41. दीक्षा के पश्चात् | जीने की राह


after-taking-initiation-hindi-photo

पूर्ण गुरूदेव जी से दीक्षा लेकर पूर्ण विश्वास के साथ गुरूदेव द्वारा बताई साधना पूरी निष्ठा के साथ करे।

कबीर जी ने बताया है कि:-

1. धीरज रखे।

कबीर, धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौं घड़ा, समय आए फल होय।।

भावार्थ:- जैसे माली आम का बीज बोता है। उसकी सिंचाई करता है। कुछ दिन पश्चात् अंकुर दिखाई देता है। फिर भी समय-समय पर सिंचाई करता रहता है। रक्षा के लिए कांटेदार झांड़ियों की बाड़ (Fences) करता है। एक आम के पौधे को पेड़ बनने में लगभग 8.10 वर्ष लग जाते हैं। तब तक माली (पौधा लगाने वाला बाग का मालिक या नौकर) उस पौधे की सिंचाई करता रहता है। जब आम का पेड़ बन जाता है तो आम के फल लगते हैं। इतने लगते हैं कि स्वयं का परिवार भी खाता है तथा बेचकर अपना निर्वाह भी करता है। इसी प्रकार भक्ति नाम रूपी बीज को बो कर यदि दीक्षा लेकर उसका स्मरण, दान रूपी सिंचाई करते रहना चाहिए। आम के पौधे की तरह धीरे-धीरे भक्ति रूपी पेड़ बनने के पश्चात् सुखों का अम्बार लग जाएगा। जैसे आम के पेड़ को टनों आम लगे, खाए और बेचकर धन कमाया। इसी प्रकार भक्त को धीरज रखना चाहिए। धीरे-धीरे भक्ति का परिणाम आने लगेगा।

2. विश्वास:-

परमात्मा की भक्ति का लाभ उसी को होता है जो परमात्मा की महिमा पर पूर्ण विश्वास रखता है।

परमात्मा के लिए कुछ भी असंभव नहीं है

एक नगर के बाहर जंगल में दो महात्मा साधना कर रहे थे। एक चालीस वर्ष से घर त्यागकर साधना कर रहा था। दूसरा अभी दो वर्ष से साधना करने लगा था। परमात्मा के दरबार से एक देवदूत प्रतिदिन कुछ समय उन दोनों साधकों के पास व्यतीत करता था। दोनों साधकों के आश्रम गाँव के पूर्व तथा पश्चिम में थे। बड़े का स्थान पश्चिम में तथा छोटे का स्थान गाँव के पूर्व में जंगल में था।

