शिव पुराण में ओम नमः शिवाय या पंचाक्षरी मंत्र का प्रमाण


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हिंदू धर्म के अनुसार, भगवान शिव जिन्हें महादेव, पशुपतिनाथ, विश्वनाथ, शंकर, भोले नाथ, भैरव, शंभू आदि नामों से भी जाना जाता है। त्रिदेव- ब्रह्मा (रजोगुण), विष्णु (सतोगुण) और शिव (तमोगुण) ये तीनों भाई हैं और एक-एक गुण से युक्त हैं। तीनों में सबसे बड़े ब्रह्मा जी रजोगुण से, दूसरे विष्णु जी सतोगुण से और सबसे छोटे शंकर जी तमोगुण से युक्त हैं। ये तीनों भगवान सदाशिव के पुत्र हैं, जो 21 ब्रंह्माण्डों का स्वामी है (जिसे ज्योति निरंजन/ब्रह्म-काल भी कहा जाता है) और देवी दुर्गा (माया/अष्टांगी) इन तीनों की माता है।

भगवान सदाशिव और उनके सबसे छोटे पुत्र भगवान शिव/शंकर का विस्तृत विवरण, लेख शिव-पुराण में अच्छी तरह से किया गया है। यहां, हम शिव जी के सबसे शक्तिशाली मंत्र ‘पंचाक्षरी मंत्र’ और पवित्र ग्रंथों में वर्णित ‘पंचाक्षरी मंत्र’ क्या हैं इस विषय पर चर्चा करेंगे।

पाठकों की जानकारी के लिए, हम स्पष्ट करते हैं कि पवित्र ‘शिवपुराण’, पवित्र ‘वेदों’,और ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ से प्राप्त तथ्य यह साबित करते हैं कि सभी हिंदू भक्त अज्ञानता और सही आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव के कारण अत्यधिक भ्रमित हैं कि ‘ॐ नमः शिवाय’ ‘पंचाक्षरी मंत्र’ है और भगवान शिव को प्रसन्न करने और उनसे आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने के लिए इस मंत्र का पूर्ण श्रद्धा के साथ जाप करना चाहिए।

जबकि, यह सच नहीं है क्योंकि पवित्र ग्रंथों के प्रमाण इस विश्वास का खंडन करते हैं। इस लेख में पवित्र ग्रंथों के सबूतों के आधार पर दिए गए निष्पक्ष और स्पष्टीकरण भक्तों के ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र से जुड़े भ्रम को दूर करेंगे। यह लेख विशेष रूप से शंकर जी के भक्तों के लिए आंख खोलने वाला होगा।

पवित्र ग्रंथ ‘पंचाक्षरी मंत्र’ के बारे में क्या बताते हैं?

  •  भगवान सदाशिव और भगवान शिव दो अलग-अलग अस्तित्व/ईश्वर हैं।

  •  सदाशिव और भगवान शिव/शंकर के गुरु कौन हैं?

  • मानव शरीर में ‘कमलदल’ या चक्र का वर्णन

  • भगवान सदाशिव का वास्तविक मंत्र क्या है?

  • पंचाक्षर/पंचाक्षरी मंत्र क्या है?

  • क्या पंचाक्षरी मंत्र से मोक्ष संभव है?

  • भगवान शिव/शंकर जी का सही मंत्र क्या है?

भगवान सदाशिव और भगवान शिव दो अलग-अलग अस्तित्व/ईश्वर हैं।

संदर्भ: कबीर सागर- सृष्टि रचना

संदर्भ: संक्षिप्त शिव पुराण, रुद्र संहिता, अध्याय 6 और 7, पृष्ठ 98-103, संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार, गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित है। गोबिंद भवन कार्यालय, कोलकाता का संस्थान, गोरखपुर।

इससे पहले कि हम यह बताएं कि ‘पंचाक्षरी मंत्र’ क्या है? पाठकों को यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि भगवान सदाशिव और भगवान शिव/शंकर जी अपने स्तर के दो अलग-अलग अस्तित्व/भगवान हैं। भगवान सदाशिव केवल 21 ब्रंह्माण्डों के स्वामी हैं। उन्हें क्षर पुरुष कहा जाता है जो नाशवान हैं। वह एक शैतान है जिसने निर्दोष आत्माओं को भ्रम (माया) के जाल में फंसाया है। उनके सबसे छोटे पुत्र शंकर हैं जो अपने पिता भगवान सदाशिव के 21 ब्रंह्माण्डों में तमोगुण विभाग के प्रमुख हैं। शंकर केवल इसी विभाग के प्रभु हैं। भगवान सदाशिव और शंकर जी दोनों ही जन्म-मृत्यु के चक्र में हैं। (प्रमाण श्रीमद् देवी पुराण)।

सदाशिव और भगवान शिव/शंकर के गुरु कौन हैं?

