गुरु ग्रंथ साहेब में साकार परमात्मा का प्रमाण

श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के पष्ठ 567, 1257, 764 पर महला 1 की वाणी है जो निम्न अंकित है। इनमें श्री नानक देव जी ने स्पष्ट किया है कि बड़ा साहिब आप है।

भावार्थ है कि सर्व शक्तिमान परमात्मा के भेद को कोई नहीं जानता मैंने देखा है उसका दर्शन किया है। हे सर्व शक्तिमान परमात्मा ! आप की सुन्दर आँखें हैं। सुन्दर दांत हैं। आप का नाक भी अति सुन्दर है। आप के बाल चमकीले लम्बे हैं। आप का शरीर स्वर्ण जैसा है। आप की चाल मोहक है। आप की वाणी मधुर है, कोयल जैसी सुरीली है। आप सारंग पक्षी के समान ठुमक-ठुमक कर चलते हो। आपके सफेद कपड़े हैं, लम्बा नाक, आँखें काली सुन्दर हैं। क्या किसी आत्मा ने कभी परमात्मा को देखा है ? भावार्थ है कि यदि किसी से परमेश्वर का साक्षात्कार हुआ होता तो उसे निराकार नहीं कहते। फिर पष्ठ 1257 पर महला 3 में यह भी स्पष्ट है कि श्री नानक जी जिसे निरंकार कहा करते थे। वह वास्तव में आकार में मानव सदश है।

गुरु ग्रन्थ साहिब पष्ठ 24 पर महला 1 में कहा है कि

‘‘फाई सुरत मलूकि वेश, उह ठगवाड़ा ठगी देश,
खरा सिआणा बहुता भार धाणक रूप रहा करतार’’

पष्ठ 731 पर महला 1 में कहा है कि:-

अंधुला नीच जाति परदेशी मेरा खिन आवै तिल जावै।
ताकी संगत नानक रहंदा किउ कर मूड़ा पावै।।(4/2/9)

जन्म साखी भाई बाले वाली पष्ठ 280.281 पर श्री नानक देव जी ने बताया है कि मैंने जब बेई नदी में डुबकी लगाई थी। उसी समय बाबा जिन्दा के वेश में गुरु जी मिले थे। मैं तीन दिन उन्हीं के साथ रहा था। वह बाबा जिन्दा परमेश्वर के समान शक्तिशाली है।

भाई बाले वाली जन्म साखी पष्ठ 189 (हिन्दी वाली) में कहा है कि:-

खालक आदम सिरजिया आलम बड़ा कबीर।
काईम दाइम कुदरती सिर पीरा दे पीर।।

भावार्थ है कि नानक जी एक काजी को बता रहे हैं कि जिस परमेश्वर ने आदम जी को उत्पन्न किया। वह बड़ा परमात्मा कबीर है। वह सब गुरुओं का गुरु अर्थात् जगत् गुरु है। उस सबसे बड़े परमात्मा कबीर जी की उपासना (भक्ति) करो।
श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी के पष्ठ 1257 पर वाणी इस प्रकार लिखी है:-

श्री गुरु ग्रंथ साहेब जी पष्ठ 1257 (साकार परमात्मा) मलार महला 1 घरू 2

मलार महला 1 ।। बागे कापड़ बोले बैण।। लम्मा नकु काले तेरे नैण।। कबहूं साहिबु देखिआ भैण।।1।। ऊडाँ ऊडि चड़ाँ असमानि।। साहिब सम्मथ तेरै ताणि।। जलि थलि डूंगरि देखाँ तीर।। थान थनंतरि साहिबु बीर।।2।। जिनि तनु साजि दीए नालि खम्भ।। अति तसना उडणै की डंझ।। नदरि करे ताँ बंधाँ धीर।। जिउ वेखाले तिउ वेखाँ बीर।।3।। न इहु तनु जाइगा न जाहिगे खम्भ।। पउणै पाणी अगनी का सनबंध।। नानक करमु होवै जपीऐ करि गुरु पीरू।। सचि समावै एहु सरीरू।।4।।4।।9।।

उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट है कि श्री नानक देव जी का गुरु था। उसको बाबा जिंदा कहते हैं। वही बाबा जिंदा पूर्ण परमात्मा भी है। उसका नाम कबीर है। वह धाणक रूप में काशी में लीला किया करता था। परमेश्वर साकार है, नराकार है। जैसे श्री नानक देव जी जैसे महापुरूष ने भी वक्त गुरु से नाम दान लेकर कल्याण कराया। इसी प्रकार सर्व भक्त समाज को वक्त गुरु की आवश्यकता है। कबीर परमेश्वर जी ने कहा है:-

कबीर गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान। गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, पूछो बेद, पुराण।।
कबीर राम कष्ण से कौन बड़ा, उन्हूं भी गुरु कीन्ह। तीन लोक के वे धणी, गुरु आगे आधीन।।

भावार्थ है कि कबीर परमेश्वर जी अमर संदेश दे रहे हैं कि जो व्यक्ति गुरु बिन नाम जाप साधना करते हैं या दान देते हैं। वह व्यर्थ है। इसलिए पूरा गुरु खोज कर अपना जीवन सफल करना चाहिए। हिन्दू समाज श्री रामचन्द्र तथा श्री कष्णचन्द्र जी से बड़ा प्रभु किसी को नहीं मानता। परमेश्वर कबीर जी बताना चाहते है कि आप के श्री राम जी तथा श्री कष्ण जो तीन लोक के स्वामी हैं। उन्होंने भी गुरु बनाए थे। श्री राम ने वशिष्ट मुनि को तथा श्री कष्ण जी ने ऋषि दुर्वासा जी को गुरु बनाया था (ध्यान रहे श्री कष्ण जी के संदीपनी ऋषि अक्षर ज्ञान गुरु थे, आध्यात्मिक गुरु ऋषि दुर्वासा जी थे) तथा अपने गुरु जी का विशेष सत्कार करते थे तो अन्य प्राणियों को समझ लेना चाहिए कि आप की क्या स्थिति है। यदि गुरु शरण प्राप्त करके भक्ति नहीं की तो अनमोल मानव जीवन व्यर्थ हो जाएगा। इसलिए सर्व से प्रार्थना है कि सन्त रामपाल दास जी महाराज वर्तमान में पूर्ण सतगुरु हैं। इनके पास से सतनाम (जो दो अक्षर हैं) प्राप्त करें। फिर आदि नाम (सारनाम) प्राप्त करके जाप करें तथा पूर्ण मोक्ष प्राप्त करें।

कप्या प्रमाण के लिए पढ़ें निम्न अमत वाणी:-

श्री गुरु ग्रंथ साहेब जी पष्ठ 567 (साकार परमात्मा) वडहंसु महला 1

एहु चुकावहे।। बिनवंति नानकु जाइ सहसा बुझै गुर बीचारा।। वड़ा साहिबु है आपि अलख अपारा।।6।। तेरे बंके लोइण दंत रीसाला।। सोहणे नक जिन लम्मड़े वाला।। कंचन काइआ सुइने की ढाला।। सोवन्न ढाला कसन माला जपहु तुसी सहेलीहो।। जम दुआरि न होहु खड़ीआ सिख सुणहु महेलीहो।। हंस हंसा बग बगा लहै मन की जाला।। बंके लोइण दंत रीसाला।।7।। तेरी चाल सुहावी मधुराड़ी बाणी।। कुहकनि कोकिला तरल जुआणी।। तरला जुआणी आपि भाणी इछ मन की पूरीए।। सारंग जिउ पगु धरै ठिमि ठिमि आपि आपु संधूरण।। स्रीरंग राती फिरे माती उदकु गंगा वाणी।। बिनवंति नानकु दासु हरि का तेरी चाल सुहावी मधुराड़ी बाणी।।8।।2।।

