हिंदू धर्म में शीर्ष देवता की उत्पत्ति कथा

हिंदू धर्म में शीर्ष देवता की उत्पत्ति कथा

सूक्ष्म वेद में लिखा है कि:

तैंतीस कोटि अधारा, ध्यावें सहस अठासी |

उतरे भवजल पारा, कट है यम की फांसी ||

हिंदू धर्म सबसे पुराना धर्म है जिसे सनातन धर्म के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है शाश्वत धर्म। हिंदू धर्म को मानने वाले मुख्य रूप से ब्रह्मा, विष्णु, महेश/शिव/शंकर, देवी दुर्गा, भगवान गणेश, भगवान राम और सीता, श्री कृष्ण, हनुमान, शनि देव, सूर्य, देवी सरस्वती, धर्मराज (मृत्यु के देवता) और इंद्र इत्यादि देवी देवताओं की पूजा करते हैं। जबकि हिंदू धर्म के अनुसार 33 कोटि (करोड़) देवी-देवता और 88 हज़ार ऋषि हैं जिनकी हिंदू समाज में पूजा की जाती है।

परंतु सबसे बड़ी विडंबना यह है कि कोई भी हिंदू इन तैंतीस कोटि (करोड़) देवताओं और 88 हज़ार ऋषियों के नाम तक नहीं जानता है। लोग धार्मिक रीति-रिवाजों का आंख मूंदकर पालन करते हैं बिना यह जाने कि एकमात्र पूज्य भगवान कौन है जिसने इन सब देवी देवताओं और हमारी भी उत्पत्ति की है? पवित्र शास्त्र इस बात का प्रमाण देते हैं कि 'ईश्वर एक है' और सभी देवता और ऋषि-महर्षि भी उस एक ईश्वर को सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी मानते हुए उसकी पूजा करते हैं, पर वह एक ईश्वर कौन है जिसको वह न तो जानते हैं, न पहचानते हैं और न ही उन्होंने कभी उसका असली स्वरूप देखा।

इस लेख में आगे शास्त्रों के प्रमाण के आधार पर शीर्ष हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा से संबंधित कुछ मिथकों पर प्रकाश डाला गया है तथा साथ ही शास्त्रानुकूल साधना क्या है जो साधकों को मोक्ष प्रदान करती है तथा जिसे भक्त समाज के लिए समझना अतिआवश्यक है।

चारों वेदों में, छः शास्त्रों तथा अठारह पुराणों में पूर्ण परमात्मा के बारे में जानकारी लिखित है फिर भी हिंदू धर्म के श्रद्धालु शास्त्र विरुद्ध भक्ति करते हैं। श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में प्रमाण है कि उपर्युक्त बताए गए सभी देवी-देवताओं की पूजा करना मनमाना आचरण है और इनकी पूजा करने से साधकों को कोई लाभ नहीं मिलता है। सभी पवित्र शास्त्र सिद्ध करते हैं कि केवल एक सर्वशक्तिमान कविर्देव ही पूजनीय हैं।

पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब जी ने 600 वर्ष पूर्व काशी-वाराणसी में अवतरित होकर त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की पूजा के बारे में बताया था;

तीन देव की जो करते भक्ति उनकी कदे न होवे मुक्ति ||

 

गुण तीनों की भक्ति में भूल पड़ो संसार ||

कहे कबीर निज नाम बिना कैसे उतरे पार ||

 

 सूक्ष्मवेद में उल्लेख किया गया है;

 

सुरनर मुनि जन ध्यावे, ब्रह्मा, विष्णु, महेशा ||

शेष सहंस मुख गावें पूजे आदि गणेश ||

 