भक्ति मार्ग में गुरु धारण करना अतिआवश्यक है। भगवान सदाशिव और भगवान शिव दोनों ही ब्रह्मांड के निर्माता सर्वशक्तिमान कविर्देव की पूजा करते हैं जो उनके गुरु भी हैं। गीता अध्याय 18 श्लोक 64 में ब्रह्म काल अर्जुन को बताते हैं कि उसके पूज्य देव परम अक्षर ब्रह्म हैं, वह (ब्रह्म/क्षर पुरूष) उसकी शरण में है तथा उनकी (सर्वशक्तिमान कविर्देव) पूजा करते है। शुरुआत में भगवान कबीर जी ने अपने विधान के अनुसार, भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान शिव, भगवान गणेश से मुलाकात की और उन्हें मंत्र प्रदान किए, देवी दुर्गा और ब्रह्म-काल को भी मंत्र प्रदान किए। वे सभी सतपुरुष कबीर जी की पूजा करते हैं। वास्तव में वह इन सभी देवताओं के गुरु हैं।

मानव शरीर में ‘कमलदल’ या चक्र का वर्णन

संदर्भ: कबीर सागर अध्याय ‘कबीर वाणी’ पृष्ठ 111

ये सभी भगवान हममें से प्रत्येक के भीतर निवास करते हैं। प्रत्येक मनुष्य के अंदर 'कमलदल' या चक्र होते हैं। ये ‘चक्र’ रीढ़ की हड्डी में नीचे से लेकर सिर के शीर्ष तक होते हैं। प्रत्येक ‘चैनल'’ एक विशेष भगवान से जुड़ा हुआ है।

  1. ‘मूलकमल’- भगवान गणेश द्वारा शासित
  2. ‘स्वादचक्र’- भगवान ब्रह्मा और देवी सावित्री द्वारा शासित
  3. ‘नाभि कमल’ - भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी द्वारा शासित
  4. ‘हृदय कमल’- भगवान शिव और देवी पार्वती द्वारा शासित
  5. ‘कंठ कमल’- देवी दुर्गा द्वारा शासित
  6. त्रिकुटी’ पर सतपुरुष, ब्रह्म काल-सदाशिव के साथ रहते हैं

ये भगवान इन 'कमलों' या चैनलों में विराजमान हैं। वे सभी मनुष्यों के भीतर हैं चाहे वे हिंदू हों, मुस्लिम हों, सिख हों या ईसाई हों, सभी के शरीर समान हैं, गठन समान है। प्रत्येक भगवान के पास सर्वशक्तिमान कबीर द्वारा दिया गया एक अलग मंत्र है। इसका मतलब यह है कि भगवान सदाशिव और उनके पुत्र भगवान शिव/शंकर जी दोनों का मानव शरीर में एक अलग स्थान है और भक्तों द्वारा उनसे आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने के लिए अलग-अलग मंत्रों का जाप किया जाता है।

आइए सबसे पहले जानते है कि भगवान सदाशिव का वास्तविक मंत्र क्या है?

भगवान सदाशिव का वास्तविक मंत्र क्या है?

संदर्भ: श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 8 श्लोक 13

गीता ज्ञान दाता अर्थात् ब्रह्म-काल अर्जुन से कहता है;

ओम्, इति, एकाक्षरम्, ब्रह्म, व्याहरन्, माम्, अनुस्मरन्,

यः, प्रयाति, त्यजन्, देहम्, सः, याति, परमाम्, गतिम् ॥

भावार्थ: काल कह रहा है ‘मुझ ब्रह्म का जाप करने का केवल एक ओम/ऊँ (ओं) अक्षर है। जो साधक उच्चारण करके इस का जाप करता है और शरीर छोड़ कर जाता है, ‘सयाति परमाम् गतिम्’ उसे ‘ओम’ मंत्र से मिलने वाले लाभ प्राप्त होते हैं। (ओम मंत्र से मिलने वाली गति प्राप्त होती है) {अपनी गति को अध्याय 7 श्लोक 18 में (अनुतमाम्) अति अश्रेष्ठ कहा है।}

महत्वपूर्ण: भगवान सदाशिव का ‘ओम’ यह अक्षर का मंत्र है, सही मंत्र कुछ और है।

  • संदर्भः कबीर सागर अध्याय “स्वसंवेद बोध” पृष्ठ नं.  96 एवं “श्वांश गुंजर” पेज नं.  21 एवं “अनुराग सागर” पेज नं.  26
  • संदर्भ: श्रीमद्भगवद गीता अध्याय 7 श्लोक 24 और 25, अध्याय 9 श्लोक 11, अध्याय 11 श्लोक 47, 48

ब्रह्म-काल/भगवान सदाशिव ने प्रतिज्ञा  कर रखी है कि वह कभी भी अपने मूल रूप में किसी को दर्शन नहीं देगा। वह अव्यक्त/अदृश्य रहता है। महाभारत के युद्ध के दौरान, युद्ध के मैदान में अर्जुन को अपना भयानक रूप दिखाते हुए कहता है कि ‘अर्जुन, देख, यह मेरा काल रूप है, विशाल रूप है और यह न वेदों में वर्णित विधि से, न जप-तप से, ना ही बलिदान, किसी भी तरह से इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। मैंने तुम पर यह उपकार किया है। तुमसे पहले मेरा यह मूल रूप किसी ने नहीं देखा और आगे भी कोई नहीं देख पाएगा।'

महत्वपूर्ण: ब्रह्म-काल भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान शिव के रूप में प्रकट होकर साधकों को धोखा देता है, इसलिए वे उन्हें सर्वोच्च भगवान और अपने पूजनीय देवता मानते हैं। ब्रह्म-काल ने इन देवताओं के लिए भी यह भ्रम पैदा कर दिया है, इसलिए वे स्वयं को सर्वोच्च मानते हैं। इसी के आधार पर श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी को भ्रम हुआ। ब्रह्मा जी कहते हैं कि ‘मैं संपूर्ण ब्रह्मांड का निर्माता हूं, मैं सबका पिता हूं। मैं सर्वोच्च हूं’। वहीं, विष्णु जी का मानना है कि ‘ब्रह्मा जी की उत्पत्ति मेरी नाभि से हुई है। मैं पालनकर्ता हूं। मैं सर्वोच्च हूं’।

यह समझने के बाद कि ब्रह्म-काल धोखेबाज है और अव्यक्त रहता है, अब हम समझेंगे कि पंचाक्षर मंत्र क्या है?

