रामराय, जिन्हें झुमकरा के नाम से भी जाना जाता है, पंजाब के रहने वाले थे। पंजाब एक ऐसा प्रदेश है जहाँ के लोग अपनी भक्ति भावना और लोगों की सेवाभावना के लिए प्रसिद्ध है। यह लेख उस सच्ची कथा का वर्णन करता है जिसमें भगवान विष्णु के उपासक रहे झुमकरा ने आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज की शरण ली, जिन्होंने उन्हें सतलोक प्राप्ति के योग्य बनाया।
आइए जानते हैं कि झुमकरा संत गरीबदास जी से कैसे मिले और उन्होंने कौन सा वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया, जिसने उन्हें सर्वशक्तिमान कबीर परमेश्वर का उपासक बना दिया।
संदर्भ: सचिदानंदघन ब्रह्म के अमृत वचन, सूक्ष्म वेद
लगभग 250 वर्ष पहले, पूर्ण परमात्मा कबीर परमेश्वर जी हरियाणा के झज्जर जिले के छुड़ानी गाँव में 10 वर्षीय बालक गरीब दास जी को स्वयं आ कर मिले थे। गरीब दास जी एक समृद्ध जमींदार के इकलौते नाती थे; उनके नाना जी के पास लगभग 1400 एकड़ जमीन थी और वे जाट जाति से थे।
कबीर परमेश्वर जी ने पुण्यात्मा गरीब दास जी को काल के सभी लोकों के दर्शन कराए और वहाँ के देवताओं की स्थिति से उन्हें अवगत कराया। जिसके बाद परमेश्वर कबीर संत गरीबदास जी महाराज को शाश्वत धाम सतलोक ले गए और वहाँ उन्हें पूर्ण तत्वज्ञान प्रदान किया, सच्चे मोक्ष मंत्र दिए, और फिर उनकी आत्मा को वापस शरीर में भेज दिया।
ईश्वर के सतज्ञान को प्राप्त करने के पश्चात, गरीब दास जी ने परमात्मा के वास्तविक ज्ञान का प्रचार-प्रसार आरंभ किया। उन्होंने अपने प्रत्यक्ष अनुभवों को लिपिबद्ध करते हुए 'सद्ग्रंथ साहिब अर्थात अमर ग्रंथ साहिब' नामक एक अमूल्य ग्रंथ की रचना की। यह पवित्र ग्रंथ पांचवां वेद कहा जाता है, जिसे सूक्ष्म वेद भी कहते हैं, जिसमें सच्चिदानंद घन ब्रह्म की अमृत वाणियाँ संकलित हैं।
एक समय पूज्य संत गरीबदास जी महाराज के एक शिष्य पंजाब राज्य के लुधियाना शहर के पास वसियार गांव में गए हुए थे। एक सुबह वह शिष्य गांव के पास ही एक छोटी सी वनी में एक तालाब के किनारे शांत स्थान पर बैठकर सूक्ष्म वेद में वर्णित 'ब्रह्म बेदी' का पाठ कर रहे थे (जिसे वाणी कहा जाता था)।
इसी दौरान एक समृद्ध किसान जिसका नाम रामराय था, जिसके पास लगभग 800-900 बीघा जमीन थी, वहां से गुजरा। गांव और आसपास के इलाकों में वह 'झुमकरा' के नाम से प्रसिद्ध था।
