संत गरीब दास जी महाराज ने किए थे अद्भुत चमत्कार


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संत गरीबदास जी महाराज का जन्म हरियाणा प्रांत के गांव छुड़ानी, जिला झज्जर में विक्रमी संवत 1774, सन 1717 में हुआ था। गरीबदास जी महाराज के पिता बलराम जी तथा माता रानी देवी थे। उनकी माता रानी देवी के कोई भाई नहीं था, जिस कारण अपने ससुर के विशेष अनुरोध पर बलराम जी छुड़ानी में अपने ससुराल में रहने लगे थे। संत गरीबदास जी महाराज लगभग 1400 एकड़ ज़मीन के एकमात्र वारिस थे। अपने ननिहाल में पले संत गरीबदास जी बचपन से ही अन्य पालियों के साथ गाय चराने खेत में जाया करते थे। एक दिन जब गरीबदास जी अन्य पालियों के साथ गाय चराने खेत में गए हुए थे उस समय कबीर परमेश्वर जी सतलोक से आकर संत गरीबदास जी को मिले। उन्हें तत्वज्ञान समझाया। नाम उपदेश देकर सर्व ब्रह्मांडों की सैर कराई व सतलोक लेकर गए। 

कबीर परमेश्वर जी ने संत गरीबदास जी की दिव्य दृष्टि खोल दी थी। यही ज्ञान संत गरीबदास जी महाराज जी ने दादूपंथी संत गोपाल दास जी के सहयोग से अमर सतग्रंथ साहेब के रूप में लिपिबद्ध कराया। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा में अनेकों चमत्कार किए जिनका वर्णन एक आलेख में असंभव है किन्तु उन चमत्कारों की एक झलक पाने के लिए आइए जानते हैं गरीबदास जी महाराज जी के द्वारा किए कुछ मुख्य चमत्कार। 

हरलाल जाट के साथ हुआ चमत्कार

हरियाणा प्रांत के जिला झज्जर के बेरी गांव में एक हरलाल जाट नामक किसान रहता था। किसान का सारा परिवार धार्मिक विचारों का था। हरलाल जाट एक बार एक भगवाधारी साधु के सत्संग में गए और उनसे परिचय पूछा। साधु का जीवन में भक्ति ही एकमात्र उद्देश्य है यह जानकर हरलाल ने उनसे अपने घर में रहने का अनुरोध किया जिससे साधु को भक्ति का पर्याप्त अवसर प्राप्त होगा और हरलाल के परिवार को सेवा मिल जाएगी। साधु ने सहमति प्रकट की एवं हरलाल के घर रहने लगा। वह वहां भोजन करता और बस आराम करता। कुछ समय पश्चात उसकी मृत्यु हो गई जिसका अंतिम संस्कार कर हरलाल ने उसकी यादगार अपने खेतों में बना दी।

हरलाल किसान थे जो अपना सामान बैलगाड़ियों से एक मंडी से दूसरी मंडी लेकर आते जाते थे। गांव बेरी से मंडी का रास्ता गांव छुड़ानी से होता हुआ जाता था। एक दिन तड़के 4 बजे हरलाल जी नजफगढ़ मंडी से सामान लेकर अपने गांव बेरी लौट रहे थे। हरलाल जी का एक बैल आलसी और अकर्मण्य था जो कुछ ही समय चलने के बाद बैठ जाया करता। छुड़ानी से गुजरते समय भी वह बैठ गया तब हरलाल ने उसे डंडे मारकर पुनः काम में लगाना चाहा। गरीबदास जी महाराज उस समय कुंए पर नहा रहे थे। उन्होंने हरलाल को ना मारने के लिए कहा इस पर हरलाल ने बैल के आलसी एवं कामचोर होने की शिकायत की। तब गरीबदास जी महाराज जी बैल अए पास आए और उस बैल के कानों में कुछ कहा तत्पश्चात बैल फुर्ती से खड़ा हुआ और बेरी तक एक भी बार नहीं रुका। हरलाल जाट को बहुत आश्चर्य हुआ। वे दूसरे दिन सुबह सुबह गांव छुड़ानी के उसी कुएं पर उसी समय जा पहुंचे। उन्हें आशा थी कि वे महापुरुष उसी समय स्नान के लिए आएंगे। 

