भगवत गीता में व्रज का 100% सही अर्थ क्या है?


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सतयुग से ही भारतवर्ष ऋषि मुनियों का देश रहा है। सनातन संस्कृति का उत्थान भी भारतवर्ष से ही माना जाता है। कुछ ऋषिमुनि हठ योग यानी तपस्या करते थे। वहीं कुछ संत संस्कृत भाषा की जानकारी होने से संस्कृत व्याकरण को पढ़कर विभिन्न आध्यात्मिक ग्रंथो का अनुवाद करते थे। परंतु दुख की बात यह है कि इन संतो व ऋषि मुनियों को संस्कृत भाषा की विशेष जानकारी तो थी परंतु उन्हें पूर्ण परमात्मा की वास्तविक जानकारी नहीं थी। इस वीडियो के अनुसार वह पूर्ण परमात्मा जो वास्तव में अविनाशी है जिसके बारे में गीता जी अध्याय नंबर 15 के श्लोक 17 में कहा है कि वह अविनाशी परमात्मा परम अक्षर ब्रह्म तो कोई और है। वह तीनों लोको (यहां पर तीनों लोको के संदर्भ में अर्थ है कि 1. सतलोक, 2.  अक्षर पुरुष का लोक और 3. क्षर पुरुष का लोक) में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। जबकि गीता ज्ञान देने वाला प्रभु तो क्षर पुरुष है जो अन्य परमात्मा की शरण में जाने का निर्देश दे रहा है। वही गीता ज्ञान दाता है। 

मोक्षदायक परमात्मा पाप नाश कर सकता है

गीता जी के अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि हे अर्जुन तू उस पूर्ण परमात्मा की शरण में जा। उसकी कृपा से तू सनातन परमधाम यानी कि सतलोक को प्राप्त होगा। इस संदर्भ में कह सकते हैं कि जो मोक्षदायक परमात्मा होता है वही पाप नाश कर सकता है। फिर गीता ज्ञान देने वाला क्षर पुरुष ( ब्रह्म) गीता जी अध्याय 18 के श्लोक 66 में अपनी शरण में बुलाकर पाप मुक्त कैसे कर सकता है?

जबकि गीता जी अध्याय नंबर 18 के श्लोक नंबर 62 में अन्य परमात्मा की शरण में जाकर सनातन परमधाम की प्राप्ति बताई है। फिर इन अज्ञानी संतों ने गीता जी अध्याय 18 के श्लोक नंबर 66 के व्रज शब्द का अर्थ आना कैसे कर दिया? जबकि संस्कृत शब्दकोश के अनुसार व्रज शब्द का अर्थ जाना होता है। तो आइए जानते है गीता जी अध्याय 18 का श्लोक 66 क्या कहता हे?

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।

अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: ।। 18: 66।।

श्री कृष्ण जी से ऊपर परमात्मा नहीं

व्रज शब्द का अर्थ संस्कृत शब्दकोश के अनुसार जाना होता है। लेकिन संत रामपाल जी महाराज के अलावा अन्य सभी धर्मगुरुओं ने व्रज शब्द का अर्थ आना किया है। क्योंकि वे श्री कृष्ण जी से ऊपर अन्य किसी को परमात्मा नहीं मानते थे। यह उनका अज्ञान था क्योंकि उन्हें परमात्मा की जानकारी नहीं थी। उनको गीता जी अध्याय 4 श्लोक 34 के अनुसार तत्वदर्शी संत की प्राप्ति नहीं हुई थी। इसलिए उन्होंने अनेक स्थनों पर गीताजी में अर्थ का अनर्थ कर दिया। वर्तमान में पूरे विश्व में केवल संत रामपाल जी महाराज ही तत्वदर्शी संत है। जो सभी धर्म ग्रंथो के साथ श्रीमद भगवत गीता का भी यथार्थ अनुवाद बता रहे है। 

गीता जी श्लोक 18:66 का संपूर्ण अर्थ

आईए जानते हैं संत रामपाल जी महाराज जी के अनुसार व्रज शब्द का अर्थ एवं गीता जी अध्याय 18 के श्लोक 66 का संपूर्ण अर्थ।

अनुवाद: (माम्) मेरी (सर्वधर्मान्) सम्पूर्ण पूजाओं को (परित्यज्य) त्यागकर तू केवल (एकम्) एक उस पूर्ण परमात्मा की (शरणम्) शरण में (व्रज) जा। (अहम्) मैं (त्वा) तुझे (सर्वपापेभ्यः) सम्पूर्ण पापों से (मोक्षयिष्यामि) छुड़वा दूँगा तू (मा,शुचः) शोक मत कर।

निष्कर्ष

संत रामपाल जी महाराज जी को छोड़कर अन्य संतों को तत्वदर्शी संत यानी पूर्ण गुरु नहीं मिलने के कारण उन्होंने अर्थ का अनर्थ कर दिया। वर्तमान में सभी आध्यात्मिक ग्रंथो का वास्तविक अर्थ संत रामपाल जी महाराज बता रहे हैं। अधिक जानकारी के लिए देखे ये वीडियो।