हम सभी जानते हैं कि कबीर साहेब आज से लगभग 600 वर्ष पहले इतिहास के भक्तियुग में जुलाहे की भूमिका निभाकर गये। पर वे वास्तव में कौन हैं? कबीर साहेब कोई सूफी संत हैं या कवि मात्र? क्या कबीर साहेब परमात्मा हैं? इस लेख में हम कुछ प्रश्नों के उत्तर बताने का प्रयत्न करेंगे, जैसे कबीर कौन हैं? वे कवि हैं या पूर्ण परमेश्वर? कबीर जी इस पृथ्वी पर कब अवतरित हुए? क्या कबीर साहेब ने सशरीर इस मृत्युलोक को छोड़ा था? आखिर क्या रहस्य है जो अब तक अनसुलझा है? कबीर साहेब कहाँ रहते थे? कबीर का क्या अर्थ है? कबीर साहेब ने पूर्ण परमेश्वर के विषय में क्या ज्ञान दिया है?
लेख में हम निम्न बिंदुओं पर चर्चा करेंगे
- परमेश्वर कबीर साहेब की जीवनी
- परमात्मा कबीर का रूप
- परमेश्वर कबीर साहेब का अवतरण
- कबीर साहेब ही पूर्ण परमेश्वर है इसका सभी धर्मग्रंथों से प्रमाण
- कबीर साहेब के गुरु कौन थे?
- परमात्मा कबीर किन महापुरुषों को मिले?
- परमात्मा कबीर साहेब के चमत्कार
- परमेश्वर कबीर साहेब की मृत्यु- एक रहस्य
- पूर्ण तत्वदर्शी संत की पहचान
- पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब का कलियुग में अवतरण
परमात्मा कबीर की जीवनी
परमात्मा कबीर जनसाधारण में सामान्यतः "कबीर दास" नाम से जाने जाते थे तथा बनारस (काशी, उत्तर प्रदेश) में जुलाहे की भूमिका कर रहे थे। विडंबना है कि सर्व सृष्टि के रचनहार, भगवान स्वयं धरती पर अवतरित हुए और स्वयं को दास सम्बोधित किया। कबीर साहेब के वास्तविक रूप से सभी अनजान थे सिवाय उनके जिन्हें कबीर साहेब ने स्वयं दर्शन दिए और अपनी वास्तविक स्थिति से परिचित कराया जिनमें नानक देव जी (तलवंडी, पंजाब), आदरणीय धर्मदास जी ( बांधवगढ़, मध्यप्रदेश), दादू साहेब जी (गुजरात) शामिल हैं। वेद भी पूर्ण परमेश्वर के इस लीला की गवाही देते हैं (ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 4 मन्त्र 6)। इस मंत्र में परमेश्वर कबीर जी को "तस्कर" अर्थात छिप कर कार्य करने वाला कहा है। नानक जी ने भी परमेश्वर कबीर साहेब की वास्तविक स्थिति से परिचित होने पर उन्हें "ठग" (गुरु ग्रंथ साहेब, राग सिरी, महला पहला, पृष्ठ 24) कहा है।
कबीर परमेश्वर का अवतरण
कबीर साहेब भारत के इतिहास में मध्यकाल के भक्ति युग में आये थे। उनकी बहुमूल्य एवं अनन्य कबीर वाणी / (Kabir Vani) कविता आज भी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। परमेश्वर की कबीर वाणी में ढेरों गूढ़ रहस्य भरे पड़े हैं जिनके माध्यम से परमेश्वर ने विश्व को समझाने का प्रयत्न किया था। हम सभी लगभग बाल्यकाल से ही कबीर जी के दोहे (Kabir Saheb Ji Ke Dohe), शबद पढ़ते आये हैं अतः आश्चर्य होना स्वाभाविक है कि आखिर कबीर जी कौन हैं? वास्तव में एक जुलाहे एवं कवि की भूमिका करने वाला जो मानव सदृश पृथ्वी पर अवतरित हुआ और अपनी प्यारी आत्माओं को सही आध्यात्मिक ज्ञान का बोध कराया वह कोई और नहीं बल्कि पूर्ण ब्रह्म कविर्देव हैं। यह सभी धर्मग्रंथों पवित्र वेद, पवित्र कुरान शरीफ, पवित्र बाइबल, पवित्र गुरु ग्रंथ साहेब में प्रमाण है कि कबीर साहेब ही भगवान हैं। आइए हम आगे बढ़ें और जानें कि 600 वर्ष पहले इस मृत्युलोक में कबीर साहेब के माता पिता कौन थे? 600 वर्ष पूर्व किस प्रकार वे अवतरित हुए एवं पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब कहाँ अवतरित हुए?
कबीर साहेब के माता पिता कौन थे?
जैसा वेदों में वर्णित है कि पूर्ण परमेश्वर कभी भी माता के गर्भ से जन्म नहीं लेता है, वह स्वयं सतलोक से अवतरित होते हैं और निसंतान दंपत्ति को प्राप्त होते हैं। 600 वर्ष पूर्व जब कबीर परमेश्वर आये तो उन्होंने नीरू और नीमा को अपना माता-पिता चुना। नीरू और नीमा निसंतान दम्पति थे जो जुलाहे का कार्य करते थे, वे बालक रूपी कबीर परमात्मा को लहरतारा तालाब से उठाकर घर ले आये। यह परमेश्वर कबीर की अलौकिक लीला है।
नीरू नीमा कौन थे?
नीरू और नीमा, यानी कबीर परमेश्वर के माता पिता वास्तव में ब्राह्मण थे जिन्हें अन्य ब्राह्मणों की ईर्ष्या के परिणामस्वरूप, मुसलमानों द्वारा जबरन धर्म परिवर्तित कर दिया गया था। नीरू का नाम गौरीशंकर था तथा नीमा का नाम सरस्वती था। वे दोनों शिव जी के उपासक थे वे परमात्मा चाहने वाली आत्माओं के बीच शिव पुराण का कथा वाचन किया करते थे। वे किसी से कोई दान आदि नहीं लेते थे फिर भी किसी भक्त द्वारा दिये जाने पर जरूरत के अनुसार रख लेते एवं बचे हुए धन का भंडारा कर दिया करते थे।
अन्य ब्राह्मणों को गौरी शंकर और सरस्वती द्वारा किये जाने वाली इस निस्वार्थ भाव से की जाने वाली कथा से ईर्ष्या होने लगी। गौरीशंकर किसी भी भक्तात्मा को धन के लालच में बहकाता नहीं था जिसके परिणामस्वरूप वह अनुयायियों में प्रिय बन गया। वहीं दूसरी ओर मुसलमानों को यह पता हो गया कि कोई भी हिन्दू ब्राह्मण उनके पक्ष में नहीं है जिसका उन्होंने फायदा उठाया और जबरदस्ती उनके घर मे में पानी छिड़क दिया एवं उन्हें भी पिला दिया। उन्हें धर्म परिवर्तित कर दिया। इस पर हिन्दू ब्राह्मणों ने कहा कि वे मुस्लिम हो चुके हैं एवं उनका अब कोई वास्ता नहीं रह सकता।
बेचारे गौरीशंकर और सरस्वती के पास कोई रास्ता नहीं बचा। मुस्लिमों ने उनका नाम क्रमशः नीरू और नीमा रख दिया। उन्हें जो भी दान मिला करता था वे उस समय का निर्वाह करके बाकी बचा हुआ दान कर दिया करते थे। अब न तो उनके पास कोई संचित राशि थी और न ही उनके पास आजीविका का कोई साधन बचा था क्योंकि दान आना अब बंद हो चुका था और वे मुस्लिम ठहराए जा चुके थे। ऐसी स्थिति में उन्होंने चरखा लेकर जुलाहे का कार्य प्रारंभ कर दिया। किन्तु अब भी वे मात्र जीविका निर्वाह का धन रखकर अन्य बचे धन का भंडारा कर देते थे। नीरू-नीमा का गंगा में स्नान करना अन्य ब्राह्मणों ने बंद कर दिया था क्योंकि उनके अनुसार वे मुस्लिम हो गए थे।
अब हम जानेंगे कि पूर्ण परमात्मा कहाँ प्रकट हुए?
