6. भक्ति न करने से बहुत दुःख होगा | जीने की राह


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सूक्ष्मवेद में कहा है:-

यह संसार समझदा नाहीं, कहंदा शाम दुपहरे नूँ।
गरीबदास यह वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे नूँ।।

आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में परमात्मा के विधान से अपरिचित होने के कारण यह प्राणी इस दुःखों के घर संसार में महान कष्ट झेल रहा है और इसी को सुख स्थान मान रहा है। जैसे एक व्यक्ति जून के महीने में दिन के 12 या 1 बजे, हरियाणा प्रान्त में शराब पीकर चिलचिलाती धूप में गिरा पड़ा है, पसीनों से बुरा हाल है, रेत शरीर से लिपटा है। एक व्यक्ति ने कहा हे भाई! उठ, तुझे वृक्ष के नीचे बैठा दूँ, तू यहाँ पर गर्मी में जल रहा है। शराबी बोला कि मैं बिल्कुल ठीक हूँ, मौज हो रही है, कोई कष्ट नहीं है।

  • एक व्यक्ति किसी कारण कोर्ट में गया। वहाँ उसका रिश्तेदार मिला। एक-दूसरे से कुशल-मंगल पूछी, दोनों ने कहा, सब ठीक है, मौज है।
  • एक व्यक्ति का इकलौता पुत्र बहुत रोगी था। उसको PGI में भर्ती करा रखा था। लड़के की बचने की आशा बहुत कम थी। ऐसी स्थिति में माता-पिता की क्या दशा होती है, आसानी से समझी जा सकती है। रिश्तेदार मिलने आए और पूछा कि बच्चे का क्या हाल है? पिता ने बताया कि बचने का भरोसा नहीं, फिर पूछा और कुशल-मंगल है, पिता ने कहा कि सब मौज है।
    विचार करें:- शराब के नशे में घोर धूप के ताप को झेल रहा था। फिर भी कह रहा था कि मौज हो रही है।
  • कोर्ट कचहरियों में जो रिश्तेदार मिले, दोनों ही कह रहे थे कि सब मौज है। विचार करें जो व्यक्ति कोर्ट के कोल्हू में फँसा है। उसको स्वपन में भी सुख नहीं होता। फिर भी दोनों कह रहे थे कि मौज है अर्थात् आनन्द है।  
  • जिस व्यक्ति का इकलौता पुत्र मृत्यु शैय्या पर हो, उसको मौज कैसी? इसलिए सूक्ष्मवेद में कहा है कि इस दुःखालय संसार में यह प्राणी महाकष्ट को सुख मान रहा है।

यह संसार समंझदा नाहीं, कहंदा शाम दोपहरे नूं।
गरीब दास यह वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे नूँ।।

सन्त गरीबदास जी ने बताया है कि मनुष्य जन्म प्राप्त करके जो व्यक्ति भक्ति नहीं करता, वह कुत्ते, गधे आदि-आदि की योनि में कष्ट उठाता है। कुत्ता रात्रि में आसमान की ओर मुख करके रोता है। इसलिए गरीबदास जी ने बताया
है कि यह मानव शरीर का वक्त एक बार हाथ से निकल गया और भक्ति नहीं की तो इस समय (इस पहरे) को याद करके रोया करोगे।


 

FAQs : "भक्ति न करने से बहुत दुःख होगा | जीने की राह"

Q.1 भक्ति क्या होती है?

भक्ति ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण भाव होता है। भक्ति करने के लिए पूर्ण गुरु/सतगुरु /तत्वदर्शी संत जी से नाम दीक्षा लेनी होती है और उनके द्वारा दिए गए मंत्र का जाप करना होता है। भक्ति मार्ग में निर्धारित नियमों का पालन करना भी बहुत ज़रूरी होता है और तभी मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

Q.2 भक्ति करना क्यों ज़रूरी है?

