विशेष संदेश भाग 20: मोक्ष के लिए सद्गुरु अनिवार्य


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सत साहिब।

सतगुरु देव की जय।

बंदी छोड़ कबीर साहिब जी की जय।

बंदी छोड़ गरीबदास जी महाराज जी की जय।

स्वामी राम देवानंद जी गुरु महाराज की जय हो।

बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय हो।

सर्व संतों की जय।

सर्व भक्तों की जय।

धर्मी पुरुषों की जय।

श्री काशी धाम की जय।

श्री छुड़ानी धाम की जय।

 श्री करोंथा धाम की जय।

श्री बरवाला धाम की जय।

सत साहेब।

गरीब नमों नमों सत् पुरुष कूं, नमस्कार गुरु कीन्हीं। सुरनर मुनिजन साधवा, संतों सर्वस दीन्हीं। सतगुरु साहिब संत सब, दंडवत्तम प्रणाम। आगे पीछे मध्य हुए तिंकू जा कुर्बान।

कबीर सतगुरु के उपदेश का, सुनियां एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं, जाते नरक द्वार। नरक द्वार में दूत सब, करते खैंचातान। उनसे कभी नहीं छूटता, फिरता चारों खान।। कबीर चार खानी में भ्रमता, कबहूं ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।

जय जय सतगुरु मेरे की। जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से बसियो, अमरपुरी के डेरे की। जय जय सतगुरु मेरे की। जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से बासियो, सतलोक के डेरे की।।

निर्विकार निर्भय तू ही और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान। सब पर तेरी साहिबी। सब पर तेरी साहिबी, तुझ पर साहब ना।। निर्विकार निर्भय।।

परम पिता परमात्मा कबीर परमेश्वर जी की असीम रज़ा से बच्चों आपको अमर कथा, सच्चा ज्ञान सुनने को मिल रहा है। आपकी किस्मत भगवान ने अलग लेखनी से लिखी है। अलग आपका अकाउंट है। जिस पर काल का कोई अधिकार नहीं है।

बच्चों! परमात्मा का एक-एक शब्द अपने को सत् मानना होता है। या तो भक्ति पर लगो मत। भोगो कष्ट। भक्ति पर लगकर भी और भक्ति मार्ग में अविश्वास होता है तो वह प्राणी सफल नहीं होता।  जैसे दास को पहले शुरुआत में परमात्मा की चाह खूब थी और यह सुना करते थे द्रौपदी का चिर बढ़ गया। नरसी दास भगत की हूंडी भगवान ने ली। तो इस तरह की बातें आत्मा मानती थी की भगवान कुछ भी कर सकता है। पर कोई कह दे कि नहीं ऐसा नहीं हुआ करता, यह तो वैसे ही भगवान की आस्था बनाने के लिए कह रखा है। ऐसा नहीं हो सकता। तो मन यह भी मान लेता था कि ऐसा ना होगा पर भगवान तो है। केवल इतना मानकर भक्ति कर रहे थे। दीक्षा भी ले ली थी और फिर परमात्मा ने ऐसा अजब-गजब किया वह सारी शंका मिटा दी।

लोहे की जाली को 1 फुट से ज्यादा बढ़ा दी और दोनों को बढ़ा दिया एक को नहीं। तो बच्चों! विश्वास बहुत ज़रूरी है। जैसे आपको उदाहरण दिया जाता है सत्संग के माध्यम से एक गांव के बाहर दो साधक साधना कर रहे थे। एक 40 साल से बैठा था, आयु 60 के आसपास हो चुकी थी। दूसरा 4 वर्ष से साधना करने लगा था वह भी घर त्याग कर बाहर आश्रम बना रखा था। तो बच्चों! वैसे तो साधना तो दोनों की ही शास्त्र विरुद्ध थी। पिछले संस्कार से प्रेरणा इतनी प्रबल हो जाती है की आत्मा भगवान की तरफ तड़प जाती है। उसको खोजने के लिए निकल पड़ती है और जैसा कोई मार्गदर्शन मिलता है उसी अनुसार अपना सारा जीवन कुर्बान कर देती है। उससे उसका कुछ तप मिल जाता है, बन जाता है और कुछ सिद्धियां आनी शुरू हो जाती है। उससे उसका वहां बोलबाला हो जाता है। फिर उसकी मृत्यु के बाद वहां एक यादगार बना दी जाती है। वह निर्भाग स्वयं तो नरक में गया, आने वाले उस गांव की कई पीढ़ियों को भी नरक भेजने का सामान तैयार कर गया। आने वाली पीढ़ियां उसी पर मत्था टेक-टेक कर उस कब्र पर, उसकी मूर्ति पर और अपनी मनोकामना पूर्ण करवाती हैं।