कबीर परमेश्वर का प्राकट्य
कलयुग में कबीर साहेब काशी में लहरतारा तालाब पर अवतरित हुए थे। लहरतारा तालाब में जल गंगा नदी का ही आता था। वर्ष 1398 (विक्रम संवत 1455) को ज्येष्ठ की पूर्णिमा के दिन कबीर साहेब कमल के पुष्प पर अवतरित हुए। इस घटना के गवाह ऋषि अष्टानंद हुए जो स्वामी रामानन्द जी के शिष्य थे। वे अपनी साधना करने के लिए तालाब के किनारे बैठे हुए थे और अचानक उन्होंने आकाश से तीव्र प्रकाश उतरता और कमल के पुष्प पर सिमटता हुआ देखा जिससे आंखें चौंधिया गईं।
- भगवान कबीर साहेब का कमल के पुष्प पर अवतरण
- कबीर साहेब का कुंवारी गायों से पोषण
परमात्मा कबीर का कमल के पुष्प पर अवतरण
काशी में गंगा नदी की लहरों से लहरतारा तालाब जो कि एक बड़ा तालाब था, भर जाता था। वह सदा गंगा के पवित्र जल से भरा रहता था। तालाब में कमल पुष्प उगते थे। ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को सन 1398 (विक्रमी संवत 1455) को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में (जोकि सूर्योदय से लगभग डेढ़ घण्टे पहले होता है) कबीर परमेश्वर सतलोक (ऋतधाम) से सशरीर आकर शिशु रूप में लहरतारा तालाब के ही कमल के पुष्प में विराजमान हुए। इस घटना के प्रत्यक्ष दृष्टा स्वामी रामानन्द जी के शिष्य ऋषि अष्टानांद जी थे जो प्रतिदिन सुबह वहाँ साधना के लिए जाते थे। उन्होंने तेज प्रकाश उतरता देखा, उस तीव्र प्रकाश से सारा लहरतारा तालाब जगमग हो उठा एवं स्वयं ऋषि अष्टानांद की आंखें चौंधिया गईं। उन्होंने वह प्रकाश एक कोने में सिमटते देखा। अष्टानांद जी ने सोचा कि "यह मेरी भक्ति की उपलब्धि है या कुछ अन्य अवतार अवतरित हुआ है" ऐसा सोचते हुए वे अपने गुरुदेव के पास पहुँचे।
यहाँ नीरू नीमा गंगा नदी में नहाने से रोक दिए जाने के कारण लहरतारा तालाब में नहाने जाने लगे क्योंकि उसमें भी गंगा का ही स्वच्छ जल रहता था। चूँकि वे निसंतान थे अतः बालक रूप में कबीर साहेब को देखकर अति प्रसन्न हुए। नीमा ने शिशु रूप में आये परमात्मा को हृदय से लगाया। तब नीरू को परमात्मा ने स्वयं उसी बालक रूप में ही घर ले चलने का आदेश दिया।
परमात्मा कबीर साहेब का लालन पालन
नीरू नीमा शिशु रूप में कबीर परमात्मा को घर ले आये। परमेश्वर कबीर बहुत सुंदर थे और पूरी काशी उस सुंदर मुखड़े वाले परमेश्वर के अवतार को देखने के लिए चली आयी। किसी ने भी इतना सुंदर बालक पहले कभी नहीं देखा था। काशीवासी स्वयं कह रहे थे कि इतना सुंदर बालक कभी नहीं देखा। काशी के स्त्री पुरुष कह रहे थे कि किसी ब्रह्मा-विष्णु-महेश में से किसी का अवतरण हुआ है। ब्रह्मा-विष्णु-महेश ने कहा कि यह कोई अन्य परम् शक्ति है। कबीर परमेश्वर का सुंदर मुखड़ा देखकर सभी पूछना भूल गए कि इस बालक को आप कहाँ से लाये हैं?
25 दिनों तक कबीर साहेब ने कुछ भी ग्रहण नहीं किया। इस बात से नीरू और नीमा अत्यंत दुखी हुए। दुखी होकर नीरू-नीमा ने भगवान शिव से प्रार्थना की क्योंकि वे भगवान शिवजी के अनुयायी थे। तब शिवजी एक साधु का वेश बनाकर आये तथा नीमा ने अपनी सारी व्यथा शिवजी को सुनाई। शिवजी ने परमेश्वर कबीर साहेब को गोद में लिया, तब परमेश्वर कबीर ने शिवजी से संवाद किया एवं उन्हें प्रेरणा दी। तब कबीर जी के बताए अनुसार शिवजी ने नीरू को कुंवारी गाय लाने का आदेश दिया। कुंवारी गाय पर हाथ रखते ही गाय ने दूध देना प्रारंभ कर दिया और वह दूध कबीर साहेब ने पिया। परमात्मा की इस लीला का ज़िक्र वेदों में भी है। (ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9)
जब काजी मुल्ला कबीर साहेब के नामकरण के लिए आये तब उन्होंने कुरान खोली लेकिन पुस्तक के सभी अक्षर कबीर-कबीर हो गए। उन्होंने पुनः प्रयत्न किया लेकिन तब भी सभी अक्षर कबीर में तब्दील हो गए। तन उनका नाम कबीर रखकर ही चल पड़े। इस तरह कबीर परमात्मा ने अपना नाम स्वयं रखा।
कुछ समय बाद कुछ काजी कबीर साहेब की सुन्नत करने के उद्देश्य से आये तथा कबीर साहेब ने उन्हें एक लिंग के स्थान पर ढेरों लिंग दिखाए जिससे डर कर वे वापस लौट गए। परमात्मा की इस लीला का वर्णन पवित्र कबीर सागर में भी है।
आइए जानें कबीर साहेब ही परमात्मा हैं इसका धर्मग्रंथों में प्रमाण
कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा है-धर्मग्रंथों में प्रमाण
परमात्मा कबीर स्वयं ही पूर्ण परमात्मा का संदेशवाहक बनकर आते हैं और अपना तत्वज्ञान सुनाते हैं। इस बात के साक्षी पवित्र वेद, पवित्र कुरान, पवित्र बाइबल, पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब हैं।
- कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा है पवित्र वेदों में प्रमाण
- कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा हैं पवित्र क़ुरान में प्रमाण
- कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा हैं पवित्र बाइबल में प्रमाण
- कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा हैं पवित्र गुरु ग्रन्थ साहेब में प्रमाण
कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा है पवित्र वेदों में प्रमाण
वेदों में प्रमाण है कि कबीर साहेब प्रत्येक युग में आते हैं। परमेश्वर कबीर का माता के गर्भ से जन्म नहीं होता है तथा उनका पोषण कुंवारी गायों के दूध से होता है। अपने तत्वज्ञान को अपनी प्यारी आत्माओं तक वाणियों के माध्यम से कहने के कारण परमात्मा एक कवि की उपाधि भी धारण करता है।
आइए वेदों में प्रमाण जानें
- यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25
- ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17
- ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 18
- ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9
यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25
यजुर्वेद में स्पष्ट प्रमाण है कि कबीर परमेश्वर अपने तत्वज्ञान के प्रचार के लिए पृथ्वी पर स्वयं अवतरित होते हैं। वेदों में परमेश्वर कबीर का नाम कविर्देव वर्णित है।
समिद्धोऽअद्य मनुषो दुरोणे देवो देवान्यजसि जातवेदः।
आ च वह मित्रामहश्चिकित्वान्त्वं दूतः कविरसि प्रचेताः।।25।।
भावार्थ- जिस समय भक्त समाज को शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण (पूजा) कराया जा रहा होता है। उस समय कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान को प्रकट करता है।
ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17
यह उधृत है कि पूर्ण परमेश्वर शिशु रूप में प्रकट होकर अपनी प्यारी आत्माओं को अपना तत्वज्ञान प्रचार कविर्गीर्भि यानी कबीर वाणी से पूर्ण परमेश्वर करते हैं।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17
शिशुम् जज्ञानम् हर्य तम् मृजन्ति शुम्भन्ति वह्निमरूतः गणेन।
कविर्गीर्भि काव्येना कविर् सन्त् सोमः पवित्राम् अत्येति रेभन्।।17।।
भावार्थ - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि विलक्षण मनुष्य के बच्चे के रूप में प्रकट होकर पूर्ण परमात्मा कविर्देव अपने वास्तविक ज्ञान को अपनी कविर्गिभिः अर्थात कबीर वाणी द्वारा निर्मल ज्ञान अपने हंसात्माओं अर्थात् पुण्यात्मा अनुयायियों को कवि रूप में कविताओं, लोकोक्तियों के द्वारा सम्बोधन करके अर्थात उच्चारण करके वर्णन करता है। वह स्वयं सतपुरुष कबीर ही होता है।
ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 18
पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जब तक पृथ्वी पर रहे उन्होंने ढेरों वाणियां अपने मुख कमल से उच्चारित की जिन्हें उनके शिष्य आदरणीय धर्मदास जी ने जिल्द किया। आज ये हमारे समक्ष कबीर सागर और कबीर बीजक के रूप में मौजूद हैं जिनमें कबीर परमेश्वर की वाणियों का संकलन है। आम जन के बीच कबीर साहेब एक साधारण कवि के रूप में प्रचलित थे जबकि वे स्वयं सारी सृष्टि के रचनाकार है। परमात्मा की इस लीला का वर्णन हमें ऋग्वेद में भी मिलता है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।18।।
भावार्थ- वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर प्रसिद्ध कवियों की उपाधि प्राप्त करके अर्थात एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची हजारों वाणी संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष तीसरे मुक्तिलोक अर्थात सत्यलोक पर सुदृढ़ पृथ्वी को स्थापित करने के पश्चात् मानव सदृश संत रूप में होता हुआ गुबंद अर्थात गुम्बज में ऊंचे टीले रूपी सिंहासन पर उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मंत्र 9
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
भावार्थ - पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है उस समय कंवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 94 मन्त्र 1 में परमात्मा की अन्य लीलाओं का भी वर्णन है कि पूर्ण परमेश्वर भ्रमण करते हुए अपने तत्वज्ञान का प्रचार करते हैं और कवि की उपाधि धारण करते हैं।
परमात्मा के अन्य अनेकों गुणों का वर्णन इन अध्याय में है
- ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 19,20
- ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 90 मन्त्र 3,4,5,15,16
- यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 26,30
- यजुर्वेद अध्याय 29 मंत्र 25
- सामवेद संख्या नं. 359, अध्याय 4 खंड 25, श्लोक 8
- सामवेद संख्या नं. 1400, अध्याय 12, कांड 3, श्लोक 8
- अथर्वेद कांड नं. 4, अनुवाक 1, मन्त्र 1,2,3,4,5,6,7
कबीर साहेब पूर्ण परमेश्वर है कुरान शरीफ में प्रमाण
पवित्र कुरान शरीफ, सूरत फुरकान 25, आयत 52 से 59 में कहा गया है कि "तुम काफिरों का कहा न मानना क्योंकि वे कबीर को अल्लाह नहीं मानते। कुरान में विश्वास रखो और अल्लाह के लिए संघर्ष करो, अल्लाह की बड़ाई करो। "साथ ही आयात 25:59 में कुरान का ज्ञानदाता कहता है कि कबीर ही अल्लाह है जिसने धरती और आकाश तथा इनके बीच जो कुछ है की छः दिनों में रचना की और सातवें दिन तख्त पर जा विराजा, उसके बारे में किसी बाख़बर से पूछो। बाख़बर/ धीराणाम/ तत्वदर्शी सन्त एक ही होता है।
फजाईले अमाल जिसे फजाईले ज़िक्र भी कहते हैं, में आयत 1 में प्रमाण है कि अल्लाह कबीर है।
परमात्मा कबीर हैं पवित्र बाइबल में प्रमाण
पवित्र बाइबल में भी प्रमाण है कि परमेश्वर कबीर साकार है। वह निराकार नहीं है।
पवित्र बाइबल के उत्पत्ति ग्रन्थ के अध्याय 1:26 और 1:27 में प्रमाण है कि परमेश्वर ने 6 दिनों में सृष्टि रचना की। बाइबल के अध्याय 3 के 3:8,3:9,3:10 में प्रमाण है कि परमात्मा सशरीर है।
बाइबल के उत्पत्ति ग्रन्थ 18:1 में प्रमाण है कि परमेश्वर अब्राहम के समक्ष प्रकट हुए इससे प्रमाणित होता है कि परमेश्वर सशरीर है।ऑर्थोडॉक्स यहूदी बाइबल के अय्यूब 36:5 में प्रमाण है कि "परमेश्वर कबीर (शक्तिशाली) है, किन्तु वह लोगों से घृणा नहीं करता है। परमेश्वर कबीर (सामर्थी) है और विवेकपूर्ण है।"
कबीर साहेब परमात्मा हैं गुरु ग्रन्थ साहेब में प्रमाण
गुरु ग्रन्थ साहेब में प्रमाण है कि कबीर साहेब ही वह परमात्मा हैं जिसने सर्व ब्रह्मांडों की रचना की। वह साकार है और उसी परमेश्वर कबीर ने काशी, उत्तर प्रदेश में जुलाहे की भूमिका भी निभाई।
गुरु ग्रन्थ साहेब के पृष्ठ 24 राग सिरी, महला 1, शब्द संख्या 9; गुरु ग्रंथ साहेब पृष्ठ 721 महला 1 तथा गुरु ग्रंथ साहेब, राग असावरी, महला 1 के अन्य भागों में प्रमाण है.
कबीर परमात्मा के गुरु कौन थे?