(जो व्यक्ति चंचल स्वभाव का, उसे प्रायः झुमकरा कहा जाता है।) वह लुधियाना के पास वसियार गांव का ही रहने वाला था और सिख समुदाय से संबंधित था। उसने शिष्य को 'ब्रह्म बेदी' की वाणी का पाठ करते हुए सुना। पंजाब के लोग संतों की वाणी के बड़े शौकीन होते हैं और उनकी अत्यंत सराहना करते हैं।
रामराय अमृत वाणी को सुनकर अत्यंत प्रभावित हुए। जब शिष्य ने नित्य नियम का पाठ पूरा कर लिया, तो झुमकरा ने जिज्ञासावश पूछा, "यह अद्भुत वाणी, जो आप पढ़ रहे थे, यह किसकी है? यह मुझे बहुत आकर्षित कर रही है। मैंने ऐसी वाणी तो कभी गुरु ग्रंथ साहिब में भी नहीं पढ़ी।" भक्त ने उन्हें अपने पूज्य गुरुदेव संत गरीबदास जी महाराज के बारे में बताया। तब रामराय, जिसे लोग झुमकरा भी कहते थे, ने पूछा, "आपके गुरुदेव अब भी जीवित हैं या उन्होंने शरीर त्याग दिया है?" भक्त ने उत्तर दिया, "मेरे गुरुदेव, संत गरीबदास जी महाराज, अभी सशरीर विद्यमान हैं। उन्होंने अब तक लगभग 24,000 अद्भुत वाणियां प्रकट की हैं।" यह सुनकर प्रभु प्रेमी रामराय के मन में ऐसे दिव्य महापुरुष से मिलने की तीव्र जिज्ञासा जागृत हो उठी क्योकि वो पहले से ही ईश्वर की खोज में भटक रहे थे
झुमकरा उर्फ रामराय संत गरीब दास जी महाराज से मिलने लुधियाना से छुड़ानी गांव रवाना हो गए। उनके मन में संत जी को लेकर एक खास छवि बनी हुई थी — उन्हें लगा था कि संत जी के बड़ी-बड़ी जटा होंगी, लंबी दाढ़ी होगी, केसरिया या पीले कपड़े पहनते होंगे, माथे पर तिलक, हाथ में चिमटा या चक्र, कानों में कुंडल और शायद शरीर पर भस्म भी लगाए होंगे। यानी एकदम किसी साधु वाले रूप में होंगे। असल में ये छवि दिखावटी साधुओं जैसी थी, जो वेशभूषा से ही खुद को महापुरुष साबित करने की कोशिश करते हैं, जबकि उनकी भक्ति शास्त्रों के अनुसार नहीं होती।
जब झुमकरा छुड़ानी गांव पहुंचे तो संत गरीब दास जी घर पर नहीं थे, वे खेतों में काम करने गए थे। समृद्ध होने के बावजूद संत गरीबदास जी पूर्णतः साधारण और जमीन से जुड़े हुए थे। वे अपने खेतों में खुद ही काम किया करते थे। जब झुमकरा ने घर में बैठे कुछ शिष्यों से गरीबदास जी के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया, "गरीबदास जी अपने खेतों में गए हुए हैं। यह तो उनकी मौज है कि वे कब वापस आएंगे।"
झुमकरा गरीबदास जी से मिलने के लिए व्याकुल थे, इसलिए वे प्रतीक्षा न करके उसी दिशा में चल पड़े, जहां संत गरीबदास जी के खेतों के पास अरहट लगा हुआ था। रास्ते में उनकी मुलाकात स्वयं गरीबदास जी से हो गई। उन्होंने गरीबदास जी से पूछा, "मुझे बताइए, गरीबदास जी कहां मिलेंगे?"
