3. तीन गुण - सत्व, रजस और तमस क्या हैं?


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वैदिक तथ्य और भक्त समाज के बीच प्रसिद्ध विभिन्न दर्शनशास्त्र इन तीन गुणों को दुनिया के सभी जीवित प्राणियों में विद्यमान होने की विविध व्याख्या देते हैं। ये अध्यात्म ज्ञान के जानकार इस शरीर को पांच तत्व और तीन प्रकृति से बना हुआ कहते है ।

यह तीन प्रकृति क्या है, उसके बारे में ये बताते हैं कि यह तीन प्रकृति रजोगुण, सतोगुण और तमोगुण है।

इसके अनन्य अगर वैदिक वर्णन पर नजर डालें तो ये स्पष्ट होता है कि ...

रजोगुण प्रभाव से जीवन की 84 लाख प्रजातियों के शरीर बनते है। रजस प्रभाव जीव को संतानोत्पत्ति के लिए प्रजनन करने को मजबूर करके, विभिन्न योनियों में प्राणियों की उत्पत्ति कराते हैं।

सतोगुण जीवों (उनके कर्मों के अनुसार) का पालन-पोषण करते हैं और सतोगुण (सत्व) के प्रभाव जीव मे प्रेम और स्नेह विकसित करके, इस अस्थिर लोक की स्थिति को बनाए रखते हैं।

और तमोगुण विनाश का प्रतिनिधित्व करते हैं। तमोगुण (तमस) के प्रभाव की भूमिका प्राणियों को अंततः नष्ट करने की है। इन सभी का सृष्टि के संचालन मे योगदान है।

इस संदर्भ में दुनिया की नजर में एक संत, एक कवि, एक भक्त कहलाने वाले लेकिन गीता, वेद, कुरान, पुराण, बाइबल के बखान में स्वयं परमपिता परमेश्वर कबीर साहेब स्पष्ट होने वाले कबीर, जो खुद संत रूप में वेदों में छुपे हुए गूढ़ रहस्य को उजागर करने के लिए अपने निज स्थान सतलोक से मृत्युलोक मे सशरीर आए और कवि रूप में प्रसिद्ध होकर, अक्षर ज्ञान ना होने के बावजूद 33 खरब वाणी बोली, और उन्ही अनगिनत वाणियों मे से एक वाणी से ये स्पष्ट किया कि ..

तीन गुणों की भक्ति में, भूल पड़ो संसार ।
कहे कबीर निज नाम बिना, कैसे उतरे पार।।

अर्थात प्राणी, इन तीन गुणों रजोगुण - ब्रह्मा जी, सतोगुण - विष्णु जी, तमोगुण - शिव जी को ही सर्वश्रेष्ठ मानकर इनकी भक्ति करके दुखी हो रहे है ।

जबकि वास्तविक परमात्मा तो कोई और है और उसकी भक्ति किये बिना हम कभी इस मायारुपी, भवसागर, संसार मे सुखी नहीं हो सकते। हमारी आत्मा का उद्धार नहीं हो सकता और ना ही हमारा मोक्ष हो सकता है।

आज हम तीन गुणों का वह भेद रहस्य आपके सामने उजागर करने जा रहे हैं जिसे आज तक परम पूज्य जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सिवाय किसी भी संत, महंत, ज्ञानी, पंडित, वेद शास्त्रों का ज्ञाता, पवित्र गीता का अध्ययन करने वाला, भी नहीं बता सका कि पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 के 4 से 6 श्लोक तक मे श्री ब्रह्मा, श्रीविष्णु, श्रीशिव ही तीन गुणों के मालिक है और इनकी उत्पत्ति क्षर पुरुष (काल ब्रह्म) और प्रकृति (दुर्गा) के संयोग से हुई है।

कबीर साहेब की तीन गुणों के संदर्भ में बोली गई वाणी का समर्थन सदग्रंथ भी कर रहे है कि, भक्ति केवल और केवल पूर्ण परमात्मा की ही फलित है जो तत्वदर्शी संत द्वारा संचालित हो, तीन गुण रूपी ब्रह्मा, विष्णु, महेश देवताओं की भक्ति तो मायास्वरूप होने से व्यर्थ है ।

अब, यहां जब सदग्रंथों का जिक्र हो ही गया है तो चलिए इस तथ्य की सत्यता को पवित्र धर्मग्रंथों से परखते हैं।

