तैमूर लंग की कथा: एक गरीब गडरिए से एक शासक तक का सफर


तैमूर लंग की कथा

इतिहास के कुछ प्रमाण ये साबित करते हैं कि तैमूर लंग, तुर्को-मंगोल विजेता, मुस्लिम दुनिया का सबसे शक्तिशाली शासक था, जो तिमुरिद साम्राज्य का संस्थापक था व उसे आज भी सबसे महान रणनीतिज्ञ और  दिग्गज सैन्य नेताओं में से एक माना जाता है। उसने इराक, ईरान, तुर्किस्तान और दक्षिण एशिया के कई राज्यों पर विजय प्राप्त की थी। इतिहास इस बात का भी गवाह है कि तैमूर लंग की सात पीढ़ियों ने भारत पर भी शासन किया और बाद में वही राज-पाट कई भागों में विभाजित हो गया। 

यह लेख, पवित्र धर्मग्रंथों से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर, एक गरीब गडरिए से उठकर इतिहास के सबसे शक्तिशाली शासक बनने वाले इस शख्स - तैमूर लंग - के जीवन इतिहास का खुलासा करेगा।

  • तैमूर लंग कौन था?
  • परमेश्वर कविर्देव जी तैमूर लंग से मिले
  • दयालु परमेश्वर कविर्देव का तैमूर लंग को सात पीढ़ियों का राज्य प्रदान करना
  • परमेश्वर कबीर जी की लीला से गाँव में तैमूर को प्रसिद्धि मिली
  • एक गरीब गडरिए से एक शासक: तैमूर का उदय
  • प्रतिशोध में तैमूर ने एक विशाल सेना तैयार की
  • तैमूर लंग का पहला आक्रमण 
  • विजेता तैमूर ने कई देशों पर शासन किया
  • तैमूर लंग की सात पीढ़ियों ने भारत पर शासन किया
  • तैमूर लंग ने परमेश्वर कबीर जी की शरण ली

तैमूर लंग कौन था?

तैमूर ने मध्य एशिया में (वर्तमान) उज़्बेकिस्तान के एक मुस्लिम परिवार में 13 वीं शताब्दी में  जन्म  लिया। वह एक गरीब चरवाहा था। तैमूर एक छोटा बच्चा ही था, जब उसके पिता की मृत्यु हो गई। उसकी माँ ने उन्हें अकेले ही पाला। गरीबी अपने चरम पर थी और उनके परिवार में भोजन दुर्लभ था। अधिकांश समय वे मुश्किल से एक दिन का भोजन प्राप्त कर पाते थे। पवित्र ग्रंथ तैमूर की सच्ची जीवन कथा उस समय से बताते हैं जब वह 18 वर्षीय एक मेहनती युवा लड़का था।

विजेता तैमूर किसी शाही परिवार में पैदा नहीं हुआ था। वह एक गरीब गडरिया था जो जंगल में पूरे दिन किराए पर अमीर लोगों की भेड़ और बकरियां चराया करता था। वे अमीर लोग उसे खाना खिलाते थे। अत्यधिक गरीबी के कारण, तैमूर गाँव में बकरियाँ और भेड़ें वापसी लाने के बाद, शाम के समय एक लोहार की कार्यशाला में काम करके अपना जीवनयापन करता था। इस तरह से दोनोंं बेटा और माँ अपना जीवन निर्वाह कर रहे थे।

परमेश्वर कविर्देव जी तैमूर लंग से मिले

उद्धरणः  "पारख का अंग", "मुक्तिबोध" पुस्तक से भाष्य संख्या 1170-1172 , लेखक तत्व्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज  

गरीब, दिल्ली अकबराबाद फिरी, लाहौरा कूं जात। रोटी रोटी करत है, किन्हें न बूझी बात।।
गरीब, तिबरलंग तालिब मिले, एक रोटी की चाह । जिंदा रूप कबीर धरहीं, तिबरलंग सुनि राह।।
गरीब, रोटी पोई प्रीत सै, जलका ठूठा हाथि । जिंदे की पूजा करी, मात पुत्र दो साथ।।

परमेश्वर कबीर जी पृथ्वी पर बसे लोगों की धार्मिकता व भक्ति-भाव की जाँच करने स्वयं ही 'जिंदा बाबा' के वेश में सतलोक   सतलोक से सशरीर अवतरित होते  हैं । हालाँकि, परमेश्वर कबीर जी सर्वव्यापी हैं, फिर भी वे इस दुनिया के लोगों के हावभाव की पड़ताल समय समय पर किया करते हैं। परमेश्वर कबीर साहेब "जिंदा बाबा" के वेष में, कई शहरों, गांवों में रोटी मांगने के लिए गए। भोजन की कमी थी, खेती वर्षा पर निर्भर थी जिसके कारण आजीविका में बड़ी कठिनाई सी बनी रहती थी। परमेश्वर कबीर साहेब शहर में घूमते हुए आए जिसमें तैमूर, एक 18 वर्षीय युवा मुस्लिम लड़का, अपनी माँ के साथ रहा करता था, जो एक धार्मिक महिला थी। जब भी कोई यात्री, भिक्षु या अन्य आम आदमी उसके दरवाजे पर आते, तो वह उन्हें भोजन करने का आग्रह करती था। वह खुद भूखी रह सकती थी लेकिन आगंतुकों को खाना अवश्य खिलाती थी।

जिस दिन परमेश्वर कबीर परीक्षा लेने के उद्देश्य से आए थे, शाम के भोजन के लिए तैमूर के घर में केवल एक रोटी का आटा बचा था। तैमूर और उसकी माँ दोनों दिन का भोजन कर चुके थे। परमेश्वर तैमूर से जब मिले तो उन्होंने रोटी खाने की इच्छा जताई।  तैमूर ने कहा, "महाराज, आप बैठो और मेरे झुंड की देखभाल करो ताकि उनमें से कोई भी न खो जाए। मैं गरीब हूं। मैं भाड़े पर बकरियाँ और भेड़ें चराता हूँ। मैं अपने घर से, जो कि पास ही है, आपके लिए रोटी लाऊंगा।"  जिसके लिए परमेश्वर सहमत हो गए, और तैमूर अपने घर चला गया। उसकी माँ ने वही एक रोटी बनाई और साथ में एक बर्तन में पानी भरकर  लाई और उसे जिंदा बाबा के लिए परोसा और खाने का आग्रह किया।

इस लेखन में आगे, इस सच्ची कथा पर प्रकाश डाला जाएगा कि कैसे तैमूर को परमेश्वर कविर्देव ने सात पीढ़ियों का राज्य दिया था।

दयालु परमेश्वर कविर्देव का तैमूर लंग को सात पीढ़ियों का राज्य प्रदान करना

उद्धरणः "पारख का अंग", "मुक्तिबोध" पुस्तक का भाष्य संख्या 1172-1176 , लेखक तत्ववदर्शी संत रामपाल जी महाराज  

गरीब, संकल काढ़ी चीढ़की, संमुख लाई सात। लात धमुक्के लाय करि, जिंदा भया अजाति।।
गरीब, रोटी मोटी हो गई, साग पत्र बिस्तार। सहँस अठ्ठासी छिकि गये, पंडौं जगि जौनार ।।
गरीब, दुर्बासा पूठे परै, कौरव दीन शराप। पंडौं पद ल्योलीन है, कौरव तीनों ताप।।
गरीब, अट्ठारा खूंहनि खपि गइ, दुर्योधन बलवंत। पंडौं संग समीप है, आदि अंत के संत।।

जब परमेश्वर कविर्देव भोजन कर रहे थे, तब तैमूर की माँ ने कहा, "महाराज! हम बहुत गरीब हैं, हम पर दया करें ताकि हमारे पास आजीविका का कुछ स्रोत हो सके।" खाने के बाद, भगवान कबीर ने  पास रखी  कमांद (बकरियों को बाँधने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक जंजीर) उठाई और तैमूर की कमर पर सात बार वार किया फिर तैमूर को लात और मुक्के मारे। उसकी माँ ने सोचा, मैं बार-बार बाबा जी से निवेदन कर रही थी, इसलिए वे चिढ़ गए और तैमूर को पीट दिया। उसने भगवान से माफी मांगी। तब परमात्मा कबीर जी ने कहा, "मैंने तैमूर को सात बार जंजीर से मारा। तुमने भोजन के लिए मुझे जो रोटी खिलाई, उसके इनाम स्वरूप मैंने सात पीढ़ियों के राज्य का वरदान दे दिया। मुक्के और लात ये संकेत देते हैं कि उसका राज्य बाद में कई टुकड़ों में बंट जाएगा। मां को लगा कि बाबा जी पागल हो गए हैं। हमारे पास आज रात के लिए आटा नहीं है और वह कहते हैं कि तैमूर सात पीढ़ियों तक शासन करेगा। अल्लाह-ओ-अकबर कबीर जी तत्पश्चात वहां से अंतर्ध्यान हो गए।

परमेश्वर कबीर जी की लीला से गाँव में तैमूर को प्रसिद्धि मिली

एक दिन तैमूर ने देखा कि राजा के भोग-विलास के लिए, राजा के सैनिकों ने उसके गाँव की एक छोटी लड़की का अपहरण कर लिया। तैमूर लड़की के सम्मान की रक्षा के लिए भागा। सैनिकों से कहा, "हमारी बहन हमारी इज्जत है। दुष्ट लोगों, इसको छोड़ दो"। लेकिन सैनिक संख्या में 4-5 थे और घोड़ों पर सवार थे। उन्होंने तैमूर को बुरी तरह से पीटा और तैमूर को मृत जानकर उन्होंने उसे छोड़ दिया और लड़की को ले गए। जब तैमूर  होश में आया, तो गाँव में चर्चा थी कि गाँव के सम्मान के लिए तैमूर ने बड़ी बहादुरी का कार्य किया, उसने अपनी जान भी दांव पर लगा दी। वह उस दिन के बाद से गांव का नायक बन गया, क्योंकि सभी को उससे सहानुभूति थी। हालाँकि, इस सब ने तैमूर को राजा का प्रतिशोधी बना दिया।

नोट: वास्तव में, यह सब परमात्माा कविर्देव जी की दिव्य लीला थी।

एक गरीब गडरिए से एक शासक तक: तैमूर का उदय

एक रात, ज़िन्दा बाबा (परमेश्वर कबीर) ने तैमूर को सपने में दर्शन दिए और उससे कहा कि “आप जहाँ काम करते हो उस लोहार की कार्यशाला में नीचे खजाना है। आप वह खरीदिए, मैं लोहार को प्रेरित करूंगा। उसे बताएं कि आप 2-3 महीनों में पूरी राशि का भुगतान कर देंगे।” तैमूर ने सुबह अपनी मां को पूरा सपना सुनाया। माँ ने कहा, “बेटा! बाबा जी मुझे सपने में भी दिखाई दिए। वह कुछ बता रहे था लेकिन मुझे सही से ध्यान नहीं। तुम जाकर लोहार से बात करो। उम्मीद करते हैं, हमारे बुरे दिन खत्म हो जाएंगे।” 

कार्यशाला के मालिक, उस लोहार के मन में कई दिनों से यह प्रेरणा थी कि “यह स्थान छोटा पड़ गया है। मेरी दूसरी जगह बड़ी भूमि है, अगर कोई इस कार्यशाला को किराए पर लेना चाहता है, तो मैं इसे दे दूंगा। मैं अपने बड़ी जमीन में एक नई कार्यशाला स्थापित करूंगा। ” तैमूर उस लोहार के पास गया और उनसे अनुरोध किया कि वह कार्यशाला का उधार लेना चाहता है और 2-3 महीनों में पूरी राशि का भुगतान कर देगा, जिस पर कार्यशाला का मालिक खुशी से सहमत हो गया, क्योंकि वह अपनी कार्यशाला को एक वर्ष उधारी भुगतान पर देने को भी तैयार था। सौदे को अंतिम रूप देने के बाद तीसरे दिन, कार्यशाला को तैमूर को सौंप दिया गया। तैमूर ने अपनी मां की मदद से उस जगह के चारों ओर मिट्टी की एक दीवार बनाई और एक झोपड़ी का निर्माण किया। उन्होंने उस जगह को खोदा, जैसा जिंदा बाबा (परमेश्वर कबीर) ने बताया था और बहुत सारा खजाना पाया। परमेश्वर ने फिर से सपने में  तैमूर को दर्शन दिए और उससे कहा कि "खजाने का उपयोग करो और किसी भी कीमत पर एक घोड़ा खरीदो। लाभ या हानि पाने पर ध्यान केंद्रित न करना। लोग यह सोचेंगे कि आपका काम अच्छा चल रहा है और आप अच्छी कमाई कर रहे हैं ”। तैमूर ने परमात्मा कबीर जी के सभी निर्देशों का पालन किया और छह महीने में उनकी आर्थिक स्थिति इस हद तक संवर गई कि उन्होंने नई जमीन खरीद ली। उसने बहुत सारी बकरियाँ, भेड़ें और घोड़े खरीदे और उन्हें अपनी नई भूमि में बाँध लिया। तैमूर लंग ने कुछ युवाओं को अपने नौकरों के रूप में काम पर रखा। उसने अपने लिए एक बड़ा घर भी बनवा लिया था।

प्रतिशोध में तैमूर ने एक विशाल सेना तैयार की

सैनिकों द्वारा गांव की एक जवान लड़की के अपहरण ने राजा के खिलाफ तैमूर को प्रतिशोधी बना दिया था, क्योंकि वह घटना उसके दिमाग में हमेशा रहती थी और उसकी प्रबल इच्छा थी कि अगर वह राजा बन जाएगा, तो सबसे पहले वह उस अपराधी निर्लज राजा को सबक सिखाएगा जिसने गांव का सम्मान लूट लिया और जवान लड़की का अपहरण कर लिया। तैमूर अब तक करोड़पति बन चुका था। उसने जंगल में एक कार्यशाला की स्थापना की।  वह एक कारीगर भी था और वह खुद तलवारें बनाने लगा। उसने गाँव के नवयुवकों को अपना उद्देश्य बताया कि वह उस राजा को सबक सिखाना चाहता था जिसने अपनी गाँव की बेटी की इज्जत लूट ली। "मैं एक सेना तैयार करूंगा, जो भी सेना में शामिल होना चाहता है उसे वेतन के रूप में 1 रुपये दिए जाएंगे"। उस समय रु 1 यानी एक चांदी के सिक्के का बड़ा मूल्य था। कई युवा लड़कों ने सहमती जताई। उन्होंने अपने रिश्तेदारों को भी सेना में शामिल कर लिया और अपनी आजीविका भी अर्जित की। तैमूर ने कई लोहारों को काम पर रखा जिन्होंने तलवारें और ढालें तैयार कीं और उन्हें वेतन भी दिया। इस तरह, तैमूर ने एक विशाल सेना का संगठन किया।

तैमूर लंग का पहला आक्रमण

तैमूर ने अपनी विशाल सेना के साथ अंततः राजा पर हमला किया और उसे अपने नियंत्रण में ले लिया। उसने राजा का पूरा राज्य छीन लिया। उसने राजा को मारा नहीं, बल्कि उसे मुक्त कर दिया और उसे दूसरे गांव भेज दिया और निर्वाह के लिए उसे पारिश्रमिक प्रदान करना शुरू कर दिया।

विजेता तैमूर ने कई देशों पर शासन किया

धीरे-धीरे,  तैमूर लंग  ने इराक, ईरान, तुर्किस्तान पर कब्जा कर लिया। उसने भारत पर भी शासन किया। दिल्ली के राजा ने उनकी आधीनता (दासता) को स्वीकार नहीं किया। तैमूर ने उसे मारा-पीटा और बाहर कर दिया। उसकी जगह उन्होंने बरेली के नवाब को दिल्ली का वाइसराय  बनाया जो तैमूर के गुलाम रहे और फसल काटने के बाद हर 6 महीने में कर (टैक्स) देते थे। दिल्ली के वायसराय ने  तैमूर की मृत्यु के बाद वह कर (टैक्स) देना बंद कर दिया और खुद एक स्वतंत्र शासक बन गया। तैमूर का बेटा दिल्ली राज्य लेना चाहता था, लेकिन उस वायसराय ने दिल्ली राज्य नहीं दिया।

तैमूर लंग की सात पीढ़ी ने भारत पर शासन किया

उद्धरण: "पारख का का अंग", "मुक्तिबोध" पुस्तक का भाष्य संख्या 1176-1179, लेखक तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज 

गरीब, तिबरलंग हुमयौं रहैं, मन में कछु न चाह। मौज मेहर मौला करी, दीन्या तख्त बठाय ।।
गरीब, हिंद जिंद सबहीं दीई, सेतबंध लग सीर। गढ़गजनी ताबे करी, जिंदा इसम कबीर।।
गरीब, सात सहीसल नीसलीं, पीछे डिगमग ख्याल। औरंगजेब अरु तिबरलग, इन परी नजरिनिहाल ।।