उस समय गरीबदास जी ने अपना परिचय देना उचित नहीं समझा क्योंकि वे सर्वज्ञ थे (परमात्मा कबीर जी का स्वरूप), वे भलीभांति जानते थे कि झुमकरा के मन में संत के जिस स्वरूप की कल्पना थी, वह उनके साधारण किसान जैसे रूप से मेल नहीं खा रही थी। यदि वे अपना परिचय दे देते, तो झुमकरा भ्रमित होकर लौट जाते। परमात्मा संत गरीबदास जी अपनी प्रिय आत्मा झुमकरा को अपनी शरण में लेना चाहते थे, ताकि उन्हें सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान देकर उनका कल्याण कर सकें।
उस समय संत गरीबदास जी अपने सिर पर पशुओं के लिए चारा और ज्वार का एक गट्ठर (बरोटा) लेकर लौट रहे थे। झुमकरा भी उनके साथ-साथ उनके घर तक आ गए। जब संत गरीबदास जी घर पहुंचे, तो उनके शिष्यों ने अपने पूज्य गुरुदेव को देखकर आदरपूर्वक प्रणाम किया। किसी ने हाथ जोड़कर नमन किया, किसी ने दंडवत प्रणाम किया, और एक भक्त ने संत गरीबदास जी के सिर से भरौटा उतारकर श्रद्धापूर्वक अपने सिर पर रख लिया।
यह दृश्य देखकर झुमकरा आश्चर्य में पड़ गए। वे सोचने लगे कि शायद गरीबदास जी धनी व्यक्ति हैं, इसलिए लोग उनका इतना सम्मान कर रहे हैं। उन्होंने जिज्ञासा से पूछ लिया, "ये कौन हैं?"
किसी ने उत्तर दिया, "ये ही महान संत गरीबदास जी हैं।"
रामराय (झुमकरा) यह सुनकर हैरान रह गए, क्योंकि गरीबदास जी ने साधारण धोती-कुर्ता और पगड़ी पहन रखी थी — यह रूप उनके मन में संत के बनाए गए स्वरूप से बिलकुल भिन्न था। वे मन ही मन निराश हो गए और सोचने लगे, "यह तो कमाल हो गया! मैंने क्या उम्मीद की थी, और परिणाम यह निकला — जैसे खोदा पहाड़ निकली चूहिया। ये तो मेरे जैसे ही किसान है। इन्हें संत किसने बना दिया? ये तो बस एक समृद्ध जाट किसान हैं, मेरे जैसे ही। मैं कितना बड़ा मूर्ख बन गया! और इतनी दूर आ गया!”
संत गरीबदास जी उसके मन के भाव को समझ रहे थे। उन्होंने अपने आस-पास बैठे भक्तों को कुछ न कुछ जिम्मेदारियाँ सौंपीं, जैसे किसी को उनके स्नान के लिए पानी की व्यवस्था करने को कहा, किसी को भोजन की, और अन्य को कुछ और कार्यों में लगा दिया। सभी भक्त श्रद्धापूर्वक अपने-अपने कार्यों में लग गए।
जब संत गरीबदास जी ने स्नान कर लिया, तो उन्होंने झुमकरा से कहा कि उनकी उंगलियाँ चोटिल है इसलिए वो उनकी धोती (अड़बंध) की गाँठ बाँधने में मदद करे। झुमकरा यह सुनकर चौंक गए — "गरीबदास जी मेरा उपनाम कैसे जानते हैं? मैंने तो उन्हें अपना नाम बताया ही नहीं!" दरअसल, संत गरीबदास जी ने जानबूझकर उन्हें उनके उपनाम से पुकारा था, क्योंकि रामराय (झुमकरा) चंचल स्वभाव के थे और यह उनके मन में उठ रहे संशय को दूर करने का उपाय था।
रामराय ने उनकी धोती बाँधनी चाही, पर आश्चर्य की बात यह हुई कि गाँठ उनके शरीर को पार करके कपड़े में लग गई। उसने दूसरी बार कोशिश की, पर फिर वही हुआ। तीसरी बार भी जब झुमकरा प्रयास कर रहे थे, तो गरीबदास जी ने मुस्कुराकर कहा, "झुमकरा, मैं भी तो तुम्हारे जैसा ही हूँ। फिर तुम्हारी गाँठ क्यों नहीं लग रही?"