श्री गुरु ग्रंथ साहेब जी पष्ठ 1257 (साकार परमात्मा) मलार महला 1 घरू 2

मलार महला 1 ।। बागे कापड़ बोले बैण।। लम्मा नकु काले तेरे नैण।। कबहूं साहिबु देखिआ भैण।।1।। ऊडाँ ऊडि चड़ाँ असमानि।। साहिब सम्मथ तेरै ताणि।। जलि थलि डूंगरि देखाँ तीर।। थान थनंतरि साहिबु बीर।।2।। जिनि तनु साजि दीए नालि खम्भ।। अति तसना उडणै की डंझ।। नदरि करे ताँ बंधाँ धीर।। जिउ वेखाले तिउ वेखाँ बीर।।3।। न इहु तनु जाइगा न जाहिगे खम्भ।। पउणै पाणी अगनी का सनबंध।। नानक करमु होवै जपीऐ करि गुरु पीरू।। सचि समावै एहु सरीरू।।4।।4।।9।।

मलार महला 3 चउपदे घरू 1  सतिगुर प्रसादि।।

निरंकारू आकारू है आपे आपे भरमि भुलाए।। करि करि करता आपै वेखै जितु भावै तितु लाए।।

श्री गुरु ग्रंथ साहेब जी पष्ठ 764 (साकार परमात्मा) रागु सूही महला 1 घरु 3
रागु सूही महला 1 घरु 3  सतिगुर प्रसादि।।

आवहु सजणा हउ देखा दरसनु तेरा राम।। घरि आपनड़ै खड़ी तका मै मनि चाउ घनेरा राम।। मनि चाउ घनेरा सुणि प्रभ मेरा मै तेरा भरवासा।। दरसनु देखि भई निहकेवल जनम मरण दुखु नासा।।

(प्रमाण श्री गुरु ग्रन्थ साहेब सीरी रागु महला पहला, घर 4 पष्ठ 25) -

तू दरीया दाना बीना, मैं मछली कैसे अन्त लहा।
जह-जह देखा तह-तह तू है, तुझसे निकस फूट मरा।
न जाना मेऊ न जाना जाली। जा दुःख लागै ता तुझै समाली।1।रहाऊ।।

नानक जी ने कहा कि इस संसार रूपी समुन्द्र में मैं मछली समान जीव, आपने कैसे ढूंढ लिया? हे परमेश्वर! आप तो दरिया के अंदर सूक्ष्म से भी सूक्ष्म वस्तु को जानने वाले हो। मुझे तो जाल डालने वाले(जाली) ने भी नहीं जाना तथा गोताखोर(मेऊ) ने भी नहीं जाना अर्थात् नहीं जान सका। जब से आप के सतलोक से निकल कर अर्थात् आप से बिछुड़ कर आए हैं तब से कष्ट पर कष्ट उठा रहा हूँ। जब दुःख आता है तो आपको ही याद करता हूँ, मेरे कष्टों का निवारण आप ही करते हो? (उपरोक्त वार्ता बाद में काशी में प्रभु के दर्शन करके हुई थी)। तब नानक जी ने कहा कि अब मैं आपकी सर्व वार्ता सुनने को तैयार हूँ।

गुरु ग्रन्थ साहेब, राग आसावरी, महला 1 के कुछ अंश -

साहिब मेरा एको है। एको है भाई एको है।
आपे रूप करे बहु भांती नानक बपुड़ा एव कह।। (प. 350)
जो तिन कीआ सो सचु थीआ, अमत नाम सतगुरु दीआ।। (प. 352)
गुरु पुरे ते गति मति पाई। (प. 353)
बूडत जगु देखिआ तउ डरि भागे।
सतिगुरु राखे से बड़ भागे, नानक गुरु की चरणों लागे।। (प. 414)
मैं गुरु पूछिआ अपणा साचा बिचारी राम। (प. 439)

