आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा: संत रामपाल जी महाराज बनाम कृपालु महाराज और देवकीनन्दन जी


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यह वीडियो पूर्ण परमात्मा के बारे में खुलासा करता है जो सबसे शक्तिशाली है, जिसका उल्लेख हमारे पवित्र ग्रंथों में भी मिलता है। उस पूर्ण ब्रह्म की सच्ची भक्ति करके ही भक्त मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। इस वीडियो का सार श्रीमद्भागवत गीता, पवित्र ग्रंथ से लिया गया है जो मानव अस्तित्व का उद्देश्य और मोक्ष का मार्ग बताती है। इसमें 700 श्लोक हैं और यह महाभारत का हिस्सा है। 

गीता जी अध्याय 8 श्लोक 66 के विषय में कृपालु जी महाराज जी और देवकीनंदन ठाकुर जी के विचार 

गीता जी अध्याय 18 श्लोक 66 के बारे में कृपालु जी महाराज के विचार हैं कि गीता ज्ञान दाता इस श्लोक में अपनी शरण में आने को कह रहा है। वहीं दूसरी ओर देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज यह भी कहते हैं कि श्री कृष्ण जी अपनी ही शरण में आने को बोल रहे है।

श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 18 श्लोक 66 

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।

अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मां शुच: ।। ६६ ।।

भावार्थ :- सम्पूर्ण धर्म को अर्थात सम्पूर्ण कर्तव्यकर्मों को (मुझमें) त्याग कर (तू केवल) एक मुझ सर्वशक्तिमान् सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा। यहां व्रज का अर्थ आ जा किया है जो कि गलत है।

संस्कृत हिन्दी कोश में व्रज का अर्थ 

संत रामपाल जी महाराज जी ने गीता अध्याय 18 श्लोक 66 में वर्णित व्रज के अर्थ को संस्कृत हिन्दी कोश के माध्यम से बताया है। संस्कृत हिन्दी कोश में बताया गया है कि व्रज का अर्थ जाना, चलना और प्रगति करना होता हैं जैसे Go का अर्थ जाना होता है तो उसका आना अर्थ हो ही नहीं सकता।

गीता ज्ञान दाता द्वारा उस परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति के बारे में ज्ञान 

गीता ज्ञान दाता ने गीता जी के अध्याय नंबर 8 के श्लोक नंबर 8,9,10 में उस परम अक्षर ब्रह्म की साधना के विषय के बारे में बताया है कि उसकी साधना करनी है। उसकी साधना करने वाला प्राणी उस दिव्य शास्वत स्थान को प्राप्त होता है। उस परम अक्षर ब्रह्म को प्राप्त करने का मंत्र गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में बताया गया है और कहा गया है कि सच्चिदानंद घन परब्रह्म को पाने के लिए ओम तत् सत् तीन प्रकार के मंत्र का स्मरण करना चाहिए।

गीता में तत्वदर्शी संत की पहचान 

गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में उस तत्वदर्शी संत की पहचान बताई गई है कि ऊपर को जड़ वाला, नीचे को तीनों गुण रूपी शाखा वाला यह उल्टा लटका हुआ संसार रूपी वृक्ष है। जो संत इसके सभी विभाग बता देगा वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला है अर्थात् वह तत्वदर्शी संत है। फिर गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि उन तत्वदर्शी संत के पास जा, उनको दण्डवत प्रणाम करने से सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्त्व को भली-भांति जानने वाले तत्वदर्शी संत तुझे परमात्म तत्त्व का ज्ञान करवाएंगे ।

निष्कर्ष 

इस आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा से यह सिद्ध होता है कि गीता ज्ञान दाता से अन्य भी कोई पुरुष अर्थात् परमात्मा है जिसकी शरण में जाने से साधक को परम शांति और शाशवत स्थान प्राप्त होता है और उस परम अक्षर ब्रह्म की साधना किसी तत्वदर्शी संत से ही पता करनी चाहिए। वह तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं जिन्होंने गीता जी के रहस्यों को उजागर किया है। अधिक जानकारी के लिए देखें यह विशेष आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा।