर्तमान में भी उस मंदिर में रखी है।

संदर्भ: अमरग्रन्थ (सद्ग्रंथ साहिब), अध्याय सुमिरन का अंग की वाणी नं. 109 और जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा अमरग्रन्थ की अनुवादित और लिखित पुस्तक मुक्तिबोध के अध्याय 'सुमिरन का अंग' की वाणी संख्या 109

गरीब, पीपा कूं परचा हुवा, मिले भगत भगवान।

सीता सुधि साबित रहै, द्वारामती निधान।।

सरलार्थ है कि पीपा जी को परचा (परिचय अर्थात् चमत्कार) हुआ। भगवान तथा भक्त मिले, आपस में चर्चा हुई। सीता सुधि (सीता सहित) साबुत (सुरक्षित) रहे। द्वारामति (द्वारिका नगरी) निधान यानि वास्तव में अर्थात् यह बात सत्य है।

ध्यान दें: कहा जाता है कि स्वामी जी की अनुमति प्राप्त करने के बाद भगत पीपा और सीता वर्तमान द्वारका नगरी में गए। यह घटना वहीं समुद्र में हुई थी। चाहे कुछ भी हो, हमें भगतों के आस्था और विश्वास को देखना चाहिए। उसी तरीके से इसका पालन करने से परमेश्वर की प्राप्ति होगी।

सच्ची भक्ति के महत्व पर जोर देते हुए और धर्मनिष्ठ धरमदास, जीवा दत्त और राजा पीपा की महिमा करते हुए, भगवान कबीर ने निम्नलिखित भजन में उनका उल्लेख किया है।

सत कबीर द्वारे तेरे पर एक दास भिखारी आया है, भक्ति की भिक्षा दे दीजो उम्मीद कटोरा लाया है||
धरमदास ज्यों भक्ति सेठ नहीं, मेरे जीवा दत्त जैसा उलटसेठ नहीं||
मेरा पीपा जैसा धेठ नहीं, जिसने दरिया बीच बुलाया है||
भक्ति की भिक्षा दे दीजो उम्मीद कटोरा लाया है||

परमेश्वर ने पीपा की पत्नी सीता की बचाई इज्जत

परमेश्वर कबीर सुखों का सागर हैं। अपने प्रिय भक्तों की आस्था को बनाए रखने के लिए परमात्मा चमत्कार करते हैं। एक बार पीपा राजा ठाकुर अपनी पत्नी सीता के साथ जा रहे थे। वे थोड़ी देर के लिए आराम करने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठे। दूसरी ओर से एक सेठ आ रहा था। उसने पीपा जी से कहा कि बाबा जी आपको भूख लगी होगी, पीपा जी ने कहा हां सेठ जी भूख लगी है। तब सेठ ने पीपा और सीता को भोजन खिलाया। फिर सेठ ने कहा, इस औरत का क्या करेगा बाबा जी, इसे तू मुझे दे दे। मैं उसके लिए भोजन और आश्रय प्रदान करूंगा, ताकि वह भटकती न रहे। पीपा यह सोचकर सहमत हो गए कि शायद सेठ को घरेलू काम और खाना पकाने आदि में मदद की आवश्यकता होगी इसलिए उन्होंने सीता को भेज दिया। सीता, सेठ के साथ चली गई। उसने उसे खाने का आहार और अच्छे कपड़े पहनने की सुविधा प्रदान की, लेकिन वह सीता के प्रति दुर्भावनाओं से ग्रसित था। जब वह उसे कमरे में देखने गया, तो सीता की बजाय परमात्मा ने उसको एक शेरनी का रूप दिखाया। उसे देखकर सेठ डरकर पीपा के पास गया, माफी मांगी और सीता को सम्मान के साथ पीपा जी को वापिस कर दिया।

इस सच्ची घटना के साथ, परमेश्वर यह संदेश देते हैं कि वे हमेशा अपने दृढ़ भक्तों के साथ हैं, उनके सम्मान की रक्षा करते हैं और चमत्कार करते हैं। शेरनी के रूप में दर्शन मिलना कबीर परमेश्वर का चमत्कार था ताकि सेठ को सबक मिल सके। साथ ही, दृढ़ भगत पीपा जी की श्रद्धा भी अटूट रहे।

पीपा जी ने एक मुस्लिम महिला को राम नाम के महत्व की दी शिक्षा

एक बार पीपा जी शहर में जा रहे थे। रास्ते में एक मुस्लिम महिला मिली, जो तेल बेचती थी। पीपा जी ने मुस्लिम महिला से कहा कि बेटी राम-राम बोल। मुस्लिमों में यह मान्यता है कि "राम" नाम केवल तब कहा जाता है जब किसी की मौत होती है। उसने राम कहने से इनकार कर दिया और कहा मैं क्यों राम कहूँ? क्या मेरे परिवार में किसी की मौत हो गई है? तुम कहो, राम। तुम किस धर्म के हो जो तुम मुझसे राम कहने को कह रहे हो?