होता किसी का कुछ नहीं और वह भावना बन जा। एक-दो का वैसे ही सूत बैठ जा दांव लग जा स्वाभाविक। जो भक्ति नहीं करते उनका भी हो जाता है वह तो। उसका संस्कार होता है और वह निमित्त उसके कर देते थे हम। हम भी ऐसे ही थे। भगवान उसके नंबर देता है अलग से। तो उसकी भक्ति में आस्था अगले जन्म में भी बनी रहती है इस तरह की क्रियाओं से। वह आस्तिक और नास्तिक दोनों क्रिया करता है, वह घर का रहता ना घाट का। एक देवदूत आया करता था ऊपर से विष्णु जी के लोक से और वह आकर के उन दोनों भक्तों से काफी देर तक चर्चा परमात्मा की करता था। प्रश्न करते रहते थे भगवान ठीक है?

वहां की व्यवस्था कैसी है? तो वह दोनों, देवदूत दोनों भक्तों के पास घंटो बैठकर जाया करते था। देवदूत से भगवान ने पूछा, विष्णु ने, “भाई कहां जाता है?” जी ऐसे ऐसे आपके भक्त हैं बहुत गज़ब के। कुर्बान हैं आपके लिए तो। उस गांव में और मैं वहां बैठ आता हूं कुछ देर जाकर। आपके ऊपर तो कुर्बान हैं। तो भगवान बोले विष्णु जी बोले, “की उनमें भगत तो एक है। एक तो वैसे ही टाइम पास कर रहा है।” देवदूत बोला जी वह होगा जो 40 साल से आपके लिए कुर्बान है। घर छोड़कर आया हुआ है। तो भगवान बोले, “नहीं दूसरा जो 4 साल से बैठा है वह भगत है। उसको मुझ पर विश्वास है और बड़े को विश्वास नहीं है।” यह बात उस देवदूत के गले नहीं उतरे। यह तो हो ही नहीं सकता। तो भगवान ने समझ लिया, की देवदूत को विश्वास नहीं मेरी बात पर।

तो विष्णु जी बोले, ‘भाई एक काम करना देवदूत! आज तू लेट जाना समय से, जिस समय जाता है और फिर वह पूछेंगे कारण लेट होने का? उनको फिर ऐसे बताना कि आज भगवान ने समय दे रखा था की दोपहर को सूई की नोक में से जिसमें धागा डाला करें, सूई के नाके में से सुराख में  हाथी निकालेगा भगवान और कहना कि मैं उसको देखने के लिए रुक गया और भगवान ने हाथी, उस सूई के नाके में से निकाल दिया।’ वह इसी तरह किया देवदूत पहले उसी के पास गया बड़े के पास क्योंकि उसको भ्रम था। तो विष्णु जी ने कहा था फिर यह देखना वह कौन, क्या प्रक्रिया करता है? तुझे स्वयं फैसला हो जाएगा भगत कौन है? देवदूत उस बड़े के पास गया। उसने भी यही जाते  ही कारण पूछा की क्या बात देवता आज लेट हो गए? आपकी बहुत इंतजार थी और आपके साथ बैठकर भगवान की चर्चा करते थे।

अच्छा समय व्यतीत होता था। क्या बात हो गई ? क्या कारण हो गया लेट हुए आप आज? देवदूत ने वही बताया, कि आज दोपहर को भगवान ने एक लीला की थी वह देखकर आया हूं। तो वह भगत बोला क्या लीला की? “की कमाल कर दिया भाई। हद कर दी भगवान ने, एक हाथी को सूई के नाके में से निकाल दिया। इसको देखकर आया भाई मैं। इसको देखने के लिए रुक गया था।” भगत बोला 40 साल वाला, देवदूत! देवता! ऐसी झूठ बोल किसी के यकीन हो जावे। यह कभी हो सकता है। सूई के नाके में से हाथी निकल जावे? क्यों झूठ बोल रहा है देवता होकर ऐसी बात कर रहा है तू। तो उस देवदूत के होश उड़ गए और उसके सारे अनुभव फेल हो गए कि भगवान ठीक ही कह रहे थे। यह तो बिल्कुल पशु है। जब इसको इतना विश्वास नहीं भगवान कुछ नहीं कर सकता तेरे जैसा घसियारा है। फिर भक्ति क्यों कर रहा है? देवदूत उठकर चल पड़ा। फिर उस 4 साल वाले के पास गया। उसने सोचा यह तो क्या पता धमका ही दे मेरे को गुस्से होएगा, इसको तो ज्ञान ही कुछ नहीं होगा अभी तक।

उस 4 साल वाले ने भी भगत ने पूछा, देवदूत आज लेट हो गए आपके आने की बड़ी इंतजार रहती थी। आज तो सोच लिया था शायद नहीं आएंगे। क्या काम हो गया ऐसा कोई, हमें भी बताओ? देवदूत बोला, “भाई क्या बताऊं झूठ मैं कह नहीं सकता और सच्ची किसी के यकीन होती नहीं।” भगत बोला बताओ तो सही क्या बात है? “की आज दोपहर को भगवान ने लीला करनी थी, मै उसको देखने के लिए रुक गया।” क्या लीला थी? देवदूत बोला, “सूई के नाके में से भगवान ने हाथी निकालना था।” भगत बोला फिर क्या हो गया। तो भाई निकाल दिया कमाल कर दिया। बोला बस भगवान निकाल दे सारी पृथ्वी ने, धरती ने सुई के नाके में से। आप हाथी पर आश्चर्य कर रहे हो। वह देवदूत ने सीने से लगा लिया उस बालक को। ऐसे बोला, “धन्य हैं तेरे माता-पिता! जिनसे जन्म हुआ। भक्ति करें और विश्वास नहीं। तो ख़ाक भक्ति है वो?

कह कबीर सुनो भई साधो, मैं तो हूं विश्वास में।।

तो अपने परमात्मा की किसी भी क्रिया पर अविश्वास नहीं होना चाहिए और यह धीरे-धीरे आपके साथ भी परमात्मा ऐसी लीला करते रहेंगे और कर भी दी होंगी और नहीं भी हो तो इतने सारे प्रमाण दिए जाते हैं विश्वास कर लेना। परमात्मा की भक्ति से दूर ना होना। बच्चों! आपको अजब गजब का ज्ञान दास बता रहा है।

जो संत गरीबदास जी ने परमात्मा से प्राप्त हुआ और ऐसा निर्णायक ज्ञान है इसका रिज़ल्ट इस पूरी कथा का, फिर बाद में आपको बहुत अच्छा निष्कर्ष मिलेगा। पार्वती जी शिव की पत्नी और 108 बार मर चुकी थी। 109वें जन्म में भी उसने शिवजी को ही पति बनाया, यह संस्कार था उनका। नारद मुनि ने एक दिन आकर के पार्वती जी को समझाया कि हे माता! “भगवान शंकर जी के पास एक ऐसा मंत्र है जो आपको बता दें ना, उस नाम के जाप से आप अमर हो जाओगे। अन्यथा आप 108 बार मर चुके हो और वह भगवान, उसकी प्रमाण के लिए आपके सिरों की खोपड़ी की माला बना रखी है। 108 हैं गिन लिए (लेना)। पार्वती जी बोलीं, “भाई नारद बिल्कुल सही है 108 हैं। मैं पूछती हूं की यह किसके, क्या हैं? तो वह टाल मटोल कर जाते हैं।” तो हे माता! आपका जन्म-मरण मिट जाएगा।