गरीबदास जी आए और हरलाल से पूछा क्या वे बैल के विषय में जानने आए हैं। हरलाल के सहमति प्रकट करने पर उन्होंने बताया कि यह बैल उनके घर में रहा, वह साधु है जिसने वर्षों बैठकर हरलाल के घर पर भोजन और सेवा प्राप्त की। गरीबदास जी ने उस पाखंडी साधु को सचेत किया था कि केवल भोजन करके पड़े रहने से और पूर्ण परमात्मा की भक्ति न करने से आपको लाभ नहीं होगा बल्कि धर्मराय के दरबार में हिसाब देना होगा। 

ऐसा सुनकर वह पाखंडी साधु नाराज़ हुआ और उसने बात नहीं मानी थी। गरीबदास जी महाराज ने बताया कि बैल के कान में उन्होंने कहा था कि याद कर जब आपको मैंने समझाया था तब आप नहीं माने अब आपको हरलाल का कर्ज़ तो कैसे भी उतारना ही पड़ेगा चाहे प्रसन्नतापूर्वक उतारो अथवा लाठी खाकर। ऐसा सुनते ही वह बैल अपने कार्य में जुट गया था। गरीबदास जी ने यह भी बताया कि वह साधु किसी जन्म में कबीर साहेब का शिष्य था जो बाद में शास्त्रविरुद्ध साधनाओं में लीन हो गया और अब जन्म मरण का कष्ट उठा रहा है। तब हरलाल जाट ने गरीबदास जी से प्रार्थना की कि वे उसे शरण में ले लें। हरलाल ने घर बार को छोड़कर भक्ति में लगना चाहा। तब संत गरीबदास जी महाराज ने गृहस्थ जीवन में रहकर भक्ति का उपदेश दिया और कहा -

गरीब, डेरे डांडै खुश रहो, खुसरे लहें ना मोक्ष | 
ध्रुव - प्रहलाद पार हुए, फिर डेरे (घर) में क्या दोष ||
गरीब, गाड़ी बाहो घर रहो, खेती करो खुशहाल |
साईं सिर पर राखिए, सही भगत हरलाल ||

रामराय को विष्णु रूप में दर्शन देकर सतज्ञान समझाना

एक समय रामराय नामक किसान लुधियाना, पंजाब में रहता था। संत गरीबदास जी महाराज की महिमा सुनकर वह उनके दर्शनार्थ छुड़ानी चला आया। गरीबदास जी महाराज की साधारण वेशभूषा को देखकर रामराय ने नहीं पहचाना और संत गरीबदास जी के विषय में पूछा। उस समय भी यह आम धारणा थी कि संत साधू भगवा वेश में होंगे अथवा जटाएं धारण किए होंगे। तब गरीबदास जी महराज ने उसके मन की बात जानकर उसे अपने साथ आने को कहा। गरीबदास जी महाराज के पहुंचते ही सभी भक्तों ने उन्हें दंडवत प्रणाम किया। 

यह देखकर रामराय विस्मित हो गया। गरीबदास जी महाराज सभी भक्तों को सेवा देकर स्नान के लिए गए। गरीबदास जी ने स्नान के उपरांत रामराय को आवाज़ देकर धोती बांधने में मदद करने के लिए कहा। रामराय उपस्थित हुआ और ज्यों ही धोती में गांठ लगाने का प्रयास करता वह गरीबदास जी महाराज के शरीर से आरपार हो जाती। 

बार-बार प्रयास करने पर भी जब रामराय धोती में गांठ नहीं लगा पाया तब गरीबदास जी महाराज ने रामराय के गांव में प्रचलित उसके नाम झुमकरा से पुकारकर पूछा कि गरीबदास जी यदि मामूली से किसान हैं तो धोती की गांठ क्यों नहीं लग रही। जैसे ही रामराय ने सिर उठाकर देखा तो उसे देव भगवान विष्णु जी के दर्शन गरीबदास जी महाराज के रूप में हुए। तब उसने गरीबदास जी के चरणों में स्वयं को अर्पित किया एवं ज्ञान उपदेश प्राप्त किया। गरीबदास जी महाराज ने रामराय को परम अक्षर ब्रह्म कबीर साहेब से अवगत करवाया।

गरीब, हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद न पाया, काशी माहें कबीर हुआ ।।

