परम अक्षर पुरुष/सतपुरुष/शब्द स्वरूपी राम परमेश्वर कविर्देव, संपूर्ण ब्रह्मांडों के रचयिता, इस नाशवान संसार में अवतरित होते हैं और अपने दृढ़ भक्तों को मिलते हैं, उन्हें सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं और कसाई काल ब्रह्म के जाल में फंसी हुई अपनी प्रिय आत्माओं को मोक्ष प्रदान करने के उद्देश्य से उन्हें सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान करते हैं। सर्वशक्तिमान कबीर परमेश्वर मुक्तिदाता हैं और उन्हें 'बंदीछोड' कहा जाता है क्योंकि वह अपनी प्रिय आत्माओं के कर्मों के बंधन को काटते हैं जो जन्म और मृत्यु के दुष्चक्र से छुटकारा पाना चाहते हैं। सर्वशक्तिमान ईश्वर अपने दृढ़ भक्तों के लिए कुछ भी और सब कुछ कर सकते है। वह चमत्कार करता है, उदास और परेशान आत्माओं को राहत देता है। चूँकि भगवान के लिए कुछ भी असंभव नहीं है, इसलिए पुण्य आत्माएँ परमेश्वर की कृपा से परेशानियों से छुटकारा प्राप्त कर लेती हैं। इसके बाद वे पुण्य आत्माएँ अपनी भक्ति में दृढ़ रहते हैं। यहां हम परमेश्वर कबीर जी के कुछ महान भक्तों के बारे में पढ़ेंगे जिनसे परमेश्वर ने मुलाकात की, चमत्कार किए, संकट के समय उन्हें राहत प्रदान की और जो कार्य असंभव लगता था उसे संभव कर दिखाया।
- राजस्थान के एक गरीब किसान भक्त धन्ना जाट एक पुण्यात्मा थे, जिनके लिए परमेश्वर ने तुंबा से ज्वार के बीज उत्पन्न करके चमत्कार किया था, जोकि ज्वार के बीज के बजाय कंकड़ से उत्पन्न हुए थे।
- संत रविदास, एक महान भक्त, परमात्मा कबीर जी के समकालीन थे, जो परमेश्वर कविर्देव के उपदेशों और सिद्धांतों का पालन करते थे। यह जानने के लिए लेख पढ़ें कि परमात्मा ने किस प्रकार पवित्र आत्मा पर कृपा की जिससे वह परमात्मा के दृढ़ भक्त बन गए।
- जीवा और दत्ता, दो ब्राह्मण भाई ईश्वर प्रेमी आत्माएं थी, जिनके लिए परमेश्वर कबीर जी ने एक सच्चे संत को साबित करते हुए सूखी डाली को हरा कर दिया, परमात्मा असंभव को संभव बना सकते हैं।
- संत घीसा दास साहिब जी ने अपने सत्संग प्रवचनों से नंबरदार चौधरी जीता जाट को पक्का भक्त बनाया और उजड़े हुए गांव को कबीर भगवान की कृपा से खुशहाल किया। यह लेख में आप पढ़ेंगे संत घीसा दास जी की कथा और जानेंगे मनुष्य जीवन में सतभक्ति का महत्व।
- राजस्थान के एक शाही राजपूत परिवार के राजा और रानी होने के बावजूद महान भक्त पीपा-सीता में ईश्वर को पाने की लालसा थी। प्रारंभ में ठाकुर पीपा देवी दुर्गा जी के उपासक थे, लेकिन स्वामी रामानंद जी से यह जानने के बाद कि परमेश्वर कोई ओर है, उन्होंने स्वामी रामानंद जी की शरण ली और मनमानी पूजा छोड़ दी। भगवान के दर्शन पाने के लिए दोनों पति-पत्नी ने नदी में कूदने तक का भी साहस किया। उनके विश्वास को बनाये रखने के लिए परमात्मा कबीर जी भगवान कृष्ण के रूप में नदी में उनके साथ रहे और उन्हें यह संकेत देने के लिए एक अंगूठी दी कि वास्तव में कृष्ण जी पीपा और सीता से मिले थे।
