5. भक्ति न करने से हानि का अन्य विवरण | जीने की राह


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यह दम टूटै पिण्डा फूटै, हो लेखा दरगाह मांही।
उस दरगाह में मार पड़ैगी, जम पकड़ेंगे बांही।।
नर-नारायण देहि पाय कर, फेर चौरासी जांही।
उस दिन की मोहे डरनी लागे, लज्जा रह के नांही।।
जा सतगुरू की मैं बलिहारी, जो जामण मरण मिटाहीं।
कुल परिवार तेरा कुटम्ब कबीला, मसलित एक ठहराहीं।
बाँध पींजरी आगै धर लिया, मरघट कूँ ले जाहीं।।
अग्नि लगा दिया जब लम्बा, फूंक दिया उस ठाहीं।
पुराण उठा फिर पण्डित आए, पीछे गरूड पढाहीं।।

भावार्थ:- यह दम अर्थात् श्वांस जिस दिन समाप्त हो जाऐंगे। उसी दिन यह शरीर रूपी पिण्ड छूट जाएगा। फिर परमात्मा के दरबार में पाप-पुण्यों का हिसाब होगा। भक्ति न करने वाले या शास्त्रविरुद्ध भक्ति करने वाले को यम के दूत भुजा पकड़कर ले जाऐंगे, चाहे कोई किसी देश का राजा भी क्यों न हो, उसकी पिटाई की जाएगी। सन्त गरीबदास को परमेश्वर कबीर जी मिले थे। उनकी आत्मा को ऊपर लेकर गए थे। सर्व ब्रह्माण्डों को दिखाकर सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान समझाकर वापिस शरीर में छोड़ा था। सन्त गरीब दास जी आँखों देखा हाल बयान कर रहे हैं कि:- हे मानव! आपको नर शरीर मिला है जो नारायण अर्थात् परमात्मा के शरीर जैसा अर्थात् उसी का स्वरूप है। अन्य प्राणियों को यह सुन्दर शरीर नहीं मिला। इसके मिलने के पश्चात् प्राणी को आजीवन भगवान की भक्ति करनी चाहिए। ऐसा परमात्मा स्वरूप शरीर प्राप्त करके सत्य भक्ति न करने के कारण फिर चौरासी लाख वाले चक्र में जा रहा है, धिक्कार है तेरे मानव जीवन को! मुझे तो उस दिन की चिन्ता बनी है, डर लगता है कि कहीं भक्ति कम बने और उस परमात्मा के दरबार में पता नहीं इज्जत रहेगी या नहीं। मैं तो भक्ति करते-करते भी डरता हूँ कि कहीं भक्ति कम न रह जाए। आप तो भक्ति ही नहीं करते। यदि करते हो तो शास्त्रविरुद्ध करते हो। तुम्हारा तो बुरा हाल होगा और मैं तो राय देता हूँ कि ऐसा सतगुरू चुनो जो जन्म-मरण के दीर्घ रोग को मिटा दे, समाप्त कर दे। जो सत्य भक्ति नहीं करते, उनका क्या हाल होता है मृत्यु के पश्चात्। आस-पास के कुल के लोग इकट्ठे हो जाते हैं। फिर सबकी एक ही मसलत अर्थात् राय बनती है कि इसको उठाओ। (उठाकर शमशान घाट पर ले जाकर फूँक देते हैं, लाठी या जैली की खोद (ठोकर) मार-मारकर छाती तोड़ते हैं। सम्पूर्ण शरीर को जला देते हैं। जो कुछ भी जेब में होता है, उसको निकाल लेते हैं। फिर शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण कराने और करने वाले उस संसार से चले गए जीव के कल्याण के लिए गुरू गरूड पुराण का पाठ करते हैं।)