राठियों और दलालों में मित्रता एवं धाड़य की समाप्ति

हरियाणा प्रांत में एक गलत परम्परा चली आ रही थी जिसमें एक गोत्र के जाट दूसरे गोत्र के जाटों के गांव पर हमला करके उनके पशुधन एवं अन्य धन लूटकर ले जाते थे। जो समूह लूटने जाता था उसे धाड़य कहते थे। जिला झज्जर के गांव छारा में दलाल एवं आसपास राठी गोत्र के जाट रहते थे। राठी गोत्र के जाट संख्या में अधिक थे एवं दलाल गोत्र वालों को धाड़य बनाकर लूट ले जाते थे। राजाओं एवं नवाबों से शिकायत का भी कोई फल नहीं निकला। सभी ने परेशान होकर संत गरीबदास जी महाराज से मदद की अर्ज की। गरीबदास जी महाराज ने दलालों से कहा कि अबकी बार जब राठी आएं तो लाठी और जैली लेकर मुकाबले के लिए तैयार रहना। करना कुछ भी नहीं किंतु खड़े रहने के लिए कहा। 

जब धाड़य किसी गोत्र पर चढ़ाई करते तो तिथि बताई जाती थी। जिस दिन धाड़य आने थे सभी लोग लाठी, जैली लेकर डरते डरते खड़े हो गए। वे संख्या में भी काफी कम थे किंतु जैसे ही राठियों ने उन्हें देखा वे सभी अपनी चादर, लाठी आदि छोड़कर भाग खड़े हुए। राठियों को दलालों के पीछे भारी सेना दिखाई पड़ रही थी। गरीबदास जी महाराज के आदेश से सभी गंधर्व दलालों की मदद के लिए जा खड़े हुए। दलाल आश्चर्यचकित रह गए कि हमारे बिना कुछ कहे या किये वे कैसे भाग गए। गांव छारा के सैकड़ों लोग गरीबदास जी महाराज का धन्यवाद करने गए। तब गरीबदास जी महाराज ने दोनों गोत्रों के जाटों को प्रेम और भाईचारे से रहने का आशीर्वाद दिया और राठियों ने इसके बाद से कभी दलालों को नहीं लूटा। इस पर गरीबदास जी महाराज की वाणी है -

सुरपति चढ़े इंद्र अनुरागी | अनंत पदम गंधर्व बड़भागी ||

नौ योगेश्वरों और तैंतीस करोड़ देवताओं को भंडारा करवाना

एक समय गांव छुड़ानी में नौ योगेश्वर आकाश मार्ग से संत गरीबदास जी महाराज के खेत में उतरे। वे परीक्षा लेने की योजना से आए थे। वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को संत गरीबदास जी महाराज को संदेश प्राप्त हुआ कि नौ योगेश्वर ज्ञान चर्चा के लिए प्रकट हुए हैं। तब गरीबदास जी पहुंचे और उनके पूछने पर योगेश्वरों ने कहा कि कल से चर्चा प्रारंभ करेंगे। तब गरीबदास जी महाराज ने भोजन का अनुरोध किया। तब योगेश्वरों ने दिन में केवल एक बार भोजन करने की बात कही और भोजन सामग्री की मांग की। 

गरीबदास जी महाराज ने भोजन के लिए सामग्री जैसे चावल, आटा, घी, दूध आदि रखवा दिया और गांव लौट आए। दूसरे दिन सुबह उपस्थित हुए। योगेश्वरों ने भोजन तैयार किया और पंक्ति बनाकर बैठ गए। एक थाली पर गरीबदास जी महाराज को बैठने का अनुरोध किया। गरीबदास जी ने योगेश्वरों से अतिथि होने पर पहले भोजन करने की प्रार्थना की। योगेश्वरों ने खड़े होकर शंख बजाया और देखते ही देखते आकाश मार्ग से 33 करोड़ देवता आकर भोजन के लिए बैठ गए। तब योगेश्वरों ने कहा कि यदि सभी को भोजन नहीं कराया तो वे छुड़ानी गांव को भस्म कर देंगे। 

