37. चौधरी जीता जाट को ज्ञान हुआ | जीने की राह


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गाँव खेखड़ा, जिला-बागपत (उत्तर प्रदेश) में लगभग दो सौ पचहत्तर वर्ष पूर्व एक जीता राम जाट था। नौ सौ बीघा जमीन थी। गाँव का नम्बरदार था। सबसे धनी तथा पंचायती आदमी था। सत्य का पक्ष लेता था। झूठ को महत्व नहीं देता था। उसी गाँव (खेखड़ा) में एक संत घीसा दास जी उस समय में सत्संग किया करते थे। वे चमार जाति से थे। उस समय छुआछात चरम पर थी। संत घीसा दास जी को परमेश्वर कबीर जी लगभग सात-आठ वर्ष की आयु में जंगल में मिले थे। उनको यथार्थ ज्ञान तथा दीक्षा देकर अंतर्ध्यान हो गए थे। बड़े होकर संत श्री घीसा दास जी सत्संग करने लगे। आसपास के व्यक्ति सत्संग सुनकर दीक्षा लेकर संकटमुक्त होने लगे। दिन में अपने निर्वाह के लिए कार्य करते तथा रात्रि में सत्संग सुनते थे। महीने में दो दिन सत्संग करते थे। रात्रि के सत्संग में स्त्री और पुरुष दोनों जाते थे। गाँव में चर्चा चलने लगी कि रात्रि में स्त्रियों का जाना उचित नहीं है। कुछ भी अप्रिय घटना हो सकती है। इसलिए सत्संग को बंद करा दिया जाए। गाँव खेखड़ा की पंचायत हुई। पंचायत में सत्संग बंद कराने का निर्णय लिया गया और यह संदेश स्वयं पंचायत का प्रमुख चौधरी जीताराम जी को कहा गया। चौधरी जीताराम जी संत घीसाराम जी के घर गए। उस दिन सत्संग चल रहा था। गाँव की पंचायत के फैसले की चर्चा पूरे गाँव में हो चुकी थी। जब चौधरी जीताराम जी पहुँचे तो सत्संग श्रोताओं को लगा कि चौधरी साहब जाट दिमाग के हैं। संत जी से झगड़ा करेंगे। जीताराम जी घर से लाठी लेकर चले थे जो रास्ते में एक वृक्ष के साथ खड़ी करके आगे चले। विचार आया कि भक्त कोई झगड़ा थोड़े-ही करते हैं। अच्छी सभा में लाठी लेकर जाना पंचायती को शोभा नहीं देता। सत्संग चल रहा था। चौधरी साहब ने विचार किया कि कुछ इसकी बात सुनता हूँ, फिर कह-सुन लूँगा। सत्संग में वही ज्ञान बताया गया जो आप जी हरलाल जी के प्रकरण में पढ़ आए हैं। चौधरी साहब तो भावुक हो गए। आँखों से आंसूओं की धारा बह चली। उठकर संत घीसा जी के चरणों में सिर रख दिया और कहा कि हे गुरूदेव! मुझ अपराधी को मार चाहे छोड़, गलती बहुत बड़ी कर दी है। मैं तुच्छ जीव सत्संग बंद करने का आदेश लेकर आया हूँ। क्षमा करो प्रभु। आप दिल खोलकर सत्संग करो, कोई नहीं रोकेगा। संत घीसा जी ने कहा कि चौधरी साहब! जो काम करने आए थे, वह कीजिए। जीता जाट फिर रोने लगा और बोला, क्षमा करो, क्षमा करो, मुझे दीक्षा दो। चौधरी जीता राम जाट जी भक्त बन गए। स्वयं भी रात्रि में सत्संग सुनने लगा। गाँव खेखड़ा के घर-घर में चौधरी साहब जीतराम जी की संत घीसाराम जी की शरण में जाने की निंदा होने लगी। कहने लगे संत घीसाराम सेवड़ा है, जादू जंत्र जानता है। गाँव के चौधरी पर तांत्रिक क्रिया करके अपने वश कर लिया है। सम्मोहन जंत्र-मंत्र जानता है। चौधरी जीताराम जी के घर वाले लड़के तथा भाई-चाचा-ताऊ सब जीताराम जाट तथा घीसाराम संत के विरोधी हो गए। गाँव वाले चौधरी जीताराम से कहने लगे कि चौधरी साहब! बुढ़ापे (वृद्ध अवस्था) में आप भी बिगड़ गए। चौधरी जीताराम जी को आध्यात्मिक घाम मार गया था यानि ज्ञान का प्रबल प्रभाव हो गया था। वह कहते थे कि हे गाँव वालो! मेरे तो भाग्य जाग गए जो मैं भक्त बन गया और आपकी नजर में बिगड़ गया। भगवान करे मेरे की ढ़ब (तरह) तुम सारे बिगड़ जाओ। बिना बिगड़े काम नहीं चलेगा। कुछ दिनों के पश्चात् गाँव की पंचायत हुई और संत घीसादास जी तथा भक्त जीताराम जी को गाँव छोड़ने का फरमान सुना दिया। दोनों गुरू-शिष्य तुरंत गाँव छोड़कर दूर स्थान पर एक गाँव में सत्संग करके जनता को समझाने लगे। बहुत से व्यक्ति अनुयाई हो गए। संतों के चले जाने के पश्चात् गाँव खेखड़ा में अकाल मृत्यु होने लगी। पंचायतियों के घरों में परमात्मा का प्रकोप प्रारम्भ हो गया। किसी के चारे में आग लगे, किसी के पशु मरने लगे। किसी के परिवार में प्रेत बोलने लगे, किसी की बेटी विधवा हो गई, किसी को अधरंग की शिकायत। गाँव में पशुओं में रोग फैल गया। गाँव के कुछ व्यक्ति किसी बूझा-पूछा करने वाले के पास गाँव में हो रहे उपद्रव का कारण जानने के लिए गए। बूझा-पूछा वाले ने बताया कि आपके गाँव में दो संत-भक्त रहते थे, वे गाँव से चले गए हैं। वे वापिस आएंगे तो गाँव बसेगा अन्यथा उजड़ जाएगा। उन व्यक्तियों ने गाँव में आकर पंचायत करके सब बात बताई। गाँव के गणमान्य व्यक्ति संत-भक्त को वापिस लाने के लिए उस गाँव में गए। भक्त जीता दास ने गुरू जी घीसादास जी से कहा कि लगता है गुरूदेव! यहाँ से भी निकलवाने गाँव वाले आ गए हैं। देखो! वे आ रहे हैं। संत घीसा दास जी बोले, रख लो चद्दर कंधे पर, चलते बनेंगे। इतने में गाँव के चौधरी निकट आ गए और अपने-अपने सिर के साफे (खण्डके) संत घीसा व भक्त जीता जी के चरणों में रख दिए। सब लोग बोले, महाराज जी! गलती क्षमा करो। आपके आने के पश्चात् गाँव उजड़ने लग रहा है। बचाया जाए तो बचा लो। नहीं तो हम भी यहीं आपके पास ही रहेंगे। उस गाँव के व्यक्ति भी इकट्ठे हो गए। सर्व घटना का पता चला। वर्तमान गाँव वाले कहने लगे कि चौधरियों! तुम बसोगे तो हम
उजड़ेंगे। जब से ये दो देवता गाँव में आए हैं, गाँव में किसी की तू-तू, मैं-मैं भी नहीं हुई। दो बार बारिश हो चुकी है। देखो! फसल लहला रही हैं। खेखड़ा वालों ने विशेष विनय की तो दोनों महापुरूषों ने लौटने की हाँ कर दी और वर्तमान गाँव वालों से कहा कि हम समय-समय पर आते रहेंगे। प्रत्येक पूर्णमासी को आप खेखड़ा आया कीजिए। परमात्मा कबीर जी सब ठीक रखेंगे। दोनों महापुरूषों के आते ही पूरे गाँव में पूर्ण शांति हो गई। पशु धन स्वस्थ हो गया। अगले दिन भारी बारिश हो गई। किसान लोग फूले नहीं समा रहे थे। 36 बिरादरी खुश थी। सब उपद्रव बंद हो गए। आज तक उस गाँव में संत घीसा दास जी तथा भक्त जीता दास जी के नाम के मेले लगते हैं। संत गरीबदास जी ने कहा है कि:-