पवित्र धार्मिक पुस्तकें इस बात का प्रमाण देती हैं कि त्रिगुण देवता- ब्रह्मा, विष्णु, शिव और अन्य देवता, ऋषि, संत, यहां तक ​​कि शेषनाग भी परम अक्षर पुरुष/सतपुरुष/आदि गणेश/आदि राम की पूजा करते हैं, जो शाश्वत है।  बाकी सभी देवी-देवता नाशवान हैं। ये सभी जन्म और मृत्यु के चक्र में आते हैं इसके साथ ही त्रिगुण (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) देवताओं के माता-पिता अर्थात ब्रह्म-काल (सदाशिव) और देवी दुर्गा (माया/अष्टंगी) भी जन्म-मृत्यु के चक्र में हैं। इनकी साधना साधकों को मोक्ष प्रदान नहीं कर सकती बल्कि चौरासी लाख योनियों जैसे पशु,पक्षी, सर्प, भूत, पितृ इत्यादि के रूप में कष्ट भोगने पर मजबूर करती है। इनकी साधना करने से आत्मा को स्वर्ग और नरक की प्राप्ति होती है। जन्म और मृत्यु एक अंतहीन प्रक्रिया है जब तक कि आत्मा तत्वदर्शी संत की शरण में नहीं आती, तब तक जन्म मरण का दीर्घ रोग समाप्त नहीं होता। जिससे साबित होता है कि हिंदू देवी देवताओं की पूजा करना व्यर्थ की साधना है क्योंकि यह एक मनमाना आचरण है और यह 84 लाख योनियों के कष्ट से राहत भी नहीं दे सकती। हिंदू देवी-देवताओं के बारे में विस्तार से.

भगवान ब्रह्मा और उनके परिवार (वंशावली) का पुराणों में प्रामाणिक इतिहास

रजोगुण भगवान ब्रह्मा अपने पिता ब्रह्म-काल के 21 ब्रह्मांडों में केवल एक ब्रह्मांड में बने तीन लोक (स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक और पाताल लोक) के प्रभु हैं। भक्त समाज द्वारा ब्रह्मा को सर्वोच्च भगवान तथा सम्पूर्ण जगत का निर्माता मानना उनकी सबसे बड़ी भूल है। इसके साथ ही यह कोई नहीं जानता की भगवान ब्रह्मा की उत्पत्ति कैसे हुई तथा इनके माता-पिता और दादा अर्थात उस सर्वोच्च परमात्मा का नाम क्या है? भक्त समाज का यह भी मानना ​​है कि पवित्र ग्रंथ यानी पवित्र चारों वेद भगवान ब्रह्मा को समर्पित हैं जबकि वेद पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी द्वारा काल ब्रह्म को प्रदान किए गए थे। भगवान ब्रह्मा रजोगुण युक्त हैं परंतु स्वयंभू नहीं हैं। उनका जन्म होता है। माता दुर्गा से ब्रह्मा जी को श्राप मिला हुआ है कि पूरे जगत में उनकी पूजा नहीं होगी जो यह दर्शाता है कि ब्रह्मा जी परमात्मा नहीं हो सकते। (इस लेख में भगवान ब्रह्मा के बारे में ऐसे सभी मिथकों और तथ्यों का वर्णन किया गया है।)

शास्त्रों के आधार पर जानिए की क्या विद्या की देवी सरस्वती सचमुच ज्ञान की देवी हैं?

हिंदू धर्म में भगवान ब्रह्मा तथा देवी सावित्री की बेटी देवी सरस्वती को ज्ञान की देवी माना जाता है तथा प्रत्येक वर्ष बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। परंतु भक्त समाज इस बात से अनजान है कि माता सरस्वती से सम्बन्धित दो तीर्थों, पुरूरवा तीर्थ तथा सरस्वती संगम तीर्थ की स्थापना कैसे हुई? इसके साथ ही भक्त समाज इस बात से भी अनभिज्ञ है ही की वेद यह गवाही देते हैं की ज्ञान, सद्बुद्धि और सर्व प्रकार के सुखों के प्रदाता केवल और केवल पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी हैं ना कि देवी सरस्वती। (यह लेख देवी सरस्वती के बारे में उन सभी तथ्यों का वर्णन करेगा जिससे भक्त समाज अब तक अनजान था।)

हनुमान जी को सर्वोच्च परमात्मा कबीर देव जी द्वारा सच्चा मोक्ष मार्ग कैसे मिला?

हनुमान जी भगवान शिव के 11वें रुद्र अवतार थे। भक्त समाज भगवान हनुमान को संकटमोचन मान कर विभिन तरीकों से पूजा करते हैं जबकि यह शास्त्र विरुद्ध साधना है जो कोई लाभ नहीं दे सकती। पवित्र कबीर सागर, पृष्ठ 113, बारहवां अध्याय “हनुमान बोध” यह स्पष्ट करता है कि परमात्मा कबीर जी हनुमान जी के गुरु थे। सर्वशक्तिमान कविर्देव जी ने हनुमान जी को सच्चा ज्ञान प्रदान किया जिसके बाद हनुमान जी मोक्ष प्राप्त करने योग्य बन सके। इस तरह, परम देव कबीर जी ने एक पवित्र आत्मा, हनुमान जी को अपनी शरण में लिया। परोपकारी हनुमान जी को निःस्वार्थ भाव से प्रभु की सेवा करने का फल प्राप्त हुआ। (भगवान हनुमान जी के बारे में सभी महत्त्वपूर्ण जानकारी के लिए यह लेख देखें।)

भगवान गणेश की जन्म कथा, परिवार, सत्य मंत्र तथा आदि गणेश का विवरण

भगवान गणेश, भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं। हिंदू धर्म में भगवान गणेश को गणेश चतुर्थी जैसे त्यौहार मना कर प्रसन्न किया जाता है जो एकदम व्यर्थ साधना है तथा किसी भी धर्म शास्त्र में इससे जुड़ा कोई उल्लेख नहीं मिलता है। भक्त समाज गणेश जी को ही आदि गणेश मान कर विभिन्न मंत्रों का भी जाप करते हैं। जबकि गणेश जी का अलग लोक, अपने पिता शिव जी के लोक में ही है जोकि शिव जी के गणों के प्रधान देवता हैं तथा आदि गणेश अनंत लोक के स्वामी है। वैसे तो गणेश जी की उत्त्पति को लेकर अनेकों दंत कथाएं प्रचलित हैं लेकिन शिव जी के हाथों मारे जाने और हाथी का सिर लगाए जाने का प्रकरण यह सिद्ध करता है कि गणेश जी समर्थ परमात्मा नहीं हैं। वह जन्म और पुनर्जन्म के चक्र में है।  वह मोक्ष प्रदान नहीं कर सकते इसके साथ ही भगवान गणेश 'विघ्नहर्ता' (बाधाओं का निवारण) करने वाले भगवान भी नही हैं। (भगवान गणेश जी आदि गणेश नहीं हैं यह जानने के लिए यह लेख देखें।)

श्रीमद्देवी भागवत (दुर्गा) पुराण के बारे में पूरी जानकारी

देवी दुर्गा की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म/परम अक्षर पुरुष 'कविर्देव' द्वारा की गई जो संपूर्ण ब्रह्मांडों के निर्माता हैं और शाश्वत स्थान 'सतलोक' में निवास करते हैं। देवी दुर्गा जी सिंदूर लगाती हैं; जिससे सिद्ध होता है की उनका पति तो अवश्य है पर भक्त समाज को शास्त्रों की सही जानकारी न होने के कारण वे इस बात से पूर्णतया अनजान हैं। देवी दुर्गा जी के भक्त माता दुर्गा को जगत जननी मान कर पूजा करते हैं जबकि माता दुर्गा स्वयं देवी भागवत पुराण में किसी अन्य प्रभु की भक्ति करने के लिए कह रही हैं। देवी भागवत पुराण से यह भी सिद्ध होता है कि सदाशिव अर्थात काल-रूपी ब्रह्म और प्रकृति (दुर्गा) के मिलन (पति-पत्नी व्यवहार) से रजोगुण श्री ब्रह्मा जी, सतोगुण श्री विष्णु जी तथा तमोगुण श्री शिव जी की उत्पत्ति हुई। देवी दुर्गा, देवी सावित्री, देवी लक्ष्मी और देवी पार्वती की सास भी हैं। (देवी दुर्गा की उत्पत्ति कैसे हुई यह जानने के लिए पूरा लेख पढ़ें।)