ऐसी स्थिति में गरीबदास जी महाराज ने विनम्र स्वर में कहा कि आपके मुख से गांव उजाड़ने की बात शोभा नहीं देती किंतु यदि यही शर्त है तो आप इस गांव की घास भी भस्म नहीं कर पाएंगे। गरीबदास जी ने अपनी थाली के ऊपर एक स्वच्छ चादर डाल दी और अपने शिष्य धारीदास को कहा कि वे लंगर शुरू करवाएं। गरीबदास जी ने धारीदास को आशीर्वाद दिया और जैसे ही वह चादर के नीचे से थाली निकालते तो वह अपने आप जाकर पंक्ति में बैठे देवताओं के सामने लग जाती। वहां उपस्थित सभी महान आत्माओं एवं नौ योगेश्वरों ने भोजन कर लिया। सबको भोजन करवाने के बाद भी चादर के नीचे गरीबदास जी की थाली ज्यों की त्यों रही। तब गरीबदास जी ने उनसे अन्य आवश्यकता के विषय में पूछा तो नौ योगेश्वर गरीबदास जी को कहकर आकाश मार्ग से वापस चले गए कि जैसा आपके बारे में सुना था आप उससे भी कहीं अधिक सिद्धि वाले हैं।

मनीराम के मन की बात जानना

हरियाणा प्रांत में मनीराम नाम के एक विप्र हुए जो रामायण कथा का वाचन करके अर्थोपार्जन किया करते थे। रामायण की कथा लगभग दस ग्यारह दिनों में पूर्ण हो जाती है। मनीराम जी ने वह कथा अधिक धन उपार्जन के उद्देश्य से अधिक दिनों अर्थात तीस दिनों में संपूर्ण की। तीस दिनों की दक्षिणा के रूप में मनीराम जी को कुल तीस रुपए प्राप्त हुए। रामायण की कथा के समापन के दिन गांव के कुछ उद्दंड व्यक्तियों ने एक चंपाकली नामक नर्तकी को बुलाकर कार्यक्रम आयोजित करवा लिया और उस नर्तकी को कुछ ही घंटो में कुल पांच सौ रुपए प्राप्त हुए। यह देखकर मनीराम के दुख का वार पार न (ठिकाना) रहा। विप्र महोदय दुखी होकर उस स्थान से चल पड़े। 

मनीराम को यह ज्ञात था कि गरीबदास जी महाराज परम संत हैं अतः वे गांव छुड़ानी चल पड़े। उस समय गरीबदास जी अपने अन्य शिष्यों के साथ बैठे हुए थे मनीराम को देखते ही गरीबदास जी ने वाणी कही -

गरीब, फूटि आंख विवेक की, अंधा है जगदीश | 
चंपाकली को पांच सौ, मनीराम को तीस ||

यह सुनते ही मनीराम जी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि गरीबदास जी महाराज पूरी वृत्ति से, पहले से ही परिचित हैं। इस वाणी का आशय यह हुआ कि जिस जगदीश नाम के व्यक्ति ने मनीराम की कथा के अंतिम दिन नर्तकी को बुलाकर अभद्र कार्यक्रम कराया वह महापाप का भागी है। मनीराम जी ने ग्यारह दिन की कथा को दक्षिणा के लालच में तीस दिन तक खींचा इस बात की कुछ शरारती तत्वों को जानकारी थी, जिन्होंने चंपाकली को बुलाया। उसके बाद गरीबदास जी महाराज ने मनीराम को भी उसके लालच के लिए सचेत किया और कथा पाठ करने का अधिकारी न होना बताया। मनीराम को सत्यभक्ति से अवगत कराया एवं नकली गुरु की दुर्गति से परिचित कराया।

गरीब, जो मांगै सो भड़वा कहिए, दर - दर फिरै अज्ञानी | 
जोगी जोग सम्पूर्ण जाका, मांग न पीवै पानी ||

नाथ साधु मस्तनाथ को सत्य भक्ति पर लगाया 

मस्तनाथ एक नाथ पुरुष थे जिनके पास कई सिद्धियाँ थीं। वे गरीबदास जी महाराज के गांव गए और उनके पास जाकर उनके समक्ष सिद्धियों का प्रदर्शन करने लगे। गरीबदास जी महाराज ने उनसे बैठकर ज्ञान चर्चा करने के लिए कहा। किंतु मस्तनाथ सिद्धियों के गर्व में थे और उन्होंने छुड़ानी में एक तरफ आग लगा दी। गरीबदास जी महाराज ने छुड़ानी की अग्नि बुझा दी और वह अग्नि स्वामी मस्तनाथ जी के मठ में लग गई। 

मस्तनाथ जी ने समाधिस्थ होकर देखा तो अग्नि मठ में लगी पाई। मस्तनाथ जी के प्रार्थना करने पर संत गरीबदास जी महाराज ने अग्नि बुझाई और मस्तराम जी को सत्यज्ञान का उपदेश दिया। मस्तनाथ जी ने उसके बाद कभी किसी का अहित नहीं किया बल्कि समाजोपयोगी कार्य किए।

