संत मलूकदास जी की वास्तविक कथा : मलूक राम चौधरी कैसे बने संत?


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सबसे प्राचीन सद्ग्रन्थ पवित्र चारों वेद व इन्हीं के संक्षिप्त रूप पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार, उत्तम पुरुष अर्थात कबीर परमेश्वर ही तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका पालन-पोषण करता है। इसके लिए वह परमात्मा तीन प्रकार के शरीर धारण करता है। एक वह अपने अमर निवास सतलोक में रहता है जहाँ वह एक राजा की तरह राज सिंहासन पर बैठा होता है और वहीं से सब कुछ नियंत्रित करता है। दूसरा वह एक शिशु रूप प्रकट होने की लीला प्रत्येक युग में करता है और बचपन से ही सत्य आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार कबीर वाणी अर्थात दोहों, कविताओं, लोकोक्तियों, मुहावरो द्वारा करता फिरता है। तीसरी अवस्था है सतपुरुष/शब्द स्वरूपी राम कविर्देव साधु/संत/ऋषि का रूप धारण करके कहीं भी कभी भी प्रकट हो जाते हैं और अपने दृढ़ भक्तों से मिलते हैं और अपनी प्रिय आत्माओं को मुक्त करने के लिए सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का उपदेश देते हैं।

इस लेख में, हम एक महान भक्त आदरणीय संत मलूक दास की सच्ची कथा के विषय में जानेंगे, जिन्हें परम अक्षर ब्रह्म तीसरी अवस्था में मिले और उन्होंने उस भक्त आत्मा को अपनी शरण में लिया और कसाई ब्रह्म काल के चंगुल से मुक्त कराया। आप इस लेख में पढ़ेंगे:

  • मलूक दास जी का जीवन परिचय
  • मलूक दास जी ने कबीर परमेश्वर को ठग क्यों मानते थे?
  • मलूक दास जी की डकैतों से मुठभेड़
  • मलूक दास को कबीर परमेश्वर ने शरण में लिया।

महान संत मलूकदास जी का संक्षिप्त जीवन परिचय

संदर्भ: जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक 'परिभाषा प्रभु की' के अध्याय - भगवान को किसने देखा? उसका निवास कहाँ है? पृष्ठ 238-241 से। 

संत मलूकदास जी का जन्म कड़ा, जिला इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश के कक्कड़ खत्री अरोड़ा परिवार में हुआ था जो किसानों का एक बहुत अमीर परिवार था। वह गांव के मुखिया (चौधरी) थे जिनके पास 800-900 एकड़ जमीन थी। उनका पिछला नाम 'मल्लू' था। चौधरी मलूकराम जी को बचपन से ही ईश्वर पर अटूट विश्वास था जिसके कारण उनके माता-पिता भी उन्हें पसंद नहीं करते थे। जब मलूक दास जी बड़े हुए तो वे खेती का काम करते थे और अपने क्षेत्र के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। गाँव में उनकी अच्छी प्रसिद्धि थी। फिर आदरणीय मलूक दास जी को 42 वर्ष की आयु में परमेश्वर कबीर जी की प्राप्ति हुई।

पुण्यात्माओं को अपनी शरण में लेने के लिए भगवान क्या-क्या प्रयत्न करते हैं, यह कौन जान सकता है? कबीर परमेश्वर के विषय में आदरणीय संत गरीबदास जी ने अमरग्रन्थ साहिब में कहा है:

गरीब, सौ छल छिद्र मैं करूं, अपने जन के काज।

हिरणाकुश ज्यूं मार हूँ, नरसिंघ धरहूँ साज।।

संत गरीबदास जी ने बताया है कि परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि जो मेरी शरण में किसी जन्म में आया है, मुक्त नहीं हो पाया, मैं उसको मुक्त करने के लिए कुछ भी लीला कर देता हूँ। जैसे प्रहलाद भक्त की रक्षा के लिए नरसिंह रूप {मुख और हाथ शेर के, शेष शरीर नर यानि मनुष्य का} धारण करके हिरण्यकशिपु को मारा था। अर्थात परमेश्वर कबीर जी अपनी प्रिय आत्माओं को ब्रह्म काल के जाल से मुक्त कराने के लिए अनेक दिव्य लीलाएं करते हैं।

जो जन मेरी शरण है, ताका हूँ मैं दास। 

गेल-गेल लाग्या फिरूँ, जब तक धरती आकाश।।

गोता मारूँ स्वर्ग में, जा पैठूँ पाताल। 

गरीबदास खोजत फिरूँ, अपने हीरे मोती लाल।।

भावार्थ:- परमात्मा कबीर जी ने बताया है कि यदि कोई जीव किसी युग में मेरी दीक्षा ले लेता है। यदि वह पार नहीं हो पाता है तो उसको किसी मानुष जन्म में ज्ञान सुनाकर शरण में लूँगा। उसके साथ-साथ रहूँगा। मेरी कोशिश रहती है कि किसी प्रकार यह काल जाल से छूटकर सुखसागर सत्यलोक में जाकर सुखी हो जाए। मेरा प्रयत्न तब तक रहता है जब तक धरती और आकाश नष्ट नहीं होते यानि प्रलय नहीं होती।

मलूक राम चौधरी ने परमेश्वर कबीर को क्यों ठग माना?