श्री विष्णु पुराण का संक्षिप्त सारांश

विष्णु पुराण का ज्ञान पारासर ऋषि के द्वारा सुनाया गया है। यही ज्ञान दक्षादि ऋषियों से पुरुकुत्स ने सुना, पुरुकुत्स से सारस्वत ने सुना तथा सारस्वत से श्री पारासर ऋषि ने सुना अर्थात यह सुना सुनाया ज्ञान है इसलिए विष्णु पुराण के अर्थ को समझने के लिए अन्य शास्त्रों की जरूरत है जिसका ज्ञान ब्रह्मा जी तथा पूर्ण परमात्मा द्वारा दिया गया है जिसके आधार पर ही भक्त समाज सतज्ञान तथा पूर्ण परमात्मा से परिचित हो सकते हैं। विष्णु पुराण प्रथम अंश, अध्याय 2 श्लोक 28-30
में स्पष्ट लिखा है कि प्रकृति (दुर्गा) तथा पुरुष (काल-प्रभु) से अन्य कोई और परमेश्वर है जो इन दोनों को पुनः सृष्टि
रचना के लिए प्रेरित करता है जिससे सिद्ध है कि इस 21 ब्रह्मांडो का स्वामी भी समर्थ नहीं है। इसके साथ ही भगवान विष्णु की पूजा करना भी व्यर्थ साधना है क्योंकि वह केवल एक विभाग के स्वामी हैं तथा उनकी शक्तियाँ सीमित हैं। सतोगुण विष्णु भगवान भी जन्म और मृत्यु के चक्र में है। भगवान विष्णु अब तक नौ अवतार ले चुके हैं और हर बार उनकी मृत्यु हुई है। जिससे यह सिद्ध है कि वह मुक्ति प्रदान नहीं कर सकते। ( विष्णु भगवान केवल एक विभाग के स्वामी क्यों हैं यह जानने के लिए पूरा लेख अवश्य पढ़ें।)

भगवान राम और सीता जी: जन्म से मृत्यु तक की पूरी कहानी

भगवान विष्णु के अवतार भगवान राम की हिंदू धर्म में पूजा की जाती है और उन्हें "मर्यादा पुरुषोत्तम" भी कहा जाता है। उन्हें गुणों के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है। पवित्र 'रामचरितमानस' के तथ्य बताते हैं कि भगवान राम ने सुग्रीव के भाई राजा बाली के साथ विश्वासघात किया था।  लंका के राजा यानी रावण के साथ युद्ध जीतने के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने कई लोगों के सामने सीता माता की पवित्रता की जांच करने के लिए उनकी अग्नि परीक्षा ली थी। जिसमें वे सकुशल बाहर निकलीं और इस प्रकार उनके निर्दोष होने का प्रमाण मिला। लेकिन सीता की पवित्रता के संबंध में अयोध्या में एक धोबी द्वारा की गई टिप्पणी को  भगवान राम सहन न कर सके और उन्होंने सीता जी को अपने जीवन से और अयोध्या से निष्कासित कर दिया जबकि वह गर्भवती थीं। तथाकथित 'मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम' का यह चरित्र अत्यंत शर्मनाक था। (मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन को बारीकी से जानने के लिए लेख पूरा पढ़ें और स्वयं निर्णय करें कि क्या वास्तव में राम पूजनीय भगवान हैं?)

शिव पुराण या शिव महापुराण की पूर्ण जानकारी

शिव पुराण यह सिद्ध करता है कि सदाशिव अर्थात काल और माया अर्थात देवी दुर्गा ही ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश के माता पिता हैं। भगवान शिव/शंकर तमोगुण युक्त हैं और ब्रह्म काल के 21 ब्रह्मांडों में संहारक की भूमिका निभाते हैं और वह अमर नहीं है। इसके साथ ही शिव पुराण में केवल एक ॐ मंत्र का जाप बताया गया है जिससे यह सिद्ध होता है की भक्त समाज द्वारा भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए की जा रही अन्य साधनाएं शिव पुराण के अनुकूल नहीं हैं।  भगवान शिव के माता पिता कौन हैं इसकी जानकारी भी शिव पुराण अध्याय 6 रुद्र संहिता में विस्तार  से बताई गई है। इसके साथ ही पंचाक्षरी मंत्र क्या है यह भी विस्तार से बताया गया है। भगवान सदाशिव (काल) और उनके तमोगुण युक्त पुत्र भगवान शिव दोनों अलग-अलग हैं। (उनके बारे में विस्तार से जानने के लिए लेख पढ़ें।)