देवदूत प्रतिदिन एक-एक घण्टा दोनों के पास बैठता, परमात्मा की चर्चा चलती। दोनों साधकों का अच्छा समय व्यतीत होता। एक दिन देवदूत ने भगवान विष्णु जी से कहा कि भगवान! कपिला नगरी के बाहर आपके दो परम भक्त रहते हैं। श्री विष्णु जी ने कहा कि एक परम भक्त हे, दूसरा तो बनावटी भक्त है। देवदूत ने विचार किया कि जो चालीस वर्ष से साधनारत है, वह पक्का भक्त होगा क्योंकि लंबी-लंबी दाढ़ी, सिर पर बड़ी जटा (केश) है और समय भी चालीस वर्ष बहुत होता है। देवदूत बोला कि हे प्रभु! जो चालीस वर्ष से आपकी भक्ति कर रहा है, वह होगा परम भक्त। प्रभु ने कहा, नहीं। दूसरा जो दो वर्ष से साधना में लगा है। प्रभु ने कहा कि देवदूत! मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ। देवदूत बोला, प्रभु ऐसा नहीं है। परंतु मेरी तुच्छ बुद्धि यही मान रही है कि बड़ी आयु वाला भी अच्छा भक्त है। श्री विष्णु जी ने कहा कि कल आप देर से पृथ्वी पर जाना। दोनों ही देर से आने का कारण पूछेंगे तो आप बताना कि आज प्रभु जी ने हाथी को सूई के नाके से निकालना था। वह लीला देखकर आया हूँ। इसलिए आने में देरी हो गई। जो उत्तर मिले, उससे आपको भी पता लग जाएगा कि परम भक्त कौन है? पहले प्रतिदिन देवदूत सुबह आठ बजे के आसपास बड़े के पास जाता था और 10 बजे के आसपास छोटी आयु वाले के पास जाता था। अगले दिन बड़ी आयु वाले के पास दिन के 12 बजे पहुँचा। देर से आने का कारण पूछा तो देवदूत ने बताया कि आज 11:30 बजे दिन के परमात्मा ने लीला करनी थी, वह देखकर आया हूँ। चालीस वर्ष वाले ने पूछा कि क्या लीला की प्रभु ने? बताईएगा। देवदूत ने कहा कि श्री विष्णु जी ने कमाल कर दिया, हाथी को सूई के नाके (छिद्र) में से निकाल दिया। यह सुनकर भक्त बोला कि देवदूत! ऐसी झूठ बोल जो सुने उसे विश्वास हो। यह कैसे हो सकता है कि हाथी सूई के नाके में से निकल जाए। मेरे सामने निकालकर दिखाओ। देवदूत समझ गया कि भगवान सत्य ही कह रहे थे। यह तो पशु है, भक्त नहीं जिसे परमात्मा पर ही विश्वास नहीं कि वह सक्षम है। जो कार्य मानव नहीं कर सकता, परमात्मा कर सकता है। उसकी भक्ति व्यर्थ तथा बनावटी है। देवदूत नमस्ते करके चल पड़ा और छोटे भक्त के पास आया। भक्त ने देरी से आने का कारण पूछा तो देवदूत ने संकोच के साथ बताया कि कहीं यह कोई गलत भाषा न बोल दे। कहा कि भक्त क्या बताऊँ? परमात्मा ने तो अचरज कर दिया। कमाल कर दिया। देखकर आँखें फटी की फटी रह गई। परमात्मा ने हाथी को सूई के नाके (धागा डालने वाले छिद्र) के अंदर से निकाल दिया। यह सुनकर भक्त बोला कि देवदूत जी! इसमें आश्चर्य की कौन-सी बात है? परमात्मा निकाल दे पूरी पृथ्वी को सूई के नाके में से, हाथी तो बात ही क्या है? देवदूत ने भक्त को सीने से लगाया और कहा कि धन्य हैं आपके माता-पिता जिनसे जन्म हुआ। कुर्बान हूँ आपके परमात्मा पर अटल विश्वास पर।

पाठकजनो! यह तो एक उदाहरण है। वास्तव में भक्त को परमात्मा पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए कि परमात्मा जो चाहे सो कर सकता है। यदि कोई कहे कि परमात्मा यह नहीं कर सकता, वह नहीं कर सकता तो उसको भक्ति अधिकार ही नहीं है। क्यों अपना समय भक्ति का नाटक करके व्यर्थ करे? परमात्मा पर पूर्ण विश्वास करके भक्ति राह पर चलेगा तो मंजिल पर पहुँचेगा। 

3. ‘‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है’’

