संत घीसा दास: दयालु भगवान कबीर के सच्चे उपासक


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भारत की पवित्र भूमि सदैव संतों से धन्य रही है। ईश्वर या स्वयं ईश्वर द्वारा भेजे गए संत समय-समय पर इस धरती को पवित्र करते रहे हैं। ये संत या पूर्ण परमात्मा सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार करने के लिए इस मृत लोक में आते हैं। दृढ़ भक्त, पुण्यात्मा, प्रिय आत्मायें उनके शिष्य बन जाते हैं। फिर वे सर्वशक्तिमान कविर्देव की सच्ची भक्ति करते हैं और मोक्ष प्राप्ति के पात्र बन जाते हैं। यह लेख संत घीसा दास साहेब नाम के एक ऐसे दृढ़ भक्त की व्याख्या करने पर केंद्रित होगा, जो भाग्यशाली थे कि उन्हें परमेश्वर कबीर की कृपा से अपने मूल स्थान, शाश्वत लोक सतलोक में वापस जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

संत घीसादास जी के विषय में इस लेख में जानेंगे

  • पूज्य परमेश्वर कबीर देव आदरणीय घीसा दास साहेब जी को कब मिले?
  • चौधरी जीताराम जाट को ज्ञान की प्राप्ति
  • चौधरी जीताराम बने संत घीसादास के शिष्य
  • संत घीसा दास को गांव खेखड़ा से निष्कासित करने पर गांव में शुरू हुई आपत्ति
  • संत घीसा दास की कृपा से समृद्ध हुआ गांव खेखड़ा
  • संत घीसा दास जी ने सतनाम मंत्र का जाप किया

पूज्य परमेश्वर कबीर देव आदरणीय घीसा दास साहेब जी को मिलना

संदर्भ: लेखक: जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज पुस्तक परमेश्वर का सार संदेश के अध्याय 2, पृष्ठ 70 से तथा पुस्तक अध्यात्मिक ज्ञान गंगा, के अध्याय- 'कौन तथा कैसा है कुल का मालिक' पृष्ठ 412-413 से

उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ वर्तमान जिला बागपत में एक पवित्र गांव खेखड़ा है जिसमें विक्रमी संवत् 1860 सन् 1803 में घीसा दास साहेब जी का जन्म हुआ। जब वे सात वर्ष के थे, तब परमेश्वर कबीर जी सतलोक (ऋतधाम) से सशरीर आये और घीसा दास जी को जब वे गाँव के बाहर खेतों में खेल रहे थे, तब दर्शन दिये। पूज्य परमेश्वर कबीर साहेब ने अपनी प्रिय आत्मा को पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने के लिए कहा और एक घंटे तक सत्संग सुनाया। वहाँ और भी कई बच्चे मौजूद थे, एक बूढ़ी औरत भी थी। आदरणीय घीसा दास साहेब ने परमेश्वर कबीर जी के मुख कमल से सतलोक तथा सतपुरुष की महिमा सुनकर सतलोक की सैर करने की इच्छा व्यक्त की।

तब परमेश्वर कबीर जी ने उस पुण्यात्मा को लगभग 200 गज दूर पास के एकांत स्थान पर ले गए और कहा 'बेटा आओ, मैं तुम्हें दीक्षा देता हूं।' मंत्र देने के बाद उन्होंने अपने करमंडल से अमृत जल घीसा दास जी को पीने के लिए दिया और मिश्री खिलाई। शाम का अँधेरा करीब आ रहा था। तब परमात्मा कविर्देव अंतर्ध्यान हो गये। कुछ देर बाद सात वर्ष का बालक घीसा दास बेहोश हो गया। ‘भतेरी' नाम की वृद्ध महिला जो सब कुछ देख रही थी, गांव में गई और बच्चे के माता-पिता को बताया कि एक जिंदा महात्मा ने आपके बेटे को मंत्रित पानी पीने के लिए दिया था, जिसके कारण आपका बेटा बेहोश हो गया और जिंदा महात्मा गायब हो गया। घीसा दास जी के माता-पिता शादी के बहुत सालों के बाद किसी संत की कृपा से पुत्र प्राप्ति (घीसा दास) का आशीर्वाद मिला था। यह खबर सुनकर घीसा दास जी के माता-पिता बेहोश हो गए। साथी ग्रामीण उस स्थान पर गए जहां घीसा दास जी बेहोश पड़े थे और उन्हें उसी हालत में घर ले आए। कुछ देर बाद जब माता-पिता को होश आया तो बेटे की गंभीर हालत देखकर रोने लगे। अगली सुबह बालक घीसा दास को होश आया। तब उन्होंने सभी को बताया कि कबीर प्रभु स्वयं जिंदा बाबा के रूप में आकर उनसे मिले थे।

