जीवा और दत्ता को मिले परमेश्वर कबीर: कबीर वटवृक्ष की कथा


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मनुष्य जीवन मिलना दुर्लभ है और इससे भी अधिक दुर्लभ और मात्र संयोग की बात है उसी मनुष्य जीवन में तत्वदर्शी संत का मिलना। गुरु की महिमा का बखान संतों ने भी खूब किया है। गुरु वह सीढ़ी है जिसके बिना परमात्मा की जानकारी भी असंभव है प्राप्ति तो दूर की बात है। जो साधक इस बात को समझते हैं वे तत्वदर्शी संत की तलाश करते हैं और उनसे नामदीक्षा लेकर अपना जीवन सफल बनाते हैं। ऐसी ज्ञानी आत्माओं के भीतर परमात्मा प्राप्ति के लिए विशेष कसक होती है। ऐसी ही विशेष आत्माएं थीं जीवा और दत्ता नाम के दो भाई जिन्हें स्वयं पूर्ण परमेश्वर ने तत्वदर्शी संत के रूप में दर्शन दिए। 

हम निम्न बिन्दुओ पर जानकारी देंगे

  • जीवा और दत्ता का परिचय 
  • जीवा और दत्ता की पूर्ण संत की खोज
  • कबीर साहेब का शुक्ल तीर्थ गांव में आगमन
  • सूखी टहनी का हरा होना
  • जीवा और दत्ता का जाति से बहिष्कार
  • जीवा और दत्ता की संतानों का विवाह
  • वर्तमान में सूखी टहनी वाला वृक्ष
  • संत रामपाल जी महराज वर्तमान में तत्वदर्शी संत
  • Conclusion

जीवा और दत्ता का परिचय 

भारत देश के गुजरात राज्य में भरूच शहर स्थित है। इतिहास में यह भृगुकच्छ के नाम से भी जाना गया है। इस शहर में मंगलेश्वर नामक गांव है। इस गांव के साथ नर्मदा नदी दो टापू बनाती है। आज से लगभग 550 वर्षों पहले यानी विक्रमी संवत 1465 में, शुक्ल तीर्थ नाम का गांव हुआ करता था। इस गांव में जीवा और दत्ता (तत्वा) नाम के दो ब्राह्मण भाई रहा करते थे। वे आस्तिक और परमात्मा के चाहने वाले प्राणी थे। पिछले पुण्यकर्मों के फलस्वरूप दोनों की रुचि सत्संग में बनी और सत्संग से यह ज्ञान हुआ कि मोक्ष मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य है और इसे प्राप्त करने के लिए परम तत्वदर्शी संत की शरण आवश्यक है। बिना गुरु के एक बार मनुष्य जीवन व्यर्थ होने बाद चौरासी लाख योनियों में जीव कष्ट उठाता है। किंतु गुरु पूर्ण हो यानी परमात्मा की ओर से विशेष कृपा पात्र अधिकारी संत हो। केवल वही संत मोक्ष का अधिकारी बना सकता है। इतना जानने के बाद जीवा और दत्ता की उत्सुकता पूर्ण संत के लिए बढ़ गई। वे पूर्ण संत की तलाश में रहने लगे। 