पंचाक्षर/पंचाक्षरी मंत्र क्या है?

पवित्र शिव पुराण में पंचाक्षर / पंचाक्षरी मंत्र का वर्णन बहुत विस्तार से किया गया है। शिव पुराण में यह वर्णित है कि “ओम” (ॐ) मंत्र पांच अक्षरों से बना है और यही वास्तविक “पंचाक्षर / पंचाक्षरी” मंत्र है। शिव पुराण में वर्णित है कि “ओम” (ॐ) मंत्र पांच ध्वनियों से बना है, इस प्रकार, वास्तविक पंचाक्षर / पंचाक्षरी मंत्र है, जबकि शिव पुराण के अनुवादकों ने अनुवाद करते समय मंत्र में “ओम नमः शिवाय” जोड़कर मिलावट की है। वास्तव में “ओम नमः शिवाय” पंचाक्षर/पंचाक्षरी मंत्र नहीं है। यह स्वनिर्मित और मनमाना है।

आइए पवित्र शिवपुराण में प्रमाण देखते हैं।

  • संदर्भ: संक्षिप्त शिव महापुराण हिंदी अनुवाद के साथ भाग 1, लेखक : विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद जी मिश्र, खेमराज श्री कृष्णदास प्रकाशन, मुंबई। विंध्वेश्वर संहिता, अध्याय 10, पृष्ठ संख्या:11-20
  • संदर्भ: संक्षिप्त शिव पुराण, विंध्वेश्वर संहिता, पृष्ठ 24-26, गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित। संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार, गोबिंद भवन कार्यालय, कोलकाता का संस्थान गोरखपुर।

एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी अपनी श्रेष्ठता दिखाने के लिए आपस में लड़ने लगे। उस समय भगवान सदाशिव प्रकट हुए और उन दोनों के बीच एक अंतहीन अत्यधिक प्रकाशित स्तंभ स्थापित किया, जिस से ब्रह्मा जी और विष्णु जी दोनों ने लड़ना बंद कर दिया और स्तंभ के अंत की तलाश शुरू कर दी। तब, भगवान सदाशिव (काल ब्रह्म) प्रकट हुए और उन दोनों को उनके पद के बारे में बताया कि वे सर्वोच्च नहीं हैं और ‘पंचाक्षरी मंत्र’ का विवरण दिया। ब्रह्मा और विष्णु उन्हें भगवान शिव (अपना छोटा भाई) समझ बैठे लेकिन वे उनके पिता भगवान सदाशिव थे, इस तरह ब्रह्म-काल धोखा देता है।

ब्रह्म-काल कहता है ‘ओंकार’ मेरा मंत्र है। ज्ञान की सिद्धि के आधार पर ‘ओंकार’ मंत्र का जाप करें, इससे अहंकार दूर हो जाता है। इसलिये इस मूल मन्त्र का उपदेश किया जाता है। मेरे मुख से उत्पन्न होने वाला यह ‘ओंकार’ मेरे स्वरूप का बोध कराने वाला है। ओंकार वाचक है मैं वाच्य हूं । यह मंत्र मेरा ही स्वरूप है। प्रतिदिन ओंकार का निरंतर स्मरण करने से मेरा ही सदा स्मरण होता है। उत्तर के मुख से ‘अकार’, पश्चिम के मुख से ‘उकार’, दक्षिण के मुख से ‘मकार’, पूर्व के मुख से ‘बिंदु’, मध्य के मुख से ‘नाद’ का प्राकट्य हुआ, इस प्रकार यह पाँच अवयवों से युक्त ओंकार का विस्तार हुआ। इन सभी अवयवों से एकीभूत होकर वह प्रणव ‘ॐ’ नामक एक अक्षर हो गया।

विशेष: यह ‘ॐ’ एक शब्द का मंत्र भगवान सदाशिव का है, जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पिता हैं। उन्होंने गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में भी इसका उल्लेख किया है। मूल संस्कृत में यह एक शब्द ‘ओम’ है लेकिन अनुवादकों ने इसमें “ओम नमः शिवाय” जोड़ दिया है। यह गलत मंत्र है। अज्ञानी ऋषि-मुनियों ने इसे न समझकर गलत व्याख्या की है और आगे अपने शिष्यों को भी यही उपदेश दिया है।

यह स्पष्ट है कि ‘ओम’ ‘पंचाक्षरी मंत्र’ है न कि “ॐ नमः शिवाय”

महान तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ने पवित्र ग्रंथों से इस गुप्त आध्यात्मिक तथ्य को उजागर किया है। यह अस्पष्टता अब दूर हो गई है। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या पंचाक्षरी मंत्र से मोक्ष संभव है?

क्या पंचाक्षरी मंत्र से मोक्ष संभव है?