तो वह बोली, ‘भाई यह मेरे बात समझ में नहीं आती की शिवजी महाराज जी मेरे से कुछ नहीं छुपाते और इसने यह कैसे छुपा रखा है मंत्र मेरे से। मेरे से बहुत प्यार करते हैं और बताते हैं, तेरी मृत्यु के बाद मैं बहुत रोता था।’ तब नारद जी ने कहा माता! “अभी तक आप उनको पति मानती हो। जिस दिन परमात्मा रूप देखोगी और उनको एक गुरु रूप में नम्र भाव से प्रश्न करोगी बिल्कुल अति नम्र होकर तभी यह गुप्त मंत्र आपको बतायेगा। यह मंत्र शिवजी ने किसी को नहीं दिया आज तक क्योंकि ऐसा किसी का Luck (भाग्य) है नहीं। ऐसा भाव किसी का है नहीं। तो आपको वह भाव बनाना पड़ेगा जिससे वह आपको यह अमर मंत्र दें दे।” नारद कह कर चला गया। पार्वती जी को बेचैनी हो गई, माता जी को। शिवजी जब घर आए और दिनों तो वह दूसरे ढंग से बात किया करती क्योंकि पत्नी बराबर का हकदार होती है। हिस्सेदार होती है। उस दिन चरणों में लेट गई।

दंडवत प्रणाम किया। और चरण पकड़ के रोने लग गई और कहने लगी हे भगवान! मुझ से ऐसी कौन सी गलती बन गई, कि आपने मेरे से वह अनमोल मंत्र छुपा रखा है। हे भगवान! मैं 108 बार मरी क्या आप दुखी नहीं हुए होंगे। मुझे वह नाम बता दो जिससे मेरा जन्म-मरण मिट जा (जाए)। अब शिव जी उसके मुंह की तरफ देख रहा है पार्वती की। सारे आव-भाव को समझ रहा है। कहने लगा पार्वती! “आज तेरे को कौन ऐसा भाग्यवान आत्मा मिल गया जिसने तेरी बुद्धि बदल दी।”

यह तेरी बुद्धि का ज्ञान नहीं है। तेरे को तो मैं जानता हूं। यह बात तेरे मन में भी नहीं आती थी। मैंने कोशिश भी की, भक्ति किया करो। आप कह देती थीं, ‘आप भगवान हो मुझे क्या ज़रूरत है। मैं भगवान के साथ हूं। मैं उनकी अर्धांगिनी हूं। तब पार्वती जी ने बताया की नारद जी आए थे। उन्होंने, मुझे यह सब बताया।’ तो भगवान शंकर बोले पार्वती सुन ले! “जितनी बार तू मरी मेरा पागल जैसा हाल हो जाया करता था। एक बार तु राजा दक्ष के यज्ञ में जलकर मरी। तेरे अस्थिपिंजर  को उठाए मैं 10,000 वर्ष तक घूमता रहा था। 

कंधे पर रखकर और पार्वती पार्वती करता हुआ। वह तो एक सुदर्शन चक्र आया उसने काटकर तेरे टुकड़े कर दिए शरीर के। जब मैं ठगा सा रह गया। मेरे हाथ कुछ नहीं बचा। फिर तेरा जन्म हो गया, शादी फिर हो गई वह भूल पड़ी। यह मंत्र ऐसा अजब गजब है, यह आम व्यक्ति को नहीं बताया जा सकता।” भगवान शंकर जी ने कहा, की अब तेरी आत्मा सच्चे दिल से डिमांड कर रही है अब मैं तुझे यह नाम दूंगा।

गरीब दास जी बताते हैं, कि जैसे सीप एक जानवर होता है शंखला सा। जैसे यह शंख होते हैं इस टाइप के मज़बूत शरीर का और उसको सीप बोलते हैं सीप। वह सीप जो है गर्मी हो जाती है जब उसको अंदर पानी की डिमांड होती है। मोती बनाने के लिए उसमें एक प्रेरणा होती है जैसे पशु में अंदर गर्भ धारणे की होती है। उस समय सीप समुंदर के ऊपर आ जाती है। ऊपर बादल गरज रहे होते हैं। यदि उसका मुंह खुला हो और बारिश की एक बूंद भी उसके मुख में चली जाए तो उससे मोती बनना शुरू हो जाता है।

