परमेश्वर कबीर साहेब जी ने शम्स-ए-तबरेज़ी के रूप में रूमी का कल्याण कैसे किया?


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इस संसार और 21 ब्रह्मांडों में दो शक्तियां हैं जो सभी प्राणियों को प्रभावित कर रही हैं। एक रहमान यानि अल्लाह कबीर है और दूसरा शैतान यानि काल ब्रह्म। रहमान सर्वशक्तिमान कबीर/क़ादर अल्लाह है जो दयालु व कृपालु है। वे सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ परमात्मा सभी ब्रह्मांडों का निर्माता है। कादर अल्लाह मानव रूप में है और शैतान काल (जो अव्यक्त रहता है) उसके दायरे में आता है। कादर अल्लाह, मुर्शीद/पीर/सतगुरु/इल्मवाला/तत्वदर्शी संत के रूप में अपने मुख कमल से अपने बच्चों (जीव आत्माओं) को सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करता है।

इसी क्रम में, अल्लाह/भगवान एक बार एक पवित्र आत्मा से मिले, जिन्हें दुनिया में मौलाना जलाल अद-दीन मुहम्मद रूमी के नाम से जाना जाता है। रूमी एक फ़ारसी रहस्यवादी कवि थे जो अल्लाह के शिष्य बन गए थे। रूमी ने अल्लाह द्वारा बताई सच्ची भक्ति की जिसके बाद उनका कल्याण हुआ। अल्लाह कबीर रूमी से शम्स-ए-तबरेज़ी या शम्स अल-दीन मोहम्मद के रूप में मिले थे।

यह लेख निम्नलिखित के आधार पर महान कवि और भक्त रूमी की परमात्मा कबीर/समस्तरबेज से मुलाकात पर प्रकाश डालेगा:

● प्रमाण शम्स-ए-तबरेज़ी या शम्स अल-दीन मोहम्मद स्वयं कादर अल्लाह कबीर थे।

● मौलाना जलाल अद-दीन मुहम्मद रूमी कौन थे?

● शम्स-ए-तबरेज़ी के साथ मौलाना जलाल अद-दीन मुहम्मद रूमी की मुलाकात।

● शम्स तबरीज़ी ने मौलाना जलाल अल-दीन मुहम्मद रूमी को शरण में लिया।

● संत गरीबदास जी ने जलालुद्दीन रूमी की महिमा बताई है।

नोट: सभी अंश जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक 'मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरान' से लिए गए हैं।

आगे बढ़ते हुए, आइए हम यह प्रमाण जान लें कि अल्लाह कबीर ने ही कई बार शम्स-ए-तबरेज़ी की भूमिका की थी।

प्रमाण शम्स-ए-तबरेज़ी कादर अल्लाह कबीर जी थे

संदर्भ: पृष्ठ 250-251

सर्वशक्तिमान कबीर अपने सिद्धांत के अनुसार जिंदा बाबा शम्स-ए तबरीज़ी के रूप में एक पुण्य आत्मा 'रूमी' नामक मुस्लिम से मिले। उन्होंने उसे अल्लाहु अकबर अर्थात अपने बारे में समझाया, शाश्वत लोक सतलोक ले जाकर दिखाया और वापस छोड़ दिया। उसके बाद जिंदा बाबा का पता नहीं चला। उन्होंने उन्हे एक मंत्र अनल-हक दिया। मुसलमान इसका गलत अर्थ निकालते थे कि मैं वही हूं अल्लाह हूँ अर्थात् जीव ही ब्रह्म है। वास्तव में असली मंत्र तो 'सोहं' है। इसका कोई अर्थ करके स्मरण नहीं करना होता। इस मंत्र को परब्रह्म (अक्षर पुरुष) का वशीकरण मंत्र मानकर जाप किया जाता है।

समस्तरबेज ईश्वर द्वारा दिये गये मंत्र का जाप करते थे। उनका आश्रम बग़दाद शहर (वर्तमान इराक़ की राजधानी) के बाहरी इलाके में एक छोटी सी बणी (जंगल) में स्थित था।

एक स्थान पर लिखा है कि कबीर परमेश्वर ने समस्तरबेज को प्रेरणा दी और दूर भेज दिया। उन्होंने स्वयं समस्तरबेज का रूप धारण किया और उसी असली समस्तरबेज के आश्रम में रहने लगे। फिर उस लीला के अंत में समस्तरबेज को मुलतान शहर में भेजा। उस समय मुहम्मद मंसूर शरीर त्याग चुका था। असली समस्तरबेज मौनी हो गया था। बोल नहीं पा रहा था। कई वर्षों से उसकी यही दशा थी परंतु स्वस्थ था। कबीर परमेश्वर जी ने भी जान बूझकर मुलतान में कई दिनों से मौन धारण कर रखा था। जिस दिन असली समस्तरबेज मुलतान में आया उसी दिन परमात्मा कबीर जी घूमने के बहाने प्रतिदिन की तरह आश्रम से बाहर गए। फिर वापिस नहीं आए। जिस समय कबीर जी समस्तरबेज प्रतिदिन लौटकर आते थे उसी समय समस्तरबेज ने आश्रम देखा। उसमें चला गया। उपस्थित व्यक्तियों को कुछ पता नहीं लगा। उन्होंने जाना कि पीर समस्तरबेज सैर करके लौट आए हैं। समस्तरबेज का मुलतान शहर में जाते ही देहांत हो गया। लोगों ने मज़ार बना दी।

जब उस आश्रम में अल्लाह कबीर समस्तरबेज के रूप में विराजमान रहे। उस नगरी के राजा की एक लड़की जिसका नाम शिमली था समस्तरबेज के ज्ञान व सिद्धि से प्रभावित होकर उनकी परम भक्त हो गई। उसने दिन रात नाम जाप किया। सतगुरू की सेवा करने प्रतिदिन आश्रम में जाने लगी। पिता जी से आज्ञा लेकर जाती थी। बेटी के साधु भाव को देखकर पिता भी उसे नहीं रोक पाया। वह प्रतिदिन सुबह तथा शाम सतगुरू जी का भोजन स्वयं बनाकर ले जाया करती थी। किसी व्यक्ति ने मंसूर अली से कहा कि आपकी बहन शिमली शाम के समय आश्रम में अकेली जाती है। यह शोभा नहीं देता। नगर में आलोचना हो रही है।

मंसूर अली का उद्धार भी कबीर परमेश्वर ने किया

एक शाम को जब शिमली बहन संत जी का खाना लेकर आश्रम में गई तो भाई मंसूर (मंसूर अल हल्लाज) गुप्त रूप से पीछे-पीछे आश्रम तक गया। दीवार के सुराख से अंदर की गतिविधि देखने लगा। लड़की ने संत को भोजन खिलाया। फिर संत जी ने ज्ञान सुनाया। मंसूर भी ज्ञान सुन रहा था। वह जानना चाहता था कि ये दोनों क्या बातें करते हैं, क्या गतिविधि करेंगे? प्रत्येक क्रिया जो शिमली तथा संत समस्तरबेज कर रहे थे तथा जो बातें कर रहे थे वह ध्यानपूवर्क सुन रहा था। अन्य दिन तो परमात्मा आधा घंटा सत्संग करते थे उस दिन दो घण्टे सत्संग किया। मंसूर ने भी प्रत्येक वचन ध्यानपूवर्क सुने। वह तो दोष देखना चाहता था परंतु उस तत्त्वज्ञान को सुनकर कृतार्थ हो गया। परमात्मा की भक्ति अनिवार्य है। अल्लाह साकार है, कबीर है। ऊपर तख़्त पर विराजमान है। तथा पृथ्वी पर मानव शरीर में प्रकट होता है। सत्संग के बाद संत समस्तरबेज तथा बहन शिमली ने दोनों हाथ सामने करके परमात्मा से प्रसाद माँगा। आसमान से दो कटोरे आए। दोनों के हाथों में आकर टिक गए। समस्तरबेज ने उस दिन आधा अमृत पिया। शिमली बहन सब पी गई। समस्तरबेज ने कहा कि बेटी! यह मेरा शेष अमृत प्रसाद आश्रम के बाहर खड़े कुत्ते को पिला दे। उसका अंतःकरण पाप से भरा है। उसका दिल साफ हो जाएगा। शिमली गुरू जी वाले शेष बचे प्रसाद को लेकर दीवार की ओर गई। गुरूजी ने कहा कि इसे सुराख से फेंक दे। बाहर जाएगी तो कुत्ता भाग जाएगा। लड़की ने तो गुरूजी के प्रत्येक वचन का पालन करना था। शिमली ने उस सुराख से अमृत फेंक दिया जिसमें से मंसूर जासूसी कर रहा था। मंसूर का मुख कुछ स्वभाविक खुला था। उसमें सारा अमृत चला गया। मंसूर का अंतःकरण साफ हो गया। उसकी लगन सतगुरू से मिलने की प्रबल हो गई। वह आश्रम के द्वार पर आया। शिमली ने पहचान लिया। वह डर गई बोली नहीं। मंसूर सीधा गुरू समस्तरबेज के चरणों में गिर गया। अपने मन के पाप को बताया। अपने उद्धार की भीख माँगी। समस्तरबेज ने दीक्षा दे दी।

मंसूर प्रतिदिन आश्रम में जाने लगा। अनल हक मंत्र को बोल बोलकर जाप करने लगा। मुसलमान समाज ने विरोध किया। कहा कि मंसूर काफिर हो गया। परमात्मा को मानुष जैसा बताता है। ऐसा कहता है कि परमात्मा पृथ्वी पर आता है। अनल हक का अर्थ गलत करके कहते थे कि मंसूर अपने को अल्लाह कहता है। इसे जिंदा जलाया जाए या अनल हक कहना बंद कराया जाए। मंसूर राजा का लड़का था। इसलिए किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि मंसूर को मार दे। यदि कोई सामान्य व्यक्ति होता तो उसे कब का मार देते। नगर के हजारों व्यक्ति राजा के पास गए। राजा को मंसूर की गलती बताई। राजा ने सबके सामने मंसूर को समझाया। परंतु वह अनल हक, अनल हक का जाप करता रहा। उपस्थित व्यक्तियों से राजा ने कहा कि जनता बताए कि मंसूर को क्या दण्ड दिया जाए, जनता ने कहा कि मंसूर को चौराहे पर बाँधकर रखा जाए। नगर का प्रत्येक व्यक्ति एक-एक पत्थर जो लगभग आधा किलोग्राम का हो मंसूर को मारे तथा कहे कि काफिर भाषा बोलनी छोड़ दे। यदि मंसूर अनल हक कहे तो पत्थर मारे और आगे चला जाए। दूसरा भी यही कहे। तंग आकर मंसूर अनल हक कहना त्याग देगा।

नगर के सारे नागरिक एक-एक पत्थर लेकर पंक्ति बनाकर खड़े हो गए। उन नागरिकों में भक्तमति शिमली भी पंक्ति में खड़ी थी। उसने एक पत्थर हाथ में उठा रखा था तथा दूसरे हाथ में फूल ले रखा था। शिमली ने सोचा था कि भक्त भाई है। पत्थर के स्थान पर फूल मार दूँगी। जनता में निंदा भी नहीं होगी तथा भाई को भी कष्ट नहीं होगा। प्रत्येक व्यक्ति, स्त्री, पुरूष, मंसूर से कहते कि छोड़ दे अनल हक कहना नहीं तो पत्थर मारेंगे। मंसूर बोले अनल हक, अनल हक, अनल हक, अनल हक। पत्थर भी साथ-साथ लग रहे थे। मतवाले मंसूर अनल हक बोलते जा रहे थे। शरीर लहू लुहान यानि बुरी तरह ज़ख्मी हो गया था। रक्त बह रहा था। परमात्मा का आशिक अनल हक कह रहा था। हंस रहा था। जब शिमली बहन की बारी आई। वह कुछ नहीं बोली। मंसूर ने पहचान लिया और कहने लगा बहन! बोल अनल हक। शिमली ने अनल हक नहीं बोला। हाथ में ले रखा फूल भाई मंसूर को मार दिया। मंसूर बुरी तरह रोने लगा। शिमली ने कहा भाई! अन्य व्यक्ति पत्थर मार रहे थे। घाव बन गए आप रोये नहीं। मैंने तो फूल मारा है जिसका कोई दर्द नहीं होता। आप बुरी तरह रोने लगे। क्या कारण है? मंसूर बोला कि बहन! जनता तो अनजान है कि मैं किसलिए कुर्बान हूँ। आपको तो ज्ञान है कि परमात्मा के लिए तन-मन-धन देना भी सस्ता है। मेरे को भोली जनता के द्वारा पत्थर मारने का कोई दुःख नहीं था क्योंकि इनको ज्ञान नहीं है। हे बहन! आपको तो सब पता है। मेरे को इस मार्ग पर लाने वाली तू है। तेरा हाथ मेरी ओर कैसे उठ गया बेईमान, तेरे फूल का पत्थर से कई गुना दर्द मुझे लगा है। तेरे को गुरूजी क्षमा नहीं करेगें। नगर के सब व्यक्ति पत्थर मार मारकर घर चले गए। कुछ धर्म के ठेकेदार मंसूर को जख्मी हालत में राजा के पास लेकर गए तथा कहा कि राजा! धर्म ऊपर राज नहीं। परिवार नहीं है। मंसूर अनल हक कहना नहीं छोड़ रहा है। इससे कहा जाए कि या तो अनल हक कहना त्याग दे नहीं तो तेरे हाथ, गदर्न, पैर सब टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएँगे। यदि यह अनल हक कहना नहीं त्यागे तो इस काफिर को टुकड़े-टुकड़े करके जलाकर इसकी राख दरिया में बहा दी जाए। मंसूर को सामने खड़ा करके कहा गया कि या तो अनल हक कहना त्याग दे, नहीं तो तेरा एक हाथ काट दिया जाएगा। मंसूर ने हाथ उस काटने वाले की ओर कर दिया, जो तलवार लिए काटने के लिए खड़ा था और कहा कि अनल हक। उस जल्लाद ने एक हाथ काट दिया। फिर कहा कि अनल हक कहना छोड़ दे नहीं तो दूसरा हाथ भी काट दिया जाएगा। मंसूर ने दूसरा हाथ उसकी ओर कर दिया और बोला अनल हक। दूसरा हाथ भी काट दिया। फिर कहा गया कि अबकी बार अनल हक कहा तो तेरी गर्दन काट दी जाएगी। मंसूर बोला अनल हक, अनल हक, अनल हक। मंसूर की गदर्न काट दी गई और फूंककर राख को दरिया में बहा दिया। उस राख से भी अनल हक, अनल हक शब्द निकल रहा था। कुछ देर बाद एक हजार मंसूर नगरी की गली गली में अनल हक कहते हुए घूमने लगे। सब डरकर अपने-अपने घरों में बंद हो गए। परमात्मा ने वह लीला समेट ली। एक मंसूर गली-गली में घूमकर अनल हक कहने लगा। फिर अंतध्यार्न हो गया। मंसूर का नाम बदलकर मुहम्मद रखा और उसको लेकर सतगुरू समस्तरबेज मुलतान शहर पाकिस्तान की ओर चल पड़े।

एक पुस्तक में लिखा है कि मंसूर/मंसूर अली जिस शहर के राजा का लड़का था उस शहर का नाम बग़दाद है जो वतर्मान में ईराक़ देश की राजधानी है। संत गरीबदास जी की वाणी भी यही संकेत कर रही हैः

गरीब खुरासान काबुल किला बग़दाद बनारस एक।

बलख और बिलायत लग हम ही धारैं भेष।।

अर्थात जैसे बनारस, काशी शहर में कुछ समय रहे ऐसे ही बगदाद में रहे। बगदाद से मंसूर निकाला। बनारस से रामानंद का उद्धार किया। बलख शहर से सुलतान इब्राहिम इब्न अधम को निकाला। बिलायत यानि इंग्लैंड तक हम परमेश्वर कबीर जी ही वेश बदलकर लीला करते हैं।

संदर्भः पृष्ठ क्रमांक 254-256

रूमी को अल्लाह कबीर शम्स-ए-तबरेज़ी के रूप में मिले। मंसूर-अल हल्लाज से कौन मिला? मंसूर अली मुस्लिम सूफी संत शम्स-ए तबरीज़ी थे। कुछ पुस्तकों में उल्लेख है कि कबीर परमेश्वर ने गुप्त रूप से समस्तरबेज के मन में आश्रम छोड़ने की इच्छा उत्पन्न की क्योंकि उस शहर में उन का बहुत विरोध था।

परमात्मा कबीर जी मंसूर के साथ मुलतान आए

समस्तरबेज के आश्रम छोड़ने के बाद भगवान कबीर स्वयं समस्तरबेज बनकर आश्रम में रहने लगे। वहां से उन्हें अपने हंस (पुण्यात्मा) मंसूर को मुक्त कराना था। राजा और प्रजा के कड़े विरोध के बाद अल-खिज्र (अल्लाह कबीर) ने समस्तरबेज बनकर अपने शिष्य प्रिंस मुहम्मद (मंसूर का बदला हुआ नाम) के साथ मुल्तान शहर में भारत (वर्तमान पाकिस्तान) आए थे।

सतगुरु समस्तरबेज ने उपदेश देना शुरू किया। समस्तरबेज के आध्यात्मिक ज्ञान से प्रेरित होकर कई धर्मात्मा उनके शिष्य बने लेकिन उनके द्वारा बताई गई भक्ति को इस्लाम के विरुद्ध बताकर कड़ा विरोध भी हुआ। धीरे-धीरे उनके शिष्यों को आश्रम में आने की अनुमति ख़त्म कर दी गई। एक बार, जब आश्रम में रोटी पकाने के लिए ईंधन ख़त्म हो गया, तो मुर्शीद समस्तरबेज ने अपने शिष्य मुहम्मद से कहा कि वह कच्ची रोटी ले ले और उसे शहर में किसी के यहां से भून ले। जब मुहम्मद ने जाकर लोगों से अनुरोध किया तो किसी ने उनकी मदद नहीं की बल्कि उन्हें पीटा। आश्रम में वापस आकर मुहम्मद ने मुल्तान शहर में लोगों द्वारा किए गए दुर्व्यवहार का पूरा विवरण बताया। फिर समस्तरबेज ने रोटी अपनी हथेली पर रखी और सूर्य को अपनी ओर मुंह करके रोटी पकाने के लिए कहा। तुरंत ही सतगुरु समस्तरबेज के आदेश से सूर्य पृथ्वी के निकट आने लगा। पृथ्वी पर तापमान इतना बढ़ गया कि गर्मी सहना बहुत मुश्किल हो गया और मुल्तान शहर भट्टी बन गया। पूरा मुल्तान शहर जलने लगा, धरती और दीवारें तपने लगीं। कुछ बुद्धिमान लोग समस्तरबेज के पास गए और माफी मांगी और उनसे अनुरोध किया कि 'कृपया कुछ मूर्ख लोगों की गलती के कारण पूरे मुल्तान शहर को दंडित न करें।'

सतगुरु ने कहा वे मूर्ख नहीं बल्कि दुष्ट हैं। उन्होंने संतों को अग्नि जैसी सस्ती वस्तु भी देने से इनकार कर दिया और इस बच्चे के साथ दुर्व्यवहार किया। वहां खड़े लोग हाथ जोड़कर बोले, 'वे आपकी शक्तियों से अनजान हैं। भगवान के लिए कृपया उन्हें माफ कर दें।’ तब कबीर परमेश्वर ने सूर्य की ओर देखकर कहा कि अपना हृदय छोटा करो। पता नहीं वे 'दोज़ख' (नरक) की गर्मी कैसे बर्दाश्त करेंगे। इतना कहकर तुरंत सूर्यदेव अपने स्थान पर लौट आये। इस घटना के बाद मुल्तान शहर के बहुत से लोग यह मानकर उनके शिष्य बनने लगे कि समस्तरबेज (अल्लाह कबीर) कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं।

जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा कि सर्वशक्तिमान कबीर जो समस्तरबेज का अभिनय कर रहे थे, अपनी योजना के अनुसार कुछ दिनों के लिए चुप रहे। फिर एक दिन वह टहलने के लिए आश्रम से बाहर गए और फिर वापस नहीं लौटे। उसी दिन मूल समस्तरबेज जो मौन था, उस आश्रम में लौट आया और अपना शरीर त्याग दिया। यह रहस्य आज तक लोग नहीं जान पाए हैं।

समस्तरबेज का शव कब्र में दफनाया गया था। 1329 में एक स्मारक बनाया गया था। कबीर परमेश्वर ने 1398-1518 ई. तक 120 वर्षों तक काशी, भारतवर्ष में लीला की। उस समय उन्होंने एक लड़की को कब्र से निकाल कर जीवित किया और उसका नाम कमाली रखा और उसे अपनी बेटी की तरह पाला। जब वह जवान हुई तो उन्हें समस्तरबेज के इस चमत्कार के बारे में बताया गया। उसने उन्हें देखने की गहरी इच्छा व्यक्त की और सतगुरु कबीर जी से अनुरोध किया। फिर कमाली का विवाह उसी मुल्तान नगर में एक भक्त से कर दिया गया।

आदरणीय संत गरीबदास जी ने अपनी अमृत वाणी में कबीर परमेश्वर की महिमा का बहुत सुंदर वर्णन किया हैः

गरीब, सतगुरु समस्तबेज कुन, बति धरिया हाथ।

सूरज कुन सेकी जहाँ, तेजपुंज का गत।।

अर्थ: सतगुरु समस्तरबेज ने अपनी हथेली पर कच्ची रोटी (बाटी) रखी और सूरज से इसे भूनने को कहा। उसी क्षण सूर्य पृथ्वी के निकट आ गया। उस समय समस्तरबेज की आड़ में कबीर परमेश्वर का शरीर एक अत्यंत तेजोमय शरीर में बदल गया। नूरी (चमकदार) बदन नज़र आया। सूर्य की गर्मी से वह रोटी खाने लायक पक गयी।

अब जब यह सिद्ध हो गया है कि भगवान कबीर समस्तरबेज थे तो आइए जानते हैं कि रूमी कौन थे?

मौलाना जलाल अद-दीन मुहम्मद रूमी कौन थे?

संदर्भः पृष्ठ 249-250

जलाल अद-दीन मुहम्मद रूमी एक विश्व प्रसिद्ध फ़ारसी कवि हैं जिन्हें कबीर साहेब जी के बाद दूसरे स्थान पर कवि के रूप में जाना जाता है। सूफी फकीर जलाल अद-दीन मुहम्मद रूमी पश्चिमी देशों में काफी प्रसिद्ध हैं। रूमी की कविताएं अमेरिका में सबसे ज्यादा पढ़ी जाती हैं। रूमी की रचनाएँ मसनवी और दीवाने-ए-कबीर को तुर्की के कोन्या में मेवलाना संग्रहालय में रखा गया है, जहाँ उनका मकबरा है। उनके अलावा शम्स तबरेज़ (सर्वशक्तिमान कबीर) की कृत्रिम समाधि बनाई गई है, जो उनके 'मुर्शीद' (आध्यात्मिक गुरु/गुरु/पीर) थे। रूमी की दरगाह पर हर साल लाखों लोग माथा टेकने जाते हैं और हैरानी की बात यह है कि मुसलमानों से ज्यादा गैर-मुसलमान जाते हैं।

समस्तरबेज के साथ मौलाना जलाल अद-दीन मुहम्मद रूमी की मुलाकात

मौलाना जलाल अद-दीन मुहम्मद रूमी तुर्की के कोन्या शहर के सबसे बड़े मौलाना थे। वह मुस्लिम धर्म का प्रचार करते थे। उनके अनेक शिष्य थे। 15 नवंबर 1244 को सिर से पाँव तक काले कपड़े पहने सफेद दाढ़ी वाला एक 60 वर्षीय व्यक्ति प्रसिद्ध चीनी बाजार कोन्या के व्यापारियों की सराय में पहुँचा। उसका नाम शम्स-ए-तबरेज़ी था। पूछने पर उन्होंने लोगों को बताया,'मैं एक ट्रैवलिंग बिजनेसमैन हूं।' ऐसा लग रहा था जैसे, वह वहां कुछ ढूंढ रहे थे और आखिरकार उसे घोड़े पर सवार रूमी मिल गए।

एक दिन एक तालाब (हौज़) के किनारे मौलाना जलाल अद-दीन मुहम्मद बल्खी रूमी पुरानी धार्मिक (इलामी) किताबों के ढेर के साथ बैठे थे और अपने शिष्यों को पढ़ा रहे थे। शम्स-ए-तबरेज़ी या शम्स अल-दीन मोहम्मद वहां से गुज़र रहे थे। उन्होंने किताबों के उस ढेर की ओर इशारा करते हुए रूमी से पूछा, 'यह क्या है?' रूमी ने व्यंग्यपूर्वक उत्तर दिया 'बाबा! यह वह है, जिसे आप नहीं जानते।’

यह सुनकर शम्स-ए-तबरेज़ी ने उन किताबों को तालाब में धकेल दिया। यह देखकर रूमी को क्रोध आ गया और उसने कहा 'अरे बदबक्त! आपने यह क्या किया? क्या आप नहीं जानते कि ये किताबें कितनी कीमती थीं? यह सुनकर शम्स-ए-तबरेज़ी तालाब में कूद पड़े और एक-एक करके सभी किताबें पानी से बाहर निकाल लीं। एक भी किताब गीली नहीं थी। इसके विपरीत किताबों से धूल निकल रही थी। यह अद्भुत दृश्य देखकर रूमी स्तब्ध रह गये और उन्होंने शम्स-ए-तबरेज़ी से पूछा, 'बाबा! यह क्या है? शम्स-ए तबरीज़ी ने उत्तर दिया 'यह वह है, जिसे आप नहीं जानते' और वह वहां से चले गए।

अगले दिन रूमी घोड़े पर सवार होकर बाज़ार गया। यहां लोग आदर और सम्मान के कारण उनके हाथों को चूम रहे थे। अचानक, शम्स-ए-तबरेज़ी वहाँ पहुँचे और रूमी के घोड़े की लगाम पकड़ ली। मौलाना जलाल अद-दीन मुहम्मद बाल्खी को रूमी ने पहचान लिया कि वह वही बाबा हैं। रूमी भी उनसे मिलना चाहता था। बाबा ने कहा, 'रूमी, एक मुद्दा है। बताओ, मुहम्मद महान हैं या अबू यजीद सैफुर बिन ईसा बिन सुरूशान अल-बिसामी (अल-बसामी, बयाजिद बिसामी (इंटरनेट पर वर्णन मिलता है कि मंसूर-अल-हलाज जिन्होंने अनल हक्क (अनल-अल-हक) का नारा बुलंद किया था), बायज़ीद बिसामी उन लोगों में से एक हैं जो उनके जीवन को प्रमाणित करते हैं)।

रूमी ने कहा, 'यहां तक कि एक बच्चा भी यह जानता है। मुहम्मद महान हैं।’ बाबा ने कहा अगर मुहम्मद महान हैं तो उन्होंने ऐसा क्यों कहा कि'हे अल्लाह, मैं तुम्हें नहीं जानता, तुम कौन हो?' और बायजीद बिसाम ने ऐसा क्यों कहा कि 'हे अल्लाह! आप पवित्र हैं, आप राजाओं के राजा हैं और आपकी बड़ी गरिमा है।' दोनों के बीच काफी देर तक बातचीत होती है और बाबा की दलीलें सुनकर रूमी बेहोश हो जाता है और घोड़े से नीचे गिर जाता है।