वहीं परमेश्वर कबीर साहेब काशी में 120 वर्ष तक जुलाहा बनकर रहे और सशरीर अपने अमर निवास सतलोक चले गये। उन्होंने कहा कि 'कल भगवान उन्हें सतलोक ले गए थे और आज वापस भेज दिया है।' बच्चे को जीवित और स्वस्थ देखकर माता-पिता ने राहत की सांस ली और इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि बच्चा क्या बात कर रहा है? आदरणीय घीसा दास साहेब का छोटी उम्र में ही ‘विजातिया' नाम की लड़की से विवाह हो गया और वे कविर्देव (परम अक्षर ब्रह्म) के ज्ञान का प्रचार करने लगे। वह सभी को बताते थे कि वह कबीर जो काशी में बुनकर यानि जुलाहे की भूमिका करके चले गए, वे ही एकमात्र सर्वोच्च भगवान यानि पूर्ण परमात्मा हैं, वह साकार है।

चौधरी जीताराम जाट को ज्ञान प्राप्ति

संदर्भ: पुस्तक "जीने की राह" (लेखक संत रामपाल जी महाराज) के पृष्ठ नं. 100-103 से

लगभग 275 वर्ष पहले उत्तर प्रदेश के वर्तमान जिला बागपत के गांव खेखड़ा में चौधरी जीताराम नाम का एक जाट रहता था। जो 900 एकड़ ज़मीन का मालिक था और गाँव का नम्बरदार और सबसे धनी व्यक्ति था। वह पंचायती आदमी था जो सत्य का पक्ष लेता था। घीसा दास जी उस समय उस ग्राम खेखड़ा में प्रवचन किया करते थे। वह एक मोची (चमार जाति) समुदाय से थे जो उस समय अछूत माना जाता था क्योंकि जातिगत भेदभाव की सामाजिक बुराई उस समय अपने चरम पर थी। घीसा दास एक संत के रूप में लोकप्रिय होने लगे क्योंकि आस-पास के लोग उनकी बातें सुनकर और उनसे दीक्षा लेकर संकटों से मुक्त होने लगे। चूँकि लोग अपनी आजीविका कमाने के लिए दिन में काम करते थे इसलिए घीसा दास जी शाम को सत्संग करते थे। संत घीसा दास जी का आध्यात्मिक प्रवचन माह में दो दिन होता था। रात के समय सत्संग में पुरुष और महिलाएँ दोनों शामिल होते थे और रात के समय सत्संग में महिलाओं की उपस्थिति गाँव में लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गई। वे चर्चा करने लगे कि रात्रि में महिलाओं का सत्संग में जाना सुरक्षित नहीं है। कुछ भी ग़लत हो सकता है इसलिए सत्संग बंद करवा देना चाहिए।

ग्राम खेखड़ा में पंचायत की बैठक हुई जिसमें सत्संग बंद करने का निर्णय लिया गया और ग्राम पंचायत के मुखिया चौधरी जीता राम जी को यह संदेश देने की जिम्मेदारी सौंपी गई। चौधरी जीताराम, संत घीसा दास साहिब जी के पास गये जहाँ वे सत्संग कर रहे थे। पंचायत द्वारा लिये गये फैसले की जानकारी गांव में सभी को हो गई थी। जब चौधरी जीता राम वहां पहुंचे तो सत्संग में उपस्थित श्रद्धालुओं ने सोचा कि चौधरी साहब जाट दिमाग के हैं। वह संत के साथ दुर्व्यवहार कर सकते है। जीताराम जी घर से लाठी लेकर चले थे जो रास्ते में एक वृक्ष के साथ खड़ी करके आगे चले। उन्हें विचार आया कि भक्त कोई झगड़ा थोड़े-ही करते हैं। अच्छी सभा में लाठी लेकर जाना एक पंचायती को शोभा नहीं देता। संत घीसा दास साहिब जी सत्संग में उपदेश दे रहे थे। चौधरी साहब ने सोचा ‘पहले सुन लूं कि संत जी क्या कह रहे हैं, बाद में उनसे बात करूंगा।' सत्संग में घीसादास जी ने वहीं ज्ञान बताया जो हरलाल जी को बताया था।

