कैसे उत्पन्न हुई भक्त धन्ना जाट के खेतों में मतीरे (तुम्बे) से ज्वार?


bhagat-dhanna-jatt-hindi-photo

भक्त धन्ना जी एक विनम्र आत्मा के व्यक्ति थे, जो राजस्थान के जाट समुदाय में एक किसान परिवार में जन्मे थे, जिन्हें बाद में कबीर साहेब जी से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ। भगवान में सदैव लीन रहने वाले धन्ना जी को, अपनी आजीविका के लिए भी भगवान पर अटूट विश्वास था, जिसके कारण उन्हें भगवान के दर्शन करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। ईश्वर में उनकी असीम आस्था थी जो लगभग 400 वर्ष पहले घटी एक सच्ची घटना से स्पष्ट होती है और जिसका विस्तार से इस लेख में वर्णन भी किया गया है, जो यह साबित करता है कि भगवान, परम अक्षर ब्रह्म हमेशा अपने दृढ़ भक्तों के साथ रहते हैं और जो भक्त स्वयं परमात्मा के द्वारा बताई भक्ति आजीवन मर्यादा में रह कर करते हैं परमात्मा उस भक्त की सदा सहायता करते हैं। वे अपने उपासक के जीवन में आने वाली सभी अप्रिय घटनाओं को टाल देते हैं। यहां यह सत्य भी सिद्ध हो जाएगा कि सभी साधकों को उनकी भक्ति का फल केवल कबीर साहेब जी से ही मिलता है जैसा कि पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 15 श्लोक 16, 17 में कहा गया है कि सतपुरुष ही तीनों लोकों में प्रवेश करके सभी का पालन-पोषण करते हैं। 

आइए आगे पढ़ते हैं और यह जानते हैं कि भगवान ने अपने प्रिय भक्त धन्ना जाट पर कैसे कृपा की? यहां भक्त धन्ना के बारे में निम्नलिखित पहलुओं पर चर्चा की जाएगी।

भक्त धन्ना की सच्ची कहानी

  • धन्ना जाट ने भूखे साधुओं को ज्वार का बीज खिलाया।
  • धन्ना बैरागी द्वारा ज्वार के बीज बोने का नाटक करना।
  • भक्त धन्ना के खेत में मतीरे (तुम्बा) उगे।
  • परमेश्वर कबीर जी ने भक्त धन्ना के साथ किया चमत्कार।
  • भक्त धन्ना की पत्नी को परमात्मा ने अपनी शरण में लिया।
  • धन्ना भगत ने राजा वाजिद को सच्ची भक्ति के लिए प्रेरित किया

भक्त धन्ना की सच्ची कथा

धन्ना जाट बहुत ही पुण्यात्मा थे। उनका जन्म आज से लगभग 400 साल पहले राजस्थान में एक गरीब हिंदू जाट किसान परिवार में हुआ था। वह एक अत्यधिक धार्मिक व्यक्ति और वैष्णव भक्त थे जो संतों और विद्वानों को परमेश्वर का अवतार मानकर उनकी सेवा किया करते थे और जब तक कि उन्हें परमात्मा से मिलने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था तब तक वह अज्ञानतावश मूर्तियों की पूजा किया करते थे। वह धन्ना बैरागी के नाम से लोकप्रिय थे। जब भारत में भक्ति आंदोलन अपने चरम पर था तब धर्मनिष्ठ धन्ना जी अपनी आध्यात्मिक ऊंचाइयों पर थे। धन्ना जाट का भगवान में दृढ़ विश्वास था जिसके कारण उनसे संबंधित कई आध्यात्मिक कथाएं भी प्रचलित हैं। धन्ना भक्त का भगवान में अटूट विश्वास और उनकी सच्ची भक्ति ने उन्हें भगवान से गहराई से जुड़ने में सफल बनाया।

आइए आगे बढ़ते हुए दृढ़ भक्त धन्ना के साथ घटी एक सच्ची घटना के बारे में जानें, जहां भगवान ने एक ऐसा चमत्कार किया जिससे उनका भगवान में विश्वास बरकरार रहा और परमेश्वर ने यह भी साबित किया कि सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान परमात्मा अपने सच्चे उपासक के लिए कुछ भी कर सकते हैं। आदरणीय संत गरीबदास जी कहते हैं:

जो जन मेरी शरण है, ताका हूँ मैं दास।

गेल-गेल लाग्या फिरूँ, जब तक धरती आकाश।।

धन्ना जाट ने भूखे साधुओं को खिलाया ज्वार का बीज

यह सच्ची कथा लगभग 400 साल पहले की है। जब राजस्थान में खेती पूरी तरह से बारिश पर निर्भर थी। राजस्थान जैसे स्थान पर वर्षा होना बड़े सौभाग्य की बात मानी जाती थी, क्योंकि उस समय वर्षा पर निर्भर रहने के अतिरिक्त सिंचाई का कोई अन्य साधन नहीं था। गरीबी अपने चरम पर थी। एक बार धन्ना जाट के गांव में बारिश हुई। बारिश होने के बाद सभी ग्रामीण ज्वार का बीज लेकर अपने-अपने खेतों में बोने चले गए। भक्त धन्ना जाट जी भी खेत में ज्वार का बीज बोने चले। रास्ते में उन्हें चार साधु-संत आते हुए मिले। उन्हें आता हुआ देखकर धन्ना जी प्रसन्न हुए तथा अपनी बैलगाड़ी रोकी और उसे एक पेड़ से बांध दिया। उन्होंने ऋषियों को राम-राम कहकर प्रणाम किया। उन्होंने उनसे पूछा आप कैसे हैं? तो उन्होंने उत्तर दिया कि 'भक्त! हम तीर्थयात्रा के लिए जा रहे हैं पर हमारी हालत बहुत खराब है क्योंकि पिछले दो दिनों से हमें खाने के लिए कुछ नहीं मिला, हम बहुत भूखे हैं, हम भूख से मर रहे हैं और लगता है कि हमारी जिंदगी खत्म होने वाली है। 

भक्त धन्ना के पास जो थैला था उसमें ज्वार के बीज थे और वह उन्हें खेतों में बोने के लिए ले जा रहे थे। धन्ना जी ने सोचा कि यदि वह बीज नहीं बोएंगे तो उसके बच्चे भूखे मर जायेंगे और यदि वह इन चारों ऋषियों को भोजन नहीं देंगे तो ये मर जायेंगे। धन्ना की पत्नी गर्म स्वभाव की महिला थी। वह घर में आने वाले किसी अतिथि को खाना नहीं खिलाती थी और धन्ना बैरागी से भी दुर्व्यवहार करती थी। उसने सोचा कि अगर मैं ज्वार बो भी दूँगा और मान लीजिए कि बारिश नहीं होगी तो ये बीज बर्बाद हो जायेंगे। चाहे मेरी पत्नी मेरी भक्ति और दान में बाधक हो लेकिन मैं भगवान को साक्षी मान कर इन साधुओं की जान बचाऊंगा। यह सोचकर भक्त धन्ना ने ऋषियों से कहा, 'ये ज्वार के बीज हैं, आप इन्हें खा लो और अपनी भूख मिटाओ।' भूखे ऋषियों ने ज्वार के सारे बीज खा लिये। उन्होंने धन्ना बैरागी को धन्यवाद दिया और अपनी यात्रा पर चले गये। 

भक्त धन्ना जाट द्वारा ज्वार के बीज बोने का नाटक करना

चूँकि धन्ना जी की पत्नी गुस्सैल स्वभाव की थी, इसलिए धन्ना जी ने सोचा कि अगर वह नाटक नहीं करेगा तो खेत का पड़ोसी उसकी पत्नी से शिकायत करेगा कि तुमने ज्वार के बीज क्यों नहीं बोए? और पत्नी को पता चलेगा तो झगड़ा करेगी। इसलिए कंकर इकट्ठी करके थैले में डाल ली जिसमें ज्वार डाल रखी थी और धन्ना भक्त ने नाटकीय ढंग से ज्वार के स्थान पर कंकर बीज दी। आसपास के लोगों को लग रहा था कि जैसे ज्वार बीज रहा हो। कार्य पूरा करने के बाद धन्ना जी भी सब किसानों के साथ घर आ गए। धन्ना बैरागी का नाटक कोई नहीं समझ सका। लेकिन ईश्वर तो सर्वज्ञ है। वह सब कुछ जानता है। परमेश्वर के विषय में सूक्ष्मवेद में कहा गया है,

"चींटी पायल बाजे पैर, साहिब सुनता है सब लैर।"

भक्त धन्ना के खेत में उगे मतीरे (तुम्बा) 

बाद में बारिश नहीं हुई। हर किसी की ज्वार की फसल दो महीने के बाद बस एक फीट या दो फीट बढ़ी। धन्ना जी के खेत में मोटे-मोटे तुम्बे/मतीरे खूब उगी। पूरा खेत उनसे भर गया। पड़ोस वाले खेत मालिक की पत्नी ने धन्ना की पत्नी से कहा कि 'क्या तुमने खेत में ज्वार नहीं बोई थी?' तुम्हारे खेत में मतीरे की लता बहुतायत में उगी है। भक्त धन्ना जाट की पत्नी ने सोचा कि मैं अपने पति से बाद में निपटूंगी और वह खेत देखने पहुंच गई। उसने देखा, सबके खेतों में ज्वार उग आया है जबकि हमारे खेत में अत्याधिक मात्रा में तुम्बों की बेल उग आई है। राजस्थान में मतीरे (तुम्बे/बालसुम्बे) आदि वर्षा की कमी होने पर भी बिना बुआई के भी अत्याधिक मात्रा में उगते हैं। इसे देख वह क्रोधित हो उठी। उसने एक मतीरा तोड़ा और अपने सिर पर रख लिया क्योंकि वह बहुत बड़े कद्दू की तरह मोटा और भारी था और घर की ओर चल पड़ी। धन्ना जी के पास कुछ भक्त बैठे थे। धन्ना जी ने देखा कि भक्तमति तूम्बा लिए आ रही है। खेत में गई थी। भक्तों से कहा कि आप शीघ्र चले जाओ। वे चले गए। भक्तमति ने आकर तुम्बा भक्त के सिर पर दे मारा और बोली कि बालक तेरे को खाएँगे। बीज कहाँ गया? धन्ना जी कुछ नहीं बोले। अपने सिर का बचाव किया। 

सर्वशक्तिमान कबीर जी ने भक्त धन्ना के लिए किया चमत्कार, मतीरे से निकली ज्वार

भक्त धन्ना जी सुरक्षित थे लेकिन तुम्बा पृथ्वी पर लगते ही दो भाग हो गया। उसके अंदर से 5 किलोग्राम ज्वार (ज्वार) निकला, जो बिल्कुल बीज जैसी स्वच्छ मोटी-मोटी ज्वार निकली। जिसे बोने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। ज्वार को देखकर धन्ना जी की धर्मपत्नी को आश्चर्य हुआ। ज्वार देखकर खुशी हुई। विचार किया कि अन्य तुम्बों में भी ज्वार हो सकती है। भक्त धन्ना को साथ लेकर उस तुम्बे वाली ज्वार को घर में रखकर खेत में पहुँची। चद्दर बिछाकर तूम्बे फोड़ने लगी। घड़ी-घड़ी (पाँच-पाँच किलो) ज्वार एक तूम्बे से निकली। ज्वार का ढेर लग गया। धन्ना जी खुश थे कि परमात्मा की कृपा बरस रही है। अन्य किसानों की फसल बारिश न होने से सूख गई एक दाना भी हाथ नहीं लगा। सारे गांव में यह बात आग की तरह फैल गई कि भक्त धन्ना के खेत में लगे तुम्बे में से ज्वार के बीज निकले हैं। जिसे देखने के लिए गांव वाले धन्ना जी के खेत पहुँचे। उनके बच्चे भी भूखे थे। धन्ना भक्त ने सब गाँव वालों को ज्वार बाँट दी। अपने घर भी शेष ज्वार ले गए।

धर्मग्रंथ बताते हैं कि परमेश्वर कबीर जी ही अपने सच्चे उपासकों की लाज रखते हैं। पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 15 श्लोक 17 इसका प्रमाण देता है कि उत्तम पुरुष यानि पूर्ण परमात्मा ही तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। पूर्ण परमात्मा कविर्देव की सच्ची भक्ति करके साधकों द्वारा पूर्व के मानव जन्मों में अर्जित किये गये पुण्यों से ही भक्तों के साथ चमत्कार होते हैं। दृढ़ भक्त धन्ना को भगवान पर अटूट विश्वास था। इसका उल्लेख आदरणीय संत गरीबदास जी ने "सतग्रंथ साहिब (अमरग्रंथ)" के अध्याय-सुमिरन का अंग की वाणी नं. 110 में किया गया है:

गरीब, धना भगति की धुनि लगी, बीज दिया जिन दान।

सूका खेत हरा हुवा, कांकर बोई जान।।

सरलार्थ:- धन्ना भक्त की परमात्मा में तथा धर्म-कर्म में ऐसी धुन (लगन) लगी कि ज्वार का बीज ही दान कर दिया। देते को हर देत है। इसी कारण से परमात्मा जी ने सूखा खेत हरा कर दिया जिसमें कंकर बोई थी। उस सूखे खेत (क्षेत्र) को तूम्बों की बेलों से हरा-भरा कर दिया। वहीं आदरणीय संत गरीबदास जी ने "सतग्रंथ साहिब (अमरग्रंथ)" के अध्याय-ब्रह्मवेदी में कहा है:

धन्ना भक्त का खेत निपाया, माधो दै सिकलात है।।

 

भावार्थ:- धन्ना जाट को भगवान से इतना प्रेम था कि भगवान की कृपा से बिना बीज बोए ही खेतों में अन्न पैदा हो गया। इस तरह भगवान ने चमत्कार किया और अपने प्रिय भक्त को आशीर्वाद दिया। भगवान अपने दृढ़ भक्तों पर ऐसे ही दया करते हैं। 

भक्त धन्ना की ईमानदारी

भगत धन्ना विनम्र और ईमानदार थे। वह लालची नहीं थे। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि अब खेत से और तुम्बे मत लाना। भगवान की कृपा से हमारा हिस्सा पूरा हो गया है। बाकी ज्वार के बीज अन्य जरूरतमंद ग्रामीणों को बांट देंगे लेकिन उनकी लालची पत्नी ने नहीं सुना और तुम्बे लाती रही। बाद में तुम्बे में ज्वार के बीज नहीं मिले और केवल खाली ही निकलेे। फिर वह रुक गई। तब विनम्र भक्त धन्ना ने साथी किसानों से कहा कि भगवान ने बाकी ज्वार के बीज आप सभी के लिए दिए हैं। फिर उन्होंने सभी गाँव वालों को लगभग 10-10 मन यानी चार-चार क्विंटल ज्वार बाँट दिया और अपने परिवार के जीवन-यापन के लिए पर्याप्त ज्वार भी रख ली, जो उन्हें एक साल तक के लिए पर्याप्त थी। जिससे गाँव वालों के बीच उनकी ईमानदारी की बहुत प्रशंसा हुई। 

भगवान ने भक्त धन्ना की पत्नी को शरण में लिया

इस चमत्कार और परमात्मा की कृपा को आंखों देखकर धन्ना की पत्नी का भी विश्वास परमात्मा में बढ़ गया और इस घटना के बाद वह भी भक्ति करने लगी। अपने पति की तरह ही परमेश्वर, पवित्र पुरुषों और जरूरतमंदों की सेवा करना उसके लिए प्राथमिकता बन गई। तब परमेश्वर की कृपा से पति-पत्नी दोनों का उद्धार हो गया।

धन्ना भगत ने राजा वाजिद को सच्ची भक्ति के लिए प्रेरित किया

एक बार एक मुस्लिम राजा वाजिद अपने विशाल काफिले के साथ अपने महल के पास के शहर में जा रहे थे।  रास्ते में उनके काफिले का एक ऊँट अचानक मर गया और पूरा काफिला रुक गया। बादशाह वाजिद उस समय लगभग 30 वर्ष के थे और उन्हें अहंकार था कि सब कुछ उनके आदेश के अनुसार होता है क्योंकि वे शासक हैं। उस ऊँट की अचानक हुई मृत्यु की बात सुनकर उसे बड़ा सदमा लगा। राजा ने अपने पार्षदों, विद्वानों से पूछा 'क्या वह भी किसी दिन मर जाएगा?'  उनके मंत्रियों ने कहा, 'हां,जी जो भी जन्म लेता है उसे समय पूरा होने पर एक दिन मरना ही पड़ता है।' यह सुनकर राजा वाजिद को बहुत दुख हुआ। वह सोचने लगा कि 'यह जीवन क्या है?  जब मैं एक दिन मर जाऊंगा तो किसी साम्राज्य का राजा होने का क्या फायदा?  यहां सब कुछ रेत पर बना है, सब कुछ नष्ट होने वाला है। यह क्या है?' 
संतों की वाणी है जो इस प्रकार है:

'एके चोट सिधरिया, जिन मिलन दा चाह'