शम्स-ए-तबरेज़ी ने मौलाना जलाल अद-दीन मुहम्मद रूमी को शरण में लिया

जब रूमी की आंख खुली तो उसने खुद को बाबा की गोद में पाया। बाबा रूमी को शहर से बहुत दूर ले गये। इसके बाद, शम्स-ए-तबरेज़ी कोन्या से गायब हो जाता है। रूमी उसकी याद में पागल हो जाता है और उसकी तलाश में भटकता है।

एक साल बाद रूमी को किसी से पता चला कि शम्स-ए-तबरेज़ी को दमिश्क (आज सीरिया का एक शहर) में देखा गया है। रूमी अपने बड़े बेटे से कहते हैं कि 'घर में पड़ा सारा सोना, चांदी, गहने, नकदी ले जाओ और बाबा को यहां ले आओ।' रूमी का सबसे बड़ा बेटा शम्स-ए-तबरेज़ी के नाम पर एक सामुदायिक दावत देता है और देखता है कि पास की जगह पर बाबा एक लड़के के साथ शतरंज खेल रहे हैं। रूमी का बेटा बाबा से अनुरोध करता है और उसे घोड़े पर बैठाकर कोन्या ले आता है। रूमी कहता है 'बाबा! तुम कहाँ गायब हो गए? तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मैं एक साल से तुम्हारे लिए तरस रहा था। बाबा कहते हैं 'मैं गायब न होता तो तुम्हारे दिल में ये आग न होती।' तब बाबा उसे सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान देते हैं और इसे प्राप्त करने के बाद रूमी पारंपरिक अनुष्ठानों और प्रथाओं को त्याग देता है। यह देखकर रूमी के शिष्यों को शम्स-ए-तबरेज़ी से ईर्ष्या होने लगती है।

एक दिन रूमी अपने 'मुर्शीद' (आध्यात्मिक गुरु) शम्स-ए-तबरेज़ी के साथ अपनी झोपड़ी में बैठे थे। तभी रूमी का छोटा बेटा और उसके कुछ शिष्य शम्स-ए- तबरीज़ी की हत्या करने के इरादे से वहां पहुंचे और शम्स-ए तबरीज़ी को बुलाया। तब शम्स-ए-तबरेज़ी, रूमी से कहता है 'अच्छा! अब मेरे प्रस्थान का समय हो गया है'। जैसे ही शिष्यों ने शम्स-ए-तबरेज़ी को मारने के लिए तलवार उठाई, वह गायब हो गया।

संत गरीबदास जी ने जलालुद्दीन रूमी की महिमा बताई

संदर्भ: सूक्ष्म वेद, पुस्तक 'यथार्थ भक्ति बोध' अमृत प्रवचन संख्या 99 पृष्ठ संख्या 150-151

नारद कुंबुक ऋषि कुर्बाना |

मार्कण्डेय रूमी ऋषि आना ||

आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज ने कई संतों और भक्तों की महिमा की है जो काल ब्रह्म की भक्ति करते थे जिनके नाम ऋषि नारद, ऋषि कुंबुक, ऋषि मार्कंडेय, ऋषि रूमी आदि थे जो मनमानी करते थे लेकिन सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के बाद उन्होंने शास्त्रीय साधना की और सर्वशक्तिमान कबीर की सच्ची भक्ति की जिससे उनका कल्याण हुआ।

निष्कर्ष

कादर अल्लाह कबीर आज भारत में महान तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के रूप में फिर से अवतरित हुए हैं। आज की तारीख में उनके लाखों शिष्य हैं जिन्होंने पहचान लिया है कि वह भगवान हैं जो अपने आपको छिपाकर दिव्य लीला कर रहे हैं। पाठक वर्ग से प्रार्थना है कि उनका ज्ञान समझ कर अविलंब उनकी शरण लें ताकि सभी का कल्याण हो सके जैसे मौलाना जलाल अद-दीन मुहम्मद रूमी का हुआ था।