धर्मग्रंथों मे प्रमाण, ब्रह्मा, विष्णु, शिव ही है - तीन गुण

"तीनों गुण रजोगुण ब्रह्मा जी, सतोगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी हैं। ब्रह्म (काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न हुऐ है तथा यह तीनों नाशवान है"

प्रमाण

सबसे पहले हिंदू धर्म मे सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ पवित्र श्रीमद भगवद्गीता के कुछ प्रमाण सामने आते हैं।

पवित्र गीता अध्याय १४ श्लोक २०, में कहा गया है,

गुणान्, एतान्, अतीत्य, त्रीन्, देही, देहसमुद्भवान्,
जन्ममृत्युजरादुःखै, विमुक्तः, अमृृतम्, अश्नुते।।२०।।

जब शरीरधारी, जीवाआत्मा, प्रकृति से उत्पन्न इन तीनों गुणों अर्थात्, रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी से पार हो जाता है तब वह पूर्ण परमात्मा की शास्त्र विधि अनुसार भक्ति करके जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और सब प्रकारके दुःखों से मुक्त हो कर परमानन्द को, अर्थात् पूर्ण मुक्त होकर अमरत्व, आनन्द को प्राप्त करता है।

अतः तीन गुणों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की भक्ति सर्वोत्तम नहीं हैं। पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर ब्रह्म) की ही भक्ति करने से जीवात्मा त्रिगुण माया से मुक्त होती है। और मोक्ष प्राप्त कर लेती है, अतः जरा-मरण (वृध्दावस्था और मृत्यु) और कर्म बंंधन के इस घिनौने जाल में वापस नहीं आती।

श्रीमद् भगवत गीता अध्याय १३ श्लोक २१ में प्रकृति और पुरुष और इनसे ही उत्पन्न, तीन गुणों रजस्, सत्व, तमस के अस्तित्व का प्रमाण मिलता है।

श्लोक २१

जिसमे गीता ज्ञान दाता (काल/क्षर पुरुष) कहता है “हे अर्जुन! परम अक्षर ब्रह्म (सतपुरुष), जो सूर्य की तरह सर्वव्यापी है और प्रकृति (दुर्गा / माया / अष्टंगी) में भी विराजमान है।

प्रकृति से जन्मे इन तीनों गुणों (रजोगुण-ब्रह्मा, सतोगुण-विष्णु, और तमोगुण-शिव) व उनके भोगियों में, उनके प्रमुख भी परमात्मा (परम अक्षर ब्रह्म / पूर्ण ब्रह्म/ उत्तम पुरुष/) ही हैं। यही पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर सर्व लोको मे व्याप्त सभी चीटी से लेकर हाथी तक के सभी जीवो का पालनहार है।

अर्थात इस श्लोक से प्रत्यक्ष हो जाता है कि पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर कोई और ही है जो प्रकृति (देवी दुर्गा), पुरुष (काल) और इन तीन गुण रजोगुण-ब्रह्मा, सतोगुण-विष्णु, और तमोगुण-शिव भगवान के भी उपर है। जिसकी भक्ति सर्व पाप नाशक है।

अर्थात तीन गुण के भयंकर मायाजाल रूपी साधना में जीव अनगिनत जन्म से उलझ्ता रहा है और कभी मोक्ष मार्ग को नहीं पा सका। जिससे शरीरधारी जीवआत्मा मुक्त हो सके। आइए दूसरा प्रमाण देखते हैं।

प्रमाण श्री शिवमहापुराण

यहां हर व्याख्या संभव नहीं इसलिए कुछ जगह पर कथन उपस्थित है आप स्वयं मिलान करें।

श्री शिवमहापुराण

गोरखपुर से प्रकाशित श्री शिवमहापुराण जिसके संपादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार पृष्ठ संख्या 110 अध्याय 9 रुद्र संहिता कथन है "इस प्रकार ब्रह्मा विष्णु तथा शिव देवताओं में गुण है"

प्रमाण श्रीमद् देवी भागवत पुराण

गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद्देवीभागवत पुराण के संपादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार चिमनलाल गोस्वामी तीसरा स्कंध अध्याय 5 पेज 123 भगवान विष्णु ने दुर्गा की स्तुति की:

कहा कि: मैं (विष्णु), ब्रह्मा तथा शंकर तुम्हारी कृपा से विद्यमान है। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) और तिरोभाव (मृत्यु) होती है हम नित्य (अविनशी) नहीं है तुम ही नित्य हो, प्रकृति हो, सनातनी देवी हो।

भगवान शंकर ने कहा:

यदि भगवान ब्रह्मा तथा भगवान विष्णु तुम्ही से उत्पन्न हुए है तो उन के बाद उत्पन्न होने वाला मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या मैं तुम्हारी संतान नहीं हुआ अर्थात मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम ही हो।

इस संसार की सृष्टि-स्थिति-संहार में तुम्हारे गुण सदा सर्वदा है।

इन्हीं तीन गुणों से उत्पन्न हम ब्रह्मा विष्णु और शंकर नियमानुसार कार्य करने में तत्पर है।

यही प्रमाण देखे श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के सभाषटीकम् समहात्यम्, खेमराज श्रीकृष्णदास प्रकाश मुम्बई, इसमें संस्कृत सहित हिंदी अनुवाद किया गया है।

अध्याय 4 पेज 10 श्लोक 42:

ब्रह्मा जी के वचन दुर्गा जी से

हिन्दी अनुवाद:- हे मात् ! ब्रह्मा, मै तथा शिव तुम्हारे ही प्रभाव से जनमवान है, नित्य नहीं है, अर्थात् हम अविनाशी नहीं है, फिर अन्य इन्द्रादि दूसरे देवता किस प्रकार नित्य (अविनाशी) हो सकते हैं।

पेज 11 से 12 अध्याय 5 श्लोक 8

भगवान शंकर बोले:- हे मात ! यदि हमारे ऊपर आप दया युक्त हो तो मुझे तमोगुण क्यों बनाया, कमल से उत्पन्न ब्रह्मा को रजोगुण किस लिए बनाया, विष्णु को सतोगुण क्यों बनाया

अर्थात जीवो को जन्म मृत्यु रूपी दुष्कर्म मे क्यों लगाया??

अतः स्पष्ट रूप से प्रमाण आधार पर यह स्पष्ट हुआ कि

तीन गुण, रजोगुण (रजस) ब्रह्मा, सतोगुण (सत्व) विष्णु, और तमोगुण (तमस) शिव हैं। इन्होंने ब्रह्मा (काल, शैतान) व प्रकृति (दुर्गा देवी) से जन्म लिया है और ये तीनों ही अमर नही यानि नाशवान हैं।

अन्य प्रमाण

संक्षिप्त मार्कंडे पुराण गीता प्रेस गोरखपुर, गोविंद भवन कार्यालय, कोलकाता संस्थान द्वारा प्रकाशित और प्रिंटर,

मार्कंडे पुराण पृष्ठ १२३

मार्कंडे जी ने कहा “रजोगुण ब्रह्मा पर हावी है, तमोगुण रुद्र (शिव) पर हावी है और सतोगुण का प्रभुत्व इस पृथ्वी के संचालक, विष्णु पर है। यही तीन देवता है और यही तीन गुण हैं।”

नोट: उपर्युक्त पवित्र सदग्रंथो के प्रमाणों से सिद्ध होता है कि तीनों गुण रज, सत्व और तमस क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और शिव हैं, जो काल (ब्रह्म) और दुर्गा (माया / प्रकृति) से पैदा हुए हैं। सारा संसार माया के चक्रव्यूह में गुमराह है। ये स्वयं अजर-अमर नहीं हैं, ये तीनों नाशवान हैं। दुर्गा के पति ब्रह्म (काल) हैं। यह भी प्रमाणित हो गया कि दुर्गा (माया) और ब्रह्म (काल) दोनों ही सशरीर हैं।

जब यह तीनों ही देवता श्री ब्रह्मा,श्री विष्णु, श्री शंकर और मां दुर्गा और इनसे ऊपर क्षर पुरुष, गीता ज्ञान दाता काल नाशवान है तो उनके उपासक कैसे जरा-मरण से मुक्त हो सकते हैं ?

तीन गुणों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की पूजा निरर्थक

श्रीमद्भगवद् गीता - केवल मूर्ख मनुष्य अन्य देवताओं (रजोगुण ब्रह्मा, सतोगुण विष्णु, और तमोगुण शिव) की पूजा करते हैं।

गीता अध्याय ७ श्लोक १५ में तीन गुणों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की पूजा निरर्थक बताई है

अध्याय ७ श्लोक १५

न, माम्, दुष्कतिनः, मूढाः, प्रपद्यन्ते, नराधमाः,
मायया, अपहृतज्ञानाः, आसुरम्, भावम्, आश्रिताः।।१५।।

अनुवाद:- जो माया के द्वारा, अर्थात् रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिव जी रूपी त्रिगुणमई माया की साधना से, होने वाला क्षणिक लाभ पर ही आश्रित हैं, जिनका ज्ञान इन त्रृगुणी माया की भक्ति से हरा जा चुका है जो मेरी अर्थात् काल ब्रह्म की साधना भी नहीं करते, इन्हीं तीनों देवताओं तक सीमित रहते हैं, ऐसे असुर स्वभाव को धारण किये हुए मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करनेवाले मूर्ख, मुझको भी नहीं भजते अर्थात् वे तीनों गुणों (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिव) की साधना ही करते रहते हैं।

उपर्युक्त गीता जी के प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि त्रिगुणमई माया ब्रह्मा, विष्णु और शिव की पूजा निरर्थक है और इनसे ऊपर है ब्रह्म काल पुरुष के भक्ति जो उच्च श्रेणी के परमेश्वर प्राप्ति के इच्छुक व्यक्ति ही करते हैं ।

श्रीमद भगवत गीता के तथ्यात्मक विवरण में आगे और भी व्यथित करने वाला ज्ञान स्पष्ट होता है जहां काल ब्रह्म ने, श्रीमद्भगवत गीता के अध्याय ७ श्लोक १८ में, अपनी ही भक्ति को भी अनुत्तम (हीन/बुरा) बताया है। कृपया मिलान करें।

निश्चित ही इन महत्वपूर्ण प्रमाणों के विवरण ने आपके मन में ये सवाल उत्पन्न किया होगा की आखिर वह सर्वोच्च शक्ति कौन है जो माया के जाल को काट सकती है?

इस संदर्भ मे समाधान भी श्रीमद्भगवद् गीता ही प्रदान करती हैं। भक्ति की उस सही विधि, पूजा के योग्य उस भगवान का उल्लेख करती है जिसके द्वारा तीनों गुण (रजोगुण, सतोगुण, तमोगुण) का प्रभाव शून्य हो जाता है और आत्माएँ काल के जाल से मुक्त हो जाती हैं।

पवित्र श्रीमदभगवद गीता अध्याय 7 श्लोक 19 के इस मंत्र में काल ब्रह्म कह रहा है कि मेरी साधना भी कई जन्मों के बाद कोई कोई ही करता है नहीं तो नीचे के त्रिगुण देवता श्री ब्रह्माजी, श्री विष्णु जी, श्री शिव जी तथा अन्य देवताओं, भूतों, पितरों तक की भक्ति से ऊपर इनकी बुद्धि नहीं होती। परंतु यह बताने वाला तत्वादर्शी संत बहुत दुर्लभ है कि पूर्ण परमात्मा ही पूजा के योग्य है,वह सर्व सृष्टि रचनहार है। वही सब का धारण पोषण करने वाला सर्वशक्तिमान है। वास्तव में वही वासुदेव है। इसलिए सर्व का पालन करता भी पूर्ण ब्रह्म ही है। उसके बारे मे मैं भी नहीं जानता परंतु मैं भी उसी के अधीन हूं ।

यह व्याख्या करने वाला संत तो दुर्लभ है उसके मिलने से ही पूर्ण मोक्ष होगा। अन्यथा काल जाल में ही प्राणी तीनों देवताओं की भक्ति करते हुए फंसे रहेंगे।

निष्कर्ष

अतः दिये गये प्रमाणित वर्णन से एक महत्वपूर्ण बात जो स्पष्ट होती है कि सदग्रंथों मे मिले इन प्रमाणों ने कुछ मुख्य बातें शीशे की तरह साफ कर दी है वह यह है कि

  1. श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु ,श्री शिवजी ही 3 गुण हैं।
  2. दूसरा यह तीनों ही नाशवान प्रभु है ।
  3. तीसरा इनके माता-पिता हैं।
  4. चौथा प्रकृति ही दुर्गा देवी है।
  5. पांचवा इन सभी की भक्ति से ऊपर क्षर पुरुष। गीता ज्ञान दाता काल की भक्ति है ।
  6. गीता ज्ञान दाता क्षर पुरुष ने पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर की भक्ति को ही सर्वश्रेष्ठ और जरा-मरण से मुक्त होने की भक्ति बताई है।साथ में गीता ज्ञान दाता यह भी स्पष्ट करता है की पूर्ण परमेश्वर की भक्ति केवल तत्वदर्शी संत से ही प्राप्त होती है।

प्रमाण आधारित लिखे गए इस लेख का उद्देश्य शिक्षित समाज को ये बताना है कि त्रिगुणमई माया ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी की पूजा से ओतप्रोत भक्त किस प्रकार दुखो को ही प्राप्त करता चला जाता है और पापकर्म नाशक पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर कबीर साहिब की भक्ति से वंचित होकर 84 लाख प्रकार के योनियो मे कर्म कष्ट भोगने पर मजबूर रहता है।

उपरोक्त प्रस्तुत प्रमाण यही बताते है कि पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर की भक्ति केवल तत्वदर्शी संत से ही प्राप्त होती है और तब जाकर मनुष्य जीवन का उद्देश्य सफल होता है बाकी सब शास्त्राअनुकुल साधना ना होने से व्यर्थ है । और वो संत वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ही है। अब ज्यादा कुछ कहने को शेष नहीं क्योंकि यह कथन ही साबित करता है कि संत रामपाल जी महाराज के सिवा कोई भी धर्म गुरु इस तत्वज्ञान का ज्ञाता नहीं।

अत: साधना Tv शाम 7:30बजे से रोजाना जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज का सत्संग देखकर अपनी अन्य शंकाओं का समाधान भी आप कर सकते हैं, इस लेख को पढ़कर उत्पन्न हो गए सवालों के जवाब ढूंढ सकते हैं, साथ के साथ ग्रंथों में मिलान कर सकते हैं ।

इसके अलावा भी अगर अधिक जानकारी चाहे तो वेबसाइट पर उपलब्ध किसी भी पुस्तक को फ्री डाउनलोड करके अध्ययन करें यह दावा है कि आपको अध्यात्म ज्ञान का वह रहस्य पता चलेगा जिससे आपके मनुष्य जीवन को सही दिशा मिल जायेगी।


FAQs about "तीन गुण - सत्व, रजस और तमस क्या हैं?"

Q.1 त्रिगुण की धारणा क्या है?

तीन गुणों की धारणा प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों से ली गई है। तीन गुण हैं रजगुण, सतगुण और तमगुण। गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित संक्षिप्त मार्कण्डेय पुराण (पृष्ठ संख्या 123) और श्रीमद्भगवद गीता जैसे ग्रंथों के अनुसार, तीन गुण, रजोगुण (रजस) ब्रह्मा, सतोगुण (सत्व) विष्णु, और तमोगुण (तमस) शिव हैं। इन्होंने ब्रह्मा (काल, शैतान) व प्रकृति (दुर्गा देवी) से जन्म लिया है और ये तीनों ही अमर नही यानि नाशवान हैं।

Q.2 भगवद गीता तीन गुणों के बारे में क्या कहती है?

भगवद गीता बताती है कि तीन गुण प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न होते हैं। इसी का वर्णन अध्याय 7 श्लोक 15 में किया गया है कि जिनकी बुद्धि तीन गुणों (त्रिगुण माया) से भ्रमित होती है, वे तीन देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) की पूजा करते हैं। ऐसे व्यक्ति, राक्षसी स्वभाव से प्रेरित होने के कारण, मनुष्यों में सबसे नीच, दुष्ट और मूर्ख माने जाते हैं। जब शरीरधारी, जीवात्मा, प्रकृति से उत्पन्न इन तीनों गुणों अर्थात्, रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी से पार हो जाता है तब वह पूर्ण परमात्मा की शास्त्र विधि अनुसार भक्ति करके जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और सब प्रकारके दुःखों से मुक्त हो कर परमानन्द को, अर्थात् पूर्ण मुक्त होकर अमरत्व, आनन्द को प्राप्त करता है।

Q. 3 क्या गुण स्थायी हैं?

गुणों को तीनों लोकों में सभी जीवित प्राणियों में हर जगह मौजूदगी के कारण गुणों का प्रभाव स्थायी जैसा प्रतीत होता है। लेकिन सतगुरु से नाम दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करके गुणों के प्रभाव से परे जाकर पूर्ण मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

Q.4 तीन गुणों को कैसे कम करें?

पवित्र गीता जी के अध्याय 15 श्लोक 17 में वर्णित परमेश्वर कबीर की भक्ति से तीनों गुणों का कम किया जा सकता है। अध्याय 14 श्लोक 20 के अनुसार पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर ब्रह्म) की ही भक्ति करने से जीवात्मा त्रिगुण माया से मुक्त होती है और मोक्ष प्राप्त कर लेती है, अतः जरा-मरण (वृध्दावस्था और मृत्यु) और कर्म बंधन के इस घिनौने जाल में वापस नहीं आती। इसके अलावा परमेश्वर कबीर जी की शरण पाने की विधि पवित्र गीता जी के अध्याय 15 श्लोक 4 में भी वर्णित है।

Q.5 गुण क्या दर्शाते हैं?

तीन गुण क्रमशः रजगुण, सतगुण और तमगुण हैं, जो कि ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी से जुड़े हैं। रजगुण प्राणियों को प्रजनन के लिए प्रभावित करता है, सतगुण उनके बीच प्रेम और स्नेह को बढ़ावा देता है, जबकि तमगुण प्राणियों में क्रोध, त्याग और हत्या की भावना को जन्म देता है।

Q.6 मैं तीन गुणों से परे कैसे पहुँच सकता हूँ?

पवित्र गीता जी में तीन गुणों की पूजा छोड़कर सर्वोच्च भगवान की पूजा करने को कहा है । सर्वशक्तिमान भगवान कबीर की पूजा करना पार पाने का साधन है और इससे तीनों गुणों के प्रभाव से बचा जा सकता है। स्वयं परमपिता परमेश्वर कबीर साहेब ने वेदों में छुपे हुए गूढ़ रहस्यों को उजागर करने के लिए निज स्थान सतलोक से मृत्युलोक में सशरीर आकर सतगुरु से नाम दीक्षा लेकर भक्ति कर पार उतारने का रहस्य बताया है - तीन गुणों की भक्ति में, भूल पड़ो संसार । कहे कबीर निज नाम बिना, कैसे उतरे पार।।

Q.7 गुणों का उद्देश्य क्या है?

जैसा कि पवित्र गीता में स्पष्ट किया गया है कि तीन गुणों का उद्देश्य जीवित प्राणियों को कर्म के चक्र में फंसाना है, उन्हें मोक्ष प्राप्त करने से रोकना है। गुणों के प्रभाव में बंधकर व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसा रहता है। प्राणी, इन तीन गुणों रजोगुण - ब्रह्मा जी, सतोगुण - विष्णु जी, तमोगुण - शिव जी को ही सर्वश्रेष्ठ मानकर इनकी भक्ति करके दुखी हो रहे हैं । अतः सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की शरण में जाकर नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति करें।


 

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Aryan Singh

भगवान शिव मृत्युंजय, कालिंजय, सर्वेश्वर हैं। उनके समकक्ष कोई अन्य देवता नहीं हो सकता।

Satlok Ashram

देखिए भगवान शिव केवल एक गुण यानि तमगुण युक्त हैं। उसकी भूमिका मनुष्यों को नष्ट करना और अपने पिता के लिए भोजन तैयार करना है। वह जन्म और पुनर्जन्म के चक्र में है। फिर उन्होंने मौत पर जीत हासिल नहीं की है, वह सर्वोच्च ईश्वर नहीं है।

Sudha Gupta

त्रिमूर्ति देवता स्वयंभू हैं।

Satlok Ashram

नहीं, त्रिमूर्ति देवता ब्रह्मा, विष्णु और शंकर स्वयंभू नहीं हैं। इसका प्रमाण श्रीमद्देवीभागवत पुराण के तीसरे स्कंध अध्याय 5 पृष्ठ संख्या 123 में बताया गया है कि काल ब्रह्म और प्रकृति के पुत्र त्रिदेव भगवान जन्म और पुनर्जन्म के चक्र में हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर जी ही स्वयंभू हैं।

Priyanshu Verma

त्रिमूर्ति देवता हिंदू धर्म के आधार स्तंभ हैं। वे अमर और सर्वोच्च हैं।

Satlok Ashram

देखिए त्रिमूर्ति भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश जन्म और पुनर्जन्म के चक्र में हैं। इस कारण न तो वे अमर हैं और न ही सर्वोच्च। केवल पूर्ण परमात्मा कविर्देव ही सर्व ब्रह्माण्डों और आत्माओं के रचयिता है।

Gopal

ब्रह्मा जी जीव को कर्म में आसक्ति में बांधते हैं। वह सर्वोच्च ईश्वर हैं।

Satlok Ashram

देखिए भगवान ब्रह्मा केवल रजगुण युक्त हैं। इसीलिए उनके पास सीमित शक्तियाँ हैं और वह सर्वोच्च ईश्वर नहीं हैं। सर्वोच्च ईश्वर केवल कबीर जी ही हैं।