परमेश्वर कबीर ने अर्जुन और सर्जुन का उद्धार कैसे किया?


arjun-sarjun-story-hindi-photo

शैतान ब्रह्म यानी काल के मृतलोक में रहने वाले सभी प्राणी चाहे वे किसी भी धर्म के हों सभी सतपुरुष कबीर साहेब की संतान हैं। परमेश्वर उन्हें मोक्ष देने के लिए धरती पर चारों युगों आते हैं। इसी सिलसिले में कबीर परमेश्वर दो मुस्लिम भाइयों से मिले जिनका नाम उन्होंने बदलकर अर्जुन-सर्जुन रख दिया था। परमेश्वर कबीर देव जी ने 225 वर्ष की आयु में उन दोनों का उद्धार किया। आइये निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर इन महान भक्तों के बारे में विस्तार से जानते हैं

  • कबीर परमेश्वर की अद्भुत लीला
  • अर्जुन-सर्जुन को अपनी गलती का पछतावा होना
  • अर्जुन-सर्जुन को मिली संत गरीबदास की शरण 

कबीर परमेश्वर की अद्भुत लीला

625 वर्ष पहले जब कबीर परमेश्वर पृथ्वी पर काशी में उपस्थित थे, तब उनके 64 लाख शिष्य हो गए थे। परंतु ज्ञान न होने के कारण वह दृढ़ नहीं हो सके क्योंकि वे केवल यह मानते थे कि कबीर परमेश्वर के पास कुछ अलौकिक शक्तियां हैं इसीलिए उनके आशीर्वाद से उनकी समस्याएं हल हो जाती हैं। उनमें से किसी ने भी यह विश्वास नहीं किया था कि कबीर भगवान हैं हालांकि कबीर परमेश्वर ने उनको सभी पवित्र ग्रंथों से अपने भगवान होने के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध कराए थे।

लेकिन चूंकि सभी लोग अशिक्षित थे इसलिए वे स्वयं प्रमाण नहीं देख सके और समकालीन साधु-संतों, मंडलेश्वरों, गुरुओं, ब्राह्मणों, मुल्लाओ और काज़ियो द्वारा प्रदान किए गए नकली आध्यात्मिक ज्ञान से प्रभावित हो गए।

इसलिए सभी 64 लाख शिष्यों के भक्ति भाव की परीक्षा के लिए कबीर साहेब ने एक लीला की। वे अपने शिष्यों में से एक जो कि काशी की एक प्रसिद्ध वेश्या थी, के साथ काशी शहर में हाथी पर बैठकर घूमे और एक बोतल हाथ में ले ली जिसमें से वे गंगा जल पीते रहे , ऐसा लग रहा था जैसे कि वह शराब हो। जब लोगों ने कबीर जी को देखा तो वे सभी उन दोनों के बारे में बुरा कहने लगे और इस तरह वे गुरु पर विश्वास की कमी के कारण भक्ति मर्यादा की परीक्षा में असफ़ल रहे। अर्जुन-सर्जुन नाम के उनके दो शिष्यों को भी ये परीक्षा देनी पड़ी। तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी आइए जानते हैं

अर्जुन-सर्जुन को अपनी गलती पर पछतावा

सन्दर्भ: अमर ग्रंथ साहेब अध्याय 'सरबंगी साक्षी का अंग' में पूज्य संत गरीबदास जी महाराज की अमृत वाणी नं. 112-115

गरीब, सर्जुन कुण सतगुरु मिले, मक्के मदीने माही ||

चौंसठ लाख का मेल था, दो बिन सभी जाहिं ||

गरीब, चिंदालिके चौक में, सतगुरु बैठे जाई ||

चौंसठ लाख गरत गयो, दोउ रहिये सतगुरु पाय ||

गरीब, सुरजन अरजन थाहरे, सतगुरु की प्रतीति ||

सतगुरु इहां न बैठिए, यह द्वार है नीच||

गरीब, ऊँच नीच में हम रहे, हाड चाम की देह||

सुरजन अर्जन समझियो राखियो शब्द सनेह ||

अर्जुन-सर्जुन दो मुस्लिम भाई थे जो मुस्लिम परंपरा के अनुसार मक्का मदीना की मस्जिद में नमाज पढ़ने गए थे। दोनों को कबीर परमेश्वर जिंदा बाबा के रूप में मिले। उन्होंने उन्हें सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का उपदेश दिया और भक्ति का सच्चा मार्ग बताया। दोनों भाई भगवान कबीर के शिष्य बन गए और उनमें अटूट विश्वास हो गया कि कबीर ही अल्लाह/भगवान हैं। उन्होंने विवाह भी नहीं किया था क्योंकि उनका एकमात्र उद्देश्य मानव जीवन में मुक्ति प्राप्त करना था।