मोक्ष मार्ग में गुरु का स्थान सर्वोच्च एवं महत्वपूर्ण है जैसा कि कबीर साहेब ने अपने तत्वज्ञान में बताया है। इसलिए कबीर साहेब जी ने स्वामी रामानंद की को अपने आध्यात्मिक गुरु के रूप में सबके समक्ष स्वीकार किया था। स्वामी रामानंद जी को वेद एवं गीता के श्लोक अच्छी तरह कंठस्थ थे।
- परमेश्वर कबीर ने स्वामी रामानंद जी के आश्रम में दो रूप बनाये
- स्वामी रामानन्द जी के मन की बात बताना
- स्वामी रामानंद जी को सतलोक दिखाना
जब कबीर साहेब अपने लीलामय शरीर के पांच वर्ष के हो गए तब गुरु मर्यादा के पालन (तत्वज्ञान में उन्होंने प्रचार किया है कि गुरु होना आवश्यक है) के लिए उन्होंने एक लीला की। परमेश्वर ढाई वर्ष के शिशु का रूप बनाकर काशी के पंचगंगा घाट पर लेट गए। स्वामी रामानंद जी प्रतिदिन स्नान हेतु वहाँ जाते थे। उस समय स्वामी रामानन्द जी की आयु 104 वर्ष हो चुकी थी। उन्होंने काशी के अन्य पंडितों की तरह आडम्बर युक्त भक्ति को नहीं अपनाया। रामानंद जी शास्त्रों के अनुसार भक्ति करने के पक्ष में थे तथा यही शिक्षा वे अपने 52 शिष्यों को दिया करते थे। वे पवित्र गीता और पवित्र वेदों के आधार पर भक्ति करने को कहते और ॐ नाम का जाप जपने के लिए देते थे।
उस दिन भी प्रतिदिन के अनुसार जब स्वामी रामानन्द जी पंच गंगा घाट पर स्नान के लिए गए तब कबीर परमेश्वर घाट की सीढ़ियों में लेट गए। ब्रह्म मुहूर्त के समय रामानंद जी कबीर साहेब को नहीं देख पाए इस कारण रामानंद जी के खड़ाऊँ की ठोकर कबीर परमेश्वर के सिर पर लगी। परमेश्वर कबीर जी रोने की लीला करने लगे तब रामानन्द जी ने उन्हें गोद मे उठाया, उठाते समय रामानंद जी के गले से कंठी माला कबीर साहेब के गले में चली गई तथा रामानंद जी ने कहा बेटा राम राम बोलो, राम नाम से सब दुख दूर होते हैं। कबीर साहेब बालक रूप में चुप हो गए। तब रामानन्द जी स्नान करने लगे और परमेश्वर कबीर वहाँ से अंतर्ध्यान हो गए। रामानन्द जी ने कबीर साहेब को बाद में खोजने का प्रयत्न भी किया किन्तु वे वहाँ नहीं थे।
महत्वपूर्ण- पांच वर्ष की आयु में ही कबीर साहेब ने संसार के समक्ष रामानंद जी को गुरु स्वीकार कर लिया था किन्तु वास्तव में रामानंद जी के गुरु कबीर परमेश्वर थे।
रामानंद जी के आश्रम में परमेश्वर कबीर के दो रूप बनाना
एक दिन स्वामी रामानंद जी का शिष्य कहीं कथा कर रहा था। कबीर परमेश्वर भी वहाँ गए। ऋषि जी विष्णु पुराण की कथा का वचन कर रहे थे जिसमें वे विष्णु जी को सारे ब्रह्मांड का मालिक और रचनाकार घोषित कर रहे थे, उन्हें अजर अमर बता रहे थे, एवं बताया कि विष्णु जी के कोई माता पिता नहीं हैं। कबीर परमेश्वर ने सारा प्रवचन सुना। सत्संग समापन के पश्चात कबीर परमेश्वर ने प्रश्न किया कि "ऋषि जी क्या मैं आपसे एक प्रश्न कर सकता हूँ?" ऋषि जी ने कहा "पूछो बेटा"। सैकड़ों की संख्या में अनुयायी वहां उपस्थित थे। कबीर साहेब ने कहा कि "आप जो विष्णु पुराण का ज्ञान बता रहे थे तब आपने कहा कि भगवान विष्णु ही परम् शक्ति हैं जिनसे ब्रह्मा और शिव जी उत्पन्न हुए हैं।" तब ऋषि जी ने उत्तर दिया कि मैंने जो कुछ भी बताया वह विष्णु पुराण में लिखा हुआ है। तब कबीर परमेश्वर ने कहा कि "ऋषि जी यदि नाराज न हों तो मैं अपना प्रश्न आपके समक्ष रखूं। एक दिन मैंने शिव पुराण सुना तब वे सज्जन बता रहे थे कि विष्णु जी और ब्रह्मा जी का जन्म शिव जी से हुआ है। (प्रमाण- पवित्र शिव पुराण, रुद्र संहिता, अध्याय 6,7। प्रकाशक- गीता प्रेस गोरखपुर)
देवी भागवत के तीसरे स्कंद में यह वर्णन है कि माता दुर्गा, ब्रह्मा-विष्णु-शिव की माता हैं। तथा ये तीनों देव जन्म-मरण में आते हैं तथा अमर नहीं बल्कि नाशवान हैं।" तब कोई उत्तर न पाकर ऋषि जी क्रोधित हो गए और पूछा कि "कौन हो तुम? किसके पुत्र हो?" इसके पहले कबीर परमेश्वर कोई उत्तर देते उपस्थित लोगों ने कहना शुरू किया कि यह नीरु जुलाहे का बेटा है। तब ऋषि जी ने पूछा कि तुमने कंठी माला कैसे धारण की? (तुलसी की कंठी माला वैष्णव साधु पहनते थे जो इस बात का परिचायक थी कि उन्होंने वैष्णव गुरु धारण किया है।) तब कबीर जी ने कहा कि मेरे गुरुदेव भी वही हैं जो आपके गुरु हैं। ऋषि जी आग बबूला हो उठे और कहने लगे "अरे मूर्ख! निम्न जाति के जुलाहे का पुत्र होकर मेरे गुरुदेव को अपना बता रहा है। वे तुम जैसे शूद्रों को अपने पास भी नहीं आने देते और तुम कहते हो तुमने उनसे नाम दीक्षा ली है। देखो लोगों! यह झूठा है! धोखेबाज है! मैं अभी अपने गुरुदेव के पास जाकर तुम्हारी कहानी बताऊँगा।
तुम एक निम्न जाति के जुलाहे के पुत्र हो तुमने मेरे गुरुजी का अपमान किया है।" कविरग्नि ने कहा "ठीक है आप गुरुजी को बताएँ।" तब वह ऋषि स्वामी रामानंद जी के पास जाकर उनसे बोला कि " गुरुदेव एक निम्न जाति का लड़का जा। उसने हमारा अपमान किया है। उसने कहा कि स्वामी रामानन्द जी उसके गुरु हैं।" ऋषि अष्टानंद ने कहा कि "हे भगवान हमारा बाहर निकलना दूभर हो जाएगा।" इस पर स्वामी रामानंद जी ने कहा," उसे कल बुलाकर लाओ। मैं कल तुम सबके सामने उसे सजा दूंगा।"
स्वामी रामानंद जी के मन की बात कहना
जब रामानंद जी कबीर परमेश्वर को परमात्मा नहीं स्वीकार कर रहे थे तब कबीर साहेब ने उनके मन की बात बताई जो वे अपनी नित्य साधना के दौरान कर रहे थे। आइए विस्तार से घटना के विषय में जानें
अगली सुबह 10 अनजान आदमी आये और परमेश्वर कबीर को पकड़कर रामानन्द जी के समक्ष ले गए। रामानंद जी ने अपने पास एक परदा डाल लिया यह दिखाने के लिए कि दीक्षा देना दूर वे शूद्रों के दर्शन भी नहीं करते हैं। रामानन्द जी पर्दे के पीछे से ही पूछ रहे थे कि तुम कौन हो व तुम्हारी क्या जाति है?