तत्वज्ञान (सूक्ष्मवेद) में कहा है कि अपना मानव जीवन पूरा करके वह जीव चला गया। परमात्मा के दरबार में उसका हिसाब होगा। वह कर्मानुसार कहीं गधा-कुत्ता बनने की पंक्ति में खड़ा होगा। मृत्यु के पश्चात् गरूड पुराण का पाठ उसके क्या काम आएगा। यह व्यर्थ का शास्त्रविरूद्ध क्रियाक्रम है। उस प्राणी का मनुष्य शरीर रहते उसको भगवान के संविधान का ज्ञान करना चाहिए था। जिससे उसको अच्छे-बुरे का ज्ञान होता और वह अपना मानव जीवन सफल करता।

प्रेत शिला पर जाय विराजे, फिर पितरों पिण्ड भराहीं।
बहुर श्राद्ध खान कूं आया, काग भये कलि माहीं।।

भावार्थ है कि मृत्यु उपरान्त उस जीव के कल्याण अर्थात् गति कराने के लिए की जाने वाली शास्त्रविरूद्ध क्रियाऐं व्यर्थ हंै। जैसे गरूड पुराण का पाठ करवाया। उस मरने वाले की गति अर्थात् मोक्ष के लिए। फिर अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित की उसकी गति (मोक्ष) करवाने के लिए। फिर तेहरवीं या सतरहवीं को हवन व भण्डारा (लंगर) किया उसकी गति कराने के लिए। पहले प्रत्येक महीने एक वर्ष तक महीना क्रिया करते थे, उसकी गति कराने के लिए, फिर छठे महीने छःमाही क्रिया करते थे, उसकी गति कराने के लिए, फिर वर्षी क्रिया करते थे उसकी गति कराने के लिए, फिर उसकी पिण्डोदक क्रिया कराते हैं, उसकी गति कराने के लिए श्राद्ध निकालते हैं अर्थात् श्राद्ध क्रिया कराते हैं, श्राद्ध वाले दिन पुरोहित भोजन स्वयं बनाता है और कहता है कि कुछ भोजन मकान की छत पर रखो, कहीं आपका पिता कौआ (काग) न बन गया हो। जब कौवा भोजन खा जाता तो कहते हैं कि तेरे पिता या माता आदि जो मृत्यु को प्राप्त हो चुका है जिसके हेतु यह सर्व क्रिया की गई है और यह श्राद्ध किया गया है। वह कौवा बना है, इसका श्राद्ध सफल हो गया। इस उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हुआ कि वह व्यक्ति जिसका उपरोक्त क्रियाकर्म किया था, वह कौवा बन चुका है।

श्राद्ध करने वाले पुरोहित कहते हैं कि श्राद्ध करने से वह जीव एक वर्ष तक तृप्त हो जाता है। फिर एक वर्ष में श्राद्ध फिर करना है।

विचार करें:- जीवित व्यक्ति दिन में तीन बार भोजन करता था। अब एक दिन भोजन करने से एक वर्ष तक कैसे तृप्त हो सकता है? यदि प्रतिदिन छत पर भोजन रखा जाए तो वह कौवा प्रतिदिन ही भोजन खाएगा।

दूसरी बात:- मृत्यु के पश्चात् की गई सर्व क्रियाऐं गति (मोक्ष) कराने के उद्देश्य से की गई थी। उन ज्ञानहीन गुरूओं ने अन्त में कौवा बनवाकर छोड़ा। वह प्रेत शिला पर प्रेत योनि भोग रहा है। पीछे से गुरू और कौवा मौज से भोजन कर रहा है। पिण्ड भराने का लाभ बताया है कि प्रेत योनि छूट जाती है। मान लें प्रेत योनि छूट गई। फिर वह गधा या बैल बन गया तो क्या गति कराई?