एक बार परमेश्वर कबीर जी मलूक दास जी के गांव में अपने एक भक्त के घर सत्संग करने आये थे। जब परमेश्वर अपने भक्तों के घर जाते थे तो भक्त परमात्मा की आराधना में समर्पित हो जाते थे। एक दिन परमेश्वर एक भक्त के घर सत्संग कर रहे थे और अगले दिन दूसरे भक्त के घर सत्संग करते। इसी प्रकार अन्य भक्तों को भी अपने घरों में सत्संग करवाने के लिए प्रेरित किया गया। जिस दिन परमात्मा किसी भक्त के घर आध्यात्मिक प्रवचन करते थे, तो वे वहीं भोजन भी करते थे और भक्त भगवान को अच्छे से अच्छा भोजन खिलाने का प्रयास करता। परमात्मा के लिए बनाए गए भोजन में शुद्ध घी का हलवा बनाया जाता था जिसकी सुगंध आसपास के घरों तक भी पहुंच जाती थी।

एक दिन जब चौधरी मलूकदास एक घर के पास से गुजर रहे थे जहाँ भगवान सत्संग कर रहे थे तो उन्होंने भीड़ देखी और स्वादिष्ट 'हलवा और खीर' की खुशबू ली। उसने उस घर के मालिक से पूछा "भाई! आपके घर में क्या हो रहा है जो आप स्वादिष्ट भोजन बना रहे हैं। आपके घर में यह कौन धोखेबाज आया है जिसके लिए आप घी का हलवा बनाते हैं?" वह गाँव के चौधरी थे और वे गरीब लोग थे जिनके घर में परमात्मा प्रवचन करने आये थे। मकान मालिक ने डरते हुए कहा, 'चौधरी साहब, हमारे गुरु जी आये हैं। वह पूर्ण संत है, उन्हें स्वयं भगवान समझो। हमने उनके लिए ही खाना बनाया है।

दूसरी ओर परमात्मा के अनमोल ज्ञान का शुरू से ही विरोध रहा है और इसीलिए उस गांव के कुछ लोगों ने चौधरी मलूक दास जी से शिकायत की कि गांव में एक ठग आता है जो हर दिन गरीबों के घर जाता है और अच्छे-अच्छे व्यंजन खाता है और वह रात को सत्संग करता है जिसमें गाँव की बहनें और बेटियाँ भी जाती हैं, तो अब आप देखिये कि गाँव में कुछ गलत ना हो जाए? मलूक दास भगवान श्री कृष्ण के उपासक थे। मलूक दास जी पुण्यात्मा थे। उसने मन में सोचा कि साधुओं से झगड़ा नहीं करना चाहिए। मैं हर चीज को पहले प्यार की नजर से ही देखूंगा। फिर मैं इस ठग से बाद में बात करूंगा। मामले की तह तक जाने के लिए मलूक दास जी घर के अंदर चले गए और चुपचाप बैठ गए और देखने लगे कि क्या हो रहा है। मलूक दास जी ने 3 दिन तक परमेश्वर कबीर जी पर नजर रखी, फिर उन्होंने सोचा कि उनसे बात करनी होगी और देखना होगा कि वह कौन हैं? कबीर परमेश्वर साधारण पोशाक में एक हार पहने हुए बैठे थे जैसे साधु-संत पहनते थे। 

मलूक दास जी परमेश्वर कबीर जी के पास गये और बोले कि हे भक्त! आप कौन हैं? आप क्या कर रहे हो? आज तीसरा दिन हो गया है जब मैं तुम्हें देख रहा हूँ। रोज अच्छी खीर और हलवा खाते हो, बलवान हो, काम करके क्यों नहीं खाते? अपनी मेहनत से कमाओ और खाओ। आप लोगों को गुमराह क्यों कर रहे हो?

