15. विवाह के पश्चात् की यात्रा | जीने की राह


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15. विवाह के पश्चात् पति-पत्नी का कर्तव्य बन जाता है कि एक-दूसरे पर अपना विश्वास कायम रखें। भावार्थ है कि दोनों जति-सति की मर्यादा का निर्वाह करें। पति को अटल विश्वास हो कि मेरी पत्नी अन्य पुरूष को कभी समर्पित नहीं हो सकती, चाहे वह कितना ही सुंदर तथा धनी हो। इस प्रकार पत्नी को अटल विश्वास हो कि मेरा पति अन्य औरत से प्रभावित होकर मिलन नहीं कर सकता, चाहे स्वर्ग से कोई अप्सरा भी आ जाए।

कथा:- एक फौजी जवान था। उसकी पत्नी सति यानि पतिव्रता थी। यह बात उसने अपने साथियों को फौज में बता दी। यह बात राजा के मंत्री शेरखान (मुसलमान) के पास पहुँची तो उसने राजा को बताई और इस झूठ-सच की जाँच करने की प्रार्थना की। राजा ने सभा लगाई तथा उस फौजी चाप सिंह चौहान को बुलाया। सभा में राजा ने पूछा कि आप कह रहे हो कि आपकी पत्नी पतिव्रता है, वह अन्य पुरूष से किसी लालच में मिलन नहीं कर सकती। फौजी चाप सिंह ने कहा कि यह शत प्रतिशत सत्य है। राजा ने कहा कि यदि झूठ पाई तो? फौजी ने कहा कि जो सजा आप दें, मंजूर होगी।

शेरखान मंत्री ने कहा कि राजा जी! यह परीक्षा मैं स्वयं करूंगा। राजा ने कहा की ठीक है। चापसिंह ने कहा कि मेरे विवाह के समय मिली सुहाग की निशानी एक पटका (कपड़े का परणा) तथा कटारी (बड़ा चाकू) मेरी पत्नी नहीं दे सकती। यदि शेरखान यह ले आया तो मैं हार मान लूंगा तथा मेरी पत्नी के शरीर का कोई चिन्ह बता देना। मैं मान लूंगा कि मेरी पत्नी धर्म से गिर गई है। शेरखान ने चाप सिंह के नगर में जाकर एक मुखबिर स्त्री से कहा कि एक चाप सिंह फौजी की पत्नी रहती है। उसके साथ मेरा मिलन करा दे। तेरे को बहुत धन दूंगा। उस स्त्री ने कहा कि यह किसी कीमत पर संभव नहीं है। फिर शेरखान ने कहा कि किसी तरह उसके घर से विवाह में मिलने वाली सुहाग की निशानी पटका तथा कटारी ला दे, चाहे चुराकर ला दे तथा चाप सिंह की पत्नी सोमवती के गुप्तांग के पास या जांघ-सांथल पर कोई निशान हो तो वह पता कर दे। वह स्त्री मेहमान बनकर चाप सिंह की नकली बुआ बनकर सोमवती के घर गई। सोमवती के विवाह के समय तथा पश्चात् चाप सिंह की बुआ आई नहीं थी। बीमार होने के कारण विवाह में भी नहीं आ सकी थी। कई दिन रूकी। सोमवती को स्नान करते देखा तो निकट जाकर उसके सुंदर शरीर की प्रशंसा करने के बहाने अंग-अंग देखा। सोमवती के गुप्तांग के पास बड़ा तिल था। यह सब निशानी देखकर मुखबिर पटका तथा कटारी चुराकर ले गई और शेरखान मंत्री ने राजा को बताया कि मैं उसके साथ मिलन करके आया हूँ। उसकी जाँघ में काला तिल है। यह सुहाग की वस्तु पतिव्रता किसी को नहीं देती। मेरे प्रेम में तथा धन के लालच में मेरे को दी है।

