परमात्मा साकार है व सहशरीर है - यजुर्वेद


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वेद मानव धर्म के सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं जो पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब द्वारा काल ब्रह्म को अपनी आत्माओं काल जाल से मुक्त कराने के लिए दिए गए थे। वेदों में पूर्ण परमात्मा की महिमा के साथ साथ पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने की जानकारी तथा वह परमात्मा कैसा है कौन है कहाँ रहता है इसकी भी जानकारी दी गई है। अतः वेदों में वर्णित जानकारी ही भक्त समाज में मान्य हैं। तत्वज्ञान के अभाव से ऋषियों संतों ने वेदों के ज्ञान को समझे बिना परमात्मा को निराकार मान लिया जबकि वेदों में प्रमाण है कि परमात्मा साकार है तथा सह शरीर है।

आइए यजुर्वेद तथा अन्य धर्म ग्रंथों के प्रमाणों के साथ अध्यन करें कि परमात्मा कैसा है।

यजुर्वेद क्या है ?

यजुर्वेद सनातन धर्म का एक महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ और चार वेदों में से एक है। इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिए गद्य और पद्य मन्त्र हैं। ये हिन्दू धर्म के चार पवित्रतम प्रमुख ग्रन्थों में से एक है और अक्सर ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है — इसमें ऋग्वेद के ६६३ मन्त्र भी पाए जाते हैं। यजुर्वेद का अर्थ यज्ञीय स्तुतियों का ज्ञान है। पवित्र यजुर्वेद संहिता में लगभग 1,875 मंत्र शामिल हैं। यजुर्वेद में परमात्मा के विशेष गुणों के साथ साथ परमात्मा कैसा है इसकी भी विस्तृत जानकारी दी गई है।

पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8 : पूर्ण ब्रह्म का शरीर नूर तत्व से बना है

पर्य् अगाच् छुक्रम् अकायम् अव्रणम् अस्नाविरम् शुद्धम् अपापविद्धम् कविर् मनीषी परिभूः स्वयंभूर् याथातथ्यतो ऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः

अर्थात पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8 में कहा है कि (कविर मनिषी) जिस परमेश्वर की सर्व प्राणियों को चाह है, वह कविर अर्थात कबीर परमेश्वर पूर्ण विद्वान है। उसका शरीर बिना नाड़ी (अस्नाविरम) का है, (शुक्रम अकायम) वीर्य से बनी पांच तत्व  से बनी भौतिक काया रहित है। वह सर्व का मालिक सर्वोपरि सत्यलोक में विराजमान है। उस परमेश्वर का तेजपुंज का (स्वर्ज्योति) स्वयं प्रकाशित शरीर है। जो शब्द रूप अर्थात अविनाशी है। वही कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है जो सर्व ब्रह्मण्डों की रचना करने वाला (व्यदधाता) सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार (स्वयम्भूः) स्वयं प्रकट होने वाला (यथा तथ्यः अर्थान्) वास्तव में (शाश्वतिभः) अविनाशी है जिसके विषय में वेद वाणी द्वारा भी जाना जाता है कि परमात्मा साकार है तथा उसका नाम कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु है(गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में भी प्रमाण है।) भावार्थ है कि पूर्ण ब्रह्म का नाम कबीर (कविर देव) है तथा उस परमेश्वर का शरीर नूर तत्व से बना है।

यजुर्वेद अध्याय 5, मंत्र 1 : परमात्मा साकार है तथा उसका मानव जैसा शरीर है

"अगने तनुः असिविश्नवे त्व सोमस्य तनूर' असि ||  ”

 इस मन्त्र में दो बार कहा है कि परमेश्वर का शरीर है।  उस सनातन पुरुष के पास सबका पालन-पोषण करने के लिए शरीर है अर्थात् जब भगवान अपने भक्तों को तत्वज्ञान समझाने के लिए कुछ समय के लिए इस संसार में अतिथि के रूप में आते हैं, तो वे अपने वास्तविक दीप्तिमान शरीर पर प्रकाश के हल्के पुंज का शरीर धारण करके आते हैं। इसलिए उक्त मन्त्र में दो बार प्रमाण दिया है कि परमात्मा सह शरीर है।

पूर्ण परमात्मा का ऐसा ही वर्णन यजुर्वेद अध्याय 1, मंत्र 15 में भी दिया गया है जहाँ कहा गया है कि ईश्वर का शरीर है और वह आकार में है।