वे सतगुरुदेव कबीर साहेब के आदेशानुसार मक्का-मदीना और मुस्लिम धर्म के अन्य धार्मिक आयोजनों में जाते थे और भूले हुए लोगों को सही भक्ति मार्ग बताते थे और उन्हें भगवान कबीर साहेब से दीक्षा दिलाते थे।

जब वे मक्का मदीना से लौटे तो उन्होंने लोगों को अपने गुरुदेव और काशी की प्रसिद्ध वेश्या, जो उनकी शिष्या भी थी, के साथ उनके संबंध के बारे में निंदा करते सुना। ये उनकी वही शिष्या थी जिसके साथ परमेश्वर ने हाथी पर बैठकर एक शराबी का अभिनय किया था और काशी के बाज़ार में घूमे थे। उन्होंने अफवाहों पर विश्वास नहीं किया और अपने गुरु भाइयों और बहनों से कहा, 'आप हमारे गुरुदेव के बारे में क्या बकवास कर रहे हैं? ऐसा बुरा बोलने पर आपकी जीभ जल जाएगी। फिर आपने अपने गुरुदेव के बारे में क्या समझा?'' लोगों ने कहा, 'हम सच बोल रहे हैं। जाओ और खुद ही देख लो।

वास्तव में भगवान इस लीला के माध्यम से उनके अपने गुरु में विश्वास की परीक्षा ले रहे थे। उन दोनों भाइयों को छोड़कर सभी 64 लाख शिष्य परीक्षा में फेल हो चुके थे। भगवान यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि अर्जुन-सर्जुन काल के जाल से छूटने के योग्य हैं या नहीं।

तब दोनों भाई अपने गुरुदेव कबीर साहेब से मिलने गये। वे उस वेश्या के घर गए, जहां अर्जुन-सर्जुन ने देखा कि कबीर साहेब एक खाट पर बैठे हैं और उनके पैर उस वेश्या की जांघों पर रखे हुए हैं जो जमीन पर बैठकर श्रद्धा से उनके चरणों की सेवा कर रही थी। अर्जुन-सर्जुन कबीर साहब को उपदेश देने लगे सतगुरु यहाँ  और बोले 'हे गुरुदेव! आपको यहां नहीं बैठना चाहिए। यह एक नीच, बदनाम औरत का घर है।’

 भगवान कबीर ने कहा 'अर्जुन-सर्जुन, मैं सर्वव्यापी हूं। चाहे ऊँचे (अच्छे स्थान पर) हो या नीचे, सर्वत्र निवास करता हूँ। इस लड़की का शरीर हड्डियों और मांस से बना हुआ है। मेरे लिए यह मिट्टी है। मुझे आप दोनों में और इस लड़की में कोई अंतर नहीं लगता। मैं  उस आत्मा को देखता हूँ जो सब में एक समान है। हे अर्जुन-सर्जुन, समझो जो मंत्र आपको दिए गए हैं उनका जाप करों। पहले आप मुझे परमेश्वर कहते थे, आज मुझे उपदेश दे रहे हैं। आप मेरे गुरु बन गए हैं। मोक्ष की प्राप्ति शिष्य बनने से होती है। तुम्हारे मन में मेरे लिये दोष आ गया है। अब तुम्हारा कल्याण असम्भव है। यहाँ से चले जाओ।’

अर्जुन-सर्जुन ने अल्लाह को पाने के लिए बचपन में ही घर त्याग दिया था। कबीर परमेश्वर की बात सुनकर उन्हें ऐसा लगा जैसे उनके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई हो। उन्हें तुरंत एहसास हुआ कि उनसे बहुत बड़ी गलती हो गई है। दोनों तुरंत कबीर साहेब के चरणों में गिर कर माफ़ी मांगने लगे और उन पर दया करके इसी जन्म में मोक्ष प्रदान करने की विनती करने लगे। वे अच्छी तरह जानते थे कि कबीर साहेब पूर्ण परमेश्वर है और उनकी शरण उन्हें बड़ी क़िस्मत से मिली हैं। यदि वे मोक्ष प्राप्ति का यह अवसर खो देंगे तो उन्हें पछताना पड़ेगा। पता नहीं उन्हें अगला मनुष्य जन्म कब मिलेगा और भगवान उन्हें कब अपनी शरण में लेकर मोक्ष प्रदान करेंगे?