भक्ति करना इसलिए ज़रुरी है क्योंकि इससे साधक का ईश्वर के साथ संबंध और भी गहरा हो जाता है। भक्ति करने से भौतिक लाभ, आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भक्ति करने से मनुष्य का अहंकार कम होता है और उसमें दयालुता आती है। भक्ति ईश्वर के प्रति प्रेम की कसक को बढ़ाती है।

Q. 3 सतभक्ति करने से क्या लाभ मिलते हैं?

सतभक्ति करने से मनुष्य को सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान मिलता है। परमात्मा से साक्षात्कार होता है। बहुत से अन्य लाभ भी रूंगे में (मुफ्त में) मिलते हैं जैसे कि परम आनंद, मानसिक शांति, संतोष, दयालुता, सहनशीलता आदि जैसे गुण भक्त में विकसित होते हैं। इतना ही नहीं भक्ति करने से ही दूसरों के प्रति करुणा और अहंकार से मुक्ति मिलती है। भक्ति करने से ही संस्कारों में होने वाली हानि से बचा जा सकता है और मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

Q.4 भक्ति न करने के क्या परिणाम होते हैं?

भक्ति न करने से अगले जन्म में भी कष्ट भोगने पड़ते हैं। इतना ही नहीं जो भक्ति नहीं करते वह जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसे रहते हैं तथा नरक और 84 लाख योनियों में कष्ट भोगते हैं।

Q.5 कोई व्यक्ति भक्ति करना कैसे आरंभ कर सकता है?

भक्ति आरंभ करने के लिए पूर्ण गुरु से नाम दीक्षा लेनी ज़रुरी है। पूर्ण गुरु से नाम दीक्षा लेकर उनके बताए गए नियमों का पालन करना चाहिए। इतना ही नहीं जीवनभर भक्ति को करते रहना चाहिए। भक्ति करने से ही व्यक्ति सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों लाभ प्राप्त कर सकता है। इसके अलावा पूर्ण मोक्ष प्राप्त करने के लिए सच्ची भक्ति करना अति आवश्यक कार्य है।


 

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Anjan Basu

मनुष्य जीवन में भक्ति करने का इतना महत्त्व क्यों है?

Satlok Ashram

भक्ति करके मोक्ष प्राप्त करना ही मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य है। मोक्ष प्राप्त करने के लिए केवल सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी की ही भक्ति करनी चाहिए अन्य किसी देवता की नहीं।

Swati Tripathi

क्या जानवर हमेशा पशु योनि में ही रहते हैं और मनुष्य हमेशा मनुष्य योनि में ही रहते हैं?

Satlok Ashram

जी बिल्कुल नहीं, यह एक गलत धारणा है।परमात्मा के विधान के अनुसार कर्म आधार पर जीव को 84 लाख योनियों में कष्ट भोगना पड़ता है। वर्तमान में मानव जीवन धारी प्राणी मृत्यु के बाद कुत्ता, सूअर, भूत, पितृ बनेंगे यदि वह सब सतभक्ति नहीं करेंगे तो। कर्म आधार पर वह देवता भी बन सकते हैं और उन्हें नरक में कष्ट भी भोगना पड़ सकता है। इस तरह यह जन्म-मृत्यु का चक्र चलता रहता है। मनुष्य वाली आत्माएं अगली योनि में जाएंगी और इसी तरह आगे किसी और योनि में प्रवेश करेंगी। इस जन्म-मृत्यु, स्वर्ग-नरक और 84 लाख योनियों के झंझट को समाप्त करने का सरल उपाय सतगुरु से नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति करने से संभव है।

Priyank Singh

हम श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, श्री शिव जी, देवी दुर्गा जी और अन्य देवताओं की पूजा करते हैं। सच्ची पूजा का क्या मतलब है? क्या इनकी भक्ति सच्ची नहीं है? इसमें क्या अंतर है?

Satlok Ashram

सच्ची पूजा, पूजा की वह विधि जो हमारे पवित्र शास्त्रों में बताई गई है। इसका वर्णन पवित्र वेदों, पवित्र गीता जी में किया गया है और परमात्मा के विधान अनुसार है। केवल कबीर परमेश्वर की सच्ची भक्ति करने से ही मोक्ष संभव है। श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी और शिव जी की पूजा करना मनमानी साधना है। यह सभी देवता सम्माननीय हैं और इनकी पूजा की विधि न्यारी है, जिसकी जानकारी केवल तत्वदर्शी संत बता सकते हैं। इसके अलावा इनकी पूजा करने का प्रमाण हमारे किसी भी पवित्र शास्त्र में नहीं है और यह मोक्ष प्रदान नहीं कर सकते। सच्ची पूजा यानि कि शास्त्र अनुकूल साधना करना और मनमानी साधना यानि कि लोकवेद के आधार पर की गई साधना में यही तो अंतर है।