नर से फिर पशुवा कीजै, गधा, बैल बनाई।
छप्पन भोग कहाँ मन बौरे, कहीं कुरड़ी चरने जाई।।

मनुष्य जीवन में हम कितने अच्छे अर्थात् 56 प्रकार के भोजन खाते हैं। भक्ति न करने से या शास्त्रविरूद्ध साधना करने से गधा बनेगा, फिर ये छप्पन प्रकार के भोजन कहाँ प्राप्त होंगे, कहीं कुरड़ियों (रूड़ी) पर पेट भरने के लिए घास खाने जाएगा। इसी प्रकार बैल आदि-आदि पशुओं की योनियों में कष्ट पर कष्ट उठाएगा।

जै सतगुरू की संगत करते, सकल कर्म कटि जाईं।
अमर पुरि पर आसन होते, जहाँ धूप न छाँइ।।

सन्त गरीब दास ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त सूक्ष्मवेद में आगे कहा है कि यदि सतगुरू (तत्वदर्शी सन्त) की शरण में जाकर दीक्षा लेते तो उपरोक्त सर्व कर्मों के कष्ट कट जाते अर्थात् न प्रेत बनते, न गधा, न बैल बनते। अमरपुरी पर आसन होता अर्थात् गीता अध्याय 18 श्लोक 62 तथा अध्याय 15 श्लोक 4 में वर्णित सनातन परम धाम प्राप्त होता, परम शान्ति प्राप्त हो जाती। फिर कभी लौटकर संसार में नहीं आते अर्थात् जन्म-मरण का कष्टदायक चक्र सदा के लिए समाप्त हो जाता। उस अमर लोक (सत्यलोक) में धूप-छाया नहीं है अर्थात् जैसे धूप दुःखदाई हुई तो छाया की आवश्यकता पड़ी। उस सत्यलोक में केवल सुख है, दुःख नहीं है।

सुरत निरत मन पवन पयाना, शब्दै शब्द समाई।
गरीब दास गलतान महल में, मिले कबीर गोसांई।।

सन्त गरीबदास जी ने कहा है कि मुझे कबीर परमेश्वर मिले हैं। मुझे सुरत-निरत, मन तथा श्वांस पर ध्यान रखकर नाम का स्मरण करने की विधि बताई। जिस साधना से सतलोक में हो रही शब्द धुनि को पकड़कर सतलोक में चला गया। जिस कारण से सत्यलोक (शाश्वत स्थान) में अपने महल में आनन्द से रहता हूँ क्योंकि सत्य साधना जो परमेश्वर कबीर जी ने सन्त गरीब दास को जो बताई थी और उस स्थान (सत्यलोक) को गरीब दास जी परमेश्वर के साथ जाकर देखकर आए थे। जिस कारण से विश्वास के साथ कहा कि मैं जो शास्त्रानुकूल साधना कर रहा हूँ, यह परमात्मा ने बताई है। जिस शब्द अर्थात् नाम का जाप करने से मैं अवश्य पूर्ण मोक्ष प्राप्त करूँगा, इसमें कोई संशय नहीं रहा। जिस कारण से मैं (गरीब दास) सत्यलोक में बने अपने महल (विशाल घर) में जाऊँगा, जिस कारण से निश्चिन्त तथा गलतान (महल प्राप्ति की खुशी में मस्त) हूँ क्योंकि मुझे पूर्ण गुरू स्वयं परमात्मा कबीर जी अपने लोक से आकर मिले हैं।

गरीब, अजब नगर में ले गए, हमको सतगुरू आन।
 झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।।

भावार्थ:- गरीबदास जी ने बताया है कि सतगुरू अर्थात् स्वयं परमेश्वर कबीर जी अपने निज धाम सत्यलोक से आकर मुझे साथ लेकर अजब (अद्भुत) नगर में अर्थात् सत्यलोक में बने शहर में ले गए। उस स्थान को आँखों देखकर मैं परमात्मा के बताए भक्ति मार्ग पर चल रहा हूँ। सत्यनाम, सारनाम की साधना कर रहा हूँ। इसलिए चादर तानकर सो रहा हूँ अर्थात् मेरे मोक्ष में कोई संदेह नहीं है। 