ब्रह्म-काल के ॐ मंत्र से केवल ब्रह्मलोक की ही प्राप्ति होती है। गीता जी अध्याय नं 8, श्लोक नं. 16 में गीता ज्ञान दाता अर्थात् भगवान सदाशिव ने कहा है कि ‘अर्जुन! ब्रह्मलोक की प्राप्ति के बाद सभी आत्माएं पुनरावर्ती में हैं। वहां पहुंचने वाले प्राणी पुनः जन्म और मृत्यु को प्राप्त होते हैं। अपने अच्छे कर्म समाप्त होने के बाद वे पृथ्वी पर अन्य प्राणियों के जीवन में कष्ट भोगते हैं।’ अत: ब्रह्म की पूजा भी पूर्ण मोक्ष नहीं देती।

‘पंचाक्षरी मंत्र’ का जाप करके ‘ॐ’ मंत्र से साधकों को अनेक सिद्धियाँ तो प्राप्त होती हैं परन्तु पूर्ण मोक्ष नहीं मिलता। ऐसे साधक कुछ समय तक ब्रह्मलोक में सुख भोगते हैं और उनके अच्छे कर्म समाप्त होने के बाद वे पृथ्वी पर राजा बन जाते हैं। जब उनके अच्छे कर्म समाप्त हो जाते हैं तो उन्हें नरक और 84 लाख योनियों में भी पीड़ा सहनी पड़ती है। हमारे धर्मग्रन्थों ने यह सिद्ध किया है। आइये उदाहरण देखकर समझते हैं।

‘पंचाक्षरी मंत्र’/ ‘ओम’ मंत्र से ऋषि दुर्वासा को मुक्ति नहीं मिली

संदर्भ: पूर्ण सर्वशक्तिमान कबीर जी की अमृत वाणी

ऋषि दुर्वासा ने भगवान इंद्र को श्राप दिया

ऋषि दुर्वासा ब्रह्म-काल के उपासक थे। ‘ओम’ मंत्र का जाप करके उन्होंने सिद्धियाँ प्राप्त की जिससे वे अहंकारी हो गए थे। एक बार ऋषि दुर्वासा ने स्वर्ग के राजा को श्राप दिया; देवराज इन्द्र द्वारा क्षमा याचना करने पर भी ऋषि दुर्वासा ने नहीं सुनी, यह कहते हुए कि ‘मैंने जो कुछ भी कहा था उसे पूर्ववत नहीं किया जा सकता’। परिणामस्वरूप देवराज इंद्र पूर्णतया नष्ट हो गये और स्वर्ग भी नष्ट हो गया।

ऋषि दुर्वासा ने यादव वंश को श्राप दिया था

ऋषि दुर्वासा के श्राप से संपूर्ण यादव वंश का नाश हो गया। यहां तक कि भगवान विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण भी ऋषि दुर्वासा के श्राप को टाल नहीं सके। यह सर्व विदित है कि ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण 56 करोड़ यादव मारे गए थे।

 सूक्ष्मवेद में लिखा है:-

 दुर्वासा कोपे तहां, समझ न आई नीच।

 छप्पन करोड़ यादव कटे, मची रुधिर की कीच।।

‘पंचाक्षरी मंत्र’/ ‘ओम’ मंत्र ने ऋषि चुणक को मुक्ति नहीं दी

एक चुणक नामक ऋषि थे। वह काल-ब्रह्म के उपासक थे। उन्होंने ‘ओम’ मंत्र का जाप किया। वह पूर्ण सिद्धि युक्त महापुरुष माने जाते थे।

एक मानधाता चक्रवर्ती नाम का राजा था। (चक्रवर्ती राजा उसे कहते है जिसका संपूर्ण पृथ्वी पर राज्य हो)। मानधाता के मन में आई कि देखना चाहिए कि कोई छोटा राजा मेरे सामने सिर उठाने वाला तो नहीं हो गया है। इसके लिए उन्होंने अपना एक घोड़ा छोड़ा जिसके गले में एक लकड़ी की फट्टी (बोर्ड) पर उनकी सेना का विवरण था और यह भी लिख दिया गया कि जिस किसी राजा को महाराजा मानधाता की अधीनता स्वीकार नहीं है वह घोड़े को पकड़ कर युद्ध के लिए तैयार हो जाए। घोड़ा सारी पृथ्वी पर घूम कर वापस आ रहा था किसी ने उस घोड़े को पकड़ने का साहस नहीं किया क्योंकि राजा मानधाता के पास 72 क्षौहिणी (एक करोड़ 56 लाख 96 हजार) सेना थी।

चुणक ऋषि ने यह देखकर उनसे उस घोड़े के बारे में पूछा और सैनिकों द्वारा सारा माजरा जानने के बाद राजा को सबक सिखाने के लिए उन्होंने घोड़ा पकड़ लिया और राजा की ओर से युद्ध स्वीकार किया। जब सैनिकों ने राजा से बताया कि आपका घोड़ा चुणक नाम के ऋषि ने बाँध लिया है और वह युद्ध के लिए तैयार है। राजा ने एक व्यक्ति (ऋषि) को मारने के लिए 18 क्षौहिणी सेना भेजी। ऐसे अपनी सेना की 18-18 क्षौहिणी की चार टुकड़ियाँ बनाईं। उधर चुणक ऋषि ने अपनी ब्रह्म (काल) साधना से प्राप्त सिद्धि से चार पुतलियाँ बनाई। ऋषि ने एक पुतली राजा की सेना पर छोड़ी जिसने 18 क्षौहिणी सेना को समाप्त कर दिया। ऐसे चारों पुतलियों ने 72 क्षौहिणी सेना का सर्व नाश कर दिया।

चुणक ऋषि काल ब्रह्म की साधना से काल (मौत) रूप हो गया। सिद्धियाँ प्राप्त कीं। उससे बहत्तर क्षौहिणी यानि एक करोड़ 56 लाख 96 हजार सैनिकों को खा गया अर्थात् मार डाले। ये सिद्धि प्राप्त ऋषि मानव शरीर में जौरा यानि चलती-फिरती मृत्यु हैं। ये सब भेष यानि पंथ काल प्रेरित हैं। काल ब्रह्म इनको भ्रमित किए है।

 सूक्ष्मवेद में बताया गया है कि:-

 72 क्षोणि खा गया, चुणक ऋषिश्वर एक।

 देह धारें जौरा फिरें, सभी काल के भेख।।

‘पंचाक्षरी मंत्र’/ ‘ओम’ मंत्र ने ऋषि कपिल को मुक्ति नहीं दी

एक बार ऋषि कपिल, जो भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं, वर्षों से समाधि लगा रहे थे। इस दौरान उनकी पलकें इतनी लंबी हो गई थीं कि वे जमीन को छू रही थीं। उनका शरीर क्षीण हो गया था। एक राजा थे सगद/सगढ, उनके 60 हजार पुत्र थे जो अश्वमेघ यज्ञ कर रहे थे। भगवान विष्णु ने इंद्र देव से कहा कि वह उस अश्वमेघ यज्ञ को पूरा न होने दें, यदि ऐसे 100 यज्ञ सफलतापूर्वक हो जाएंगे तो भगवान इंद्र को अपना सिंहासन छोड़ना होगा।

भयभीत होकर भगवान इंद्र ने अपने हलकारों को भेजा, जिन्होंने अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को ऋषि कपिल के पैर से बांध दिया। राजा सगद के उन 60 हजार पुत्रों ने घोड़े को खोलने की कोशिश की, उन्होंने ऋषि की आंख में भाले चुभो दिए। कपिल मुनि को दुःख हुआ। क्रोधित ऋषि ने अपने हाथों से अपनी पलकें उठा लीं जहां से अग्निबाण छूटे। उन अग्निबाणों से राजा सगद के 60 हजार पुत्र मारे गये।

 सूक्ष्मवेद में बताया गया है कि:-

60 हजार सगड़ के होते, कपिल मुनिश्वर खाए।

जै परमेश्वर की करें भक्ति, तो अजर-अमर हो जाए।।

‘पंचाक्षरी मंत्र’/ ‘ओम’ मंत्र ने ऋषि मार्कंडेय को भी मोक्ष प्रदान नहीं किया

एक समय बंगाल की खाड़ी में मार्कण्डेय ऋषि तपस्या कर रहे थे। आपको बता दें कि इन्द्र के पद पर विराजमान आत्मा को डर होता है कि यदि उसके शासनकाल में 72 चौकड़ी युग के दौरान यदि पृथ्वी पर कोई व्यक्ति इन्द्र पद प्राप्त करने योग्य तप या धर्मयज्ञ कर लेता है और उसकी क्रिया में कोई बाधा नहीं आती है तो उस साधक को इन्द्र का पद दे दिया जाता है और वर्तमान इन्द्र से वह पद छीन लिया जाता है। इसलिए जहाँ तक संभव होता है, इन्द्र अपने शासनकाल में किसी साधक का तप या धर्मयज्ञ पूर्ण नहीं होने देता। उसकी साधना भंग करा देता है, चाहे कुछ भी करना पड़े।

जब इन्द्र को उसके दूतों ने बताया कि बंगाल की खाड़ी में मार्कण्डेय नामक ऋषि तप कर रहे हैं। इन्द्र ने मार्कण्डेय ऋषि का तप भंग करने के लिए उर्वशी (इन्द्र की पत्नी) भेजी। उर्वशी ने अपनी सिद्धि से उस स्थान पर बसंत ऋतु जैसा वातावरण बना दिया। सर्व श्रृंगार करके उर्वशी मार्कण्डेय ऋषि के सामने नाचने-गाने लगी। मार्कण्डेय ऋषि ने कोई उत्सुकता नहीं दिखाई। तब उर्वशी ने कमर का नाड़ा तोड़ दिया, निःवस्त्र हो गई। तब मार्कण्डेय ऋषि बोले, हे बेटी!, हे बहन!, हे माई! आप यह क्या कर रही हो? आप यहाँ घने जंगल में अकेली किसलिए आई? उर्वशी ने कहा कि ऋषि जी मेरे रूप को देखकर इस बन-खण्ड के सर्व साधक अपना संतुलन खो गए परंतु आप डगमग नहीं हुए, न जाने आपकी समाधि कहाँ लगी थी? कृप्या आप मेरे साथ इन्द्रलोक में चलो, नहीं तो मुझे सज़ा मिलेगी कि तू हार कर आ गई। मार्कण्डेय ऋषि ने कहा कि मेरी समाधि ब्रह्मलोक में गई थी, जहाँ पर मैं उन उर्वशियों का नाच देख रहा था जो इतनी सुंदर हैं कि तेरे जैसी तो उनकी 7-7 बांदियाँ अर्थात् नौकरानियाँ हैं। इसलिए मैं तेरे को क्या देखता, तेरे पर क्या आसक्त होता? यदि तेरे से कोई और अधिक सुंदर हो तो उसे ले आ। तब उर्वशी ने कहा कि इन्द्र की पटरानी अर्थात् मुख्य रानी मैं ही हूँ। मुझसे सुन्दर स्वर्ग में कोई औरत नहीं है।

तब मार्कण्डेय ऋषि ने पूछा कि जब इन्द्र की मृत्यु होगी, तब तू क्या करेगी? उर्वशी ने उत्तर दिया कि मैं 14 इन्द्र भोगूँगी। भावार्थ है कि श्री ब्रह्मा जी के एक दिन में 1008 चतुर्युग होते हैं जिसमें 72 चतुर्युग का शासनकाल पूरा करके 14 इन्द्र मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इन्द्र की रानी वाली आत्मा ने किसी मानव जन्म में इतने अत्यधिक पुण्य किए थे। जिस कारण से वह 14 इन्द्रों की पटरानी बनकर स्वर्ग सुख तथा पुरूष सुख को भोगेगी।

मार्कण्डेय ऋषि ने कहा कि जब वे 14 इन्द्र भी मरेंगे, तब तू क्या करेगी? उर्वशी ने कहा कि फिर मैं मृत्यु लोक (पृथ्वी लोक को मृत्युलोक भी कहते हैं) में गधी बनूंगी और जितने इन्द्र मेरे पति होंगे, वे भी पृथ्वी पर गधे की योनि प्राप्त करेंगे।

मार्कण्डेय ऋषि बोले कि फिर मुझे ऐसे लोक में क्यों ले जा रही थी जिसका राजा गधा बनेगा और रानी गधी की योनि प्राप्त करेगी? उर्वशी बोली कि अपनी इज्ज़त रखने के लिए, नहीं तो वे कहेंगे कि तू हारकर आई है।

मार्कण्डेय ऋषि ने कहा कि गधियों की कैसी इज्जत? तू वर्तमान में भी गधी है क्योंकि तू चौदह खसम करेगी और मृत्यु उपरांत तू स्वयं स्वीकार रही है कि मैं गधी बनूंगी। गधी की कैसी इज्जत? इतने में वहीं पर इन्द्र आ गया। विधानानुसार उसने अपना इन्द्र का राज्य मार्कण्डेय ऋषि को देने के लिए कहा, कि ऋषि जी हम हारे और आप जीते। आप इन्द्र की पदवी स्वीकार करें। मार्कण्डेय ऋषि बोले अरे इन्द्र! इन्द्र की पदवी मेरे किसी काम की नहीं। मेरे लिए तो काग (कौवे) की बीट के समान है। मार्कण्डेय ऋषि ने इन्द्र से फिर कहा कि तू मेरे बताए अनुसार साधना कर, तेरे को ब्रह्मलोक ले चलूँगा। इस इन्द्र के राज्य को छोड़ दे। इन्द्र ने कहा कि हे ऋषि जी अब तो मुझे मौज-मस्ती करने दो। फिर कभी देखूंगा।

मार्कण्डेय ऋषि ॐ नाम की साधना करते थे। जिससे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है, परंतु पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 8 श्लोक 16 के अनुसार ब्रह्मलोक में गए हुए प्राणी भी पुनरावर्ती में है अर्थात साधना का फल ब्रह्मलोक में भोगने के पश्चात साधक फिर मृत्युलोक में जन्म लेता है। अतः ऋषि जी को उस साधना से क्षणिक सुख प्राप्त हुआ परंतु मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई।

नोट: प्रसिद्ध ऋषि दुर्वासा, ऋषि चुणक, ऋषि कपिल जो ऋषियों के रूप में ब्रह्म-काल के उपासक थे, ज्ञानी आत्माएं थीं। उन्होंने ‘पंचाक्षरी मंत्र’/ ‘ओम’ मंत्र का जाप किया। उन्हें मोक्ष नहीं मिला, ईश्वर नहीं मिला, बल्कि शक्तियाँ प्राप्त करके उन्होंने कितने ही निर्दोष लोगों को नष्ट कर दिया। वे चारों ओर घूमते हुए मृत्यु के दूत बन गए। ये ज्ञानी आत्माएं हृदय से उदार थीं, ईश्वर को प्राप्त करना चाहती थीं इसलिए उन्होंने तपस्या की, लेकिन कोई सच्चा गुरु न मिलने के कारण उन्होंने ब्रह्म-काल को सर्वशक्तिमान मानकर मनमानी पूजा की।  ब्रह्म-काल गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में अपनी पूजा को तुच्छ बताता है क्योंकि इसे करने से मोक्ष प्राप्त नहीं होता।

भगवान शिव/शंकर जी का सही मंत्र क्या है?

भगवान शिव देवी पार्वती के साथ प्रत्येक मनुष्य के ‘हृदय कमल’ में निवास करते हैं। उनके पास एक विशिष्ट मंत्र है जो उन्हें सर्वशक्तिमान कविर्देव द्वारा दिया गया था। सच्चे गुरु तथा आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव के कारण पहले ऋषि-मुनि अज्ञानी थे और मनमानी पूजा करते थे जिससे उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ और वे ब्रह्म-काल के जाल में ही फंसे रहे।

सबसे पहले, आइए उदाहरण से समझें कि भगवान सदाशिव के पुत्र तमोगुण शंकर जी के उपासकों की क्या स्थिति है?