चौधरी जीताराम बने संत घीसादास के शिष्य

इसका उल्लेख सच्चिदानन्दघन ब्रह्म की वाणी में किया गया है। सूक्ष्मवेद में कहा गया है:

अविनाशी कु मारण चाल्या, वो जीता नंबरदारा |

मिली नजर में नजर धणी से, पाप भस्म होया सारा ||

घिसा रूप में दर्शया करतारा, दिव्य दृष्टि खुल जाती है |

सतगुरु अपना साथी है, सतगुरु हरदम साथी है ||

चौधरी साहब भावुक हो गये। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। उठकर संत घीसा जी के चरणों में सिर रखकर बोले, "हे गुरुदेव! मैं अपराधी हूं चाहे आप मुझे सज़ा दें या क्षमा करें लेकिन मैं स्वीकार करता हूं कि मैंने बहुत बड़ी गलती की है। आपके सत्संग को रोकने के लिए मैं पंचायत का संदेश लाया। मुझे क्षमा करें प्रभु। आप जितना चाहें सत्संग करते रहें, आपको कोई नहीं रोकेगा।" संत घीसा जी ने कहा, "चौधरी साहब! जो करने आये हो वहीं करो।" जीता जाट फिर रोने लगे और बोले, "मुझे माफ कर दो, मुझे माफ कर दो; मुझे नाम दीक्षा (मंत्र) दो।" इसके बाद चौधरी जीताराम जाट भक्त बन गये। वह स्वयं भी रात को सत्संग सुनने लगे। खेखड़ा गांव के घर-घर में लोग चौधरी जीताराम जाट के संत घीसाराम जी की शरण में जाने की आलोचना करने लगे। लोग कहने लगे, “संत घीसाराम जादूगर है, जंत्र-मंत्र जानते हैं। उन्होंने चौधरी साहब पर जादू करके उन्हें अपने वश में कर लिया है।” वे सम्मोहन विद्या जानते हैं। सारा परिवार, उनके बेटे, भाई, चाचा सभी चौधरी जीता जाट के विरुद्ध हो गए। गाँव वाले चौधरी जीता राम से कहने लगे, चौधरी साहब! ऐसा लगता है कि आप बुढ़ापे में बिगड़ गए। चौधरी जीताराम जी को आध्यात्मिक घाम मार गया था यानि ज्ञान का प्रबल प्रभाव हो गया था। वह कहते थे, हे ग्रामवासियों! यह मेरा सौभाग्य है कि मैं भक्त बन गया और आपकी दृष्टि में बिगड़ गया। भगवान करे मेरे ही तरह तुम सारे बिगड़ जाओ। बिना बिगड़े काम नहीं चलेगा। 

संत घीसा दास को गांव खेखड़ा से निष्कासित करने पर गांव में शुरू हुई आपत्ति (संत सताने की सजा)