बाबर तैमूर लंग का तीसरा पोता था। बार-बार युद्ध करके उसने भारत का राज्य प्राप्त किया। बाबर का बेटा हुमायूँ था, हुमायूँ का बेटा अकबर, अकबर का बेटा जहाँगीर, जहाँगीर का बेटा शाहजहाँ और शाहजहाँ का बेटा औरंगज़ेब था। इतिहास गवाह है कि तैमूर की सात पीढ़ियों ने भारत पर राज किया। फिर औरंगजेब के बाद, राज्य खंडित हो गया। इसी तरह से जिंदा बाबा (परमेश्वर कबीर) का वरदान सत्य हुआ। 

संत गरीबदास जी ने भी अन्नदेव की आरती में कहा है: 

रोटी तैमूरलंग को दिन्हीं, ताते सात बादशाही लिन्हीं।। 

तैमूर लंग ने परमेश्वर कबीर की शरण ली

जब वह 80 वर्ष के थे, तब परमेश्वर कबीर तैमूर लंग से अन्य भेस में मिले। वह शासक था और शिकार करने गया था। भगवान ने उसे समझाया, ‘राजा! भक्ति करो वरना तुम नरक में गिरोगे। आप उस दिन को भूल गए जब आपके पास घर पर केवल एक रोटी थी। उस समय, तैमूर लंग जिंदा बाबा के चरणों में गिर गया और उसने दीक्षा ली। उसने अपने पुत्र को राज-पाट सौंप दिया। उसके बाद, तैमूर 10 और वर्षों तक जीवित रहा। वह आत्मा अभी भी जन्म और मृत्यु के चक्र में है, परंतु भक्ति का बीज बोया जा चुका था। परमेश्वर  कबीर बताते हैं कि अगर तैमूर को पहले उस खराब हालत में पूजा करने के लिए कहा जाता तो वह सहमत नहीं होता। 

महत्वपूर्ण: केवल परमेश्वर कबीर जी ही जानते हैं कि शैतान काल की पकड़ से एक प्राणी को कैसे कैसे निकाला जा सकता है।

निष्कर्ष

उद्धरण: "पारख का अंग", "मुक्तिबोध" पुस्तक का भाष्य संख्या 1180, लेखक तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज।

गरीब, अगले सतगुरु शेर थे, पिछले जंबुक गीद । यामे भिन्न न भाँति है, देखी दीद बरदीद ।।

जो भी धर्म हो, व जो उस धर्म के प्रवर्तक हैं वे हृदय के शुद्ध हैं और पुण्यकर्मी होते हैं। वे धार्मिक, ईमानदार हैं, और परमेश्वर से डरते हैं।  तैमूर के समान, जिन्हें जिंदा बाबा ने टोका तो उन्होंने तुरंत शरण ली और भक्ति शुरू की। बाद में, जो कुछ भी हुआ वह केवल दिखावा था। एक सतगुरु (सच्चे आध्यात्मिक गुरू) यानी एक प्रबुद्ध संत/ इल्मवाले  होते हैं, धर्म को सुधारते हैं और भक्ति की सही विधी प्रदान करते हैं।

दयालु परमेश्वर कबीर आत्मा के साथी हैं, और जो भी अपने जीवनकाल में एक बार भी उनके संपर्क में आता है, उसकी  मुक्ति का आश्वासन देते हैं।  तैमूरलंग के बारे में उपर्युक्त तथ्यों को प्रबुद्ध एवं तत्व्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने प्रकट किया है जिनसे जनता आज तक अनभिज्ञ थी।

अपने पूर्व जन्मों के कर्म से, जीवात्मा इस जनम में चाहे राजा बने या रंक, कर्म-बंधन और 84 लाख योनियों के बंधन से रचे इस मृत्यु लोक के कहर और काल निरंजन के प्रकोप से निकलने के लिए, तत्वज्ञान का बोध होना व आत्म-कल्याण के लिये सतभक्ति करना अतिआवश्यक है। यह तभी संभव है जब परमेश्वर कविर्देव स्वयं सतभक्ति प्रदान करें या उनके द्वारा निर्धारित कोई तत्वदर्शी संत। इस समय-काल में केवल एक तत्वदर्शी संत है जो कि जीवात्मा का मोक्ष मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं, वे हैं जगत-गुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज। आप सभी पुण्य आत्माओं से अनुरोध है, कि अपना मनुष्य जीवन व्यर्थ न जानें दे, और शीघ्र अतिशीघ्र मोक्ष-मार्ग और सतभक्ति ग्रहण करें।