परमेश्वर कबीर ने कहा जी "यदि आप मेरी जाति के बारे में पूछ रहे हैं तो मैं बताता हूँ। मैं जगतगुरू हूँ (वेदों में वर्णन है कि पूर्ण परमेश्वर जगतगुरू होता है क्योंकि वह सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान बताता है) और मेरा पंथ क्या है? मेरा पंथ परमेश्वर का है। मैं सबको पूर्ण परमेश्वर का रास्ता बताने आया हूँ। परमेश्वर जो करोड़ों ब्रह्मांडों का रचनहार है, पालनहार है, जो कबीर, कविरग्नि आदि नामों से वेदों में वर्णित है।"
जाति हमारी जगतगुरु परमेशवर है पंथ, दास गरीब लिखत पढ़ें, मेरा नाम निरंजन कंत ||
रामानन्द जी ने सोचा इससे बाद में निपटूंगा पहले अपनी नित्य साधना पूरी कर लूं। वे आंखें बंद करके मनमुखी साधना करते थे जिसमें कृष्ण जी की मूर्ति को नहलाते, सुसज्जित करते और भोग लगते थे। उस दिन उन्होंने कृष्ण जी को मुकुट पहना दिया किन्तु माला पहनाना भूल गए। स्वामी जी को बड़ा पछतावा हुआ। अब मुकुट तो उतारा नहीं जा सकता था और बिना मुकुट उतारे माला कैसे पहनाएँ और दोनो ही स्थिति में उनकी पूजा खंडित थी। तभी पर्दे के पीछे खड़े कबीर परमात्मा स्वामी जी के मन की बात जानकर बोल उठे कि "स्वामी जी माला की घुंडी खोलकर माला पहना दो।" तब रामानन्द जी ने सोचा कि यह बच्चा मेरी मानसिक पूजा के बारे कैसे जाना। उन्होंने पूजा छोड़कर पर्दा हटाया और सबके समक्ष कबीर परमेश्वर को हृदय से लगा लिया।
रामानन्द जी ने पूछा कि "आपने झूठ क्यों कहा?" तब कबीर साहेब बोले "क्या झूठ स्वामी जी?" तब स्वामी जी बोले "यही कि आपने मुझसे नामदीक्षा ली है।" उत्तर में परमेश्वर कबीर बोले कि " स्वामी जी याद कीजिये आप पंचगंगा घाट पर स्नानार्थ गए हुए थे और आपकी खड़ाऊँ मेरे सर लगी थी और मैं रोने लगा था। तब आपने कहा कि बेटा राम राम बोलो।" रामानन्द जी ने कहा कि " मुझे याद है लेकिन वह बालक बहुत छोटा था (उस समय पांच वर्ष के बालक काफी बड़े हो जाया करते थे और 5 वर्ष और ढाई वर्ष के बालक में पर्याप्त अंतर होता था)" तब कबीर साहेब ने कहा "देखो स्वामी जी मैं ऐसे ही दिख रहा था न?" और उन्होंने अपने दो रूप बना लिए एक ढाई वर्ष का और पांच वर्ष के वे स्वयं खड़े थे। अब स्वामी रामानन्द जी छह बार इधर देखते और छह बार उधर कि कहीं आंखें धोखा न खा रही हों। और इस तरह उनके देखते देखते कबीर साहेब के ढाई वर्ष वाला रूप परमेश्वर के पांच वर्ष वाले रूप में समा गया। तब रामानन्द जी बोले "मेरा संशय दूर हुआ हे परमेश्वर आपको कैसे जाना जा सकता है। आप ऐसी जाति धारण करके खड़े हैं। हम अनजान तुच्छ बुद्धि जीवों को क्षमा करें। पूर्ण परमेश्वर कविर्देव मैं आपका नादान बच्चा हूँ।"
कबीर परमेश्वर ने पूछा कि "स्वामी जी आप क्या साधना करते हो?" रामानन्द जी ने कहा कि " मैं वेदों और गीता पर आधारित साधना करता हूँ।" कबीर साहेब ने प्रश्न किया कि "गीता और वेदों के आधार पर आप कहाँ जायेंगे?" स्वामी रामानन्द ने उत्तर दिया कि स्वर्ग में। तब परमेश्वर कबीर साहेब ने कहा कि आप स्वर्ग में क्या करेंगे? तब स्वामी रामानंद जी बोले "मैं वहां रहूँगा, वहाँ दूध की नदियां बहती हैं, श्वेत स्थान है, कोई दुख और चिंता नहीं है।" कबीर परमात्मा ने पूछा "स्वामी जी आप कितने समय तक रहेंगे वहां?" (स्वामी जी ज्ञानी पुरुष थे उन्हें समझते देर नहीं लगी।) स्वामी जी बोले "अपनी भक्ति की कमाई अनुसार वहाँ रहूँगा।" तब कबीर साहेब ने समझाया कि "स्वामी आप यह साधना जाने कब से करते आ रहे हैं इससे मुक्ति संभव ही नहीं है।
आप विष्णु जी की साधना करके विष्णु लोक जाना चाहते हैं। ब्रह्म साधना से ब्रह्मलोक जाते है किंतु मुक्ति तब भी संभव नहीं है, क्योंकि एक दिन महास्वर्ग जो ब्रह्मलोक में है वह भी नष्ट होगा ऐसा गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में लिखा है।" स्वामी जी को सभी श्लोक उंगलियों पर याद थे उन्होंने कहा "हां यही लिखा है।" तब कबीर साहेब ने कहा "बताओ गुरुदेव तब आप कहाँ जाओगे?" अब रामानन्द जी सोचने पर विवश हुए। परमात्मा कबीर ने पूछा-" स्वामी जी गीता का ज्ञान किसने दिया है?" तब स्वामी जी ने उत्तर दिया कि श्री कृष्ण ने दिया है गीता ज्ञान। परमात्मा कबीर ने प्रश्न किया कि "स्वामी जी संस्कृत महाभारत कांड 2 (पृष्ठ 1531 पुरानी पुस्तक में वे पृष्ठ 667 नई पुस्तक) में लिखा है कि "हे अर्जुन अब मुझे वो गीता का ज्ञान याद नहीं रहा और उसे मैं पुनः नहीं सुना सकता।" कबीर परमात्मा ने सभी प्रमाण सामने रख दिये।
स्वामी जी का सतलोक जाना
कबीर परमात्मा ने स्वामी जी को तत्वज्ञान समझाया और उन्हें सतलोक लेकर गए। ब्रह्मा, विष्णु, महेश की वास्तविक स्थिति से परीचित करवाया। आइए जानें कबीर परमेश्वर द्वारा स्वामी रामानंद जी को सतलोक ले जाने की लीला
कबीर साहेब ने स्वामी रामानन्द जी से पूछा कि आप क्या साधना करते हो? रामानन्द जी ने उत्तर दिया कि मैं योग विधि से अपने शरीर के कमलों को खोलकर सीधा त्रिकुटी तक पहुंच जाता हूँ। कबीर साहेब ने उन्हें एक बार त्रिवेणी पर पहुंचने को कहा। स्वामी रामानन्द जी समाधि लगाकर पहुंच गए। वहां उन्हें कबीर परमेश्वर मिले। ब्रह्मलोक में पहुंचते ही तीन रास्ते हो गए। बीस ब्रह्मांड पर करने के पश्चात इक्कीसवें ब्रह्मांड में भी वैसा ही रास्ता है। तीन में से एक रास्ता उस स्थान को जाता है जहां ज्योति निरजंन तीन रूपों में रहता है। परमात्मा ने रामानन्द जी को आगे बताया कि ब्रह्मरंध्र उस नाम से नहीं खुलेगा जिसका रामानन्द जी जाप करते हैं बल्कि केवल सतनाम से खुलेगा। कबीर साहेब ने श्वासों से सतनाम का सिमरन किया और दरवाजा खुल गया। फिर कबीर साहेब ने बताया कि "अब मैं तुम्हें उस काल का रूप बताता हूँ जिसे आप सब निराकार कहते हैं, जिसने गीता में कहा है कि मैं सबको खाने के लिए आया हूँ, जिसने कहा कि अर्जुन मैं कभी किसी को दर्शन नहीं देता।" तब कबीर परमेश्वर ने काल ब्रह्म के सभी गुप्त स्थानों को दिखाया जहाँ वह ब्रह्मलोक में ब्रह्मा, विष्णु और शिव के रूपों में था। तब ब्रह्मलोक से आगे इक्कीसवें ब्रह्मांड में गए। काल भगवान की नज़र ब्रह्मलोक से आने वाले रास्ते पर हमेशा रहती है जोकि जटा कुंडली सरोवर के ऊपर है ताकि कोई बाहर न निकल पाए। 21 वे ब्रह्माण्ड का आखिरी लोक काल ब्रह्म का निजी स्थान है, वहाँ वह अपने वास्तविक रूप में रहता है।
