श्री विष्णु पुराण का संक्षिप्त सारांश


श्री विष्णु पुराण का संक्षिप्त सारांश

अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म और अकर्म की गाथाएँ कही गयी हैं। कुछ पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक का विवरण भी दिया गया है। पुराण पूर्ण आध्यात्मिक जानकारी प्राप्त करने के लिए सही स्रोत नहीं हैं। आइए जानते हैं पुराणों की सच्चाई।

पुराण क्या हैं?

पुराण भारतीय साहित्य की पुरातन शैली है जो विभिन्न पौराणिक विषयों, पारंपरिक विद्याओं, राजाओं, देवताओं, संतों, नायकों, मंदिरों, खगोल विज्ञान, हास्य आदि की वंशावली के बारे में दंत कथाओं का वर्णन करती हैं। हिंदू समाज में कुल 18 महा (महान) पुराण हैं। जिनके नाम निम्न लिखित हैं:-

1. विष्णु पुराण 2. भागवत पुराण 3. शिव पुराण 4. स्कंद पुराण 5. वायु पुराण 6. गरुड़ पुराण 7. पद्म पुराण 8. मत्स्य पुराण 9. अग्नि पुराण 10. ब्रह्म पुराण 11. वराह पुराण 12. वामन पुराण 13. लिंग पुराण 14. कूर्म पुराण 15. ब्रह्माण्ड पुराण 16. मार्कंडेय पुराण 17. नारद पुराण 18. ब्रह्म वैवर्त पुराण

18 पुराणों में से जानेंगे कुछ ठोस प्रमाणः

  • भगवान विष्णु की उत्पत्ति
  • विष्णु जी का रंग नीला/काला क्यों है?
  • भगवान विष्णु के विभिन्न नाम क्या हैं?
  • भगवान विष्णु के कितने अवतार (अवतार) हैं?
  • मृत पूर्वजों की पूजा के संबंध में विष्णु पुराण में मिथक (श्राद्ध अनुष्ठान करना)
  • विष्णु पुराण में भगवान काल के अलौकिक कर्मों का प्रमाण
  • विषय विकार मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में बाधा उत्पन्न करते हैं : विष्णु पुराण
  • विष्णु पुराण की सत्य कथा
  • ऋषि पारासर की कथा और ऋषि वेदव्यास का जन्म
  • श्री पराशर (पारासर) ऋषि जी द्वारा लोकवेद बताना - विष्णु पुराण
  • सच्ची पूजा एक वरदान- विष्णु पुराण

आइए विष्णु पुराण का विश्लेषण करें।

विष्णु पुराण एक महान वैष्णववाद ग्रंथ है, हिंदू धर्म का एक मध्यकालीन पाठ जिसके सर्वोच्च देवता भगवान विष्णु हैं। 18 पुराणों में से एक विष्णु पुराण हिंदू शास्त्रों में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। महान ऋषि वेदव्यास ने भगवान ब्रह्मा जी के मार्गदर्शन में सतयुग के पहले चरण में इस शास्त्र की रचना की थी जिसमें 23,000 श्लोक हैं और छह भाग (अंश) हैं। यह भगवान विष्णु को इस ब्रह्माण्ड के निर्माता के साथ-साथ पालनकर्ता के रूप में महिमामंडित करता है। कहा जाता है कि राजा पृथु के नाम पर ही पृथ्वी का नाम 'पृथ्वी' रखा गया, विष्णु पुराण में यह भी उल्लेख है कि मनुष्य जीवन प्राप्त करने वाले देवताओं से भी अधिक धन्य और भाग्यशाली हैं, क्योंकि मोक्ष और भगवान की प्राप्ति केवल मनुष्य जीवन में ही संभव है और किसी अन्य जीवन रूप में मोक्ष प्राप्ति नहीं मिल सकती।

यह लेख निम्नलिखित तथ्यों पर प्रकाश डालेगा। सभी अंश विष्णु पुराण से लिए गए हैंः

  • क्या भगवान विष्णु सृष्टि के रचयिता हैं?
  • क्या भगवान विष्णु अमर हैं?
  • क्या श्राद्ध करने का विधान शास्त्रों में प्रमाणित है?
  • क्या पहले के ऋषि-मुनियों ने हठयोग करके मोक्ष प्राप्त किया है?
  • क्या भगवान विष्णु की पूजा आत्माओं को जन्म और पुनर्जन्म के दुष्चक्र से मुक्ति दिला सकती है?
  • सत भक्ति क्या है, जिसे करने से आत्माओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है?
  • सत भक्ति कौन प्रदान कर सकता है?
  • सर्वोच्च भगवान कौन है?

भगवान विष्णु की उत्पत्ति

आइए पहले हम भगवान विष्णु की उत्पत्ति के बारे में अध्ययन करेंः

संदर्भ: श्रीमद् देवी भागवत महापुराण, सचित्र मोटा टाइप हिंदी, मुद्रक हनुमान प्रसाद पोद्दार-चिमनलाल गोस्वामी, गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा मुद्रित, संक्षिप्त देवी भागवत पुराण।

प्रमाण : पृष्ठ संख्या 123, स्कंद 3, अध्याय 5 

  • भगवान विष्णु के माता और पिता कौन हैं?
  • भगवान विष्णु के भाई कौन हैं?

श्री विष्णु जी ने श्री दुर्गा जी की स्तुति करते हुए कहा - 'तुम शुद्ध स्वरूपा हो, यह सारा संसार तुम्हीं से उद्भाषित हो रहा है। मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर, हम सभी तुम्हारी कृपा से ही विद्यमान हैं। हमारा जन्म (आविर्भाव) और मृत्यु (तिरोभाव) हुआ करता है; अर्थात, हम तीनों देवता नाशवान हैं। केवल तुम ही नित्य हो। तुम सनातनी देवी/जगतजननी/ प्रकृति देवी हो।

प्रमाण, अथ देवीभागवतं सभाषाटीकं समाहात्म्यम्, खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाशन मुंबई; संस्कृत लेखन, हिंदी में अनुवादित स्कंद 3, अध्याय 4, पृष्ठ 10, श्लोक 42 भगवान विष्णु कहते हैं 'हे माता, ब्रह्मा, मैं (विष्णु), तथा शिव तुम्हारे ही प्रभाव से जन्मवान हैं, हम नित्य/अविनाशी नहीं हैं, फिर अन्य इंद्रादि दूसरे देवता किस प्रकार नित्य हो सकते हैं। तुम्हीं अविनाशी हो, प्रकृति तथा सनातनी देवी हो। श्लोक 12 आप (दुर्गा) अपने पति पुरुष अर्थात काल भगवान के साथ सदा भोग-विलास (संभोग से उत्पत्ति) करती रहती हो। आपकी गति कोई नहीं जानता।

निष्कर्ष: इससे सिद्ध होता है कि भगवान विष्णु जी की उत्पत्ति देवी दुर्गा और काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) से हुई है। वह जन्म लेते हैं और मरते हैं।  वह अमर नहीं है। भगवान विष्णु मध्यम पुत्र हैं, बड़े पुत्र भगवान ब्रह्मा और छोटे पुत्र भगवान शिव हैं। वास्तव में ये सभी अमर नहीं हैं। भगवान विष्णु सतोगुण से सुसज्जित हैं, उनकी भूमिका काल के इक्कीस ब्रह्मण्डों में तीन लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल लोक) के पालनकर्ता की है । वह जीवों का (उनके कर्मों के अनुसार) पालन-पोषण करते हैं और उनमें प्रेम और स्नेह को विकसित करके राज्य को बनाए रखते हैं। सुनी-सुनाई और लोककथाओं के अनुसार, उन्हें संरक्षक और रक्षक भी माना जाता है। देवी लक्ष्मी उनकी पत्नी हैं और वे चार प्रकार के शस्त्र से युक्त हैं जैसे शंख ,सुदर्शन , चक्र कमल का फूल (पद्म) और कौमोदकी गदा, जो उन चीजों का प्रतिनिधित्व करता है जिनके लिए वह जिम्मेदार हैं। भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ है।

भगवान विष्णु जी का रंग नीला/काला क्यों है?

एक बार भगवान विष्णु जी अपनी माता दुर्गा के निर्देशानुसार अपने पिता (काल-ब्रह्म) की खोज करने के लिए पाताल लोक गए, जहाँ 'शेषनाग' रहता था। विष्णु को अपने अधिकार क्षेत्र में प्रवेश करते देख उसने विष्णु जी पर अपना विष छिड़क दिया, विष के प्रभाव से विष्णु जी की त्वचा का रंग काला पड़ गया। तभी से भगवान विष्णु का रंग नीला/काला है।

भगवान विष्णु के विभिन्न नाम क्या हैं?

भगवान विष्णु को अनेक नामों से पुकारा जाता है। जिनमें से कुछेक हैं:- आदिनाथ, आदिशेष, अक्षज, अमेयात्मा, अमृत, चक्रधर, चतुर्भुज, दशावतार, गढ़धर, नारायण, कमलाकर, हरिनारायण, जगन्नाथ, कमलनाथ, केशव, लक्ष्मीपति, लक्ष्मीधर, लीलाधर, लोकनाथ, माधव, मधुबन, नामदेव, नरसिम्हा, पद्मनाभन, पद्मपति, परशुराम, पीताम्बर, पुरुषोत्तम, राम, रमाकांत, श्री हरि आदि।

भगवान विष्णु के कितने अवतार हैं?

लोगों का मानना है कि भगवान विष्णु के अब तक 23 अवतार हो चुके हैं, 24वां अवतार आना अभी बाकी है। 24 अवतार जो की इस प्रकार हैं:-

1.वराह अवतार 2. नारद अवतार 3. नर-नारायण अवतार 4. कपिल मुनि अवतार

5. दत्तात्रेय अवतार 6. यज्ञ अवतार 7. ऋषभदेव अवतार 8. आदिराजा पृथु अवतार 9. मत्स्य अवतार 10. कूर्म अवतार 11. धन्वंतरि अवतार 12. मोहिनी अवतार

13. नरसिंह अवतार 14. वामन अवतार 15. हयग्रीव अवतार 16. श्री हरि अवतार

17. ऋषि वेदव्यास अवतार 18. हंस अवतार 19. श्रीराम अवतार 20. श्रीकृष्ण अवतार

21. बुद्ध अवतार 22. श्री सनकादिक मुनि अवतार 23. परशुराम अवतार।

24वां अवतार बहुप्रतीक्षित 'कल्कि अवतार' होगा जो अभी आना बाकी है।

कल्कि अवतार

संदर्भ श्रीमद्भागवत, द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय 'कलयुग का धर्म', पृष्ठ नं. 935-936।

कलयुग के अंत तक भगवान विष्णु के अंतिम अवतार 'कल्कि अवतार' आएगा। आइए विश्लेषण करें कि पवित्र शास्त्र इस विषय में क्या बताते हैं?

श्री शुक्रदेव जी राजा परीक्षित से कहते हैं - 'समय बड़ा बलवान है। जैसे-जैसे कलयुग प्रगति के निकट आएगा धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, बल और स्मृति समाप्त हो जाएगी। जैसे-जैसे कलयुग बढ़ेगा यानी कलयुग के अंत तक लोगों की उम्र कम होती जाएगी। उस समय जब कल्कि नामक अवतार अवतरित होगा तब मानव की अन्तिम आयु मात्र 20 वर्ष होगी, उसमें से पाँच वर्ष खंडित हो जाएँगे अर्थात् 15 वर्ष की ही आयु में वे जन्म लेंगे, बच्चे पैदा करेंगे और मर जाएँगे। पांच साल की बच्ची बच्चे पैदा कर सकेगी। प्रजा का व्यवहार बिगड़ेगा, राजा भी अन्यायी होंगे। सभी चार जातियों के लोग 'शूद्र' (सबसे निचली हिंदू जाति) की तरह बन जाएंगे। गायें बकरियों के आकार की, छोटी-छोटी, कम दुधारू होंगी। मौसम का मिजाज सबसे खराब रहेगा। उस समय मकान नहीं रहेंगे। सब टुकड़े-टुकड़े होकर गड्ढा खोदकर रहेंगे। बारिश नहीं होगी। भयंकर आँधियाँ चलेंगी। भूकंप आएंगे। झंकार बजेगी और सब मांसाहारी होंगे।

'सूक्ष्मवेद' सभी धर्म ग्रंथों का निष्कर्ष है , यह पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी द्वारा काल ब्रह्म को दिए गए थे। कल्कि अवतार के संबद्ध में 'सूक्ष्मवेद' में भी व्याख्या की गई है। उसमें लिखा है कि राजा 'हरिश्चंद्र' जो वर्तमान में स्वर्ग में विराजमान हैं जहां वे अपने पुण्यों का उपभोग कर रहे हैं वही 10वां अवतार अर्थात कलियुग के अंत में अवतार लेने वाला 'कल्कि अवतार/निष्कलंक' होगा। वह भगवान काल के आदेश से मुरादाबाद-यूपी के पास 'संभल शहर में, शहर के प्रमुख 'विष्णु दत्त शर्मा' एक सर्वोच्च ब्राह्मण के घर जन्म लेगा। वह सभी अत्याचारी और अन्यायी मनुष्यों को मार डालेगा। ईश्वर का भय रखने वाले कुछ ही व्यक्ति सदाचारी होंगे। वह उन्हें छोड़ देगा और बाकी सब को मार डालेगा। इस चरागाह जगत का, वह उद्धारकर्ता और प्रभु होगा।

विशेष: - काल भगवान अपने योग्य पुण्यात्माओं को अपने लोक से भेजता है। जिन्हें अवतार भी कहा जाता है। काल ब्रह्म के अवतार पृथ्वी पर उठे हुए अधर्म को संहार द्वारा नष्ट करते हैं। जैसा श्री रामचंद्र जी और श्री कृष्ण जी, श्री परशुराम जी ने किया, वही श्री निहकलंक/कल्कि अवतार करेगा लेकिन शांति की जगह अशांति बढ़ती है। यह ब्रह्म (काल-क्षर पुरुष) के अवतारों की अधर्म का नाश करने और शांति स्थापित करने की विधि है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अपेक्षित कल्कि अवतार भगवान विष्णु का नहीं बल्कि इन इक्कीस ब्रह्माण्डों के स्वामी काल-दैत्य द्वारा भेजी गई एक पवित्र आत्मा का होगा।

मृत पूर्वजों की पूजा के संबंध में विष्णु पुराण में मिथक (श्राद्ध अनुष्ठान करना गलत) साधना है

हिंदू पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं और अपने मृत पूर्वजों के लिए 'श्राद्ध' अनुष्ठान करते हैं जो आत्माओं को 84 लाख जीवन रूपों में जन्म और पुनर्जन्म के दुष्चक्र से छुटकारा दिलाएगा। आइए विष्णु पुराण में अज्ञानियों द्वारा वर्णित श्राद्ध के संबंध में कुछ मिथकों का विश्लेषण करें।

संदर्भ गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्री विष्णु पुराण, अनुवादक श्री मुनीलाल गुप्त हैं। तीसरा भाग, अध्याय नं. 16 ब्रह्मांड का निर्माण औरव ऋषि राजा सगध को बताते हैं कि 'पितरों' ने उन्हें क्या बताया है। पृष्ठ 213 - 'हे राजा, जो लोग श्राद्ध करते हैं, उनसे विश्व देवता, पितर, पूर्वज, परिवार के सदस्य / रिश्तेदार सभी संतुष्ट रहते हैं। हे भूपाल, पितरों का आधार चंद्रमा है और चंद्रमा का आधार योग है, इसलिए श्राद्ध में तपस्वी को नियुक्त करना श्रेष्ठ है। हे राजा, जो श्राद्ध के दौरान भोजन करता है, यदि एक हजार ब्राह्मणों के सामने सिर्फ एक तपस्वी (सच्चा उपासक) होता है, तो वह यजमानों के साथ सभी को क्षमा कर सकता है।

