17. आदरणीय नानक साहेब जी की वाणी में सृष्टी रचना का संकेत


नानक देव जी की वाणी में सृष्टी रचना का संकेत

श्री नानक साहेब जी की अमृतवाणी, महला 1, राग बिलावलु, अंश 1 (गु.ग्र पृ.839)

आपे सचु कीआ कर जोडि़। अंडज फोडि़ जोडि विछोड़।।

धरती आकाश कीए बैसण कउ थाउ। राति दिनंतु कीए भउ-भाउ।।

जिन कीए करि वेखणहारा।(3)

त्रितीआ ब्रह्मा-बिसनु-महेसा। देवी देव उपाए वेसा।।(4)

पउण पाणी अगनी बिसराउ। ताही निरंजन साचो नाउ।।

तिसु महि मनुआ रहिआ लिव लाई। प्रणवति नानकु कालु न खाई।।(10)

उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि सच्चे परमात्मा (सतपुरुष) ने स्वयं ही अपने हाथों से सर्व सृष्टी की रचना की है। उसी ने अण्डा बनाया फिर फोड़ा तथा उसमें से ज्योति निरंजन निकला। उसी पूर्ण परमात्मा ने सर्व प्राणियों के रहने के लिए धरती, आकाश, पवन, पानी आदि पाँच तत्व रचे। अपने द्वारा रची सृष्टी का स्वयं ही साक्षी है। दूसरा कोई सही जानकारी नहीं दे सकता। फिर अण्डे के फूटने से निकले निरंजन के बाद तीनों श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी की उत्पत्ति हुई तथा अन्य देवी-देवता उत्पन्न हुए तथा अनगिनत जीवों की उत्पत्ति हुई। उसके बाद अन्य देवों के जीवन चरित्र तथा अन्य ऋषियों के अनुभव के छः शास्त्र तथा अठारह पुराण बन गए। पूर्ण परमात्मा के सच्चे नाम (सत्यनाम) की साधना अनन्य मन से करने से तथा गुरु मर्यादा में रहने वाले (प्रणवति) को श्री नानक जी कह रहे हैं कि काल नहीं खाता।

राग मारु(अंश) अमृतवाणी महला 1(गु.ग्र.पृ. 1037)

सुनहु ब्रह्मा, बिसनु, महेसु उपाए। सुने वरते जुग सबाए।।

इसु पद बिचारे सो जनु पुरा। तिस मिलिए भरमु चुकाइदा।।(3)

साम वेदु, रुगु जुजरु अथरबणु। ब्रहमें मुख माइआ है त्रौगुण।।

ता की कीमत कहि न सकै। को तिउ बोले जिउ बुलाईदा।।(9)

उपरोक्त अमृतवाणी का सारांश है कि जो संत पूर्ण सृष्टी रचना सुना देगा तथा बताएगा कि अण्डे के दो भाग होकर कौन निकला, जिसने फिर ब्रह्मलोक की सुन्न में अर्थात् गुप्त स्थान पर ब्रह्मा-विष्णु-शिव जी की उत्पत्ति की तथा वह परमात्मा कौन है जिसने ब्रह्म (काल) के मुख से चारों वेदों (पवित्र ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) को उच्चारण करवाया, वह पूर्ण परमात्मा जैसा चाहे वैसे ही प्रत्येक प्राणी को बुलवाता है। इस सर्व ज्ञान को पूर्ण बताने वाला सन्त मिल जाए तो उसके पास जाइए तथा जो सभी शंकाओं का पूर्ण निवारण करता है, वही पूर्ण सन्त अर्थात् तत्वदर्शी है।

श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ 929 अमृत वाणी श्री नानक साहेब जी की राग रामकली महला 1 दखणी ओअंकार

ओअंकारि ब्रह्मा उतपति। ओअंकारू कीआ जिनि चित। ओअंकारि सैल जुग भए। ओअंकारि बेद निरमए। ओअंकारि सबदि उधरे। ओअंकारि गुरुमुखि तरे। ओनम अखर सुणहू बीचारु। ओनम अखरु त्रिभवण सारु।

उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि ओंकार अर्थात् ज्योति निरंजन (काल) से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। कई युगों मस्ती मार कर ओंकार (ब्रह्म) ने वेदों की उत्पत्ति की जो ब्रह्मा जी को प्राप्त हुए। तीन लोक की भक्ति का केवल एक ओ3म् मंत्र ही वास्तव में जाप करने का है। इस ओ3म् शब्द को पूरे संत से उपदेश लेकर अर्थात् गुरू धारण करके जाप करने से उद्धार होता है।

विशेष:- श्री नानक साहेब जी ने तीनों मंत्रों (ओ3म्  तत्  सत्) का स्थान - स्थान पर रहस्यात्मक विवरण दिया है। उसको केवल पूर्ण संत (तत्वदर्शी संत) ही समझ सकता है तथा तीनों मंत्रों के जाप को उपदेशी को समझाया जाता है। 

(पृ. 1038)       उत्तम सतिगुरु पुरुष निराले, सबदि रते हरि रस मतवाले।

रिधि, बुधि, सिधि, गिआन गुरु ते पाइए, पूरे भाग मिलाईदा।।(15)

सतिगुरु ते पाए बीचारा, सुन समाधि सचे घरबारा।

नानक निरमल नादु सबद धुनि, सचु रामैं नामि समाइदा (17)।।5।।17।।

उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि वास्तविक ज्ञान देने वाले सतगुरु तो निराले ही हैं, वे केवल नाम जाप को जपते हैं, अन्य हठयोग साधना नहीं बताते। यदि आप को धन दौलत, पद, बुद्धि या भक्ति शक्ति भी चाहिए तो वह भक्ति मार्ग का ज्ञान पूर्ण संत ही पूरा प्रदान करेगा, ऐसा पूर्ण संत बडे़ भाग्य से ही मिलता है। वही पूर्ण संत विवरण बताएगा कि ऊपर सुन्न (आकाश) में अपना वास्तविक घर (सत्यलोक) परमेश्वर ने रच रखा है।

उसमें एक वास्तविक सार नाम की धुन (आवाज) हो रही है। उस आनन्द में अविनाशी परमेश्वर के सार शब्द से समाया जाता है अर्थात् उस वास्तविक सुखदाई स्थान में वास हो सकता है, अन्य नामों तथा अधूरे गुरुओं से नहीं हो सकता।

आंशिक अमृतवाणी महला पहला (श्री गु. ग्र. पृ. 359-360)

सिव नगरी महि आसणि बैसउ कलप त्यागी वादं।(1)

सिंडी सबद सदा धुनि सोहै अहिनिसि पूरै नादं।(2)

हरि कीरति रह रासि हमारी गुरु मुख पंथ अतीत (3)

सगली जोति हमारी संमिआ नाना वरण अनेकं।

कह नानक सुणि भरथरी जोगी पारब्रह्म लिव एकं।(4)

उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि हे भरथरी योगी जी आप की साधना भगवान शिव तक है, उससे आप को शिव नगरी (लोक) में स्थान मिला है और शरीर में जो सिंगी शब्द आदि हो रहा है वह इन्हीं कमलों का है तथा टेलीविजन की तरह प्रत्येक देव के लोक से शरीर में सुनाई दे रहा है।

हम तो एक परमात्मा पारब्रह्म अर्थात् सर्वसे पार जो पूर्ण परमात्मा है अन्य किसी और एक परमात्मा में लौ (अनन्य मन से लग्न) लगाते हैं।

हम ऊपरी दिखावा (भस्म लगाना, हाथ में दंडा रखना) नहीं करते। मैं तो सर्व प्राणियों को एक पूर्ण परमात्मा (सतपुरुष) की सन्तान समझता हूँ। सर्व उसी शक्ति से चलायमान हैं। हमारी मुद्रा तो सच्चा नाम जाप गुरु से प्राप्त करके करना है तथा क्षमा करना हमारा बाणा (वेशभूषा) है। मैं तो पूर्ण परमात्मा का उपासक हूँ तथा पूर्ण सतगुरु का भक्ति मार्ग इससे भिन्न है।