- भक्त मलूक दास जी की वास्तविक मुक्ति की कहानी, जिसे परमात्मा कबीर जी ने एक गाँव के चौधरी से पूर्ण परमात्मा सतपुरुष का पक्का भक्त बना दिया था, प्रेरित करती है कि परम सुख, बुढ़ापे और मृत्यु से मुक्त स्थान जहाँ परमात्मा निवास करते हैं प्राप्त करने के लिए, भौतिक सुख-सुविधाओं को त्याग देना चाहिए।
- दादू साहिब जी ने अमर निवास सतलोक से लौटने के बाद परमात्मा कबीर जी की महिमा का गुणगान किया और बताया कि उन्हें परमात्मा से सच्चे मोक्ष मंत्र प्राप्त हुए। मोक्ष प्राप्त करने वाली धन्य आत्मा अब खुशी से सतलोक में रहती हैं। जिसका विवरण लेख प्रदान करता है।
- भक्त सुपच सुदर्शन वाल्मिकी समुदाय से थे, जिन्होंने द्वापरयुग के दौरान करुणामय अवतार रूप में आए भगवान कबीर साहेब जी से नामदीक्षा ली थी। कबीर साहेब जी ने पांडवों द्वारा आयोजित अश्वमेघ यज्ञ में अपने भक्त सुपच सुदर्शन का रूप धारण करके अखंड शंख बजाया था जिससे पांडवों की यज्ञ सफल हुई थी और अपने दृढ़ भक्त का सम्मान भी बढ़ाया था। यह लेख इसी सच्ची आध्यात्मिक घटना का प्रमाण प्रदान देता है।
- विभीषण में एक सच्चे भक्त वाले सभी महत्वपूर्ण गुण विधमान थे जैसे विनम्रता, दास भाव, सौहार्दपूर्णता, मददगार, दयालुता आदि इसलिए उन्हें लंका का सिंहासन सहज रूप में मिला, जिसके लिए उनके बड़े भाई, अहंकारी राक्षस रावण ने कठोर तपस्या की थी। लेख में आगे पढ़ें और जानिए कि विभीषण को मोक्ष कैसे प्राप्त हुआ था।
- दो मुस्लिम भाई अर्जुन-सर्जुन कबीर साहेब जी के परम भक्त थे। दोनों भाई भक्तों को अल्लाह कबीर साहेब जी पर अटूट विश्वास था। लेकिन कबीर साहेब जी को गणिका के साथ बैठा देखकर और कबीर साहेब जी की दिव्य लीला से अनजान होने के कारण उनका विश्वास डगमगा गया, जिसके कारण उनका कल्याण 225 वर्ष की आयु में पूज्य संत गरीबदास जी की शरण में जाने के बाद हुआ। आगे पढ़िए और जानिए की अर्जुन सर्जुन भक्ति की परीक्षा में फैल क्यों हुए और इतनी लंबी आयु तक जीवित कैसे रहे?
- भक्त ध्रुव की बालक से राजा बनने की सच्ची कहानी अब तक भक्त समाज को प्रेरित कर रही है। लेकिन सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाश में यह पाया गया है कि स्वर्ग प्राप्ति मानव जीवन का उद्देश्य नहीं है। बल्कि मनुष्यों का असली लक्ष्य शाश्वत जगत, सतलोक को प्राप्त करना है।
- एक समय में, नरसी भगत एक करोड़पति होने के बावजूद बहुत कंजूस थे, लेकिन परमेश्वर कबीर के आशीर्वाद से, वे एक समर्पित शिष्य बन गए। उन्होंने अपनी विशाल संपत्ति को ईश्वरीय कृपा प्राप्त करने में लगा दिया और सादगीपूर्ण जीवन जीने का संकल्प लिया। परमेश्वर कबीर ने हर परिस्थिति में उनके सम्मान की रक्षा की, चाहे वह उनकी मातृपोती की शादी के लिये दहेज देना हो या संतों की हुंडी को चुकाना हो। इस अद्भुत और प्रेरणादायक कहानी को जरूर पढ़ें ।