सूखा पड़ने पर गरीबदास जी महाराज ने की रक्षा

एक समय गांव छुड़ानी के आसपास अनावृष्टि से अकाल पड़ गया। आसपास के सभी लोगों ने गरीबदास जी से इस दुर्भिक्ष से बचाने की प्रार्थना की और तब गरीब दास जी महाराज ने सबकी प्रार्थना पर इंद्र देव से वर्षा कराई और सूखे के प्रभाव को समाप्त किया। राजा इंद्र की 96 करोड़ मेघमालाएं हैं और प्रत्येक मेघमाला में एक करोड़ बादल हैं। इसके लिए गरीबदास जी महाराज ने वाणी कही है -

इंद्र दल बादल दरियाई | छ्यानवैं कोटि की हुई चढ़ाई ||

गांव छुड़ानी में गंगा का लाना

एक समय गरीबदास जी महाराज की माता ने गंगा स्नान की इच्छा व्यक्त की। गांव के अन्य व्यक्ति गंगा स्नान करके आ चुके थे। तब गरीबदास जी महाराज ने अपनी माता के लिए गंगा नदी को गांव छुड़ानी, जिला झज्जर में प्रकट कर दिया। गांव छुड़ानी के पश्चिम में एक तालाब के पास ही गरीबदास जी महाराज अपनी माता को लेकर गए, साथ ही अन्य लोग भी चमत्कार देखने चल पड़े। वहां पहुंचते ही गरीबदास जी ने गंगा प्रकट कर दी। सभी स्नान करने लगे और अचानक एक धोती और एक लोटा गरीबदास जी के हाथ लगा जो उन्होंने किनारे रख दिया।

स्नान के उपरांत गरीबदास महाराज ने सभी से आंखें बंद करने का अनुरोध किया और पुनः सभी ने अपने आप को सूखे स्थान पर पाया। तीसरे दिन बाद जब छुड़ानी के अन्य लोग वापस आए और एक भक्त ने कहा कि उसका धोती और लोटा गंगा नदी पर छूट गया था। तब गरीबदास जी महाराज ने वही धोती और लोटा दिया तो वह आश्चर्यचकित रह गए। छुड़ानी में स्थित उस जोहड़ को आज भी गंगा जोहड़ के नाम से जाना जाता है।

श्राद्ध निरर्थक होने के विषय में शिष्य को उपदेश

गरीबदास जी महाराज अपने सत्संगों में श्राद्ध कर्म के शास्त्रविरुद्ध साधना होने का उपदेश दिया करते थे। एक दिन गरीबदास जी महाराज के एक शिष्य ने दो दिन अपने माता पिता का श्राद्ध किया। दूसरे दिन जब वह संत गरीबदास जी महाराज के पास आया तो गरीबदास जी महाराज दो व्यक्तियों का भोजन लेकर उसे एक खेत के पास ले चले। वहां पहुंचकर गरीबदास जी महाराज ने ज्यों ही भक्त के माता व पिता का नाम पुकारा त्यों ही वे गीदड़ और गीदड़ी के रूप में झाड़ियों से दौड़ते भागते चले आए और भोजन प्राप्त किया। यह देखकर शिष्य की आंखें खुल गईं कि माता पिता तो दूसरी योनि में हैं जिनका मात्र एक दिन श्राद्ध करने पर कोई लाभ नहीं है बल्कि यह तो शास्त्र विरुद्ध साधना है। 

सतग्रंथ साहेब की रचना 

संत गरीबदास जी महाराज के द्वारा अनेकों चमत्कार किए गए हैं। उनमें से एक चमत्कार है सदग्रंथ साहेब की रचना करना। परमात्मा कबीर जी द्वारा प्राप्त दिव्यदृष्टि से संत श्री गरीबदास जी महाराज सृष्टि के आदि तथा अंत के ज्ञाता थे। गरीब दास जी महाराज को जब परमेश्वर कबीर जी ने पुनः धरती पर भेजा तो उनके अंतःकरण में परमेश्वर की महिमा की यथार्थ वाणियाँ साथ भेजीं। यह वाणियाँ गरीब दास जी महाराज जब भी बोलते, जो आम लोगों के समझ से परे थीं। लोगों को लगता कि वे ज़िंदा बाबा का जंतर मंतर वाला दूध पीकर बौरा गए हैं। एक समय गांव छुड़ानी में एक दादूपंथी संत गोपाल दास जी आए तब गांव वालों ने उनसे विनय की और गरीबदास जी महाराज के साथ हुई घटना के विषय में बताया। 