इसी प्रकार यजुर्वेद अध्याय 7 मंत्र 39, ऋग्वेद मण्डल 1, सूक्त 31, मंत्र 17, ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 86, मंत्र 26, 27, ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 82, मंत्र 1 - 3 (प्रभु राजा के समान दर्शनिये है)

आइए ऋग्वेद तथा पवित्र गीता जी के कुछ मंत्रों से जानें कि परमात्मा कैसा है ।

ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 4 मंत्र 3

शिशुम् त्वा जेन्यम् वर्धयन्ती माता विभर्ति सचनस्यमाना धनोः अधि प्रवता यासि हर्यन् जिगीषसे पशुरिव अवसृष्टः

भावार्थ - पूर्ण परमात्मा काल के बन्धन में बंधे प्राणी को छुड़ाने के लिए आता है । बच्चे का रूप स्वयं अपनी शब्द शक्ति से धारण करता है । परमात्मा का जन्म व पालन - पोषण किसी माता द्वारा नहीं होता । इसी यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 8 में स्वयम्भूः परिभू अर्थात् स्वयं प्रकट होने वाला प्रथम प्रभु उसका ( अकायम् ) पाँच तत्व से बना शरीर नहीं है । इसलिए उस परमात्मा का शरीर ( अस्नाविरम ) नाड़ी रहित है । वह परमात्मा कविर मनिषी अर्थात् कवीर परमात्मा है जो सर्वज्ञ है ।

ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 4 मंत्र

मूरा अमूर वयं चिकित्वो महित्वमग्ने त्वमग् वित्से वश्ये व्रिचरति जिह्नयादत्रोरिह्यते युवतिं विश्पतिः सन् ।। 4 ।।

भावार्थ वेदों को बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि मैं तथा अन्य देव पूर्ण परमात्मा की शक्ति के आदि तथा अंत को नहीं जानते । अर्थात् परमेश्वर की शक्ति अपार है । वही परमेश्वर स्वयं मनुष्य रूप धारण करके अपनी आंशिक महिमा अपनी अमृतवाणी से घूम - फिर कर अर्थात् रमता - राम रूप से उच्चारण करके वर्णन करता है । जब वह परमेश्वर मनुष्य रूप धार कर पृथ्वी पर आता है तब सर्व का पति होते हुए भी स्त्री भोग नहीं करता ।

ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 4 मंत्र 5

कूचिज्जायते सनयासु नव्यो वने तस्थौ पलितो धूमकेतुः। अस्नातापो वृषभो प्रवेति सचेतसो यं प्रणयन्त मर्ताः।।5 ।।

भावार्थ - पूर्ण परमात्मा जब मानव शरीर धारण कर पृथ्वी लोक पर आता है उस समय अन्य वृद्ध रूप धारण करके पूर्व जन्म के भक्ति युक्त भक्तों के पास तथा नए मनुष्यों को नए भक्ति संस्कार उत्पन्न करने के लिए वृद्ध रूप में सफेद दाढ़ी युक्त होकर जंगल तथा ग्राम में वसे भक्तों के पास विद्युत जैसी तीव्रता से जाता है अर्थात् जब चाहे जहाँ प्रकट हो जाता है । उन्हें सत्य भक्ति प्रदान करके मोक्ष प्राप्त कराता है ।

ऋग्वेद मण्डल 1 सुक्त 1 मंत्र 5

अग्निः होता कविः क्रतुः सत्यः चित्रश्रवस्तम् देवः देवेभिः आगमत् ।।5 ।।

भावार्थ : - सर्व सृष्टी रचनहार कुल का मालिक कविर्देव अर्थात् कबीर जो तेजोमय शरीर युक्त है । जो साधकों के लिए पूजा करने योग्य है । जिसकी प्राप्ति तत्वदर्शी संत के द्वारा बताए वास्तविक भक्ति मार्ग से देवस्वरूप ( विकार रहित ) भक्त को होती है ।

ऋग्वेद मण्डल 1 सुक्त 1 मंत्र 6

यत् अंग दाशुषे त्वम् अग्ने भद्रम् करिष्यसि तवेत् तत् सत्यम् अंगिरः ।। 6 ।।

भावार्थ : - पूर्ण परमात्मा का अविनाशी तेजोमय शरीर है । उसके दर्शन समर्पण करके तत्वदर्शी सन्त द्वारा साधना करने वाले साधक को ही होते हैं ।

ऋग्वेद मण्डल 1 सुक्त 1 मंत्र 7

उप त्वा अग्ने दिवे दिवे दोषावस्तः धिया वयम् नमः भरन्त् एमसि ।।7 ।।

भावार्थ : - परमेश्वर कविर्देव अन्य हल्के तेजपुंज का शरीर धारण करके उपअग्ने अर्थात् छोटे प्रभु ( गुरुदेव ) रूप में कुछ समय यहाँ मनुष्य की तरह वसते हैं । उस समय हम अपनी बुद्धि के अनुसार आप को समझकर आपके बताए मार्ग का अनुसरण करके अपनी भक्ति साधना करके भक्ति धन की पूर्ति करते हैं । जो तत्वज्ञान स्वयं पूर्ण परमात्मा , अन्य उप - प्रभु रूप में प्रकट होकर ( कविर् गिरः ) कविर्वाणी अर्थात् कबीर वाणी कविताओं व दोहों तथा लोकोक्तियों द्वारा कवित्व से उच्चारण करते हैं उस तत्वज्ञान को बाद में सन्त जन ठीक से नहीं समझ पाते । उसी पूर्व उच्चारित वाणी को यथार्थ रूप से समझाने के लिए ( उपअग्ने ) उप प्रभु अर्थात् अपने दास को सतगुरू रूप में प्रकट करता है ।

सन्त गरीबदास जी छुड़ानी वाले ने " असुर निकन्दन रमैणी " में कहा कि साहेब तख्त कबीर ख्वासा दिल्ली मण्डल लीजै वासा , सतगुरू दिल्ली मण्डल आयसी सुती धरती सूम जगायसी । जिसका भावार्थ है कि कबीर परमेश्वर के तख्त का निकटत्तम नौकर दिल्ली मण्डल भारतवर्ष में दिल्ली के आस - पास के क्षेत्र में जन्म लेगा तथा वह प्रभु का अवतार  दिल्ली व उसके आस - पास के व्यक्तियों को भक्तिमार्ग पर लगाएगा । जो दान धर्म त्याग कर कृपण ( कंजूस ) हो गए हैं । वह प्रभु का दास पूर्व उच्चारित वाणी का यथार्थ ज्ञान कराएगा । यही प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 95 मन्त्र 5 में है । इस मन्त्र में उस प्रभु दास को उपवक्ता कहा है।

परमात्मा साकार है या निराकार : पवित्र गीता जी से प्रमाणित

परमात्मा साकार है, नर स्वरुप है अर्थात् मनुष्य जैसे आकार का है। तत्वज्ञान के अभाव से तथा नकली गुरुओं ऋषियों तथा संतों ने अज्ञानता वश अवयक्त का अर्थ निराकार बता कर परमात्मा को निराकार साबित कर दिया जबकि अव्यक्त का अर्थ साकार होता है। उदाहरण के लिए जैसा सूर्य के सामने बादल छा जाते हैं, उस समय सूर्य अव्यक्त होता है। हमें भले ही दिखाई नहीं देता, परन्तु सूर्य अव्यक्त है, साकार है। जो प्रभु हमारे को सामान्य साधना से दिखाई नहीं देते, वे अव्यक्त कहे जाते हैं।

जैसे गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में गीता ज्ञान दाता ने अपने आपको अव्यक्त कहा है क्योंकि वह श्री कृष्ण में प्रवेश करके बोल रहा था। जब व्यक्त हुआ तो विराट रुप दिखाया था। यह पहला अव्यक्त प्रभु हुआ जो क्षर पुरुष कहलाता है। जिसे काल भी कहते है। गीता अध्याय 8 श्लोक 17 से 19 तक दूसरा अव्यक्त अक्षर पुरुष है। गीता अध्याय 8 श्लोक 20 में कहा है कि इस अव्यक्त अर्थात् अक्षर पुरुष से दूसरा सनातन अव्यक्त परमेश्वर अर्थात् परम अक्षर पुरुष है। इस प्रकार ये तीनों साकार (नराकार) प्रभु हैं। अव्यक्त का अर्थ निराकार नहीं होता। क्षर पुरुष (ब्रह्म) ने प्रतिज्ञा कर रखी है कि मैं कभी भी अपने वास्तविक रुप में किसी को भी दर्शन नहीं दूँगा।