चादर तानकर सोना = निश्चिंत होकर रहना। जिसका कोई कार्य शेष न हो और कोई चादर ओढ़कर सो रहा हो तो गाँव में कहते है कि अच्छा चादर तानकर सो रहा है। क्या कोई कार्य नहीं है? इसी प्रकार गरीबदास जी ने कहा है कि अब बडे़-बडे़ महल बनाना व्यर्थ लग रहा है। अब तो उस सत्यलोक में जाऐंगे। जहाँ बने बनाए विशाल भवन हैं, जिनको हम छोड़कर गलती करके यहाँ काल के मृत्यु लोक में आ गए हैं। अब दाॅव लगा है। सत्य भक्ति मिली है तथा तत्वज्ञान मिला है।

सज्जनों! वह सत्य भक्ति वर्तमान में मेरे (रामपाल दास के) पास है। जिससे इस दुःखों के घर संसार से पार होकर वह परम शान्ति तथा शाश्वत स्थान (सनातन परम धाम) प्राप्त हो जाता है जिसके विषय में गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान प्राप्त करके, उस तत्वज्ञान से अज्ञान का नाश करके, उसके पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए। जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आता।


 

FAQs : "भक्ति न करने से हानि का अन्य विवरण | जीने की राह"

Q.1 मृत्यु के बाद आत्मा कष्ट क्यों भोगती है?

शास्त्र अनुकूल भक्ति न करने से आत्मा मृत्यु के बाद नरक से लेकर 84 लाख विभिन्न प्रकार की योनियों में कष्ट भोगती रहती है। यह मानव जीवन केवल मोक्ष प्राप्ति और पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने के लिए मिला है। सतभक्ति करने वाले साधक की आत्मा मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त कर लेती है तथा सुख के सागर सतलोक में निवास करती है। मोक्ष केवल पूर्ण गुरु से नामदीक्षा लेकर भक्ति करने से ही संभव है।

Q.2 क्या किसी भी गुरु से नाम दीक्षा लेने से आत्मा अगले जन्म के कष्टों से बच सकती है?

वास्तविकता तो यह है कि केवल पूर्ण गुरु से नाम दीक्षा प्राप्त करने के बाद ही आत्मा पुनर्जन्म, नरक और जन्म-मृत्यु के कष्टों से बच सकती है। केवल सच्चा संत ही मानव को सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर सकता है। सच्चे ज्ञान से हम बुरे कर्मों से बचकर अपने पुण्य बढ़ा सकते हैं। फिर सच्चे संत के बताए अनुसार पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने से हम मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।

Q. 3 ऐसा क्यों है कि किसी भी कारण से और कभी भी हमारी मृत्यु हो सकती है और मृत्यु के उपरांत विभिन्न शरीरों में कष्ट भोगने पड़ते हैं?

मृत्यु इस दुनिया की सबसे कड़वी सच्चाई है। गीता अध्याय 4 श्लोक 5 में भी यही वर्णन मिलता है कि यह लोक और यहां रहने वाले सभी प्राणी नाशवान हैं। पुनर्जन्म पिछले कर्मों के आधार पर मिलता है और आत्मा पिछले कर्मों के आधार पर ही नए शरीर को धारण करती है। यह सिलसिला तब तक चलता रहता है जब तक पूर्ण संत की शरण में जाकर सतभक्ति करके मोक्ष प्राप्त नहीं हो जाता।

Q.4 क्या श्राद्ध करने से आत्मा को मुक्ति प्राप्त होती है?

यह भ्रम है। पवित्र ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध करने से आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती। पूर्ण मुक्ति केवल तत्वदर्शी संत को खोजकर उनकी बताई भक्ति विधि करने से ही प्राप्त होती है।

Q.5 सच्चे गुरु की पहचान क्या है?