वह अपने काफिले के साथ राजमहल लौट आए तथा राज्य और परिवार का त्याग कर दिया।  पिछले मानव जन्मों में अर्जित संस्कारों के कारण पवित्र आत्मा के मन में ईश्वर को पाने की गहरी इच्छा थी, इसलिए वह जंगल में चले गए और एक गुफा के अंदर तपस्या करने लगे।  धन्ना भगत को वाजिद जी के बारे में पता चला कि वे जंगल में हठ योग कर रहे हैं, इसलिए वे उनसे मिलने गए जहां उन्होंने वाजिद जी को तपस्या छोड़ने के लिए प्रेरित किया क्योंकि भगवान/अल्लाह को शास्त्र विरूद्ध भक्ति से कभी प्राप्त नहीं किया जा सकता है और सुझाव दिया कि अल्लाह को पाने के लिए उन्हें गुरुदेव (कबीर परमेश्वर) की शरण में जाकर सतपुरुष की सच्ची भक्ति करनी चाहिए। राजा वाजिद ने धन्ना जाट द्वारा बताए गए सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान को समझा कि मनुष्य जन्म केवल ईश्वर प्राप्ति के लिए ही प्राप्त होता है। राजा वाजिद यह बात समझ गया और कबीर साहेब जी से नामदीक्षा ली और मोक्ष प्राप्ति का पात्र बन गया।

भक्त धन्ना की सच्ची कहानी से नैतिक सीख

इस सत्य कथा से नैतिक सीख हमें यह मिलती कि जिस तरह धन्ना भक्त को परमात्मा के प्रति और धर्म-कर्म में ऐसी लगन थी कि उन्होंने परमेश्वर को साक्षी मानकर कंकड बोये और परमेश्वर ने उस सूखे खेत को भी हरा-भरा कर दिया तथा मतीरे (तुम्बे) को ज्वार के बीजों से भर दिया। इसी तरह यदि हम परमेश्वर कबीर की सच्ची भक्ति दृढ़ विश्वास के साथ करें तो परमेश्वर सभी लोगों को भक्त धन्ना जैसा लाभ मिल सकता है। सूक्ष्मवेद में कहा गया है:

देते को हर देत हैं, जहां तहां से आन।

अण देवा मांगत फिरैं, साहिब सुनैं ना कान।।

धर्म तो धसकै नहीं, धसकै तीनों लोक।

खैरायत में खैर है, किजै आत्म पोष।।

सच्चिदानंद घन ब्रह्म की हृदयस्पर्शी अमृत वाणी (भजन) भक्त नरसी, धन्ना जाट, राजा मोरध्वज का महिमामंडन करती है जिनके लिए जीवन में केवल सच्ची भक्ति ही प्राथमिकता थी।

सत कबीर द्वारे तेरे पर एक दास भिखारी आया है, भक्ति की भिक्षा दे दीजो उम्मीद कटोरा लाया है||
तज नरसी वाले ठाठ नहीं, मैं धन्ना जैसा जाट नहीं|
मेरी मोरध्वज जैसी सांठ नहीं, जिसने लड़का चीर चढ़ाया  है!!
भक्ति की भिक्षा दे दीजो उम्मीद कटोरा लाया है||

निष्कर्ष

  • भक्त धन्ना जाट की तरह भक्ति में विश्वास और परमेश्वर पर आस्था रखने वाले दृढ़ भक्त आसानी से अपने मानव जन्म के एकमात्र उद्देश्य को प्राप्त कर सकते हैं जो केवल ईश्वर-प्राप्ति है, बशर्ते आप एक ईश्वर में विश्वास करें और एकमात्र सर्वशक्तिमान कबीर जी की भक्ति करें।
  • धर्म अर्थात दान का कभी नाश नहीं होता, चाहे तीनों लोकों का ही नाश क्यों न हो जाये।
  • तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करने वाला उत्तम पुरुष परमात्मा कबीर जी हैं। 
  • ईश्वर के प्रति उनका भाव अद्वितीय आध्यात्मिकता और समर्पण, धार्मिक इतिहास का एक स्पष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है। 
  • परमेश्वर कविर्देव, जिन्होंने धन्ना भक्त को आशीर्वाद दिया था, वह मानव जाति के कल्याण के लिए आज भारत के हरियाणा की पवित्र भूमि पर फिर से अवतरित हुए हैं और अपने दृढ़ भक्तों के लिए दिन-रात चमत्कार कर रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति को उनके आध्यात्मिक उपदेश अवश्य सुनने चाहिए और अपने मूल स्थान सतलोक का स्थाई निवासी बनने के लिए नामदीक्षा भी अवश्य लेनी चाहिए।