राजा ने सभा लगाई। चाप सिंह को बुलाया। कहा कि यह पटका तथा कटारी किसकी है। चाप सिंह ने ध्यान से देखा तथा स्वीकारा कि मेरी हैं। शेरखान ने कहा कि और बताऊँ, सुन! तेरी पत्नी की दांई जांघ पर गुप्तांग के पास काला तिल है। चाप सिंह ने कहा कि यह सब सत्य है, परंतु मेरी पत्नी अपने धर्म से नहीं गिर सकती। राजा ने कहा कि तू अब भी वही रट लगा रहा है, तू झूठा है। तेरे को आज से एक महीने बाद फांसी दे दी जाएगी। तेरी जो अंतिम इच्छा हो, वह बता। चाप सिंह ने कहा कि मैं अपनी पत्नी से मिलना चाहता हूँ। राजा ने आज्ञा दे दी। चाप सिंह अपनी पत्नी के पास गया। उसको बेवफाई के कारण ऊँच-नीच कहा और बताया कि मेरे को उस दिन तेरे कारण फांसी लगेगी। सोमवती ने बताया कि आपकी बुआ का नाम लेकर एक स्त्री आई थी। उसने मेरे अंग का चिन्ह देखा तथा पटका और कटारी चुरा ले गई। चाप सिंह ने बताया कि मंत्री शेरखान आया था। उसने यह सब षड़यंत्र रचा है। चाप सिंह वापिस लौट गया। फांसी वाले दिन से एक सप्ताह पहले सोमवती राजा की नगरी में एक नर्तकी (नाचने वाली) बनकर गई और राजा को नृत्य दिखाने के लिए कहा। राजा ने आज्ञा दे दी। पूरे सभासद उपस्थित थे। मंत्री शेरखान भी उपस्थित था। नर्तकी के नृत्य से राजा अति प्रसन्न हुआ तथा नृतका से कहा कि माँगो, क्या माँगती हो, मैं अति प्रसन्न हूँ। नर्तकी ने कहा कि वचनबद्ध हो जाओ, तब माँगूंगी। राजा ने कहा कि राज्य के अतिरिक्त कुछ भी माँग, मैं वचनबद्ध हूँ।

नर्तकी ने कहा कि आपकी सभा में मेरा चोर है। मेरे घर से चोरी करके लाया है। शेरखान मंत्री नाम है। उसको फांसी की सजा दी जाए। शेरखान से राजा ने पूछा कि बता शेरखान! कितनी सच्चाई है? शेरखान बोला कि हे परवरदिगार! मैंने तो इस औरत की आज से पहले कभी शक्ल भी नहीं देखी थी।

तब सोमवती ने कहा कि यदि आपने मेरी शक्ल भी नहीं देखी थी तो ये पटका और कटारी किसके घर से लाया? मैं उस चाप सिंह की पतिव्रता पत्नी हूँ जिसे तेरी झूठ के कारण फांसी दी जा रही है। चाप सिंह को बुलाया गया। राजा ने चाप सिंह को आधा राज्य सौंप दिया और क्षमा कर दिया तथा शेरखान मंत्री को फांसी की सजा दी गई। धन्य है ऐसी बेटियां जिन पर नाज है भारत को। गरीबदास जी को परमेश्वर कबीर जी ने बताया था कि:-

तुरा न तीखा कूदना, पुरूष नहीं रणधीर।
नहीं पदमनी नगर में, या मोटी तकसीर।।

भावार्थ:- कबीर जी ने बताया है कि गरीबदास! जिस नगर व देश में तुरा (घोड़ा) तेज दौड़ने व ऊँचा कूदने वाला नहीं है और नागरिक रणधीर (शूरवीर) नहीं हैं और जिस देश व नगर में पद्मनी यानि पतिव्रता स्त्री नहीं है तो यह मोटी तकसीर (बहुत बड़ी गलती) है यानि कमी है। इस प्रकार का चरित्रवान स्त्री-पुरूष दोनों का होना अनिवार्य है।

विवाह के पश्चात् ससुराल में कुछ लड़कियाँ सर्व श्रृंगार करती हैं। सज-धजकर गलियों से गुजरती हैं। अजीबो-गरीब हरकत करती हैं। असहज लगने वाले भड़कीले-चमकीले वस्त्र पहनकर बाजार या खेतों में या पानी लेने नल या कूँऐ पर जाती हैं। उनका उद्देश्य क्या होता है? स्पष्ट है कि अपने पति के अतिरिक्त अन्य पुरूषों को अपनी ओर आकर्षित करना। अपनी सुंदरता तथा वैभव का प्रदर्शन करना जो एक अच्छी बहू-बेटी के लक्षण नहीं हैं। यदि कहें कि पति को प्रसन्न करने के लिए ऐसा करती हैं तो वे घर तक ही सीमित रहती तो अच्छा होता, परंतु ऐसे लक्षण मन में दोष के प्रतीक होते हैं।