उपरोक्त अमतवाणी में श्री नानक साहेब जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि साहिब (प्रभु) एक ही है तथा उनका (श्री नानक जी का) कोई मनुष्य रूप में वक्त गुरु भी था जिसके विषय में कहा है कि पूरे गुरु से तत्वज्ञान प्राप्त हुआ तथा मेरे गुरु जी ने मुझे (अमत नाम) अमर मन्त्रा अर्थात् पूर्ण मोक्ष करने वाला उपदेश नाम मन्त्रा दिया, वही मेरा गुरु नाना रूप धारण कर लेता है अर्थात् वही सतपुरुष है वही जिंदा रूप बना लेता है। वही धाणक रूप में भी काशी नगर में विराजमान होकर आम व्यक्ति अर्थात् भक्त की भूमिका कर रहा है। शास्त्रा विरुद्ध पूजा करके सारे जगत् को जन्म-मत्यु व कर्मफल की आग में जलते देखकर जीवन व्यर्थ होने के डर से भाग कर मैंने गुरु जी के चरणों में शरण ली।

बलिहारी गुरु आपणे दिउहाड़ी सदवार।
जिन माणस ते देवते कीए करत न लागी वार।
आपीनै आप साजिओ आपीनै रचिओ नाउ।
दुयी कुदरति साजीऐ करि आसणु डिठो चाउ।
दाता करता आपि तूं तुसि देवहि करहि पसाउ।
तूं जाणोइ सभसै दे लैसहि जिंद कवाउ करि आसणु डिठो चाउ। (प. 463)

भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा जिंदा का रूप बनाकर बेई नदी पर आए अर्थात् जिंदा कहलाए तथा स्वयं ही दो दुनियाँ ऊपर (सतलोक आदि) तथा नीचे (ब्रह्म व परब्रह्म के लोक) को रचकर ऊपर सत्यलोक में आकार में आसन पर बैठ कर चाव के साथ अपने द्वारा रची दुनियाँ को देख रहे हो तथा आप ही स्वयम्भू अर्थात् माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते, स्वयं प्रकट होते हो। यही प्रमाण पवित्रा यजुर्वेद अध्याय 40 मं. 8 में है कि कविर् मनीषि स्वयम्भूः परिभू व्यवधाता, भावार्थ है कि कवीर परमात्मा सर्वज्ञ है (मनीषि का अर्थ सर्वज्ञ होता है) तथा अपने आप प्रकट होता है। वह (परिभू) सनातन अर्थात् सर्वप्रथम वाला प्रभु है। वह सर्व ब्रह्मण्डों का (व्यवधाता) भिन्न-भिन्न अर्थात् सर्व लोकों का रचनहार है।

एहू जीउ बहुते जनम भरमिआ, ता सतिगुरु शबद सुणाइया।। (प. 465)
भावार्थ है कि श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि मेरा यह जीव बहुत समय से जन्म तथा मत्यु के चक्र में भ्रमता रहा अब पूर्ण सतगुरु ने वास्तविक नाम प्रदान किया।


FAQs : "श्री गुरु ग्रंथ साहेब जी में साकार परमात्मा के प्रमाण"

Q.1 गुरु ग्रंथ साहिब में लिखी वाणी किस परमात्मा की महिमा के बारे में है?

पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब में श्री नानक देव जी द्वारा लिखी गई वाणी है। यह ज्ञान परमेश्वर कबीर जी ने उन्हें दिया था। उनकी बाणी में कबीर जी की महिमा, पहचान और मोक्ष प्राप्त करने की विधि के बारे में प्रमाण मिलता है।

Q.2 गुरु नानक देव जी ने गुरू ग्रंथ साहिब में परमात्मा को किन नामों से संबोधित किया है?

