आध्यात्मिक चर्चा - संत रामपाल जी बनाम गीता मनीषी श्री स्वामी ज्ञानानंद जी


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वर्तमान में आध्यात्मिक मार्ग इतना उलझ चुका है कि यह जानना मुश्किल हो गया है कौन गुरु सही है और कौन नक़ली। नकली गुरुओं से बचने के चक्कर में लोग असली गुरु से भी किनारा कर बैठते हैं। गीता मनीषी श्री स्वामी ज्ञानानंद जी और जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी की इस आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा के माध्यम से असली और नकली गुरुओं के मध्य की इस गुत्थी को सुलझाया जा सकता हैं।

 ज्ञानानंद जी अपने आध्यात्मिक ज्ञान में बताते है कि उनका इष्ट देव अखिल कोटि ब्रह्माण्ड के नायक श्री कृष्ण जी हैं। वे पूर्ण मोक्ष के लिए हरे राम, हरे कृष्ण, ओम जाप से मुक्ति संभव बताते हैं। श्री ब्रह्मा, विष्णु, महेश जी की जन्म मृत्यु पर उनका जवाब था कि इनकी मृत्यु होती है ऐसा तो नहीं कह सकते, लेकिन कहीं न कहीं ये विराट परमात्मा में लीन हो जाते हैं।

उन्होंने गीता जी के अध्याय 7 श्लोक 18 में अनुत्तम का अर्थ सर्वश्रेष्ठ बताया है। जबकि उत्तम का अर्थ श्रेष्ठ और अनुत्तम का अर्थ अश्रेष्ठ यानि घटिया होता है।

इसी प्रकार गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता ज्ञान दाता कह रहा है कि हे अर्जुन तू उस परमेश्वर की शरण में जा जिसकी कृपा से तू परम शांति तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा। अब प्रश्न यह है कि वह परमेश्वर कौन है जिसकी शरण में जाने के लिए गीता ज्ञान दाता कह रहा है। इस पर ज्ञानानंद जी का कहना है कि कोई अन्य भगवान नहीं है, वह अपने बारे में कह रहा है।

संत रामपाल जी महाराज जी ने ज्ञानानंद जी के आध्यात्मिक ज्ञान को सद्ग्रंथों से तुलना कर यह साबित किया कि ज्ञानानंद जी को शास्त्रों का कोई ज्ञान नहीं है न ही उन्हें संपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान है इसीलिए गीता जी के अनुवादों में गलतियां कर रहे हैं।
संत रामपाल जी महाराज जी ने पूर्ण मोक्ष के लिए गीता जी से प्रमाणित किया है कि पूर्ण परमात्मा को पाने का सिर्फ तीन मंत्रो का जाप है ॐ तत् सत् हैं जिसका गीता अध्याय 17 के 23 श्लोक में प्रमाण हैं।

इसी प्रकार संत रामपाल जी ने श्री ब्रह्मा, विष्णु, महेश जी के जन्म मृत्यु के बारे में श्री देवीपुराण से प्रमाणित किया कि इनकी जन्म मृत्यु होती है, ये अविनाशी नहीं है।

गीता अध्याय 18 के श्लोक 62 के बारे में संत रामपाल जी महाराज ने बताया कि परमात्मागीता ज्ञान दाता से कोई अन्य है जिसकी शरण में जाने के लिए अर्जुन को कहा जा रहा है।
संत रामपाल जी महाराज जी ने अपने गीता अनुवाद के 7वें अध्याय के 18 श्लोक में अनुत्तम का अर्थ घटिया किया है जो कि वास्तव में सत्य है।

संत रामपाल जी महाराज और श्री ज्ञानानंद के ज्ञान से पता चला कि ज्ञानानंद जी को शास्त्रों का कोई ज्ञान नहीं है। उन्होंने अपने ज्ञान में किसी शास्त्र को खोलकर प्रमाण नहीं दिया। वहीं दूसरी ओर संत रामपाल जी महाराज जी ने अपने प्रत्येक आध्यात्मिक ज्ञान का प्रमाण धर्मशास्त्रों से दिया। इससे साबित होता है कि गीता मनीषी के नाम पर सिर्फ एक ढोंग ज्ञानानंद जी द्वारा किया जा रहा हैं। इन जैसे स्वार्थी लोगों के कारण आज हिंदू समाज अपने सद्ग्रंथो की सच्चाई से कोसों दूर हो चुका है।

इस आध्यत्मिक ज्ञान चर्चा के माध्यम से स्पष्ट हो चुका है कि कौन शास्त्रों के अनुसार साधना बता रहा है और कौन शास्त्रविरुद्ध साधना बता रहा है। अब समय है बुद्धिजीवी समाज द्वारा जल्द से जल्द उचित निर्णय लेने का। बुद्धिजीवी समाज से निवेदन है कि वह अतिशीघ्र शास्त्रविरुद्ध साधना का त्याग करे और शास्त्रानुकूल साधना को अपनाए तथा इन नकली गुरुओं से पीछा छुड़वाकर पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी की शरण ग्रहण करे। अन्यथा वही स्तिथि बनेगी।

आछे दिन पाछे गए, गुरु से किया न हेत।
अब पछतावा क्या करे, चिडिया चुग गई खेत।।