क्या गीता और यजुर्वेद के अनुसार गायत्री मंत्र का जाप करने से मोक्ष संभव है? जानिए प्रमाण सहित


यजुर्वेद में गायत्री मंत्र का वास्तविक अर्थ

अध्यात्म मार्ग में सही और सच्चे मंत्रों के जाप करने से आत्मा को परमात्मा की प्राप्ति होती है। गलत मंत्र साधक को किसी भी प्रकार का लाभ नहीं दे सकते। वेदों में ब्रह्मांड के निर्माता की महिमा लिखी हुई है। परम अक्षर ब्रह्म को प्राप्त करने का सही मोक्ष मंत्र तत्वदर्शी संत द्वारा प्रदान किया जाता है। गायत्री मंत्र एक ऐसा मंत्र है जिसे साधक गलत तरीके से जाप करते हैं क्योंकि वेद ज्ञान से अपरिचित चतुर और अज्ञानी व्यक्तियों ने गायत्री मन्त्र के नाम से श्लोक, "ॐ भूर् भुवः स्वः। तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ॥" का जाप करने से मोक्ष होता है बता कर, भोले श्रद्धालुओं का अनमोल जीवन व्यर्थ करवा दिया। इस मंत्र के विषय में लोक वेद (दन्त कथा) अनुसार कहा जाता है कि यह मन्त्र चारों वेदों से निकाला गया निष्कर्ष रूप फाइनल मन्त्र है। इसी से मोक्ष होगा और लाभ होते हैं। जबकि यह तो केवल यजुर्वेद अध्याय 36 का मन्त्र 3 है। जिसके आगे "ॐ" भी इन चतुर प्राणियों ने स्वयं ही लगाया है। विचार करें, क्या किसी सद्ग्रन्थ के केवल एक मन्त्र (श्लोक) का रट्टा लगाने (आवृत्ति करने) से आत्म कल्याण सम्भव है ? अर्थात् नहीं।

आइए हम पवित्र ग्रंथों से तथ्यों का अध्ययन करें और पता लगाएं; कि क्या वाकई में गायत्री मंत्र के जाप करने से मोक्ष मिल सकता है? यह लेख पवित्र यजुर्वेद से इस संबंध में प्रमाण प्रदान करेगा की वास्तविक गायत्री मंत्र क्या है?

इस लेख के निम्नलिखित मुख्य पहलू हैं

  • गायत्री मंत्र क्या है ?
  • गायत्री मंत्र के जाप करने से क्या लाभ मिलते हैं ?
  • 'सत्यार्थ प्रकाश' पुस्तक में गायत्री मंत्र की गलत व्याख्या
  • 'ॐ/ओम ’ यह मंत्र ब्रह्म- क्षर पुरुष का है।
  • जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा समझाया गया गायत्री मंत्र
  • क्या गायत्री मंत्र आत्माओं के लिए मोक्ष मंत्र है?

गायत्री मंत्र क्या है?

आर्य समाज केवल ‘हवन यज्ञ’ करने पर ज़ोर देता है। आर्य समाज के अनुयायियों का मानना है कि महर्षि दयानंद सरस्वती, जो आर्य समाज के प्रवर्तक हैं, ने भक्त समाज के लिए प्रसिद्ध ‘गायत्री मंत्र’ की शुरुआत की है जो हिंदू धर्म को मानने वालों के बीच प्रचलित है। वे इस विश्वास के साथ गायत्री मंत्र का जाप करते हैं कि इससे उन्हें परमात्मा से जुड़ने में मदद मिलेगी। यहां यह बताना आवश्यक है कि प्रसिद्ध गायत्री मंत्र का उल्लेख पवित्र यजुर्वेद अध्याय 36 मंत्र 3 में किया गया है और इसका परिचय महर्षि दयानंद द्वारा नहीं दिया गया है।

यजुर्वेद अध्याय 36 मंत्र 3 में गायत्री मंत्र

भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं| भर्गो देवस्य धीमहि| धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

नोट: यह मंत्र स्पष्ट करता है कि ‘ओम’ उपसर्ग नहीं है। अज्ञानता के कारण इसका गलत पाठ किया जाता है।

yajurveda-adhyay-36-mantra-3

 

कृपया विचार करें- क्या किसी धर्मग्रंथ के केवल एक मंत्र (श्लोक) के उच्चारण से आत्म कल्याण संभव है? उत्तर है नहीं, बिलकुल नहीं।

गायत्री मंत्र के जाप करने से क्या लाभ होते हैं?

सद्ग्रन्थों के मन्त्रों (श्लोकों) में परमात्मा की महिमा है तथा उनको प्राप्त करने की विधि भी है। जब तक उस विधि को ग्रहण नहीं करेगें तब तक आत्म कल्याण अर्थात् ईश्वरीय लाभ प्राप्ति असम्भव है। जैसे पवित्र गीता अध्याय 17 मन्त्र (श्लोक) 23 में कहा है कि पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का तो केवल ॐ-तत्-सत् मन्त्र है, इसको तीन विधि से स्मरण करके मोक्ष प्राप्ति होती है। ओम् (ॐ) मंत्र ब्रह्म अर्थात् क्षर पुरूष का जाप है, तत् मंत्र (सांकेतिक है जो उपदेश लेने वाले को बताया जाएगा) परब्रह्म अर्थात् अक्षर पुरूष का जाप है तथा सत् मन्त्र (सांकेतिक है इसे सत् शब्द अर्थात् सारनाम भी कहते हैं। यह भी उपदेश लेने वाले को बताया जाएगा) पूर्ण ब्रह्म अर्थात् परम अक्षर पुरूष (सतपुरूष) का जाप है। इस (ॐ-तत्-सत्) के जाप की विधि भी तीन प्रकार से है। इसी से पूर्ण मोक्ष सम्भव है। आर्य समाज प्रर्वत्तक श्री दयानन्द जी जैसे वेद ज्ञान हीन व्यक्तियों को यह भी नहीं पता था कि यह वाक्य किस वेद का है।

‘सत्यार्थ प्रकाश’ पुस्तक में गायत्री मंत्र की गलत व्याख्या

‘‘सत्यार्थ प्रकाश’’ (दयानन्द मठ दीनानगर पंजाब से प्रकाशित) समुल्लास तीन में पृष्ठ 38-39 पर इसी मन्त्र (भूर्भुवः स्वः तत्….) का अनुवाद करते समय लिखा गया है कि भूः भुर्व स्वः यह तीन वचन तैत्तिरीय आरण्यक के हैं, मन्त्र के शेष भाग (तत् सवितुः- - -) के विषय में कुछ नहीं लिखा है कि कहाँ से लिया गया है। स्वामी दयानन्द जी ने ‘‘सत्यार्थ प्रकाश’’ में किए इसी मन्त्र के अनुवाद में तथा यजुर्वेद में किए इस मन्त्र (भूभुर्वः……) के अनुवाद में विपरित अर्थ किया है। तैत्तिरीय आरण्यक तो एक उपनिषद् है जिसमें किसी ऋषि का अपना अनुभव है। जबकि वेद प्रभु प्रदत्त ज्ञान है। हमने वेद पर आधारित होना है न कि किसी ऋषि द्वारा रचित अपने अनुभव की पुस्तक पर। यदि ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पुस्तक की पोल न खुलती तो कुछ दिनों बाद यह भी एक उपनिषद् का रूप धारण कर लेता। आने वाले समय में अन्य पुस्तकों की रचना करते समय ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के अज्ञान का समर्थन लेते तथा इससे भी अधिक अज्ञान युक्त पुस्तकों की रचना हो जाती।

‘तैत्तिरीय आरण्यक’ एक ऋषि वैशंपायन के शिष्य थे। उनका शिष्य ‘याज्ञवल्क्य’ था। गुरु और शिष्य के बीच तनाव था। गुरु ने जो ज्ञान प्रदान किया था, उसे वापस करने के लिए कहा। याज्ञवल्क्य ने उस ज्ञान को उगल दिया। कहा जाता है कि उगली हुई रक्तमय वस्तु बाहर थी, जिसे कुछ पक्षियों ने खा लिया। जो इस रक्तमय ज्ञान को स्वीकार करते थे, उन्हें ‘तैत्तिरीय आरण्यक’ कहा गया और बाद में इसे लिखा गया। महर्षि दयानंद ने भी इसे ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पुस्तक में लिखा। इन तीन मंत्रों ‘भुर भुवः स्वः’ का अनुवाद करते समय, उन्होंने स्वीकृत किया कि ‘मैंने इसे ‘तैत्तिरीय आरण्यक’ से लिया है और बाकी के लिए मेरे पास कोई ज्ञान नहीं है’। इस प्रकार, लोकवेद सभी में प्रचारित हुआ। आर्य समाज के अनुयायियों/आचार्यों ने यह गलत दिखाया है कि यह महर्षि दयानंद का आविष्कार है। उन्होंने इसे श्रुतियों से जाना है। उन्हें वेदों का ज्ञानी माना जाता है, लेकिन यह वास्तविकता है कि उन्हें नहीं पता था कि यह मंत्र कहाँ से लिया गया था? उन्हें नहीं पता था कि गायत्री मंत्र का यजुर्वेद अध्याय 36 श्लोक 3 में उल्लेख है।

आइये इसे एक उदाहरण की सहायता से समझते हैं:- जैसे कोई गणित के प्रश्न को हल कर रहा है और वह सही नहीं हो पा रहा है तो उसका सही हल ढूंढने के लिए मुख्य व्याख्या को ही आधार मान कर पुनर् पढ़ा जाता है। तब वह प्रश्न हल हो जाता है। यदि गलत किए हुए प्रश्न के हल को ही आधार मान कर प्रयत्न करते रहेंगे तो समाधान असंभव है। इसी प्रकार पूर्व संतों व ऋषियों द्वारा लिखी अपने अनुभव की पुस्तकों के स्थान पर सद्ग्रन्थों को ही आधार मान कर पुनर् पढ़ने व उन्हीं के आधार से साधना करने से ही प्रभु प्राप्ति व मोक्ष संभव है। 

गीता जी में लिखा है कि हे अर्जुन ! जब तेरी बुद्धि नाना प्रकार के भ्रमित करने वाले शास्त्र विरूद्ध ज्ञान से हट कर एक शास्त्र आधारित तत्व ज्ञान पर स्थिर हो जाएगी तब तू योगी (भक्त) बनेगा। भावार्थ है कि तब तेरी भक्ति प्रारम्भ होगी।

जैसे पथिक गंतव्य स्थान की ओर न जा कर अन्य दिशा को जा रहा हो तो उसकी वह यात्रा कुमार्ग की है। उससे वह अपने निज स्थान पर नहीं पहुंच सकता। जब वह कुमार्ग त्याग कर सत मार्ग पर चलेगा तब ही उसके लिए मंजिल प्राप्त करना संभव है।

इसलिए श्रद्धालुओं से प्रार्थना है कि जब आप शास्त्र विरूद्ध साधना से हट कर शास्त्रानुसार साधना पर लगोगे तब आपका सत भक्ति मार्ग प्रारम्भ होगा।

विशेष विचार: पवित्र यजुर्वेद अध्याय 36 मन्त्र 3 (जिसे गायत्री मन्त्र कहा है) की रटना लगाना (आवृत्ति करना) तो केवल परमात्मा के गुणों से परिचित होना मात्र है। उस परमात्मा की प्राप्ति की विधि भिन्न है। पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 10 में तथा पवित्र गीता जी अध्याय 4 मन्त्र (श्लोक) 34 में कहा है कि तत्व ज्ञान को समझने अर्थात् पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने के लिए उस अनमोल ज्ञान को तत्वदर्शी सन्तों से पूछो।

आगे हम अध्ययन करेंगे कि ‘ओम’ किसका मन्त्र है जो गायत्री मन्त्र में गलत उपसर्ग लगा है और समस्त अज्ञानी भक्त समुदाय श्रद्धापूर्वक इसका जाप करता है।

‘ओम’ यह मंत्र ब्रह्म- क्षर पुरुष का है

पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति की विधि को वेद व गीता ज्ञान दाता प्रभु भी नहीं जानता। केवल अपनी साधना (ब्रह्म साधना) का ज्ञान गीता अध्याय 8 मन्त्र (श्लोक) 13 में तथा यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र (श्लोक) 15 में कहा है। ओम् (ॐ) नाम का जाप अकेला करना होता है किसी वाक्य के साथ लगा कर करने से मोक्ष प्राप्ति नहीं होती। 

इसीलिए गीता अध्याय 8 मन्त्र (श्लोक) 13 में कहा है कि मुझ ब्रह्म का तो केवल एक ओम् (ॐ) अक्षर है अन्य नहीं है, उसका उच्चारण करके स्मरण करना है। यजुर्वेद अध्याय 36 मंत्र (श्लोक) 3 में भी ओम् (ॐ) मंत्र नहीं है। यह तो शास्त्र विरूद्ध साधना बताने वालों ने जोड़ा है जो अनुचित है। प्रभु की आज्ञा की अवहेलना है।

उदाहरण:- यदि कोई अज्ञानी व्यक्ति किसी मोटर गाड़ी के पिस्टन के साथ नट वैल्ड कर के यह कहे कि यह पिस्टन अधिक उपयोगी है तो क्या वह व्यक्ति इन्जीनियर है ? यही दशा अज्ञानी ऋषियों तथा सन्तों की है जो ओम् (ॐ) अक्षर को किसी वाक्य के साथ लगा कर कहते हैं कि अब यह मन्त्र अधिक उपयोगी बन गया है। जो शास्त्र विरुद्ध होने से मनमाना आचरण (पूजा) है। 

पवित्र गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23-24 में लिखा है कि शास्त्र विधि त्याग कर मन-माना आचरण (पूजा) करने वाले साधक को न तो सुख होता है, न कार्य सिद्ध तथा न उनकी गति होती है। इसलिए भक्ति के लिए शास्त्रों को आधार मान कर सत्य को ग्रहण करें, असत्य का परित्याग करें।

दूसरा उदाहरण:- जैसे विद्युत के गुण हैं कि बिजली पंखा चलाती है, अंधेरे को उजाले में बदल देती है, आटा पीस देती है आदि-आदि। इस वाक्य को बार-बार रटने से बिजली के उपरोक्त गुणों का लाभ प्राप्त नहीं हो सकता। बिजली का कनैक्शन लेना होता है। कनैक्शन लेने की विधि उपरोक्त महिमा से भिन्न है। बिजली का कनैक्शन लेने के बाद उपरोक्त सर्व लाभ बिजली से स्वतः प्राप्त हो जाऐंगे।

इसी प्रकार सद्ग्रन्थों के अमृत ज्ञान से परमात्मा की महिमा का ज्ञान होता है। उसे एक बार पढे़ं या सौ बार। यदि परमात्मा से लाभ प्राप्त करने की विधि पूर्ण सन्त से प्राप्त नहीं की तो सर्व ज्ञान व्यर्थ है। जैसे कोई कहे कि ‘‘खाले रे औषधि स्वस्थ हो जाएगा’’ इसी की रटना लगाता रहे (आवृत्ति करता रहे) और औषधि खाए नहीं तो स्वस्थ नहीं हो सकता। पूर्ण वैद्य से औषधि लेकर खाने से ही रोग मुक्त हो सकता है। इसी प्रकार पूर्ण सन्त से पूर्ण नाम जाप विधि प्राप्त करके गुरू मर्यादा में रह कर साधना करने से ही पूर्ण मोक्ष सम्भव है।

वह पूर्ण मोक्षदायक, पाप विनाशक शास्त्रानुकूल पूर्ण परमात्मा की भक्ति विधि जगत गुरू तत्वदर्शी सन्त रामपाल दास के पास है जो प्रभु प्रदत्त है। कृपया निःशुल्क व अविलंब प्राप्त करें। अज्ञानी सन्तों व ऋषियों द्वारा बताई शास्त्रविधि रहित साधना में अपना अनमोल मानव जीवन न गंवाएं।

कबीर परमेश्वर (कविर्देव) ने कहा है :-

‘‘मानव जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार।

जैसे तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डार।।’’

 

नोट:- पाठक पढ़ें और सोचें- वे कहां खड़े हैं?

जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा समझाया गया गायत्री मंत्र

कृपया पढ़ें:- यजुर्वेद अध्याय 36 मन्त्र 3 का भाषा भाष्य अर्थात हिन्दी अनुवाद संत रामपाल जी महाराज द्वारा किया हुआ।

यजुर्वेद अध्याय 36 मन्त्र 3:- 

भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं| भर्गो देवस्य धीमही| धीयो यो नः प्रचोदयात्।

संधिछेद:- 

भूः-भुवः-स्वः- तत्- सवित्तुः- वरेण्यम्-भर्गः-देवस्य-धीमही-धीयः- यः-नः- प्रचोदयात्।

 

अनुवाद: वेद ज्ञान दाता ब्रह्म कह रहा है कि (स्वः) अपने निज सुखमय (भुवः) अन्तरिक्ष अर्थात् सतलोक व अनामय लोक में (भूः) स्वयं प्रकट होने वाला पूर्ण परमात्मा है। वही (सवितुः) सर्व सुख दायक सर्व का उत्पन्न करने वाला परमात्मा है (तत्) उस परोक्ष अर्थात् अव्यक्त साकार (वरेण्यम्) सर्वश्रेष्ठ (भर्गः) तेजोमय शरीर युक्त सर्व सृष्टि रचनहार (देवस्य) परमेश्वर की (धीमही) प्रार्थना, उपासना शास्त्रानुकूल अर्थात् बुद्धिमता से सोच समझ कर करें (यः) जो परमात्मा सर्व का पालनकर्ता है वह (नः) हम को भ्रम रहित (धीयः) शास्त्रानुकूल सत्य भक्ति बुद्धिमता अर्थात् सद्भाव से करने की (प्रचोदयात्) प्रेरणा करें।

भावार्थ:- इस मन्त्र संख्या 3 में यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 8 का समर्थन है कि जो (कविर्मनीषी) पूर्ण विद्वान अर्थात् भूत, भविष्य तथा वर्तमान की जानने वाला कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है वह पांच तत्व के शरीर रहित है (स्वयंभूः परिभूः) स्वयं प्रकट होने वाला परमात्मा है पूर्ण परमात्मा का शरीर एक तत्व से बना है इसलिए उसे यजुर्वेद अध्याय 1 मन्त्र 15 तथा अध्याय 5 मन्त्र 1 में कहा है कि (अग्नेः) परमेश्वर का नूरी अर्थात् तेजोमय (तनूः) शरीर (असि) है। उस सर्व शक्तिमान दयालु सुखमय परमात्मा की भक्ति सच्चे हृदय से शास्त्रानुकूल करें। वह पूर्ण परमात्मा ऊपर सतलोक में प्रकट होता है। उस से विनय है कि वह प्रभु सर्व प्राणियों को शास्त्रानुकूल साधना के लिए प्रेरित करें।

क्या गायत्री मंत्र आत्माओं के लिए मोक्ष मंत्र है?

गायत्री मंत्र सर्वोच्च ईश्वर की महिमा करता है, लेकिन यह आत्मा को मुक्ति नहीं दे सकता। जैसा कि ऊपर कहा गया है, सच्चा मोक्ष मंत्र गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में वर्णित है जो ओम-तत्-सत् (सांकेतिक) है जो तत्वदर्शी संत द्वारा दिए जाने पर काम करता है। गायत्री मन्त्र साधकों को कोई लाभ नहीं देता। यह मोक्षप्रदाता मंत्र नहीं है।

निष्कर्ष

सद्ग्रन्थों में छुपे सत्य मंत्रों की पहेलियां केवल पूर्ण संत ही सुलझा सकता है। जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ने प्रमाण दिया है कि वास्तविक गायत्री मंत्र महर्षि दयानंद की खोज नहीं है। यह एक मिथक है। गायत्री मंत्र परमेश्वर कबीर देव जी की महिमा का वर्णन करता है और इसका उल्लेख यजुर्वेद अध्याय 36 श्लोक 3 में किया गया है। इसके आगे जोड़ा गया ‘ओम’ (ॐ) मंत्र अज्ञानी संतों का काम है। पाठकों को सलाह है कि भगवान को पाने के लिए महान संत रामपाल जी महाराज जी की शरण लें और सच्ची भक्ति करें।

Gayatri Mantra


 

FAQs about "वास्तविक गायत्री मंत्र - यजुर्वेद"

Q.1 क्या गायत्री मंत्र सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर सकता है?

नहीं, पवित्र गीता जी अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा गया है कि मनुष्य को अपने जीवन में परम सुख के लिए पूर्ण परमात्मा की शरण लेनी चाहिए। इस तरह यह भी सिद्ध होता है कि गायत्री मंत्र का जाप हमें सुख नहीं दे सकता।

Q.2 सबसे शक्तिशाली मंत्र कौन से हैं, जिससे मनोकामना पूर्ण हो सकती है?

पवित्र गीता जी अध्याय 17 श्लोक 23 में कहा गया है कि 'ॐ-तत्-सत्' मोक्ष व सुख प्राप्ति का मंत्र है। मन्त्र में ॐ स्पष्ट है तथा तत्-सत् सांकेतिक शब्द हैं, जिनका उच्चारण तत्वदर्शी/पूर्ण सन्त द्वारा किया जाता है।

Q. 3 यदि हम प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जाप करें तो क्या होगा?

देखिए गायत्री मंत्र का जाप सुख और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग नहीं है। इसके अलावा पवित्र गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा गया है कि जो पवित्र शास्त्र विरुद्ध भक्ति करता है, उसे किसी भी प्रकार का सुख व शान्ति प्राप्त नहीं होती।

Q.4 जीवन में सफल होने के 3 मंत्र क्या हैं?

पवित्र गीता जी अध्याय 17 श्लोक 23 के अनुसार ॐ-तत्-सत् ही जीवन में सफल होने का सूचक मंत्र है। आप यकीन करो या न करो लेकिन ये मंत्र संत रामपाल जी महाराज (वह पूर्ण संत हैं) बता रहे हैं।

Q.5 कौन सा मंत्र जान बचा सकता है?

पूर्ण संत की शरण और तत्वदर्शी संत द्वारा बताई गई शास्त्रानुकूल भक्ति करने से सच्चे साधक का कल्याण होता है। संत रामपाल जी महाराज आज पृथ्वी पर तत्वदर्शी संत हैं, उनके द्वारा ही हमारा कल्याण संभव है।

Q.6 कौन से मंत्र भगवान विष्णु की स्तुति करते हैं?

हमारे पवित्र ग्रंथों और उन लोगों के अनुसार जो भगवान कबीर जी से मिले और सतलोक (अमरलोक) गए, उन्हें भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश की स्तुति करने के मंत्र एक पूर्ण संत द्वारा दिए गए हैं। वही मंत्र आज इस पृथ्वी पर केवल संत रामपाल जी महाराज के पास उपलब्ध है अन्य किसी के पास नहीं। इसके अलावा इन सच्चे मंत्रों का जाप करने से साधकों को सभी सुख-सुविधाएं मिलती हैं।

Q.7 यजुर्वेद में किस भगवान का वर्णन है?

कविर्देव या कबीर साहेब का वर्णन पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 श्लोक 32 में कविर्देव नाम से किया गया है। क्योंकि पूर्ण परमात्मा हमें भाग्य से अधिक देने के योग्य है।

Q.8 भगवद गीता के अनुसार सर्वोच्च भगवान कौन है?

पवित्र गीता जी अध्याय 8 श्लोक 3 में कबीर साहेब या परम अक्षर पुरुष को ही पूर्ण परमात्मा बताया है। अर्जुन ने अध्याय 8 श्लोक 1 में शैतान (काल ब्रह्म) से पूछा कि सर्वोच्च भगवान कौन है और उसने अध्याय 8 श्लोक 3 में कहा कि वह परम अक्षर ब्रह्म है। अध्याय 8 श्लोक 8 से 10 में भी कविर्देव नाम का वर्णन है।

Q.9 गायत्री मंत्र किस वेद से संबंधित है?

यह पवित्र यजुर्वेद अध्याय 36 मंत्र 3 से संबंधित है। और यह ओम शब्द से शुरू नहीं होता है, लेकिन हमने अपनी घोर अज्ञानता के कारण इसके साथ ओम का उच्चारण करके इसका अभ्यास किया है, जो कि गलत है।

Q.10 गायत्री मंत्र इतना शक्तिशाली क्यों है?

गायत्री मंत्र कोई शक्तिशाली मंत्र नहीं है। मनुष्य को केवल अपना भाग्य ही मिलता है ,जब तक कि वह पूर्ण परमात्मा की शरण में न आ जाए। तत्वदर्शी संत से सच्चे मंत्र प्राप्त करके जाप करने से पूर्ण लाभ तथा मोक्ष संभव है। और इसी का प्रमाण पवित्र गीता जी अध्याय 17 श्लोक 23 में है।


 

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Shivam Singh

गायत्री मंत्र का जाप करने से व्यक्ति सही मार्ग की ओर प्रेरित होकर धर्म और सेवा जैसे कार्य करने लगता है।

Satlok Ashram

देखिए गायत्री मंत्र की गलत व्याख्या होने से साधकों द्वारा इसका गलत जाप किया जाता है। इस मंत्र में 'ॐ' उपसर्ग लगा हुआ है जो गलत है। सही मंत्र यजुर्वेद अध्याय 36 मंत्र 3 में वर्णित है यहां 'ओम' उपसर्ग नहीं है। अज्ञानता के कारण इसका गलत पाठ किया जाता है। इसके अलावा केवल सच्चे मंत्रों का जाप करने से ही व्यक्ति सही भक्ति मार्ग के लिए प्रेरित होता है। बाकी सभी मंत्र व्यर्थ हैं, क्योंकि वे मंत्र मोक्ष प्रदान नहीं कर सकते।

Uthpal Rathore

गायत्री मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

Satlok Ashram

देखिए यह भी एक कड़वा सच है कि सुख-समृद्धि ईश्वर की कृपा और सच्ची पूजा-अर्चना, सच्चे मंत्र जाप, शास्त्रोक्त साधना से ही प्राप्त होती है। इसके अलावा गायत्री मंत्र का जाप एक मनमानी पूजा है, क्योंकि अज्ञानता के कारण इसका गलत जाप किया जाता है। यह जाप सुख प्रदान नहीं कर सकता है। इस जीवन में और उसके बाद भी सुख पाने के लिए गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में वर्णित मंत्र का जाप करना चाहिए। अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारी वेबसाइट पर जाएं।

Shiksha

गायत्री मंत्र का जाप करने से जीवन में उत्साह और सकारात्मकता आती है और व्यक्ति धैर्य के साथ बुरी से बुरी परिस्थिति पर भी आसानी से काबू पा लेता है।

Satlok Ashram

देखिए धर्म प्रचारकों को ज्ञान न होने के कारण उन्होंने गायत्री मंत्र के जाप को गलत बताया है, जिससे साधकों को कोई लाभ नहीं मिलता। इसीलिए गलत मंत्र का जाप व्यर्थ है। जबकि वास्तव में, गायत्री मंत्र भक्तों को भगवान के गुणों से परिचित कराता है। लेकिन यह भी सच है कि गायत्री मंत्र के पाठ से भगवान कभी भी प्राप्त नहीं हो सकते। इसीलिए ईश्वर प्राप्ति का सही मंत्र जानने के लिए कृपया हमारी वेबसाइट पर जाएं।