सुल्तान वाजीद ने अल्लाह को पाने के लिए राज्य क्यों त्याग दिया


सुल्तान वाजीद ने अल्लाह को पाने के लिए राज्य क्यों त्याग दिया

21 ब्रह्मांडों के मालिक शैतान काल ब्रह्म को उसके दुराचार के कारण पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ने अमरधाम सतलोक से निष्कासित कर दिया था तब से ही वह परमात्मा से बदला लेने की भावना रखता है। इसलिए वह भोली आत्माओं यानी भगवान कबीर के बच्चों को गलत भक्ति में लगाकर उन्हें गुमराह करके यातनाएँ देता आ रहा है। लेकिन पूर्ण परमात्मा/ अल्लाह कबीर अपने दृढ़ भक्तों को सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करके शैतान काल के चंगुल से मुक्त कराके ले जाते हैं।

यह लेख सुल्तान वाजीद नाम के एक मुस्लिम भक्त पर केंद्रित है जिसने मुस्लिम धर्म की प्रचलित धार्मिक प्रथाओं को त्याग दिया और सत्य साधना की। ऐसा करने से वह अल्लाह कबीर की कृपा से मुक्ति का पात्र बने।

इस लेख में निम्नलिखित अहम बिन्दुओं पर चर्चा की जाएगी

  • राजा वाजीद ने राजसी सुखों को क्यों त्याग दिया?
  • भक्त धन्ना जाट ने राजा वाजीद को सच्ची भक्ति करने के लिए प्रेरित किया।
  • एक बूढ़ी औरत और वाजीद की कहानी।
  • संत गरीब दास जी ने भक्त वाजीद की महिमा बताई।

राजा वाजीद ने राजसी सुखों को क्यों त्याग दिया?

जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक मुक्तिबोध, अध्याय 'पतिव्रता का अंग' पृष्ठ 120-123 पर वाणी संख्या 39-41 और 'सवैया गेंद उछाल'

वाणी नं. 39 से 41:-

गरीब, बाजींदा बैजार में, तरकस तोरि कमान |
सुत्रा मुंये कूं देख कर, छांड्या सकल जहान ||39||
गरीब, बाजींदा बिचर्या सही, सुत्र मुंये कै नालि |

चरण कंवल छांडै़ नहीं, जीवैंगे कै कालि  ||40||
गरीब, बाजींदा बिचर्या सही, सुत्र मुंये कूं देख |
चरण कंवल छांडै़ नहीं, मिलि है अलख अलेख  ||41||

“सवैया गेंद उछाल”:-

बाजींद दुनी सेती बिचरया, कादर कुरबान संभारया है |
फंध टूटि गया तिब ऊंट मुवा, तहां पकरि पलान उतारया है ||
अरवाह चली कहौ कौन गली, धौरा पीरा अक कारा है |
कहीं पैर पियादा पालकियों, कहिं हसती का असवारा है ||
सत खुद खुदाइ अलह लखिया, सब झूठा सकल पसारा है |
कपरे पारे तन से डारे, अब सत प्रणाम हमारा है ||
बीबी रोवै चोली धोवै, तू सुन भरतार हमारा है |
मैं ना मानूं मसतान भया, लाग्या निज निकट निवारा है ||
उरमैं अविनासी आप अलह, सतगुरु कूं पार उतार्या है |
गह गल कंटक दुनिया दूती, यौंह डूबर केसा गारा है ||
हम जान लिया जगदीस गुरु, जिन मंत्र महल समार्या है |
कुछ तोल न मोल नहीं जाका, देख्या नहि हलका भारा है||
सुंदर रूप रू बीबेक लख्या, चाख्या नहिं मीठा खारा है |
गलतान समांन समाय रह्या, जा पिंड ब्रह्मंड सै न्यारा है ||
सुरसंख समाधि लगाइ रहे, देख्या एक अजब हजारा है |
कहै दासगरीब अजब दरिया, झिलिमिलि झिल वार न पारा है ||

वाजीद नाम का एक मुस्लिम राजा था। एक बार वह अपने राज्य से दूसरे शहर जा रहा था। वह एक रेगिस्तानी इलाका था। उस समय लोग ऊँटों पर सवारी किया करते थे। हजारों अंगरक्षक साथ थे। मंत्री, प्रधानमंत्री, धार्मिक गुरु और चिकित्सक भी साथ थे। सभी लोग ऊँटों पर सवार थे। वे पहाड़ों के बीच से, एक घाटी से होकर जा रहे थे।

ऊँट एक दूसरे के पीछे चल रहे थे। वह घाटी इतनी संकरी थी कि एक पंक्ति में केवल एक ही ऊँट जा सकता था। एक ऊँट अचानक उस घाटी में गिर गया और गिरते ही तुरंत मर गया। राजा का काफिला वहीं रुक गया क्योंकि बगल से निकलने की जगह नहीं थी। आगे ऊँटों की लम्बी कतार थी। घाटी 3-4 किलोमीटर लम्बी थी। इसी बीच ये घटना घटी।