तब गोपाल दास जी गरीबदास जी से मिले और उनसे पूछा तब संत गरीबदास जी महाराज ने परमेश्वर की अमरवाणी उच्चारित की और बताया कि उन्हें  मिलने वाले स्वयं परमेश्वर कबीर जी थे जो उन्हें सतलोक लेकर गए। गोपाल दास जी समझ गए कि बालक परमेश्वर कबीर जी से मिलकर आया है क्योंकि इसी प्रकार दादू जी को भी कबीर परमेश्वर ने सत्यलोक के दर्शन कराए थे। तब गोपाल दास जी गरीबदास जी के पीछे पीछे चल पड़े और उनसे विनती की कि वे इन वाणियों को लिपिबद्ध करवा दें। गरीबदास जी ने प्रार्थना स्वीकार की और एक जांडी के पेड़ के नीचे बैठकर वाणियाँ लिखवाईं। लगभग छह महीने में अमर सतग्रंथ साहेब तैयार हुआ जिसमें 24,000 वाणियाँ हैं जो किसी भी सदग्रंथ की तुलना में सर्वाधिक हैं। 

मालखेड़ी में तंबाखू निषेध का चमत्कार

गरीबदास जी महाराज ने अपने सत्संगों और अमर ग्रन्थ में बताया है कि तंबाकू गाय के रक्त से उपजी सामग्री है जिसका उपयोग सर्वथा त्याज्य है। आदरणीय संत गरीबदास जी जिस भी शिष्य को नाम दीक्षा देते उससे हुक्का, बीड़ी, तंबाकू का प्रयोग न करने का वचन भरवाते थे। एक बार संत गरीबदास जी महाराज हरियाणा के जींद जिले में जा रहे थे। मार्ग में गांव मालखेड़ी के खेत थे जहां गेहूं की फसल लहलहा रही थी। अचानक उनका घोड़ा रास्ता छोड़कर फसल के बीच चलने लगा। 

खेतों में बैठे फसल के रखवाले किसान गरीबदास जी को पीटने के उद्देश्य से लाठियां लेकर दौड़े किंतु गरीबदास जी के समक्ष पहुंचते ही सब मूर्तियों की भांति जड़वत हो गए। सभी को यह ज्ञात हो गया कि गरीबदास जी साधारण पुरुष नहीं हैं। सभी ने रोते हुए क्षमा याचना की और तब गरीबदास जी ने उनके अभद्र व्यवहार के लिए उन्हें उपदेश दिया। गरीबदास जी महाराज ने उनसे पूछा कि आपने इस खेत में इस फसल से पहले क्या बोया था? रखवालों ने उत्तर दिया ज्वार। गरीबदास जी ने पुनः प्रश्न किया कि ज्वार से पहले क्या बोया था तब रखवालों ने उत्तर दिया तंबाकू। इस पर गरीबदास जी महाराज ने कहा उस तंबाकू की दुर्गंध अब तक इस खेत से आ रही है जिस कारण घोड़ा विचलित होकर खेतों में घुस गया। 

गरीबदास जी ने उपदेश दिया कि जिस तंबाकू से पशु भी दूर रहते हैं आप यदि उसका सेवन करते हैं तो आप पशु से भी अधिक निकृष्ट हैं। हुक्का, चिलम एवं तंबाकू ना पीने और ना उगाने का उपदेश तथा निर्देश देकर गरीबदास जी ने वहां से प्रस्थान किया। उनके जाते ही रखवालों ने हुक्का भरना चाहा वह तुरंत टूट गया। जितनी भी चिलमें थीं सब फूट गईं और सारे गांव में गरीबदास जी की लीला का समाचार फैल गया। आज तक गांव मालखेड़ी में लोग तंबाकू का सेवन नहीं करते और उसे उगाते भी नहीं।