कुछ दिन बाद गांव में पंचायत हुई और संत घीसा दास जी और भक्त जीता राम को गांव छोड़ने का फरमान जारी कर दिया गया। गुरु और शिष्य दोनों तुरंत उस गाँव को छोड़कर दूर एक गाँव में चले गए। वहां भी वे सत्संग सुनाने लगे और लोगों को ज्ञान समझाने लगे। बहुत से लोग उनके अनुयायी बन गये। संतों के जाने के बाद खेखड़ा गांव में अफरा-तफरी मच गई। अकाल मौतें होने लगीं। ग्राम पंचायत के सदस्यों के घरों में भगवान का प्रकोप शुरू हो गया। कुछ सदस्यों के चारे में आग लगने लगी; कुछ जानवर मरने लगे। कुछ परिवार भूतों से पीड़ित हो गए; किसी की बेटी विधवा हो गयी; किसी को लकवा मार गया; ग्रामीणों के जानवर बीमारी की चपेट में आ गए। परेशान लोग गांव में फैली अव्यवस्था का कारण जानने के लिए एक ओझा के पास गए। ओझा ने उनसे कहा कि "तुम्हारे गाँव में एक साधु और भक्त रहते थे। चूँकि वे गाँव छोड़कर चले गए हैं, इसलिए बहुत अनर्थ हो रहा है। यदि वे वापस आएँगे तो गाँव फिर से समृद्ध हो जाएगा, अन्यथा बर्बाद हो जाएगा।" उन लोगों ने गांव में वापस आकर पंचायत की और सारी बात बताई, तब गाँव के गणमान्य व्यक्ति संत-भक्त को वापिस लाने के लिए उस गाँव में गए।

भक्त जीता दास ने गुरु घीसा दास जी से कहा, "गुरुदेव! ऐसा लगता है कि गाँव वाले हमें यहाँ से भी निकालने आए हैं। देखो, वे आ रहे हैं।" संत घीसा दास जी ने कहा, "ठीक है, चलो सामान समेट लेते हैं। हम यहां से प्रस्थान करेंगे।" तब तक गाँव के चौधरी साहब पास आये और अपनी-अपनी पगड़ी संत घीसा और भक्त जीता जी के चरणों में रख दी। सभी ने कहा, "महाराज जी! हमें माफ कर दीजिए। जिस दिन से आप गांव छोड़कर गए हैं, वह उजड़ने लग रहा है। आप बचा सकते हैं तो बचा लीजिए। नहीं तो हम भी आपके साथ यहीं रहेंगे। चर्चा देखकर उस गाँव के व्यक्ति भी इकट्ठे हो गए। सर्व घटना का पता चला। वर्तमान गाँव वाले कहने लगे कि चौधरियों! संतो के आपके साथ जाने से तुम तो बस जाओगे लेकिन हम तो उजड़ जाएंगे। जब से ये दो देवता गाँव में आए हैं, गाँव में किसी की तू-तू, मैं-मैं भी नहीं हुई। दो बार बारिश हो चुकी है। देखो! फसल लहला रही हैं।

संत घीसा दास की कृपा से समृद्ध हुआ गांव खेखड़ा

जब खेखड़ा गाँव के लोगों ने विशेष अनुरोध किया तो संत घीसा जी और भगत जीता जी दोनों वापस लौटने को तैयार हो गये और वर्तमान गाँव के लोगों से कहा कि “हम समय-समय पर आते रहेंगे। हर पूर्णिमा को आप सभी भी खेखड़ा आएं। परमात्मा कबीर जी सब ठीक कर देंगे।" दोनों के लौटते ही पूरा खेखड़ा गांव फिर से खुशहाल हो गया। जानवर स्वस्थ हो गए। अगले दिन भारी बारिश हुई। गांव वाले खुश हो गए। 36 बिरादरी के लोग खुश थे। सभी विपदा समाप्त हो गई। आज तक उस गांव में संत घीसा दास जी और भगत जीता दास जी के नाम पर मेला आयोजित किया जाता है। इस संदर्भ में संत गरीबदास जी अपनी अमृत वाणी में कहते हैं:

गरीब, जिस मण्डल साधु नहीं, नदी नहीं गुंजार।

तज हंसा वह देशड़ा, जम की मोटी मार।।

अर्थ: जिस क्षेत्र में महात्मा, गुरूजन नहीं होते और नदी आसपास न बह रही हो। हे भक्त! उस देश को त्याग दे। वहाँ काल की भयंकर प्रताड़ना है। इसलिए हे पाठकजनो! जब भी जिस आयु में सतगुरू मिल जाए, भक्ति प्रारम्भ कर देना। 