साधारण वस्त्र पहनने चाहिए, चाहे मंहगे हों, चाहे सस्ते। बहन-बेटी-बहू की नजर सामने 12 फुट तक रहनी चाहिए। चलते-बैठते, उठते समय ध्यान रखे कि कोई ऐसी गतिविधि न हो जाए जो किसी के लिए उत्प्रेरक हो। स्त्री की गलत विधि से लफंडर लोगों का हौंसला बढ़ता है। वे परेशान करते हैं। महिला का हँस-हँसकर बातें करना उत्प्रेरक तथा असभ्य होता है जो सामाजिक बुराई है। जैसे बहन-बेटी, बहू यानि युवती अपने परिजनों के साथ रहती है। ऐसा ही आचरण घर से बाहर होना चाहिए। उसकी प्रशंसा सभ्य समाज किया करता है। अन्य युवाओं को उसका उदाहरण बताते हैं। यदि पैट्रोल को चिंगारी नहीं मिलेगी तो वह विस्फोटक नहीं होता।

इसके विपरीत उपरोक्त गतिविधि करना समाज में आग लगाना है। यह बात युवतियों तथा युवाओं दोनों पर लागू होती है।

जवानी बारूद की तरह होती है। यदि कोई चिंगारी लग जाए तो सर्वनाश हो जाता है। यदि चिंगारी नहीं लगे तो वर्षों सुरक्षित रहती है।

प्रत्येक पुरूष चाहता है कि मेरी बेटी-बहन-बहू अच्छे चरित्र वाली हो। गाँव-नगर में कोई यह न कहे कि उनका खानदान ऐसा-वैसा है।

जब हम किसी युवती को देखते हैं और मन में दोष उत्पन्न हो तो तुरंत विचार करें कि यदि कोई हमारी बेटी, बहन, बहू के विषय में गलत विचार करे तथा दुष्कर्म के उद्देश्य से कुछ अटपटी गतिविधि (व्यंग्य करके अपने दुष्विचारों को प्रकट करे, गलत संकेत करे, आँखों को चटकाए-मटकाए, टेढ़ी-नजर से देखे, ऐसी गलत हरकत) करे तो कैसा लगेगा। उत्तर स्पष्ट है कि टाँगें तोड़ देंगे। जो निर्बल हैं, वो एकान्त में बैठकर रोऐंगे। उस समय विचार करें कि:-

जैसा दर्द अपने होवे, ऐसा जान बिराणै।
जो अपनै सो और कै, एकै पीड़ पिछानै।।

समाधान:- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि:-

कबीर, परनारी को देखिये, बहन-बेटी के भाव।
कह कबीर काम (sex) नाश का, यही सहज उपाय।।

यौन उत्पीड़न के प्रेरक:- फिल्में, जिनमें नकली, बनावटी कहानियाँ तथा अदाऐं दिखाई जाती हैं जिनको देखकर जवान बच्चे उसी की नकल करके बेशर्म होने लगते हैं। जैसी गतिविधि फिल्म में दिखाई जाती है, वैसी गतिविधि न घर में, न गली में, न सभ्य समाज में की जा सकती हैं। तो उनको देखने का उद्देश्य क्या रह जाता है? कुछ नहीं। केवल बहाना है मनोरंजन। वही मनोरंजन समाज नाश का मूल कारण है। मेरे (लेखक के) अनुयाई बिल्कुल भी फिल्म नहीं देखते। अश्लील रागनी, फिल्मी गाने, सांग (स्वांग) तथा अश्लील चर्चा जो निकम्मे युवा करते हैं। उनकी संगत में अच्छे युवा भी प्रेरित होकर बकवाद करने लग जाते हैं। कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि:-

कथा करो करतार की, सुनो कथा करतार।
काम (sex) कथा सुनों नहीं, कह कबीर विचार।।

भावार्थ:- कबीर परमेश्वर जी ने समझाया है कि या तो परमात्मा की महिमा का गुणगान (कथा) करो या कहीं परमात्मा की चर्चा (कथा) हो रही हो तो वह सुनो। काम यानि अश्लील चर्चा कभी न सुनना। कबीर जी ने यह विचार यानि मत बताया है।