दीक्षा लेने के उपरांत भक्त के ऊपर भक्ति की राह में कितना ही कष्ट आए, मन में यही आए कि परमात्मा जो करता है, भक्त के भले में ही करता है। कथा:- एक राजा तथा महामंत्री गुरू के शिष्य थे। महामंत्री जी को पूर्ण विश्वास था, परंतु राजा को सत्संग सुनने का समय कम मिलता था। जिस कारण से वह परमात्मा के विधान से पूर्ण परिचित नहीं था, परंतु भक्ति श्रद्धा से करता था। महामंत्री को राजा हमेशा अपने साथ रखता था। उसकी सबसे अधिक इज्जत करता था। एक मंत्री को महामंत्री से इसी बात पर ईर्ष्या थी। वह महामंत्री को राजा की नजरों में गिराने के लिए राजा को महामंत्री के विषय में निंदा करता था। एक मंत्रीचाहता था कि राजा मुझे महामंत्री बना दे। उसके लिए बार-बार कहता था कि राजन! यह महामंत्री विश्वास पात्र नहीं है। यह आपको कभी भी धोखा दे सकता है। एक दिन राजा तथा महामंत्री तथा वह चापलूस मंत्री व अन्य मंत्रीगण किसी अन्य शहर में जाने की तैयारी में महल के अंदर हाॅल में खड़े थे। राजा अपनी तलवार को निकालकर उसकी धार (तीखापन) चैक करने लगा और अन्य मंत्रियों से बातें भी कर रहा था। जिस कारण से राजा के हाथ की एक अंगुली कटकर गिर गई। चापलूस बोला कि हे राजा! यह क्या हो गया? हमारे राजा कितने सुंदर थे। आज हमारा दुर्भाग्य का दिन है, हाय! यह क्या हो गया? प्रजा का कौन-सा भार अपने ऊपर ले लिया? महामंत्री बोला, अच्छा हुआ। परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है। राजा दर्द से व्याकुल था तथा ऊपर से ये शब्द सुने तो महामंत्री के प्रति गुस्सा आया और सैनिकों से कहा कि इसे जेल में डाल दो। ऐसा ही किया गया। चापलूस चुगलखोर को महामंत्री नियुक्त कर लिया। अंगुली का उपचार कराया। छः महीने में अंगुली का घाव भरकर ठीक हो गया। कोई दर्द नहीं रहा। अब राजा के दांये हाथ में तीन अंगुली और एक अंगूठा बचा था। राजा अपने नए महामंत्री से अति प्रसन्न था क्योंकि उसका दाँव लग गया था। वह राजा से कहता था कि हे राजन! मैंने तो आप जी को बहुत बार कहा था कि यह आपको धोखा देगा। उस दिन आपने अपने कानों सुन लिया कि वह बोला अंगुली कट गई तो अच्छा हुआ। वह तो आप जी के मरने में खुश था। कभी आपको मरवा देता। राजा उस चापलूस की प्रत्येक बात को सत्य मानने लगा था। एक दिन राजा उस नए महामंत्री के साथ जंगल में शिकार खेलने गया। दोनों जंगल में गहरे चले गए। आगे कुछ भील लोग थे। उन्होंने उन दोनों को पकड़ लिया और अपने पुरोहित के पास ले गए। उस दिन जंगली लोगों का कोई त्यौहार था। एक व्यक्ति को काटकर देवी की भेंट चढ़ाना था। उनके हाथ दो लग गए। पुरोहित ने कहा कि दो ले आए हो तो दोनों की ही बलि चढ़ा देते हैं। देवी और अधिक प्रसन्न होगी। परंतु पहले इनकी जाँच करो कि कोई अंग-भंग न हो यानि काना-कोतरा, हाथ या अंगुली कटी न हो। जाँच की तो पता चला कि एक व्यक्ति के हाथ की एक अंगुली कटी है। पुरोहित ने कहा कि इसे छोड़ दो, दूसरा ठीक है तो इसकी गर्दन काट दो। उसी समय राजा को छोड़ दिया और चापलूस महामंत्री की गर्दन राजा के सामने ही काट दी और देवी को भेंट कर दी। राजा चल पड़ा और अपने महल में आया। सीधा जेल पर गया और महामंत्री को रिहा किया। राजा ने महामंत्री जी को सीने से लगाया और कहा कि जब मेरी हाथ की अंगुली कटी थी और आपने कहा था कि अच्छा हुआ। भगवान जो करता है, अच्छा ही करता है, वह सही बात है। यदि उस दिन मेरी अंगुली नहीं कटी होती तो आज मेरी जान जाती। भगवान ने अच्छा किया। राजा ने फिर कहा कि मेरे लिए तो अच्छा हुआ, परंतु आपको छः महीने जेल व्यर्थ में बिना दोष के काटनी पड़ी। आपके लिए क्या अच्छा हुआ? महामंत्री बोला कि आज मैं जेल में न होता तो आपके साथ जाता। वहाँ मेरी गर्दन कटनी थी। मेरी मौत होनी थी। छः महीने की कैद से मेरी जान बच गई। मेरे लिए यह अच्छा हुआ।

इस प्रकार भक्त को परमात्मा पर विश्वास करके अपने जीवन के सफर पर चलना है।


 

FAQs : "दीक्षा के पश्चात् | जीने की राह"

Q.1 परमेश्वर कबीर जी भक्ति मार्ग में किस चीज़ पर ज़्यादा ज़ोर देने की शिक्षा देते हैं?

परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि व्यक्ति को धैर्य और ईश्वर पर विश्वास अवश्य रखना चाहिए। वे यह भी कहते हैं कि मनुष्य को यह विश्वास भी होना चाहिए कि ईश्वर जो कुछ भी करता है वह भक्त के भले के लिए ही करता है। कबीर जी मनुष्य के जीवन में धैर्य के महत्व को भी समझाते हैं क्योंकि यह व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक है। जिस तरह आम के पेड़ पर फल लगने में समय लगता है, ठीक उसी तरह भक्ति और आध्यात्मिक मार्ग में सफलता के लिए धैर्य होना बहुत ज़रूरी है।

Q.2 भक्ति मार्ग में ईश्वर में विश्वास रखने का क्या महत्व है?

भक्ति मार्ग में ईश्वर में विश्वास होने का बहुत महत्व है। भक्त को ईश्वर की क्षमता पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए क्योंकि यह एक भक्त को पूरे आंतरिक मन से ईश्वर से जुड़ने में मदद करता है।

Q. 3 "ईश्वर जो कुछ भी करता है, वह भक्त के अच्छे के लिए ही करता है" इस कथन का क्या मतलब है?

इस कथन से पता चलता है कि भक्ति मार्ग में आने वाली कठिनाइयों के बावजूद भी व्यक्ति को ईश्वर पर विश्वास होना चाहिए क्योंकि ईश्वर जो कुछ भी करता है, वह अपने भक्त के अच्छे के लिए ही करता है।

Q.4 परमेश्वर कबीर जी के अनुसार अगर किसी भक्त को अपने आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हुए कठिनाइयों का सामना करना पड़े तो उसे क्या करना चाहिए?

परमेश्वर कबीर जी भक्तों को कहते हैं कि उन्हें भक्ति मार्ग में धैर्य रखना और दृढ़ रहना चाहिए। उन्हें यह भी विश्वास रखना चाहिए कि ईश्वर ने यह कठिनाइयां उन्हें भक्ति मार्ग में दृढ़ करने के लिए ही दी हैं।

Q.5 एक भक्त अपने दैनिक जीवन में परमेश्वर कबीर जी की बताई शिक्षाओं के अनुसार कैसे चल सकता है?

एक भक्त धैर्य और ईश्वर में दृढ़ विश्वास रखकर उनकी शिक्षाओं को जीवन में लागू कर सकता है। वह यह भी विश्वास कर सकता है कि ईश्वर जो करता है, वह उसके अच्छे के लिए ही करता है क्योंकि ईश्वर कोई भी गलत कार्य का समर्थन नहीं करता

Q.6 भक्ति मार्ग में यह विश्वास होना क्यों जरूरी है कि ईश्वर हर असंभव कार्य भी कर सकते हैं?

परमेश्वर पर विश्वास रखना एक भक्त के लिए भक्ति मार्ग में बहुत ज़रूरी है क्योंकि दृढ़ विश्वास से ही ईश्वर से आध्यात्मिक लाभ और मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। परमेश्वर के लिए असंभव दिखाई देने वाले कामों को पल भर में संभव करना कोई मुश्किल काम नहीं है। परमात्मा तो पर्वत को राई और राई को पर्वत बना सकता है। परमात्मा पर अविश्वास करने वालों की सदा हार होती है।

Q.7 पाठकों को इस लेख से क्या शिक्षा लेनी चाहिए?