जीवा और दत्ता की पूर्ण संत की खोज

जीवा और दत्ता इतना ज्ञान होने के पश्चात पूर्ण संत की तलाश में चिंतित रहने लगे। आखिर पूर्ण संत को कैसे खोजा जाए। कहां मिलेगा वह परमात्मा का कृपा पात्र संत। वह सोचने लगा कि जिस भी गुरु के पास जाओ वही अच्छी बातें बताता है। किंतु इतने गुरुओं के मध्य सच्चा संत कौन है? जीवा दत्ता को पूर्ण संत के विषय में तो ज्ञान हो गया किंतु पूर्ण संत की पहचान के विषय में ज्ञान नहीं था। जीवा और दत्ता ने अपनी बुद्धि से ही एक निर्णय लिया। दोनों मित्रों ने एक सूखे वृक्ष की टहनी ली और अपने आंगन में लगा दी। इसके साथ ही यह निर्णय लिया कि जिस संत के चरण धोने के पश्चात उस चरणामृत से यह टहनी हरी हो जायेगी वही तत्वदर्शी संत होगा। जीवा और दत्ता प्रत्येक आने वाले संत के चरणामृत धोकर उस टहनी में डालते किंतु टहनी हरी नहीं होती और वे निराश होते। वे संत जो उनके घर नहीं आ सकते थे उनके पास जाकर उनका चरणामृत घर लाकर जीवा और दत्ता ने सूखी टहनी पर डालते किंतु टहनी हरी नहीं हुई। एक वर्ष के अथक प्रयत्न के बाद भी कोई पूर्ण संत न मिलने पर जीवा दत्ता अत्यंत निराश हुए। वे न केवल चिंतित रहने लगे बल्कि अत्यंत दुःखी रहने लगे। उन्हें बिना गुरु के अपने शरीर के छूट जाने का डर और अफसोस होने लगा।

कबीर साहेब का शुक्ल तीर्थ गांव में आगमन

जीवा और दत्ता दोनों बंधु दुखी रहने लगे और भगवान से प्रार्थना करने लगे कि यदि इस सृष्टि में कोई पूर्ण संत नहीं है तो इस शरीर का अंत कर दो और तब जन्म दो जब पूर्ण संत पृथ्वी पर आए। प्रार्थना और विलाप करने में उनके दिन बीतने लगे। अपनी प्यारी आत्माओं की हृदय की पुकार सुनकर कबीर साहेब अपने बच्चों के पास शुक्ल तीर्थ पहुंचे। जीवा और दत्ता के घर के बाहर वे टहल रहे थे मानो किसी का घर खोज रहे हों। उस दिन दत्ता बाहर खड़े थे। उन्होंने ज्यों ही कबीर साहेब को देखा तो देखते ही पुलकित हो गए। दत्ता ने कहा कि ऐसी मोहिनी सूरत देखकर ही आनंद आ रहा है क्यों न इनसे घर आने की प्रार्थना की जाए। दत्ता ने तुरंत अंदर जाकर जीवा को बताया कि बाहर ऐसे संत खड़े हैं जिन्हे देखकर रोम रोम पुलकित हो रहा है।

इतनी प्यारी सुंदर सूरत है कि आनंद से भाव विभोर हो रहा हूं यदि आपकी आज्ञा हो तो उन्हें अंदर आमंत्रित किया जाए। जीवा ने निराश मन से उत्तर दिया कि अब पृथ्वी पर कोई पूर्ण संत नहीं बचा है मेरी इच्छा नहीं है। अगर उन्हें भी बुला लाए और टहनी हरी नहीं हुई तो हम फिर रोएंगे। किंतु जीवा ने उत्तर दिया कि आपकी जैसी इच्छा लेकिन मैं स्वयं को रोक नहीं पा रहा हूं। जीवा ने कहा कि आपकी जैसी इच्छा मैं आपको रोककर आपकी आत्मा को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहता। इतना सुनकर दत्ता बाहर गए और कबीर साहेब के चरण पकड़ लिए। उनसे घर चलने के लिए विनम्र निवेदन किया। कबीर साहेब ने अनुग्रह स्वीकार किया।