कबीर परमात्मा ने काल ब्रह्म को दिखाया कि देखो वह तुम्हारे निराकार भगवान का वास्तविक स्वरूप। (क्योंकि सभी योगी व ऋषिजन ओम नाम के जाप से साधना करते हैं। लेकिन परमात्मा हासिल नहीं होता। योगीजन, ऋषिजन सिद्धियां पा जाते हैं, स्वर्ग-महास्वर्ग तक जाते हैं और अंततः 84 लाख योनियों में जाते हैं। काल के दर्शन न हो पाने के कारण सभी परमात्मा को निराकार बताते हैं। जबकि शास्त्र प्रमाण हैं कि परमात्मा साकार है।) कालब्रह्म कि निकट आकर परमेश्वर ने सतनाम का उच्चारण किया (गीता अध्याय 17 श्लोक 23 ओम, तत,सत)। उसी क्षण काल का सिर झुक गया। काल के सिर के ऊपर एक दरवाज़ा है जिसके माध्यम से सतलोक और परब्रह्म के लोको में जाया जाता है। उसके बाद भंवर गुफा की शुरुआत होती है। (काल के लोक में भी एक भंवर गुफा है) कबीर साहेब के हंस कालब्रह्म के सिर को सीढ़ी बनाकर ऊपर जाते हैं। काल का सिर सीढ़ी की तरह कार्य करता है।
परब्रह्म के लोक को पार करने के बाद परमेश्वर स्वामी रामानन्द जी की आत्मा को सतलोक लेकर गए। (वहा भी एक भंवर गुफा है) सतलोक में स्वामी जी ने रामानंद जी ने कबीर परमेश्वर के वास्तविक स्वरूप को देखा। उस मोहिनी सूरत में बैठे परमेश्वर के एक रोम कूप के शरीर का प्रकाश करोड़ों सूर्य और चंद्रमा के बराबर है। लेकिन गर्मी के स्थान पर शीतलता है। तब कबीर साहेब आगे बढ़कर सत्पुरुष के सिर पर चँवर करने लगे। स्वामी रामानन्द जी ने सोचा कि वास्तविक परमात्मा सत्पुरुष हैं और कबीर साहेब उनके सेवक होंगे। किन्तु तभी सत्पुरुष उठे और कबीर साहेब के हाथों से चँवर ले लिया और परमेश्वर कबीर साहेब के पांच वर्षीय शरीर को चँवर करने लगे। और तभी दोनों रूप एक हो गए। स्वामी रामानंद जी की आत्मा को इसके पश्चात कबीर साहेब ने पृथ्वी पर भेज दिया और रामानंद जी की समाधि टूट गई।
रामानंद जी 104 वर्ष के पुरुष 5 वर्ष के बालक रूप में कबीर परमेश्वर से कहते हैं "हे परमेश्वर आप पूर्ण परमात्मा है और मैं आपका सेवक हूँ। मैंने पूर्ण परमेश्वर का वास्तविक स्वरूप देख लिया। चारों वेद और गीता जी आपका ही गुणगान कर रहे हैं।"
अब हम जानेंगे कि कबीर साहेब किन महापुरुषों को मिले?
कबीर परमेश्वर किन महापुरुषों को मिले?
पूर्ण परमेश्वर बहुत सी महान आत्माओं को मिले और उन्हें सृष्टि रचना बताई, तत्वज्ञान से परिचित करवाया और उन्हें सतलोक भी लेकर गए। किन महापुरुषों को कबीर परमेश्वर मिले?
- आदरणीय धर्मदास जी
- आदरणीय गरीबदास जी महाराज
- आदरणीय नानकदेव जी
- आदरणीय सन्त दादूदयाल जी
- आदरणीय घीसादास जी
- आदरणीय सन्त मलूक दास जी
- आदरणीय स्वामी रामानंद जी
कबीर साहेब और धर्मदास जी
आदरणीय धर्मदास जी बांधवगढ़, मध्यप्रदेश के निवासी थे। धर्मदास जी शास्त्रविरुद्ध साधनाएँ करते थे। कबीर साहेब उन्हें मिले और उन्हें समझाया कि धर्मग्रंथों में परमेश्वर की वास्तविक स्थिति से परिचित करवाया और तत्वज्ञान से परिचित करवाया। परमात्मा कबीर साहेब के तत्वज्ञान को सुनकर धर्मदास जी को आश्चर्य हुआ। कबीर साहेब धर्मदास जी की आत्मा को अपने वास्तविक स्थान सचखंड लेकर गए और वहाँ उन्हें अपनी वास्तविक से परीचित करवाया। वापस आने के बाद धर्मदास जी ने सभी आंखों देखा लिखा। उन्होंने कबीर परमेश्वर की सभी वाणियों को कबीर सागर, कबीर बीजक व कबीर साखी में लिखा। कबीर सागर आदरणीय धर्मदास जी और कबीर परमेश्वर जी के मध्य का संवाद है। कबीर परमेश्वर जी ही पूर्ण परमात्मा हैं जो पृथ्वी पर आते हैं और अपनी प्यारी आत्माओं को तत्वज्ञान बताते हैं।
आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।।टेक।।
सत्यलोक से चल कर आए, काटन जम की जंजीर।।1।।
थारे दर्शन से म्हारे पाप कटत हैं, निर्मल होवै जी शरीर।।2।।
अमृत भोजन म्हारे सतगुरु जीमैं, शब्द दूध की खीर।।3।।
हिन्दू के तुम देव कहाये, मुस्लमान के पीर।।4।।
दोनों दीन का झगड़ा छिड़ गया, टोहे ना पाये शरीर।।5।।
धर्मदास की अर्ज गोसांई, बेड़ा लंघाईयो परले तीर।।6।।
कबीर साहेब और गरीबदास जी महाराज
गरीबदास जी महाराज, गाँव छुड़ानी, जिला- झज्जर, हरियाणा वाले कबीर साहेब के बारहवें पंथ से हैं। परमात्मा कबीर साहेब उन्हें 1727 में मिले जब गरीबदासजी महाराज केवल 10 वर्ष की आयु के थे एवं अपनी गायें चराने गए हुए थे। परमात्मा कबीर साहेब गरीबदास जी महाराज को ज़िंदा महात्मा के रूप में मिले उन्हें सतलोक लेकर गए और उन्हें सच्चा वास्तविक ज्ञान बताया। परमात्मा कबीर साहेब ने गरीबदास जी मजराज को नामदीक्षा दी। सतलोक से वापस आने के बाद गरीबदास जी महाराज ने सत ग्रन्थ साहेब में सारा तत्वज्ञान लिखा।
गरीबदास जी महाराज ने अपनी पवित्र वाणी में सतलोक और परम् अक्षर ब्रह्म कबीर साहेब के विषय में लिखा है।
हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया |
जाति जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ ||
गैबी ख्याल विशाल सतगुरु, अचल दिगम्बर थीर है |
भक्ति हेत काया धर आये, अविगत सत् कबीर हैं |
नानक दादू अगम अगाधू, तेरी जहाज खेवट सही |
सुख सागर के हंस आये, भक्ति हिरम्बर उर धरी ||
अधिक जानकारी के लिए देखें आदरणीय गरीब दास जी महाराज
कबीर साहेब और नानक देव जी
नानक देव जी का जन्म 1469 को जिला तलवंडी, लाहौर (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ। परमात्मा कबीर साहेब जिंदा महात्मा के रूप में नानक देव जी को बेई नदी के किनारे मिले जहाँ वे प्रतिदिन स्नान के लिए जाते थे। एक दिन उन्होंने नहाने के लिए डुबकी लगाई पर बाहर नहीं आये। लोगों को लगा कि वे डूब गए और उन्होंने ने उन्हें मरा मान लिया जबकि वास्तव में पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब उन्हें मिले थे और अपनी प्यारी आत्मा को वे सतलोक लेकर गए थे। उन्हें तत्वज्ञान समझाया, सृष्टि रचना समझाई और अपनी वास्तविक स्थिति से परिचित करवाया तथा बताया कि परमात्मा स्वयं तत्वदर्शी संत के रूप में काशी में जुलाहे की भूमिका कर रहे हैं और उनकी आत्मा को पृथ्वी पर भेज दिया।
गुरुनानक जी ने कबीर साहेब का अपनी पवित्र वाणी में बखान किया है
फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस |
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार ||
- गुरु ग्रन्थ साहेब, राग सिरी, महला 1
हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदीगार |
नानक बुगोयद जनु तुरा तेरे चाकरा पाखाक ||
-गुरु ग्रन्थ साहेब, राग तिलंग, महला 1
कबीर साहेब और दादू जी
आदरणीय दादू जी भी कबीर परमेश्वर के साक्षी रहे। कबीर साहेब उन्हें सतलोक लेकर गए और उन्हें वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान से परिचित करवाया। तीन दिन तक दादू साहेब जी अचेत रहे और जब कबीर साहेब ने दादू जी की आत्मा को पुनः पृथ्वी पर भेजा तो दादू जी ने अपने मुख कमल से कबीर परमेश्वर का गुणगान किया।
जिन मोकू निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार |
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजन हार ||
दादू नाम कबीर की, जै कोई लेवे ओट |
उनको कबहू लागे नहीं, काल बज्र की चोट ||
केहरि नाम कबीर का, विषम काल गज राज |
दादू भजन प्रतापते, भागे सुनत आवाज ||
अबही तेरी सब मिटै, जन्म मरण की पीर |
स्वांस उस्वांस सुमिरले, दादू नाम कबीर ||
कबीर साहेब और संत मलूक दास जी
आदरणीय मलूक दास जी को भी परमेश्वर कबीर मिले और उन्हें सही आध्यात्मिक ज्ञान समझाया मलूक दास जी दो दिनों तक अचेत रहे। जब परमेश्वर ने उनकी आत्मा को सतलोक की सैर करवा दी तब पुनः पृथ्वी पर भेजा। मलूक दास जी ने सचखंड और पूर्ण परमेश्वर को देखने के बाद निम्न वाणियां उच्चारित की।
जपो रे मन सतगुरु नाम कबीर।।टेक।।
जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर |
एक समय गुरु बंसी बजाई कालंद्री के तीर |
सुर-नर मुनि थकत भये थे, रुक गया दरिया नीर ||
काँशी तज गुरु मगहर आये, दोनों दीन के पीर |
कोई गाढ़े कोई अग्नि जरावै, ढूंडा न पाया शरीर |
चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर |
दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर ||
पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब के चमत्कार
परमात्मा स्वयं तत्वदर्शी संत के रूप में पृथ्वी पर आते हैं और तत्वज्ञान का प्रचार करते हैं। परमेश्वर कबीर तत्वज्ञान को दोहों, चौपाइयों, शब्द इत्यादि के माध्यम से अपनी प्यारी आत्माओं तक पहुंचाते हैं किंतु परमेश्वर से अनजान आत्माएं उन्हे नहीं समझ पाती। परमेश्वर कबीर साहेब ने ढेरों चमत्कार भी हजारों लोगों की उपस्थिति में किए जो भी कबीर सागर में वर्णित हैं।
परमात्मा कबीर ने सिकंदर लोदी का जलन का रोग ठीक किया था। अतः सिकन्दर लोदी का धार्मिक पीर शेख तकी इस बात से ईर्ष्या करता था कि कबीर परमेश्वर को सिकन्दर लोदी महत्व देता है। कई बार सिकन्दर लोदी ने परमेश्वर कबीर साहेब को नीचा दिखाने का प्रयत्न किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कबीर परमेश्वर ने दो बार दो शवों को सभी के सामने जीवित किया जिनके नाम कमाल व कमाली रखे गए। शेख तकी के सिवाय सभी समझ गए थे कि कबीर साहेब कोई साधारण पुरुष नहीं हैं। कबीर साहेब सर्वशक्तिमान हैं किंतु शेख तकी अपनी ईर्ष्या पर ही अड़ा रहा।
एक बार शेख तकी ने ईर्ष्यावश यह झूठी अफवाह उड़ा दी कि कबीर साहेब भंडारे का आयोजन कर रहे हैं। तथा कबीर साहेब (जो एक जुलाहे की भूमिका निभा रहे थे) प्रत्येक भोजन करने वाले को एक स्वर्ण मोहर व दोहर (कीमती शॉल) भेंट करेगें। लेकिन कबीर परमेश्वर ने इस भंडारे को अंजाम भी दिया और केशव रूप बनाकर सतलोक से भंडारा लाकर 18 लाख व्यक्तियों को भोजन करवाने की पूरी अद्भुत लीला की जिसका वर्णन कबीर सागर में है।
कबीर जी कहाँ से आए थे?
सन् 1398 (विक्रमी संवत् 1455) ज्येष्ठ मास शुक्ल पूर्णमासी को ब्रह्ममूहूर्त (सूर्योदय से लगभग डेढ़ घण्टा पहले) में अपने सत्यलोक (ऋतधाम) से सशरीर आकर परमेश्वर कबीर (कविर्देव) बालक रूप बनाकर लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर प्रकट हुए थे। वहाँ से नीरू-नीमा नाम के दम्पत्ति उन्हें लेकर अपने घर काशी (वाराणसी) नगर ले गए थे। परमेश्वर कबीर जी 120 वर्षों तक मनुष्य जीवन में लीला करके सतज्ञान की वर्षा करके मगहर से सशरीर अपने मूल स्थान सतलोक वापस चले गए।
कबीर जी का मूल निवास कहाँ है?
