सृष्टि रचना के रहस्यों का खुलासा प्रमाण सहित | जगतगुरु रामपाल जी


सर्व धर्मों के अनुसार सृष्टि की रचना की जानकारी

सर्व धर्मों के अनुसार सृष्टि की रचना का विवरण

सृष्टि रचना आज तक एक ऐसी रहस्यमयी पहेली बनी हुई थी जिसे समझ पाना किसी के लिए भी संभव नहीं था। कुछ प्रश्न जैसे - ग्रह और उपग्रह अपनी कक्षा में लगातार कैसे घूमते हैं? यदि सूर्य आग का गोला है, तो चाँद इतना शीतल कैसे है? जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि, आकाश जैसे तत्वों कि रचना किस ने की है? क्या ये ब्रह्माण्ड, ये गृह, उपग्रह, मनुष्य और अन्य जीव स्वयं ही अस्तित्व में आये?

अगर नहीं तो फिर वो परमशक्ति कौन है जिसने ये सब संरचना की? क्या उसे देखा जा सकता है? पाया जा सकता है? ये प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए मनुष्य हमेशा से ही प्रयासरत रहा है परन्तु बहुत दुःख की बात है की सभी धर्मों के ग्रंथों में प्रमाण होने के बाद भी ये अद्वितीय तत्वज्ञान आज तक भक्त समाज से छिपा हुआ था। पर अब तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा दिए गए आध्यात्मिक ज्ञान से हम सृष्टि रचना के रहस्य को समझ पाए हैं। तो आइये जानते हैं की ब्रह्माण्ड और इस सृष्टि की रचना कैसे हुई?

ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति कैसे हुई?

भगवान को चाहने वाले व्यक्ति जब सृष्टि रचना पहली बार पढ़ते हैं तो उन्हें ये एक निराधार कथा लगती है। पर जब उन्हें उनके ही धर्म के ग्रंथों से पर्याप्त प्रमाण दिखाए जाते हैं तो उन्हें इस सत्य कथा पर विश्वास करना ही पड़ता है। सृष्टि रचना के प्रमाण सभी धर्मों के पवित्र ग्रंथो में हैं जिनमें हिन्दू धर्म, इस्लाम, सिख धर्म, और जैन धर्म के पवित्र ग्रन्थ शामिल हैं। ब्रह्माण्ड के निर्माण पर वैज्ञानिकों द्वारा दिया गया बिग बैंग सिद्धांत भी इन्ही प्रमाणों का समर्थन करता है। ये सब प्रमाण इतने ठोस हैं की एक नास्तिक व्यक्ति को भी सोचने पर मजबूर कर दें।

  • ब्रह्माण्ड का निर्माण कब हुआ?
  • ब्रह्माण्ड की आयु क्या है?
  • ब्रह्माण्ड का विस्तार कितना है?
  • ब्रह्माण्ड का निर्माण कैसे हुआ?
  • ब्रह्माण्ड का अंत कब और कैसे होगा?

ऐसे बहुत सारे सवाल हैं जिनका उत्तर सृष्टि रचना की इस कथा में आपको मिलेगा, इसलिए इसे पढ़ते समय बहुत ही धैर्य की आवश्यकता होगी। क्योंकि ये ऐसा पवित्र ज्ञान है जो आपकी आने वाली हज़ारों पीढ़ियों के लिए भी उपयोगी होगा।

हर धर्म में बताई गयी है सृष्टि उत्पत्ति कथा

सृष्टि रचना के बारे में सभी धार्मिक प्रवक्ताओं, मार्गदर्शकों, संतों, गुरुओं, काज़ी मुल्लाओं, आचार्यों शंकराचार्यों, संतों महंतों, मंडलेश्वरों और वैज्ञानिकों ने बहुत सारे सिद्धांत दिए हैं पर धार्मिक ग्रंथों और  आध्यात्मिक ज्ञान की सही जानकारी ना होने के कारण इनमें से कोई भी अपनी बात को सिद्ध नहीं कर पाया है। मनगढ़ंत कथाओं और लोक-साहित्य के आधार पर ही ये सब आज तक दुनिया को मूर्ख बनाते आये हैं। तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ही एक सच्चे आध्यात्मिक गुरु हैं जिन्होंने सिर्फ जगत के उद्धार के लिए ही प्रमाणों के साथ सृष्टि रचना के रहस्य को खोला और समझाया है। उन्हीं के दिए हुए ज्ञान के आधार पर हम अब हिन्दू, सिख, मुस्लिम और ईसाई धर्म के धार्मिक ग्रंथो का अन्वेषण करेंगे:

हिन्दू धर्म के अनुसार सृष्टि की रचना

वैष्णव संप्रदाय के लोग मानते हैं कि विष्णु जी ने ब्रह्मा कि उत्पत्ति कि और और उसे सृष्टि कि रचना करने का आदेश दिया। जबकि शैव संप्रदाय के लोग मानते हैं कि शिव ही विश्व के रचयिता हैं। इनके इलावा पूरे हिन्दू धर्म में परमात्मा को निराकार माना जाता है।

जबकि हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रन्थ - चारों वेद और गीता जी गवाही देते हैं कि परमात्मा साकार है, देखने में राजा के समान वो अपने सनातम परमधाम “सत्यलोक” में रहता है। उस परमात्मा का नाम कविर्देव या कबीर साहेब है।
वेदों के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब ने ही की है।

देखें प्रमाण:

पवित्र ऋग्वेद में सृष्टी रचना का प्रमाण

ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 1
Rigved Mandal 10 Sukt 90 Mantra 1

ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 2
Rigved Mandal 10 Sukt 90 Mantra 2

ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 3
Rigved Mandal 10 Sukt 90 Mantra 3

ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 4
Rigved Mandal 10 Sukt 90 Mantra 4

ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 5
Rigved Mandal 10 Sukt 90 Mantra 5

ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 15
Rigved Mandal 10 Sukt 90 Mantra 15

ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 16
Rigved Mandal 10 Sukt 90 Mantra 16

पवित्र अथर्ववेद में सृष्टि रचना का प्रमाण

अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र नं. 1
Atharvaved Kaand 4 Anuvaak 1 Mantra 1

अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र नं. 2
Atharvaved Kaand 4 Anuvaak 1 Mantra 2

अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र नं. 3
Atharvaved Kaand 4 Anuvaak 1 Mantra 3

अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र नं. 4
athrava ved kand 4 anuvak 1 mantra 4

अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र नं. 5
Atharvaved Kaand 4 Anuvaak 1 Mantra 5

अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र नं. 6
Atharvaved Kaand 4 Anuvaak 1 Mantra 6

अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र नं. 7
Atharvaved Kaand 4 Anuvaak 1 Mantra 7

पवित्र यजुर्वेद में सृष्टि रचना का प्रमाण

यजुर्वेद अध्याय 5, मन्त्र 1
Yajurved Adhyay 5, Mantra 1

यजुर्वेद अध्याय 1, मन्त्र  15

पवित्र श्रीमद्देवी महापुराण में सृष्टी रचना का प्रमाण

पवित्र श्रीमद्देवी महापुराण, गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादकर्ता श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार तथा चिमन लाल गोस्वामी जी

तीसरा स्कन्द अध्याय 1 से  3, पृष्ठ नं. 114 से 118, पृष्ठ नं. 119-120

तीसरा स्कन्द, अध्याय 4 से  5, पृष्ठ नं. 123
Shrimad Devi Mahapuran Third Skand Adhyay 4 page 123

Shrimad Devi Mahapuran Third Skand Adhyay 5 page 123

पवित्र शिव महापुराण में सृष्टी रचना का प्रमाण

पवित्र शिव महापुराण, गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादकर्ता श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार

रूद्र संहिता, अध्याय 6, पृष्ठ नं. 100-103

रूद्र संहिता, अध्याय 7, पृष्ठ नं. 103

रूद्र संहिता, अध्याय 9, पृष्ठ नं. 110

पवित्र श्रीमद्भगवत गीता जी में सृष्टी रचना का प्रमाण -

पवित्र श्रीमद्भगवत गीता, गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादकर्ता जयदयाल गोयन्दका