सूखी टहनी का हरा होना 

परमेश्वर कबीर के आते ही दोनों भाइयों ने उनका सत्कार किया। उन्हें प्रेम से आदरपूर्वक आसन ग्रहण करवाया। कबीर साहेब जी को ससम्मान बिठाकर उनके चरण धोए। चरण धोने के बाद उस चरणामृत को लेकर दत्ता उसी सूखी टहनी के पास पहुंचे और उस पर चरणामृत डाला। चरणामृत डालते डालते ही वह सूखी टहनी हरी हो गई और देखते ही देखते उस पर कोंपल फूटने लगीं। इतना देखते ही दत्ता ने जीवा को आवाज लगाई और हर्षपूर्वक हरी हुई टहनी को दिखाया। दोनों भाइयों की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। वे आए और आकर कबीर साहेब के एक एक चरण को अपनी अपनी गोद में लेकर बैठ गए। दोनों भाई फूट फूट कर रोने लगे। उन्होंने कबीर साहेब से पूछा कि आप पहले क्यों नही आए। इस पर कबीर साहेब ने बताया कि आपके मन के भीतर का भ्रम समाप्त करने के लिए ही मैं नहीं आया। कहीं आपके मन में बड़े बड़े मंडलेश्वरों को देखकर शंका होती कि वे पूर्ण संत हैं। कबीर साहेब ने उन्हें अपना परिचय बताया और उन्हें नामदीक्षा प्रदान की। कबीर साहेब ने उन्हें उपदेश दिया कि यदि संत पृथ्वी पर न हों तो यह संसार खत्म हो जाएगा। सदैव ही परमात्मा तत्वदर्शी संत के रूप में पृथ्वी पर विराजमान रहते हैं। कबीर साहेब उनके पास समय समय पर जाते रहे, भक्ति दृढ़ाते रहे। उन्हें ज्ञान से परिपक्व किया। कबीर साहेब ने उनका कल्याण किया।

जीवा और दत्ता का जाति से बहिष्कार

जीवा और दत्ता का ज्ञान परमात्मा कबीर ने स्वयं आकर दृढ़ करवाया। जीवा और दत्ता ने यह ज्ञान अपने ब्राह्मण भाइयों को सुनाना शुरू किया। ब्राह्मणों ने यह तत्वज्ञान नहीं स्वीकारा। उन्होंने मानने से इंकार कर दिया कि भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी के अतिरिक्त कोई भगवान है। वे जीवा और दत्ता से पूछते कि तुम्हारा गुरु कौन है। जीवा और दत्ता ने बताया कि उनके गुरु काशी में रहने वाले कबीर साहेब हैं। जब पुनः कबीर साहेब जीवा दत्ता के पास पधारे तो उन्होंने सभी ब्राह्मण भाइयों से परिचय करवाया। ब्राह्मणों ने सबसे पहले कबीर साहेब से उनकी जाति पूछी। कबीर साहेब ने कहा कि संतों को जाति से नहीं बल्कि उनके ज्ञान पर आस्था रखनी चाहिए। फिर भी कबीर साहेब ने बताया कि वे धानक हैं। इस सृष्टि को रचने वाले धानक और काशी में ताना बुनने की भूमिका करने वाले धानक। ब्राह्मण तुरंत उठकर चले गए और आपसी सहमति से जीवा दत्ता को जाति से बहिष्कृत कर दिया। जीवा और दत्ता परमात्मा प्राप्ति के लिए सत्यभक्ति के मार्ग पर थे अतः उन पर इस कृत्य का कोई असर नहीं पड़ा।

जीवा और दत्ता की संतानों का विवाह

जीवा और दत्ता जाति से बहिष्कृत हो चुके थे इस कारण से जीवा और दत्ता के बच्चों का विवाह नहीं हो पा रहा था। जीवा और दत्ता ने परमेश्वर कबीर साहेब के दोबारा आने पर उनसे प्रार्थना की। तब कबीर साहेब ने एक उपाय बताया और कहा कि जाकर यह बता दो कि यदि आप हमारे बच्चों का विवाह नहीं करेंगे तो हम इनका आपस में विवाह कर देंगे। जीवा के बेटे और दत्ता की बेटी का विवाह आपस में करवाने की बात उन्होंने सबको बता दी। ब्राह्मणों की पुनः बैठक हुई और उन्होंने कहा कि इन बच्चों की शादी वे स्वयं करवाएंगे क्योंकि भाई बहन का विवाह ठीक नहीं होगा और इससे समाज में गलत संदेश जाएगा। उन्होंने आपसी सहमति से निर्णय लिया कि इन बच्चों को गोद लेकर विवाह करवा दिया जाए। जीवा और दत्ता के पास से दोनों बच्चों को ब्राह्मणों ने ले जाकर विवाह करवाया। चूंकि दोनों बच्चे परमेश्वर कबीर के ज्ञान से परिचित थे अतः उन्होंने भी जाकर सभी को यह ज्ञान समझाया और धीरे धीरे सबने उस ज्ञान को ग्रहण कर लिया।