अमृत वाणी राग आसा महला 1 (श्री गु. ग्र. पृ. 420)

।।आसा महला 1।। जिनी नामु विसारिआ दूजै भरमि भुलाई। मूलु छोडि़ डाली लगे किआ पावहि छाई।।1।। साहिबु मेरा एकु है अवरु नहीं भाई। किरपा ते सुखु पाइआ साचे परथाई।।3।। गुर की सेवा सो करे जिसु आपि कराए। नानक सिरु दे छूटीऐ दरगह पति पाए।।8।।18।।

उपरोक्त वाणी का भावार्थ है कि श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि जो पूर्ण परमात्मा का वास्तविक नाम भूल कर अन्य भगवानों के नामों के जाप में भ्रम रहे हैं वे तो ऐसा कर रहे हैं कि मूल (पूर्ण परमात्मा) को छोड़ कर डालियों (तीनों गुण रूप रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिवजी) की सिंचाई (पूजा) कर रहे हैं। उस साधना से कोई सुख नहीं हो सकता अर्थात् पौधा सूख जाएगा तो छाया में नहीं बैठ पाओगे। भावार्थ है कि शास्त्र विधि रहित साधना करने से व्यर्थ प्रयत्न है। कोई लाभ नहीं। इसी का प्रमाण पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में भी है। उस पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने के लिए मनमुखी (मनमानी) साधना त्याग कर पूर्ण गुरुदेव को समर्पण करने से तथा सच्चे नाम के जाप से ही मोक्ष संभव है, नहीं तो मृत्यु के उपरांत नरक जाएगा।

(श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 843.844)

।।बिलावलु महला 1।। मैं मन चाहु घणा साचि विगासी राम। मोही प्रेम पिरे प्रभु अबिनासी राम।। अविगतो हरि नाथु नाथह तिसै भावै सो थीऐ। किरपालु सदा दइआलु दाता जीआ अंदरि तूं जीऐ। मैं आधारु तेरा तू खसमु मेरा मै ताणु तकीआ तेरओ। साचि सूचा सदा नानक गुरसबदि झगरु निबेरओ।।4।।2।।

उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि अविनाशी पूर्ण परमात्मा नाथों का भी नाथ है अर्थात् देवों का भी देव है (सर्व प्रभुओं श्री ब्रह्मा जी,

श्री विष्णु जी, श्री शिव जी तथा ब्रह्म व परब्रह्म पर भी नाथ है अर्थात् स्वामी है) मैं तो सच्चे नाम को हृदय में समा चुका हूँ। हे परमात्मा ! सर्व प्राणी का जीवन आधार भी आप ही हो। मैं आपके आश्रित हूँ आप मेरे मालिक हो। आपने ही गुरु रूप में आकर सत्यभक्ति का निर्णायक ज्ञान देकर सर्व झगड़ा निपटा दिया अर्थात् सर्व शंका का समाधान कर दिया।

(श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721, राग तिलंग महला 1)

यक अर्ज गुफतम् पेश तो दर कून करतार।

हक्का कबीर करीम तू बेअब परवरदिगार।

नानक बुगोयद जन तुरा तेरे चाकरां पाखाक।

उपरोक्त अमृतवाणी में स्पष्ट कर दिया कि हे (हक्का कबीर) आप सत्कबीर (कून करतार) शब्द शक्ति से रचना करने वाले शब्द स्वरूपी प्रभु अर्थात् सर्व सृष्टी के रचन हार हो, आप ही बेएब निर्विकार (परवरदिगार) सर्व के पालन कर्ता दयालु प्रभु हो, मैं आपके दासों का भी दास हूँ।

(श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 24, राग सीरी महला 1)

तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहा आस ऐहो आधार।

नानक नीच कहै बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।

उपरोक्त अमृतवाणी में प्रमाण किया है कि जो काशी में धाणक (जुलाहा) है यही (करतार) कुल का सृजनहार है। अति आधीन होकर श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि मैं सत कह रहा हूँ कि यह धाणक अर्थात् कबीर जुलाहा ही पूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) है।

विशेष:- उपरोक्त प्रमाणों के सांकेतिक ज्ञान से प्रमाणित हुआ सृष्टी रचना कैसे हुई? अब पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति करनी चाहिए। यह पूर्ण संत से नाम लेकर ही संभव है।


 

FAQs : "आदरणीय नानक साहेब जी की वाणी में सृष्टी रचना का संकेत"

Q.1 गुरु नानक देव जी के अनुसार वेद और त्रिदेव की उत्पत्ति कैसे हुई?

गुरु नानक देव जी के अनुसार त्रिदेव (ब्रह्मा , विष्णु और शिव ) और वेदों की रचना परमेश्वर कबीर साहेब जी ने की थी और रचना करने के बाद वेद ब्रह्म काल को दिए थे। इसका राग मारू (अंश) पवित्र वाणी, मेहला 1 (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ संख्या 1037) की वाणी का पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब में भी वर्णन मिलता है।

सुनहु ब्रह्माए बिसनुए महेसु उपाए। सुने वरते जुग सबाए।।

इसु पद बिचारे सो जनु पुरा। तिस मिलिए भरमु चुकाइदा।।(3)

साम वेदुए रुगु जुजरु अथरबणु। ब्रहमें मुख माइआ है त्रौगुण।।

ता की कीमत कहि न सकै। को तिउ बोले जिउ बुलाईदा।।(9)

Q.2 सिख धर्म के अनुसार ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई?

सिख धर्म के अनुसार ब्रह्मांड की रचना सर्वोच्च ईश्वर कबीर साहेब जी ने की थी। उसके बाद कबीर साहेब जी ने पानी की एक बूंद से एक अण्डे की रचना की, जिससे ब्रह्म काल की उत्पत्ति हुई। फिर कबीर जी ने पांच तत्व - जल, वायु,अग्नि, आकाश और पृथ्वी की रचना भी अपनी शब्द शक्ति से की थी। इसी का प्रमाण मेहला 1, राग बिलावलु, अंश 1 (गुरु ग्रंथ साहिब, पृष्ठ संख्या 839) में मिलता है।

आपे सचु कीआ कर जोड़ि। अंडज फोड़ि जोडि विछोड़।।

धरती आकाश कीए बैसण कउ थाउ। राति दिनंतु कीए भउ–भाउ।। जिन कीए करि वेखणहारा।(3)

Q. 3 सिख धर्म के अनुसार "वाहेगुरु" शब्द की रचना कैसे हुई?

जब गुरु नानक देव जी को सतलोक में भगवान कबीर जी उनके असली रूप में मिले थे, तो नानक जी बहुत प्रसन्न हुए थे। उसके बाद परमेश्वर कबीर जी के आदेश पर नानक जी काशी गए और उसी सतपुरुष को जुलाहे के रूप में देखकर उत्साह के साथ "वाहेगुरु" कहा। फिर ईश्वर कबीर साहेब जी ने उन्हें नामदीक्षा दी और सतनाम प्रदान किया था।

Q.4 सिख धर्म में "वाहेगुरु" का वास्तविक नाम क्या है?

सिख धर्म में "वाहेगुरु" का वास्तविक नाम "कबीर" है। गुरु नानक देव जी ने "वाहेगुरु" शब्द का प्रयोग खुशी से सचखंड में भगवान कबीर साहेब जी और उनकी महिमा को देखकर ही किया था।

Q.5 क्या "वाहेगुरु" को भगवान माना जाता है?

हाँ, "वाहेगुरु" का मतलब अविनाशी भगवान से है, जो कि भगवान कबीर जी ही हैं। इसके अलावा गुरु नानक देव जी को जिंदा रूप में भगवान कबीर जी ही मिले थे और कबीर जी ने ही नानक जी को मोक्ष का सच्चा मंत्र दिया था।

Q.6 क्या सिख धर्म के अनुसार "वाहेगुरु" को देखा जा सकता है?

सिख धर्म के अनुसार कोई भी अपने अधिकारी संत से नामदीक्षा लेकर "वाहेगुरु" यानी कि भगवान कबीर जी को देख सकता है। इसके अलावा गुरु नानक देव जी ने भी सच्चे अधिकारी गुरू परमेश्वर कबीर जी से ही नामदीक्षा ली थी।

Q.7 सिख धर्म के अनुसार "वाहेगुरु" ने संसार की रचना कैसे की थी?

सिख धर्म के अनुसार, "वाहेगुरु" यानी भगवान कबीर जी ने अपनी वचन शक्ति से दुनिया और ब्रह्मांड की रचना की थी। उसके बाद उन्होंने पाँच तत्वों और एक अण्डे की भी रचना की थी, जिस अंडे से काल ब्रह्म की उत्पत्ति हुई थी।

Q.8 गुरु नानक देव जी ने भरतरी योगी जी से क्या कहा था?

गुरु नानक देव जी ने भरतरी योगी जी को समझाया था कि वो जो पूजा कर रहे हैं ,उससे भरतरी जी को मृत्यु के बाद शिवनगरी प्राप्त होगी। जबकि गुरु नानक देव जी ने सर्वोच्च ईश्वर कबीर साहेब जी की पूजा की थी। ईश्वर कबीर जी ही सबके पालनकर्ता हैं।


 

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Leena Yadav

सिख धर्म के अनुसार पृथ्वी का निर्माण किसने किया?

Satlok Ashram

सृष्टि की रचना सर्वशक्तिमान कबीर जी ने की थी। इसका प्रमाण पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब में भी है। विस्तार से अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए कृपया हमारी वेबसाइट पर जाएं।

Pushpinder Singh

गुरु ग्रंथ साहिब में सृष्टि के बारे में क्या प्रमाण है?

Satlok Ashram

श्री गुरु ग्रंथ साहिब में लिखी श्री गुरु नानक देव जी की पवित्र वाणी यह सिद्ध करती है कि कबीर साहेब जी ही सर्व ब्रह्माण्डों के रचयिता हैं। कबीर साहेब जी ही नानक जी के गुरु हैं, जिन्होंने उन्हें सच्चे मोक्ष मंत्र दिए और मोक्ष प्रदान किया।

Dinesh Sahu

सृष्टि की रचना वाहेगुरु ने की थी ,लेकिन सृष्टि की तिथि, ऋतु या वर्ष कोई नहीं जानता।

Satlok Ashram

सर्वशक्तिमान ईश्वर कबीर साहेब जी ही असली वाहेगुरु हैं। कबीर साहेब जी की सचखंड में महिमा देखकर नानक जी ने उन्हें वाहेगुरु कहकर संबोधित किया था। कबीर साहेब जी ने ही अपनी शब्द शक्ति से सब कुछ बनाया है, कबीर जी को ही सिख धर्म में 'वाहेगुरु' के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा परमेश्वर कबीर जी ही सभी देवताओं के भगवान हैं और उनके अलावा ब्रह्मांडों की रचना का समय कोई नहीं जानता और न ही बता सकता है।

Deependra Sodh

वाहेगुरु ने ब्रह्मांड में सब कुछ बनाया और ब्रह्मांड में हर चीज के भीतर भी वह मोजूद है, तो इस प्रकार वाहेगुरु प्रकृति है। आखिर 'वाहेगुरु' कौन है?

Satlok Ashram

वाहेगुरु सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी हैं, जो सभी ब्रह्मांडों के निर्माता हैं। वही सब जगह व्यापक हैं, उनकी शक्ति सब पर है, प्रकृति के कण कण में और प्रत्येक जीव में परमेश्वर कबीर जी समाए हैं।