अध्याय 14 श्लोक 3 से 5

Gita Adhyay 14 Shlok 3

Gita Adhyay 14 Shlok 4

Gita Adhyay 14 Shlok 5

अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा 16, 17

Gita Adhyay 15 Shlok 1

Gita Adhyay 15 Shlok 2

Gita Adhyay 15 Shlok 3

Gita Adhyay 15 Shlok 4

अध्याय 7 श्लोक 12
Gita Adhyay 7 Shlok 12

इस्लाम के अनुसार सृष्टि की रचना

मुस्लिम धर्म के लोग मानते हैं कि सृष्टि कि रचना अल्लाह/खुदा ने कि है और अल्लाह बेचून अर्थात निराकार है। मुस्लिम ये भी मानते हैं कि "क़ुरान" अल्लाह का आदेश है जबकि इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण मिलते हैं कि कुरान शरीफ/मजीद का ज्ञान हज़रत मुहम्मद को एक जिब्राइल नामक फ़रिश्ते द्वारा दिया गया था।
वेदों की तरह ही पवित्र कुरान में भी प्रमाण है की वो अल्लाह कबीर है जिसने छः दिन में सृष्टि की रचना की और सातवें दिन तख़्त पर जा विराजा।

  • कुरान शरीफ  - सूरा अंबिया –शेरवानी संस्करण लखनऊ किताबघर, मौसमबाग़, सीतापुर रोड, लखनऊ, 1969 में प्रकाशित, 17वां संस्करण
  • क़ुरान मजीद, तजुर्मा, मौलाना मोहम्मद, फ़तेह खान साहेब, मौलाना अब्दुल मजीद सरवर साहेब, फरीद बुक डिपो, दरियागंज, नई दिल्ली, 2006 में प्रकाशित
  • कुरान शरीफ  - सूरा अंबिया ‘मुख़्तसर तफ़्सीर एहसानुल बयां तर्जुमा, मौलाना मोहम्मद जुनागढ़ी तफ़्सीर हाफिज सालाहुद्दीन युसूफ, हिंदी तर्जुमा तरतीब मोहम्मद ताहिर हनीफ' दारुसलाम पब्लिकेशन एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स
  • पवित्र कुरान शरीफ - सूरत अल फ़ुरक़ान 25: 52 – 59 (Description)

ईसाई धर्म के अनुसार सृष्टि की रचना

ईसाई धर्म के अनुयायी मानते हैं कि परमात्मा निराकार है और उसी ने सब सरंचना कि है। परन्तु बाइबल में भी सर्वोच्च परमेश्वर का नाम कबीर ही बताया गया है और परमेश्वर कबीर ही सृष्टि के रचयिता हैं।

  • बाइबल में कबीर परमात्मा - Iyov 36:5
  • पवित्र बाईबल उत्पत्ति ग्रन्थ पृष्ठ नं. 2 पर, अ. 1.20 – 2.5

सिख धर्म के अनुसार सृष्टि की रचना

सिख धर्म के अनुयायी मानते हैं कि रब/वाहेगुरु ने दुनिया बनाई है और वो निराकार है। गुरु नानक जी की निम्न वाणियों में प्रमाण है की सत कबीर ही सच्चा परवरदिगार यानि के पूर्ण परमात्मा हैं और उन्होंने ही सृष्टि की रचना की है।

  • श्री नानक साहेब जी की अमृतवाणी, महला 1, राग बिलावलु, अंश 1 (गु.ग्र पृ.839)
  • राग मारु(अंश) अमृतवाणी महला 1(गु.ग्र.पृ. 1037)
  • श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721, राग तिलंग महला 1

पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर् देव) जी की अमृतवाणी में सृष्टी रचना

■ Reference:- कबीर सागर संपूर्ण 11 भाग, अनुभाग 1, कबीरपंथी भारत पथिक, स्वामी युगलानन्द बिहारी परिष्कृत, प्रकाशक खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाशन, मुंबई, डायरेक्टर: श्री वेंकटेश्वर प्रेस, खेमराज श्रीकृष्ण दास मार्ग, मुंबई

अध्याय कबीर वाणी, बोधसागर पेज नं.136-137

आदरणीय गरीबदास साहेब जी की अमृतवाणी में सृष्टी रचना 

■ आदि रमैणी (सद् ग्रन्थ पृष्ठ नं. 690 से 692 तक)

पूज्य कबीर साहेब और पूर्ण संत गरीबदास जी महाराज ने अपनी वाणी में सृष्टि रचना का विस्तृत विवरण दिया है।