रावण - भगवान सदाशिव के पुत्र तमोगुण शंकर जी का उपासक था

त्रेता युग में रावण एक विद्वान शासक थे। उन्होंने तमोगुण भगवान शंकर की आराधना की। वर्तमान समय में रावण जैसी पूजा कोई नहीं कर सकता। उन्होंने 10 बार अपना सिर काटकर शंकर जी को अर्पित कर दिया था। जैसा उन्होंने किया, परमेश्वर ने उन्हें वैसा ही प्रतिफल दिया। लेकिन रावण का अभिमान नहीं गया। उसके द्वारा किए गए जघन्य पाप के कारण वह राक्षस कहलाया। वह अपनी माता सीता को (जो भगवान शंकर के बड़े भाई अर्थात भगवान विष्णु जी की पत्नी थीं) अपहरण करके ले आया था।

भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी जो सीता के रूप में अवतरित हुई थीं और भगवान रामचन्द्र की पत्नी थीं। रावण ने सीता को अपनी पत्नी बनाने का प्रयास किया। जैसा कि रामायण में बताया गया है, दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। रावण कुत्ते की मौत मारा गया और राक्षस कहलाया। तमोगुण शंकर जी की भक्ति करने से उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई।

भस्मागिरि - भगवान सदाशिव के पुत्र तमोगुण शंकर जी का उपासक था

एक समय भस्मागिरि नामक एक तपस्वी थे जो तमोगुणी शिव के उपासक थे। जिन्होंने बारह वर्ष तक शिव जी के द्वार के सामने शीर्षासन (ऊपर पैर नीचे सिर) पर रहकर तपस्या की। शिव जी ने उनके ‘तप’ से प्रसन्न होकर उन्हें अपने वचन अनुसार अपना ‘भस्मकड़ा’ (कड़ा) प्रदान किया। राक्षस भस्मागिरी की बुरी नियत शिव जी की पत्नी पर थी। वह अपने पूजनीय भगवान की पत्नी-पार्वती जी को अपनी पत्नी बनाना चाहता था। भस्मकड़ा प्राप्त करने के बाद उसने भगवान शिव/शंकर को मारने की कोशिश की। भस्मागिरी से शंकर जी भयभीत हो गये और अपनी मृत्यु के भय से वहां से तेज़ी से भाग गये। बाद में कबीर परमेश्वर ने भस्मागिरी को मारकर उनकी जान बचाई। शिव जी के उपासक भस्मागिरी ‘भस्मागिरी’ के स्थान पर ‘भस्मासुर’ राक्षस कहलाए।

नोट: भोले-भाले अंधभक्त शिव जी को अजर-अमर मानते हैं। मृत्युंजय- जिसने मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है, कालिंजय, महेश्वर- सभी के भगवान। शिव जी स्वयं जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसे हुए हैं। वह अपने उन शिष्यों की जान कैसे बचा सकते हैं जो श्रद्धा से उनकी पूजा करते हैं और इस विश्वास के साथ ‘महामृत्युंजय मंत्र’ का जाप करते हैं कि वे हर स्थिति में बच जाएंगे? ‘ओम नमः शिवाय’, ‘रुद्र मंत्र’, ‘महामृत्युंजय मंत्र’, शिव ध्यान मंत्र आदि का जाप सभी मनमाने आचरण और काल्पनिक मंत्र हैं। इनका उल्लेख कहीं भी किसी धर्मग्रन्थ में नहीं मिलता।

यजुर्वेद अध्याय 19, श्लोक 25, 26, मन्त्र नं. 822 सामवेद उत्तराचिक अध्याय 3, खण्ड नं. 5, श्लोक नं. 8 और श्रीमद्भगवद गीता अध्याय 15 श्लोक 1-4, एक तत्वदर्शी संत की पहचान बताता है जो सच्चा मंत्र और सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करता है, जिसे जाप करने से साधक भगवान को और पूर्ण मोक्ष को प्राप्त करते हैं तथा अपने मूल स्थान ‘सतलोक’ में पहुँच जाते हैं।

आज, जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी वही प्रबुद्ध संत हैं जो शास्त्र आधारित पूजा, शंकर जी का सच्चा मंत्र, हमारे शरीर में संबंधित चैनलों को नियंत्रित करने वाले अन्य सभी देवताओं के भी मंत्र प्रदान करते हैं। आप सभी से यही प्रार्थना है कि संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा लें। भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान शिव, भगवान गणेश और यहां तक कि भगवान सदाशिव, देवी दुर्गा के सच्चे मंत्रों को प्राप्त करें और मोक्ष प्राप्त करने के योग्य बनें।

निष्कर्ष

पवित्र ग्रंथों के साक्ष्य के आधार पर निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले गए हैं:

  • शंकर जी भगवान सदाशिव के पुत्र हैं। ब्रह्म-काल सदाशिव और शंकर ये दो अलग-अलग भगवान हैं
  • भगवान सदाशिव 21 ब्रंह्माण्डों के स्वामी हैं जिन्हें क्षर पुरुष भी कहा जाता है
  • भगवान शिव/शंकर जी अपने पिता-ब्रह्म-काल के 21 ब्रंह्माण्ड में केवल तमोगुण विभाग के स्वामी हैं।
  • क्षर पुरुष के सभी 21 ब्रह्माण्ड नाशवान हैं।
  • ‘ओम नमः शिवाय’ ‘पंचाक्षरी मंत्र’ नहीं है। अनुवादकों द्वारा इसकी गलत व्याख्या की गई है। यह मनमाना है।
  • ‘पंचाक्षरी मंत्र’ ‘ओम’ है और कुछ नहीं।
  • पंचाक्षरी मंत्र’ भगवान सदाशिव का है जिसके जाप से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है लेकिन प्राणियों की पुनरावर्ती होती रहती है।
  • ‘पंचाक्षरी मंत्र’ मोक्ष नहीं दिला सकता।
  • शंकर जी के पास एक विशिष्ट मंत्र है जो तत्वदर्शी संत द्वारा प्रदान किया जाता है।
  • जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ही सच्चे आध्यात्मिक गुरु हैं। वह सतगुरु हैं।

Om Namah Shivaya or Panchakshari Mantra


 

FAQs : "शिव पुराण में ओम नमः शिवाय या पंचाक्षरी मंत्र का प्रमाण"

Q.1 ॐ नमः शिवाय किसका मंत्र है?

