शंका समाधान


प्रश्न उपरोक्त गीता सार से तो सिद्ध होता है कि ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी की पूजा व्यर्थ है। परन्तु मैं तो तीस वर्ष से श्री शिव जी की पूजा कर रहा हूँ तथा भगवान श्री कृष्ण जी मेरे बहुत प्रिय हैं। मैं इन प्रभुओं को नहीं छोड़ सकता, मेरा इनसे विशेष लगाव हो चुका है। श्री गीता जी का नित्य पाठ करता हूँ। हरे राम, हरे कृष्ण, राधेश्याम, सीता राम, ओ3म् नमः शिवाय, ओ3म् नमो भगवते वासुदेवाय आदि नाम जाप करता हूँ। सोमवार का व्रत भी रखता हूँ। कावड़ भी लाता हूँ तथा धामों पर भी दान करने जाता हूँ। मन्दिर में मूर्ति पूजा करने भी जाता हूँ। स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा करता हूँ तथा परम्परागत पूजा के कारण एक महन्त से उपदेश भी ले रखा है।

उत्तर:- कृपया आप पुनर् उपरोक्त ‘गीता सार‘ को पढ़ो, जब तक तत्व ज्ञान से पूर्ण परिचित आप नहीं होगे, तब तक यह शंका रूपी कांटा खटकता ही रहेगा। जैसे ऊपर उदाहरण है कि उलटा लटका हुआ संसार रूपी वृक्ष है, जिसकी मूल (जड़) तो पूर्ण परमात्मा परमेश्वर है। तीनों गुण रूपी (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिव) शाखाऐं है। आपने कोई आम का पौधा लगाया है, यदि पौधे की जड़ (मूल) की सिंचाई (पूजा) करोगे जिससे वृक्ष बनेगा, फिर उसकी शाखाओं को फल लगेंगे। शाखा तोड़ने को थोड़े ही कहा जाता है। यह देखें ‘सीधा बीजा हुआ भक्ति रूपी पौधा अर्थात् शास्त्राविधि अनुसार साधना‘।

इसी प्रकार पूजा तो पूर्ण परमात्मा अर्थात् मूल की करनी है, फिर कर्मफल तीनों गुण (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) रूपी शाखाओं को लगेंगे। इसलिए कुछ भी नहीं छोड़ना है, केवल अपना भक्ति रूपी पौधा सीधा बीजना है अर्थात् शास्त्र विधि अनुसार साधना प्रारम्भ करनी है।

वर्तमान में सर्व पवित्र भक्त समाज शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण कर रहा है अर्थात् भक्ति रूपी पौधा उलटा लगा रखा है। यदि किसी ने ऐसे पौधा बीज रखा हो तो उसे मूर्ख ही कहा जाता है। (कृप्या देखें उल्टा बीजा हुआ भक्ति रूपी पौधे का चित्र) इसीलिए गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 18 तक में तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की पूजा तक ही सीमित बुद्धि रखने वाले जो इनके अतिरिक्त किसी को नहीं पूजते हैं उनको राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दुष्कर्म करने वाले मूर्ख कहा है तथा कहा है कि ये मुझे भी नहीं पूजते। फिर अपनी साधना को भी गीता ज्ञान दाता प्रभु (ब्रह्म अर्थात् क्षर पुरुष) ने अति घटिया (अनुत्तमाम्) अर्थात् व्यर्थ कहा है। इसलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 62, 64, 66 तथा अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में कहा है कि उस पूर्ण परमात्मा (उलटे लटके वृक्ष की मूल की पूजा कर) की शरण में जा, उसकी पूजा तत्वदर्शी संत के बताए मार्ग से कर (गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्वदर्शी संत की तरफ संकेत किया है)। उसी पूर्ण परमात्मा की शास्त्र विधि अनुसार साधना करने से ही साधक परम शान्ति तथा सतलोक को प्राप्त होता है अर्थात् पूर्ण मोक्ष को प्राप्त करता है। गीता ज्ञान दाता प्रभु (क्षर पुरुष-काल) कह रहा है कि मैं भी उसी की शरण हूँ अर्थात् मेरा भी ईष्ट देव वही पूर्ण परमात्मा है, मैं भी उसी की पूजा करता हूँ, अन्य को भी उसी की पूजा करनी चाहिए। आप गीता जी का नित्य पाठ भी करते हो तथा साधना गीता जी में वर्णित विधि के विरुद्ध करते हो। जिन मंत्रों का (हरे राम, हरे कृष्ण, राधेश्याम, सीताराम, ओ3म् नमो शिवाय, ओम नमो भगवते वासुदेवाय आदि मंत्रों का) आप जाप करते हो तथा अन्य साधनाऐं व्रत करना, कावड़ लाना, तीर्थों व धामों पर दान तथा पूजा के लिए जाना, गंगा स्नान तथा तीर्थों पर लगने वाली प्रभी में स्नान पवित्र गीता जी में वर्णित न होने के कारण शास्त्रा विधि त्याग कर मनमाना आचरण (पूजा) हुआ। जिसे पवित्र गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23.24 में व्यर्थ कहा है।


 

Recent Comments

Latest Comments by users
यदि उपरोक्त सामग्री के संबंध में आपके कोई प्रश्न या सुझावहैं, तो कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें, हम इसे प्रमाण के साथ हल करने का प्रयास करेंगे।
Vidhya Verma

श्री कृष्ण जी मुझे भी उतने ही प्यारे हैं, जितने मीराबाई को प्यारे थे। मैं प्रतिदिन गीता जी का पाठ करता हूँ। मेरे अनुसार भगवान कृष्ण जी सर्वोच्च शक्ति हैं।

Satlok Ashram

भगवान श्री कृष्ण जी ने मां के गर्भ से जन्म लिया था और मृत्यु को प्राप्त हुए थे। अब सवाल यह उठता है कि क्या भगवान भी मरते हैं? तो इसका उत्तर यह है कि वह सर्वोच्च शक्ति नहीं है। जब की सच तो यह है कि कृष्ण जी भगवान विष्णु जी के अवतार थे। यह भगवान जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं। इसके अलावा मीराबाई भी जब सच्चाई से अवगत हुईं थी की श्री कृष्ण जी से ऊपर कोई और सर्वश्रेष्ठ परमात्मा है तो उसने भी श्री कृष्ण जी की भक्ति करनी छोड़ दी थी। मीराबाई जी को पूर्ण परमेश्वर कबीर जी मिले थे और सच्चा ज्ञान दिया था। फिर उन्हें पता चला कि श्री कृष्ण जी शक्तिशाली भगवान नहीं हैं, पूर्ण परमेश्वर तो कबीर साहेब जी स्वयं हैं। उन्होंने पूर्ण परमेश्वर कबीर जी की शरण ली थी और जब तक जीवित रहीं कबीर साहेब की सच्ची भक्ति की।

Nidhi Shukla

क्या ब्रह्म काल की पूजा करके स्वर्ग प्राप्ति हो सकती है?

Satlok Ashram

ब्रह्म काल का मंत्र ॐ है इसीलिए ब्रह्म काल की साधना करने से साधक को स्वर्ग नहीं बल्कि ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। ब्रह्मलाेक जाने के बाद भी मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। इस तरह वह जन्म मृत्यु के चक्र में फंसा रहता है। केवल एक ईश्वर की पूजा करनी चाहिए जो सर्वव्यापी व सर्वशक्तिमान है। उस पूर्ण परमेश्वर का नाम कबीर है और वह अमरलोक में रहता है। स्वर्ग की प्राप्ति की इच्छा करना व्यर्थ है ऐसा करने वाले सदा काल जाल में फंसे रहते हैं।

Jatin Singh

मैं भगवान शिव जी का उपासक हूं और श्री कृष्ण जी के प्रति मेरी गहरी आस्था है। यही मुक्तिदाता भगवान हैं।

Satlok Ashram

भगवान कृष्ण जी भगवान विष्णु जी के अवतार थे। भगवान विष्णु जी और शिव जी दोनों ही नाशवान हैं। वे जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं। तो सोचने वाली बात यह है कि फिर उनके उपासकों को कैसे मुक्ति मिल सकती है? इन दोनों में से कोई भी सर्वशक्तिमान भगवान नहीं हैं, इनकी शक्तियां भी सीमित हैं। इस तरह उनकी पूजा करना मानव जन्म की बर्बादी करना है। हमें केवल सभी ब्रह्मांडों के रचयिता परमेश्वर कबीर साहेब जी की पूजा करनी चाहिए। प्रमाण के लिए देखें गीता अध्याय 18 श्लोक 62 और अध्याय 15:1-4 ।