सच्चे गुरु की पहचान पवित्र गीता अध्याय 15 श्लोक 1-3 में बताई गई है। इसमें बताया गया है कि जो संत उल्टे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष के सभी भागों को पत्तों सहित बता देगा वही तत्वदर्शी संत होगा। इसके अलावा पूर्ण गुरु को सभी पवित्र शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान होता है और वह शास्त्र अनुकूल ज्ञान ही प्रदान करता है। केवल सच्चे संत से नामदीक्षा लेकर ही भौतिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।

Q.6 पूर्ण गुरु से नाम दीक्षा लेने से क्या लाभ मिलते हैं?

पूर्ण गुरु से नाम दीक्षा लेने से भक्तों को सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों तरह के लाभ मिलते हैं। फिर व्यक्ति सच्ची भक्ति करने से अच्छे कर्म बनाता है। इतना ही नहीं गुरु की सीख व्यक्ति के जीवन की यात्रा को आसान बनाती है और पापों से भी बचाती है। इसके अलावा पूर्ण गुरु से दीक्षा लेकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर साहेब जी की भक्ति करने से पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है।


 

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यदि उपरोक्त सामग्री के संबंध में आपके कोई प्रश्न या सुझावहैं, तो कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें, हम इसे प्रमाण के साथ हल करने का प्रयास करेंगे।
Mayank Gupta

कुछ समय पहले ही मेरे दादा जी की मृत्यु हुई है और हमने गरुड़ पुराण का पाठ करवाया। गरुड़ पुराण के पाठ को सुनने के बाद मुझे पता चला कि मनुष्य जीवन में की गई गलतियों जैसे शराब पीना, धूम्रपान करना, मांस खाना आदि के कारण मरने के बाद आत्मा किस योनि को प्राप्त करती है। मेरे दादा जी यह सब करते थे। तो क्या उन्हें मुक्ति नहीं मिली? जबकि मुझे उम्मीद है कि अब वे स्वर्ग में होंगे।

Satlok Ashram

केवल तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी की सच्ची भक्ति करने से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। जबकि लोकवेद के आधार पर मनमानी पूजा करने से प्राणी 84 लाख योनियों में कष्ट पर कष्ट भोगता है। मृत्यु के बाद गरुड़ पुराण का पाठ करना व्यर्थ है। मनुष्य को मानव जीवन में ही पापों और गलत कामों से बचकर जीवन जीना चाहिए परंतु इसका ज्ञान भी तत्वदर्शी संत के आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त करने से होता है। इसके लिए आपको महान तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन अवश्य सुनने चाहिएं और समझना चाहिए कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या है? मोक्ष कैसे प्राप्त करें? भक्ति का सही तरीका क्या है? मृत्यु के बाद क्या होता है? आदि।

Kajal Upadhyay

हम हमारे पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध कितने समय तक करना चाहिए? हमें यह कैसे पता चल सकता है कि हमारे पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हो गया है?

Satlok Ashram

श्राद्ध निकालना एक व्यर्थ प्रथा है। पवित्र गीता जी में इसका सख्त निषेध किया गया है। श्राद्ध करने से किसी भी आत्मा को मोक्ष नहीं मिलता। मोक्ष केवल सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी की सच्ची भक्ति करने से ही प्राप्त होता है। इसके लिए तत्वदर्शी संत की शरण में जाकर उनके बताए अनुसार भक्ति करनी चाहिए। वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज जी ही एकमात्र ऐसे संत हैं जो शास्त्र अनुकूल सच्ची भक्ति और सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान कर रहे हैं।

Lalit Varshney

मेरा एक खुशहाल परिवार है। लेकिन मरने के बाद मेरा क्या होगा?

Satlok Ashram

मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य तत्वदर्शी संत की खोज करके सतभक्ति करते हुए मोक्ष प्राप्त करना है। आपको तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज की शरण ग्रहण करनी चाहिए। उसके बाद सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी की सच्ची भक्ति करनी चाहिए ताकि आपको मोक्ष प्राप्त हो सके। अन्यथा मृत्यु के बाद 84 लाख योनियों में जाना पड़ेगा। अब भी समय है जाग जाओ और सही सतभक्ति मार्ग अपनाओ।