उस बूंद को लेकर वह सीप वापिस समुद्र में गोता लगा जाती है। उसमें मोती बन जाता है और यदि सीप का वह मुंह बंद हो, चाहे सारा सावन वरष जा (बरस जाए) उसके ऊपर मोती नहीं बने। तो पार्वती को समझाया, कि अब तेरी सीप का, आत्मा का मुंह खुल चुका है। अब मैं यह नाम दूंगा असर करेगा और पहले तेरी सीप आत्मा का मुंह बंद था इसलिए यह अमोघ मंत्र ऐसे व्यर्थ नहीं कर सकता था। फिर कहा की चलो सुबह-सुबह एकांत स्थान पर पहुंच गए। वहां एक सुखा वृक्ष था। पत्ते भी नहीं थे। उसके नीचे बैठ गए और बच्चों! वहां फिर दोनों हाथों की ताली बजाई। तो आसपास के पक्षी उड़कर भाग गए इतना शोर हुआ और जो अंडे थे वह बच्चे बनकर उड़ गए। उसी वृक्ष की खोगड़ में एक खोखले स्थान पर तोते के अंडे थे।

वह जो अंडे थे, स्वस्थ अंडे तो बच्चे बनकर उड़ गए। अस्वस्थ था एक अंडा बिल्कुल खराब हो गया था,‌ गंदा हो गया था। वो वहीं रह गया। भगवान शंकर को पता नहीं था की इसमें कोई तोते के बच्चे भी हैं, अंडे भी हैं। उनको मालूम था की अंडे भी होंगे तो बच्चे बनकर जा चुके होंगे। अब बच्चों! बहुत सी कहानी इस एक ही कथा से आपको समझ में आयेंगी। जैसे यह क्या करते हैं भक्ति नहीं करके मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। फिर क्या करते हैं उन अस्थियों को उठाते हैं जली हुई हड्डियों को। उनको उठाकर गंगा में बहाकर आते हैं। उनका उद्देश्य तो यह होता है, कि इसको इतने गहरे पानी में डाल दें की जो व्यक्ति मर जाता है स्त्री या पुरुष जब वह प्रेत बन जाता है तो अपने घर आता है।

घर में वह अपनी बॉडी को खोजता है। फिर वह जाता है श्मशान घाट पर। उसको एहसास होता है, की यह ताज़ा-ताज़ा जो फूंके गए हैं यह तेरी हड्डी हैं। उन हड्डियों को अपनी मानकर उनके चिपक जाता है वह भूत और फिर कभी घर और कभी उन हड्डियों के पास वहां, चक्कर काटता रहता है। परिवार वालों को तंग करता है। तो क्या करते हैं, इसीलिए उन हड्डियों समेत उठाकर उसे ऐसी जगह डाल देते हैं उसको भेद ही नहीं लगता और वह भटक आदि कर चला जाता है।

तो बच्चों! अब हमने, नहीं तो यह क्रिया करनी क्योंकि हम भूत बनेंगे ही नहीं। हमारी सच्ची भक्ति है और उससे कोई समाधान नहीं होता। तो इसी प्रकार जो दास बताना चाहता है की मरने के बाद भी उन हड्डियों को भी वह जीव अपना मान रहा था, कि मेरी हैं। उनके चिपक जाता है। इसी प्रकार जो गंदा अंडा हो गया था वह आत्मा उसके चिपकी हुई थी कि मेरा है। हालांकि, वह बिल्कुल खत्म हो चुका था कुछ दिनों में उसकी वह सूख जाता खत्म हो जाता। फिर वह उसको छोड़कर चलती। तो वह आत्मा उसके साथ चिपकी हुई थी। उधर से पार्वती जी को कथा सुनाना शुरू कर दिया। अमर कथा सुनाई क्योंकि गरीबदास जी कहते हैं; कबीर साहेब ने बताया,

हम वैरागी ब्रह्मपद, सन्यासी महादेव। सोहं मंत्र दिया शिवजी को, वह करें हमारी सेव।।

