सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी की कृपा से कमाली को मिला मोक्ष


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पूर्ण संत की शरण और सतपुरुष कबीर साहेब की सतभक्ति किए बिना जीव की पूर्ण मुक्ति नहीं हो सकती। इसलिए भगवान स्वयं इस मृतलोक में प्रकट होकर तत्वदर्शी संत की भूमिका निभाते हैं और भक्ति का सच्चा मार्ग बताते हैं। कबीर साहेब जी की शरण में आने वाली पुण्यात्माएं सतभक्ति के प्रभाव से अमर निवास सतलोक को प्राप्त करती हैं। सतलोक, वह अमर लोक है, जहां परमात्मा कबीर साहेब जी निवास करते हैं।  

सतलोक ही वह सुख का स्थान है, जहाँ न बुढ़ापा है, न मृत्यु, न दुःख है। सर्वशक्तिमान कबीर परमात्मा जी सतलोक में अपनी उन प्रियात्माओं के साथ रहते हैं, जो चारों युगों में कबीर साहेब जी की शरण में आते हैं और काल से हुए वचन के अनुसार कबीर साहेब जी कलयुग की मध्य पीढ़ी में निश्चित समय अवधि में उन पुण्यात्माओं की मुक्ति सुनिश्चित करते हैं। इसी संबंध में कबीर साहेब जी कलयुग में सशरीर प्रकट हुए और कमाली नामक पुण्यात्मा को अपनी शरण में लिया।

इस लेख में आप प्रमाणित तथ्यों के माध्यम से कमाली जैसी महान भक्तात्मा के बारे में जानेंगे जैसे:

  • कमाली कौन थी?
  • कमाली का पूर्व मानव जन्म
  • पिछले मानव जन्मों में राबिया और बंसुरी के रूप में कमाली के बारे में एक संक्षिप्त जानकारी
  • कमाली के पिता शेखतकी का पूर्व मानव जन्म
  • कबीर परमेश्वर ने कमाली को पुनर्जीवित किया
  • कमाली ने डेढ़ घंटे कबीर परमेश्वर की महिमा गाई
  • कमाली ने महर्षि सर्वानन्द की मुलाकात कबीर साहेब से कराई
  • संत गरीबदास जी की वाणी में कमाली की मुक्ति का प्रमाण

कमाली कौन थी?

कमाली कबीर साहेब की दत्तक पुत्री थी, जिसकी बारह वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी और उसे कब्र में दफना दिया गया था। जिसके बाद उसे कबीर परमेश्वर ने फिर से जीवित किया था। यह घटना आज से लगभग 625 वर्ष पूर्व की है जब परमेश्वर कबीर साहेब जी काशी, उत्तर प्रदेश, भारत में एक जुलाहे के रूप में दिव्य लीला कर रहे थे। वास्तव में, दिल्ली के राजा सिकंदर लोदी के मुस्लिम धार्मिक पीर शेखतकी कमाली के शरीर के पिता थे, जो कबीर साहेब जी से ईर्ष्या करते थे। इसलिए उन्होंने कबीर साहेब जी को चुनौती दी कि वह कबीर जी को पूर्ण प्रभु तब ही मानेंगे जब वह उसकी मरी हुई बेटी को जीवित कर देगें, जोकि कब्र में दबी हुई हैं।

कबीर साहेब जी ने कहा ठीक है। वह दिन निश्चित किया गया। कबीर साहेब जी ने कहा कि सभी जगह सूचना दे दो ताकि किसी के मन में कोई शंका ना रह जाए। हजारों की संख्या में वहां पर लोग इकठ्ठे हो गए। कबीर साहेब जी ने मृत पड़ी हुई बारह वर्ष की बेटी की कब्र खुदवाई और कबीर साहेब जी ने कहा कि हे जीवात्मा जहां कहीं भी है कबीर के आदेश से इस शव में प्रवेश करो और बाहर आओ। कबीर साहेब जी का कहना ही था कि शव में कंपन्न हुआ और वह लड़की जीवित होकर बाहर आई और कबीर साहेब जी को प्रणाम किया।

कमाली ने बाहर आते ही डेढ़ घंटे तक सत्संग सुनाया। कबीर साहेब जी ने कहा बेटी अब अपने पिता के साथ घर जाओ। वह लड़की बोली मेरे वास्तविक पिता आप ही हैं। यह तो नकली पिता है और इन्होंने तो मुझे मिट्टी में दबा दिया था। मेरा और इनका लेन देन समाप्त हो गया था। उस लड़की के बाहर आते ही सभी आसपास के लोगों ने कहा कमाल कर दिया, कबीर जी ने कमाल कर दिया। तो कबीर साहेब जी ने बेटी का नाम कमाली रख दिया और अपनी बेटी की तरह उसका पालन पोषण किया।

इसी संबंध में कबीर परमेश्वर ने शेखतकी की शर्त के अनुसार एक 10-12 वर्ष के लड़के को भी जीवित किया था और इसी तरह उस लड़के का नाम कमाल रखा गया था। उसे भी कबीर परमेश्वर ने कमाली के समान अपने दत्तक पुत्र के रूप में अपने पास रखा। वह कमाल और कमाली के पालक पिता थे। उस समय नीरू-नीमा कबीर साहेब जी के पालक माता-पिता थे। कबीर साहेब ने विवाह नहीं किया, उनकी कोई पत्नी नहीं थी जिसका प्रमाण ऋग्वेद मंडल नंबर 10 सूक्त 4 मंत्र 4 में है कि सर्वशक्तिमान कविर्देव जब पृथ्वी पर अवतरित होते हैं तो किसी भी स्त्री को धारण नहीं करते हैं।

कमाली के पूर्व के मानव जन्म

अपने नियम के अनुसार, कबीर परमेश्वर चारों युगों में ब्रह्म काल के लोक में प्रकट होते हैं और अपने दृढ़ भक्तों से मिलते हैं। वह उन्हें सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं, सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान करते हैं और ब्रह्म काल के प्रति अपनी वचनबद्धता के अनुसार कलयुग में निश्चित अवधि में उन्हें मुक्त करने के लिए उनकी भक्ति कमाई को बढ़वाते हैं। इसका उल्लेख सूक्ष्मवेद में भी किया गया है:

 

गरीब, जो जन मेरी शरण है, ताका हूँ मैं दास।

गेल-गेल लाग्या फिरूँ, जब तक धरती आकाश।।

गरीब, ज्यों बच्छा गऊ की नजर में, यौं सांई अरु संत।

हरिजन के पीछै फिरैं, भक्ति बच्छल भगवंत।।

 

कबीर परमेश्वर तीन प्रकार से सब कुछ संभालते हैं। एक अवस्था में वह अपने अमर निवास सतलोक में एक राजा के रूप में सिंहासन पर विराजमान हैं, जहाँ से वह अपनी शक्ति से सभी ब्रह्मांडों को चलाते हैं। दूसरी स्थिति में कबीर परमेश्वर एक संत के रूप में ब्रह्म काल के लोक में सशरीर ऋषि, संत रूप में अवतरित होते रहते हैं और अपनी प्रिय आत्माओं से मिलते हैं। तीसरी अवस्था में वह प्रत्येक युग में एक तालाब (सरोवर) में कमल के फूल पर एक शिशु के रूप में प्रकट होते हैं, जहाँ से एक निःसंतान दम्पति उन्हें उठाकर ले जाते हैं और अपने बच्चे के रूप में उनका पालन-पोषण करते हैं। भगवान अपने प्यारे बच्चों (हम आत्माओं) को कसाई ब्रह्म काल के जाल से मुक्त करने के इरादे से अपनी शरण में लेने के लिए यह लीला करते हैं।

इस संबंध में, कबीर परमेश्वर सतयुग में सतसुकृत नाम से एक शिशु के रूप में एक तालाब में कमल के फूल पर अवतरित हुए, जहाँ से विद्याधर और दीपिका नाम के एक निःसंतान ब्राह्मण दम्पति उन्हें अपने घर ले गए और उनका पालन-पोषण किया। फिर त्रेता युग में पंडित विद्याधर की वही आत्मा वेदविज्ञ ऋषि बनी और दीपिका फिर सूर्या नाम की उनकी पत्नी बनीं। तब दोनों ने मुनीन्द्र ऋषि के रूप में कबीर परमेश्वर को शिशु रूप में पाया और उनका पालन-पोषण किया। इस बीच उनका अन्य योनियों में और अन्य समुदायों में मनुष्य के रूप में जन्म हुआ। कबीर परमेश्वर स्वयं भी बताते हैं:

सतयुग में सत्सुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिन्द्र मेरा।

द्वापर में करूणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया।।

कलयुग में दीपिका/सूर्या की वही आत्मा राबिया के रूप में एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुई। इसके बाद उसने अपना एक मानव जीवन वैश्या के रूप में बिताया। फिर उसी आत्मा ने बांसुरी के रूप में एक मुस्लिम परिवार में दोबारा जन्म लिया। फिर वह शेखतकी की पत्नी से पैदा हुई, मृत्यु उपरांत परमेश्वर कबीर जी ने उसको जिंदा किया और उसका नाम कमाली रखा गया।

प्रारंभिक मानव जन्मों में राबिया और बंसुरी के रूप में कमाली के बारे में एक संक्षिप्त जानकारी

पूज्य संत गरीबदास जी महाराज ने अपनी अमृतवाणी पवित्र 'सतग्रंथ (अमरग्रंथ) साहिब' में 'पारख के अंग' की वाणी नं. 56-59 :-

गरीब, सुलतानी मक्कै गये, मक्का नहीं मुकाम।

गया रांड के लेन कूं, कहै अधम सुलतान।।56।।

गरीब, राबिया परसी रबस्यूं, मक्कै की असवारि।

तीन मजिल मक्का गया, बीबी कै दीदार।।57।।

गरीब, फिर राबिया बंसरी बनी, मक्कै चढाया शीश।

पूर्बले संस्कार कुछ, धनि सतगुरु जगदीश।।58।।

गरीब, बंसरीसैं बेश्वा बनी, शब्द सुनाया राग।

बहुरि कमाली पुत्री, जुग जुग त्याग बैराग।।59।।

तथा 'अचला के अंग' की वाणी सं. 363-368 में राबिया, बांसुरी और कमाली के जन्म और जीवन के इतिहास के बारे में साक्ष्य प्रदान किये हैं। संत गरीबदास जी ने बताया है कि कमाली के जन्म से पहले दीपिका/सूर्या वाली आत्मा कलयुग में राबिया (राबी) नाम की लड़की के रूप में मुस्लिम धर्म में पैदा हुई थी।

गरीब, राबीकूं सतगुरु मिले, दीना अपना तेज।

ब्याही एक सहाबसैं, बीबी चढ़ी न सेज।।363।।

गरीब, राबी मक्के कूं चली, धर्या अल्हका ध्यान।

कुत्ती एक प्यासी खड़ी, छुटे जात हैं प्राण।।364।।

गरीब, केश उपारे शीश के, बाटी रस्सी बीन।

जाकै बस्त्रा बांधि कर, जल काढ्या प्रबीन।।365।।

गरीब, सुनही कूं पानी पिया, उतरी अरस अवाज।

तीन मजल मक्का गया, बीबी तुह्मरे काज।।366।।

गरीब, बीबी मक्के पर चढ़ी, राबी रंग अपार।

एक लाख असी जहां, देखै सब संसार।।367।।

गरीब, राबी पटरा घालि कर, किया जहां स्नान।

एक लाख असी बहे, मंगर मल्या सुलतान।।368।।

जिंदा बाबा रूप में परमात्मा राबिया (राबी) को मिले

तब परमेश्वर कबीर जी जिंदा बाबा के रूप में उस पुण्यात्मा से मिले, जिस समय वह राबी नाम की लड़की जंगल में पशुओं का चारा लेने अन्य महिला साथियों के साथ गई थी। जिंदा बाबा के रूप में परमात्मा वहां कुछ दूरी पर प्रकट हुए जिन्हें देखकर राबी (राबिया) बहुत प्रभावित हुई। उसने जिंदा वेशधारी परमात्मा से ज्ञान सुनाने की प्रार्थना की। परमेश्वर ने लड़की को एक घंटा ज्ञान सुनाया जिससे प्रभावित होकर राबी ने नाम उपदेश देने की प्रार्थना की।

परमात्मा ने उसे सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान किए जिसके बाद उसने मनमानी पूजा छोड़ दी जो वह पहले करती थी। जैसा कि मुस्लिम धर्म में प्रचलित था कि नमाज पढ़ना, ईद, बकरा ईद मनाना आदि। उसने चार साल तक परमेश्वर द्वारा प्रदान की गई सच्ची भक्ति की। लेकिन बाद में सत्संग के अभाव के कारण उसने परमेश्वर द्वारा बताई सत्य साधना त्यागकर काल प्रेरणा और समाज के दबाव से फिर से मुस्लिम धर्म की वही शास्त्रविरुद्ध साधना शुरू कर दी। लेकिन उसने दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह शादी नहीं करवाएगी।

राबिया (राबी) का निकाह को मना करना और अंततः निकाह कबूल करना

जब राबी की आयु 16 वर्ष हुई तो उसके माता-पिता ने लड़की के विवाह करने का पक्का इरादा बना लिया। लेकिन लड़की अपनी जिद पर अड़ी रही कि वह विवाह नहीं कराएगी। तो माता-पिता ने कहा कि यदि तू शादी (निकाह) नहीं करवाएगी तो हम दोनों आत्महत्या कर लेंगे। हम जवान बेटी को घर नहीं रख सकते। राबी ने सोचा कि विवाह कर लेती हूँ। पति से निवेदन कर लूँगी कि मैं संतान उत्पत्ति नहीं करूँगी। यदि वह नहीं मानेगा तो मैं आत्महत्या कर लूँगी। यह सोचकर लड़की ने विवाह करना स्वीकार किया।

जिसके बाद राबिया (राबी) का विवाह एक अधिकारी से हुआ। वह मुसलमान अधिकारी परमात्मा (अल्लाह) से डरने वाला था। निकाह (विवाह) के बाद रात्रि के समय पति ने लड़की राबी से मिलन करने को कहा तो लड़की ने स्पष्ट मना कर दिया कि मैं मिलन अर्थात सन्तानोपत्ति नहीं करूँगी। क्योंकि मैं भक्ति करना चाहती हूँ। आप चाहे तो अपना अन्य विवाह कर लो। उस अधिकारी पति ने विनम्रता पूर्वक राबी से कहा यदि आपने सन्तानोपत्ति नहीं करना था तो निकाह (विवाह) कबूल क्यों किया था? राबिया ने कहा कि मैंने अपने माता-पिता के सम्मान के कारण यह फैसला लिया था क्योंकि उन्होंने समाज के डर से आत्महत्या करने की ठान ली थी। अब यदि आप पति का अधिकार जानकर ज़बरदस्ती करोगे तो मैं आत्महत्या कर लूँगी। यह मेरा आखिरी फैसला है।

पति ने कहा राबिया! यह अच्छी बात है कि आप अल्लाह के लिए कुर्बान हैं। परंतु मेरे माता-पिता का भी समाज में सम्मान है। मेरा भी फैसला सुन, तू भक्ति कर, लेकिन तुम बिना आज्ञा के घर से बाहर नहीं जाओगी। समाज की दृष्टि में आप मेरी पत्नी रहोगी, लेकिन मेरे लिए आप मेरी बहन रहोगी। आपको मैं किसी वस्तु का अभाव नहीं होने दूँगा। आप भक्ति करो। मैं अन्य निकाह करवा लूँगा जिसके बाद राबी के सामाजिक पति ने अन्य शादी करवा ली और राबी को बहन के समान रखा।

राबिया द्वारा कुतिया की प्यास बुझाना

जब राबिया की आयु 55-60 वर्ष के आस-पास हुई तो उसने मुसलमान धर्म की मान्यता अनुसार, हज करने का मन बनाया। अपने पति को अपनी इच्छा बताई जिसकी उसने सहर्ष आज्ञा दे दी। गाँव के अन्य व्यक्तियों के साथ राबिया हज यात्रा के लिए निकल पड़ी। सभी चले जा रहे थे। रास्ते में एक कुँए के पास एक कुतिया प्यासी खड़ी थी। राबिया ने सोचा कि कुतिया बहुत प्यासी है और आस-पास इसके छोटे-छोटे बच्चे भी हैं।

राबिया के साथ वाले हज यात्रियों ने उस कुँए में पानी पीने की सोची, लेकिन रस्सा व बाल्टी न होने के कारण वे सभी आगे बढ़ गए। उन्होंने राबिया पर ध्यान नहीं दिया। परंतु राबिया के दिल में दया थी। तब राबिया ने अपने सिर के बाल (केश) उखाडे़, उसकी एक लम्बी रस्सी बनाई और शरीर के कपड़े उतारे। उन्हें बाल की रस्सी से बाँधा और कुँए के जल में डुबोया और तुरंत बाहर निकालकर कुँए के साथ रखे घड़े के टुकड़े पर उन्हें निचोड़कर दिया जिससे कुतिया ने पेट भरकर जल पीया।

राबिया के लिए मक्का भी मूल स्थान से उड़कर आ गया

इसके बाद राबिया ने अपना खून धोया (जो शरीर पर सिर के बाल उखाड़ने से लगा था) और कपड़े पहनकर हज यात्रा के लिए प्रस्थान करने लगी तो तीन मंजिल यानी 60 किलोमीटर {1 मंजिल = 20 मील और 1 मील = 3 किलोमीटर} की दूरी पर मक्का की मस्जिद थी। वह मक्का यानी मस्जिद अपने स्थान से उठकर उड़कर कुँए के साथ लग गया। मक्का को देख राबी आश्चर्यचकित हो गई। अल्लाहु अकबर (अल्लाह कबीर) की कृपा से आकाशवाणी हुई कि 'हे धर्मात्मा! मक्का तुम्हें लेने आया है, उसमें प्रवेश करो। उसने मक्का में प्रवेश किया और फिर वह मक्का अपने मूल गंतव्य के लिए वापस उड़ गया। संपूर्ण मुस्लिम समुदाय में उनकी एक दृढ़ भक्त होने के कारण बहुत महिमा हुई, जिस प्रकार हिंदू समुदाय में मीराबाई की महिमा है।

पाठकों यह सब परमात्मा कबीर जी द्वारा बताई गई चार वर्ष सत्य साधना करने का ही परिणाम था कि परमात्मा उस लड़की के साथ चमत्कार कर रहे थे जिससे पुण्यात्मा का परमात्मा पर विश्वास बना रहे।

राबिया का अगला जन्म बांसुरी का हुआ

कुछ समय बाद राबिया की मृत्यु हो गई और उसका अगला जन्म फिर बंसुरी के रूप में मुसलमान धर्म में हुआ। अल्लाह/भगवान को पाने की भक्ति का बीज अभी भी उसकी आत्मा में था और वह पारंपरिक मुस्लिम धर्म के अनुसार भजन गाती थी। मुस्लिम धर्म में मान्यता है कि जो व्यक्ति मक्का में मरता है उसे स्वर्ग (बहिश्त/जन्नत) की प्राप्ति होती है। यही लक्ष्य बनाकर बंसुरी बुढ़ापे में मक्का चली गई, जहां उसने मक्का में हज के समय अपना सिर काटकर अर्पित कर दिया। लोगों ने उस पवित्र आत्मा बंसुरी की महिमा की, क्योंकि उसने मक्का में अपने प्राण त्याग दिए थे, जिससे मुसलमान धर्म के लोगों का मानना था कि बंसुरी सीधा स्वर्ग को चली गई।

नोट: बंसुरी (बंसरी) की तरह प्राण त्याग देने से कभी मुक्ति नहीं मिल सकती। यह काल की प्रेरणा का ही परिणाम है जिससे जीव काल के जाल में फंसा रहता है जिससे उसे 84 लाख योनियों के कष्टों से छुटकारा नहीं मिलता। बल्कि परमात्मा केवल भक्ति के सरल मार्ग 'सहज समाधि' से ही प्राप्त होते हैं, जब साधक किसी पूर्ण संत की शरण लेता है और तत्वदर्शी संत से प्राप्त सच्चे मोक्ष मंत्रों का जाप करता है। उनके बताए अनुसार अंतिम सांस तक भक्ति के नियमों में रहने से साधक को मुक्ति मिल जाती है।

अत: बंसुरी को मुक्ति नहीं मिली। फिर वही आत्मा दूसरे समुदाय में लड़की के रूप में पैदा हुई और अपने कर्मों के अनुसार उसने अपना अगला जीवन एक वैश्या के रूप में बिताया। दीपिका/सूर्या/राबिया/बंसुरी की उसी आत्मा का अगला जन्म लगभग 600 वर्ष पूर्व कलयुग में कमाली का पाया, जो शेखतकी की बेटी के रूप में जन्मी।

कमाली के पिता शेखतकी का पूर्व मानव जन्म

संदर्भ: जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक 'मुक्तिबोध' पृष्ठ संख्या 278-279 से

कलयुग में शेखतकी की आत्मा द्वापरयुग में गंगेश्वर नाम का एक ब्राह्मण था जो करुणामय साहेब (कबीर परमेश्वर) का घोर विरोध करता था। परिणामस्वरूप, वह अपने गणेश नामक पुत्र (कलयुग में सम्मन और नेकी के पुत्र सेउ की आत्मा) के भी खिलाफ था क्योंकि वह उस समय भगवान कबीर जोकि करुणामय के रूप में आये थे, के शिष्य थे। काल की प्रेरणा से उसने कलयुग में भी वैसा ही विरोध किया जिसके कारण शेखतकी (गंगेश्वर) सर्वशक्तिमान कबीर जी का शत्रु बन गया। वह उनसे अत्यधिक ईर्ष्या करता था। क्योंकि दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी के असाध्य जलन के रोग को कबीर परमेश्वर ने ठीक कर दिया था, जिससे वह कबीर साहेब का बहुत सम्मान करता था और कबीर जी को अल्लाहु अकबर के रूप में पहचानकर उनकी महिमा करता था।

कबीर परमेश्वर ने कमाली को पुनर्जीवित किया

संदर्भ: जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक 'मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरआन' पृष्ठ 186-188 से:

राबिया द्वारा की गई चार वर्षों की सच्ची भक्ति से उसे लगातार मनुष्य जन्म मिलता रहा। उस आत्मा का चौथा मानव जन्म मुस्लिम पीर शेखतकी की बेटी कमाली के रूप में हुआ। जब वह 13 वर्ष की हुई तो उसकी मृत्यु हो गई जिससे मुसलमान धर्म के अनुसार कब्र में दबा दिया गया था। करीब 625 वर्ष पहले जब कबीर परमेश्वर काशी में लीला कर रहे थे तो उस समय बादशाह सिकंदर लोदी उनका शिष्य बन गया। उनका मुस्लिम धार्मिक पीर शेखतकी कबीर साहेब से बहुत ईर्ष्या करता था।

चूँकि सिकंदर लोदी कबीर परमेश्वर की महिमा गाता था कि वह अल्लाहु अकबर हैं, इसलिए शेखतकी ने इस सत्य को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। जबकि कबीर साहेब को उसने कई बार जान से मारने का भी प्रयत्न कर लिया था लेकिन परमेश्वर को वह कोई नुकसान नहीं पहुंचा सका, क्योंकि परमेश्वर अजर, अमर, अविनाशी है। शेखतकी ने मुसलमानों को उसका समर्थन करने के लिए उकसाया और कहा कि राजा काफ़िर हो गया है और कबीर को अल्लाह बताता है जबकि अल्लाह बेचून (निराकार) है।

आख़िरकार शेखतकी ने चुनौती दी कि यदि कबीर कब्र में पड़ी उसकी मृत बेटी को जीवित कर देंगे तो वह मान लेगा कि 'कबीर ही भगवान (अल्लाह) हैं'। कबीर साहेब जी ने ऐसा ही किया और उसकी बेटी को कब्र से निकलवाकर जीवित कर दिया। क्योंकि परमात्मा की लीलाओं, ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 161 मंत्र 2 और ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 80 मंत्र 2 में प्रमाण है कि परमात्मा मृतकों को भी जीवित कर उन्हें 100 की वर्ष आयु प्रदान कर सकता है।

कमाली ने डेढ़ घंटे कबीर परमेश्वर की महिमा गाई

तब लड़की ने तुरंत कबीर साहेब को प्रणाम किया और कबीर साहेब की कृपा से उसे अपने पिछले मानव जन्म की याद आ गई। उन्होंने वहां परमेश्वर की कृपा से डेढ़ घंटे तक प्रवचन किये। साथ ही, अल्लाह कबीर की महिमा का गुणगान करते हुए लड़की ने अपने पिछले जन्म के विषय में बताया कि इस परमात्मा की सच्ची भक्ति मैंने चार जन्म पहले छोड़ दी थी। जिसके कारण मुझे लगातार मानव जन्म मिल रहे थे, लेकिन मुझे मुक्ति नहीं मिल सकी। शेखतकी की बेटी के रूप में यह मेरा अंतिम मानव जन्म था और आगे मैं 84 लाख योनियों में कष्ट उठाती, यदि कबीर परमेश्वर ने आज दया न की होती। उसने आस-पास के लोगों से कहा कि आप जिसे कबीर जुलाहा समझते हैं, वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। वह अल्लाहु अकबर हम मनुष्यों के कल्याण के लिए अमर निवास सतलोक से अवतरित हुए हैं।

