शनि देव की पूजा करना शास्त्र अनूकुल नहीं


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मानव जन्म का एकमात्र उद्देश्य शास्त्रानुकूल सतभक्ति करके मोक्ष प्राप्त करना है। कोई भी मनुष्य यहां बिना भक्ति किए नहीं रह सकता। सभी मनुष्य परमात्मा की भक्ति करके अपनी इच्छाओं की पूर्ति चाहते हैं। हिंदू धर्म को मानने वाले भक्तों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में रखा जा सकता है: पहले वे लोग हैं जो जन्म से अपनी अंतर्निहित आध्यात्मिक प्रकृति के कारण पूजा करते हैं, जबकि अन्य वे हैं जो इस डर से पूजा करते हैं कि भविष्य में उनके साथ कुछ गलत ना हो जाए और या तो वे पहले से ही किसी कारण से दुखी होते हैं जिस कारण वह जीवन की कठिनाइयों और दुखों से छुटकारा पाना चाहते हैं।

पहली श्रेणी में आने वाले भक्त आमतौर पर त्रिमूर्ति (ब्रह्मा जी, विष्णु जी, शिव जी), या हनुमान, दुर्गा, आदि जैसी महिमावान शक्तियों की पूजा करते हैं, जो वास्तव में कसाई काल ब्रह्म के हाथों की कठपुतलियां हैं।

जबकि दूसरी श्रेणी के भक्त तीनों देवताओं की या इनसे भी नीचे के स्तर के देवताओं की पूजा करते हैं तथा अधूरे आध्यात्मिक गुरुओं द्वारा जनता को दिए अधूरे ज्ञान के कारण ऐसा माना जाता है कि यदि इन देवताओं की पूजा नहीं कि गई तो ये 'तुम्हें और तुम्हारे परिवार को नुकसान पहुंचाएंगे। ऐसे ही एक देवता हैं शनिदेव जिनसे भयभीत होकर लोग इनकी पूजा करते हैं।

आइए जानते हैं शनि देव के बारे में विस्तारपूर्वक

शनि देव की काले रंग की पत्थर की प्रतिमा पर भक्तजन शनिवार के दिन सरसों का तेल डालकर, तेल की बाती जलाकर और काले रंग का छोटा सा कपड़ा पहनाकर इनकी पूजा करते हैं। इनकी पूजा का विशेष दिन शनिवार माना गया है, अधिकतर भक्तजन अपने जीवन में शनिदेव के प्रकोप से बचने और इन्हें प्रसन्न करने के लिए ही इनकी पूजा करते हैं। शनिदेव को सूर्य पुत्र माना गया है।

यहां इस लेख के माध्यम से हम शनि देव कि लोकवेद के आधार पर प्रचलित पूजा और महिमा का तथ्यों के आधार पर विश्लेषण करेंगे तथा हम आपको यह भी बताएंगे कि क्या शनिदेव अपने भक्तों की रक्षा करने और उन्हें मोक्ष प्रदान करने में सक्षम हैं? हम यहां शनिदेव से जुड़ी कुछ प्रचलित कहानियां भी पढ़ेंगे और अपने पवित्र ग्रंथों में से प्रमाण देखेंगे कि उनमें शनिदेव के बारे में क्या लिखा है ताकि आप यह जान सकें कि शनि देव एक पूज्य भगवान हैं भी या नहीं?

इस लेख का मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित बिन्दुओं पर प्रकाश डालना और आपके सामने सच लाना भी है;

  • धर्मराय कौन है?
  •  क्या न्याय करने और कर्म फल देने वाले देवता हैं शनिदेव?
  • तीनों देवता (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) महा शनि से क्यों डरते हैं?
  • काल ब्रह्म ने शनि देव की मनमानी पूजा करने के लिए क्या भक्तों को गुमराह किया हुआ है?
  • शनिदेव के बारे में प्रचलित लोक कथाएं कौन सी हैं?
  • क्या शनिदेव पूजनीय देवता हैं?
  • पवित्र शास्त्र सर्वशक्तिमान भगवान के बारे में क्या कहते हैं?
  • क्या शनि देव मोक्ष प्रदान करने वाले देवता हैं?
  • सर्वोच्च परमात्मा कौन है?

सबसे पहले यह जानते हैं कि धर्मराय कौन है?

21 ब्रह्मांडों के मालिक ब्रह्म-काल को 'धर्मराय' के नाम से भी जाना जाता है, धर्मराय ने सर्वशक्तिमान कबीर साहेब, संपूर्ण ब्रह्मांड के निर्माता, परम अक्षर ब्रह्म, सतपुरुष से वादा किया है कि वह इस मृत संसार में सत्य और कर्म के आधार पर शासन करेगा। सूक्ष्म वेद में प्रमाण है;

धर्मराय दरबानी चेरा, सुर असुरों का करे निबेरा |
सत का राज धर्मराय करहीं, अपना किया सबही दंड भरही ||

हम सभी यहां काल के जाल में कैद हैं और काल यानि धर्मराय के जाल में फंसी सभी आत्माओं को उनके कर्मों के अनुसार कर्मफल और दंड मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसकी जिम्मेदारी काल यानि ब्रह्म ने शनि देव नाम के देवता को दी हुई है।

क्या न्याय करने और कर्म फल देने वाले देवता हैं शनिदेव?

शनिदेव एक लोकप्रिय हिंदू देवता हैं जिनकी पूजा भक्तों द्वारा उनके जीवन से बुराई और बाधाओं को दूर करने के लिए की जाती है और माना जाता है कि वह लोगों को उनके कर्मों के अनुसार पुरस्कृत या दंडित करते हैं।

आइए हम महाशनि के संदर्भ में 'श्री ब्रह्म पुराण' के एक उदाहरण से उपासकों की पहली श्रेणी को समझते हैं;

तीनों देवता (ब्रह्मा, विष्णु ,महेश) महा शनि से डरते हैं

संदर्भः श्री ब्रह्म पुराण, गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित, अध्याय "तपस्थतीर्थ, इंद्रतीर्थ और वृषकतीर्थ और अबजक-तीर्थ महिमा" पृष्ठ 216 पर।

 'अबजक तीर्थ' की महिमा का उल्लेख करते हुए ब्रह्म पुराण एक वास्तविक समय की घटना का वर्णन करता है। एक 'महा शनि' नाम का राक्षस था जिसे देवताओं द्वारा पराजित नहीं किया जा सकता था।  एक बार सभी देवता विष्णु जी के पास गए और राक्षस 'महा शनि' को मारने के लिए प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने कहा कि 'महा शनि' राक्षस मेरे लिए 'अवध्या' है, जिसका अर्थ है, मैं (विष्णु) महा शनि को नहीं मार सकता। उदास इंद्र तब श्री शिव के पास गए और राक्षस 'महा शनि' को मारने के लिए प्रार्थना की।  भगवान शिव ने कहा कि 'मैं अकेला 'महा शनि' राक्षस को नहीं मार सकता, आपको (इंद्र) और आपकी पत्नी शची को भगवान 'जनार्दन' यानी काल ब्रह्म की पूजा करनी चाहिए तभी उस राक्षस महा शनि को मारा जा सकता है।

ब्रह्म पुराण का यह वर्णन सिद्ध करता है कि श्री विष्णु जी और श्री शिव जी समर्थ नहीं हैं। वे सर्वशक्तिमान नहीं हैं। लेकिन यह भी नहीं कहा जा सकता कि उनके पास शक्ति नहीं है। ये देवता अन्य देवताओं की तुलना में अधिक शक्तिशाली तो हैं, लेकिन इस काल रूप ब्रह्म-सदाशिव की कठपुतली मात्र हैं जिन्हें महा विष्णु, महा शिव के नाम से भी जाना जाता है। वे शनि देव को हराने में असमर्थ हैं। काल ब्रह्म इन देवताओं-ब्रह्मा, विष्णु और शिव का रूप धारण करता है और उन्हें कुछ सहायता प्रदान करता है, इससे इन तीनों देवताओं की महिमा बढ़ती है इसलिए साधक इन तीनों महिमामयी शक्तियों पर आश्रित रहते हैं और ब्रह्म रूप काल के जाल को नहीं समझते हैं।

उपरोक्त प्रमाण यह भी सिद्ध करता है कि तीनों देवता (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) महा शनि से डरते हैं।

आइए अब यह समझने के लिए आगे बढ़ते हैं कि किस प्रकार ब्रह्म यानी काल निर्दोष अज्ञानी आत्माओं को गुमराह करता है और उन्हें मनमानी पूजा करने के लिए प्रेरित करता है जो पवित्र शास्त्रों के विरुद्ध होने के कारण व्यर्थ यानि बेकार हैं।

काल ब्रह्म द्वारा शनि देव की मनमानी पूजा के लिए भक्तों को गुमराह करना

शनिश्वर, पिंगला, बभरू (बभ्रु), पिप्पलाश्रय, रौद्रांतक, रविपुत्रम आदि नामों से पुकारे जाने वाले सूर्य और छाया के पुत्र शनि देव को भक्तों को वरदान और आशीर्वाद देने में सक्षम माना जाता है। अपने क्रूर व्यवहार के कारण शनि देव को दुर्भाग्य देने वाला देव भी कहा जाता है। यह कारण भी है कि भक्त इनसे डरते हैं।

संदर्भ: पवित्र कबीर सागर, पृष्ठ 62 और 63 से अध्याय 'अनुराग सागर' में कबीर परमेश्वर के साथ काल ब्रह्म की बातचीत

देवल देव पाषाण पूजाई | 
तीर्थ व्रत जप तप मन लाई||38 ||

भगवान काल ने सर्वशक्तिमान कबीर साहेब से कहा था कि कलयुग में वह भोली आत्माओं को देवताओं, भूतों की पूजा करने, उपवास करने, तपस्या करने और तीर्थों के दर्शन करने के लिए गुमराह करेगा, यह ऐसी बेकार पूजाएं होंगी जो निर्दोष प्राणियों को कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं देंगी, बल्कि यह सभी पूजाएं अनमोल मानव जन्म को सरासर बर्बाद करने का सबसे बड़ा कारण बनेंगी। यह काल का सबसे बड़ा जाल है वह जीवों को शनिदेव और अन्य देवताओं की पूजा करने जैसी मनमानी पूजा करने के लिए प्रेरित कर उन्हें गुमराह करता है।

पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा गया है:

यः,शास्त्राविधिम्, उत्सृज्य, वर्तते, कामकारतः,
न, सः, सिद्धिम्, अवाप्नोति, न, सुखम्, न, पराम्, गतिम्।।23।। 

अनुवाद: (यः) जो पुरुष (शास्त्राविधिम्) शास्त्रविधि को (उत्सृज्य) त्यागकर (कामकारतः) अपनी इच्छा से मनमाना (वर्तते) आचरण करता है (सः) वह (न) न (सिद्धिम्) सिद्धि को (अवाप्नोति) प्राप्त होता है (न) न (पराम्) परम (गतिम्) गति को और (न) न (सुखम्) सुख को ही। (23)

जैसा कि पवित्र गीता जी के उपरोक्त श्लोक से देखा जा सकता है, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हम और आप यह समझें कि पवित्र शास्त्र सर्वशक्तिमान भगवान के बारे में क्या कहते हैं और उस भगवान की पूजा की सही विधि क्या है? अब तक जो आप करते आए हो उसे करते रहने से कोई फायदा नहीं होगा। यदि आप सोचते हैं कि आप जिस रूप में भगवान की पूजा करेंगे, भगवान आपकी उसी रूप में मदद करेंगे, जैसा कि जनता का मानना है, तो ऐसा क्यों है कि इस दुनिया में लगभग हर कोई पीड़ित है और उनका तथाकथित भगवान या ईष्ट देव उन्हें राहत क्यों नहीं दे पा रहा है?

इसका उत्तर है कि वह साधना जो शास्त्रों के अनुसार नहीं है, ऐसी पूजा किसी की सहायता नहीं करेगी। यदि आप किसी को अपने जीवन का आनंद लेते हुए देखते हैं तो यह सब उसके पिछले कर्मों के कारण है; नहीं तो वही व्यक्ति उसी पूजा पद्धति का पालन करते हुए दुखी क्यों होने लगते हैं जो वह पहले से करते आ रहे हैं जब आप उनके सुखी जीवन जीने पर विचार कर रहे थे।

उपरोक्त तथ्यों का सार यह है कि सतभक्ति शुरू करने के लिए पवित्र शास्त्रों का पालन करना चाहिए।

अब समस्या हमारे पवित्र शास्त्रों के वास्तविक अनुवादों को समग्र रूप से समझने की आती है जो कि संस्कृत में हैं। हम जानते हैं कि हमारे लिए शास्त्रों को स्वयं समझना असंभव है अन्यथा हम पहले से ही यह सब जान और समझ गए होते। पवित्र हिंदू धर्म में अज्ञानतावश प्रचलित ऐसी ही एक मनमानी पूजा शनि देव की भी है। आगे शनि देव के बारे में भक्त समाज में प्रचलित लोककथाओं के बारे में जानते हैं।

शनि देव के बारे में प्रचलित लोक कथाएं

हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों का ऐसा मानना है कि, शनि देव एक ऐसे देवता हैं जिनकी पूजा न की जाए तो वह लोगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा करने से व्यक्ति अपने ऊपर पड़ने और आने वाले अशुभ प्रभावों से सुरक्षित रहता है। शनि देव को  'छायापुत्र' के रूप में भी जाना जाता है, जो आसानी से क्रोधित हो जाता है और अगर वह किसी व्यक्ति पर खुश नहीं है तो उसके लिए अशांति फैलाने वाला भी माना जाता है। लोगों की ऐसी सोच है कि शनिवार के दिन पीपल के पेड़ पर सरसों के तेल का दिया जलाने या इस दिन दान करने से शनिदेव प्रसन्न रहते हैं। लोक वेद के अनुसार शनि देव मंत्र का जाप, शनि देव चालीसा का पाठ करने से भौतिक लाभ मिलते हैं।

क्या शनिदेव पूजनीय देवता हैं?

इसका जवाब है नहीं। किसी भी ईश्वर द्वारा किसी भी पवित्र ग्रंथ (वेद, गीता जी या फिर अन्य शास्त्रों, पुराणों ) में शनि देव को देवता भी नहीं बताया गया है, उनकी पूजा करना तो बहुत ही दूर की बात है। हम यहां एक और पक्ष रखना चाहेंगे कि हम शनि देव के अस्तित्व को नकार नहीं रहे हैं। वास्तव में, हम पूरी तरह से मानते हैं कि 33 कोटि देवी देवता हैं और शनि देव उनमें से एक हैं, लेकिन जैसा की गीता जी का ज्ञान दाता कहता है कि तीन देवताओं के उपासक भी मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूर्ख कहे गए हैं तो शनि देव (अर्थात अन्य देवताओं) की पूजा कैसे किसी काम की हो सकती है?

पवित्र गीता अध्याय 8 श्लोक 8-10 में गीता ज्ञान दाता कहता है केवल एक परम अक्षर ब्रह्म अर्थात पूर्ण परमात्मा की पूजा करनी चाहिए, जिसका उल्लेख गीता अध्याय 8 श्लोक 3 में किया गया है।

किसी ऐसे तत्वदर्शी संत की तलाश कैसे करें जो हमें यह समझने में हमारी मदद कर सके कि उपासना या भक्ति का सच्चा तरीका क्या है और पवित्र शास्त्र का सही अर्थ क्या है?

गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में गीता ज्ञान दाता तत्वदर्शी संत की शरण में जाने का निर्देश देता है। हमारे पवित्र ग्रंथ जैसे पवित्र वेद, गीता जी में असली संत / तत्त्वदर्शी संत की पहचान के लिए बहुत सारे संदर्भ हैं। जिसके माध्यम से इस विषय पर हम अपने मापदंड तय कर सकते हैं।

आइए गहनता से जानने की कोशिश करें कि पवित्र शास्त्र सर्वशक्तिमान भगवान के बारे में क्या बताते हैं और क्या शनि देव अपने भक्तों के लिए कुछ भी (अच्छा या बुरा) करने में समर्थ हैं या नहीं?

पवित्र शास्त्र सर्वशक्तिमान के बारे में क्या कहते हैं?

अन्य देवताओं की साधना शास्त्रों के विरुद्ध होने के कारण व्यर्थ है: भगवद गीता अध्याय 16 श्लोक 23, 24 में प्रमाण।

गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15, में कहा गया है कि जिन लोगों का मन इन तीनों गुणों (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु और तमगुण-शिव) की उपासना तक ही सीमित है, जो इनके अतिरिक्त किसी की पूजा नहीं करते, वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में सबसे नीच, दूषित कर्म करने वाले और मूर्ख कहे गए हैं और कहा गया है कि वे मेरी (गीता ज्ञान दाता अर्थात् ब्रह्म/काल) की पूजा भी नहीं करते हैं।

गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता ज्ञान दाता पूर्ण परमेश्वर की शरण में जाने को कह रहा है, जिसका अर्थ है कि पूर्ण परमात्मा गीता ज्ञान बोलने वाले भगवान से अन्य है। आश्चर्यजनक लग रहा है ना? आगे जानिए।

क्या शनि देव मोक्ष प्रदान करने वाले देवता हैं?

शनि देव के भक्त शनि चालीसा का पाठ करते हैं, शनि जयंती मनाते हैं, शनि मंदिरों में जाते हैं और शनि देव की मूर्ति पर सरसों का तेल चढ़ाते हैं। भगवान शनि को प्रसन्न करने के उद्देश्य से "ओम काकाध्वजय विदमहे खड्ग हस्तय धीमहि तन्नो मंडः प्रचोदयात" जैसे मंत्र का जाप करते हैं। इस मंत्र और शनि देव की पूजा के तरीके का किसी भी पवित्र शास्त्र में कोई प्रमाण नहीं है। शनि देव का जाप, चालीसा, शनि जयंती मनाना और उन्हें देवता के रूप में पूजना बिल्कुल भी सही नहीं हैं।

पवित्र गीता अध्याय 17 श्लोक 23 तीन शब्द 'ओम-तत्-सत' (सांकेतिक) को मोक्ष मंत्र बताया गया है जो तत्वदर्शी संत के द्वारा ही प्रदान किया जा सकता है जिसके निरंतर जाप से तथा आजीवन मर्यादा में रहकर भक्ति करने से साधक पूर्ण परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं और अमर धाम सतलोक जा सकते हैं।

अध्याय 8 श्लोक 13 में गीता ज्ञान दाता कहता है कि 'उसका मंत्र 'ॐ ' है और परम अक्षर ब्रह्म/पूर्ण परमात्मा (पूर्ण मोक्ष) की प्राप्ति के लिए 'तत् और सत' (गुप्त मंत्र) का भी जाप करना चाहिए । {अपनी गति को तो (ब्रह्म) गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में अनुत्तम कह रहा है। इसलिए यहाँ पर पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति अर्थात् पूर्ण मोक्ष रूपी परम गति का वर्णन है}। साधक जो उच्चारण व स्मरन (ॐ, 'तत् और सत') करते हुए, शरीर त्याग कर जाता है अर्थात् अंतिम समय में स्मरण करता हुआ मर जाता है वह परम गति पूर्ण मोक्ष को प्राप्त होता है।

सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी अपनी अमृत वाणी में कहते हैं;

कबीर, कोटि नाम संसार में, इनसे मुक्ति न होय ||
सार नाम मुक्ति का दाता, वाको जाने न कोय ||

इससे सिद्ध होता है कि शनि देव मोक्ष प्रदान करने वाले देव नहीं हैं इसलिए उनकी पूजा करना सर्वथा व्यर्थ है।

आइए जानते हैं किसकी पूजा करनी चाहिए जिसके बारे में सभी पवित्र ग्रंथ प्रमाणित करते हैं? वह सर्वोच्च भगवान कौन है?

सर्वोच्च भगवान कौन है?

अब तक आपने जो पढ़ा है, उसे ध्यान में रखते हुए, आप सोच रहे होंगे कि किसकी पूजा की जाए क्योंकि यह सब कुछ बहुत नया और चौंकाने वाला लगता है। दरअसल, काशी के बुनकर यानी जुलाहा कबीर जी ही सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं, जो आज से लगभग 625 वर्ष पहले सतलोक से अपने शरीर के प्रकाश को हल्का करते हुए काशी, उत्तर प्रदेश में कमल के फूल पर प्रकट हुए और जुलाहे की भूमिका की ।

वह सर्वोच्च ईश्वर हैं और उनकी ही पूजा करनी चाहिए। गीता अध्याय 8 श्लोक 9 में परमेश्वर कविर्देव अर्थात् परमात्मा कबीर साहिब जो नित्य, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान हैं, अर्थात् प्रभुओं के प्रभु, सूक्ष्म से सूक्ष्म, सबका पालनहार, अकल्पनीय रूप में, तेजतर्रार रूप अर्थात् सूर्य के समान प्रकाशमान, शरीर रूप में है, अज्ञान से दूर है; उस सच्चिदानंदघन ब्रह्म की पूजा करें अर्थात उस परम अक्षर ब्रह्म की पूजा करें।

तत्वदर्शी सन्त की पहचान क्या है?

कबीर, अक्षर पुरुष एक पेड़ है, काल निरंजन (क्षर पुरुष) वा की डार |
तीन देव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) शाखा भये और पात-रूप संसार ||

तत्वदर्शी सन्त के विषय में अध्याय 15 श्लोक 1 में बताया है कि वह तत्वदर्शी संत कैसा होगा जो संसार रूपी वृक्ष का पूर्ण विवरण बता देगा कि मूल तो पूर्ण परमात्मा है, तना अक्षर पुरुष अर्थात् परब्रह्म है, डार ब्रह्म अर्थात् क्षर पुरुष है तथा शाखा तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) हैं तथा पात रूप संसार अर्थात् सर्व ब्रह्मण्ड़ों का विवरण बताएगा, वह तत्वदर्शी संत है। तत्वदर्शी संत की शरण में जाकर ही व्यक्ति को पूर्ण परमात्मा के विषय में पूर्ण जानकारी मिलती है।

अध्याय 15 श्लोक 4 {जब गीता अध्याय 4 श्लोक 34 अध्याय 15 श्लोक 1 में वर्णित तत्वदर्शी संत मिल जाए} इसके पश्चात् परमेश्वर के उस परम पद अर्थात् सतलोक को भलीभाँति खोजना चाहिए जिसमें गये हुए साधक फिर लौटकर संसार में नहीं आते और जिस परम अक्षर ब्रह्म से आदि रचना-सृष्टि उत्पन्न हुई है उस सनातन पूर्ण परमात्मा की ही मैं शरण में हूँ। पूर्ण निश्चय के साथ उसी परमात्मा का भजन करना चाहिए।

उपरोक्त तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकलता है कि लोक कथाओं के आधार पर भक्त समाज में शनि देव को न्याय के देवता के रूप में प्रचलित माना गया है परंतु कर्म फल देने वाले यह देवता पूजा योग्य कदापि नहीं हैं क्योंकि कोई भी पवित्र धर्म ग्रंथ शनि देव की पूजा का प्रमाण नहीं देता है। शनि देव मोक्ष दाता भी नहीं हैं। केवल तत्वदर्शी संत की शरण में जाकर, आजीवन मर्यादा में रहकर सतभक्ति करने और मोक्ष मंत्रों का जाप करने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। सर्वशक्तिमान कबीर साहेब (कविर्देव) जी केवल पूजा करने योग्य हैं।

यहां इस लेख के माध्यम से हम सभी साधकों/भक्तों और पाठकों से तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी की शरण लेने की प्रार्थना करते हैं, जो स्वयं सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी के ही अवतार हैं और जो सर्व मनुष्यों के कल्याण के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं। सभी मनुष्यों को सतगुरु रामपाल जी महाराज जी द्वारा बताई गई भक्ति साधना करनी चाहिए, सतगुरु रामपाल जी महाराज जी तीन बार में नाम दीक्षा देते हैं।

प्रथम :- ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेष, दुर्गा जी आदि के नाम (गुप्त मंत्र) देते हैं। इनके जाप से संसार का सुख मिलता है। आज के मानव ने यथार्थ मन्त्रों को जपना छोड़ कर मूर्ति पूजा शुरू कर दी है जिसके करने से कोई लाभ नहीं होता। पूजा करते-करते भी उन पर दु:ख आते रहते हैं। इसका कारण पूजा विधि सही न होना है। आज का साधक वह कर रहा जैसे किसी व्यक्ति का Bank में खाता तो नहीं हैं, घर में बैंक मैनेजर की मूर्ति लगा कर मूर्ति की पूजा करें मूर्ति के सामने हाथ जोड़ कर पैसे कि डिमांड करे, मूर्ति कहाँ से पैसा देगी? जबकि सतगुरु रामपाल जी महाराज जी के सभी साधकों को सतभक्ति करने के कारण पूर्ण लाभ मिलता है।

दूसरी बार में चार महीने के बाद दो अक्षर का सतनाम मिलता है, जिसके जाप करने से पापों का नाश होकर पूर्ण शांति व सुख मिलता है।

कबीर जब ही सतनाम हृदय धरो, भयो पाप को नाश |
जैसे चिंगारी अग्नि की पड़ी पुराणे घास।।