यह सुनकर रामराय उनके चेहरे की ओर देखने लगे। उसी क्षण संत गरीबदास जी ने उन्हें अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन कराया। रामराय जी विष्णु जी के उपासक थे। उन्होने देखा कि गरीबदास जी भगवान विष्णु के रूप में प्रकट हो गए हैं — सिर पर मोर पंख का मुकुट, हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित थे। यह दृश्य देखकर झुमकरा स्तब्ध रह गए। उन्हें तत्काल अपनी भूल का एहसास हुआ कि वे संत गरीबदास जी को एक साधारण मनुष्य समझ बैठे थे। उन्होंने दण्डवत प्रणाम कर क्षमा याचना की।
जब उन्होंने फिर से संत गरीबदास जी की ओर देखा, तो वे अपने मूल रूप में ही आ गए। झुमकरा के मन में विचार आया — "गरीबदास जी ने मुझे मेरे उपनाम से पुकारा, यह देखकर मैं प्रभावित हो गया। इसलिए शायद ये हुआ चूंकि मैं विष्णु जी का उपासक हूँ, हो सकता है यह मेरी कल्पना हो। लेकिन यह कैसे हुआ कि मेरी गाँठ शरीर से निकलकर कपड़े में लग गई?" इसी सोच-विचार में डूबे झुमकरा को गरीबदास जी ने बैठने को कहा। फिर उन्होंने झुमकरा को दो घंटे तक सत्संग सुनाया। संत गरीबदास जी ने सम्पूर्ण सृष्टि रचना का रहस्य बताया और उन्हें पूर्ण तत्वज्ञान प्रदान किया।
हम सुल्तानी, नानक तारें, दादू को उपदेश दिया।
जात जुलाहा भेद नहीं पाया, वह काशी में कबीर हुआ।
उन्होंने परमात्मा कबीर के बारे में बताया, जैसा कि पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब में पृष्ठ संख्या 24 पर लिखा है —
फाही सूरत मुलकी वेश, ये ठगवाड़ा ठगी देश।
खड़ा सियाना बहुत भार, ये धनक रूप रहा करतार।
राग तिलंग महला 1, पृष्ठ संख्या 721 पर लिखा है —
यक अर्ज गुफ्तम पेश तो, दरगुश कुन करतार।
हक्का कबीर करीम तू, बेऐब परवरदगार।
पृष्ठ संख्या 731 पर लिखा है —
नीच जाति परदेसी मेरा, खिन आवै तिल जावै।
जा की संगत नानक रहैंदा, क्यूंकर मौंडा पावै॥
इस प्रकार, गरीबदास जी ने परमात्मा कबीर की महिमा का बखान किया। तब झुमकरा ने कहा, "महाराज जी, आज तक किसी ने मुझे ऐसा आध्यात्मिक ज्ञान नहीं दिया।" तब संत गरीबदास जी ने अमृतवाणी के माध्यम से तत्त्वज्ञान समझाया।
सब गीता का मूल है राय झुमकरा। सूक्ष्म वेद समूल सुनो राय झुमकरा।।
तत्व भेद कोई ना कहै रै झुमकराा।। पैसे ऊपर नाच सुनो राई झुमकरा।।
कोट्यों मध्य कोई नहीं रै झुमकरा। अरबों में कोई गर्क सुनो राई झुमकरा।।
अरबों में कोई गर्क का अर्थ है — जो सभी ज्ञान से भरपूर हो, अर्थात् परिपूर्ण। जिसके पास संपूर्ण ज्ञान हो, संपूर्ण मंत्र हों और जो परमात्मा द्वारा अधिकृत हो। ऐसा संत खरबों में कोई एक ही होता है। यही बात श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 श्लोक 19 में भी कही गई है।
बहूनाम्, जन्मनाम्, अन्ते, ज्ञानवान्, माम्, प्रपद्यते,
वासुदेवः, सर्वम्, इति, सः, महात्मा,सुदुर्लभः।।19।।