गरीब, जिस मण्डल साधु नहीं, नदी नहीं गुंजार।
तज हंसा वह देशड़ा, जम की मोटी मार।।

शब्दार्थ:- जिस क्षेत्र में महात्मा, गुरूजन नहीं होते और नदी आसपास न बह रही हो। हे भक्त! उस देश को त्याग दे। वहाँ काल की भयंकर प्रताड़ना है।

इसलिए हे पाठकजनो! जब भी जिस आयु में सतगुरू मिल जाए, भक्ति प्रारम्भ कर देना। संत गरीबदास जी ने कहा है कि:-

गरीब, चली गई सो जान दे, ले रहती कूं राख।
उतरी लाव चढ़ाईयो, करो अपूठी चाक।।

भावार्थ:- हे मानव! जो आयु बिना सतगुरू मिले बीत चुकी है, वह तो व्यर्थ गई। उसकी चिंता छोड़कर सच्ची लगन से शेष बची आयु में भक्ति करके कल्याण करवा ले। भक्ति पर लगने के पश्चात् संसारिक कार्य भी आसान हो जाऐंगे जैसे कूँए से पानी निकालते समय नेजू (बाल्टी से बँधी रस्सी) चक्र से उतर जाती तो बाल्टी को खींचना कठिन हो जाता था। नेजू को फिर से चक्र पर चढ़ाकर बाल्टी खींचना बहुत आसान हो जाता है। सतगुरू की शरण में आने से पहले लाव (रस्सी) चक्र से उतरी हुई के समान पानी निकालना कठिन हो रहा था। उसी प्रकार सब कार्य कठिनता से बन रहे थे। भक्ति शुरू करते ही कार्य आसानी से बनने लगे जैसे रस्सी चक्र पर चढ़ने के पश्चात् पानी आसानी से निकलता है। यह विचार नहीं करना चाहिए कि अब तो आयु कम रहती है। अब क्या भक्ति करेंगे। जब भी सत्संग से ज्ञान हो जाए। उसी आयु में दृढ़ता व लगन से भक्ति पर लग जाना चाहिए।

भावार्थ:- जो आयु चली गई, उसकी चिंता छोड़कर शेष की रक्षा करो यानि भक्ति, दान-सेवा में लगा दो। जैसे पुराने समय में कूंए से खेती की सिंचाई के लिए चमड़े की चड़स प्रयोग होती थी जिसमें दो-तीन क्विंटल पानी भर जाता था। उसको काष्ठ की चक्री के ऊपर लाव (मोटी रस्सी) चढ़ाकर बाँधकर खींचते थे। यदि लाव (रस्सी) चक्री से उतर जाती थी (फिसल जाती थी) तो उसे खींचना कठिन हो जाता था। उसको जैसे-तैसे पुनः चक्री (काष्ट के मोटे घेरे) पर चढ़ाया जाता था जिससे चड़स को बाहर निकालना आसान होता था जो उससे लाभ लेने का यथार्थ तरीका है। इसलिए हे मानव! यदि गुरू शरण नहीं ली है तो आपकी लाव उतरी पड़ी है, जीवन का प्रत्येक कार्य मुसीबत बना खड़ा है। उस जीवन की लाव को पुनः पुली (चक्री) पर चढ़ा लो। फिर चलाओ, आसान हो जाएगा यानि गुरू जी की शरण लेकर अपने जीवन की राह को आसान बनाओ।