श्री नानक देव जी ने अपनी पवित्र वाणी में परमेश्वर कबीर साहेब जी को सतपुरुष, वाहेगुरु, परवरदिगार, हक्का कबीर अल्लाह, ठाकुर, प्रभु, स्वामी, शाह, पातशाह, साहिब, साईं आदि नामों से संबोधित किया है।

Q. 3 गुरु नानक देव जी को परमात्मा कहां और कैसे मिले थे?

एक दिन जब नानक देव जी सुबह के समय बेई नदी पर स्नान करने गए थे तब कबीर साहेब जी बेई नदी पर आकर श्री नानक देव जी से मिले और उनकी आत्मा को सच्चखंड लेकर गए। फिर कबीर साहेब जी ने श्री नानक जी को सच्चा आध्यात्मिक तत्वज्ञान समझाया। उसके बाद उन्होंने श्री नानक जी को कहा कि मैं काशी, बनारस में भी रहता हूं, आप वहां आ जाना मैं आपको सतनाम दूंगा। फिर श्री नानक देव जी भगवान कबीर साहेब जी की खोज में काशी गए और वहां उन्हें एक जुलाहे की भूमिका निभाते हुए देखा। जब वहां उन्होंने कबीर जी को देखा तब उत्साह से कहा "वाहेगुरु सतनाम वाहेगुरु"। जिसका अर्थ था की कबीर जी वही गुरु हैं जो नानक जी को सतलोक लेकर गए थे। उसके बाद कबीर जी ने श्री नानक जी को सतनाम प्रदान किया और वह ही पूर्ण परमेश्वर हैं।

Q.4 क्या गुरु नानक देव जी शाकाहारी थे?

जी हां, गुरु नानक देव जी शाकाहारी थे। श्री नानक देव जी अपने पूरे जीवन में भगवान कबीर साहेब जी के बताए सिद्धांतों पर चले और उन्हीं की बताई हुई शिक्षाओं के अनुसार जीवनयापन किया।

Q.5 सभी धर्म किसने बनाए और हम सबका पिता परमेश्वर कौन है?

हर धर्म से ऊपर मानवता का धर्म है। ईश्वर ने कोई धर्म बनाया ही नहीं। ईश्वर हमारी तरह धर्मों में बंधा हुआ भी नहीं है। लेकिन हमने अज्ञानतावश भगवान को पाने के लिए खुद को विभिन्न धर्मों में बांट लिया। लेकिन अब ईश्वर को पाने के लिए हमें फिर से एकजुट होना होगा क्योंकि परमेश्वर कबीर साहेब जी हम सब आत्माओं के पिता हैं।

Q.6 विश्व में सबसे ऊंचा और पहला धर्म कौन सा है?

मानवता किसी भी धर्म से ऊपर है। हम सब अभी तक धर्मों में बंटे हुए हैं लेकिन अब हमें मानवता के लिए एक होना चाहिए।

Q.7 सिख धर्म के अनुसार भगवान को कैसे प्राप्त किया जा सकता है?

किसी भी धर्म के शास्त्रों के अनुसार पूजा करके ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। हमारे पवित्र ग्रंथों में बताए गए सच्चे ज्ञान का पालन करके ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा तत्वदर्शी संत से पूजा की सही विधि प्राप्त करके ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। उसके बाद भक्ति के नियमों का पालन करने से साधक मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

Q.8 क्या गुरु नानक जी भगवान में विश्वास करते थे?

जी हां, श्री नानक देव जी भगवान में विश्वास रखते थे। उनकी वाणियों में हमेशा परमेश्वर कबीर साहेब जी का ही ज़िक्र होता था और उन्होंने परमेश्वर कबीर साहेब जी के बारे में अनेकों गूढ़ रहस्य बताए हैं। यहां तक कि उन्होंने पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब जी के पृष्ठ 721 पर कबीर साहेब जी का वर्णन "परवरदिगार" के रूप में किया है।

Q.9 श्री नानक देव जी ने वाहेगुरु शब्द किसके लिए कहा था?

