लोग नास्तिक क्यों हैं

लोग नास्तिक क्यों हैं

क्या भगवान अस्तित्व में है? क्या भगवान के अस्तित्व का कोई प्रमाण है? क्या किसी ने कभी भगवान को देखा है? हम कहां से आए हैं? हम मृत्यु के बाद कहाँ जाते हैं?

ये कुछ सवाल हैं जिन्होंने निश्चित रूप से हमारे दिमाग को किसी न किसी स्तर पर फंसाया है चाहे हम खुद को आस्तिक कहें या नास्तिक। हालाँकि हम आज तक इन सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं खोज पाए हैं।

सभी धार्मिक नेता, संत और पुजारी परमात्मा के बारे में किए गए दावों का समर्थन करने के लिए पर्याप्त प्रमाण देने में विफल रहे हैं। विज्ञान की उन्नति के कारण, इनमें से कुछ दावे तर्क की कमी होने से और अधिक प्रश्न उठाते हैं। इसके अलावा संतों और महात्माओं द्वारा किए गए दावों में बड़े पैमाने पर अस्पष्टता है जो एक ही धर्मशास्त्रीय पृष्ठभूमि से निकले हुए हैं, वे हिंदू धर्म हो, ईसाई धर्म हो, इस्लाम आदि हो जो निस्संदेह किसी व्यक्ति को धार्मिक ग्रंथों की मान्यता पर संदेह करने और भगवान के अस्तित्व के बारे में सवाल उठाने के लिए मजबूर करते हैं, कभी-कभी उन्हें नास्तिक बना देते हैं।

इस लेख में भगवान के अस्तित्व (होने) या अनस्तित्व(न होने) के बारे में अधिकांश शंकाओं को स्पष्ट किया गया है, वह भी ठोस प्रमाणों के साथ।

आस्तिकता और नास्तिकता का अर्थ और परिभाषा क्या है?

इससे पहले कि हम यह समझाने में तल्लीन हो जाएं कि लोग नास्तिक क्यों बन जाते हैं, आइए हम परिभाषित करते हैं कि आस्तिकता और नास्तिकता क्या है।

"आस्तिकता" कम से कम एक ईश्वर और उससे सम्बंधित सभी गुणों के अस्तित्व में विश्वास करना है। दूसरी ओर, “नास्तिकता”, ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास का अभाव है।

क्या नास्तिक को कुछ विश्वास होता है?

लोगों में प्रचलित विश्वास के सिद्धांतों की एक श्रृंखला है। विस्तृत श्रेणी के एक छोर पर ऐसे लोग हैं जो ज्ञान की बजाए श्रद्धा पर विश्वास करते हैं, जिन्हें "आस्थावादी"(श्रद्धालु) कहा जाता है, जबकि दूसरे छोर पर वे लोग हैं जो इस विश्वास में कि जीवन निरर्थक है, सभी धार्मिक और नैतिक सिद्धांतों को अस्वीकार करते हैं, जिन्हें "विनाशवादी" कहा जाता हैं। नास्तिक निश्चित रूप से आस्था की निंदा करते हैं क्योंकि वे धार्मिक ग्रंथों में उल्लिखित कथनों और कथाओं को असत्य मानते हैं। वे नर केंद्रित(मानव जीवन को प्रमुख मानने वाले) होते हैं क्योंकि वे मनुष्यों और उनके अस्तित्व को ब्रह्मांड में सबसे महत्वपूर्ण और मुख्य तथ्य मानते हैं। स्वर्ग या नरक की अवधारणा उनके लिए बिल्कुल मायने नहीं रखती।

नास्तिकता के बारे में तथ्य और आंकड़े

इस तथ्य के बावजूद कि नास्तिकता दुनिया भर में लोकप्रियता हासिल कर रही है, कोई भी वैज्ञानिक गणना या सिद्धान्त मृत में प्राण डालने में सक्षम नहीं हुआ है। बिग बैंग थ्योरी सहित ब्रह्माण्ड के निर्माण की शुरुआत के बारे में सभी प्रचलित सिद्धांत मूल प्रश्न का उत्तर देने में विफल हैं कि जीवन कैसे अस्तित्व में आया? अभी भी ये सिद्धांत हैं और इस दावे का समर्थन करने के लिए वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी है।

नास्तिक, अन्य अधिकांश तर्कवादियों की तरह अपने अस्तित्व की व्याख्या नहीं कर सकते हैं; और दुनिया के सभी वैज्ञानिकों के पास अभी भी इस मूल प्रश्न का कोई जवाब नहीं है, "माँ के गर्भ में कौनसी वस्तु कोशिका में प्राण डालती है जो मनुष्य शरीर का निर्माण करता है?" जो ध्यान में रखने योग्य है।

नास्तिकता और आस्तिकता का इतिहास: नास्तिकता अस्तित्व में क्यों आई?

पहले के युगों में, सभी को ईश्वर पर भरोसा था। वे पवित्र शास्त्रों के अनुसार भगवान की पूजा करते थे। आध्यात्मिक और साथ ही जीवन के बारे में सामाजिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए बच्चों को गुरुकुल (स्कूलों) में भेजा जाता था। हजारों वर्षों में धीरे धीरे गिरावट होने से, आध्यात्मिक कमी हुई। धीरे-धीरे पवित्र ग्रंथों में भी मिलावट होने लगी।  स्वार्थी पुजारियों ने अपने स्वयं के अनुसार झूठे और मनमाने ज्ञान का प्रचार करना शुरू कर दिया।  लोगों ने तीर्थयात्रा करना, उपवास रखना और पत्थरों(मूर्तियों) की पूजा करना शुरू कर दिया और परिणामस्वरूप भगवान से दूर होते गए। भगवान की पूजा करने की ये सभी विधियाँ पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता और वेदों में निषिद्ध हैं। इससे धीरे-धीरे ईश्वर की आराधना से प्राप्त होने वाले लाभों में गिरावट हुई और ईश्वर में आस्था खत्म होती गयी। जब लोगों को भक्ति से लाभ मिलना बंद हो गया, तो उनका विश्वास कमजोर पड़ गया। उन्होंने सोचा जब हमें अपने कर्मों का फल प्राप्त करना है, तो भगवान की पूजा करने की क्या/क्यों आवश्यकता है?

आधुनिक दिनों विज्ञान के आगमन ने इस अवधारणा को "तर्क और सबूत" की दीवार में संलग्न करके आग में ईंधन डाला, जो कि वे आज तक खोज और साबित करने में असमर्थ रहे हैं, क्योंकि उनके परीक्षण का तरीका गलत है।

वास्तविक शब्द नास्तिकता 16 वीं शताब्दी में उजागर हुआ। गैर-विश्वासियों ने दावा किया कि नास्तिकता आस्तिकता से अत्यधिक तुच्छ स्थिति है और हर कोई देवताओं में विश्वास के बिना पैदा हुआ है।

आस्तिक बनाम नास्तिक; कौन सही है, आस्तिक या नास्तिक? नास्तिक किसी भी परमेश्वर में बिल्कुल भी विश्वास नहीं करते। उनके तर्कों में से एक "थियोडीसी" पर आधारित है जो यह बताती है, जब विश्व में बुराई है तो भगवान कैसे अस्तित्व में हो सकते हैं? एक और दूसरा तर्क "अस्तित्ववाद" पर आधारित है, एक मान्यता है जो कहती है कि दुनिया का कोई अर्थ नहीं है और प्रत्येक व्यक्ति अकेला है और अपने स्वयं के कार्यों के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है जिसके द्वारा वे अपने चरित्र का निर्माण करते हैं। वे "तर्कवाद" की ओर झुकते हैं जिसमें कार्य और विचार भावनाओं या धर्म के बजाय ज्ञान पर आधारित होते हैं। 

दूसरी तरफ आस्तिक लोग ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हैं। सच्चाई यह है कि आस्तिक लोगो मे बहुत सी मान्यताए हैं जो उनकी धार्मिक नीति के कारण प्रचलित हैं। एक मान्यता दूसरे के साथ मेल  नहीं खाती या कम से कम एक की व्याख्या दूसरे के साथ नही मिलती है। उदाहरण के लिए हिंदू धर्म लीजिये। अधिकतर हिंदू 3 देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में विश्वास करते हैं, कुछ देवी दुर्गा में विश्वास करते हैं, कुछ एक परमेश्वर में विश्वास करते हैं जबकि ऐसी संख्या के लोग भी हैं जो 33 करोड़ देवताओं में विश्वास करते हैं। मुसलमान एक भगवान "अल्लाह" में विश्वास करते हैं, लेकिन वे अल्लाह के बारे में और कुछ नहीं जानते। उनके लिए अल्लाह बेचून/निराकार है और अपने दूतों के माध्यम से बतलाता है और कभी भी साकार रूप में प्रकट नहीं होता। सिख भी एक ईश्वर में विश्वास करते हैं, लेकिन उनके पास उस भगवान के लिए कोई नाम नहीं है। उनके लिए भी, भगवान निराकार है। इसी तरह ईसाई गुमराह हैं। उनमें से आधे यीशु को ईश्वर मानते है, लेकिन बाकी के आधे लोग उन्हें "परमात्मा की सन्तान" कहते हैं। इसके बावजूद, वे अभी भी उन्हें निराकार मानते हैं।

इस मामले की सच्चाई यह है कि विभिन्न धर्मों में मौजूद मान्यताएं उसके बिल्कुल विपरीत है जो उनके पवित्र शास्त्रों में उल्लिखित हैं। उनमें से कोई भी अपने शास्त्रों को ठीक से समझने में सक्षम नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप वे सभी अंधकार में हैं।

यह एक बड़ा सवाल सामने लाता है कि "आस्तिक" किसे कहा जाना चाहिए?  क्या केवल ईश्वर में विश्वास किसी को "आस्तिक" की श्रेणी में लाता है, भले ही उनकी सभी प्रथाएं और मान्यताएं धार्मिक शास्त्रों में बताए गए आदेशो/निर्देशों के विपरीत हों?  हालाँकि, ये दोनों समूह किसी भी लाभ को प्राप्त करने में विफल होते हैं, चाहे वे भगवान में विश्वास करते हों या नहीं, क्योंकि उनकी भक्ति की विधि गलत है। इसलिए झूठी भक्ति विधि नास्तिकता को बढ़ावा देती है।

अब नास्तिक और आस्तिक को क्या करना चाहिए?

मानव जीवन का परम उद्देश्य जन्म और मृत्यु के चक्र से पूरी तरह मुक्ति प्राप्त करना है। यह हमारे पवित्र शास्त्रों में बताए गए मार्ग पर चलने और एक पूर्ण संत (जो आध्यात्मिक गुरु संत रामपाल जी हैं) से दीक्षा लेकर ही संभव है।

हिन्दू धर्म

वेदों का श्रेय हिंदू धर्म को दिया जाता है और उन्हें सर्वोत्तम/परम ज्ञान माना जाता है लेकिन वे केवल हिंदू धर्म तक ही सीमित नहीं हैं, क्योंकि वेद किसी भी धर्म के अस्तित्व में आने से पहले से ही मौजूद थे। इसलिए वेद संपूर्ण मानव जाति के लिए हैं। पहले सभी लोग वेदों का पालन करते थे और वेदों के अनुसार भक्ति करते थे और गुरु से दीक्षा लेने के बाद 'ओम' मंत्र का जाप करते थे।  लेकिन क्योंकि ओम मंत्र भी अधूरा है, इसलिए उन्होंने अपनी भक्ति से पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं किया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनके गुरु वेदों के सार को समझ नहीं पाए।

उदाहरण के लिए ऋग्वेद में लिखा है कि केवल एक ही भगवान है जिसका नाम कबीर (कविर्) है।  वह अविनाशी है और मनुष्य जैसा दिखता है। वह अपने अमर स्वर्ग अर्थात् सतलोक में रहता है। वह सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माता हैं।

इस्लाम

इसी तरह, कुरान शरीफ और कुरान मजीद में सूरत-अल-फुरकान 25, आयत 52-59 में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अल्लाह कबीर है।  उसने संपूर्ण सृष्टि की रचना की है। वह मानव सदृश्य है। आगे कहा गया है कि यदि आप उस परमपिता परमात्मा की भक्ति की सही विधि के बारे में जानना चाहते हैं, तो एक पूर्ण संत (बाख़बर) के पास जाएँ जो आपको अल्लाह कबीर तक पहुँचने का सही रास्ता बताएगा।  लेकिन पूरा मुस्लिम समुदाय मानता है कि अल्लाह निराकार है। इसलिए जब उनकी धारणा ही गलत है तो उनकी भक्ति विधि सही कैसे हो सकती है और अपनी भक्ति से उन्हें लाभ कैसे मिल सकते हैं?

ईसाई धर्म

बाइबल, उत्पत्ति में, यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि परमेश्वर ने मनुष्यों को अपने ही स्वरूप की तरह बनाया है अर्थात् मानव रूप में। लेकिन इसके विपरीत, सभी ईसाई मानते हैं कि भगवान को नहीं देखा जा सकता है। वे परमात्मा को निराकार मानते हैं।  यह सिद्ध करता है कि भगवान के बारे में उनकी पूरी अवधारणा मनमानी है क्योंकि यह पवित्र बाइबल के साथ मेल नहीं खाती है। इसलिए उनकी भक्ति विधि भी पूरी तरह से व्यर्थ है और इसलिए लाभ रहित है।

केवल उन लोगों ने जो परमपिता परमात्मा कबीर जी की सत भक्ति करते थे, ने पूर्ण लाभ प्राप्त किया। गुरु नानक देव जी, दादू साहेब जी, गरीब दास साहिब जी, मलूक दास साहिब जी और कई अन्य सन्तों जैसे प्रसिद्ध संतों ने सत भक्ति की है। भगवान कबीर स्वयं पृथ्वी पर आए, इन पुण्यआत्माओं से मिले और उन्हें अपना सतलोक (शाश्वत स्थान) दिखाया। इन सभी संतों की पवित्र वाणी में सतलोक और भगवान कबीर की महिमा को परिभाषित किया गया है, और उन्होंने भगवान कबीर को प्राप्त करने के लिए भक्ति की सही विधि और एक पूर्ण संत की प्राप्ति के सर्वोपरि महत्व के बारे में भी लिखा है।

वह पूर्ण संत कौन है और उसे कैसे पहचाना जाए?

एक समय में, पृथ्वी पर केवल एक पूर्ण संत होता है। पवित्र वेदों, पवित्र भगवद गीता और अन्य पवित्र ग्रंथों में इस बात का प्रमाण हैं कि जब भी धर्माचरण में गिरावट होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, भगवान या तो स्वयं इस पृथ्वी पर प्रकट होते हैं या अपने परम ज्ञानी संत को भेज कर सत्य ज्ञान के माध्यम से धर्म का पुनः उत्थान करते हैं। वह शास्त्रों के अनुसार सतभक्ति प्रदान करता है।

क्या आस्तिकों और नास्तिकों को भी विचार करने की आवश्यकता है कि संत रामपाल जी क्या उपदेश दे रहे हैं और क्यों?
संत रामपाल जी महाराज आध्यात्मिक क्रांति का कारण बने। उन्होंने हर पवित्र शास्त्र से सच्चा ज्ञान प्रकट किया है और अपने अनुयायियों को भक्ति की सही विधि प्रदान कर रहा है। यह इस सत भक्ति के कारण है कि सभी अनुयायी भक्ति का सही लाभ प्राप्त कर रहे हैं। लाभ दुगना है। एक यह है कि लोग इस दुनिया में बिना किसी दुख, बीमारी, असंतोष आदि के एक संतोषजनक जीवन जी रहे हैं, दूसरे वे मुक्ति के योग्य बन जाते हैं। वास्तव में, सांसारिक सुख इस भक्ति का उपोत्पाद हैं। मुख्य उद्देश्य मुक्ति या मोक्ष है ताकि जन्म और मृत्यु के इस दुख और चक्र को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया जाए।

तो किन्ही कारणों से, यदि कोई व्यक्ति, आस्तिक या नास्तिक संत रामपाल जी से दीक्षा लेता है, तो वह वास्तविक घर सतलोक (शाश्वत स्थान) तक पहुँचने के योग्य हो जाता है और उसे आवश्यक सांसारिक लाभ भी प्राप्त होते हैं।


 

FAQs about "लोग नास्तिक क्यों हैं"

Q.1 सबसे अधिक नास्तिकता वाला देश कौन सा है?

नास्तिकता की सूची में चीन पहले स्थान पर आता है। चीन में लगभग 91% लोग नास्तिक हैं।

Q.2 आस्तिक और नास्तिक कौन होता है?

आस्तिक वह व्यक्ति होता है जो एक ईश्वर में और उसके सभी गुणों में विश्वास करता है। वहीं दूसरी ओर नास्तिक वह व्यक्ति होता है जो यह मानता है कि कहीं कोई ईश्वर नहीं है।

Q. 3 नास्तिक भगवान पर विश्वास क्यों नहीं करते?

निःसंदेह नास्तिक परमात्मा में विश्वास रखने वालों की निंदा करते हैं। नास्तिक लोग तो यह भी मानते हैं कि धार्मिक पुस्तकों में वर्णित दावे और कहानियाँ मनगढ़ंत हैं। इसके अलावा वह इस बात में विश्वास रखते हैं कि लोगों का ब्रह्मांड में होना सबसे महत्वपूर्ण है और यही वास्तविकता है। केवल यही नहीं स्वर्ग या नर्क की धारणा उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं है।

Q.4 क्या नास्तिक व्यक्ति मानव जीवन के अस्तित्व की व्याख्या कर सकता है?

देखिए नास्तिक भी बाकी तर्कवादियों की तरह अपने अस्तित्व की व्याख्या नहीं कर सकते और दुनिया के सभी शोधकर्ताओं के पास अभी भी इस बात का कोई समाधान नहीं है कि, "मां के गर्भ में भगवान कोशिका में ऐसा कौन सा जीवन डालता है कि जिससे मानव शरीर का निर्माण होता है?" यहां तक की बिग बैंग सिद्धांत सहित सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में सभी सिद्धांत भी इस प्रश्न का उत्तर देने में असफल हैं।

Q.5 नास्तिकता संसार में कैसे फैली?

पहले तो सभी लोग ईश्वर में विश्वास किया करते थे और पवित्र शास्त्रों के अनुसार पूजा भी करते थे। लेकिन धीरे–धीरे लोगों ने शास्त्र विरुद्ध पूजा करना शुरु कर दिया परंतु उससे उन्हें कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ। यही कारण था की लोगों के विश्वास में गिरावट आ गई। इस धारणा यानी "तर्क और साक्ष्य" पर चलते हुए आधुनिक विज्ञान उसका गलत इस्तेमाल कर रहा है । 16वीं शताब्दी में नास्तिकता का जन्म हुआ और तो और नास्तिक लोग इस बात पर विश्वास करते हैं कि हर कोई नास्तिक ही पैदा हुआ है।

Q.6 नास्तिकता की जड़ें क्या हैं?

यह बात कड़वी है लेकिन सच्ची भी है कि अज्ञानी धार्मिक नेता, संत और पूजारी अपने भगवान के बारे में अपने विचारों का समर्थन करने के लिए सबूत देने में असफल रहे हैं। इससे हुआ यह की सच्चे संतों द्वारा जब सत्य ज्ञान दिया गया और परमात्मा की सही जानकारी बताई गई तो इस पर सवाल और अस्पष्टता पैदा हो गई। इसके अलावा लोगों को धार्मिक ग्रंथों की प्रमाणिकता पर भी शक होने लगा। केवल यही नहीं इससे ईश्वर के होने पर भी सवाल उठने लगे। इस प्रकार लोगों ने धर्म को अस्वीकार करना शुरू कर दिया।

Q.7 नास्तिकता के तीन प्रकार क्या हैं?

नास्तिकों को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है: गैर-धार्मिक, अविश्वासी और अज्ञेयवादी।


 

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Vinay Katiyar

यदि सच में ईश्वर है तो हम इतने कष्ट क्यों सहते हैं?परमात्मा यदि सच में होता है तो वह हमारे दुख, दर्द और तकलीफों को ठीक क्यों नहीं कर देता?

Satlok Ashram

ईश्वर है, इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन सच तो यह भी है कि हम सभी शैतान काल ब्रह्म की दुनिया में रह रहे हैं । यहां इस लोक में सुख का कोई नामोनिशान नहीं है और हर कोई अपने कर्मों के कारण कष्ट भोग रहा है। यहां सभी लोग मनमानी पूजा करते हैं जो व्यर्थ है। ईश्वर से लाभ प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी की शास्त्रानुकूल भक्ति करनी चाहिए । कबीर परमेश्वर की भक्ति करने से ही मनुष्य को सभी दुखों से छुटकारा मिल सकता है क्योंकि ईश्वर अपने सच्चे भक्तों के सभी दुखों को दूर कर देता है।

Parshant

नास्तिक होने का मतलब यह नहीं है कि आप हर धर्म की जानकारी रखते हैं या फिर आपके पास इस बात का उत्तर है कि दुनिया कैसे बनी या दुनिया का विकास कैसे हो रहा है। इसका मतलब सिर्फ इतना है कि ईश्वर की मौजूदगी के दावे ने आपको अलग बना दिया है।

Satlok Ashram

हम इसे ईश्वर में विश्वास न करने वालों का दुर्भाग्य ही मान सकते हैं कि उन्हें कोई ऐसा सच्चा संत नहीं मिला, जो ईश्वर के बारे में सच्चा ज्ञान जानता हो और सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान बताता हो। उस सच्चे ज्ञान से ही व्यक्ति ईश्वर को पहचानता है और मोक्ष प्राप्त करने के लिए भक्ति करता है।जो लोग ईश्वर में विश्वास नहीं करते,उन्हें तत्वदर्शी संत की शरण में आना चाहिए। लेकिन इसके लिए व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त करने की जरूरत है। इसके लिए आप हमारी वेबसाइट पर जाकर आध्यात्मिक किताबें भी पढ़ सकते हैं और हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब कर सकते हैं।

Babita Sahani

नास्तिकता का मतलब केवल देवताओं में अविश्वास या देवताओं के अस्तित्व को नकारना कदापि नहीं है; बल्कि यह देवताओं के होने में विश्वास की कमी है।

Satlok Ashram

आप मानें या न मानें लेकिन सच तो यही है कि नास्तिकता अज्ञानता के कारण उत्पन्न हुई है और ईश्वर में अविश्वास का कारण सदियों से सभी धर्मों के अधूरे धार्मिक गुरुओं द्वारा बताई गई गलत साधना के कारण हुआ है। लेकिन अब सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान से नास्तिकता समाप्त हो सकती है। इसके अलावा जो भक्त भगवान को ढूंढ रहे हैं और उनकी पहचान करना चाहतेे हैं वे लोग अपने पवित्र धार्मिक ग्रंथों को पढ़ सकते हैं। सभी पवित्र ग्रंथों में प्रमाण है कि 'कबीर जी भगवान हैं' जो मानव रूप में हैं और अमरलोक सतलोक में निवास करते हैं।

Robin D'Souza

सकारात्मक (अनुकूलता, सकारात्मकता, लाभप्रदता ) नास्तिकता (शून्यवाद , अविश्वास , संदेह , स्वतंत्र सोच , नास्तिकता, नकारात्मक ) नास्तिकता क्या है?

Satlok Ashram

सकारात्मक सोच कहती है की ईश्वर है और उन्हें पाया जा सकता है । ईश्वर ने ही मनुष्य और संसार को बनाया। इस बात का प्रमाण पांचों वेदों ,शास्त्रों आदि में वर्णित है। नास्तिकता सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान की कमी का नतीजा है। जबकि सच तो यह है कि ईश्वर की इस ब्रह्मांड में मौजूदगी है और ब्रह्मांड में सब कुछ उसके आदेश से ही चलता है। इस बात की गवाही हमारे सभी धर्म और पवित्र ग्रन्थ भी देते हैं।

Sagar Singh

प्रमाणों को देखकर भी परमात्मा और देवताओं के अस्तित्व को अस्वीकार करना सही नहीं है।

Satlok Ashram

यह सब अज्ञान, मनमानी पूजाएं और नास्तिकता तो हमारे नकली धर्म गुरुओं की मेहरबानी है क्योंकि सदियों से उन्होंने गलत ज्ञान का प्रचार किया है या यूं कहें की हमेशा शास्त्रों के विरुद्ध ज्ञान दिया है जिससे भक्त समाज में केवल निराशा ही और नकारात्मकता ही फैली है। हम सभी कसाई ब्रह्म काल के लोक में रह रहे हैं यहां खुशी का कोई नामों–निशान नहीं है। अब जब मनमानी और शास्त्र विरुद्ध पूजा करने से भक्तों को अपने जीवन में कोई सुख और अन्य लाभ नहीं मिले, तो उनमें घृणा फैल गई और तो और उनको ईश्वर में अविश्वास हो गया। लेकिन सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान से हमें पता चलता है कि ईश्वर है और वह ही सच्चा उद्धारक है। जो लोग धार्मिक शास्त्रों के अनुसार भक्ति करते हैं, वह ही परमात्मा से लाभ प्राप्त कर सकते हैं। ज़ाहिर सी बात है कि जब लोगों को ईश्वर से लाभ मिलते हैं तो उनमें ईश्वर के प्रति विश्वास और अधिक बढ़ता है। इससे यह बात सिद्ध होती है कि नास्तिकता अज्ञानता का परिणाम है।