श्राद्ध करने की विधि का उल्लेख है जो पाठकों को आश्चर्य चकित कर देगा। औरव ऋषि श्राद्ध के दौरान मृत पूर्वजों को मांस चढ़ाने के बारे में बताते हैं। उनका कहना है कि 'मछली, खरगोश, नेवला, सूअर, कस्तूरी मृग, काला हिरण, नीली गाय (मृग), भेड़, गाय आदि के मांस से क्रमश: मृत पूर्वजों की तृप्ति होती है और 'वरघनी' के मांस से लाभ होता है। पक्षी हमेशा संतुष्ट रहते हैं। हे नरेशेश्वर, श्राद्ध कर्म में गैंडे का मांस, कालशक और शहद बहुत महंगा होता है और परम आनंद प्रदान करता है।

 पृष्ठ 214  - विष्णु पुराण में उल्लेख है कि श्राद्ध कर्म करते समय भैंस के दूध का उपयोग नहीं करना चाहिए ।

'हे राजा, वह जो आधी रात में लाया जाता है, पानी जो अप्रतिष्ठित जलाशय का हो सकता है जिससे गाय को संतुष्ट नहीं किया जा सकता है, ऐसे गड्ढे से जिसमें बदबू आती है या झाग युक्त पानी जो उपयोग करने योग्य नहीं है। श्राद्ध कर्म में एक खुर वाले जानवर, गाय-ऊँटनी, भेड़, मुर्गी और भैंस के दूध का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इससे स्पष्ट होता है कि पूर्व ऋषियों का आध्यात्मिक ज्ञान कितना निम्न था।

जबकि श्राद्ध की वास्तविकता यह है कि श्राद्ध करना व्यर्थ साधना है, श्राद्ध करने वालों को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। 'श्राद्ध' और 'पिंडदान' जैसे अनुष्ठान करना गलत धार्मिक प्रथाएं हैं। श्राद्ध कर्म करने से आत्मा की मुक्ति संभव नहीं है। भगवद गीता अध्याय व श्लोक 9:25 में कहा गया है कि 'देवताओं के उपासक देवताओं के पास जाते हैं, पितरों के उपासक पितरों के पास जाते हैं, भूतों के उपासक भूतों के बीच जन्म लेते हैं'। अत: जीव की मुक्ति के लिए मृत्यु के बाद किया गया श्राद्ध व्यर्थ है।

विष्णु पुराण में काल ब्रह्म के अलौकिक कर्मों का प्रमाण

सन्दर्भ:- गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद्भागवत गीता, अनुवादक जयदयाल गोयनका हैं

यह प्रमाण द्वापरयुग में हुए महाभारत के भीषण युद्ध और तबाही के बारे में है। भगवान विष्णु सतोगुण से युक्त हैं, वे विनम्र हैं। द्वापरयुग में उन्होंने भगवान कृष्ण के रूप में अवतरण लिया। कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध न हो तथा उनके पारिवारिक झगड़े को सुलझाने के लिए उन्होंने सभी प्रयास किए। लेकिन काल भगवान छलिया है। वह इक्कीस ब्रह्माण्डों का स्वामी है और अपने क्षेत्र में फंसी निर्दोष आत्माओं को धोखा देता है। काल ने भगवान कृष्ण के शरीर में भूत की तरह प्रवेश कर अर्जुन को अपना विकराल रूप दिखाया (गीता अध्याय 11, श्लोक 32) जब अर्जुन ने युद्ध लड़ने से मना कर दिया था, उस समय काल ने अर्जुन को डराया और उसे युद्ध करने के लिए मजबूर किया और पूरी तबाही की।

काल के कर्म अलौकिक कैसे होते हैं?

 आइए जानते हैं कि काल के कर्म अलौकिक कैसे हैं?

 काल भगवान ने प्रतिज्ञा की हुई है कि वह अपने मूल रूप में कभी किसी के सामने प्रकट नहीं होगा, वह अपनी योगमाया से छिपा रहता है और छिपे रहकर अपने सभी कार्यों को करता है (गीता अध्याय 7, श्लोक 24-25)। काल अपने भक्तों को भगवान विष्णु, भगवान ब्रह्मा और भगवान शिव का रूप धारण करके दर्शन देता है, वे भोले साधक उन्हें परम शक्ति मानकर उनकी पूजा करते हैं।

सन्दर्भ:- गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्री विष्णु पुराण, अनुवादक श्री मुनीलाल गुप्त हैं।

विष्णु पुराण में वर्णित इस धोखेबाज काल भगवान (ज्योति निरंजन) के अति अमानवीय कर्मों के ऐसे ही कई प्रमाण हैं। वह लीला करता है और अपने उपासकों को गुमराह करता है। आइए जानें कि वह कैसे धोखा देता है?

अध्याय 2, भाग 4, पेज नं. 233, श्लोक 22-26

पूर्वकाल में, त्रेता युग में एक बार देवताओं और दैत्यों के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसमें शक्तिशाली देवता दैत्यों से हार गए। उन्होंने भगवान विष्णु की पूजा की। समस्त विश्व के रक्षक श्री नारायण ने देवताओं से प्रसन्न होकर उनसे कहा, 'आप जो कुछ भी चाहते हैं, मुझे पता चल गया है, कृपया सुनें, मैं राजा शशद के पुत्र योद्धा राजकुमार पुरंजय के शरीर में आंशिक रूप से अवतार लूंगा और पूरी तरह से उन सभी राक्षसों को नष्ट कर दूंगा, इसलिए आप उन राक्षसों के रक्तपात के लिए पुरंजय को तैयार करें'।

अध्याय 3, भाग 4, पृष्ठ नं. 242, श्लोक 4-6

 पूर्वकाल में रसताल में मौनय नाम के छ: करोड़ गन्धर्व निवास करते थे। उन्होंने नागकुल (सांप वंश) के प्रमुख के पूरे अधिकार और खजाने को जब्त कर लिया था। गन्धर्वों के पराक्रम से अपमानित होकर उन नागेश्वरों ने पूजा की, उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान के कमल-सदृश खिले हुए दिव्य नेत्र खुल गए, गहरी नींद के अंत में जागे, पानी के नीचे रहने वाले भगवान को सभी देवताओं ने प्रणाम किया और नाग-गण (सर्पों का प्रमुख) ) ने कहा, 'इन गंधर्वों से उत्पन्न भय का अंत कैसे होगा?' तब सच्चे श्रेष्ठ भगवान ने कहा (अर्थात् काल) 'पुरूकुल नामक प्रतापी युवनाशव के पुत्र में मैं प्रवेश करूँगा और उन दुष्ट गंधर्वों को पूरी तरह से नष्ट कर दूँगा'।       

विचारणीय बिंदु: - यह काल क्रमशः अर्जुन, पुरंजय और पुरुकुल के शरीर में प्रवेश कर सभी राक्षसों और गंधर्वों का नाश करता है। यह काल (शैतान) ही है जिसने महाभारत का भीषण युद्ध करवाया और सम्पूर्ण विनाश का उत्तरदायी भी यही है। इस प्रकार काल के कर्म अलौकिक हैं। वह धोखेबाज है। भोले-भाले भक्तों को गुमराह कर रहा है की भगवान विष्णु ही सब कुछ करते हैं ताकि साधक उन्हें परम शक्ति मानकर महिमामंडन और पूजा करते रहें।