परमात्मा सब कुछ कर सकता है

परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा, 'देखो चौधरी साहेब! मेरा नाम कबीर है और मैं काशी का एक जुलाहा (बुनकर) हूं। मैं भगवान के निर्देशानुसार भक्तात्माओं को सतमार्ग बता रहा हूं। ईश्वर दयालु है, वह मुझे बिना कोई काम किये भी स्वादिष्ट भोजन देता है और मैं खूब खीर और हलवा खाता हूँ। यह सुनकर मलूक राम चौधरी आश्चर्यचकित रह गए। क्योंकि आज तक हम वहीं पुरानी कहावत सुनते आ रहे हैं कि अगर काम नहीं करोगे तो खाना नहीं मिलेगा। लेकिन परमेश्वर इतने शक्तिशाली है कि अगर हम सब विश्वास के साथ उनकी सच्ची भक्ति और महिमा का गुणगान करेंगे तो परमात्मा भी हमें घर बैठे ही सब कुछ दे सकता है। मलूक राम जी ने कहा, 'क्या तेरा भगवान मुझे बिना काम किए खाना खिलाएगा?' तब परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि 'अगर भगवान पर विश्वास है तो वह तुम्हें जरूर खिलाएगा।

कबीर साहेब ने कहा कि 'भगवान ने हमें माँ के गर्भ में भी भोजन उपलब्ध कराया। हमारे साथ वहां कोई नहीं था। यदि हम भगवान पर पूर्ण विश्वास रखकर सच्ची भक्ति करेंगे और सभी बुराइयों को छोड़ देंगे तो वह अपने भक्तों के लिए कुछ भी कर सकते हैं। तब मलूक राम चौधरी ने कहा 'आज मैं घर से बिना खाए आया हूं, अगर आज आपके भगवान ने मुझे खाना खिला दिया तो मैं आपका शिष्य बन जाऊंगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो मैं आपसे जीवन भर अपने खेत में मजदूरी करवाऊंगा।' क्या यह तुम्हें स्वीकार्य है?' तब परमेश्वर ने कहा, 'हां, स्वीकार्य है'।

परमात्मा द्वारा संत मलूक दास को डकैतों के माध्यम से सीख

इतना कहकर मलूक राम जी अपने खेतों के विपरीत दिशा में जंगल में 4-5 किमी दूर एकांत स्थान पर चले गये और एक पेड़ के ऊपर बैठ गये। वहाँ पर कुछ भेड़-बकरियों वाले बकरियाँ लेकर पहुंच गए, जो साथ में 2-4 गाय भी लिए हुये थे। उस दिन उनका कोई त्योहार था। उन सभी भेड़-बकरियाँ चराने वालों ने सोचा कि आज अपना त्योहार है क्यों ना कुछ खीर बना ले। एक व्यक्ति को जिम्मेदारी दे दी कि आप इस वृक्ष के नीचे खीर बना लो और हम इन भेड़-बकरियों को चरा कर आ रहे हैं। ऐसा कहकर वे काफी दूर अपनी बकरियों को चराने के लिए चले गए। जिसकी खीर बनाने की ड्यूटी लगाई थी उसने खीर बनानी आरम्भ कर दी। कुछ देर के बाद एक डाकूओं का समूह घोड़ों पर सवार हुए आ गया। उस व्यक्ति ने काफी दूर से देखा क्योंकि वहाँ जंगल में रहने वालों को पता होता था कि ये ऐसे जो धूल उठती हुई आ रही है और ये घोड़े आ रहे हैं तो ये अवश्य डाकू ही हैं। वह खीर बनाने वाला डर कर अपने साथियों के पास भाग गया और अपने साथियों से कहा कि डाकू आ गए हैं। वे भी और दूर चले गए।

उधर से वह डाकूओं का समूह उस वृक्ष के नीचे आकर रुका। वहाँ पर एक कुआँ भी बना हुआ था। डाकूओं ने पानी पिया और फिर देखा कि ये क्या बन रहा है? तो एक ने उठाकर देखा कि उसमें तो खीर बन रही थी। तो दूसरे कहने लगे कि भगवान ने बड़ी सुनी। भूख लगी है खीर खायेंगे। उनमें से एक कहने लगा कि कहीं ऐसा न हो कि किसी ने हमारे साथ धोखा किया हो और इसमें जहर मिला कर भाग गया हो। इसका परीक्षण कर लो। इसको किसी पशु-पक्षी को खिला देते हैं और उसको कोई असर नहीं होगा तो हम खा लेंगे। आस पास देखा कि कोई व्यक्ति नजर नहीं आ रहा। कोई पशु-पक्षी भी नजर नहीं आ रहा। एक ने कहा कि वह बनाने वाला कहाँ गया होगा, डरता यहीं कहीं छुप गया होगा। एक की नजर ऊपर गई तो देखा कि ऊपर चौधरी मलूक राम बैठा था।