अर्जुन-सर्जुन ने संत गरीबदास जी की शरण ली

अर्जुन-सर्जुन की प्रार्थना सुनकर कबीर परमेश्वर ने कहा 'अब मेरे इस रूप में तुम्हारा कल्याण नहीं होगा। तुम्हारे मन में दोष उत्पन्न हो गया है। अब कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या कहते हैं।’

कहते हैं:

ये धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाये |

टूटे से मिले नहीं और मिले तो गांठ पड़ जाये ||

गुरु और शिष्य का रिश्ता अद्भुत होता है। यदि इसमें कोई दोष आ गया तो वह आसानी से ठीक नहीं होगा। सतगुरु को भगवान के समान सम्मान देना चाहिए और भगवान में कभी कोई दोष नहीं हो सकता।

दोनों ने कबीर साहेब के पैर नहीं छोड़े और रोते हुए अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगते रहे। उन्होंने पूछा, 'गुरुदेव, हमारा कल्याण कब होगा?' भगवान कबीर दयालु और सुख के सागर हैं। उन्होंने दोनों को आशीर्वाद दिया और कहा, 'तुम्हारे सतगुरु, मेरे शिष्य का जन्म संवत 1774 में दिल्ली से 30 मील दूर पश्चिम की ओर एक छोटे से गाँव में होगा। तब तक तुम इसी शरीर में जीवित रहोगे। मैं आपके सपनों में आपका मार्गदर्शन करता रहूंगा। मैं उस भक्त से मिलूँगा और उसे लोगों को दीक्षा देने का अधिकार दूँगा। तुम उनसे दीक्षा लेकर सच्ची भक्ति करना।’ उस समय कबीर परमेश्वर ने उन्हें गरीबदास जी का नाम नहीं बताया था।

जब संत गरीबदास जी 10 वर्ष के थे उसी समय उन्हें परमेश्वर कबीर जी मिले। कबीर परमेश्वर  उस पवित्र आत्मा को शाश्वत लोक सतलोक ले गए और फिर शाम को सशरीर उन्हे वापस छोड़ दिया। तब भगवान कबीर अर्जुन-सर्जुन के स्वप्न में आये और संत गरीबदास जी के बारे में बताया। उन्हें उनके गाँव, माता-पिता आदि के बारे में पूरी जानकारी दी।

उस समय अर्जुन-सर्जुन एक किसान परिवार के साथ हरियाणा राज्य के जिला सोनीपत के खरखौदा में हुमायूंपुर नामक गांव में रहते थे। तब तक उनकी उम्र 225 वर्ष हो चुकी थी। दोनों ने एक ही सपना देखा और सुबह जागने पर एक-दूसरे को भगवान के दर्शन के बारे में बताया। उन्होंने उस किसान से पूछा जो उनकी सेवा करता था कि 'क्या यहां कोई छुड़ानी गांव है?' किसान ने कहा, 'हां, छुड़ानी नाम का एक गांव है।'

अर्जुन-सर्जुन ने उनसे उन दोनों को छुड़ानी ले जाने का अनुरोध किया। किसान ने दोनों को बैलगाड़ी में बिठाया। वहां उनकी मुलाकात पूज्य संत गरीबदास जी से हुई जिन्होंने दोनों को मंत्र दीक्षा प्रदान की। वे कुछ समय तक उनके साथ रहे। संत गरीबदास जी महाराज की शरण में आकर सतभक्ति की और परमेश्वर कबीर की कृपा से मोक्ष प्राप्त किया। उनके शवों को यादगार रूप में उनकी समाधि बनाकर दफना दिया गया और एक छोटा सा स्मारक बनाया गया।

निष्कर्ष

वर्तमान में पूर्ण परमेश्वर पुनः हरियाणा राज्य की पवित्र भूमि पर महान तत्वदर्शी संत “संत रामपाल जी महाराज” के रूप में विद्यमान हैं जो पूरे विश्व के कल्याण के लिए आये हैं। वह सच्ची भक्ति प्रदान कर रहे हैं जिससे सभी मनुष्यों को मुक्ति मिलेगी। इस बार किसी को भी यह सुनहरा मौका नहीं चूकना चाहिए और उसी शाश्वत धाम में जाना चाहिए जहां महान भक्त अर्जुन-सर्जुन गए हैं और खुशी से निवास कर रहे हैं।