प्रमाण: गीता अध्याय 11 श्लोक 47-48 में जिसमें कहा है कि हे अर्जुन! यह मेरा विराट वाला रुप आपने देखा, यह मेरा रुप आपके अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा, मैंने तेरे पर अनुग्रह करके दिखाया है।

गीता अध्याय 11 श्लोक 48 में कहा है कि यह मेरा स्वरुप न तो वेदोें में वर्णित विधि से, न जप से, न तप से, न यज्ञ आदि से देखा जा सकता। इससे सिद्ध हुआ कि क्षर पुरुष (गीता ज्ञान दाता) को किसी भी ऋषि-महर्षि व साधक ने नहीं देखा। जिस कारण से इसे निराकार मान बैठे। सूक्ष्म वेद (तत्व ज्ञान) में कहा है ’’खोजत-खोजत थाकिया, अन्त में कहा बेचून। (निराकार) न गुरु पूरा न साधना, सत्य हो रहे जूनमं-जून।। (जन्म-मरण) अब गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में गीता ज्ञान दाता ने स्पष्ट कर ही दिया है कि मैं अपनी योग माया से छिपा रहता हूँ। किसी के समक्ष नहीं आता, मैं अव्यक्त हूँ। छिपा है तो साकार है। अक्षर पुरुष भी अव्यक्त है, यह ऊपर प्रमाणित हो चुका है। इस प्रभु की यहाँ कोई भूमिका नहीं है। यह अपने 7 शंख ब्रह्माण्डों तक सीमित है। इसलिए इसको कोई नहीं देख सका।

परम अक्षर पुरुष:– इस प्रभु की सर्व ब्रह्माण्डों में भूमिका है। यह सत्यलोक में रहते हैं जो पृथ्वी से 16 शंख कोस (एक कोस लगभग 3 किमीका होता है) दूर है। इसकी प्राप्ति की साधना वेदों (चारों वेदों) में वर्णित नहीं है। जिस कारण से इस प्रभु को कोई नहीं देख सका। जब यह प्रभु (परम अक्षर ब्रह्म) पृथ्वी पर सशरीर प्रकट होता है तो कोई इन्हें पहचान नहीं पाता। परमात्मा कहते भी हैं किः-

’’हम ही अलख अल्लाह हैं, कुतुब-गोस और पीर। 
गरीब दास खालिक धनी, हमरा नाम कबीर।।’’

हम पूर्ण परमात्मा हैं, हम ही पीर अर्थात् सत्य ज्ञान देने वाले सत्गुरु हैं। सर्व सृष्टि का मालिक भी मैं ही हूँ, मेरा नाम कबीर है। परन्तु सर्व साधकों ऋषियों-महर्षियों ने यही दृढ़ कर रखा होता है कि परमात्मा तो निराकार है। वह देखा नहीं जा सकता। यह पृथ्वी पर विचरने वाला जुलाहा (धाणक) कबीर एक कवि कैसे परम अक्षर ब्रह्म हो सकता है।

श्रीमद्भगवत् गीता अध्याय 4 श्लोक 32 तथा 34 में भी प्रमाण है। गीता ज्ञान दाता ने बताया कि हे अर्जुन! परम अक्षर ब्रह्म अपने मुख कमल से तत्वज्ञान बोलकर बताता है, उस सच्चिदानन्द घन ब्रह्म की वाणी में यज्ञों अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों की जानकारी विस्तार से कही गई है। उसको जानकर सर्व पापों से मुक्त हो जाएगा। फिर गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी सन्तों के पास जाकर समझ। उनको दण्डवत प्रणाम करके विनयपूर्वक प्रश्न करने से वे तत्वदर्शी सन्त तुझे तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे।

उपरोक्त सभी प्रमाणों से सिद्ध होता है कि पूर्ण परमात्मा साकार है तथा मनुष्य जैसा है जो चारों युगों में पृथ्वी पर अवतरित हो कर अपनी पुण्य आत्माओं को मिलते हैं तथा कवियों जैसा आचरण करते हुए कविताओं तथा श्लोकों के माध्यम से तत्वज्ञान सुनाते हैं। प्रमाणों से यह भी सिद्ध है कि उस परमात्मा का नाम कविर्देव अर्थात कबीर देव है।

Yajurved Adhyay 5 Mantra 1