आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा: जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज बनाम आर्य समाज प्रमुख


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वेदों को सत्य मानने वाले आर्य समाज के लोगों के परमात्मा के विषय में जो विचार हैं, उनके बारे में संत रामपाल जी महाराज जी ने वेदों से प्रमाणित किया है कि वह वेदों से बिल्कुल भी नहीं मिलते हैं। आईए जानते हैं उनमें से कुछ मुख्य विचार

परमात्मा कैसा है?

आर्य समाज के मुताबिक परमात्मा निराकार है। जबकि संत रामपाल जी के अनुसार परमात्मा साकार है, राजा के समान देखने योग्य है। ऋग्वेद मंडल नंबर 9 सुक्त 82 के मंत्र 1 में इसका प्रमाण है।

परमात्मा कहां रहता है?

आर्य समाज के विचारों के अनुसार परमात्मा ऊपर किसी एक स्थान पर नहीं रहता जबकि संत रामपाल जी बताते हैं कि परमात्मा द्युलोक के तीसरे पृष्ठ पर रहता है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18, ऋग्वेद मंडल नंबर 9 सुक्त 96 मंत्र 17 से 20 इसे प्रमाणित भी करते हैं। अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक न. 1, मन्त्र नं. 7 के अनुसार परमात्मा का नाम कबीर (कविर्देव) है।

क्या परमात्मा पापों का नाश कर सकता है?

आर्य समाज के मुताबिक परमात्मा पाप का नाश नहीं करता है। संत रामपाल जी बताते हैं कि कबीर परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देता है। वह यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 और अध्याय 8 मंत्र 13 से यह प्रमाणित करते हैं।

परमात्मा की भक्ति विधि क्या है?

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के मुताबिक सुबह और शाम दो बार स्तुति करनी चाहिए। भक्त को हवन यज्ञ करना चाहिए। लेकिन नाम जाप करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि सुमिरन से कुछ नहीं होता। जबकि संत रामपाल जी बताते हैं कि ऋग्वेद मंडल 8 सूक्त 1 मंत्र 29 में प्रमाण है कि परमात्मा की स्तुति सुबह, दोपहर और शाम तीन समय करनी चाहिए। भक्त को पांच धर्म यज्ञ, ध्यान यज्ञ, हवन यज्ञ, प्रणाम यज्ञ और ज्ञान यज्ञ नित्य करने चाहिए। इनके साथ संत रामपाल जी श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 17 के श्लोक 23 में जो ॐ तत सत सांकेतिक मंत्र बताए हैं उनके यथार्थ मंत्र की भक्ति देते हैं। इन मंत्रों का अधिक से अधिक सुमिरन करने से ही भक्ति की कमाई बनती है। उसी भक्ति से यहां भी सुख प्राप्त होते हैं और मुक्ति भी होगी।

कौन से ग्रंथ हैं आधार?

स्वामी दयानंद जी द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश आर्य समाज के ज्ञान व भक्ति का मुख्य आधार है। जबकि संत रामपाल जी द्वारा चलाए गए यथार्थ कबीर पंथ का मुख्य आधार सूक्ष्म वेद है। सूक्ष्म वेद आदरणीय गरीबदास साहिब जी की वाणी (सद्ग्रंथ साहिब) तथा परमात्मा कबीर साहिब जी की वाणी (कबीरसागर) है।  इसके अतिरिक्त पवित्र चारों वेद, पवित्र श्रीमद् भागवत गीता, पवित्र बाइबल, पवित्र कुरान, पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब और अन्य सभी धर्म के धर्म ग्रंथो को भी संत रामपाल जी महाराज प्रमाण में लेते हैं।

क्या किसी ने परमात्मा को देखा है?