लड़की ने लोगों से यह भी कहा कि अपने कल्याण के लिए सभी को उनकी शरण में जाना चाहिए। केवल कबीर साहेब ही कसाई ब्रह्म काल के जाल में फंसी आत्माओं को मुक्त करा सकते हैं। कोई भी धार्मिक प्रथा, चाहे वह हिंदू या मुस्लिम धर्म में प्रचलित हो, प्राणियों को मुक्ति नहीं दिला सकती। यह परमात्मा उद्धारकर्ता है, संपूर्ण ब्रह्मांडों का निर्माता है। वहां उपस्थित लोगों ने कबीर साहेब की बहुत महिमा की कि परमात्मा आपने तो कमाल कर दिया। भगवान ने लड़की का नाम 'कमाली' रखा और उसे बेटी के रूप में अपनाया और उसका पालन-पोषण किया। क्योंकि कमाली ने शेखतकी को अपना पिता मानने से इंकार कर दिया था। भगवान ने उसे भी दीक्षा दी, वहां उपस्थित हजारों लोगों ने भगवान की शक्ति को पहचाना और उनकी शरण ली।

जब कमाली जवान हुई तो कबीर साहब ने उसका विवाह मुलतान नगर में अपने एक भक्त से कर दिया। (प्रमाण 'मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरआन पुस्तक में पृष्ठ 255-256 पर)

महर्षि सर्वानंद को कबीर साहेब से मिलाने में कमाली की भूमिका

संदर्भ: संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक “कबीर सागर का सरलार्थ” पृष्ठ 552-558 से

लगभग 625 वर्ष पहले भारत के उत्तर प्रदेश के काशी में 'सर्वानंद' नाम के एक महान ऋषि थे। वह एक विद्वान ब्राह्मण था, जिसने अपने सभी समकालीन विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया था और इसलिए उसे अपनी बुद्धि पर घमंड था। उन्होंने खुद को आध्यात्मिक ज्ञान में विजेता मानते हुए और समाज में पहचान और प्रसिद्धि पाने के लिए अपना नाम 'सर्वानंद' से 'सर्वजीत' रखने का सोचा।

अत: वह अपनी माँ के पास गया और वही इच्छा प्रकट की। उनकी माता शारदा देवी कबीर साहेब की शिष्या थी। उन्होंने कहा, 'सर्वानंद, यदि तुम मेरे गुरुदेव कबीर जी को शास्त्रार्थ में पराजित कर दोगे तो मैं तुम्हारा नाम 'सर्वजीत' रखूंगी।' वह अपने आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में इतना अधिक आश्वस्त था और इस बात से अनभिज्ञ था कि कबीर जी भगवान हैं। उसने कहा मां उस अनपढ़ जुलाहे कबीर के पास क्या आध्यात्मिक ज्ञान है। मैं उसे शास्त्रार्थ में अभी पराजित करके शीघ्र आता हूँ। उनकी माँ ने कहा 'यदि शास्त्रार्थ में हराओगे तो कबीर जी से लिखवाकर लाना, तभी मैं मानूँगी।' सर्वानंद सहमत हो गया और सभी पवित्र ग्रंथों, वेदों, पुराणों, श्रीमद्भगवद्गीता आदि को एक बैलगाड़ी पर लादकर कबीर जी से मिलने के लिए जुलाहों की बस्ती में गया।

उस समय छुआछूत अपने चरम पर थी। उसे बहुत प्यास लगी और वह पीने के पानी की तलाश कर रहा था। उसने 'कमाली' को कुएं से पानी निकालते देखा तो उसने उससे अपनी प्यास बुझाने के लिए कहा। कमाली ने प्यास से व्याकुल हुए सर्वानंद को पानी पिलाया। पानी पीने के बाद सर्वानंद ने देखा कि आसपास के बुनकर (जुलाहे) उसे जुलाहे के कुएं से पानी पीते हुए देख रहे थे। तुरंत उसने ऐसा दिखाया मानो वह अज्ञानी हो और कमाली से कहा, ‘क्या यह जुलाहों की बस्ती है, आपने मुझे अछूतों के कुँए से पानी क्यों पीने को दिया?' तब कमाली ने कहा 'आपको पानी पीने से पहले यह पूछना चाहिए था। जुलाहा कॉलोनी में कुंआ भी जुलाहों का ही होगा। आपकी प्यास बुझ गई तो ब्राह्मण जी आपको अब जाति याद आ गई।

सर्वानंद द्वारा कमाली से कबीर परमेश्वर का घर पूछना

तब सर्वानंद ने कमाली से कहा कि आप ये बताओ कि कबीर जी कहाँ रहते हैं। तब कमाली ने कहा:

कबीर का घर शिखर में, जहाँ सलैली गैल।

पाँव ना टिकै पपील (चींटी) के, पंडित लादै बैल।।

सर्वानंद ने कहा कि लड़की मुझे इस कॉलोनी में बता कबीर का घर कहाँ है। उसके बाद कमाली ने कहा कि आ जाओ पंडिज जी मैं कबीर जी की ही बेटी हूं। उसके बाद सर्वानंद कमाली के पीछे-पीछे चलकर कबीर जी की कुटिया में पहुंच गया। फिर कमाली से बोला कि अपने लोटे में पानी पूरा भरकर कबीर को बहुत सावधानी से दे कर आओ ताकि पानी ले जाते समय गिर न जाए। साथ ही, उसने कमाली से कहा कि कबीर जो उत्तर देगा वह मुझे बताना। कमाली ने वैसा ही किया। कबीर साहेब ने उस भरे बर्तन में एक सुई डाली और कमाली से इसे सर्वानंद को देने के लिए कहा, जो सर्वानंद समझ नहीं पाया कि कबीर जी ने क्या उत्तर दिया।

तब वह कबीर साहेब के पास गया और उनसे पूछा कि घड़े में सुई डालने का क्या मतलब है। कबीर साहेब ने उनसे कहा कि आप अपना पहले प्रश्न बताएं, उसके बाद में मैं आपको अपना उत्तर बताता हूं। सर्वानंद ने कहा कि मेरा ज्ञान इस लोटे में भरे हुए पानी की तरह है अर्थात मैं संपूर्ण ज्ञान से परिपूर्ण हूं। फिर कबीर साहेब जी ने कहा कि मेरा इस लोटे में सुई डालने का अर्थ है कि मेरा आध्यात्मिक ज्ञान इतना भारी (सच्चा) है कि वह हृदय में उसी तरह बैठ जाएगा जैसे सुई लोटे के तले में जाकर बैठ गई और तुम्हारा ज्ञान निराधार है जो पानी की तरह बाहर गिर जाएगा। बाद में सर्वानंद ने शास्त्रार्थ किया, जिसमें वे कबीर जी से हार गये। तब उन्होंने कबीर जी को सर्वशक्तिमान मान लिया और उनकी शरण में चले गये। कमली ने सर्वानंद और परमेश्वर कबीर जी की मुलाकात करवाने में भूमिका निभाई।

संत गरीबदास जी ने प्रमाणित किया, कमाली को सतभक्ति प्राप्त हुई

सन्दर्भ: तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक “यथार्थ भक्ति बोध” पृष्ठ 151-152 में अंकित संत गरीबदास जी महाराज के सतग्रंथ साहिब के अध्याय “असुर निकंदन रमैणी” की वाणी संख्या 108 में कहा गया है:

मीराबाई और कमाली। भिलनी नाचै दे दे ताली।।

आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज ने अपनी अमृतवाणी में बताया है कि मीरा बाई, कमाली तथा भिलनी जैसी कुछ आत्माएं जिन्हें कबीर परमेश्वर द्वारा बताई गई सत्य साधना प्राप्त हुई, उन्होंने अपना जीवन सफल बनाया।

निष्कर्ष

यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 में कहा गया है कि परम अक्षर ब्रह्म/परमेश्वर अपने सच्चे भक्त के घोर पापों को भी क्षमा कर देता है। वहीं पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में लिखा है कि कबीर परमात्मा पापों का शत्रु है। वह अपने साधकों के पापों को नष्ट कर देता है और उन्हें क्षमा कर देता है। इस प्रकार जीव मोक्ष प्राप्ति के पात्र बन जाते हैं। जैसे कई जन्मों के बाद आख़िरकार कबीर परमेश्वर जी की कृपा से कमाली का कल्याण हो गया।

उपरोक्त सत्य वृत्तांत से सिद्ध होता है कि सतगुरु की शरण में जाने से ही प्राणियों की मुक्ति संभव है। आज संत रामपाल जी महाराज ही पृथ्वी पर एकमात्र सच्चे आध्यात्मिक संत हैं जो कोई और नहीं बल्कि स्वयं कबीर परमेश्वर हैं, जोकि संपूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं। वह सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर रहे हैं और सच्चे मोक्ष मंत्र दे रहे हैं जो कबीर परमेश्वर ने कमाली को दिया थे। इसलिए मोक्ष प्राप्ति के लिए हर किसी को कबीर परमेश्वर के अवतार संत रामपाल जी महाराज से दीक्षा लेनी चाहिए।