शनि देव की पूजा करना शास्त्र अनूकुल नहीं है

शास्त्रों में कहीं भी शनि देवता की पूजा करने का प्रमाण नहीं मिलता है जिससे यह सिद्ध होता है कि शनिवार को शनि देवता को तेल चढ़ाना जैसी क्रियाएं करना मनमानी तथा व्यर्थ साधना है तथा काल ब्रह्म ने शनिदेव कि मनमानी पूजा करने के लिए भक्तों को गुमराह कर रखा है। भगवान काल ने सर्वशक्तिमान कबीर साहेब से कहा था कि, "कलयुग में वह भोली आत्माओं को देवताओं, भूतों की पूजा करने, उपवास करने, तपस्या करने और तीर्थों व मंदिरों के दर्शन करने के लिए गुमराह करेगा।" शनिदेव स्वयं जन्म मरण के चक्र में हैं तथा उनकी पूजा करना व्यर्थ है और साधकों को मोक्ष प्रदान नहीं कर सकती। (शनिवार को तेल चढ़ाना, शनिदेव से डर कर उनकी पूजा करना गलत साधना है जानने के लिए पूरा लेख पढ़ें।)

 कागभुशुण्डि की कथा

पांचवे वेद अर्थात सूक्ष्म वेद में कागभुशुण्डि जिनका मुख तो कौवे जैसा चोंच वाला है और शेष शरीर देवताओं वाला अर्थात् मनुष्य सदृश्य है कि सत्य कथा का वर्णन किया गया है जो यह सिद्ध करता है कि गुरु के अपमान से तीनों देवता भी नाराज हो जाते हैं तथा केवल सतगुरु ही मनुष्य जीवन के एकमात्र लक्ष्य, मोक्ष प्राप्ति को पूरा करने में सहायक होते हैं। कागभुशुण्डि की कथा यह भी सिद्ध करती है कि गुरु का पद तीनों देवताओं अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और शिव से भी ऊपर है। (कौन हैं कागभुशुण्डि जानने के लिए लेख पढ़ें।)

भगवान इंद्र देव की जीवनी तथा दुर्वासा और गौतम ऋषि की श्राप कथा

सूक्ष्मवेद में उल्लेख किया गया है कि

 

इन्द्र कुबेर सरीखा, वरुण धर्मराय ध्यावें||

सुमरथ जीवन जिका, मन इच्छा फल पावें ||

 

सभी देवता जैसे स्वर्ग के राजा देवराज इंद्र, धन के देवता कुबेर, जल के देवता वरुण देव और हर जीव का हिसाब रखने वाले भगवान यानी ब्रह्म काल के 21 ब्रह्मांडों में मुख्य न्यायाधीश धर्मराज हैं। सभी उस एक ईश्वर अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म कविर्देव की पूजा करते हैं जो संपूर्ण ब्रह्मांडों के निर्माता और मोक्ष प्रदान करने वाले हैं।

इंद्र देव स्वर्ग के राजा हैं जो अप्सराओं (दिव्य युवतियों) से घिरे स्वर्ग में अपने शानदार जीवन के लिए जाने जाते हैं। वह अपनी मदिरा पीने की आदत के लिए भी प्रसिद्ध हैं। कई बार वह राक्षसों के साथ युद्ध में हार जाते हैं  जो साबित करता है कि वह एक सक्ष्म राजा नहीं हैं तथा अपने सिंहासन की रक्षा नहीं कर सकते। अश्लीलता में लिप्त होने के कारण उन्हें ऋषियों, महान संतों द्वारा शापित होने के रूप में भी चित्रित किया गया है। इंद्र द्वारा अहिल्या को ठगे जाने और ऋषि गौतम द्वारा उन्हें श्राप दिए जाने की सच्ची कथा उपरोक्त तथ्यों को पूर्णतः साबित करती है। 

अयोग्य देवराज इन्द्र अपनी पत्नी को साधु-संतों के पास अपनी राजगद्दी खो जाने के भय से उनकी तपस्या भंग करने के लिए भेजता है। भगवान इंद्र के निम्न चरित्र स्तर को प्रदर्शित करता है। इंद्र देव के बारे में यह सब पवित्र शास्त्रों के साक्ष्य के आधार पर लेख में लिखा गया है जो पाठकों, साधकों को सौ बार सोचने पर मजबूर कर देगा कि क्या वाकई में भगवान इंद्र एक पूजनीय देवता हैं? क्या इसे जानने के बाद भी स्वर्ग प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा करनी चाहिए? स्वर्ग एक शाश्वत स्थान नहीं है? या अमर धाम प्राप्त करने के लिए शास्त्र अनुकूल साधना करनी चाहिए? (पढ़ें देवता इंद्र का पूरी जीवनी प्रमाण सहित लेख में।)