उसने कहा कि वह छुपकर बैठा खीर बनाने वाला। उन्होंने कहा कि नीचे आ, मलूक राम बोला कि मैं नीचे नहीं आऊँगा तो डाकूओं ने सोचा कि जरूर दाल में काला है। कहने लगे कि नीचे आ जा नहीं तो अभी तुझे गोली मारते हैं। वह डरता हुआ नीचे आ गया। नीचे आने के बाद डाकूओं ने मलूक राम को पतीले के ढक्कन पर खीर डाल कर कहा कि इसको खा। मलूक राम बोला कि मैं खीर बिल्कुल नहीं खाऊँगा। मैं आज खीर नहीं खाऊँगा। डाकुओं को और ज्यादा शक हो गया कि इसने अवश्य ही जहर मिलाया है। उसको दो-चार थप्पड़ मारे, लात मारी और फिर गोली दिखाई कि खा इसको नहीं तो अभी मारेंगे। चौधरी मलूक राम जी ने डरते हुए वह खीर खाई। डाकूओं को पक्का हो गया कि इसने जरूर कुछ मिला रखा है। जबरदस्ती बहुत ज्यादा खिला दी। आधा घण्टा बिठाया, नहीं मरा तो डाकुओं ने पूंछा कि तुम खीर खाने से क्यों मना कर रहे थे तब मलूक राम जी ने पूरी कहानी बताई कि मेरी एक संत से शर्त लगी थी इसलिए मैं खीर नहीं खा रहा था, जबकि खीर बनाने वाले तो आप लोगों को देखकर डरकर भाग गए। फिर डाकुओं ने चौधरी मलूक राम से कहा अब भाग जा यहाँ से।

संत मलूकदास को कबीर परमेश्वर ने लिया शरण में

तब वह मलूक राम चौधरी सीधा कबीर परमेश्वर के चरणों में आकर गिर गया। क्षमा याचना करते हुए कहा कि मुझे माफ कर दो मालिक, मैं पापी आत्मा था, मैंने आपको समझा नहीं। कबीर साहेब ने मलूकदास से कहा कि क्या भगवान ने आपको भोजन खिला दिया? मलूक दास जी बोला कि हे महाराज जी आपका भगवान तो मार-मार कर खीर खिलाता है। उस दिन के बाद वही मलूक राम चौधरी, मलूक दास कहलाया। फिर कबीर साहेब उनको सतलोक लेकर गए। उनको सत्यलोक दिखाया। इस प्रकार मलूक दास की आत्मा को कबीर परमेश्वर ने अपनी शरण में लिया और उन्हें अपने वास्तविक ज्ञान से परिचित कराया और अपने परमधाम सतलोक लेकर गए, उनको सत्यलोक दिखाया और फिर वापिस छोड़ा। उसके पश्चात् संत मलूक दास जी ने कबीर परमेश्वर जी की महिमा का गुणगान किया। पवित्र कबीर सागर, अध्याय अगम निगम बोध के पृष्ठ 45 पर मलूक दास जी का शब्द अंकित है जो इस प्रकार है:

जपो रे मन साहेब नाम कबीर।

एक समय गुरु बंशी बजाई कालिंद्री के तीर।

सुरनर मुनि सब चकित भये, रूक गया यमुना नीर।।

काशी तज गुरू मगहर गए, दोऊ दीन के पीर।।

कोई गाड़ै कोई अग्नि जलावै, नेक न धरते धीर।

चार दाग से सतगुरू न्यारा अजरो-अमर शरीर।।

जगन्नाथ का मंदिर बचाया ऐसे गहर गम्भीर।

दास मलूक सलूक कहत है, खोजो खसम कबीर।।
 

संत मलूकदास जी ने परमेश्वर कबीर जी को सतगुरु भी कहा है और कहा है कि वह चार दाग से मुक्त, अमर शरीर वाले कबीर साहेब हैं यानी जिनका किसी भी तरह से विनाश नहीं हो सकता। अंत में कबीर साहेब को संत मलूकदास जी ने खसम यानि स्वामी भी कहा है, जिससे सिद्ध होता है कि मलूकदास जी कबीर जी को अपना परम गुरु एवं परमेश्वर मानते थे।

निष्कर्ष

दादू नानक नाद बजाये। मलूक दास तुलसी चढ़ आये।।

आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज ने इस अमृत वाणी में संत मलूक दास जी जैसे महान भक्तों का महिमामंडन किया है जिसका उल्लेख सूक्ष्मवेद में किया गया है कि कबीर परमेश्वर अच्छी आत्माओं को मिलते हैं, उन्हें सच्चा ज्ञान बताते हैं और सच्ची भक्ति प्रदान करके उनका कल्याण करते हैं। इस लेख से यह भी स्पष्ट होता है कि परमात्मा अपनी प्यारी आत्माओं को शरण में लेने के लिए अनेकों चमत्कार करते हैं तथा यदि परमात्मा की सतभक्ति पूर्णसंत से लेकर पूर्ण विश्वास के साथ की जाए तो परमात्मा बिना किये भी हमें सबकुछ प्रदान कर सकता है। इसलिए हमें परमात्मा की सतभक्ति पूर्ण संत (पूर्ण गुरु) से लेकर अंतिम स्वांस तक करनी चाहिए।