सूक्ष्मवेद में कहा है:-
यह संसार समझदा नाहीं, कहंदा शाम दुपहरे नूँ।
गरीबदास यह वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे नूँ।।
आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में परमात्मा के विधान से अपरिचित होने के कारण यह प्राणी इस दुःखों के घर संसार में महान कष्ट झेल रहा है और इसी को सुख स्थान मान रहा है। जैसे एक व्यक्ति जून के महीने मंे दिन के 12 या 1 बजे, हरियाणा प्रान्त में शराब पीकर चिलचिलाती धूप में गिरा पड़ा है, पसीनों से बुरा हाल है, रेत शरीर से लिपटा है। एक व्यक्ति ने कहा हे भाई! उठ, तुझे वृक्ष के नीचे बैठा दूँ, तू यहाँ पर गर्मी मंे जल रहा है। शराबी बोला कि मैं बिल्कुल ठीक हूँ, मौज हो रही है, कोई कष्ट नहीं है।
यह संसार समंझदा नाहीं, कहंदा शाम दोपहरे नूं।
गरीब दास यह वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे नूँ।।
सन्त गरीबदास जी ने बताया है कि मनुष्य जन्म प्राप्त करके जो व्यक्ति भक्ति नहीं करता, वह कुत्ते, गधे आदि-आदि की योनि में कष्ट उठाता है। कुत्ता रात्रि में आसमान की ओर मुख करके रोता है। इसलिए गरीबदास जी ने बताया
है कि यह मानव शरीर का वक्त एक बार हाथ से निकल गया और भक्ति नहीं की तो इस समय (इस पहरे) को याद करके रोया करोगे।