तेलन कहे तेरा कौन इस्म। पीपा कहे तेरा मरियो खसम।।

पीपा जी ने कहा कि यदि तुम पति की मौत होने पर भगवान का नाम यानी 'राम-राम' याद करोगी, तो तेरे पति (खसम) की मौत हो जाये, जिससे तू भगवान का नाम तो ले सकेगी। इसके बाद, वह मुस्लिम महिला अपने घर गई। उसका पति जो कुछ ही मिनट पहले पशुओं को चारा खिला रहा था, वह अचानक मर गया। मुस्लिम तेल वाले की मौत की खबर जैसे ही फैली, तो सभी पड़ोसी तुरंत आ गए। पीपा जी भी गए और मुस्लिम महिला से कहा, 'अब राम कहो, तुम्हारे पति की मौत हो गई है।' तब उसने अपनी गलती को समझा और परमेश्वर के नाम को याद नहीं करने के लिए माफी मांगी। यहाँ तक कि सभी पड़ोसियों और वहां मौजूद अन्य लोगों ने भी खुद को दोषी महसूस किया।

यहाँ पर भगवान ने एक चमत्कार किया। पीपा जी ने मृत तेली के हाथ को पकड़ा और कहा 'अरे भाई, खड़ा हो जा' और वह मुस्लिम आदमी खड़ा हो गया। फिर भक्त पीपा ने सभी को शिक्षा दी कि भगवान के नाम में भिन्नता न करें। उसे राम, अल्लाह, साहिब या खुदा किसी भी नाम से पुकार सकते हैं। सभी आत्माएं उसके बच्चे हैं और एक समान हैं। भगवान केवल एक ही है।

राम कहो अल्लाह कहो, साहिब कहो चाहे खुदा।

सर्व आत्मा उस साहिब की, वो नहीं कहूँ से जुदा। |

पीपा जैसे भक्त की इस प्रकार की आस्था पूर्व मानव जन्मों में किए गए पुण्यों और भक्ति के परिणामस्वरूप होती है। वह नदी के अंदर कूदना या अपनी पत्नी को किसी सेठ के साथ भेजना इसलिए कर पाया था क्योंकि भगत पीपा की भगवान में दृढ़ आस्था थी कि उसके साथ कुछ गलत नहीं होगा। भगवान हमेशा उसके साथ है और वे उसकी इज्जत की रक्षा करेंगे। राजपूत राजा पीपा की तरह, भगवान कबीर जी ने कई लोगों को आशीर्वाद दिया और उनका कल्याण किया।

फिर जब रामानंद जी ने कबीर परमेश्वर से कहा कि परमात्मा अब आप ही इस पूरे साज बाज को संभालो तो उसके बाद पीपा जी, रविदास जी, मीराबाई समेत अन्य महापुरुषों को कबीर परमेश्वर ने नाम उपदेश किया था यानि ये सभी कबीर परमेश्वर को अपना गुरु बना लिए थे।

निष्कर्ष  

संत गरीबदास जी महाराज ने भक्त पीपा और कुछ ओर महान भक्तों की महिमा की सराहना करते हुए अपनी अमृत वाणी में कहते हैं:

पीपा धन्ना चढ़े बाजीदा। सेऊ समन और फरीदा।।

पाठकों, पीपा और सीता जैसे दृढ़ भक्त ही परमात्मा को प्राप्त करते हैं। वही सर्वशक्तिमान परमेश्वर जिन्होंने अपने भक्त पीपा-सीता की इज्जत और विश्वास को बरकरार रखा, वर्तमान में भारत के हरियाणा राज्य में है और आज भी दुनिया भर के अपने शिष्यों को सुख दे रहे हैं। वे महान ज्ञानी, संत रामपाल जी महाराज के रूप में कार्य कर रहे हैं। उनसे नाम दीक्षा लें और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्राप्त करें।