ॐ नमः शिवाय एक मनमाना और काल्पनिक मंत्र है और इसका कोई आध्यात्मिक महत्व नहीं है। इसका वर्णन न तो पवित्र गीता जी में मिलता है और न ही पवित्र वेदों में।

Q.2 ॐ नमः शिवाय का जाप करने से क्या लाभ होता है?

हमारे किसी भी पवित्र ग्रंथ में ॐ नमः शिवाय का वर्णन नहीं मिलता है। इस मंत्र का कोई आधार और प्रमाण नहीं है। इस तरह इसका जाप करने से हमें कोई लाभ नहीं हो सकता। अगर ॐ मंत्र जाप करने से भी कोई लाभ मिलता है तो वह पिछले जन्म के पुण्यों के कारण होता है। इस तरह इस मंत्र का जाप करना व्यर्थ और मनमाना आचरण है।

Q. 3 ॐ नमः शिवाय का जाप कितनी बार करना चाहिए?

ॐ नमः शिवाय का जाप करने से कोई लाभ नहीं मिलता इसलिए इसका जाप एक बार भी नहीं करना चाहिए। पवित्र गीता जी अध्याय 17 श्लोक 23 के अनुसार मोक्ष प्राप्त करने का मंत्र केवल ॐ-तत्-सत् (इसमें ऊॅं तो सार्वजनिक है, तत् सत् गुप्त मंत्र) है। लेकिन यह मंत्र केवल तत्वदर्शी संत ही प्रदान कर सकता है। प्रमाण गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में भी है।

Q.4 ॐ नमः शिवाय का जाप कैसे करें?

इसका जाप किसी भी तरह से नहीं करना चाहिए क्योंकि यह एक काल्पनिक और व्यर्थ मंत्र बनाया गया है। इसका वर्णन पवित्र गीता जी और पवित्र वेदों में कहीं नहीं है।

Q.5 सोते समय कौन से मंत्र का जाप करना चाहिए?

तत्वदर्शी संत से प्राप्त मंत्रों का जाप पूरे दिन में कभी भी किया जा सकता है। वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज जी तत्वदर्शी संत हैं।

Q.6 सबसे शक्तिशाली भगवान शिव जी का मंत्र कौन सा है?

भगवान शिव जी का मंत्र केवल इच्छुक भक्तों को तत्वदर्शी संत द्वारा ही प्रदान किया जाता है। केवल तत्वदर्शी संत द्वारा प्रदान किए गए मंत्रों का जाप करने से ही शिव जी से लाभ प्राप्त किया जा सकता है। आप को यह जानकर आश्चर्य होगा कि वर्तमान में भारत के हरियाणा के संत रामपाल जी महाराज जी ही एकमात्र तत्वदर्शी संत हैं।

Q.7 शिव जी के कितने मंत्र हैं?

शिव जी का केवल एक ही मंत्र है और वह केवल तत्वदर्शी संत प्रदान करता है।

Q.8 शिव पुराण का मूल मंत्र क्या है?

शिव पुराण में किसी वास्तविक मंत्र का वर्णन नहीं है। वास्तविक मंत्र केवल तत्वदर्शी संत ही प्रदान कर सकता है। फिर उन मंत्रों को जाप करने से ईश्वर कबीर जी और शिव जी से लाभ प्राप्त किया जा सकता है। वह तत्वदर्शी संत कोई और नहीं बल्कि हरियाणा भारत के संत रामपाल जी महाराज जी हैं।

Q.9 क्या हम असली और सच्चे मंत्रों का जाप 108 से अधिक बार कर सकते हैं?

जी हां, जो सच्चे मंत्र तत्वदर्शी संत द्वारा प्रदान किए जाते हैं, केवल उन्हीं मंत्रों का जाप करना चाहिए क्योंकि उन मंत्रों के जाप को करने से ही लाभ और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Q.10 शिव जी को कैसे प्रसन्न किया जा सकता है?

केवल तत्वदर्शी संत द्वारा दिए गए शिव जी के मंत्रों के जाप करने से ही भगवान शिव को प्रसन्न किया जा सकता है। प्रमाण पवित्र गीता जी अध्याय 4 श्लोक 34 में भी मिलता है.


 

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Mahesh Singh

क्या ॐ नमः शिवाय मंत्र के जाप से दुखों का निवारण हो सकता है?

Satlok Ashram

ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करने से कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। हमारे किसी भी पवित्र धार्मिक ग्रंथ में इसका प्रमाण नहीं है। यह एक काल्पनिक मंत्र है।

Gopal Kumar

शिव जी की पूजा करने की सही विधि क्या है?

Satlok Ashram

केवल तत्वदर्शी संत ही शिव जी के असली मंत्र और भक्ति विधि बता सकते हैं। इसके लिए तत्वदर्शी संत की खोज करनी चाहिए।

Jatin Kumar

ॐ मंत्र किसका है?

Satlok Ashram

हमारे पवित्र धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ॐ मंत्र ब्रह्म काल यानि कि ज्योति निरंजन का है।