सबसे पहले सतपुरुष कबीर जी (कविर्देव) अकेले थे, उस समय तक कोई रचना नहीं थी। परमेश्वर कबीर जी ने सर्वप्रथम चार अविनाशी लोकों अनामी लोक (अकह लोक), अगम लोक, अलख लोक और सतलोक की रचना वचन (शब्द) से की। परमात्मा कबीर चारों लोकों में चार उपमात्मक नामों अनामी लोक में अनामी पुरुष या अकह पुरुष, अगम लोक में अगम पुरुष, अलख लोक में अलख पुरुष, सतलोक में सतपुरुष से रहते हैं। कबीर जी सतलोक में अपनी प्रिय आत्माओं के साथ रहते हैं। सतलोक में रहकर ही उन्होंने पृथ्वी सहित अन्य सर्व सृष्टि की रचना की।
भगवान कबीर साहेब की मृत्यु एक रहस्य
अक्सर यह पूछा जाता है कि कबीर साहेब की मृत्यु कब और कैसे हुई? असल में कबीर साहेब नहीं मरे। जैसा कि वेदों में वर्णित है कि कबीर परमेश्वर कबीर कभी नहीं मरते वह अमर और अविनाशी परमात्मा है। पूर्व निर्धारित समय अनुसार जब परमात्मा की लीला का समय समाप्त हुआ और वे सतलोक जाने लगे तो उन्होंने एक और लीला की। कबीर परमेश्वर काशी से चलकर मगहर आये इस भ्रांति को तोड़ने के लिए कि जो मगहर में मरता है वह नरक जाता है व जो काशी में मरता है वह स्वर्ग जाता है। स्थान का महत्व नहीं बल्कि व्यक्ति के किये हुए कर्मों का महत्व होता है।
कबीर परमेश्वर के सभी शिष्य जो दोनों धर्मों के थे वे इकट्ठे हुए। मुसलमान राजा बिजली खा पठान और हिन्दू राजा वीर सिंह देव भी उनके शिष्यों में से थे जो युद्ध की पूरी तैयारी के साथ खड़े थे क्योंकि वे दोनों ही अपने-अपने तरीके से कबीर साहेब का अंतिम संस्कार करना चाहते थे। परमात्मा कबीर साहेब ने दोनों को झगड़ा न करने व शांतिपूर्वक रहने के सख्त आदेश दिए। कुछ समय बाद कबीर परमात्मा ने आकाशवाणी की कि वे सशरीर सतलोक जा रहे हैं। चादरें उठाई गईं वहाँ सुगन्धित फूलों के अतिरिक्त कुछ नहीं था। परमात्मा कबीर साहेब के आदेशानुसार दोनों धर्मों ने प्रेम से फूल आधे-आधे बांट लिए और आज भी मगहर में यादगार स्थित है। इस तरह वह सशरीर आये हुए परमात्मा सशरीर सतलोक चले गए।
पूर्ण तत्वदर्शी संत की पहचान
पूर्ण तत्वदर्शी संत की पहचान हमारे शास्त्रों में वर्णित है जैसे पवित्र गीता, पवित्र वेद, पवित्र कुरान शरीफ, पवित्र बाइबल, पवित्र गुरु ग्रंथ साहेब।
- गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में वर्णन किया है कि वह जो उल्टे लटके संसार रूपी वृक्ष के सभी भागों को विस्तार से बताएगा वह वेदों के अनुसार तत्वदर्शी संत है। गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में भी प्रमाण है कि तत्वदर्शी संत ओम-तत-सत (सांकेतिक मंत्र) तीन बार मे नाम उपदेश की प्रक्रिया पूर्ण करते हैं।
- यजुर्वेद अध्याय 19, मन्त्र 25,26 में बताया गया है कि तत्वदर्शी संत धार्मिक ग्रन्थों के गूढ़ रहस्य उजागर करता है।
- कबीर सागर, के बोध सागर के अध्याय जीव धर्म बोध में भी पूर्ण तत्वदर्शी संत की पहचान लिखी है।
- सामवेद संख्या 822 , अध्याय 3, कांड 5, श्लोक 8 में तत्वदर्शी संत के गुणों का वर्णन है।
गुरु ग्रंथ साहेब (राग मारू, महला 1) में भी प्रमाण है कि-
सुनहु ब्रह्मा, बिसनु, महेसु उपाए। सुने वरते जुग सबाए।।
इसु पद बिचारे सो जनु पुरा। तिस मिलिए भरमु चुकाइदा।।(3)
साम वेद, रुगु जुजरु अथरबणु। ब्रहमें मुख माइआ है त्रौगुण।।
ता की कीमत कहि न सकै। को तिउ बोले जिउ बुलाईदा।।(9)
कुरान शरीफ के सूरत फुरकान आयत 25:59 में ज्ञान को बाख़बर से पूछने को कहा गया है जो अल्लाह तक पहुंचने का सही मार्ग बताएंगे।
अधिक जानकारी के लिए देखें विश्व में सही पूर्ण सन्त की पहचान
परमेश्वर कबीर का कलियुग में अवतरण
वेदों में वर्णन है कि परमेश्वर चारों युगों में अलग अलग नामों से आते हैं। सतयुग में सत सुकृत नाम से, त्रेता युग में मुनींद्र नाम से, द्वापर में करुणामय नाम से और कलयुग में अपने वास्तविक नाम कबीर से प्रकट होते हैं। कलियुग में आज से 600 वर्ष पूर्व कबीर परमात्मा आये हुए थे। इसका प्रमाण भी हमें ऋग्वेद सूक्त 96 मन्त्र 17 में वर्णन है कि पूर्ण परमात्मा लीला करता हुआ बड़ा होता है और अपने तत्वज्ञान का प्रचार दोहों, शब्द, चौपाइयों के माध्यम से करता है, जिससे वह कवि की उपाधि भी धारण करता है।
देखें पूर्ण परमात्मा चारों युगों में आते हैं प्रमाण
कबीर परमात्मा आज भी उपस्थित हैं। वे सदैव ही तत्वदर्शी संत के रूप में विद्यमान रहते हैं। आज वे हमारे समक्ष जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के रूप में आये हैं। आप सभी से प्रार्थना है कि उन्हें पहचानें व उनकी शरण ग्रहण करें।
सार
सभी प्रमाण संत रामपाल जी महाराज पर खरे उतरते हैं तथा पूर्ण तत्वदर्शी संत की पहचान इंगित करते है कि तत्वदर्शी संत के रूप में इस पूरी पृथ्वी पर जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं, वे तार्किक तत्वज्ञान बताने वाले पूर्ण तत्वदर्शी संत हैं। उनकी शरण में आए और अपना जीवन सफल बनाएं।
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Hiralal Verma
संत रामपाल जी अन्य धर्मगुरुओं से कैसे भिन्न हैं?
Satlok Ashram
देखिए संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत हैं जो हमारे धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सतभक्ति विधि बताते हैं। पवित्र भगवद् गीता श्लोक 17:23 के अनुसार ॐ तत् सत् के भेद को उजागर करके पूर्ण मोक्ष की ओर अग्रसर करते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि संत रामपाल जी महाराज ही वह अवतार हैं जिनके बारे में कई विश्व प्रसिद्ध भविष्यवक्ताओं ने भविष्यवाणी की है। संत रामपाल जी महाराज ने ही पूरे विश्व के मानव को मानवता के एक सूत्र में बांधा है । संत रामपाल जी महाराज ही अपने आध्यात्मिक ज्ञान की शक्ति से सभी सामाजिक बुराइयों को मिटा रहे हैं।