हिंदू भगवान धर्मराज तथा चित्रगुप्त कि वास्तविक कहानी 


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आज हम जिस दुनिया में रह रहे हैं, वह आत्माओं का मूल निवास नहीं है।  सतलोक में की गई हमारी गलती के कारण हम सभी आत्माएं आज काल के इस लोक में फंसे हुए है ।  कहते हैं कि भक्तों की धार्मिक मान्यताएं  अंधी होती है। यह बात 21 ब्रह्मांडों के मालिक  काल ब्रह्म के लोक में बिल्कुल खरी उतरती है। त्रिगुणमयी माया के प्रभाव से गुमराह भोली भाली आत्माएं घोर कष्टों में रहने के बावजूद इस मृत लोक को अपना असली घर मान रही हैं। माया  अपने तीन गुणों रजगुण ब्रह्मा, सतोगुण विष्णु, तमोगुण शिव के प्रभाव से आत्माओं को इस मृत लोक में बांध कर रखे हुए है। भोली आत्माएं ब्रह्म काल के जाल में फंसी चिर काल से फँसी हुई हैं। यहाँ साधना का सही तरीका जानना जरूरी हो जाता है  जिससे आत्माएं काल के लोक से मोक्ष प्राप्त कर अपने घर सतलोक वापस जा सकें। 

भक्त पीढ़ी दर पीढ़ी सुनी सुनाई लोककथाओं और मान्यताओं के आधार पर देवी देवताओं की पूजा करते हैं। लेकिन यह भूल जाते हैं कि सभी धर्मों के पवित्र ग्रंथ प्रमाणित करते हैं कि पूर्ण परमात्मा वह है जिसने आत्मा सहित सर्व ब्रह्मांडों का निर्माण किया है। तत्वज्ञान की कमी के कारण भक्त देवी देवताओं की ही पूजा करते हैं जो आत्माओं को कोई लाभ नहीं देता। देवी देवताओं की पूजा साधना आत्माओं को काल के जाल में फंसाए रखने में सहायक होती है। आत्माएं जन्म मरण के चक्र में सदा सदा के लिए फंस जाती हैं।

पूर्ण परमात्मा के विधान के अनुसार, धर्मराज (यम) के दरबार में आत्माओं के हर कर्म का हिसाब रखा जाता है। बुरे कर्म करने वाले को धर्मराज के दरबार में दंड मिलता है और अच्छे कर्म करने वाले को उसका अच्छा प्रतिफल मिलता है।

इस लेख में, हम धर्मराज (यम) के नाम से प्रसिद्ध देवता जो हर आत्मा के कर्मों का पूरा हिसाब रखते हैं उनकी पूजा का विश्लेषण करेंगे और समझेंगे कि:

  •  धर्मराज (यम) हमारे कर्मों का लेखा-जोखा कैसे रखते हैं?
  •  धर्मराज (यम) के दरबार में क्या होता है?
  •  धर्मराज (यम) पूज्य देवता हैं या नहीं?
  •  क्या धर्मराज (यम) की पूजा से मोक्ष प्राप्त हो सकता है?
  •  भक्तों को धर्मराज (यम) से कौन बचा सकता है?

आगे बढ़ने से पहले आइए यह जान लेते हैं कि धर्मराज (यम) कौन है? तथा इसके साथ ही यह लेख निम्नलिखित विषयों पर भी ध्यान केंद्रित करेगा ।

  • धर्मराज (यम) कौन हैं?
  • चित्रगुप्त कौन हैं?
  • सतगुरु धर्मराज (यम) द्वारा लिखे गए खाते को रद्द कर देते हैं।
  • सर्वशक्तिमान कबीर जी द्वारा स्वामी रामानंद जी को धर्मराज (यम) के दरबार का दर्शन कराना।
  • सर्वशक्तिमान कबीर जी द्वारा संत गरीबदास जी को धर्मराज (यम) के दरबार का दर्शन कराना
  • गरुड़ जी को दिए गए तत्त्वज्ञान के संबंध मे पूर्ण परमात्मा कबीर जी और धर्मदास जी के बीच संवाद 
  • धर्मराज (यम) के दरबार में मनमानी पूजा करने वालों के साथ क्या होगा ? 
  • क्या धर्मराज पूज्य भगवान और मोक्ष प्रदान करने वाले हैं?
  • पूज्य भगवान कौन है?

धर्मराज (यम) कौन हैं?

जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि धर्म + राज अर्थात धर्म और सत्य का शासन करने वाले भगवान। हिंदू धर्म के अनुसार धर्मराज (यम) / यमराज को न्याय और मृत्यु का देवता भी माना जाता है जो प्राणियों के सभी कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं और कर्मों के अनुसार प्राणियों  को पुरस्कृत या दंडित करते हैं जिसका उल्लेख सूक्ष्म वेद में सच्चिदानंदघन ब्रह्म की अमृत वाणी में भी किया गया है।  

तुमने उस दरगाह का मैल नहीं देखा |
धर्मराज (यम) के दरबार में तिल-तिल का लेखा ||

धर्मराज (यम) ब्रह्म काल के 21 ब्रह्मांडों में से एक ब्रह्मांड में मुख्य न्यायाधीश हैं जो हर प्राणी के सभी कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। धर्मराज कानून व्यवस्था और प्राणियों को दंड या प्रतिफल देने के लिए जिम्मेदार हैं। कर्मों के अनुसार, धर्मराज आत्माओं को स्वर्ग, नरक और 84 लाख योनियों में कष्ट भोगने के लिए मृतलोक में भेजते हैं।  धर्मराज (यम) को अक्सर भैंसे की सवारी करते हुए चित्रित किया जाता है। उनका निवास स्थान नरक (यमलोक) है जो यमदूतों के द्वारा संचालित है। भगवान सूर्य और अंजना देवी के पुत्र धर्मराज (यम) शनि देव और यामी के भाई भी है जिन्हें अक्सर चित्रों और मूर्तियों में आत्माओं को पकड़ने के लिए फंदा और गदा पकड़े हुए दिखाया जाता है।  पृथ्वी लोक में किसी जीव का जीवन काल पूरा होने पर उसकी मृत्यु हो जाती है।  धर्मराज (यम)/यमराज अपने दूतों (यमदूतों) को शरीर से आत्मा को बाहर निकालने के लिए भेजते हैं। आत्मा को धर्मराज (यम) के दरबार में पेश कर उसका लेखा-जोखा देखा जाता है। आत्मा का लेखा जोखा रखने के कारण धर्मराज (यम) का संबंध चित्रगुप्त से है।

कौन हैं चित्रगुप्त?

भगवान के नियमों के अनुसार धर्मराज (यम) के दो दूत हैं जिनके नाम हैं चित्र और गुप्त। ये दोनों हर प्राणी के सारे कर्मों का लेखा जोखा चुपचाप तैयार करते हैं।  जब किसी आत्मा को मानव शरीर में जन्म मिलता है तो वह आत्मा धर्मराज (यम) के दरबार में वचन देता है कि इस बार वह मानव जन्म के एकमात्र उद्देश्य को पूरा करेगा। वह तत्वदर्शी संत की शरण लेकर मोक्ष प्राप्त करने के लिए सतभक्ति अवश्य करेगा।  लेकिन 21 ब्रह्मांडों के प्रभु ब्रह्म काल कसाई ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि जन्म के बाद आत्माएं त्रिगुणमयी माया में फंस जाती है। आत्माएं भगवान से किए गए अपने वायदे को भूल जाते हैं। शास्त्र विधि को त्याग कर मनमानी पूजा करने लगते हैं और अपने अनमोल मानव जन्म को बर्बाद कर देते हैं। मनुष्य जीवन के सतभक्ति करने के उद्देश्य को पूरा किए बिना मृत्यु के बाद खाली हाथ चले जाते हैं। धर्मराज (यम) के दरबार में चित्रगुप्त द्वारा लिखे गए कर्मों के आधार पर हर आत्मा के गुण और दोष का लेखा जोखा किया जाता है। तदनुसार उसे या तो पुरस्कृत किया जाता है या दंड दिया जाता है।

आदरणीय गरीबदास जी महाराज अपनी अमृत वाणी के बताते हैं कि

चित्रगुप्त के कागज मांही, जेता उपज्या सतगुरु सांई ||

चित्र और गुप्त धर्मराज (यम) के दरबार में लेखक हैं जो हर आत्मा का गुप्त रूप से लेखा जोखा रखते हैं। ये दोनों सभी आत्माओं के कर्मों की एक गुप्त फिल्म तैयार करते हैं और उसकी एक प्रति धर्मराज (यम) के दरबार में तत्काल भेजते हैं। भगवान ने सभी आत्माओं में एक स्मृति भंडारण चिप लगा दी है जहां आत्मा का पूरा विवरण स्वतः दर्ज हो जाता है। भगवान के पास हर आत्मा के अनन्त जन्मों का रिकॉर्ड होता है। यह सब सतपुरुष कबीर परमेश्वर द्वारा बनाए गए विधान के अनुसार ही होता है।

अब पाठकों में जिज्ञासा उत्पन्न हो रही होगी कि धर्मराज (यम) के दरबार में क्या होता है ? आइए इस पहलू को भी समझते हैं।

धर्मराज (यम) के दरबार में क्या होता है?

मनुष्य की आयु पूर्ण होने पर यमदूत आत्मा को शरीर से जबरन निकालकर अपने साथ ले जाते हैं। व्यक्ति असहाय होकर मृत्यु को प्राप्त होता है। उसके अपने रिश्तेदार और सगे संबंधी भी मृत्यु को निकट आया देखकर भी कुछ नहीं कर पाते हैं। यम के दूत आत्मा पर बहुत अत्याचार करते हैं।  जो लोग अपना पूरा जीवन नशा, भ्रष्टाचार, मांस खाने, महिलाओं को बुरे इरादे से देखने, जुआ खेलने, शराब या हुक्का पीने, धूम्रपान आदि करने और शास्त्रविरुद्ध पूजा करने में बर्बाद कर देते हैं, उन्हें बहुत कष्ट होता है।

इसका उल्लेख सूक्ष्म वेद में भी किया गया है

संशय सोख सराय में सूतक दिन रति ||
और जीवित जग में जूती पड़े फिर जम तोड़े छाती ||

कबीर परमेश्वर अपनी इस अमृत वाणी में बता रहे हैं कि बिना सतभक्ति के जीव को काल के इस लोक में बहुत कष्ट है और  मृत्यु के बाद धर्मराज (यम)/यमराज के दूत अर्थात यमदूत उसे अपने साथ ले जाते हैं और आत्माओं को विभिन्न प्रकार की यातनाएं देते हैं। यम के दूत आत्माओं को जिस रास्ते से होकर धर्मराज (यम) के दरबार में ले जाते हैं वो तेज आग की लपटों की तरह तप रहा होता है।  आत्मा को उस पथ पर नंगे पैर चलना पड़ता है और अत्यधिक कष्टदायक गर्मी को सहन करना पड़ता है। रास्ते में जाते हुए ये आत्माएं कुछ आत्माओं को पकवान खाते हुए देखते हैं। जिन आत्माएं ने दान धर्म किया होता है, उनके साथ अच्छा व्यवहार भी होता है। भूखी कष्ट भोगती आत्माएं उन सुखी आत्माओं से भोजन मांगते हैं लेकिन यमदूत उन्हें नहीं लेने देते।  जब आत्मा प्यासा हो जाता है और पानी मांगता है तो यमदूत उसे पानी भी नहीं पीने  देते। यह अनुभव पीड़ित आत्मा के लिए बहुत दर्दनाक होता है।  यम के दूत आत्मा से कहते हैं कि आपने शुभ कर्म और दान नहीं किया है इसलिए आपको कुछ भी नहीं दिया जाएगा। यम के दूत आत्मा को बुरी तरह पीटते है और कहते हैं कि हम तुम्हें धर्मराज (यम) के दरबार में ले जाएंगे और तुम्हारा वहां हिसाब करेंगे।

काल ब्रह्म को हर दिन एक लाख मनुष्यों की आत्माओं का मैल खाने और सवा लाख मनुष्य पैदा करने का श्राप लगा हुआ है। धर्मराज के दरबार में जाते हुए आत्मा पाता है कि ब्रह्म काल के लोक की सभी क्रियाएं स्वतः संचालित होती  रहती है। आत्मा स्वतः ही यमदूत के हाथ को छोड़कर ऊपर उड़ जाता है और एक गुप्त स्थान पर चली जाता है। यह गुप्त स्थान तपटशिला है जो एक बहुत गर्म जलता हुआ पत्थर  है। तपटशिला पर काल आत्माओं को मक्के की खील की तरह भूनता है और आत्माओं से जमी हुई मैल निकालता है और उन्हें खाता है। ये दृश्य बहुत दर्दनाक होता है। आत्मा जोर-जोर से चीखता चिल्लाता है और बेहोश तक हो जाता है। धर्मराज (यम) और  यमदूत भी इस गुप्त स्थान से अपरिचित हैं क्योंकि ब्रह्म काल अव्यक्त रहता है और छिपकर सभी बुरे काम करता है।  आत्मा तप्तशिला में भुनने के बाद, धर्मराज (यम) के दरबार में वापस आ जाता  है।  धर्मराज (यम) के दरबार में जब आत्मा से प्रश्न किया जाता है कि उसने सतभक्ति क्यों नहीं की? जिस कार्य के लिए उसे मानव जन्म दिया गया था वह कार्य क्यों नहीं पूरा किया?  वह आत्मा बहाने बनाने लगता है कि किसी ने उसे भगवान के बारे में नहीं बताया।

नोट: पूर्ण परमात्मा का यह विधान है कि वह निश्चित रूप से मानव जन्म प्राप्त अपनी आत्मा को स्वयं या किसी न किसी स्रोत के माध्यम से अपने बारे में तथा सतभक्ति करने के लिए ज्ञान देते हैं लेकिन सभी आत्माएं काल के इस लोक में माया से सम्मोंहित होकर भ्रमित हो गए हैं। इसलिए वे परमात्मा की बात पर विश्वास नहीं करते हैं और शास्त्र विरुद्ध साधना कर अपना मानव जीवन बर्बाद कर देते है ।  पूर्ण परमात्मा बताते हैं कि 

यह दम टूटै पिण्डा फूटै, हो लेखा दरगाह मांही।
उस दरगाह में मार पड़ैगी, जम पकड़ेंगे बांही।।

अर्थात जब आप मरेंगे तो यम के दूत आपको पकड कर धर्मराज (यम) जो काल ब्रह्म के 21 ब्रह्मांडों के मुख्य न्यायाधीश है, के दरबार में लेकर जाएंगे और जिन्होंने सतभक्ति नहीं को होगी , उनसे सवाल किया जाएगा कि मानव जन्म में आपने कितनी भक्ति की कमाई  है?  फिर वह शर्म से अपना सिर नीचे कर लेता है। तब उसे याद आता है कि जब मुझे मानव जन्म दिया गया था, मैंने वादा किया था कि मैं भगवान को याद करूंगा, तत्वदर्शी संत को ढूंढूंगा और मोक्ष प्राप्त करने के लिए सतभक्ति करूंगा। यहां तक कि आत्मा को मां की कोख में भी अपना वादा याद रहता है।

यह पूर्ण परमात्मा द्वारा बताया हुआ आध्यात्मिक ज्ञान है। और सत्संग में आने से ही आत्मा को इसका पता चलता है। परमात्मा अपनी वाणी में बताते हैं कि 

उस समर्थ की रीझ छुपाई, कुल कुटम से राता। 
गर्भ के अंदर वचन करे थे, कहाँ गई वो बाता।।

पूर्ण परमात्मा बताते हैं कि मैंने मां के गर्भ में भी तुम्हारी आवाज सुनी। तुम्हें जन्म दिया और गर्भ में मृत्यु से बचाया अन्यथा गर्भ में बहुत मरते हैं और मां भी मरती है। लेकिन जन्म लेते ही आत्मा काल की त्रिगुणमयी माया में सब कुछ भूल जाता है। काल के जाल में फंस जाता है अर्थात काल के रंग में रंग जाता है।

जब आत्मा बहाने बनाने लगता है तब धर्मराज (यम) चित्र और गुप्त द्वारा तैयार की गई उस आत्मा के कर्मों की फिल्म चलाते हैं और उसे बताते हैं कि वह झूठ बोल रहा है। सतगुरू जी और उनके भक्तों ने उसे भगवान तथा सतभक्ति के बारे में बताया था लेकिन अज्ञानता और अहंकार से आप सहमत नहीं हुए। अब जब आपने अपना वादा नहीं निभाया और मानव जीवन बर्बाद कर दिया है तो चित्रगुप्त द्वारा बनाए गए आपके खाते के आधार पर आप या तो स्वर्ग में आनंद लेने या नर्क में पीड़ित होने या 84 लाख योनियों में प्रताड़ित होने के हकदार हैं।  तब आत्मा बेबस हो जाता है और बहुत पछताता है। लेकिन उस समय कुछ नहीं किया जा सकता। उसे अपना किया भुगतना ही पड़ता है। इस सारी प्रक्रिया में 13 दिन लगते हैं।

जिन लोगों ने अपने मानव जीवन में दान, धर्म, यज्ञ आदि जैसे कुछ अच्छा किया होता है, उन्हें स्वर्ग भेजा जाता है जहां वे अपने पुण्यों के खत्म होने तक आनंद लेते  हैं। और वे आत्माएं जिन्हें दंड दिया जाता है और जो नर्क में जाने के हकदार होते हैं, उन्हें यमदूतों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।  नरक में आत्माओं को गर्म तेल में जलाया जाता है, यम के दूत उनका जबड़ा तोड़ते हैं, या उन लोगों के मुंह में पेशाब करते हैं जिन्होंने मानव जन्म में शराब पी है।  पापियों को कोल्हू में तड़पाया जाता है, कभी उल्टा लटका दिया जाता है, कभी जलते हुए खंभे से बांध दिया जाता है।  अनेक प्रकार के कष्ट दिए जाते हैं।  उसके बाद, उन्हें उनके पापों का भुगतान करने के लिए उनके कर्म के अनुसार 84 लाख प्राणियों के जीवन में वापस पृथ्वी पर भेज दिया जाता है।

यह दुष्चक्र तब तक चलता है जब तक आत्मा सतगुरु की शरण में नहीं आ जाता। सतगुरु इन सब से छुटकारा पाने का उपाय और ईश्वर को प्राप्त करने का उपाय बताते हैं। वे आत्माओं/सच्चे भक्तों को इन पीड़ाओं से मुक्त करते है और परमात्मा के आशीर्वाद प्राणियों के सभी पापों को मिटा कर  उन्हें मोक्ष प्रदान करता है।

आइए, अब हम उन सबूतों का अध्ययन करें जो कहते हैं कि सतगुरु धर्मराज (यम) द्वारा किए गए खाते को रद्द कर देते हैं।

सतगुरु धर्मराज (यम) द्वारा लिखे गए खाते को रद्द कर देते हैं

पूर्ण गुरु स्वयं परमात्मा के अवतार होते हैं जो साधकों को सतभक्ति प्रदान करके काल के जाल से मुक्ति प्रदान करते हैं। सतगुरु सभी शास्त्रों के पूर्ण ज्ञाता होते हैं। आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज सतगुरु की शक्ति की महिमा करते हुए बताते हैं कि 

सतगुरु जो चाहे सो करहीं, चैदह कोटि दूत जम डरहीं|| 

अर्थात् सतगुरु जो चाहें वो कर सकते हैं और यम के दूत भी सतगुरु से डरते हैं, और कहा है कि

धर्मराज (यम) तेरा लेख लेगा वहाँ क्या बात बनाएगा ||
लाल खंब से बंधा जागा बिन सतगुरु कौन छुटावेगा ||

अर्थात जब धर्मराज तुम्हारा हिसाब लेगा तब तुम कुछ नहीं कर पाओगे, जलते गर्म लाल डंडे से बंध दिए जाओगे और उस दुख से केवल सतगुरु ही छुटकारा दिला सकते हैं। भगवान कबीर जी कहते हैं

गरीब, जम जौरा जासे डरे, मिटें करम के लेख ||
अदली असल कबीर हैं, कुल के सतगुरु एक ||

सर्वशक्तिमान कबीर परमात्मा स्वयं सतगुरु की भूमिका निभाते हैं जिन से यमराज भी डरते हैं। वे सतगुरु के रूप में धर्मराज (यम) द्वारा एकत्रित किए गए पाप कर्मों खाते को समाप्त कर देता है।

गरीब, जूनी संकट मेट हैं, औंधे मुख नहीं आय |
ऐसा सतगुरु सेइये, जम से लेत छुडाय ||

गरीब, जम जौरा जासे डरे, धर्मराय के दूत |
चैदा कोटि ना चंप हीं, सुन सतगुरु की कूत ||

संत गरीबदास जी महाराज ने सतगुरु की शक्ति का गुणगान करते हुए कहा है कि जिन्दा बाबा के रूप में मुझसे पूर्ण परमात्मा ही सतगुरु रूप मिले थे। वह सतगुरु पूर्ण परमात्मा कुछ भी कर सकता है। सभी आत्माओं को यम के14 करोड़ दूतों के चंगुल से छुड़ाने की शक्ति रखने वाले सतगुरु की शरण लेनी चाहिए जिनसे मृत्यु भी डरती है

ऊत भूत जम त्रास निवारे, चित्रगुप्त के कागज़ फारै|

सरलार्थ: - सतगुरु ऊत - भूत तथा जम ( जम = काल ) की त्रास ( पीड़ा = संकट ) को समाप्त कर देता है । ऊत - भूत उसको कहते हैं जो व्यक्ति निःसंतान मर जाता है , उसको ऊत ( बिना औलाद का ) कहते हैं । फिर वह भूत बन जाता है और लोगों को परेशान करता है लेकिन ऊत - भूत किसी भी सेवड़े या तान्त्रिक से काबू नहीं आता , परंतु सतगुरु कबीर जी या उनके प्रतिनिधि संत से डरकर स्थान छोड़ जाता है । सतगुरु कबीर जी चित्रगुप्त ( पौराणिक कथा है कि जीव के साथ चित्र तथा गुप्त नाम के दो फरिश्ते रहते हैं । वे जीव के सर्व कर्म लिखते रहते हैं। जिन कर्मों के आधार से जीव कर्म भोग भोगता है । ) के खराब कर्म ( लेख ) के कागज फाड़ देता है । जिस कारण से जीव को पाप कर्मों का संकट भोगना नहीं पड़ता अर्थात् साधक सुखी हो जाता है । 

काल डरै करतार से, जय-जय-जय जगदीश।
जौरा जोड़ी झाड़ता, पग रज डारे शीश।।

गरीब, काल जो पीसे पीसना, जौरा है पनिहार।
ये दो असल मजदूर हैं, सतगुरू कबीर के दरबार।।

गरीबदास जी कहते हैं कि काल भी सर्वशक्तिमान कबीर परमात्मा से डरता है और कबीर साहेब के भक्तों को नहीं ले जा सकता। उसे परमात्मा की अनुमति लेनी पड़ती है। यम और मृत्यु सतभक्ति करने वाले भक्तो के निकट नहीं आते। वे अपने माथे पर परमात्मा के चरण की धूल लगाते हैं। और उनके सत मंत्रों से डरते हैं।  मृत्यु और बुढ़ापा भी परमात्मा के सेवक हैं।

गरीब, जम जौरा जासै डरैं, मिटें कर्म के अंक। 
कागज कीरै दरगह दई, चैदह कोटि न चंप।।

सतगुरु धर्मराज (यम) द्वारा लिखे गए खाते को रद्द कर  पाप कर्मों को खत्म कर देते हैं।

गुरुकी शरणा लीजै भाई। जाते जीव नरक नहीं जाई।। 
गुरु कृपा कटे यम फांसी। विलम्ब ने होय मिले अविनाशी।।

संत गरीबदास जी महाराज कहते हैं 'हे मनुष्य!  गुरु की शरण में जाने से जीव को नरक के कष्ट नही भोगने पड़ते।  या तो वह पूर्ण भक्ति करके मुक्त हो जाता है या मानव जन्म (पुरुष/महिला) प्राप्त करता है और फिर दुबारा सतगुरु रूप में परमात्मा भक्ति करवा कर मोक्ष प्रदान करते हैं।  इस प्रकार गुरु की प्राप्ति और सतभक्ति करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।  गुरु की कृपा से धर्मराज (यम) / यमराज द्वारा लगाए गए पाप कर्मों की सजा समाप्त हो जाती है और परम अक्षर ब्रह्म / सतपुरुष की प्राप्ति होती है।

काल की दुनिया में हर एक प्राणी यहां तक की धर्मराज (यम) और चित्रगुप्त भी गलत साधना कर रहे हैं जिसके कारण काल के जाल में फंसे हुए है। इसका उल्लेख सूक्ष्म वेद में भी किया गया है

चित्र गुप्त धर्म राय गावैं, आदि माया ओंकार है|
कोटि सरस्वती लाप करत हैं, ऐसा पारब्रह्म दरबार है||

चित्र तथा गुप्त और यहां तक ​​कि धर्मराज (यम) भी ओंकार अर्थात् ब्रह्म काल की पूजा करते हैं और आदिमाया अर्थात दुर्गा द्वारा फैलाए जाल में फंस रहते हैं।  काल लोक में देवी सरस्वती जो ब्रह्मा जी पुत्री है , उसकी आवाज अत्यंत सुरीली बताते हैं । उसके गाने सुनकर देवता लोग आनन्द लेते हैं । संत गरीबदास जी ने बताया है कि सतलोक जो पारब्रह्म का दरबार है , उसमें ऐसी - ऐसी करोड़ों सरस्वती अपनी सुरीली आवाज में गाने गाती हैं ।

ध्रुव प्रहलाद अगाध अग है, जनक बिदेही जोर है|
चले विमान निदान बीत्या, धर्मराज की बन्ध तौर हैं||

इसी तरह ध्रुव, प्रहलाद, राजा जनक जैसे कई महापुरुष काल की दुनिया में फंसे रहे। किसी को भी सतगुरु नहीं मिला इसलिए तत्वज्ञान में कहा गया है कि

आत्म प्राण उद्धार ही, ऐसा धर्म नहीं और। 

अर्थात यदि कोई आत्मा को जन्म-मरण से मुक्त कर दे तो उससे बड़ा कोई धर्म नहीं है।  यह अद्भुत कार्य केवल परम संत/सतगुरु ही कर सकते हैं।

कुछ महापुरुषों पर सर्वशक्तिमान कबीर जी ने रजा की और उन्हें धर्मराज (यम) के दरबार में ले गए और उन्हें काल के लोक की स्थिति से अवगत कराया आइए देखें कौन है वो महापुरुष।

सर्वशक्तिमान कबीर जी द्वारा स्वामी रामानंद जी को धर्मराज (यम) के दरबार का दर्शन कराना

सर्वशक्तिमान कबीर जी 600 साल पहले काशी, वाराणसी, भारत में मानव कल्याण के लिए अवतरित हुए थे।  उस समय उन्होंने वैष्णो पंथ के स्वामी रामानंद जी को अपनी शरण मे लिया था ।  उन्होंने गुरु शिष्य परंपरा कायम रखने के लिए स्वामी रामानन्द जी को अपना गुरु भी बनाया था।  स्वामी रामानंद जी भगवान विष्णु के उपासक थे।  उन्हें वेदों और गीता का अच्छा ज्ञान था और वे अपनी पूजा को श्रेष्ठ और मोक्ष प्रदान करने वाला मानते थे। भगवान कबीर जी ने एक बुनकर के रूप में लीला करते हुए स्वामी रामानन्द जी को तत्वज्ञान से अवगत कराया था। हालांकि शुरू में स्वामी जी को कबीर परमेश्वर के ज्ञान पर विश्वास नहीं हुआ। भगवान ने स्वामी जी से कहा कि आपकी पूजा आपको काल के जाल से मुक्त नहीं कर सकती। स्वामी जी का मानना ​​था कि स्वर्ग जाने का अर्थ है मोक्ष की प्राप्ति। भगवान कबीर जी ने रामानंद जी से उन मंत्रों का जाप करने के लिए कहा जो वह नित प्रतिदिन करते थे और कहा कि देखते हैं कि आप अपने मंत्रों के जाप से कहां तक पहुंच सकते हैं।  स्वामी जी हठयोग ध्यान के अभ्यस्त थे अतः तुरंत समाधिस्थ होकर अपनी सिद्धि से त्रिवेणी पर पहुंच गए। लेकिन वहीं फंस कर रह गए और आगे नहीं जा सके।  सुक्ष्मवेद में इस संदर्भ में कहा गया है

योग युक्त प्राणायाम कर जीता सकल शरीर |
त्रिवेणी के घाट में वो अटक रहे बलवीर ||

त्रिवेणी से आगे जाने के तीन मार्ग बने हैं। 5 वर्षीय बालक रूप में भगवान कबीर साहेब जी  रामानंद जी के साथ त्रिवेणी पर मौजूद थे।  उन्होंने स्वामी जी से कहा कि आप अपने मंत्र जाप से इससे आगे नहीं जा सकते।  जब आप मरेंगे तो इसी रास्ते से आएंगे। बाँया रास्ता धर्मराज, ब्रह्मा, विष्णु, शिव और स्वर्ग लोकों की ओर जाता है। दाँया रास्ता अठासी हजार ऋषियों की ओर जाता है। सामने वाला रास्ता ब्रह्म लोक को जाता है जिसे ब्रह्मरंद्र भी कहते हैं। आपकी साधना भगवान विष्णु की है, आप बाँई ओर से जाकर विष्णु लोक में चले जाएंगे। वहाँ जाने से पहले आपको ब्रह्म काल के मुख्य न्यायाधीश धर्मराज (यम) के पास जाना होगा जो तय करेगा कि आपके कितने पुण्य हैं और कितने पाप हैं। आपका हिसाब-किताब कराने के बाद आप सीधे विष्णु लोक में चले जायेंगे फिर वह द्वार बंद हो जाएगा और आप वापस नहीं आ सकते।  आप अपने कर्मों के अनुसार विष्णु जी की दुनिया में रहेंगे।  जब तक आपके गुणों की अवधि रहेगी तब तक आप वहीं रहेंगे फिर 84 लाख योनियों में वापस मृतलोक में आएंगे। 

भगवान कबीर ने रामनन्द जी से कहा, आप अपने मन्त्र से ब्रह्मरन्द्र का रास्ता खोलने का प्रयत्न करें।  यह द्वार आपके  द्वारा नहीं खोला जा सकेगा।  स्वामी जी भ्रमित हो गए। तब रामानंद जी ने 'हरे कृष्ण, हरे राम, सीता सीता, राधे राधेश्याम और ॐ भगवते वासुदेवाय नमः' सभी मंत्रों का उच्चारण किया।  परंतु ब्रह्मरंद्र के सामने वह रास्ता नहीं खुला।

कबीर परमेश्वर ने दो मन्त्र के सतनाम का जाप किया और रामानन्द जी की आत्मा को ऊपर लोक में ले गये। परमात्मा ने रामानंद जी को का गुप्त स्थान दिखाया जहाँ काल ब्रह्म आत्माओं को भूनता और खाता है। तब भगवान रामानंद जी की आत्मा को लेकर अक्षर पुरुष के लोक से होते हुए सतलोक पहुंचे।  स्वामी रामनन्द जी विद्वान संत थे उन्हें सत्य जानने में समय नहीं लगा और उन्होंने कबीर जी को ईश्वर मानकर उनकी शरण ले ली।  दुनिया को दिखाने के लिए, वह परमात्मा कबीर के आदेश पर उनके गुरु कहलाते रहे। इसप्रकार स्वामी रामानन्द जी को सतज्ञान प्राप्त हुआ और उनका मनुष्य जीवन यथार्थ हुआ।

एक और महान पुरुष संत गरीबदास जी थे जिन्हें सर्वशक्तिमान कबीर जी द्वारा धर्मराज (यम) के दरबार में ले जाया गया था।  आइए अब उनके अनुभव के बारे में पढ़ें।

पूर्ण परमात्मा कबीर जी द्वारा संत गरीबदास जी को धर्मराज (यम) के दरबार में ले जाना

संदर्भः वाणी संख्या 16-36 संत गरीबदास अमरग्रंथ 'अचला का अंग' से

भगवान कबीर जी अपने भक्तों को सतलोक में वैसे ही ले जाते हैं जैसे अलल' पक्षी आकाश में उड़कर हाथी को अपने साथ ले जाता है।  जो साधक तत्वदर्शी संत से दीक्षा लेते हैं और सतनाम या सरनाम का जप करते हैं उन्हें शरीर के भीतर सतलोक की मधुर ध्वनि सुनाई देती है।  सतलोक की उस मनमोहक वाणी को सुनकर सच्चा भक्त काल की दुनिया में रुचि खो देता है और यहां भौतिक सुख-सुविधाओं को संचित करने का कभी लक्ष्य नहीं रखता।

कबीर परमेश्वर सतलोक से सह शरीर अवतरित हुए और आदरणीय गरीबदास जी महाराज से जिंदा बाबा के रूप में मिले, जब वे मार्च 1727 (विक्रमी संवत 1784)  शुक्ल पक्ष, द्वादशी फाल्गुन के महीना में हरियाणा के झज्जर जिले गांव छुड़ानी में अपने खेत में मवेशी चरा रहे थे, परमात्मा ने उन्हें सतज्ञान से परिचित कराया फिर धर्मराज (ब्रह्म काल के मुख्य न्यायाधीश) के दरबार में उनकी पवित्र आत्मा को ले कर गए।  परमात्मा का शरीर अत्यंत तेजस्वी था। भगवान के जाते ही धर्मराज (यम) अपनी कुर्सी से खड़े हो गए और उन्हें प्रणाम किया जैसे एक निचला अधिकारी एक उच्च अधिकारी के सामने झुक कर खड़ा होता है।  अपनी काबिलियत साबित करने और गरीबदास जी को अपना गवाह बनाने के लिए भगवान ने धर्मराज (यम) को डांटा।  आइए पढ़ते हैं उनकी बातचीत।  

भगवान कबीर जी ने कहा

धर्मराज दरबार में देई कबीर तलाक |
मेरे भूले चुके हंस को तू पकड़िए मत कजाक ||

'हे कजाक (शैतान)!  मेरे (कबीर साहेब) भक्त जिसने पूर्ण संत से नाम दीक्षा ली हो और सतभक्ति करता है, उसको मत पकड़ना ।

बोले पुरुष कबीर से धर्मराय कर जोड़ ||
तुम्हरे हंस को पकडू नहीं मैंने दोहई लाख करोड़ ||

धर्मराज (यम) ने कबीर भगवान से माफी मांगी और उनके भक्तों को नहीं पकड़ने का वादा किया।  चूँकि धर्मराज (यम) न्याय के देवता हैं और आत्माओं के कर्मों के अनुसार इनाम और दंड देना उनका कर्तव्य है, उन्होंने सर्वशक्तिमान कबीर जी से पूछा

मदहारी जारी नरा जो भांग तंबाखू खाहीं |  
परदारा पर घर तकें जिनको लो अक नाहीं ||   

धर्मराज (यम) अपनी व्यवस्थाओं को बताते हुए पूछते हैं कि- 'जिन लोगों ने तत्वदर्शी संत की शरण में आने से पहले रिश्वतखोरी, मादक द्रव्यों का सेवन, व्यभिचार, वध, मद्यपान, धूम्रपान आदि बुराई की है, क्या वह उन्हें कानून के अनुसार पकड़े या छोड़ दे?  तब धर्मराज (यम) ने अनुरोध किया

धर्मराय विनती करें सुनियों पुरुष कबीर |
जिनको तो पकड़ने पड़ेंगे और जड़नी पड़े जंजीर ||

धर्मराज (यम) कहते हैं कि मेरे कानून के अनुसार मुझे उन्हें पकड़ना और दंड देना है

कर्मों से तीरथ हैं, अब हैं जो शरण कबीर | 
जिनको निश्चय मारेहूँ, और काढ़ों बल तकसीर ||  

मतलब मुझे उन्हें उनके पहले के पापों की सजा देनी होगी। अब वे आपकी शरण में हैं इसलिए मैं उन्हें नहीं पकड़ूंगा जिन्होंने आपका मंत्र लिया है और केवल उन्हें ही पकड़ूंगा जो सच्ची भक्ति नहीं करते हैं।

कबीर परमेश्वर ने उन्हें आदेश दिया कि मेरा सारशब्द, सरनाम एक चुंबक की तरह है और मेरे 'हंस' (भक्त) लोहे की तरह है। मैं गुप्त रूप से अपने भक्त से मिलूंगा।  वह मुझे प्रणाम करेंगे और फिर मैं उन्हे दर्शन दूंगा।  जो मेरी आत्मा होगी मैं उसे तुम्हारे कारागार से मुक्त कर दूंगा।  तुमने उन्हे अज्ञानी बना दिया है, इसलिए वे पाप करते हैं। इसलिए सावधान रहो, और उस भक्त का हिसाब मत करना जो ये कहे कि मैंने कबीर साहेब से दीक्षा ली है।

पहले किए सो बख्शहुं आगे करे न कोई ||
कबीर कहे धर्मराय सौ नाम रटें मम सोई ||

मेरी शरण में आने से पहले उन्होंने जो भी पाप किए हैं, मैं उन सब को माफ कर दूंगा। तुम उनका हिसाब मेरे पास ले आना। आप पर कोई बोझ नहीं पड़ेगा। तब भगवान कहते हैं

ये करम भरम ब्रह्मण्ड के मैं पल में करहूं नेश |
जिन्ह हमरी दोही दई करो हमारे पेश ||

कबीर भगवान ने धर्मराज (यम) से कहा, 'इस काल की दुनिया में अज्ञानता के कारण मेरी शरण में आने से पहले मेरे भक्तों ने जो भी पाप किए हैं, मैं उन्हें सेकंड में माफ कर दूंगा और आगे वह कोई पाप नहीं करेंगे। हे धर्मराज (यम) !  जो कोई मेरे मंत्र का जाप करेगा मैं उसके पापों को क्षमा कर दूंगा। उन लोगों का हिसाब तुम मत लेना जो आपसे कहते हैं कि हम कबीर साहेब के शिष्य हैं।  उन्हें त्रिकुटी में मेरे स्थान पर भेज देना।  मैं उनका हिसाब कर दूंगा।  (त्रिकुटी में सभी का दूतावास है। इसी तरह एक कबीर परमेश्वर का है)।

नोट: यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 इस बात का प्रमाण देता है कि परम अक्षर पुरुष / सत्यपुरुष / सर्वोच्च भगवान सच्चे भक्तों के घोर पापों को भी क्षमा कर देते हैं।

शिवमंडल ब्रह्मापुरी चाहे विष्णुलोक में हो |
हमरे गुण भूले नहीं तो आन छुटाऊं तोह  ||

दयालु परमात्मा कबीर जी बताते हैं कि यदि मेरा कोई भी शिष्य गलती से भक्ति छोड़कर ब्रह्मा, विष्णु, शिव या काल की दुनिया में किसी अन्य स्थान पर चला जाता है और यदि वह स्वर्ग के भी सुख से विमुख होकर मुझे स्मरण करे तो मैं उस पवित्र आत्मा को वहाँ से भी मुक्त कर दूँगा।

तीन लोक का राज जीव को जै कोई दे ||
लाख बधाई क्या करे जै नहीं नाम से नेह ||

भगवान हमें बताते हैं कि एक बार जब भक्त को ज्ञान हो जाता है तो वह जान जाता है कि जब तक आत्मा को पूर्ण गुरु से दीक्षा नहीं मिलती है, तब तक तीनों लोकों में पद, शक्ति बेकार है।

इन्द्र कुबेर ईश की पद्वी, ब्रह्मा, वरूण धर्मराया।
विष्णुनाथ के पुर कूं जाकर, बहुर अपूठा आया।।

भगवान समझाते हैं कि इंद्र का पद प्राप्त करने के बाद भी या ब्रह्मा, विष्णु आदि के लोक में जाने के बावजूद भी आत्मा अगर पुनरावृत्ति में है यानि जन्म मरण के चक्र में है तो सब बेकार है।

दयालु भगवान कबीर जी ने त्रेता युग में पक्षियों के राजा, भगवान विष्णु के वाहन की शरण में लिया और उन्हें सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान अर्थात तत्वज्ञान प्रदान किया। आइए हम उसी के संबंध में सर्वशक्तिमान कबीर जी और धर्मराज (यम) के बीच हुए संवाद का अध्ययन करें।

गरुड़ जी को दिए गए तत्त्वज्ञान के संबंध मे पूर्ण परमात्मा कबीर जी और धर्मदास जी के बीच संवाद

संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 11 गरुड़ बोध पृष्ठ 65 (625) पर  

भगवान कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि उन्होंने पक्षियों के राजा अर्थात गरुड़ जो भगवान विष्णु का वाहन है, उनको सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान दिया।  गरुड़  अमरलोक और सतपुरुष की महिमा सुनकर दंग रह गए थे। उनके लिए विश्वास करना कठिन था।  गरुड़ जी ने कबीर परमेश्वर से कहा कि हमें अब तक गुमराह किया गया है।  कबीर भगवान ने गरुड़ जी को अपना परिचय दिया कि 'मैं कबीर हूँ, संपूर्ण ब्रह्मांडों, सृष्टि का निर्माता।  मेरा निज धाम सतलोक है। तुम सभी आत्माओं को  काल ब्रह्म ने भ्रमित कर दिया है। आगे कबीर परमेश्वर ने धर्मदास जी को बताया कि उन्होंने वेदों और पुराणों से गरुड़ जी को प्रमाण दिया और सिद्ध किया कि काल ब्रह्म ब्रह्मा, विष्णु, महेश का पिता हैं और देवी दुर्गा उनकी माता हैं (सबूत देवी पुराण, स्कंद 3)।  गरुड़ जी ने कबीर परमेश्वर के मुख कमल से निकले एक-एक शब्द पर विश्वास किया और स्वीकार किया कि जो कोई ब्रह्म काल, देवी दुर्गा, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की रचना को जानता है, वही निर्माता हो सकता है।  यह शाश्वत सत्य आज तक किसी ने नहीं बताया।

कबीर परमेश्वर ने धर्मदास जी से कहा कि सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान से परिचित होने के बाद गरुड़ जी ने उन्हें अपनी शरण में लेने की याचना की। कबीर परमेश्वर ने गरुड़ जी से कहा कि उन्हें इसके बारे में भगवान विष्णु को सूचित करने की आवश्यकता है क्योंकि हम सभी को एक साथ रहना है और पारदर्शिता बनाए रखना आवश्यक है। अगर मैं तुम्हें गुप्त रूप से दीक्षा दूंगा तो इससे भगवान विष्णु को दुख होगा।

कबीर परमेश्वर ने ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मन्त्र 2 और 5 का प्रमाण गरुड़ जी को पूर्ण परमात्मा की क्षमता बताते हुए दिखाया कि केवल वही भक्तों की आयु बढ़ा सकते हैं जो गंभीर रूप से बीमार पड़ गए हैं और मृत्यु के निकट हैं। वह उस मृत आत्मा को आशीर्वाद मात्र से जीवित कर सकते हैं। कोई अन्य भगवान यानी कालब्रह्म, ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि वे केवल कर्मों का फल ही प्रदान कर सकते हैं। उनकी शक्तियां सीमित हैं।

गरुड़ जी ये सुन कर ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे कहा कि आपके अलावा कोई और सर्वोच्च शक्ति है जो पूर्ण सक्षम है। आप सब नश्वर हो। अभिमानी भगवान ब्रह्मा स्वयं को 'प्रजापिता' अर्थात सभी का निर्माता और वेदों के ज्ञाता मानते थे इसलिए वे गरुड़ जी से सहमत नहीं थे।

कबीर परमेश्वर ने धर्मदास जी को आगे बताया कि 'तब भगवान ब्रह्मा ने एक सभा बुलाई जिसमें भगवान विष्णु, भगवान शिव, इंद्रदेव, सभी देवता और ऋषि मौजूद थे। उनमें से कोई भी गरुड़ जी द्वारा बताए गए तथ्यों से सहमत नहीं था कि काल की दुनिया में हर कोई नश्वर है। अंत में, देवी दुर्गा को सत्य प्रकट करने के लिए बुलाया गया।  उन्होंने गरुड़ जी का साथ देते हुए कहा कि तुम सब नाशवान हो।  वास्तव में, एक पूर्ण ईश्वर कोई और है जो अजर अमर और सभी का पालन-पोषण करता है।

यह सुनकर सभा की कार्यवाही स्थगित हुई और सभी चले गए।  ब्रह्मा, विष्णु और शिव सहमत नहीं थे और उन्होंने गरुड़ जी से कहा कि वे जिस तरह से चाहते हैं उनकी जांच कर सकतें और उन्हें यह साबित करना होगा कि उन सभी के पास सीमित शक्ति है और केवल कर्मों का फल ही प्रदान कर सकते हैं।

कबीर परमेश्वर ने धर्मदास से कहा कि इसके बाद गरुड़ जी मदद मांगने उनके पास आए।  मैंने उनसे कहा कि 'बांग' देश (वर्तमान बांग्लादेश) में एक ब्राह्मण का 12 साल का बेटा है।  उसके मरने में केवल तीन दिन शेष हैं।  मैं उन्हें अपनी शरण में लेना चाहता था और उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सीमित शक्तियों के बारे में बताया जो आपकी उम्र नहीं बढ़ा सकते लेकिन वह मुझसे सहमत नहीं थे। लड़के के माता पिता बहुत चिंतित हैं।  तुम उन्हे देवताओं के पास ले जाओ जो उसकी आयु नहीं बढ़ा पाएंगे।  फिर तुम मेरे पास आना।  मैं आपको बताऊंगा कि आपको आगे क्या करना चाहिए।

गरुड़ जी बच्चे को ब्रह्मा, विष्णु और शिव के पास ले गए जिन्होंने उनसे उस बच्चे को आयु बढ़ाने का अनुरोध किया लेकिन सब व्यर्थ था।  तब तीनों देवता तथा गरुड़ जी ने धर्मराज (यम) के पास जाने का निश्चय किया जो सबका लेखा-जोखा रखते हैं।  उन्होंने भी अपनी बेबसी बता दी कि वह भी किसी की उम्र नहीं बढ़ा सकते ।  यह असंभव है।  प्रतिष्ठा का मसला मानते हुए तीनों देवताओं ने धर्मराज (यम) से समाधान मांगा तो धर्मराज (यम) ने कहा कि यदि आप बच्चे को अपनी उम्र देंगे तभी उसकी उम्र बढ़ाई जा सकती है।  यह सुनकर तीनों देवताओं ने अपनी अक्षमता स्वीकार कर ली और कहा कि केवल सर्वोच्च भगवान ही उनकी आयु बढ़ा सकते हैं।  सभी ने धर्मराज (यम) के दरबार को छोड़ दिया।

कबीर साहब ने आगे धर्मदास से कहा कि 'तब गरुड़ जी ने मुझसे निवेदन किया। मैंने उसे मानसरोवर से अमृत जल लाने को कहा। और बताया कि वहां उनकी मुलाकात 'श्रवण' नाम के एक भक्त से होगी जो उनकी मदद करेगा।  गरुड़ जी ने श्रवण से मानसरोवर का अमृत जल लाकर बालक को दिया।  तब उस बालक ने कबीर को ईश्वर मान लिया और शरण ली।  उनका कल्याण हुआ;  बाद में वे सनातन सतलोक के स्थायी निवासी बने और मोक्ष प्राप्त किया।

ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने धर्मराज (यम) से पूछा कि वह बच्चा अपनी उम्र खत्म होने के बाद भी कैसे जीवित रहा?  धर्मराज (यम) ने उत्तर दिया कि यह सर्वोच्च भगवान की शक्ति से हुआ है।  केवल वही आयु बढ़ा सकता है।  मेरे और आप सभी के पास सीमित शक्तियाँ हैं और वे ऐसा नहीं कर सकते।  अहंकारी ब्रह्मा, विष्णु, शिव वास्तविकता को देखकर भी मान बढ़ाई वश नहीं माने।

नोट: - कबीर परमेश्वर गरुड़ जी से त्रेता युग में मिले थे।  भगवान विष्णु का प्रभाव अभी भी उनमें बना हुआ था, इसलिए उस समय मुक्त नहीं हो सके।  वह फिर से जन्म लेंगे तब सर्वशक्तिमान उन्हे आशीर्वाद देंगे और उन्हें अपनी शरण में लेंगे और मोक्ष प्रदान करेंगे।

आइए आगे बढ़ते हुए जानते हैं कि कबीर परमेश्वर हिंदुओं और मुसलमानों को उनके गलत व्यवहार के बारे में क्या उपदेश देते थे और धर्मराज (यम) के दरबार में उन्हें क्या सजा मिलेगी।

धर्मराज (यम) के दरबार में मनमानी पूजा करने वालों के साथ क्या होगा?

600 साल पहले जब परमात्मा कबीर जी पृथ्वी पर अवतरित हुए थे और एक बुनकर की लीला कर रहे थे तब उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को उनके शास्त्र विरूद्ध साधना और उसके लिए धर्मराज (यम) के दरबार में मिलने वाली सजा के बारे में उपदेश देते थे।  हिंदू 'माता मसानी' की पूजा करते हैं और मुसलमान किसी संत/फकीर की याद में बनी 'दरगाह' की पूजा करते हैं।  वे उन पर दृढ़ हो गए हैं।  अगर कोई उन्हें समझाने की कोशिश करता है तो वे सिर फोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।  वे परमेश्वर के ज्ञान को नहीं सुनते हैं।  हिंदू मंदिरों में और मुसलमान मस्जिद के चक्कर में उलक्ष गए हैं। उन्होंने आपस में धर्म की बाधा खड़ी कर ली है।। ईश्वर का उद्देश्य था कि सभी आत्माएं सतभक्ति  करें और मनमानी पूजा छोड़ दें।

संदर्भ: संत गरीबदास जी पवित्र अमर ग्रंथ राग काफी शब्द 1

नहीं है दारमदारा उहाँ तो, नहीं है दारमदारा
उस दरगह में धर्मराय है, लेखा लेगा सारा ॥ 
मुल्ला कूके बंग सुनावे, ना बहरा करतारा ॥ 
तीसों रोजे खून करत हो, क्यों कर होय दीदारा॥ 
मूल गंवाय चले हो काजी, भरिया घोर अंगारा ॥ 
भोजल बूड़ि गये हो भाई, कीजेगा मुँह कारा ॥ 

अर्थ:- कबीर परमेश्वर जी कहा करते थे कि धर्मराज (यम) के दरबार में किसी को विशेष अधिकार नहीं है अर्थात वहां किसी की सिफारिश काम नहीं आती।  कर्मों के आधार पर ही सारे निर्णय लिए जाते हैं।  वहां आत्मा द्वारा मनुष्य जन्म में किए गए पुण्य-पापों का सारा लेखा-जोखा लिया जाता है।  हिंदू और मुसलमान दोनों ही गलत आचरण करते हैं। उन्हें ईश्वर/अल्लाह का आशीर्वाद नहीं मिल सकता।  दोनों की पूजा का तरीका पवित्र शास्त्रों के विरूद्ध है।  उन्हें भगवान के दरबार में दंडित किया जाएगा।  12 करोड़ यमदूत हैं जो आत्मा पर अत्याचार करते हैं और मृत्यु के बाद उसे धर्मराज (यम) के दरबार में पेश करते हैं।  आदरणीय गरीबदास जी हिंदुओं और मुसलमानों दोनों से कहते हैं कि ईश्वर की सच्ची पूजा करें और अपने मानव जन्म को सफल बनाएं।

कबीर परमेश्वर मुस्लिम धर्मगुरु काजियों को बताते थे कि

काशी जोरा दीन का, ये काजी खिलस करंत ||
गरीबदास उस सरे में, झगरे आंनि परंत ||

सुन काजी राजी नहीं आप आले खुदा ||
गरीबदास किस हुकम से तेने पकाड़ पचड़ी गए ||

अर्थ: सर्वशक्तिमान कबीर जी अपनी अमृत वाणी में कहते हैं कि धर्मराज के दरबार में कोई दया नहीं है।  वह पृथ्वी पर किए गए प्रत्येक कार्य का लेखा-जोखा रखता है।  कबीर परमेश्वर उन मुसलमानों को फटकार लगाते हैं कि आप लोग जो ऊँची आवाज़ में अजान की घोषणा करते हैं  'क्या तुम्हारा अल्लाह बहरा है?  तुम इतनी जोर से क्यों चिल्ला रहे हो?  पूरी श्रद्धा के साथ सामान्य तरीके से पूजा करनी चाहिए।  एक तरफ आप रमजान के दौरान तीस दिनों तक रोजा रखते हो ।  दिन भर पानी भी नहीं पीते और शाम को बेगुनाहों को मार कर माँस खाते हो। भगवान पूछते थे 'तुम किसके आदेश से जानवरों को मार रहे हो?  आप अल्लाह को कैसे प्राप्त करोगे? जीव हत्या करने वालों को धर्मराज (यम) के दरबार में भारी शुल्क देना होगा।  भगवान / अल्लाह जिसने छह दिनों में सृष्टि रची  और सातवें दिन सिंहासन पर बैठे वह अल्लाहु अकबर है और आप उनके आदेश का उल्लंघन कर रहे हो।  ऐसा करके आप केवल अपने कर्म को बर्बाद कर रहे हैं और यहां तक ​​कि पिछले जन्म में किए गए पुण्यों को भी बर्बाद कर रहे हो।  यह भक्ति का तरीका नहीं है, यह काल का जाल है और धर्मराज आपको इस जघन्य पाप की सजा अवश्य देगा।

वैसे ही भगवान हिंदुओं को समझा रहे हैं कि

वेद पढ़े पर भेद न जाने, बाँचें पुराण अठारा ॥ 
जड़ कूँ अंधरा पान खवावे, बिसरे सिरजनहारा ॥
 

अर्थ:- हिन्दू मूर्तिपूजा करते हैं, पत्थर को जल चढ़ाते हैं।  अज्ञानी पंडित वेद और गीता पढ़ते हैं लेकिन वेदों में कहीं भी मूर्ति पूजा करने के लिए नहीं लिखा गया है। वे स्वयं भी मनमानी पूजा करते हैं और भक्तो को भी बताते है इस प्रकार पूरा संसार सृष्टि के रचयिता को भूल गए हैं।  वे देवताओं को प्रसाद चढ़ाने के नाम पर जीव हत्या भी करते हैं।  वे सभी परमेश्वर के दोषी हैं।

उजड़ खेड़े बहुत बसाये, बकरा झोटा मारा ॥ 
जा कूँ तो तुम मुक्ति कहत हो, सो हैं कच्चे बारा ॥ 
मांस मछरिया खाते पांडे, किस विध रहे उचारा ॥ 
स्यों जजमान नरक कु चाले, बूड़े स्यूं परिवारा ॥ 
छाती तोरि हनें जम किंकर, लाग्या जम का लारा ॥
दास गरीब कहे बे काजी, ना कहीं वार न पारा ॥

हिन्दू हदीरे पूजहीं मुस्लिम पूजे घोर।।
दोहू दिन धोखे पड़े ये हो गए कठिन कठोर।।
हिंदू तो देवल बंधे ये मुस्लिम बंधे मसीत।।

साहेब दर पहुँचे नहीं ये पड़ी भ्रम की भीत।।

षट दल दोनों दिन का दिल में दोष ना धार।।

सतगुरु का कोई एक है ये जम का सब संसार।।

अदम उदाहरण संग है कर प्रतीत पहचान।। 

हृदय माथे की कही पूजे जद पाषाण ।।

भगवान कबीर जी हिन्दुओं को भी फटकार लगाते हुए कहते हैं कि तुम अपने शास्त्रों को भी नहीं जानते और उसके विरुद्ध भक्ति करते हो। आप मोक्ष कैसे प्राप्त करोगे? आप सभी पूर्ण परमेश्वर की पूजा करने के बजाय मूर्तिपूजा कर रहे हो।  कबीर भगवान हिंदुओं से कहते हैं कि तुमने मांस खाना भी शुरू कर दिया अब तुम भगवान को कैसे पाओगे?  आप में से बहुत से लोग जिन्होंने पूर्ण परमेश्वर की सच्ची उपासना नहीं की, उन्हें नर्क में भेजा गया है और भविष्य में भी जो कोई भी मनमाना भक्ति करेगा, धर्मराज उन्हें नरक में डाल देगा और यम के दूत वहाँ आत्माओं को यातना देंगे।

पूर्वोक्त वचनों से स्पष्ट होता है कि आत्मा अज्ञानता वश पाप करती है और फिर धर्मराज (यम) के दरबार में पीड़ित होती है। उसके पास कोई रास्ता नहीं है। वैसे तो धर्मराज (यम) बहुत शक्तिशाली प्रतीत होते हैं, लेकिन क्या वे पूज्य और मोक्ष प्रदाता हैं? आइए जानते हैं।

क्या धर्मराज पूज्य भगवान और मोक्ष प्रदान करने वाले हैं? 

धर्मराज पजनीय नहीं है और वह अजर अमर भी नहीं है। कोई भी पवित्र ग्रंथ धर्मराज (यम) की पूजा को प्रमाणित नहीं करता है। धर्मराज स्वयं नाशवान हैं।  सर्वोच्च भगवान के अलावा किसी अन्य देवता की पूजा करना बेकार है।  धर्मराज (यम) को प्रसन्न करने के लिए अज्ञानी भक्त विभिन्न मंत्रों का जाप करते हैं 

ॐ क्रों ह्रीं आं वैं वै वस्वताय| धर्मराजाय भक्तानुग्रह कृते नमः 

किसी भी पवित्र शास्त्र में इस मंत्र का कोई प्रमाण नहीं मिलता है।  वही पवित्र श्रीमद्भगवद गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में मनमानी पूजा को निषेध बताया गया है।  गीता अध्याय 17 श्लोक 23 स्पष्ट करता है कि जप करने का एकमात्र मंत्र 'ओम-तत्-सत' जा सांकेतिक है;  और केवल तत्वदर्शी संत ही इसकी व्याख्या कर सकते हैं, जिसका जाप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, बाकी सभी मंत्रों का फल व्यर्थ होता है।

सच्चिदानंदघन ब्रह्म के अमृत वाणी में उल्लेख किया गया है कि त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और शिव की पूजा व्यर्थ है और साधकों को मुक्ति नहीं दे सकती है। फिर धर्मराज या यमराज जैसे अन्य देवता कैसे पूजनीय हो सकते हैं?

सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान की कमी के कारण निर्दोष साधक अपने बहुमूल्य मानव जन्म को मनमाने ढंग से पूजा करने में बर्बाद कर देते हैं जो बेकार है। धर्मराज मोक्ष देने वाला नहीं है, वह अमर भी नहीं है।  वह भी जन्म-मरण के चक्र में है।

श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में काल (ज्योति निरंजन) कह रहा है कि 'हे अर्जुन!  ब्रह्मलोक तक के सभी लोक पुनर्वर्त्ति में हैं ।  लेकिन हे कुंती के पुत्र, जो यह नहीं जानते, वे मुझे प्राप्त करके भी पुनर्जन्म लेते हैं'।  इसलिए, भक्तों को सलाह दी जाती है कि वे तुरंत शास्त्र विरुद्ध साधना छोड़ कर और यह पता लगाने का प्रयास करें कि कौन पूज्य भगवान है जो मोक्ष प्रदान कर सकता है।

आइए हम उन साक्ष्यों का अध्ययन करें जो यह जानकारी प्रदान करते हैं - पूज्य भगवान कौन है?

पूज्य भगवान कौन है?

धर्मराज (यम) जो काल की दुनिया में एक महत्वपूर्ण पद नियुक्त हैं, पूर्ण परमात्मा के दरबार में एक साधारण कार्यकर्ता की तरह हैं।  कहा गया है कि

धर्मराज (यम) दरबानी चेरा, सुर-असुरों का करै निबेरा ||

सत का राज धर्मराय करहीं, अपना किया सभैडण्ड भरहीं||

काल लोक के धर्मराज (यम) जो कर्मों के आधार पर न्याय करने वाले देवता जो सभी को इनाम या दंड देते हैं  परम अक्षर ब्रह्म के दरबार में एक साधारण कार्यकर्ता की तरह है। काल लोक में तो धर्मराय कर्म के आधार पर सजा तय करता है लेकिन वह खुद एक राक्षस है।  उसके निर्णय से जीव पीड़ित होते हैं।  बताया गया है

धर्मराय (यम) आदि जुगादि चेरा, चैदह कोटि कटक दल तेरा ||

धर्मराज (यम) अर्थात कालब्रह्म के लोक का न्याय देवता जो सतपुरुष का सेवक है।  धर्मराज (यम) की सेना में 14 करोड़ धर्मदूत हैं जो मृत्यु के समय शरीर से आत्माओं को निकालकर धर्मराज के दरबार में पेश करते हैं। धर्मराज के पास 14 करोड़ सैनिकों की फौज है।

आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज ने सर्वशक्तिमान कबीर जी की महिमा बताते हुए कहा है पूर्ण परमात्मा धर्मराज (यम) द्वारा लिखे गए खाते को रद्द करने में सक्षम हैं और आत्माओं को काल के जाल से मुक्त करते हैं। और केवल वही परमात्मा पूजनीय है।  कहा है कि 

अदली आरती असल जमाना, जम जौरा मेटूं तलबाना।
धर्मराय पर हमरी धाई, नौबत नाम चढ़ो ले भाई।
चित्र गुप्त के कागज कीरुं, जुगन जुगन मेंटू तकसीरूं।
अदली ग्यान अदल इक रासा, सुनकर हंस न पावै त्रासा।
अजराईल जोरावर दाना, धर्मराय का है तलवाना।
मेटूं तलब करुं तागीरा, भेटे दास गरीब कबीरा।

कबीर परमेश्वर समर्थ परमात्मा हैं जो यमराज के बुलावे को भी टाल सकते है और सच्चे उपासक की मृत्यु को भी दूर कर सकते हैं।  कबीर परमेश्वर से सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने वाले गरीबदास जी बताते हैं  मेरा (कबीर साहब)  धर्मराज (यम) के ऊपर अधिकार है जो ब्रह्मकाल के लोक में एक मात्र न्याय का देवता है । केवल मैं उसके आदेश को खारिज कर सकता हूं'।  परमात्मा अपने सच्चे भक्तों को सतनाम का जाप कर यमदूत को हराने के लिए कहते हैं। परमात्मा कहते है कि मैं चित्रगुप्त द्वारा लिखे गए पाप पूर्ण  कर्मों के आपके पन्नों को फाड़ दूंगा, जिसका अर्थ है कि मैं आपके असंख्य जन्मों के सभी पापों को नष्ट कर दूंगा।  जब आत्मा मेरी इस निर्णायक अवधारणा को समझ लेता है और मेरी भक्ति में दृढ़ हो जाता है, तो पवित्र आत्मा को यमलोक में यातना नहीं भोगनी पड़ती और उसकी सच्ची पूजा पूर्ण होने पर मोक्ष प्राप्त होता है। 

पांच तत्त नाहीं गुण तीना, नाद बिंद नाहीं घट सीना।
चित्रगुप्त नहीं कृतिम बाजी, धर्मराय नहीं पण्डित काजी।
धुन्धू कार अनन्त जुग बीते, जा दिन कागज कहो किन चीते।
जा दिन थे हम तखत खवासा, तन के पाजी सेवक दासा।
संख जुगन परलो प्रवाना, सत पुरुष के संग रहाना।
दास गरीब कबीर का चेरा, सत लोक अमरापुर डेरा।

सृष्टि उत्पन्न होने से पहले समय में न तो चित्र तथा गुप्त दो लेखाकार थे जो मानव के  शुभ - अशुभ कर्म लिखते थे । न उस समय यह कृत्रिम बाजी ( काल की बनी सृष्टि ) थी । उस समय काल का न्यायधीश ( धर्मराय ) तथा हिन्दुओं के गुरू पंडित तथा मुसलमानों के गुरू काजी - मुल्ला आदि भी नहीं थे । संत गरीबदास जी ने कहा है कि आज आप ज्ञान प्रचार करते हो कि चित्र तथा गुप्त सबके शुभ - अशुभ कर्मों को लिखते हैं । जिस समय काल लोक नहीं बना था अनन्त युग तक यहाँ अँधकार ( धुन्धुकार ) था । उस समय किसके शुभ - अशुभ कर्मों कागज पर किसने लिखा ( कागज चीता ) था । अपनी स्थिति भी स्पष्ट की है कि कहीं कोई प्रश्न उत्पन्न करे कि फिर गरीबदास जी कहाँ थे ? उसका समाधान भी साथ के साथ कर दिया है । कहा है कि उस समय सतलोक आदि अमर लोकों की रचना परमेश्वर कबीर जी ने कर रखी थी । उन दिनों मैं परमेश्वर के तख्त ( सिहांसन ) के निकट अर्थात् उनके पास खवासा ( नौकर ) था मैं उसी समय से अमर शरीर धारण किए था । मैं शरीर का पाजी ( धारण करने वाल पाजी का अर्थ अज्ञानी भी होता है ) था तथा परमात्मा का ( दास ) गुलाम सेव ( सेवादार ) था ।

ऋग्वेद मंडल संख्या 9 सूक्त संख्या 86 श्लोक 26, ऋग्वेद मंडल संख्या 9 सूक्त संख्या 54 श्लोक 3, ऋग्वेद मंडल संख्या 9 सूक्त 86 मंत्र संख्या 26-27, ऋग्वेद मंडल संख्या 9 सूक्त 54 मंत्र न. 3, यजुर्वेद अध्याय 29 मंत्र न. 25) और भगवद गीता अध्याय 8 श्लोक 3 और 8,9,10, अध्याय 15 श्लोक 17, अध्याय 13 श्लोक 15-17 और 33) आदि भी इस बात का प्रमाण देते हैं कि कबीर परमेश्वर ही पूज्य हैं। और केवल कबीर परमात्मा ही मुक्ति के प्रदाता है।

इसी तरह के सबूत पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब, पवित्र कुरान शरीफ (सूरत अल फुरकान 25: 52-59, सूरह अल अंबिया 21:104, सूरह-अल-इखलास श्लोक 1-4) और साथ ही पवित्र बाइबिल Iyob 36.5 रूढ़िवादी यहूदी बाइबिल - (OJB) में भी स्पष्ट रूप से लिखे हुए हैं।

अतः सिद्ध होता है कि केवल कविर्देव ही पूज्य हैं।

निष्कर्ष

उपरोक्त प्रमाण सिद्ध करते हैं कि धर्मराज (यम) जी काल ब्रह्म के एक ब्रह्मांड में मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्त हैं, जो सभी प्राणियों का लेखा-जोखा करते हैं, वह स्वयं कसाई काल के जाल में फंसे हैं । वह स्वयं भी जन्म और मृत्यु के दुष्चक्र में है। गरुड़ प्रकरण धर्मराज की लाचारी साबित करता है कि : वह आत्माओं की उम्र नहीं बढ़ा सकते जबकि सर्वोच्च परमात्मा /सतपुरुष समर्थ परमात्मा है।  वह कुछ भी कर सकते हैं।  वह सच्चे उपासकों की उम्र भी बढ़ा सकते हैं।

यहाँ यह भी सिद्ध है कि धर्मराज (यम) ब्रह्माण्ड के दंडाधिकारी होते हुए भी उन भक्तों का लेखा-जोखा नहीं संभाल सकते जिन्होंने एक तत्वदर्शी संत से दीक्षा ली है और कबीर साहेब की पूजा करते है । यह भी सिद्ध होता है कि सर्वशक्तिमान कबीर साहेब भक्तों को नर्क के कष्ट से बचा सकते हैं और धर्मराज से भी बचा सकते हैं।

पाठकों को सूचित किया जाता है कि वही परमपिता परमात्मा कविर देव पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं और संत रामपाल जी महाराज के रूप में लीला कर रहे है। केवल संत रामपाल जी महाराज ही संसार के एक मात्र उद्धारकर्ता और मुक्तिदाता है। भक्तों को धर्मराज (यम) और अन्य देवताओं की पूजा करने जैसे सभी बेकार मनमानी प्रथाओं को त्याग देना चाहिए और पूर्ण संत की शरण लेनी चाहिए और अपना कल्याण करना चाहिए और सभी को सत भक्ति कर मोक्षप्राप्ति करना चाहिए।