पवित्र वेदों अनुसार साधना का परिणाम केवल स्वर्ग-महास्वर्ग प्राप्ति, मुक्ति नहीं


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पवित्र गीता अध्याय 9 के श्लोक 20, 21 में कहा है कि जो मनोकामना(सकाम) सिद्धि के लिए मेरी पूजा तीनों वेदों में वर्णित साधना शास्त्र अनुकूल करते हैं वे अपने कर्मों के आधार पर महास्वर्ग में आनन्द मना कर फिर जन्म-मरण में आ जाते हैं अर्थात् यज्ञ चाहे शास्त्रानुकूल भी हो उनका एक मात्र लाभ सांसारिक भोग, स्वर्ग, और फिर नरक व चैरासी लाख जूनियाँ ही हैं। जब तक तीनों मंत्र (ओ3म तथा तत् व सत् सांकेतिक) पूर्ण संत से प्राप्त नहीं होते। अध्याय 9 के श्लोक 22 में कहा है कि जो निष्काम भाव से मेरी शास्त्रानुकूल पूजा करते हैं, उनकी पूजा की साधना की रक्षा मैं स्वयं करता हूँ, मुक्ति नहीं।