मोक्ष प्राप्त करने के मार्ग में विकार बाधा कैसे बनते हैं?-विष्णु पुराण

मोक्ष के मार्ग में पाप कैसे बाधक बनते हैं?:- प्रत्येक मनुष्य गुण और अवगुण धारण करके जन्म लेता है। प्रत्येक के साथ ये विकार जुड़े हुए हैं: - काम,  क्रोध, मोह,  लोभ और अहंकार।  सुख-दुःख, प्रेम-घृणा, मान-सम्मान, लाभ-हानि जो की त्रिगुण माया से उत्पन्न होते हैं और यही भक्ति मार्ग में बाधा उत्पन्न करते हैं जिससे जीवात्माओं को मोक्ष प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है।

तत्वज्ञान (सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान) की कमी के कारण ऋषियों और देवताओं में अहंकार, क्रोध और महिमा पाने जैसे गुण अपने चरम पर होते हैं। महाभारत के युद्ध के बाद, युधिष्ठिर (पांडवों के ज्येष्ठ पुत्र) अशांति में थे क्योंकि उन्हें बुरे बुरे सपने आते थे। उन्होंने कृष्ण जी से समाधान मांगा और श्री कृष्ण जी ने उन्हें  'यज्ञ' करने और एक भव्य भोज आयोजित करने व सभी संतों, गंधर्वों, देवताओं आदि को आमंत्रित करने का सुझाव दिया, जो उनकी समस्या का समाधान कर सकते हैं। लेकिन यज्ञ करने के बाद भी, सब कुछ व्यर्थ गया, कारण आमंत्रित संतों में विधमान उनके विकार थे। पहले के ऋषियों ने लाखों-करोड़ों वर्ष साधना (हठयोग क्रिया) की लेकिन ऐसा करने पर भी उनमें व्याप्त दोषों का विनाश नहीं हुआ जिसके कारण वे जन्म-मरण के दुष्चक्र में पड़े रहे और कभी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सके। महान ऋषि विश्वामित्र और ऋषि वशिष्ठ के बीच की नफरत दुनिया से छिपी नहीं है। एक बार ऋषि वशिष्ठ जी ने ऋषि विश्वामित्र जी को प्रणाम किया, और कहा 'आओ राज ऋषि'। इस कथन पर उन्हें इतना अपमान महसूस हुआ कि उन्होंने ऋषि वशिष्ठ के सौ पुत्रों की हत्या कर दी। ऐसा अनर्थ तो दैत्य ही करते हैं।

सन्दर्भ:- गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्री विष्णु पुराण, अनुवादक श्री मुनीलाल गुप्त, अध्याय 4, श्लोक 72-94

ऋषि वशिष्ठ जी ने अहंकारवश राजा निमि को मृत्यु का श्राप दे दिया था, बदले में राजा ने ऋषि वशिष्ठ जी को मृत्यु का श्राप दे दिया और एकदूसरे को दिए श्राप के कारण दोनों की मृत्यु हो गई। कारण, ऋषि वशिष्ठ राजा निमि के पुरोहित थे। राजा निमि ने एक हजार वर्ष तक यज्ञ करने का संकल्प लिया था और वशिष्ठ जी से यज्ञ करने का अनुरोध किया। उसी समय, भगवान इंद्र (देवताओं के राजा) ने ऋषि वशिष्ठ जी को पाँच सौ वर्षों तक यज्ञ का नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित कर दिया।

लालची ऋषि वशिष्ठ ने विशाल धन की इच्छा से और पहले भगवान इंद्र का यज्ञ तथा बाद में राजा निमि के यज्ञ को करने का फैसला किया। जब राजा को पता चला तो उन्होंने ऋषि गौतम जी द्वारा एक हजार वर्ष तक यज्ञ करवाना प्रारंभ कर दिया। भगवान इंद्र के पांच सौ साल के यज्ञ को पूरा करने के बाद जब ऋषि वशिष्ठ जी लौटे तो उन्होंने राजा निमि के यहां किसी अन्य ऋषि को अनुष्ठान करते हुए देखा। यह देख वह नाराज़ हो गए। तभी उन्होंने राजा निमि को मृत्यु का श्राप दिया, बदले में राजा निमि ने भी वही श्राप ऋषि वशिष्ठ को दिया। श्राप के फलस्वरूप वे दोनों मर गए। अहंकार, क्रोध, घृणा जैसे विकार दोनों की मृत्यु का कारण बने।

यहाँ ध्यान देने योग्य बातें हैं:-

  • क्या क्रोध करना ऋषियों का लक्षण है?
  • क्या श्राप देना समाधान है?
  • क्या ऐसे विकार आत्माओं को मोक्ष प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं?
  • लाखों करोड़ों वर्ष पूजा (हठयोग) करने पर भी विकारों का नाश क्यों नहीं हुआ?
  • क्या (यज्ञ) पूजा करने का सही तरीका है?
  • वह सच्ची पूजा कौन सी है जो भक्तों को चौरासी लाख योनियों से, जन्म और पुनर्जन्म के दुष्चक्र से छुटकारा दिला सकती है?
  • उपासना का वह सच्चा मार्ग कौन प्रदान कर सकता है?
  • मोक्ष के असली मंत्र क्या हैं?

पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता हिंदुओं के सबसे पवित्र ग्रंथों में से एक है। गीता अध्याय 4, श्लोक 34 में गीता ज्ञान दाता ने तत्वदर्शी संत की खोज कर उनसे तत्वज्ञान को प्राप्त करने को कहा है, क्योंकि तत्वदर्शी संत द्वारा बताई गई भक्ति से मोक्ष की प्राप्ति संभव है। गीता अध्याय 15, श्लोक 17 में उस अविनाशी परमात्मा का उल्लेख है जो समस्त सृष्टि का पालन-पोषण करता है। केवल वही अविनाशी परमात्मा है अर्थात पूर्ण परमेश्वर पूजा के योग्य है जिसके द्वारा आत्माएं मुक्त हो सकती हैं।

विष्णु पुराण की सत्य कथा

सन्दर्भ:- गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्री विष्णु पुराण, अनुवादक श्री मुनीलाल गुप्त हैं।

 यहां हम काल लोक में की जाने वाली पूजा विधि जैसे हठयोग, तपस्या और इसी तरह की अन्य साधनाओं पर प्रकाश डालेंगे। पहले के ऋषियों ने यज्ञ किए, ध्यान किया, हठयोग किया जिससे उन्हें सिद्धि तो प्राप्त हुए लेकिन विकार उनमें ज्यों के त्यों रह गए।

ऋषि पाराशर की कथा और ऋषि वेदव्यास का जन्म

ऋषि पराशर जो ऋषि वशिष्ठ जी के पौत्र और शक्ति ऋषि के पुत्र थे, का जब विवाह हुआ। तब उन्हें पता चला कि उसके पिता की दूसरी जाति के लोगों ने बेरहमी से हत्या कर दी थी। शादी करने के तुरंत बाद उन्होंने साधना करने और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने के लिए घर छोड़ने का फैसला किया। उनकी पत्नी ने कहा 'अभी हमारी शादी हुई है और आप साधना के लिए घर छोड़ रहे हो, कृप्या बच्चे पैदा करके जाओ'। वह नहीं माने और अपनी पत्नी से कहा कि मेरे साधना करने के बाद जो बच्चे पैदा होंगे, वह नेक प्रवृत्ति के होंगे। कुछ समय बाद मैं अपना वीर्य (आध्यात्मिक शक्ति से युक्त) एक कौए के द्वारा भेजूंगा, आप उसे स्वीकार करना। इसके बाद वह घर छोड़कर जंगलों में चले गए। वहां उन्होंने एक वर्ष तक साधना की और सिद्धियाँ प्राप्त कीं, फिर अपना वीर्य निकालकर एक पीपल के पत्ते पर भस्म कर दिया, अपनी आध्यात्मिक शक्ति (मंत्रों) द्वारा वीर्य की रक्षा की और एक कौवे को अपनी पत्नी को देने के लिए दिया और एक 'तारपत्र' (ताड़ के पत्ते) पर विवरण लिखा। कौआ उसे ले गया और उड़ गया, नदी पार करने पर, दूसरे कौवे ने देखा और यह सोचकर उस कौवे पर हमला कर दिया कि वह अपनी चोंच में मांस का टुकड़ा लिए हुए है। इस हाथापाई में पत्ते में लिपटा वीर्य नदी में गिर गया और एक मछली ने उसे खा लिया, वह गर्भवती हो गई।