वर्तमान में सूखी टहनी वाला वृक्ष

कबीर परमेश्वर के चरणामृत से हरी हुई सूखी टहनी धीरे धीरे विशाल वटवृक्ष में बदल गई। वह वृक्ष समय के साथ 8- 9 एकड़ में फैल गया। धीरे धीरे उसकी छंटाई कर दी गई और उसके आसपास खेती योग्य जमीन तैयार कर ली गई। किंतु आज भी उस स्थान पर वह विशाल वृक्ष करीब तीन चार एकड़ में फैला हुआ है। उस स्थान पर कबीर साहेब का एक मंदिर यादगार स्वरूप बना हुआ है एवं एक कबीरपंथी आश्रम भी है। 

संत रामपाल जी महराज वर्तमान में तत्वदर्शी संत

चूंकि परमात्मा सदैव पृथ्वी पर तत्वदर्शी संत के रूप में विराजमान रहते हैं। संत रामपाल जी महाराज वर्तमान में पूर्ण तत्वदर्शी संत हैं। वे संपूर्ण शास्त्रों से प्रमाणित तत्वज्ञान अकाट्य तर्कों के साथ दे रहे हैं। यह ज्ञान और वे अनमोल मंत्र जिनका गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में (ॐ, तत्, सत्) उद्धरण है वे वास्तविक मंत्र केवल संत रामपाल जी महाराज दे रहे हैं। समस्त जीव जगत से निवेदन है कि वे संत रामपाल जी के ज्ञान को अवश्य सुनें और नामदीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाएं। अधिक जानकारी के लिए देखें साधना टीवी प्रतिदिन शाम 7:30 पर तथा डाउनलोड करें संत रामपाल जी महाराज एप

निम्नलिखित भजन में भगवान कबीर ने सच्ची भक्ति के महत्व को बताते हुए धर्मनिष्ठ धरमदास, जीवा दत्त और राजा पीपा का उल्लेख किया है।

सत कबीर द्वारे तेरे पर एक दास भिखारी आया है, भक्ति की भिक्षा दे दीजो उम्मीद कटोरा लाया है||
धरमदास ज्यों भक्ति सेठ नहीं, मेरे जीवा दत्ता जैसा उलटसेठ नहीं||
मेरा पीपा जैसा ढेठ नहीं, जिसने दरिया बीच बुलाया है||
भक्ति की भिक्षा दे दीजो उम्मीद कटोरा लाया है||

सार

 

  • इस प्रकार हम पाते हैं कि आज 3 से 4 एकड़ में फैला हुआ वटवृक्ष आज से वर्षों पहले कबीर साहेब के चरणामृत को जीवा दत्ता द्वारा सूखी टहनी में डालने का परिणाम है। क्योंकि उनकी प्रतिज्ञा थी कि जिस संत के चरणामृत से यह हरी हो जायेगी उसे वे तत्वदर्शी संत मानेंगे।
  • जीवा और दत्ता ने पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब के रूप में तत्वदर्शी संत पाया और अपना जीवन सफल बनाया। कबीर साहेब पूर्ण परमेश्वर हैं उन्होंने अनेकों चमत्कार किए जिनमें से यह चमत्कार आज भी प्रासंगिक है और सबके सामने है।
  • पूर्ण परमात्मा यानी परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति करना अत्यंत आवश्यक है और यही मानव जीवन का उद्देश्य है। प्रत्येक काल में परम अक्षर ब्रह्म कबीर साहेब एक पूर्ण तत्वदर्शी संत के रूप में विराजमान रहते हैं। इस समय संत रामपाल जी महाराज वह भूमिका कर रहे हैं।  
  • संत रामपाल जी महाराज ने अनोखा ज्ञान समाज और दुनिया को दिया है। यह ज्ञान पूर्णतः वैज्ञानिक और धार्मिक शास्त्रों के आधार पर है। उनके द्वारा दिया गया तत्वज्ञान अकाट्य है। यह बुद्धिमानी का परिचय है कि यथाशीघ्र परमात्मा के चाहने वाले उनके ज्ञान को सुनें, समझें और नामदीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाएं।