दत्तात्रेय जी माता अनुसूइया और ऋषि अत्रि के पुत्र थे। दत्तात्रेय जी के पास त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी की शक्तियां थी। परंतु काल प्रेरणा इतनी प्रबल थी कि जिसकी वजह से दत्तात्रेय जी काल ब्रह्म के ही भक्त बने रहे और उसके जाल से मुक्त नहीं हो सके। यह लेख इस बात पर प्रकाश डालेगा कि दत्तात्रेय जी पूर्ण परमेश्वर थे या नहीं। वह मोक्ष से वंचित क्यों रह गए? यहां हम निम्नलिखित बिंदुओ पर चर्चा करेंगे।
संदर्भ: आध्यात्मिक ज्ञान गंगा पुस्तक और सूक्ष्म वेद
सती अनुसूइया ऋषि अत्रि की पत्नी थी, जो अपने पतिव्रता धर्म और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध थी। एक दिन देवऋषि नारद जी भगवान विष्णु जी से मिलने विष्णु लोक में गये। श्री विष्णु जी घर पर नहीं थे, देवी लक्ष्मी घर पर अकेली थीं। देवी लक्ष्मी के साथ बातचीत के दौरान, ऋषि नारद जी ने देवी अनुसूइया की सुंदरता और उनके पति ऋषि अत्री के प्रति उनके पतिव्रता धर्म की बहुत प्रशंसा की, जिसके कारण लक्ष्मी जी अनुसूइया से ईर्ष्या करने लगीं और अनुसूइया के पतिव्रता धर्म को खंड करने की युक्ति के बारे में सोचने लगी।
ऋषि नारद जी जब श्री ब्रह्मा जी के लोक पहुंचे तो ब्रह्मा जी की पत्नी देवी सावित्री घर पर अकेली थी, श्री ब्रह्मा जी उपस्थित नहीं थे। वहाँ भी नारद मुनि ने सती अनुसूइया की सुंदरता और पतिव्रता धर्म का बहुत गुणगान किया और बाद में चले गये। देवी सावित्री भी अनुसूइया से ईर्ष्या करने लगीं और सती अनुसूइया के पतिव्रता धर्म को भंग करने का उपाय सोचने लगी। कुछ समय बाद तीनों देवियाँ (सावित्री, लक्ष्मी और पार्वती) एक-दूसरे से मिलीं और विचार-विमर्श किया कि अनुसूइया का पतिव्रता धर्म कैसे भंग किया जा सकता है। तीनों देवियों में से कोई भी इस सत्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं थी कि पृथ्वी पर कोई स्त्री उनसे भी अधिक सुंदर हो सकती है, जो अपने पतिव्रता धर्म के लिए भी प्रसिद्ध हो।
अनुसूइया की परीक्षा लेने के इरादे से, तीनों देवियों ने अपने अपने पति ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी के आगे अनुसूइया के पतिव्रता धर्म को भंग करने की जिद की। तब तीनों देवताओं ने साधु वेश धारण किया और अनुसूइया से मिलने गये। सती अनुसूइया ने उनका हार्दिक स्वागत किया और पूरे मन से उनकी सेवा की। ऋषि रूप में तीनों भगवान ने अनुसूइया से भिक्षा मांगते हुए कहा कि 'वह नग्न होकर उन्हें दूध पिलाए।' अनुसूइया उनकी गलत मंशा समझ गईं। उसके पास सिद्धि शक्ति थी, जिसके द्वारा उसने तीनों देवताओं को 6-6 महीने के छोटे बच्चे में बदल दिया। फिर उसने उन्हें दूध पिलाया। काफी समय बीत जाने के बाद भी जब त्रिदेव अपने लोक में नहीं लौटे तो देवी सावित्री, लक्ष्मी और पार्वती चिंतित हो गई। वे अपने पतियों की तलाश करने लगीं। उन्होंने इस बारे में ऋषि नारद से चर्चा की, जिन्होंने उनको सुझाव दिया कि वे देवी अनुसूइया से माफी मांगें।
जब त्रिदेवियों ने अपने पतियों को बच्चों के रूप में पालने में झूलते हुए देखा तो वे सती अनुसूइया के पास गईं और उनसे क्षमा मांगी। अनुसूइया ने उन सभी को माफ कर दिया और अपनी सिद्धि शक्ति से बालरूप ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी को उनके मूल रूप में बदल दिया। तब ऋषि अत्रि ने त्रिदेवों को प्रणाम किया। अनुसूइया की निष्ठा से प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। ऋषि अत्रि ने उनसे एक ऐसे पुत्र का आशीर्वाद देने का अनुरोध किया जिसमें तीनो देवताओं के गुण हों, जो उनके समान शक्तियों से सुसज्जित हो। ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी ने उन्हें वैसा ही वरदान दे दिया जिससे माता अनुसूइया और ऋषि अत्रि को दत्तात्रेय नामक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसके तीन मुख थे। एक श्री ब्रह्मा, दूसरा श्री विष्णु और तीसरा श्री शिव जी जैसा था।
ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी की शक्तियां बहुत सीमित है और वो जन्म और मृत्यु के चक्र में है। वे केवल नियम अनुसार ही कार्य कर सकते है। इसका प्रमाण दुर्गा पुराण और शिव पुराण में भी मिलता है। इसी प्रकार, दत्तात्रेय जी के पास भी बहुत सीमित शक्तियाँ थीं। श्रीमद्भगवद गीता अध्याय 18 श्लोक 62 व 66 में कहा गया है कि पूर्ण परमात्मा तो कोई अन्य ही है, जो शाश्वत स्थान में रहता है। वही समस्त ब्रह्माण्डों का रचयिता और मोक्ष प्रदाता है। गीता ज्ञान दाता अर्थात ब्रह्म काल अध्याय 18 श्लोक 64 में सबसे गुप्त ज्ञान बताता है कि 'वह परमेश्वर उसका भी पूजनीय भगवान है'। इसलिए, ईश्वर प्राप्ति के इच्छुक साधकों को मोक्ष प्राप्त करने के लिए किसी तत्वदर्शी संत की शरण में जाकर अंतिम सांस तक सत भक्ति करनी चाहिए।
पवित्र वेद और गीता उस परमेश्वर के गुणों का वर्णन करते है। ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मंत्र 9, ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मंत्र 18, ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 93 मंत्र 2, ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 4 मंत्र 3, गीता अध्याय 2:17 और अध्याय 15:17 तथा और भी कई अन्य स्थानों पर पूर्ण परमात्मा का नाम कविर्देव बताया गया है। वह परमेश्वरों का परमेश्वर है। इससे यह सिद्ध हो गया कि न तो श्री कृष्ण और न ही दत्तात्रेय जी परम शक्ति है।
गुरु के बिना मोक्ष प्राप्ति नहीं हो सकती। दत्तात्रेय जी इस सत्य को भली-भांति जानते थे। इसलिए वो बड़ी गहनता से एक पूर्ण गुरु की खोज में थे और उन्होंने 24 गुरु बनाये थे। अंततः उन्होने सौभाग्य से जोगजीत जी के नाम से आये सत्पुरुष को अपने गुरु के रूप में प्राप्त किया। दत्तात्रेय जी ने पूर्ण संत जोगजीत जी से दीक्षा प्राप्त की। उन्होंने सतनाम भी प्राप्त किया और सच्ची भक्ति की। परंतु, उन्हें सारनाम प्राप्त नहीं हुआ। क्योंकि परमात्मा के काल ब्रह्म के साथ हुए एक करार के अनुसार कलयुग की बिचली पीढ़ी के बीत जाने तक अर्थात 5505 साल बीत जाने तक सारनाम को छिपाकर रखना था।
परमात्मा कबीर जी द्वारा जोगजीत रूप में बताई गई भक्ति से, दत्तात्रेय जी मोक्ष प्राप्त करने के पात्र बन गए। लेकिन मोक्ष का पूरा कोर्स न मिलने के कारण वे ब्रह्म काल के जाल से मुक्त नहीं हो सके और परमात्मा के लोक तक नहीं पहुंच सके। जैसा कि यह वाणी जो सच्चिदानन्द घन ब्रह्म के मुख कमल से निकली है, उसमें स्पष्ट है कि,
नारद मुनि निरताय रहे, दत्त गोरख से को सुच्चा है।
बड़ी सैल अधम सुल्तान करी, सतगुरु तकिया टुक ऊंचा है।।
पवित्र ग्रंथ सद्ग्रंथ साहिब में पूज्य संत गरीब दास जी महाराज ने ‘पारख के अंग’ की वाणी नं. 52 में कहा है,
गरीब, दुर्वासा और मुनिन्द्र का, हुआ ज्ञान संवाद।
दत्त तत् में मिल गए, जा घर विद्या न बाद।।
उपरोक्त लेख से सिद्ध होता है कि मोक्ष प्राप्ति करने के लिए काल की भक्ति अनुचित है।
● ध्यान करके सिद्धियाँ प्राप्त करने के बावजूद भी सती अनुसूइया जी को मुक्ति नहीं मिल सकी और न ही उनके पति ऋषि अत्रि जी को।
● ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी देवता है और उनके पास बहुत सीमित शक्तियाँ हैं।
● देवी अनुसूइया ने त्रिदेवों को 6 महीने के बच्चों में बदल दिया और वे कुछ नहीं कर सके।
● यहां तक कि त्रिदेवो की देवियां सावित्री, लक्ष्मी और पार्वती भी देवी अनुसूइया से कम शक्तिशाली थीं; वे न तो अनुसूइया जी को अपने पतियों को बच्चे बनाने से रोक सकी और न ही उन्हें उनके मूल रूप में वापस ला सकी।
● अहंकार, ईर्ष्या और प्रसिद्धि की भूख आदि बुराइयां ब्रह्म काल के देवताओ में भी व्याप्त है।
● न तो भगवान दत्तात्रेय और न ही श्री कृष्ण पूर्ण परमात्मा है।
● पूर्ण परमात्मा सतपुरुष कबीर साहेब है।
आज पूर्ण परमात्मा कबीर जी फिर से अवतरित हुए है और संत रामपाल जी महाराज जी के रूप में लीला कर रहे है और सारनाम भी प्रदान कर रहे है। जो भी साधक उनसे दीक्षा लेंगे और अंतिम सांस तक सच्ची भक्ति करेंगे तथा सच्ची भक्ति की मर्यादा में रहेंगे, वे अपने मूल निवास शाश्वत लोक सतलोक में जाने के पात्र बन जाएंगे, जहां से लौटकर साधक कभी वापस इस शैतान काल की दुनिया में नहीं आते है और हमेशा के लिए एक सुख और शांतिप्रद जीवन का आनंद लेते है।