नौ महीने के बाद एक मछुआरे ने उस गर्भवती मछली को जाल में फँसा लिया, तथा उसके पेट को काट दिया जिसमें से एक सुंदर बच्ची निकली। उसने उसे अपनी बेटी की तरह पाला, पिता की तरह उसकी देखभाल की। वह लड़की बड़ी हुई, तेरह साल की उम्र में वह अपने पिता के लिए भोजन लाती थी और नाव में नदी के दूसरे किनारे पर आगंतुकों को ले जाने के काम में उनकी मदद करती थी। उसका नाम सत्यवती व मछोदरी था (क्योंकि वह एक मछली के पेट से पैदा हुई थी)।

चौदह वर्ष के बाद श्री पराशर जी साधना समाप्त कर लौटे। नदी के पास पहुँच कर उसने नाविक को बुलाया और कहा, 'जल्दी से मुझे नदी के उस पार ले चलो'। उस समय नाविक भोजन कर रहा था, और बीच में भोजन छोड़ने से अन्न देव (अन्न देव) का अपमान होता है। नाविक अच्छी तरह से जानता था कि साधना करने के बाद इन संतों को आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं और यदि वांछित सेवाओं के लिए मना किया जाता है तो वे नाराज़ हो सकते हैं और श्राप दे सकते हैं और उनका सब कुछ नष्ट कर सकते हैं। इसलिए केवट ने यह जिम्मेदारी अपनी पुत्री मछोदरी को सौंप दी। मछोदरी भी जागरूक थी।

वह ऋषि पराशर जी को नाव में बिठाकर ले गई। वह तेरह साल की एक जवान लड़की थी। नदी के मध्य में पहुँचकर ऋषि पराशर जी के मन में मछली ( उनकी बीज शक्ति से उत्पन् पुत्री) से उत्पन्न कन्या के प्रति कुत्सित भाव जागृत हुआ। उसने अपनी इच्छा लड़की के सामने रखी। मछोदरी ने अपनी लाज बचाने के लिए ऋषि जी से कहा कि 'आप ब्राह्मण हैं, मैं शूद्र हूं' रजोगुण के प्रभाव से ऋषि जी बेबस हो गए और नहीं माने। उसने आगे कहा कि उसके शरीर से मछली की दुर्गंध आती है। ऋषि जी ने नदी से जल लेकर कन्या पर छिड़का और अपनी अलौकिक शक्ति से दुर्गंध को समाप्त कर दिया। तब बालिका ने कहा 'ऋषि जी, लोग दोनों तरफ देख रहे हैं, यह शर्मनाक होगा', ऋषि जी ने आकाश में कुछ नदी का पानी फेंका और अपनी अलौकिक शक्तियों से चारों ओर धुंध पैदा कर दी। लड़की के यह कहने के बावजूद कि वह एक मछली से पैदा हुई है, उसने अपनी बेटी के साथ अपनी इच्छा पूरी की। ऋषि जी भली-भाँति जानते थे कि कौए द्वारा भेजे गए मंत्र द्वारा रक्षित उनका वीर्य नदी में गिर गया था और मछलियों ने खा लिया था, फिर भी उन्होंने सब कुछ अनसुना कर दिया।

घर वापस आकर लड़की ने अपनी पालक मां को पूरी घटना से अवगत कराया, उसकी मां ने अपने पति को सारी बात बताई। मछोदरी ने बताया कि ऋषि का नाम पराशर था जो ऋषि वशिष्ठ के पौत्र हैं। समय आने पर उस अविवाहित कन्या ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम व्यास रखा गया, जो ऋषि व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए।

विशेष: पराशर ऋषि ज्ञानी और साधु होते हुए भी रजोगुण के प्रभाव को जीत नहीं सके। चौदह वर्ष तक योग किया , सिद्धि प्राप्त की, लेकिन विकार ज्यों के त्यों रहे। इसी प्रकार इस काल के लोक में सब कुछ, जबरदस्ती फँसी हुई, भोली आत्माओं के साथ किया जाता है, जो मजबूर होकर धोखा खा जाती हैं। यह विकार मन (काल निरंजन) के प्रभाव से सभी मनुष्यों में मौजूद है।

विकार मरे ना जानियो, ज्यों भूभल में आग। जब करेल्लै धधकही, सतगुरू शरणा लाग।।

श्री पराशर ऋषि जी द्वारा सुना सुनाया ज्ञान सुनाना- विष्णु पुराण

श्री पराशर जी ने बताया कि हे मैत्रोय जो ज्ञान मैं तुझे सुनाने जा रहा हूँ, यही प्रसंग दक्षादि मुनियों ने नर्मदा तट पर राजा पुरुकुत्स को सुनाया था। यह ज्ञान पुरुकुत्स ने सारस्वत से और सारस्वत ने मुझ से कहा था। श्री पराशर जी ने श्री विष्णु पुराण के प्रथम अध्याय श्लोक संख्या 31, पृष्ठ संख्या 3 में कहा है कि यह जगत विष्णु से उत्पन्न हुआ है, और उन्हीं में स्थित है। वे ही इसकी स्थिति करते हैं और पालनकर्ता भी हैं। अध्याय 2 श्लोक 15.16 पृष्ठ 4 में कहा है कि हे द्विज ! परब्रह्म का प्रथम रूप पुरुष अर्थात् भगवान जैसा लगता है, परन्तु व्यक्त (महाविष्णु रूप में प्रकट होना) तथा अव्यक्त (अदृश रूप में वास्तविक काल रूप में इक्कीसवें ब्रह्माण्ड में रहना) उसके अन्य रूप हैं तथा ‘काल‘ उसका परम रूप है। भगवान विष्णु जो काल रूप में तथा व्यक्त और अव्यक्त रूप से स्थित होते हैं, यह उनकी बालवत लीला है।

  • अध्याय 2 श्लोक 27 पृष्ठ 5 में कहा है - हे मैत्रोय ! प्रलय काल में प्रधान अर्थात् प्रकृति के साम्य अवस्था में स्थित हो जाने पर अर्थात् पुरुष के प्रकृति से पृथक स्थित हो जाने पर विष्णु भगवान का काल रूप प्रवृत होता है।
  •  अध्याय 2 श्लोक 28 से 30 पृष्ठ 5 - तदन्तर (सर्गकाल उपस्थित होने पर) उन परब्रह्म परमात्मा विश्व रूप सर्वव्यापी सर्वभूतेश्वर सर्वात्मा परमेश्वर ने अपनी इच्छा से विकारी प्रधान और अविकारी पुरुष में प्रविष्ट होकर उनको क्षोभित किया।।28-29।।

विशेष - श्लोक संख्या 28 से 30 में स्पष्ट किया है कि प्रकृति (दुर्गा) तथा पुरुष (काल-प्रभु) से अन्य कोई और परमेश्वर है जो इन दोनों को पुनर् सृष्टी रचना के लिए प्रेरित करता है।

अध्याय 2 पृष्ठ 8 पर श्लोक 66 में लिखा है वे ही प्रभु विष्णु सृष्टा (ब्रह्मा) होकर अपनी ही सृष्टी करते हैं। श्लोक संख्या 70 में लिखा है। भगवान विष्णु ही ब्रह्मा आदि अवस्थाओं द्वारा रचने वाले हैं। वे भी रचे जाते हैं और स्वयं भी संहृत अर्थात् मरते हैं। अध्याय 4 श्लोक 4 पृष्ठ 11 पर लिखा है कि कोई अन्य परमेश्वर है जो ब्रह्मा, शिव आदि ईश्वरों के भी ईश्वर हैं। अध्याय 4 श्लोक 14.15, 17, 22 पृष्ठ 11, 12 पर लिखा है। पृथ्वी बोली - हे काल स्वरूप! आपको नमस्कार हो। हे प्रभो ! आप ही जगत की सृष्टी आदि के लिए ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र रूप धारण करने वाले हैं। आपका जो रूप अवतार रूप में प्रकट होता है उसी की देवगण पूजा करते हैं। आप ही ओंकार हैं। अध्याय 4 श्लोक 50 पृष्ठ 14 पर लिखा है - फिर उन भगवान हरि ने रजोगुण युक्त होकर चतुर्मुख धारी ब्रह्मा रूप धारण कर सृष्टी की रचना की।

उपरोक्त विवरण से सिद्ध हुआ कि ऋषि पराशर जी ने सुना सुनाया ज्ञान अर्थात् लोकवेद के आधार पर श्री विष्णु पुराण की रचना की है क्योंकि वास्तविक ज्ञान पूर्ण परमात्मा ने प्रथम सतयुग में स्वयं प्रकट होकर श्री ब्रह्मा जी को दिया था। श्री ब्रह्मा जी ने कुछ ज्ञान तथा कुछ स्वनिर्मित काल्पनिक ज्ञान अपने वंशजों को बताया। एक दूसरे से सुनते-सुनाते ही लोकवेद श्री पराशर जी को प्राप्त हुआ। श्री पराशर जी ने विष्णु को काल भी कहा है तथा परब्रह्म भी कहा है। उपरोक्त विवरण से यह भी सिद्ध हुआ कि विष्णु अर्थात् ब्रह्म स्वरूप काल अपनी उत्पत्ति ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव रूप से करके सृष्टी उत्पन्न करते हैं।

ब्रह्म (काल) ही ब्रह्म लोक में तीन रूपों में प्रकट हो कर लीला करके छल करता है। वह स्वयं भी मरता है (विशेष जानकारी के लिए कृप्या पढ़ें ‘प्रलय की जानकारी‘ पुस्तक ‘गहरी नजर गीता में‘ अध्याय 8 श्लोक 17 की व्याख्या में) उसी ब्रह्म लोक में तीन स्थान बनाए हैं। एक रजोगुण प्रधान उसमें यही काल रूपी ब्रह्म अपना ब्रह्मा रूप धारण करके रहता है तथा अपनी पत्नी दुर्गा को साथ रख कर एक रजोगुण प्रधान पुत्र उत्पन्न करता है। उसका नाम ब्रह्मा रखता है। उसी से एक ब्रह्मण्ड में उत्पत्ति करवाता है। इसी प्रकार उसी ब्रह्म लोक एक सतगुण प्रधान स्थान बना कर स्वयं अपना विष्णु रूप धारण करके रहता है तथा अपनी पत्नी दुर्गा (प्रकृति) को पत्नी रूप में रख कर एक सतगुण युक्त पुत्र उत्पन्न करता है। उसका नाम विष्णु रखता है। उस पुत्र से एक ब्रह्माण्ड में तीन लोकों (पृथ्वी, पाताल, स्वर्ग) में स्थिति बनाए रखने का कार्य करवाता है। (प्रमाण शिव पुराण गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित अनुवाद हनुमान प्रसाद पौद्दार चिमन लाल गौस्वामी रूद्र संहिता अध्याय 6, 7 पृष्ठ 102.103)।

ब्रह्मलोक में ही एक तीसरा स्थान तमगुण प्रधान रच कर उसमें स्वयं शिव रूप धारण करके रहता है तथा अपनी पत्नी दुर्गा (प्रकृति) को साथ रख कर पति-पत्नी के व्यवहार से उसी तरह तीसरा पुत्र तमोगुण युक्त उत्पन्न करता है। उसका नाम शंकर (शिव) रखता है। इस पुत्र से तीन लोक के प्राणियों का संहार करवाता है। विष्णु पुराण में अध्याय 4 तक जो ज्ञान है वह काल रूप ब्रह्म अर्थात् ज्योति निरंजन का है। अध्याय 5 से आगे का मिला-जुला ज्ञान काल के पुत्र सतगुण विष्णु की लीलाओं का है तथा उसी के अवतार श्री राम, श्री कृष्ण आदि का ज्ञान है।

विशेष विचार करने की बात यह है कि श्री विष्णु पुराण का वक्ता श्री पराशर ऋषि है। यही ज्ञान दक्षादि ऋषियों से पुरुकुत्स ने सुना, पुरुकुत्स से सारस्वत ने सुना तथा सारस्वत से श्री पराशर ऋषि ने सुना। वह ज्ञान श्री विष्णु पुराण में लिपि बद्ध किया गया है जो आज आपके करकमलों में है। इसमें केवल एक ब्रह्माण्ड का ज्ञान भी अधूरा है। श्री देवीपुराण, श्री शिवपुराण आदि पुराणों का ज्ञान भी ब्रह्मा जी का दिया हुआ है। श्री पराशर वाला ज्ञान श्री ब्रह्मा जी द्वारा दिए ज्ञान के समान नहीं हो सकता। इसलिए श्री विष्णु पुराण को समझने के लिए देवी पुराण तथा श्री शिव पुराण का सहयोग लिया जाएगा क्योंकि यह ज्ञान दक्षादि ऋषियों के पिता श्री ब्रह्मा जी का दिया हुआ है। श्री देवी पुराण तथा श्री शिवपुराण को समझने के लिए श्रीमद् भगवद् गीता तथा चारों वेदों का सहयोग लिया जाएगा क्योंकि यह ज्ञान स्वयं भगवान काल रूपी ब्रह्म द्वारा दिया गया है। जो ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी का उत्पन्न कर्ता अर्थात् पिता है। पवित्र वेदों तथा पवित्र श्रीमद् भगवद् गीता जी के ज्ञान को समझने के लिए स्वसम वेद अर्थात् सूक्ष्म वेद का सहयोग लेना होगा जो काल रूपी ब्रह्म के उत्पत्ति कर्ता अर्थात् पिता परम अक्षर ब्रह्म (कविर्देव) का दिया हुआ है। जो (कविर्गीभिः) कविर्वाणी द्वारा स्वयं सतपुरुष ने प्रकट हो कर बोला था। (ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 16 से 20 तक प्रमाण है)।

सत भक्ति एक वरदान- विष्णु पुराण

भक्त प्रह्लाद की कथा

सच्ची पूजा करने की कोई आयु सीमा नहीं होती चाहे करने वाला एक ऋषि हो या कोई अन्य व्यक्ति जो की पारिवारिक जीवन का नेतृत्व करता है, वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है, बशर्ते वह तत्वदर्शी संत से भक्ति प्राप्त करे और पवित्र शास्त्रों के अनुसार पूजा करे। विष्णु पुराण इस बात का प्रमाण देता है कि विभिन्न प्रसिद्ध महापुरूषों ने, जिन्होंने सत भक्ति की, पारिवारिक जीवन व्यतीत किया, मोक्ष भी प्राप्त किया। इसलिए लोककथाओं के अनुसार यह मिथक है कि केवल साधु-संत ही ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। कोई भी व्यक्ति जो सत भक्ति करता है, वह ईश्वर को प्राप्त करने के योग्य है, अर्थात मोक्ष प्राप्त करने का अधिकारी है। सच्ची भक्ति अर्थात सत भक्ति के मार्ग में विवाह और गृहस्थ जीवन बाधक नहीं है लेकिन मनुष्य का दुराचार करना गलत है।