सुलतान वाजीद ने कहा, 'मेरी इजाज़त के बिना क़ाफ़िला किसने रोका? उसे बुलाएं'। मंत्री पूछने गये और लौटकर कारण बताया।  राजा वाजीद ने कहा, 'मुझे दिखाओ, मेरी अनुमति के बिना ऊंट कैसे मर गया?' सुल्तान वाजीद ने देखा कि आंखें ठीक थीं, नाक, कान, पैर, पूंछ, गर्दन सब कुछ ठीक था। उसने सोचा कि जब सब कुछ ठीक है तो फिर ऊँट मर कैसे गया? धार्मिक गुरुओं (पीर) ने कहा, 'हे राजा!  भगवान ने जिस भी प्राणी का जो समय निश्चित किया है, वह उस समय तक इस संसार में रहता है। चाहे वह इंसान हो या कोई अन्य प्राणी'। राजा वाजीद ने गुरु से प्रश्न किया, 'क्या हम भी मरेंगे?' गुरु जी ने कहा, 'हां, आप भी मरेंगे।' आपके दादा, परदादा भी सम्राट थे। वे भी मर गये। एक दिन सभी को प्रस्थान करना है।

एकै चोट सिधारिया जिन मिलन दा चाह।

राजा वाजीद ने सभी को पीछे हटने को कहा जिसके बाद काफिला आगे बढ़ा। सैनिक उस मरे हुए ऊँट को घसीटकर ले गये। ग़रीब दास जी महाराज बताते हैं किः

'वाजीद कहे उठाओ ऊंट को, लोग कहे ये मुंआ |' (ऊँट मर चुका था)

उठन वाली चीज रही नहीं, गया उड़ सलानी सुआ ||

(उसके अंदर की आत्मा जो उसे चला रही थी, जिसके कारण ऊँट जीवित था)

कुछ नक्सक बिगडा है नहीं, वाजीद को अचरज हुआ ।।
जिन करा अचम्भा घोर है, तजा राज काल से डरके ।।
तजा राज काल से डरके, तजा राज काल से डरके ।।

राजा वाजीद जी जब घर पहुँच गए तो उन्होंने पूछा, 'हे पीर (गुरु) जी!  जब एक दिन मरना ही है तो फिर मानव जीवन का क्या लाभ है?' गुरु जी ने कहा कि 'ईश्वर/अल्लाह की भक्ति करने से अमरत्व प्राप्त किया जा सकता है। सारी वार्ता करके जैसे ही राजा अपने महल में आये, उन्होंने अपना शाही वस्त्र, सिंहासन, अपनी पत्नियां (रानियों) सब कुछ त्याग दिया और घर छोड़ दिया। उसकी कई पत्नियाँ थीं और वे सभी रोने लगीं। वे कहने लगी कि हमारा क्या होगा? आप हमारे पति हैं। वाजीद जी ने कहा 'यह दुनिया एक डूबता हुआ दलदल है। मुझे अमरत्व प्राप्त करना है। मैं अब जा रहा हूँ। मैं अब आप लोगों से भी नहीं रूकूँगा। मुझे जन्म और मृत्यु से छुटकारा पाना है।’

भक्त धन्ना जाट ने राजा वाजीद को सच्ची भक्ति करने के लिए प्रेरित किया

सुल्तान वाजीद जंगल में चले गये और अल्लाह/ईश्वर को प्राप्त करने के उद्देश्य से साधना करने लगे। जीवन-यापन के लिए उसने वहीं एक झोपड़ी बना ली क्योंकि उन्हें खुद को गर्मी और सर्दी की मार से सुरक्षित रहने के लिए और भोजन की व्यवस्था करनी थी। गुफा के अंदर वह ध्यान किया करते थे और दिन में वह झोपड़ी में रहते थे।

वाजीद जी की तरह जब तक जीव को सत साधना नहीं मिलती तब तक वह भ्रमित रहता है और भटकता रहता है। लेकिन भगवान भी अपने दृढ़ भक्तों के साथ रहते हैं जिन्होंने पहले कभी किसी मनुष्य जन्म में उनकी सत साधना की होती है। इसी कहानी में आगे बताएंगे कि धन्ना जाट भगवान कबीर के एक महान भक्त थे, जिनसे पूर्ण परमेश्वर कबीर जी ने मुलाकात की थी और उन्हें सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का उपदेश दिया था। जब उन्हें राजा वाजीद के जंगल में तपस्या करने के बारे में पता चला। वह उनसे मिलने गए। वे कुछ दिनों तक वाजीद जी के साथ रहे और अच्छी तरह से उनकी भक्ति का अवलोकन किया।

वाजीद जी ने धन्ना जी से कहा 'तुम अभ्यास नहीं करते?' तब भक्त धन्ना ने कहा 'मैं बहुत अभ्यास करता हूं।’  वाजीद जी ने कहा 'नहीं, आप झूठ बोलते हैं। आप अपने आप को धोखा दे रहे हैं। आप भक्ति नहीं करते।' 

वाजीद जी कौन सा अभ्यास करते थे?  दिन में वह कुटिया में बैठकर घंटों हठ योग करते थे और भक्त धन्ना से मुश्किल से एक-एक घंटे ही बात करते थे और रात में वह अभ्यास करने के लिए गुफा के अंदर चले जाते थे।

यह सुनकर वाजीद जी चौंक गये। उन्होंने कहा, 'भाई, इससे आपका क्या मतलब है?  पूजा का सही तरीका क्या है?' उन्होंने ऐसा इसलिए पूछा क्योंकि जो कोई भी भगवान को पाने का लक्ष्य रखता है, वह संकेत मिलते ही तुरंत ही पूजा का सही तरीका ढूंढता है। तब धन्ना भगत ने समझाया कि ध्यान से कभी भगवान नहीं मिलते। ये पूजा का गलत तरीका है। सही मंत्रों का जाप करना होगा।

नाम उठत नाम बैठत, नाम सोवत जाग रे ।
नाम खाते नाम पीते, नाम सेती लाग रे।।

अर्थ:- सच्चे मोक्ष मंत्र का जाप दिन-रात, उठते-बैठते, काम करते और खाते समय करना चाहिए। साधक की एकाग्रता सदैव कबीर परमेश्वर की याद में होनी चाहिए। वह मोक्षप्रदायक है।

पूज्य संत गरीबदास जी महाराज अपनी अमृत वाणी में कहते हैंः

जैसे हाली बीज धुन, पंथी से बतलावे ।
वामे खण्ड पड़े नहीं, ऐसे ध्यान लगावे ।।

अर्थ:- जिस प्रकार खेत जोतने वाला और बीज बोने वाला किसान अपने काम पर केंद्रित रहता है और किसी यात्री द्वारा एक स्थान का पता पूछने से विचलित नहीं होता है। जिसे किसान विचलित हुए बिना बताता है, उसी तरह एक भक्त को अपनी भक्ति में केंद्रित रहना चाहिए।

धन्ना जाट की बात सुनकर वाजीद जी हैरान हो गए और उन्होंने धन्ना जी से मार्गदर्शन करने का अनुरोध किया। तब धन्ना जी ने कहा 'मैं तुम्हारी मुलाकात अपने गुरुदेव से कराऊंगा। उनके आध्यात्मिक प्रवचन सुनें और उनसे दीक्षा लें।’ तब वाजीद जी धन्ना जाट के साथ गुरुदेव, भगवान/अल्लाह कबीर जी से मिलने गए, जो उस समय प्रकट हुए थे और उपदेश करते थे। (अधिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर सत्संग सुनें)। वाजीद सुल्तान ने अल्लाह कबीर जी से दीक्षा ली। तब वाजीद जी ने हठ योग की गलत प्रथा को छोड़ दिया और सही पूजा पद्धति जो 'सहज समाधि' थी, शुरू की और वे मोक्ष प्राप्ति के पात्र बने।

इस प्रकार धन्ना भगत ने राजा वाजीद को सच्ची भक्ति की ओर प्रेरित किया।

एक बूढ़ी औरत और वाजीद की कहानी

सन्दर्भ: पूज्य संत गरीब दास जी महाराज द्वारा व्याख्या की गई सूक्ष्मवेद, अमृत वाणी नं.15, 'यथार्थ भक्ति बोध' पुस्तक से।

गरीब बुढिया और बाजीद जी, सुनही के आनन्द ।
रोटी चारों मुक्ति हैं, कटैं गले फंद ।
एक दाने का निकास, सहंस्र दानों का प्रकास ।
जिस भण्डारे से अन्न निकसा, सो भण्डारा भरपूर, काल कंटक दूर ।
सती अन्नदेव संतोषी पावै, जाकी वासना तीन लोक में समावै ।।

