आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा - संत रामपाल जी बनाम आर्य समाज (दयानंद सरस्वती) [2012]


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कलयुग में मानव समाज आत्म कल्याण के लिए अलग-अलग धर्मो और पंथों में बँट गया है। लेकिन फिर भी सत्यसाधना क्या है, ये मानव समाज को नही पता। मानव समाज इस लिए भी परेशान हैं क्योंकि ये परंपराओं और अंधविश्वास के जाल में जकड़कर भेड़चाल से ग्रसित है। लेकिन अब समाज शिक्षित हो चुका है जिससे परमात्मा को पहचानना बहुत ही सरल हो चुका है। शिक्षित समाज को चाहिए कि वह विचार करे कि क्या वह जो कर रहा है वह सही है या नही, या उसके धर्मगुरुओं के द्वारा जो ज्ञान दिया जा रहा है वह पवित्र शास्त्रों से मेल खाता भी है या नही। इस आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा से ज्ञात होगा कि पूर्ण परमात्मा कौन है? और उसकी भक्ति विधि क्या है जिससे सम्पूर्ण मानव समाज का आत्म कल्याण होगा। आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती V/S संत रामपाल जी महाराज की इस आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा के माध्यम से जानेंगे आध्यात्मिक मार्ग के अनसुलझे प्रश्नों के जवाब।

आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती और उनके अनुयाई मानते हैं कि सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक वेदों से मेल खाती है और इसमें जो लिखा है वह पूर्ण सत्य है। महर्षि दयानंद सरस्वती परमात्मा को निराकार बताते हैं। वहीं जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज ने उजागर किया है कि महर्षि दयानंद सरस्वती का ज्ञान वेदों के विपरीत है। यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15 तथा अध्याय 5 मंत्र 1 में बताया गया है कि 
"अगने तनुः असि| विश्नवे त्व सोमस्य तनूर' असि||" 
इस मंत्र में बताया गया है कि सर्वव्यापक, सर्व का पालनहार परमात्मा सशरीर है, साकार है। महर्षि दयानंद सरस्वती ही नही बल्कि और भी अन्य धर्मगुरुओं ने भी परमात्मा को निराकार बताया है, जबकि शास्त्रों के आधार पर संत रामपाल जी महाराज जी ने सिद्ध कर दिया है कि पूर्ण परमात्मा साकार है।

महर्षि दयानंद सरस्वती का मानना था कि 24 साल की लड़की की शादी 48 साल के पुरुष से हो तो सबसे अच्छा है। (सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 4, पृष्ठ 71), यदि पति दूर चला गया हो तो 8 वर्ष तक उसका इंतजार करें और उसके बाद दूसरे से संतान प्राप्त करें। (सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 4, पृष्ठ 102) तथा दयानंद सरस्वती भाँग के आदी थे, तम्बाकू और हुक्का सूँघते तथा पीते थे। इससे सिद्ध होता है कि महर्षि दयानंद सरस्वती मानव समाज की वैचारिक वृत्ति के नाशक थे। महर्षि दयानंद सरस्वती ने बताया है कि सूर्य पर भी जीवन है वहां भी पृथ्वी की तरह नर, मादा तथा अन्य जीव रहते हैं। इससे सिद्ध होता है कि उनके ज्ञान का कोई सिर-पैर नही था। (पुस्तक महर्षि दयानंद सरस्वती का जीवन चरित्र के पृष्ठ 208 पर)। दयानंद सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश के समु.7 पृष्ठ 155 और 163 में लिखते हैं कि परमात्मा साधक के पाप नाश नही कर सकता है और वे कहते हैं कि उन्होंने वेदों को सरल करके सत्यार्थ प्रकाश की रचना की गई है लेकिन संत रामपाल जी महाराज ने बताया हैं कि दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश में वेदों के विपरीत ज्ञान बताया है। जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने बताया है कि यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि परमात्मा साधक के घोर से घोर पाप को भी नाश कर देता है। संत रामपाल जी महाराज बताते है कि वेदों में पूर्ण परमात्मा का नाम कविर्देव (कबीर साहेब जी) है। संत रामपाल जी महाराज ने सभी सद्ग्रन्थों का ज्ञान उजाकर करके बताया है कि परमात्मा देखने में राजा की तरह दर्शनीय है और वह सतलोक (शास्वत स्थान) में विराजमान है। (ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 82 मंत्र 1)

महर्षि दयानंद सरस्वती का कहना था कि मैंने सत्यार्थ प्रकाश की रचना वेदों के अनुसार की है। दयानंद सरस्वती वेदों को सत्य मानते थे। वहीं दूसरी ओर सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक का ज्ञान बिल्कुल ही वेदों के विपरीत है। इसके लिए परमात्मा कबीर साहेब बताते हैं:-
कबीर, वेद, कतेब झूठे नहीं भाई। झूठे हैं जो समझे नाहिं||

जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने सभी सद्ग्रन्थों का ज्ञान पुस्तक, वीडियो सत्संग के द्वारा मानव समाज को दिया है जिससे आध्यात्मिक ज्ञान की इस गुत्थी को सुलझाया जा सके। आप भी देखिए ये अद्भुत ज्ञान चर्चा