भक्त प्रहलाद हिरण्यकशिपु (दुष्ट राक्षस राजा) के पुत्र थे। हिरण्यकशिपु को भगवान ब्रह्मा द्वारा वरदान दिया गया था कि वह किसी के द्वारा नहीं मारा जा सकता है चाहे वह आदमी हो या जानवर, न तो दिन के समय में और न ही रात के दौरान, न ही जीवित गर्भ से पैदा हुई किसी भी चीज से, न जमीन पर, न पानी में, न ही हवा में, ना तो बाहर ना घर के अंदर, मानव निर्मित हथियार से भी नहीं, जिसकी वजह से हिरण्यकशिपु अहंकारी हो गया था और अपने आप को भगवान मानने लगा। वह अपने पुत्र प्रहलाद के साथ बुरा व्यवहार करता था क्योंकि वह चाहता था कि उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु की पूजा ना करके उसकी पूजा करे। प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था।

एक बार एक कुम्हार आग में मिट्टी के घड़े तैयार कर रहा था। बिल्ली के बच्चे एक बर्तन में थे जिसके बारे में कुम्हार को पता नहीं था और उसने उस मिट्टी के बर्तन को भी आग में रख दिया। जब उन बिल्ली के बच्चों की माँ ने आकर देखा कि उसके बच्चे एक बर्तन में आग में रखे हुए हैं तो वह चिल्लाने लगी। कुम्हार की पत्नी विनम्र हृदय की थी, वह माँ होने के नाते बिल्ली के दर्द को पूरी तरह से समझ रही थी, इसलिए उसने बिल्ली के बच्चों को बचाने के लिए भगवान से प्रार्थना की। उसी समय प्रहलाद वहां से गुजर रहा था। उसने देखा और कुम्हार की पत्नी से पूछा कि 'क्या भगवान इन बिल्ली के बच्चों को जलने से बचा सकता है?' उसने जवाब दिया 'हाँ भगवान कुछ भी कर सकता है', उसने कहा अगर ये बिल्ली के बच्चे बच जाएंगे तो मैं सहमत हो जाऊंगा कि भगवान हैं, अन्यथा आपको यह विश्वास करने की आवश्यकता है कि मेरे पिता हिरण्यकशिपु भगवान हैं और उनकी पूजा करनी पड़ेगी। (किसी तरह अत्यधिक दबाव के कारण, कुछ समय के लिए प्रह्लाद ने भी यह मान लिया था कि उसके पिता भी भगवान हो सकते हैं)।

अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद को अपनी शरण में लाना पूर्ण परमात्मा (कविर्देव) की ही लीला थी । जल्द ही ठंडी हवा चली और उसने आग बुझा दी। तीसरे दिन जब मटकों की तलाशी ली गई तो बिल्ली के सभी बच्चे सकुशल मिले। इसने प्रह्लाद के विश्वास को बल दिया कि भगवान बेहद शक्तिशाली हैं और वह कुछ भी कर सकते हैं। उसका पिता राजा हो सकता है लेकिन वह भगवान नहीं है , वह बिल्ली के बच्चों को आग से नहीं बचा सकता उन्होंने अपने शिक्षकों सांडा-मुरका से कहा कि वे जो कुछ भी सिखा रहे हैं (हिरण्यकश्यप को भगवान के रूप में पूजा करो) वह गलत है । वह केवल भगवान विष्णु की पूजा करेगा क्योंकि वह सर्वोच्च हैं। इससे पिता-पुत्र के बीच तकरार छिड़ गई। लेकिन प्रह्लाद पक्के भक्त थे। बुरी से बुरी स्थिति में भी अपने पिता के क्रूर होने के बावजूद उन्होंने भगवान विष्णु की पूजा करना नहीं छोड़ा।

वह अपने पिता के सभी अत्याचारों को सहन करता रहा। जब भक्त प्रहलाद ने दस वर्ष की आयु प्राप्त की, तो एक दिन सांझ के समय पूर्ण परमात्मा (कविर्देव) नरसिंह भगवान (मनुष्य-सिंह चिमेरा) का रूप धारण करके एक स्तंभ से प्रकट हुए, अभिमानी हिरण्यकशिपु को मारकर प्रह्लाद को उस जैसे क्रूर पिता से बचाया। परमेश्वर कविर्देव (कबीर साहेब) ने प्रह्लाद को आशीर्वाद दिया, उसके बाद उसने शासन किया, वह राजा बना। बाद में भक्त प्रह्लाद ने विवाह कर सत्य साधना की और शाश्वत स्थान प्राप्त किया।

भक्त ध्रुव की कथा

भक्त ध्रुव का जन्म सतयुग में राजा उत्तानपाद और रानी सुनीति जो कि एक धार्मिक और विनम्र महिला थी के यहाँ हुआ। राजा उत्तानपाद की दो पत्नियाँ थीं, दूसरी सुरुचि (सुनीति की बहन) थी जो एक ईर्ष्यालु और कुटिल महिला थी। दोनों के एक-एक बेटा हुआ। सुरुचि के दुर्व्यवहार के कारण ध्रुव और उसकी मां को  एक अलग घर में रखा गया था। उन्हें जीवित रहने के लिए केवल 1.25 मन अनाज उपलब्ध कराया जाता था। एक दिन ध्रुव की मौसी (सुरुचि) ने ध्रुव को उसके पिता की गोद से उठा कर दूर फेंक दिया था। वह रोते हुए अपनी मां के पास गया और पूरी घटना बताई। उनकी मां ने बताया 'यह उनका सिंहासन है हमारा नहीं', तब ध्रुव ने अपनी मां से सवाल किया 'मेरे पिता को सिंहासन किसने दिया?' उसकी माँ ने कहा कि यह सब तो भगवान की लीला है, वही सबका पालन-पोषण करता है। उसी दिन से ध्रुव राज्य पाने की इच्छा से घर छोड़कर चला गया।

ध्रुव पाँच वर्ष का था जब वह जंगल में पूजा कर रहा था तब उसे सर्वोच्च परमात्मा (कविर्देव) मिले और आशीर्वाद दिया तथा उसे सिंहासन पर बिठाया। बड़े होने के पश्चात ध्रुव ने शादी की और खुशहाल पारिवारिक जीवन व्यतीत किया तथा पूर्ण परमात्मा की सच्ची भक्ति की और मोक्ष प्राप्त किया।

विशेष:- परमपिता पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी की सत भक्ति करने से इस जीवन में भी सभी सुखों की प्राप्ति होती है तथा मृत्यु उपरांत शाश्वत शान्ति (मोक्ष) भी प्राप्त किया जा सकता है। केवल पूर्ण परमात्मा ही सब कुछ प्रदान कर सकते हैं बशर्ते व्यक्ति समर्पित रहे।

विचारणीय बिंदु-विष्णु पुराण

विष्णु पुराण से निम्मलिखित तथ्य सामने आए हैंः

  • श्री विष्णु पुराण के वक्ता श्री पराशर जी हैं जो श्री कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास जी के पूज्य पिता हैं।
  • श्री वेदव्यास जी चार वेदों, श्रीमद्भगवत गीता और श्रीमद्भागवत सुधा सागर सहित अठारह पुराणों के रचयिता हैं।
  • समस्त पुराणों का ज्ञान ब्रह्मा जी द्वारा दिया गया है जिसे बाद में विभिन्न ऋषियों द्वारा सुनाया गया तथा इसमें उनके व्यक्तिगत अनुभव भी शामिल हैं।
  • विष्णु पुराण के वक्ता अर्थात ऋषि पराशर जी को तत्वज्ञान (सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान) नहीं था जिसके कारण उन्होंने ब्रह्म को परब्रह्म और विष्णु और परम अक्षर ब्रह्म को काल-ब्रह्म बताया, जबकि प्रमाण सिद्ध करते हैं की पूर्ण परमात्मा/ परम अक्षर ब्रह्म क्षर पुरुष और अक्षर पुरुष से भिन्न है जो सर्व शक्तिमान सारी सृष्टि का, रचयिता तथा पालनहार हैं।
  • पूर्ण परमात्मा कविर्देव जी द्वारा वर्णित समस्त सृष्टि की पूर्ण रचना विष्णु पुराण में वर्णित है।

श्रीमद्भगवद्गीता में तत् ब्रह्म का उल्लेख किया गया है। अध्याय 7, श्लोक 29, अध्याय 8, श्लोक 1,3,8,9 और 10, अध्याय 15 श्लोक 1,4,16 और 17 में उस एक परम अक्षर ब्रह्म के विषय में ज्ञान दिया गया है । उसी परम अक्षर ब्रह्म के बारे में विष्णु पुराण भाग एक अध्याय 22, श्लोक 54-55 में भी उल्लेख किया गया है।

निष्कर्ष

भगवद्गीता अध्याय 7 श्लोक 12-15 तीनों देवों रजगुण श्री ब्रह्मा जी, सतगुण श्री विष्णु जी तथा तमगुण श्री शिव जी की साधना व्यर्थ कही गई है। भगवद्गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में गीता ज्ञान दाता ने अपनी भक्ति को अनुत्तम (हीन / बुरा) भी कहा है। विष्णु पुराण के उपरोक्त प्रमाणों से यह स्पष्ट हो गया है कि भोले-भाले भक्तों ने तत्वज्ञान के अभाव के कारण से भगवान विष्णु की पूजा प्रारंभ की तथा आजीवन विकारों से दूर नहीं हो सके तथा अपने पूरे जीवन में अनेकों कष्ट सहन किए। लेकिन जब दयालु परमपिता परमात्मा (कविर्देव) जी ने उन पर कृपा की तथा सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान के द्वारा अधर्म का नाश किया और परमात्मा कबीर साहेब जी ने उन्हें सत भक्ति प्रदान की जिसके द्वारा वे सभी जब तक जिए तब तक सुखी जीवन व्यतीत करते रहे और अंत में उस परम शांति, शाश्वत स्थान-सतलोक को प्राप्त किया।

वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी पूर्ण परमात्मा परम अक्षर ब्रह्म कबीर साहेब जी के अवतार हैं जो सभी आत्माओं को मुक्त कराने अर्थात मोक्ष प्रदान करने के लिए धरती पर अवतरित हुए हैं। सभी पाठकों से विनम्र निवेदन है कि पूर्ण परमात्मा के कृपा प्राप्त संत को पहचान कर, उनकी शरण ग्रहण करें तथा अपना कल्याण कराएं।


 

FAQs : "श्री विष्णु पुराण का संक्षिप्त सारांश"

Q.1 विष्णु पुराण में क्या असत्य ज्ञान बताया गया है?

विष्णु पुराण में भगवान विष्णु जी को भगवान बताया गया है जबकि यह सत्य नहीं है और लोग सोचते हैं कि विष्णु जी की पूजा करने से हमें सुख प्राप्त हो सकता है, लेकिन यह सच नहीं है। श्री ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं और अमर नहीं हैं। इस का प्रमाण श्रीमद् देवी भागवत महापुराण में भी है। सचित्र मोटा टाइप हिंदी, मुद्रक हनुमान प्रसाद पोद्दार-चिमनलाल गोस्वामी, गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा मुद्रित, संक्षिप्त देवी भागवत पृष्ठ नंबर 123, स्कंद 3, अध्याय 5 में भी इसका प्रमाण है।

Q.2 विष्णु पुराण क्यों महत्वपूर्ण है?

विष्णु पुराण में यह स्पष्ट लिखा है कि विष्णु जी सर्वोच्च और सर्वशक्तिमान ईश्वर नहीं हैं। इसका प्रमाण पवित्र गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में भी है। इसमें यह बात स्पष्ट लिखी है कि ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी तीनों पूजनीय देव नहीं हैं।

Q. 3 विष्णु पुराण किसने लिखा था?

विष्णु पुराण की रचना सतयुग के प्रथम चरण में ब्रह्मा जी के मार्गदर्शन में महान ऋषि वेदव्यास जी ने की थी। इसमें 23,000 श्लोक हैं और इसके छह भाग हैं।

Q.4 पुराण का मुख्य उद्देश्य क्या है?

पुराण का मुख्य उद्देश्य पवित्र वेदों और पवित्र गीता जी के ज्ञान को बताना है।

Q.5 विष्णु जी का स्वभाव किस तरह का था?

विष्णु जी के सभी अवतार हमेशा विनम्र, दयालु, शांति स्थापित करने वाले माने जाते हैं। जैसे कि श्री कृष्ण जी (भगवान विष्णु जी के अवतार) कभी नहीं चाहते थे कि महाभारत जैसा अनर्थ हो। लेकिन ब्रह्म काल ने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रेत की तरह प्रवेश किया और ज़बरदस्ती महाभारत का युद्ध करवाया। इसका प्रमाण पवित्र गीता जी अध्याय 11 श्लोक 32 में बताया गया है।

Q.6 विष्णु पुराण के अनुसार क्या विष्णु जी अमर भगवान हैं?

विष्णु पुराण में विष्णु जी को परमेश्वर कहा गया है लेकिन यह सत्य नहीं है। श्री ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी तीनों देव जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसे हुए हैं और अमर नहीं हैं। इसका प्रमाण श्रीमद् देवी भागवत महापुराण, सचित्र मोटा टाइप हिंदी, मुद्रक हनुमान प्रसाद पोद्दार-चिमनलाल गोस्वामी, गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा मुद्रित, संक्षिप्त देवी भागवत पृष्ठ नंबर 123, स्कंद 3, अध्याय 5 में भी है। लेकिन सोचने वाली बात यह भी है कि जो भगवान स्वयं जन्म-मृत्यु में फंसे हुए हैं, वह अपने साधकों को मोक्ष कैसे प्रदान कर सकते हैं?

Q.7 श्री विष्णु जी के पिता कौन हैं?

ब्रह्म काल ही श्री ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी कका पिता है। इसका प्रमाण पवित्र गीता जी अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 में भी है।

Q.8 विष्णु जी की माता कौन हैं?

देवी दुर्गा जी ही श्री ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी की माता जी हैं। इसका प्रमाण पवित्र गीता जी अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 में भी है। ऐसा ही प्रमाण श्रीमद् देवी भागवत महापुराण, सचित्र मोटा टाइप हिंदी, मुद्रक हनुमान प्रसाद पोद्दार-चिमनलाल गोस्वामी, गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा मुद्रित, संक्षिप्त देवी भागवत पृष्ठ नंबर 123, स्कंद 3, अध्याय 5 में भी है।

Q.9 विष्णु जी की आयु कितनी है?

विष्णु जी की आयु ब्रह्मा जी से 7 गुना अधिक है।

Q.10 शिव जी के पिता कौन हैं?

शिव जी के पिता भी ब्रह्म काल यानि कि ज्योति निरंजन हैं और माता देवी दुर्गा जी हैं। इसका प्रमाण पवित्र शिव पुराण पृष्ठ नंबर 19, 86,115,131 में भी है। यह सदाशिव कोई और नहीं बल्कि ब्रह्म काल है।


 

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Niharkia Jain

क्या विष्णु जी अमर भगवान हैं या फिर उनका जन्म माता-पिता से हुआ था?

Satlok Ashram

विष्णु जी अमर परमात्मा नहीं हैं। श्री विष्णु जी का जन्म ब्रह्म काल और देवी दुर्गा जी से हुआ है और यह इन दोनों के दूसरे नंबर के पुत्र हैं।

Guarav Sharma

श्री विष्णु जी और शिव जी में से भगवान कौन है?

Satlok Ashram

न तो विष्णु जी और न ही शिव जी पूर्ण परमात्मा हैं। विष्णु जी सतोगुण और शिव जी तमोगुण युक्त हैं। जबकि सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी सभी ब्रह्माण्डों के निर्माता और एकमात्र पूजनीय भगवान हैं।

Jatin Choudary

श्री विष्णु जी के पास क्या शक्तियां हैं?

Satlok Ashram

श्री विष्णु जी सतोगुण युक्त हैं, यह ब्रह्म काल के 21 ब्रह्मांडों में सभी प्राणियों में आपसी प्रेम और संतान उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार हैं।