जब वाजीद जी अपना राज्य और परिवार त्याग कर जंगल में वैरागी का जीवन व्यतीत कर रहे थे, तब एक समय उन्हें एक कुतिया मिली जिसने 8 बच्चों को जन्म दिया हुआ था। वह कुतिया बहुत भूखी थी। एक बुढ़िया खेत में काम करने जा रही थी। उसके पास रोटी के 4 टुकड़े थे। वाजीद ने उसे देखा और कहा ‘माई एक रोटी इस कुतिया को दे दो। वह भूख से मरने वाली है। उसके साथ 8 बच्चे भी मर जाएंगे’। बुढ़िया बहुत चतुर थी उसने कहा, 'यह मेरी मेहनत की कमाई है, मैं इसे ऐसे कैसे दे सकती हूं?' संत वाजीद ने पूछा, 'रोटी कैसे दोगे?' बुढ़िया ने कहा, 'तुम मुझे अपनी भक्ति का चौथा हिस्सा दे दो। मैं रोटी दे दूंगी।’

संत ने अपनी साधना का चौथा भाग संकल्प करके बुढ़िया को दे दिया। उस बुढ़िया ने रोटी का एक टुकड़ा कुतिया को दिया फिर भी कुतिया भूखी ही रही। धीरे-धीरे, बुढ़िया ने चारों रोटी के टुकड़े कुतिया को दे दिए और संत वाजीद ने अपनी पूरी भक्ति कमाई उस बुढ़िया को समर्पित कर दी, जिससे कुतिया (सुनही) और उसके बच्चों की जान बच गई। रोटी देने से बुढ़िया को भक्ति की प्राप्ति हुई जबकि वाजीद जी भक्ति से खाली हो गये। लेकिन कुतिया और उसके बच्चों को जीवनदान देने के कारण उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

इसलिए सच्चिदानंद घन ब्रह्म की वाणी में इसका उल्लेख किया गया है -

धरम तो धसके (नाश) नहीं, धसके तीनों लोक ।
खैरायत में खैर है, कीजे आतम पोख ।।

अर्थ:- किया गया दान, पुण्य कभी व्यर्थ नहीं जाता। तीन लोकों के नष्ट हो जाने पर भी इसका सदैव फल मिलता है। इसलिए व्यक्ति को नेक कार्य करते रहना चाहिए।

संत गरीब दास जी ने भक्त वाजीद जी की महिमा बताई

संदर्भ: पूज्य संत गरीब दास जी महाराज की अमृत वाणी नं. 42 पृष्ठ 116, तथा वाणी नं 105 पृष्ठ 150, 151, जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक 'यथार्थ भक्ति बोध'

वाणी क्रमांक 42

सुलतानी वाजीद फ़रीदा, पीपा परचे पाइयां |
देवल फेरया गोप गोसांईं, नामा की छान छिवाइयां ||

अर्थ:- वे सभी साधक जो ईश्वर प्राप्ति के लिए प्रयास करते हैं, वे पूर्व के मानव जन्मों में अर्जित भक्ति संस्कारों की शक्ति से प्रेरणा लेकर ऐसा करते हैं। उस साधक के पास भक्ति की शक्ति होती है जिसके कारण उसके जीवन में कुछ चमत्कार भी घटित होते हैं। इस कारण से, वह खुद को एक सर्वोच्च संत मानने लगता है और वह उन लोगों का पसंदीदा बन जाता है जो उसकी पूजा करने लगते हैं। जो दोनों के लिए खतरनाक है। इस अमृत वाणी में बताया गया है कि पूर्व संस्कारों के कारण इब्राहीम सुल्तान अधम, वाजीद, फरीद, पीपा और नामदेव नामक कुछ दृढ़ भक्तों के जीवन में कुछ चमत्कार हुए। सच्चे भक्तों की पूर्व जन्म की भक्ति की शक्ति से भगवान चमत्कार करते हैं।

वाणी क्रमांक 105

पीपा धन्ना चढ़े बाजीदा, सेऊ समन और फरीदा ।।

उपरोक्त वाणियों में सच्ची भक्ति का मूल्य और महत्व समझाते हुए पीपा जी, धन्ना जाट, वाजीद जी, सेऊ-सम्मान और फरीद नामक दृढ़ भक्तों की महिमा की गई है जिन्हें भगवान/अल्लाह कबीर के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। सभी ने सच्ची भक्ति की और मुक्ति प्राप्ति के पात्र बने।

निष्कर्ष

राजा वाजीद के खाते में भक्ति की शक्ति संग्रहित थी जिसके कारण उन्होंने हठ योग/कठोर तपस्या/ध्यान जैसी अशास्त्रीय भक्ति को त्याग दिया और हर युग में धरती पर अवतरित होने वाले कबीर भगवान जी की सच्ची भक्ति की। आज सर्वशक्तिमान कबीर जी एक बार फिर से भारत की पवित्र भूमि हरियाणा में अवतरित हुए हैं। वे कोई और नहीं बल्कि महान तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं। सभी को अमर धाम सतलोक की यात्रा के योग्य बनने और जन्म-मृत्यु के दुष्चक्र से हमेशा के लिए मुक्ति पाने के लिए उनकी शरण लेनी चाहिए।