जीने की राह


जीने की राह

 

उपरोक्त कथाओं का सारांश:-

1. ब्रह्म साधना अनुत्तम (घटिया) है।

2. तीन ताप को श्री कृष्ण जी भी समाप्त नहीं कर सके। श्राप देना तीन ताप (दैविक ताप) में आता है। दुर्वासा के श्राप के शिकार स्वयं श्री कृष्ण सहित सर्व यादव भी हो गए।

3. श्री कृष्ण जी ने श्रापमुक्त होने के लिए यमुना में स्नान करने के लिए कहा, यह समाधान बताया था। उससे श्राप नाश तो हुआ नहीं, यादवों का नाश अवश्य हो गया। विचार करें:- जो अन्य सन्त या ब्राह्मण जो ऐसे स्नान या तीर्थ करने से संकट मुक्त करने की राय देते हैं, वे कितनी कारगर हैं? अर्थात् व्यर्थ हैं क्योंकि जब भगवान त्रिलोकी नाथ द्वारा बताए समाधान यमुना स्नान से कुछ लाभ नहीं हुआ तो अन्य टट्पँुजियों, ब्राह्मणों व गुरूओं द्वारा बताए स्नान आदि समाधान से कुछ होने वाला नहीं है।

4. पहले श्री कृष्ण जी ने दुर्वासा के श्राप से बचाव का तरीका बताया था। उस कढ़ाई को घिसाकर चूर्ण बनाकर प्रभास क्षेत्रा में यमुना नदी में डाल दो। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी, बाँस भी रह गया, 56 करोड़ यादवों की बाँसुरी भी बज गई।

सज्जनो!

वर्तमान में बुद्धिमान मानव है, शिक्षित है। मेरे द्वारा (सन्त रामपाल दास द्वारा) बताए ज्ञान को शास्त्रों से मिलाओ, फिर भक्ति करके देखो, क्या कमाल होता है।

प्रसंग आगे चलाते हैं:-

1. तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी) की भक्ति करना व्यर्थ सिद्ध हुआ।

2. गीता ज्ञान दाता ब्रह्म की भक्ति स्वयं गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में अनुत्तम बताई है। उसने गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में उस परमेश्वर अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जाने को कहा है। यह भी कहा है कि उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा।

3. गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में संसार रूपी वृक्ष का वर्णन है तथा तत्वदर्शी सन्त की पहचान भी बताई है। संसार रूपी वृक्ष के सब हिस्से, जड़ें (मूल) कौन परमेश्वर है? तना कौन प्रभु है, डार कौन प्रभु है, शाखाऐं कौन-कौन देवता हैं? पात रूप संसार बताया है। 

इसी अध्याय 15 श्लोक 16 में स्पष्ट किया है कि:-

1. क्षर पुरूष (यह 21 ब्रह्माण्ड का प्रभु है):- इसे ब्रह्म, काल ब्रह्म, ज्योति निरंजन भी कहा जाता है। यह नाशवान है। हम इसके लोक में रह रहे हैं। हमें इसके लोक से मुक्त होना है तथा अपने परमात्मा कबीर जी के पास सत्यलोक में
जाना है।
2. अक्षर पुरूष:- यह 7 संख ब्रह्माण्डों का प्रभु है, यह भी नाशवान है। हमने इसके 7 संख ब्रह्माण्डों के क्षेत्रा से होकर सत्यलोक जाना है। इसलिए इसका टोल टैक्स देना है। बस इससे हमारा इतना ही काम है।

गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि:-

उत्तमः पुरूषः तू अन्यः परमात्मा इति उदाहृतः।
यः लोक त्रायम् आविश्य विभर्ति अव्ययः ईश्वरः।।

सरलार्थ:- गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में कहे दो पुरूष, एक क्षर पुरूष दूसरा अक्षर पुरूष हैं। इन दोनों से अन्य है उत्तम पुरूष अर्थात् पुरूषोत्तम, उसी को परमात्मा कहते हैं जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है। वह वास्तव में अविनाशी परमेश्वर है। (गीता अध्याय 15 श्लोक 17) गीता अध्याय 3 श्लोक 14.15 में भी स्पष्ट किया है कि सर्वगतम् ब्रह्म अर्थात् सर्वव्यापी परमात्मा, जो सचिदानन्द घन ब्रह्म है, उसे वासुदेव भी कहते हैं जिसके विषय में गीता अध्याय 7 श्लोक 19 में कहा है। वही सदा यज्ञों अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों में प्रतिष्ठित है अर्थात् ईष्ट रूप में पूज्य है।

पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करो। इस प्रकार जीने की राह पर चलकर संसार में सुखी जीवन जीऐं तथा मोक्ष रूपी मंजिल को प्राप्त करें।


 

FAQs : "जीने की राह"

Q.1 'जीने की राह' के बारे में आप क्या जानते हैं?

"जीने की राह" संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखी गई एक धार्मिक पुस्तक है। यह पुस्तक संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा समाज सुधार करने के लिए एक बहुमूल्य योगदान है। इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य अपना मूल उद्देश्य भूल चुके मनुष्यों को मनुष्य जीवन का एकमात्र लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति करना याद दिलाना है। इस पुस्तक में जीवन जीने के बारे में गूढ़ रहस्य और शास्त्रों के अनुसार चलने की सीख दी गई है।

Q.2 कोई व्यक्ति तीन तापों से कैसे मुक्ति प्राप्त कर सकता है?