संत गरीबदास जी ने कहा है कि:-

गरीब, चली गई सो जान दे, ले रहती कूं राख।
उतरी लाव चढ़ाईयो, करो अपूठी चाक।।

अर्थ: जो आयु चली गई, उसकी चिंता छोड़कर शेष की रक्षा करो यानि भक्ति, दान-सेवा में लगा दो। जैसे पुराने समय में कूंए से खेती की सिंचाई के लिए चमड़े की चड़स प्रयोग होती थी जिसमें दो-तीन क्विंटल पानी भर जाता था। उसको काष्ठ की चक्री के ऊपर लाव (मोटी रस्सी) चढ़ाकर बाँधकर खींचते थे। यदि लाव (रस्सी) चक्री से उतर जाती थी (फिसल जाती थी) तो उसे खींचना कठिन हो जाता था। उसको जैसे-तैसे पुनः चक्री (काष्ट के मोटे घेरे) पर चढ़ाया जाता था जिससे चड़स को बाहर निकालना आसान होता था जो उससे लाभ लेने का यथार्थ तरीका है। इसलिए हे मानव! यदि गुरू शरण नहीं ली है तो आपकी लाव उतरी पड़ी है, जीवन का प्रत्येक कार्य मुसीबत बना खड़ा है। उस जीवन की लाव को पुनः पुली (चक्री) पर चढ़ा लो। फिर चलाओ, आसान हो जाएगा यानि गुरू जी की शरण लेकर अपने जीवन की राह को आसान बनाओ।

संत घीसादास जी ने सतनाम मंत्र का जाप किया

सूक्ष्म वेद के साक्ष्य से साबित होता है कि संत घीसा दास जी कबीर परमेश्वर द्वारा दिए गए सतनाम मंत्र का जाप करते थे, जिससे उन्हें काल के दायरे से मुक्ति मिल गई। इसका प्रमाण उनकी अमृत वाणी से मिलता है। संत घीसादास जी ने कहा है,

"ओम् सोहं जपले भाई, रामनाम की यही कमाई।"

अर्थात् ईश्वर के सच्चे मोक्ष मन्त्र के जाप से जीव की जन्म व मृत्यु की लम्बी बीमारी ठीक हो जाती है; उसके लिए सतनाम ही एकमात्र समाधान है।

संत घीसादास जी की तरह ही परमेश्वर कबीर जी जिंदा महात्मा रूप में सिख धर्म के प्रवर्तक गुरूनानक देव जी, संत दादू जी, धनी धर्मदास जी, संत मलूकदास जी तथा आदरणीय संत गरीबदास जी (गांव छुड़ानी, जिला झज्जर, हरियाणा) को भी मिले थे। उन्हें दो अक्षर का सतनाम प्रदान किया था। इसी सतनाम का प्रमाण गरीबदास जी महाराज देते हुए कहते हैं कि

ॐ सोहं पालड़े रंग होरी हो, चौदह भवन चढावे राम रंग होरी हो।

तीन लोक पासंग धरै रंग होरी हो, तो न तुले तुलाया राम रंग होरी हो।।

राम नाम जप कर थीर होई। ॐ-सोहं मन्त्र दोई।।

कहा पढ़ो भागवत गीता, मनजीता जिन त्रिभुवन जीता। मनजीते बिन झूठा ज्ञाना, चार वेद और अठारा पुराना।।

निष्कर्ष

इस लेख से पता चलता है कि संत को सताने की सजा कितनी भयंकर होती है इसलिए मानव को भूलकर भी किसी संत, भक्त को दुःखी नहीं करना चाहिए। क्योंकि संत, भक्त को सताने से परमात्मा रुष्ट हो जाते हैं और फिर हमें दुखों का सामना करना पढ़ता है। साथ ही इस लेख से यह जानकारी प्राप्त होती है कि सर्वशक्तिमान कविर्देव जो दृढ़ भक्त, संत घीसा दास जी को सतलोक ले गए और उन्हें सच्चा मोक्ष मंत्र सतनाम देकर मुक्त किया, हरियाणा की पवित्र भूमि पर फिर से अवतरित हुए हैं और महान तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के रूप में दिव्य लीला कर रहे हैं। आप भी अपने मूल निवास सतलोक जाने के लिए उनकी शरण लें और आत्म कल्याण कराएं।