यह लेख एक भक्त में धैर्य और परमेश्वर में उसके अटूट विश्वास को बताता है। यह इस विश्वास को भी दर्शाता है कि परमेश्वर जो भी करता है, वह हमारे अच्छे के लिए ही करता है।


 

Recent Comments

Latest Comments by users
यदि उपरोक्त सामग्री के संबंध में आपके कोई प्रश्न या सुझावहैं, तो कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें, हम इसे प्रमाण के साथ हल करने का प्रयास करेंगे।
Kailash parmar

मैं इस बात से पूर्ण तौर पर सहमत हूं कि व्यक्ति को जीवन में धैर्य और ईश्वर में आस्था रखनी चाहिए। लेकिन वर्तमान में लोगों में धैर्य की बहुत कमी है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति तुरंत संतुष्टि चाहता है। इसके अलावा जब पूजा करने के बाद भी व्यक्ति को ईश्वर से कोई लाभ नहीं मिलता तो उसके लिए ईश्वर में आस्था रखना मुश्किल हो जाता है। उस समय व्यक्ति को ऐसे लगता है कि ईश्वर भी उसका साथ नहीं दे रहा है और वह अकेला है तथा उसके ऊपर एक के बाद एक मुसीबतें आ रही हैं।

Satlok Ashram

कैलाश जी, आपने हमारे लेख में रूचि दिखाई, इसके लिए हम आपका आभार व्यक्त करते हैं। भक्ति मार्ग में धैर्य और आस्था की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। जबकि वर्तमान में लोगों में धैर्य की बहुत कमी है। फिर शास्त्र विरुद्ध साधना करने के कारण उनका ईश्वर पर विश्वास भी कम हो गया है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति सच्चे गुरु से नाम दीक्षा प्राप्त करके और उनके बताए अनुसार भक्ति करता है तो ईश्वर उन्हें अप्रत्याशित फल और सुख देते हैं। इतना ही नहीं ईश्वर उनकी सभी समस्याओं का समाधान कर सकता है और फिर उनका विश्वास भी दृढ़ होता है। सतभक्ति करने वाले भक्तों के साथ परमात्मा सदा रहता है, ईश्वर में सच्ची श्रद्धा रखने वाले भक्तों को भगवान कभी अकेला महसूस नहीं होने देता। देखिए तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा प्राप्त करके भक्ति करने वाले उनके लाखों करोड़ों शिष्यों को अद्भुत लाभ प्राप्त हुए हैं। इससे उनका ईश्वर पर विश्वास और भी दृढ़ हुआ है। अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को सुनिए। इसके इलावा आप संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित पुस्तक "जीने की राह" भी पढ़ सकते हैं जिससे आपका ईश्वर में विश्वास और अधिक दृढ़ होगा।

Preeti Rai

मैं भी ईश्वर में बहुत आस्था रखती हूं। हर अवसर पर उपवास रखती हूं। मैं किसी भी परस्थिति में अपना धैर्य नहीं खोती हूं। लेकिन इसका मुझे आज तक कोई विशेष लाभ नहीं मिला। इसके अलावा मैं अपने स्वास्थ्य और नौकरी से संबंधित कई समस्याओं का सामना कर रही हूं।

Satlok Ashram

प्रीति जी, हम आपकी ईश्वर में आस्था की सराहना करते हैं। एक भक्त के जीवन में आस्था और धैर्य रूपी गुण केवल सर्वशक्तिमान ईश्वर ही प्रदान कर सकते हैं। जब व्यक्ति तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करता है तो ईश्वर उसके लिए अद्भुत चमत्कार करते हैं। वर्तमान में अधिकांश लोग शास्त्र विरुद्ध साधना कर रहे हैं। इसलिए ईश्वर से कोई लाभ न मिलने के कारण उनका ईश्वर में विश्वास कम हो जाता है। ईश्वर से लाभ प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को कोई व्रत रखने की आवश्यकता नहीं होती। यदि व्यक्ति सतभक्ति करता है तो उसे शारीरिक लाभ और भौतिक लाभ भी प्राप्त होते रहते हैं। पूर्ण लाभ प्राप्त करने और ईश्वर में अपना विश्वास दृढ़ करने के लिए सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान को समझना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए हम आपको संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को सुनने की सलाह देते हैं। तथा सर्वशक्तिमान ईश्वर की पूजा की सही विधि जानने के लिए आप "जीने की राह" पुस्तक भी पढ़ सकते हैं।