भावार्थ - गीता अध्याय 7 श्लोक 19 का भावार्थ है कि मुझ ब्रह्म की साधना भी बहुत जन्मों के बाद कोई-कोई करता है, नहीं तो अन्य देवताओं की पूजा ही करते रहते हैं तथा यह बताने वाला संत बहुत दुर्लभ है कि पूर्ण ब्रह्म ही सब कुछ है, ब्रह्म व परब्रह्म से पूर्ण मोक्ष नहीं होता।
इसके अलावा, संत गरीब दास जी महाराज ने रामराय को आत्मा के नाभि कमल से बारहवें द्वार होते हुए सतलोक तक पहुंचने का मार्ग समझाया है, जिसे 'अथ झुमकरा' अध्याय में सद्ग्रन्थ साहिब में लिपिबद्ध किया गया है।
(संदर्भ: सूक्ष्मवेद, अध्याय ‘अथ झुमकरा’, पृष्ठ संख्या 670)
संत गरीब दास जी ने अपनी दिव्य दृष्टि से झुमकरा को अमर लोक (सतलोक) पहुँचने का सम्पूर्ण मार्ग बताया। यह आत्मा की यात्रा होती है, जिसकी शुरुआत नाभि कमल से होती है, जो रीढ़ की हड्डी (मेरुदंड) में नाभि के पीछे स्थित होता है।
वहाँ से आत्मा एक अत्यंत संकीर्ण मार्ग से गुजरती है, जिसे ‘बंकनाल’ कहा गया है। यह एक सुरंग के समान, लंबी और मुड़ी हुई विशेष नाड़ी होती है। ‘बंकनाल’ की कई प्रकार की अवस्थाएँ होती हैं, और यह सभी शरीरों—स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर—में भिन्न भिन्न होती है।
आत्मा को इस ‘बंकनाल’ से आगे बढ़ना होता है, जिसके पश्चात वह ‘सुषुम्ना’ नाड़ी के द्वार को पार करती है। यह द्वार केवल श्वास उश्वास की साधना और सतगुरु द्वारा दिए गए सारनाम के नियमित जाप से ही खुलता है। जब यह द्वार खुलता है, तब आत्मा का परमात्मा के प्रति प्रेम और लगाव अत्यधिक बढ़ जाता है—जो भक्ति के सफल होने का प्रतीक है।
यदि आत्मा में पूर्ण समर्पण और अटल विश्वास न हो, तो वह मार्ग से विचलित होकर भक्ति को छोड़ सकती है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति असंभव हो जाती है। इसलिए, अंत समय तक भी सतगुरु के दिए हुए मंत्र का श्रद्धा और विश्वास के साथ जाप करते रहना आवश्यक है।
यहाँ परमात्मा कबीर साहेब जी कहते हैं
कबीर, मन के मते न चालिए, इस मन का के विश्वास।
और साधु जब लग डर के रहे, जब लग पिंजर हंस।।
संत गरीबदास जी झूमकरा को आत्मा के मोक्ष प्राप्त करने के लिए आवश्यक आठ गुणों के बारे में बताते हैं। जैसे-जैसे साधक साधना में आगे बढ़ता है, आत्मा अपने भीतर दिव्य शक्ति का अनुभव करने लगती है। कुछ साधकों को काल के विभिन्न देवताओं के दर्शन होते हैं। वे उनकी रोशनी (तेज) को देखते हैं, लेकिन इनमें से कोई भी पूर्ण परमात्मा नहीं है।
इस अंतर को विभिन्न वाट (जैसे 0, 100, 1000 वाट) के ट्यूबलाइट और बल्बों में अंतर के रूप में समझना चाहिए। साधक अक्सर इस अनुभव को एक महान आध्यात्मिक उपलब्धि मान लेते हैं, जबकि यह एक भ्रम होता है।
ब्रह्म, परब्रह्म और पारब्रह्म (या परमेश्वर) की रोशनी (तेज) एक-दूसरे से भिन्न होती है। पूर्ण परमात्मा अत्यंत तेजोमय है और आत्मा को उसके दर्शन के लिए ऊपर की ओर आध्यात्मिक यात्रा करनी पड़ती है। साधक के लिए पारब्रह्म की प्राप्ति ही परम लक्ष्य है।