उपरोक्त वाणी का अर्थ है, जब आप दो अक्षर का मन्त्र जाप करेंगे तो आपके सभी पाप कर्म खत्म हो जाएंगे। पूर्ण सतगुरु रामपाल जी की शरण में आकर नाम दीक्षा लेने से साधक के पाप कर्म खत्म हो जायेंगे और कोई भी देवी देवता भूत, पित्र, गण, नौ ग्रह आदि साधक को हानि नहीं पहुंचा सकते। 

वाणी :- नौ ग्रह नमन करैं निर्बाना,अबिगत नाम निरालम्भ जाना ||

जब साधक पार ब्रह्म पूर्ण परमात्मा कबीर जी की भक्ति करेंगे, तब नौ ग्रह साधक को नमस्कार करते हैं तथा हानि न पहुंचा कर साधक को लाभ पहुंचाते हैं। हम सतयुग में यही भक्ति करते थे जो संत रामपाल जी आज के समय में करवा रहे हैं। सतयुग में सभी मानव इस सत्य भक्ति करने से सुखी रहते थे समय पर वर्षा होती थी, किसी वस्तु का अभाव नहीं था, लाखों वर्ष मानव की आयु होती थी, बाप के सामने बेटा नहीं मरता था?

तीसरी बार में आदि नाम (सारनाम) मिलता है जो हमारा मोक्ष करवाता है। 

कबीर एकै साधे सब सधैं, सब साधें सब जाये। 
माली सीचें मूल को, फुले फलै अधाय।।

इस वाणी में बताया गया है जैसे माली पोधे की जड़ में पानी खाद डालता है। पौधा बढ़ कर बड़ा पेड़ बन कर फल देता है। यदि माली मूल (जड़) में खाद पानी न डाल कर पोधे की टहनी व पत्तों पर पानी डालना शुरू दे तो पौधा खत्म हो जाएगा। कबीर साहेब इस पौधे के माध्यम से समझा रहे हैं कि यदि आप पूर्ण परमात्मा की भक्ति न करके अलग अलग देवी देवताओं, ग्रहों की पूजा करेंगे तो आप जी को कोई लाभ नहीं मिलेगा। पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए सतगुरु संत रामपाल जी माहराज जी द्वारा लिखित पुस्तकें 'ज्ञान गंगा' तथा 'जीने की राह' पुस्तकें पढ़ें तथा उनका  सत्संग सुनें और नाम दीक्षा लेकर मानव जीवन को सफल बनाएं। 

काल ब्रह्म के बनाए देवताओं जैसे ब्रह्मा, विष्णु, शिव, दुर्गा और शनि देव , सूर्य देव इत्यादि की शास्त्र विरूद्ध साधना को त्याग कर अपने मूल निवास स्थान 'सतलोक' में वापस लौटने के लिए तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से नामदीक्षा लें और सतभक्ति करें।

निष्कर्ष

उपरोक्त विवरण से निम्नलिखित निष्कर्ष है :

  • शनि देव को न्याय के देवता के रूप में भी जाना जाता है और कर्म के यह देवता पूजा योग्य नहीं हैं।
  • कोई भी पवित्र ग्रंथ शनि देव की पूजा का प्रमाण नहीं देता है।
  • शनि देव मोक्ष प्रदान नहीं कर सकते हैं।
  • तत्वदर्शी संत की शरण में जाकर, आजीवन मर्यादा में रहकर मोक्ष मंत्रों का जाप करने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
  • सर्वशक्तिमान पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ही केवल पूजने योग्य हैं।

इस लेख में जितना शामिल किया जा सकता था, उसकी सीमा को ध्यान में रखते हुए; हमें विश्वास है कि हम प्रमाण के रूप में महत्वपूर्ण तथ्यों को शामिल करने में सफल रहे हैं। हालांकि, हमें पूरा विश्वास है कि उपरोक्त तथ्य किसी व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिक ज्ञान का आधार तैयार करने के लिए पर्याप्त से कहीं अधिक हैं जिससे आप इस साइट के माध्यम से तत्वज्ञान के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और कम से कम इस निष्कर्ष में अवश्य पहुंच सकते है कि शनि देव का जाप ,चालीसा, शनि जयंती मनाना और उन्हें देवता के रूप में पूजना बिल्कुल भी सही नहीं हैं !!