संत गरीबदास जी की आत्मा पुनः शरीर में प्रकट हुई 

आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज कबीर परमेश्वर द्वारा बताए तत्वज्ञान के आधार पर सत्संग किया करते थे और परमेश्वर की प्यारी आत्माओं को तत्वज्ञान से परिचित कराया करते थे। प्रत्येक मास की पूर्णिमा को संत गरीब दास जी महाराज सत्संग किया करते थे। संत गरीब दास जी के सत्संग का लाभ लेने के लिए दूर-दूर से भक्त आया करते थे। ऐसे ही एक भक्त थे भूमड़ सैनी जो मेरठ- सहारनपुर से अद्धभुत ज्ञान को सुनने हर पूर्णमासी को  सहारनपुर से पैदल करीब दौ सो किमी चलकर छुडानी गाँव आते और सत्संग सुनकर और सेवा करके वापस घर लौट जाते। गरीबदास जी महाराज उन्हें इतना कष्ट न उठाने और एकाध महीने आगे पीछे आने के लिए कहा करते थे। किन्तु वह भगत नहीं माने। एक दिन गरीबदास जी महाराज ने कहा कि अबसे आप यहां मत आइयेगा। यह आदेश सुनकर भूमड़ भक्त रोने लगा, तब गरीबदास जी ने कहा कि मैं ही सहारनपुर आऊँगा । 

वर्ष 1778 में भादों महीने के शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन गरीबदास जी महाराज ने शरीर छोड़ दिया और सतलोक चले गए। छुड़ानी में उनका अंतिम संस्कार किया गया जहाँ पर आज भी उनका स्मारक छतरी साहेब बना हुआ है। इधर लगातार छह महीने बीत जाने पर भी गरीबदास जी के ना आने पर भूमड़ भक्त ने रो रो कर, गरीबदास जी महाराज को पुकारना शुरू कर दिया। गरीबदास जी आश्चर्यजनक रूप से भूमड़ भक्त के पास पहुंचे और उनके ही बगीचे में कुटिया बनवाकर रहने लगे। लगभग 35 वर्षों तक गरीबदास जी महाराज वहां रहे, सत्संग किया और बहुत से लोगों को ज्ञान उपदेश दिया। संत गरीबदास जी महाराज से नामदीक्षा लेकर हिन्दू व मुस्लिम दोनों धर्मों के लोगों ने भक्ति की। 

एक दिन गरीबदास जी महाराज पुनः शरीर त्यागकर सतलोक चले गए। इसकी सूचना गाँव छुड़ानी में भिजवाई गई। यह सुनकर छुड़ानी वालों के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा। छुड़ानी से दो घुड़सवार भेजे गए जिन्होंने पार्थिव शरीर गरीबदास जी का ही होने की पुष्टि की। छुड़ानी में एक बार गरीबदास जी महाराज का अंतिम संस्कार हो ही चुका था अतः इस बार उनका अंतिम संस्कार सहारनपुर में ही किया गया। सहारनपुर में उनकी एक यादगार छतरी साहेब बनाई गई जोकि आज भी मौजूद है। यह यादगार चिलकाना रोड से कलसिया सड़क निकलती है उस पर आधा किलोमीटर चलकर बाईं ओर मौजूद है। पास में ही श्री लालदास जी महाराज का प्रसिद्ध बाड़ा है। 

संत गरीबदास जी महाराज जी के बोध दिवस पर विशेष महासमागम का हो रहा है आयोजन

जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज जी बोध दिवस पर 2-3-4 मार्च 2023 को तीन दिवसीय महासमागम का आयोजन किया जा रहा है। इस पवित्र अवसर पर तीन दिवसीय अखण्ड पाठ, विशाल भंडारा, रक्तदान शिविर, दहेज मुक्त विवाह, निःशुल्क नाम दीक्षा तथा विशाल सत्संग समारोह जैसे भव्य कार्यक्रम होंगे। जिसमें आप सभी सपरिवार सादर आमंत्रित हैं।

इस भव्य कार्यक्रम का सीधा प्रसारण 04 मार्च 2023 को सुबह 09:15 बजे से साधना टीवी पर और सुबह 09:30 बजे से पॉपकॉर्न टीवी पर होगा। इस विशेष कार्यक्रम का सीधा प्रसारण आप हमारे सोशल मीडिया Platform पर भी देख सकते हैं। हमारे फेसबुक पेज - Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj, यूट्यूब चैनल - Sant Rampal Ji Maharaj पर और ट्विटर अकाउंट - @SaintRampalJiM के माध्यम से भी आप इस भव्य कार्यक्रम का विशेष प्रसारण देख सकते हैं।