इन अमृतवाणियों में संत गरीबदास जी झूमकरा को केवल तीन लोकों की जानकारी देते हैं। त्रिकुटी तक पहुँचने पर साधक को दिव्य शक्ति, अर्थात भगवान 'राम रतन' के दर्शन होते हैं। संत गरीबदास जी साधना और ध्यान द्वारा उस परम शक्ति से संबंध स्थापित करने की प्रेरणा देते हैं। गरीबदास जी झूमकरा को सतलोक की महिमा बताते हैं, जो सनातन और अमर लोक है। वहाँ पूर्ण परमात्मा अर्थात सतपुरुष निवास करते हैं। यह स्थान सभी लोकों से परे है।
जब झूमकरा संत गरीबदास जी को सुनते हैं, तो वे आश्चर्य से पूछते हैं, "महाराज जी! हम तो केवल ब्रह्मा, विष्णु और शिव तक ही जानते थे। आपने तो उनसे भी आगे की बातें बताईं, जिनके बारे में हम अनभिज्ञ थे।” तब परमेश्वर संत गरीब दास जी कहते हैं
पूरब देश हमर है रै झूमकरा, कोई न जाने भेद सुनो रै झूमकरा।।
गगन मंडल में रहता है रै झूमकरा, बिन देही का देव सुनो रै झूमकरा।।
गरीब दास जी रामराय को बता रहे हैं कि पूर्ण परमात्मा सतलोक में रहता है जिसे प्राप्त कर जीव पूर्ण मुक्ति प्राप्त करता है। झूमकरा अर्थात रामराय पूछते हैं 'भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान शिव, देवी दुर्गा भी शक्तियां हैं? संत गरीब दास जी ने कहा 'हाँ, वे भी शक्तियाँ हैं लेकिन केवल तीन लोकों की हैं। यहां जीव अपने कर्म भोगता रहेगा। जन्म-पुनर्जन्म चलता रहेगा। मोक्ष कभी प्राप्त नहीं होगा।
संत गरीबदास जी बताते हैं कि ‘चौथी मुक्ति’ ब्रह्मलोक या महास्वर्ग की प्राप्ति है, अर्थात् क्षर पुरुष के लोक तक पहुँचना। ऐसे साधक ब्रह्मलीन हो जाते हैं और उनकी आत्मा महाप्रलय तक ब्रह्मलोक में निवास करती है। यह अवस्था चौथी मुक्ति कहलाती है। किंतु जब इस मुक्ति की अवधि पूर्ण हो जाती है, तब वह आत्मा पुनः इस मृत्युलोक में जन्म लेती है। इस प्रकार वह जन्म-मरण के दुःखद चक्र में फँसी रहती है।
यह सुनकर रामराय प्रश्न करते हैं:
"महाराज जी! क्या इसका कोई स्थायी समाधान है?"
तब संत गरीबदास जी सतलोक की प्राप्ति की बात करते हैं—जो कि परम अक्षर ब्रह्म या सतपुरुष का निवास स्थान है। वही परमेश्वर संपूर्ण ब्रह्मांडों का रचयिता है, उसी का सब पर अधिकार है, और वही वास्तव में पूजनीय है। वही पापों का नाश करने वाला और मुक्ति प्रदान करने वाला है।
झूमकरा एक पुण्यात्मा था, जिसे संत गरीबदास जी ने उस समय अपनी शरण में लेकर तत्त्व ज्ञान से परिचित कराया था। आज भी पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब स्वयं अवतरित होकर जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के रूप में लीला कर रहे हैं।
सभी प्रभु-प्रेमी आत्माओं के लिए यही संदेश है कि वे संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर सच्चे मोक्ष मंत्र प्राप्त करें, और झूमकरा की तरह ही मोक्ष के अधिकारी बनें। तभी वे भौतिक बंधनों से मुक्त होकर सतलोक रूपी शाश्वत और अमर धाम की प्राप्ति कर सकेंगे।