आर्य समाज के लोग परमात्मा को निराकार मानते हैं। अतः परमात्मा को कोई भी देख नहीं सकता, उनसे कोई भी मिल नहीं सकता। जबकि संत रामपाल जी ऋग्वेद मंडल नंबर 9 सुक्त 86 के मंत्र 26 से प्रमाणित करते हैं कि परमात्मा अपने रूप को सरल करके पृथ्वी पर आते हैं। वे अच्छी आत्माओं को मिलते हैं। ऋग्वेद मंडल 9 सुक्त 82 मंत्र 1,2 में वर्णित है कि परमात्मा का उद्देश्य तत्वज्ञान का उपदेश करना होता है। परमात्मा अपने इसी विधान अनुसार आदरणीय धर्मदास साहेब जी, गरीब दास जी, नानक देव जी, संत घीसा दास जी, मलूक दास जी और अन्य बहुत से महापुरुषों को मिले हैं। परमात्मा ने इन महापुरुषों को सतलोक दिखाकर वापस छोड़ा था। उन महापुरुषों ने जो आंखो देखा उनकी वाणियों में उसका प्रमाण है। 

क्या नशा कर सकते हैं?

सत्यार्थ प्रकाश नामक पुस्तक में नशे के विषय पर भी स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के विचार लिखे हैं। जब एक व्यक्ति ने उन्हें हुक्का पीते हुए देखा, तो उनसे पूछा की क्या वेदों में हुक्का पीना लिखा है? स्वामी जी ने उत्तर दिया कि वेदों में हुक्का पीने के लिए मना भी तो नहीं किया है। इसके अलावा उनके जीवन चरित्र में आता है कि स्वामी जी तंबाकू खाते व सूंघते थे। उन्होंने भांग भी पी थी। आर्य समाज के कुछ लोग भी हुक्का पीते हैं और अन्य नशे भी करते हैं। जबकि संत रामपाल जी सूक्ष्म वेद की वाणी बताते हैं कि 

सुरापान मद्य मांसाहारी, गवन करै भोगै पर नारी ।
सत्तर जन्म कटत है शीशम, साक्षी साहेब है जगदीशम । |

मदिरा पीवे कड़वा पानी, सत्तर जन्म स्वान के जानी।


 
सौ नारी जारी करै, सुरापान सौ बार ।
एक चिलम हुक्का भरे, डुबे कालि धार । |

अर्थात शराब पीने वाला 70 जन्म कुत्ते के भोगता है। पराई नारी के साथ दुष्कर्म करने वाला 70 जन्म अंधे के भोगता है। तंबाखू सेवन करने वाले को तो इस से सौ गुना अधिक पाप लगता है तथा जितना पाप सौ बार परस्त्री गमन करने से, सौ बार सुरापन से लगता है उतना पाप एक बार हुक्का पीने का संतों ने बताया है। संत रामपाल जी महाराज के अनुयाई किसी भी प्रकार का नशा नहीं करते।

आश्चर्य की बात यह है कि जिन वेद मत्रों से संत रामपाल जी महाराज उपरोक्त तथ्यों को प्रमाणित करते हैं वे सभी मंत्र आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद जी तथा उनके अनुयायियों द्वारा अनुवादित हैं। इससे यह तर्क भी उचित नहीं है कि संत रामपाल जी महाराज को संस्कृत नहीं आती। हम यह कह सकते हैं कि तत्वज्ञान के अभाव से स्वामी दयानंद सरस्वती जी वेदों को अच्छे से नहीं समझ सके। उन्होंने शास्त्र विरुद्ध भक्ति की जिससे उनका अंत समय बहुत भयंकर पीड़ा में गुजरा। बहुत दिनों तक अस्वस्थ रहने के पश्चात उनकी मृत्यु हुई। वही शास्त्रविरुद्ध भक्ति उन्होंने अपने अनुयायियों को बताई है। संत रामपाल जी महाराज ॐ तत् सत् के यथार्थ मंत्रों की सच्ची भक्ति बताते हैं। उनकी शास्त्र अनुकूल भक्ति से आज लाखों लोगों का जीवन सुखमय हुआ है, लाखों उजड़े हुए घर बस गए और लाखों लोग नशामुक्त हो रहे हैं। उनके द्वारा प्रदान की गई भक्ति मोक्ष दायक है। जन्म मृत्यु के दीर्घ रोग से मुक्ति केवल इसी भक्ति को आजीवन मर्यादा में रहकर करने से मिलेगी।