हिंदू भगवान धर्मराज तथा चित्रगुप्त कि वास्तविक कहानी

धर्मराज (यम) काल ब्रह्म के एक ब्रह्मांड में मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्त हैं तथा चित्र गुप्त उनके दो दूत हैं, जो सभी प्राणियों के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। धर्मराज के दरबार में आत्माओं को अनेक प्रकार की यातनाएं दी जाती हैं। कबीर परमेश्वर अपनी अमृतवाणी में बताते हैं कि बिना सतभक्ति के जीव को काल के इस लोक में बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं और मृत्यु के बाद धर्मराज (यम)/यमराज के दूत अर्थात यमदूत उसे अपने साथ ले जाते हैं और आत्माओं को विभिन्न प्रकार की यातनाएं देते हैं। (भगवान धर्मराज पूजनीय भगवान नहीं हैं। जानने के लिए पूरा लेख पढ़ें।)

सूर्य देव हिंदू धर्म के भगवान या केवल आग का गोला हैं

हिंदू भक्त समाज सूर्य देव को अग्नि का देवता मान कर उनकी पूजा करता है तथा सूर्य देव को समर्पित अश्व तीर्थ और भानु तीर्थ दर्शनार्थ जाते हैं परंतु अफसोस की बात भक्त समाज सत ज्ञान ना होने की वजह से इन स्थानों की सच्चाई से अवगत नहीं है तथा यह भी नहीं जानते की सूर्य की पूजा करने से कोई लाभ नहीं मिल सकता क्योंकि किसी भी धर्म ग्रंथ में इसका जिक्र नहीं मिलता है।

सभी देवी-देवता नाशवान हैं तथा जीवों को मोक्ष प्रदान नहीं कर सकते। प्रमुख हिंदू देवी-देवताओं के बारे में उनसे संबंधित लेखों में इसी तरह के उपरोक्त तथ्यों और इससे भी अधिक महत्वपूर्ण अन्य तथ्यों का भी विस्तार से उल्लेख किया गया है। 

आइए इन सभी लेखों के माध्यम से निम्नलिखित तथ्यों को समझने की कोशिश करें:-

●   हिंदू देवी-देवता कौन हैं?

●   मनमानी पूजा क्यों छोड़नी चाहिए?

●   हिंदू देवी-देवताओं से लाभ पाने के लिए पूजा का सही तरीका क्या है?

●   हिंदू देवी-देवताओं के असली मंत्र क्या हैं?

●   हिंदू देवी-देवताओं के सच्चे मंत्रों का प्रमाण कहां लिखा है?

●   क्या हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करने से मोक्ष संभव है?

●   पूज्य देव कौन है?

सतगुरु रामपाल जी महाराज जी ने पवित्र शास्त्रों से आध्यात्मिक तथ्यों को सुलझा कर भक्त समाज के लिए सत भक्ति की राह को आसान कर दिया है।

नौ मन सूत उलझिया, ये ऋषि रहे झक मार ||

सतगुरु ऐसा सुलझा दे, उल्झे ना दूजी बार ||

 


हिंदू देवी-देवताओं के बारे में विस्तार से पढ़ें

Lord Brahma

श्री ब्रह्मा जी

Hanuman

हनुमान जी

Lord Ganesha

श्री गणेश जी

Goddess Durga

माता दुर्गा

Lord Vishnu

श्री विष्णु जी

Lord Shiv

श्री शिव जी

Shani Dev

शनि देव

कागभुशुण्डि

कागभुशुण्डि

Lord Vishnu

धर्मराज

Surya Dev

सूर्य देव

भगवान इंद्र देव की जीवनी तथा दुर्वासा और गौतम ऋषि की श्राप कथा

भगवान इंद्र देव

भगवान राम और सीता जी: जन्म से मृत्यु तक की पूरी कहानी

भगवान राम और सीता जी

शास्त्रों के आधार पर जानिए की क्या विद्या की देवी सरस्वती सचमुच ज्ञान की देवी हैं?

देवी सरस्वती