मनुष्य तीन तापों से बचने के लिए अपने धार्मिक गुरुओं और उनकी बताई गई विधि से समाधान खोजते की चेष्टा करता है। परंतु फिर भी तीन तापों के प्रभाव से पूर्णतया बच नहीं पाता क्योंकि कोई भी आंशिक और अज्ञानी गुरु ऐसा कर पाने में समरथ ही नहीं है। वर्तमान में पूर्ण परमेश्वर कबीर जी स्वयं संत रामपाल जी महाराज जी के चोले में लीला करने पृथ्वी पर आए हुए हैं। केवल संत रामपाल जी महाराज जी ही सभी मनुष्यों को उनके तीनों तापों, पापों, अभिशाप और श्राप को पूर्णतया समाप्त करने और इनका समाधान करने में सक्षम हैं।

Q. 3 श्रीमद्भगवद्गीता जी में तीन गुण क्या हैं?

तीन गुणों में रजोगुण ब्रह्मा जी, सतोगुण विष्णु जी और तमोगुण शिव जी हैं। श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 श्लोक 12-15 में इन गुणों की पूजा करने वालोें को दूषित कर्म करने वाले मनुष्यों में नीच कहा है और इनकी पूजा को भी व्यर्थ बताया गया है तथा इससे कोई लाभ प्राप्त नहीं हो सकता। श्रीमद्देवी भागवत पुराण अध्याय 5 श्लोक 8 में इन तीन गुणों का वर्णन विस्तार से किया गया है।

Q.4 पवित्र गीता जी के अनुसार पूजा के योग्य कौन है?

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 15 श्लोक 16 और 17 में तीन प्रकार के भगवान बताए गए हैं। इसमें यह वर्णन किया गया है कि सर्वोच्च ईश्वर उत्तम पुरुष है और वे ही सब लोकों में प्रवेश करके सबका पालन-पोषण करता है। अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता जी का ज्ञानदाता ब्रह्म काल अर्जुन को कहता है कि तू केवल उस सर्वोच्च ईश्वर की शरण में जा। केवल पूर्ण परमात्मा ही शांति और मोक्ष प्रदान कर सकता है और केवल वे ही पूजनीय हैं। वह पूर्ण परमात्मा कोई और नहीं बल्कि कबीर साहेब जी हैं।


 

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Rakhi Varshney

वर्तमान में हम सच्चे संत को कैसे पहचान सकते हैं? सच्चे संत की पहचान क्या है? हर संत अपनी पूजा विधि को सही बताता है?

Satlok Ashram

हमारे शास्त्रों में सच्चे गुरु की पहचान बताई गई है। गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 के अनुसार जो संत उल्टे लटके वृक्ष के सभी विभागों को जड़ साहित बता देगा, वही सच्चा संत है। जबकि अन्य नकली संत ऐसा ज्ञान बताने में असमर्थ हैं। उन्हें तो यह भी नहीं मालूम की तीन गुण क्या हैं, मोक्ष कैसे संभव है, परमात्मा कौन है, पवित्र गीता जी में क्या गूढ़ ज्ञान बताया गया है? वर्तमान में इस पृथ्वी पर अगर कोई सच्चा संत है तो वह केवल संत रामपाल जी महाराज जी हैं। केवल वे ही हमारे पवित्र शास्त्रों अनुसार भक्ति बताते हैं। इसलिए उनकी शरण ग्रहण करो और अपना कल्याण करवाओ।

Anand Verma

श्री कृष्ण जी तो भगवान थे फिर भी वह पूरे यादव वंश को नष्ट होने से क्यों नहीं बचा पाए थे?

Satlok Ashram

श्री विष्णु जी के अवतार श्री कृष्ण जी के पास सीमित शक्ति है। यहां के सभी प्राणी तीन तापों से प्रभावित हैं और जो त्रिदेवों या फिर अन्य देवताओं की पूजा करते हैं उनका मोक्ष नहीं हो सकता। श्री कृष्ण भगवान पूर्ण परमात्मा नहीं हैं वह किसी के भी तीन तापों को नहीं काट सकते। ऋषि दुर्वासा के श्राप से श्री कृष्ण जी अपने यादव कुल की रक्षा नहीं कर सके और उनकी आंखों के सामने 56 करोड़ यादव कट के मर गए थे और उनके कुल का नाश हुआ था। केवल सर्वशक्तिमान कबीर साहेब ही शक्तिशाली प्रभु हैं जो सभी श्रापों व पापों का नाश कर सकते हैं और मोक्ष प्रदान कर सकते हैं।

Devansh Rastogi

ॐ मंत्र के जाप करने से क्या लाभ प्राप्त होता है?

Satlok Ashram

ॐ मंत्र 21 ब्रह्मांडों के स्वामी ब्रह्म काल का मंत्र है। इसलिए ॐ मंत्र के जाप से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। लेकिन इससे पूर्ण मोक्ष प्राप्त नहीं होता और ब्रह्मलोक प्राप्ति करना भी व्यर्थ है क्योंकि जीव जन्म-मृत्यु के चक्र में सदा फंसा रहता है। ब्रह्म की पूजा और ॐ मंत्र का जाप करना दोनों व्यर्थ हैं। मोक्ष मंत्र प्राप्त करने के लिए सभी मनुष्यों को तत्वदर्शी संत की शरण में जाना चाहिए।