कबीर साहेब जी को सतलोक में भगवान के रूप में देखने के बाद, श्री नानक जी के मुख से "वाहेगुरु" शब्द निकला। "झांकी देख कबीर की नानक किती वाह, वाह सिक्खां दे गल पड़ी कौन छुड़ावै ता।" 'वाहेगुरु' एक शब्द है जिसे अक्सर सिक्ख धर्म में ईश्वर, परम पुरुष या सभी के निर्माता के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है। कबीर साहेब की वाणी है, गुरु गोविंद दोनों खड़े, किसके लागूं पाय, बलिहारी गुरु आपना जिन गोविंद दियो मिलाय।।


 

Recent Comments

यदि उपरोक्त सामग्री के संबंध में आपके कोई प्रश्न या सुझावहैं, तो कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें, हम इसे प्रमाण के साथ हल करने का प्रयास करेंगे।
Gaurav Kumar

गुरु नानक देव जी ने किसकी बताई भक्ति की जिससे उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ?

Satlok Ashram

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर जी श्री नानक जी को मिले थे और सतलोक यानि कि सचखण्ड लेकर गए थे। फिर उन्हें सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष मंत्र प्रदान किए थे। उसके बाद उन मंत्रो का जाप करके श्री नानक जी ने मोक्ष प्राप्त किया था।

Balvir Yadav

सिख धर्म को मानने वाले लोगों का मानना है कि ईश्वर एक है लेकिन निराकार है। ऐसा ही उपदेश गुरु नानक देव जी ने दिया था। क्या यह सच है?

Satlok Ashram

गुरु नानक देव जी ने हमेशा ईश्वर एक है का उपदेश दिया। वह ईश्वर नर आकार है यानि मनुष्य सदृश्य है और सचखंड में रहता है। सिक्ख धर्म पूरी तरह से एकेश्वरवादी है अर्थात यहां केवल एक ईश्वर के अस्तित्व को मानते हैं। गुरु नानक जी ने एकेश्वरवाद के विचार पर जोर देने के लिए ओंकार शब्द के पहले "इक"(ੴ) का उपसर्ग दिया। इक ओंकार सत-नाम करत पुरख निरभउ, निरवैर अकाल मूरत अंजुनि सिभन गुर प्रसाद। यहां केवल एक ही परम पुरुष है, शास्वत सच, हमारा रचनहार, भय और दोष से रहित, अविनाशी, अजन्मा, स्वयंभू परमात्मा। जिसकी जानकारी कृपापात्र भगत को पूर्ण गुरु से प्राप्त होती है। वह ईश्वर अपनी पवित्र आत्माओं से उसी तरह मिलते हैं जैसे वह श्री नानक देव जी से बेई नदी पर मिले थे।

Raghav Chadda

सिख धर्म को मानने वाले लोगों का मानना है कि गुरु नानक देव जी को मोक्ष प्राप्त हुआ था और वे स्वर्ग में हैं। क्या यह सच है?

Satlok Ashram

यह बात सच है कि पवित्र आत्मा श्री नानक देव जी को मोक्ष प्राप्त हुआ था लेकिन वह स्वर्ग में नहीं बल्कि सचखंड में हैं। सतलोक यानि कि सचखंड अमरलोक है जबकि स्वर्ग एक अस्थायी निवास स्थान है। मोक्ष प्राप्ति का अर्थ है कि अमरलोक यानि कि सतलोक में चले जाना। पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी भी सचखंड में रहते हैं। वैसे भी सिक्ख धर्म को मानने वाले स्वर्ग या नरक को अंतिम लक्ष्य नहीं मानते। सिक्खों के अनुसार, सभी की भलाई और समृद्धि के लिए भेदभाव रहित विधि से कार्य करके और पूर्ण आध्यात्मिक गुरु से दीक्षा लेकर यहीं स्वर्ग का अनुभव किया जा सकता है। जबकि काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार के कारण होने वाले कष्ट और पीड़ा को पृथ्वी पर नरक माना जाता है। सिक्ख धर्म के अनुसार, जीवन का मुख्य उद्देश्य परमात्मा के साथ एक हो जाना है।

 ← आदरणीय श्री नानक साहेब जी प्रभु कबीर (धाणक) जुलाहा के साक्षी       राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 - गुरु ग्रन्थ साहिब →