विज्ञान के अनुसार ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति / द बिग बैंग थ्योरी

विज्ञान बताती है क़ि ब्रह्माण्ड - ग्रहों, सितारों, और आकाशगंगाओं का समूह है पर विज्ञान को भी ब्रह्माण्ड के विस्तार के बारे में सम्पूर्ण जानकारी नहीं है। विज्ञान द्वारा दी गयी जानकारी प्राचीन भारतीय और ग्रीक दार्शनिकों के द्वारा तैयार किये गए कॉस्मोलॉजिकल मॉडल और आइज़क न्यूटन तथा कोपरनिकस द्वारा दिए गए हीलिओसेंट्रिक मॉडल पर आधारित हैं। फिर भी आज तक विज्ञान सिर्फ इतना ही बता पाया है क़ि पृथ्वी से ब्रह्माण्ड का जो हिस्सा देखा जा सकता है उसका व्यास 93 बिलियन प्रकाश वर्ष है। जबकि परमात्मा कबीर साहेब ने अपनी वाणी में जो सृष्टि रचना का विवरण दिया है उसमे असंख्य ब्रह्मांडो क़ि जानकारी है।

द बिग बैंग थ्योरी या महाविस्फोट सिद्धांत, ब्रह्माण्ड क़ि रचना की सबसे प्रचलित धारणा है। जिसके अनुसार आज से लगभग 13.799 +/- 0.021 अरब वर्ष पहले ब्रह्मांड एक परमाण्विक इकाई के रूप में था। महाविस्फोट धमाके में इतनी अधिक ऊर्जा का उत्सजर्न हुआ क़ि ब्रह्माण्ड फैलता ही चला गया। उसी धमाके के फलस्वरूप ग्रहों, उपग्रहों, और अन्य खगोलीय पिंडों क़ि रचना हुई जो क़ि अभी भी जारी है।

इसके इलावा ACDM मॉडल जिसे बहुत से वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है।  ब्रह्माण्ड संरचना को लेकर और भी कई सिद्धांत हैं जिन्हे भौतिक शास्त्री और दार्शनिक मानने से इंकार कर चुके हैं क्योंकि उनका मानना है कि इस कि सही जानकारी कभी भी प्राप्त नहीं हो सकती।

विज्ञान द्वारा दिए गए सभी सिद्धांत सिर्फ संभावनाओं और संकल्पनाओं पर आधारित हैं। वैज्ञानिकों का ज्ञान सिर्फ इस पृथ्वी क़ि रचना तक ही सीमित है। जबकि पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब(कविर्देव) द्वारा दिया गया पवित्र ज्ञान इस पृथ्वी और ब्रह्माण्ड से भी परे है। परमात्मा द्वारा बोली गयी कबीर अमृतवाणी में असंख्य ब्रह्मांडो और उनसे भी ऊपर परमात्मा के परमलोक कि भी जानकारी है जहाँ तक विज्ञान कभी पहुंच ही नहीं सकता।

आइये अब जानते हैं की पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब ने सृष्टि की रचना/ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति कैसे की?

सृष्टि की रचना/ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति कैसे हुई?

Reference:- कबीर सागर संपूर्ण 11 भाग, अनुभाग 1, कबीरपंथी भारत पथिक, स्वामी युगलानन्द बिहारी परिष्कृत, प्रकाशक खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाशन, मुंबई, डायरेक्टर: श्री वेंकटेश्वर प्रेस, खेमराज श्रीकृष्ण दास मार्ग, मुंबई

अध्याय कबीर वाणी, बोधसागर, पृष्ठ नं 136-137

सृष्टि रचना से पहले सिर्फ एक सनातन परमात्मा था जो अपने अनामी लोक में अकेला रहता था। उस परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव अर्थात कबीर परमेश्वर हैं। वेदों में उन्हें "कविर्देव" और क़ुरान में "कबीरन" नाम से पुकारा गया है।  पूर्ण परमात्मा देखने में मनुष्य के समान है पर उनका शरीर दीप्तिमान है। उनके एक एक रोम कूप का प्रकाश संख सूर्यों कि रोशनी से भी अधिक है।

उस प्रभु ने मनुष्य को अपने ही स्वरुप में बनाया है, इसलिए मानव का नाम भी पुरुष ही पड़ा है। पुरुष का सही अर्थ परमात्मा होता है। उसी परम पुरुष के शरीर में सभी आत्माएं समायी हुई थी।

पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने नीचे के तीन और लोकों (अगमलोक, अलख लोक, सतलोक) की रचना शब्द(वचन) से की।

नीचे के लोकों की रचना

इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने नीचे के तीन और लोकों (अगमलोक, अलख लोक, सतलोक) की रचना शब्द(वचन) से की। यही पूर्णब्रह्म परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ही अगम लोक में प्रकट हुआ तथा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) अगम लोक का भी स्वामी है तथा वहाँ इनका उपमात्मक (पदवी का) नाम अगम पुरुष अर्थात् अगम प्रभु है। इसी अगम प्रभु का मानव सदृश शरीर बहुत तेजोमय है जिसके एक रोम कूप की रोशनी खरब सूर्य की रोशनी से भी अधिक है।

यह पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबिर देव=कबीर परमेश्वर) अलख लोक में प्रकट हुआ तथा स्वयं ही अलख लोक का भी स्वामी है तथा उपमात्मक (पदवी का) नाम अलख पुरुष भी इसी परमेश्वर का है तथा इस पूर्ण प्रभु का मानव सदृश शरीर तेजोमय (स्वज्र्योति) स्वयं प्रकाशित है। एक रोम कूप की रोशनी अरब सूर्यों के प्रकाश से भी ज्यादा है।

यही पूर्ण प्रभु सतलोक में प्रकट हुआ तथा सतलोक का भी अधिपति यही है। इसलिए इसी का उपमात्मक (पदवी का) नाम सतपुरुष (अविनाशी प्रभु)है। इसी का नाम अकालमूर्ति - शब्द स्वरूपी राम - पूर्ण ब्रह्म - परम अक्षर ब्रह्म आदि हैं। इसी सतपुरुष कविर्देव (कबीर प्रभु) का मानव सदृश शरीर तेजोमय है। जिसके एक रोमकूप का प्रकाश करोड़ सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के प्रकाश से भी अधिक है।

सतलोक में अन्य रचना - इस कविर्देव (कबीर प्रभु) ने सतपुरुष रूप में प्रकट होकर सतलोक में विराजमान होकर प्रथम सतलोक में अन्य रचना की।

एक शब्द (वचन) से सोलह द्वीपों की रचना की। फिर सोलह शब्दों से सोलह पुत्रों की उत्पत्ति की। एक मानसरोवर की रचना की जिसमें अमृत भरा।
सोलह पुत्रों के नाम हैं:-(1) ‘‘कूर्म’’, (2)‘‘ज्ञानी’’, (3) ‘‘विवेक’’, (4) ‘‘तेज’’, (5) ‘‘सहज’’, (6) ‘‘सन्तोष’’, (7)‘‘सुरति’’, (8) ‘‘आनन्द’’, (9) ‘‘क्षमा’’, (10) ‘‘निष्काम’’, (11) ‘जलरंगी‘ (12)‘‘अचिन्त’’, (13) ‘‘प्रेम’’, (14) ‘‘दयाल’’, (15) ‘‘धैर्य’’ (16) ‘‘योग संतायन’’ अर्थात् ‘‘योगजीत‘‘।

सतपुरुष कविर्देव ने अपने पुत्र अचिन्त को सत्यलोक की अन्य रचना का भार सौंपा तथा शक्ति प्रदान की। अचिन्त ने अक्षर पुरुष (परब्रह्म) की शब्द से उत्पत्ति की तथा कहा कि मेरी मदद करना। अक्षर पुरुष स्नान करने मानसरोवर पर गया, वहाँ आनन्द आया तथा सो गया। लम्बे समय तक बाहर नहीं आया। तब अचिन्त की प्रार्थना पर अक्षर पुरुष को नींद से जगाने के लिए कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने उसी मानसरोवर से कुछ अमृत जल लेकर एक अण्डा बनाया तथा उस अण्डे में एक आत्मा प्रवेश की तथा अण्डे को मानसरोवर के अमृत जल में छोड़ा। अण्डे की गड़गड़ाहट से अक्षर पुरुष की निंद्रा भंग हुई। उसने अण्डे को क्रोध से देखा जिस कारण से अण्डे के दो भाग हो गए। उसमें से ज्योति निंरजन (क्षर पुरुष) निकला जो आगे चलकर ‘काल‘ कहलाया। इसका वास्तविक नाम ‘‘कैल‘‘ है। तब सतपुरुष (कविर्देव) ने आकाशवाणी की कि आप दोनों बाहर आओ तथा अचिंत के द्वीप में रहो। आज्ञा पाकर अक्षर पुरुष तथा क्षर पुरुष (कैल) दोनों अचिंत के द्वीप में रहने लगे (बच्चों की नालायकी उन्हीं को दिखाई कि कहीं फिर प्रभुता की तड़फ न बन जाए, क्योंकि समर्थ बिन कार्य सफल नहीं होता)

फिर पूर्ण धनी कविर्देव ने सर्व रचना स्वयं की। अपनी शब्द शक्ति से एक राजेश्वरी (राष्ट्री) शक्ति उत्पन्न की, जिससे सर्व ब्रह्मण्डों को स्थापित किया। इसी को पराशक्ति परानन्दनी भी कहते हैं। पूर्ण ब्रह्म ने सर्व आत्माओं को अपने ही अन्दर से अपनी वचन शक्ति से अपने मानव शरीर सदृश उत्पन्न किया। प्रत्येक हंस आत्मा का परमात्मा जैसा ही शरीर रचा जिसका तेज 16 (सोलह) सूर्यों जैसा मानव सदृश ही है। परन्तु परमेश्वर के शरीर के एक रोम कूप का प्रकाश करोड़ों सूर्यों से भी ज्यादा है।

बहुत समय उपरान्त क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) ने सोचा कि हम तीनों (अचिन्त - अक्षर पुरुष - क्षर पुरुष) एक द्वीप में रह रहे हैं तथा अन्य एक-एक द्वीप में रह रहे हैं। मैं भी साधना करके अलग द्वीप प्राप्त करूँगा। उसने ऐसा विचार करके एक पैर पर खड़ा होकर सत्तर (70) युग तक तप किया……(See More...)

परब्रह्म के सात संख ब्राह्मण की स्थापना 

कबीर सागर में प्रमाण

कबीर साहेब से ये भी प्रमाण मिलता है कि अपने कार्य में गफलत करने के कारण और क्षर पुरुष को क्रोध से देखने का अपराध करने के कारण अक्षर पुरुष(परब्रह्म) को भी सतलोक से निकल दिया गया।  दूसरा कारण अक्षर पुरुष (परब्रह्म) अपने साथी ब्रह्म (क्षर पुरुष) की विदाई में व्याकुल होकर परमपिता कविर्देव (कबीर परमेश्वर) की याद भूलकर उसी को याद करने लगा। क्षर पुरुष कि याद और अलग राज्य कि चाह के कारण उसे भी सतलोक से निष्कासित करना पड़ा।….....

निष्कर्ष

इस प्रकार, सृष्टि रचना पूर्ण हुई और परब्रह्म के सात संख ब्रह्माण्ड तथा क्षर ब्रह्म (ज्योति-निरंजन, काल) के २१ ब्रह्मांडो की स्थापना हुई और जीवन का प्रारम्भ हुआ। ब्रह्माण्ड और सृष्टि की संरचना की सम्पूर्ण और विस्तृत जानकारी पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब जी ने अपनी पवित्र अमृतवाणी में स्वयं भी बताई है और सर्व धर्म ग्रंथों में इसके प्रमाण हैं जिन्हे जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने खोल कर दिखाया है जिससे सोये हुए मानव समाज को नई दिशा प्राप्त हुई है।

आप स्वयं भी इन प्रमाणों को अपने धार्मिक ग्रंथों जैसे पवित्र वेद, पुराण, पवित्र गीता जी, पवित्र बाइबल, पवित्र श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, पवित्र क़ुरान शरीफ, पवित्र कबीर सागर, सूक्ष्मवेद, भविष्यपुराण आदि से मिला कर जांच सकते हैं।

सम्पूर्ण जानकारी के लिए आप जगतगुरु रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पवित्र आध्यात्मिक पुस्तक - ज्ञान गंगा - बिल्कुल मुफ्त में प्राप्त कर सकते हैं।