तो कबीर साहेब ने इन सबको यह अमर ज्ञान सुनाया था सतलोक वाला, सृष्टि रचना सब कुछ सुनाई। भगवान ऐसा है, भगवान ऊपर है, भगवान ऐसा है। वह सबका मालिक है। जब तो मान ली प्रथम नाम एक ले लिया। किसी को ओम दे दिया, किसी को सोहं दे दिया, किसी को श्रीयम-हरियम दे दिया, किसी को किलियम। इस तरह इनको अपना बनाया परमात्मा ने और फिर सोचा था, कि दोबारा मैं आऊंगा। अगर इनकी बुद्धि काम करेगी, इनकी आस्था ठीक रही तो फिर नए सिरे से मंत्र पहला दूंगा। जब दूसरी बार परमात्मा गए तो इन सबकी बुद्धि काल ने फेर दी।

इन्होंने सुनी भी नहीं कबीर साहिब की बात। तो कबीर साहेब वापस आ गए। अब वह ज्ञान शिवजी को था, पार्वती को बताया और मंत्र दिया उनको। अब बच्चों! पांच नाम शिव जी को बताए थे। लेकिन शिवजी विशेषकर एक सोहं मंत्र ही जाप करता है। यह चक्र यह है कि जो गुरु बताते हैं हम उस पर नहीं रूक करके फिर मनमुखी जरूर करते हैं कोई कोई और परमात्मा जी ने, कबीर साहेब ने शिवजी को सब कमलों का भेद बताया था, यह योगी था।

इससे तो एक कमल भी नहीं सुलझा था एक भी और अभी तक नहीं सुलझा है। लेकिन ज्ञान सारा बता दिया था। तो पार्वती को सुनाया जा रहा था ज्ञान। पार्वती Yes (हां) करती जा रही थी। देखो यह मूल कमल है। आगे चलो स्वाद चक्कर है। फिर नाभि कमल है। हृदय कमल है। उसमें ऐसे-ऐसे देवता है। कंठ कमल में ऐसा है। त्रिकुटी कमल तक पहुंचा दिया बस। पार्वती जी ध्यान मग्न हो गई उसको नींद आ गई। बोलना बंद कर दिया। उधर से वह पक्षी, इस कथा को सुनने से वह अंडा स्वस्थ हो गया तोते का और हुंकारे भरने लग गया। शिवजी ने देखा आवाज़ और इस तरह की आई पार्वती तो सो रही है, झपकी ले रही है बैठी-बैठी। आवाज़ कहां से आई? उसने देखा एक पक्षी उस वृक्ष की खोगड़ में उस थोथे स्थान में नज़र पड़ा।

पक्षी उड़कर भाग लिया। शिवजी उसके पीछे चल पड़े की इसने मेरा ज्ञान चुरा लिया। आकाश में उड़ गया। उड़ के पीछे हो लिया। यह तोते वाला जीव अब परमात्मा की अमर कथा सुनने से उसमें भी  शक्ति सिद्धि आ गई थी और यह ज्ञान जो है, पूरे पहुंचे हुए संत से, सिद्धि युक्त और अधिकारी से सुनने से ज़्यादा असर करता है। भगवान शिव तीन लोक के प्रधान हैं। इनमें आध्यात्मिक शक्ति है। वह साथ मिलकर उसकी आध्यात्मिक शक्ति के साथ वह वाणी जो परमात्मा की अमर कथा उसके भी बॉडी में गई। उसमें सिद्धि आ गई।

मोक्ष तो बहुत दूर की बातें हैं यह तो लंबा चैप्टर है, एक  लंबी कहानी है। लेकिन सब थोड़ा-थोड़ा हिंट आपको देना पड़ता है। कहीं कभी कोई मिस गाइड ना कर दे। सिद्धियों के तो यह अष्ट सिद्धि , नौ निधि के भरे पड़े हैं शिवजी और इनके वचन से भी सिद्धि आ जाती है किसी को यह कह दें तो। लेकिन इन सिद्धियों को क्या चाटें? मोक्ष तो नहीं होवै (होता)। भाव कहने का यह है की वह तोते वाला प्राणी वेदव्यास के आश्रम में पहुंच गया  उड़ता-उड़ता। पीछे-पीछे शिवजी। वहां शरीर छोड़कर और व्यास की पत्नी ने झमाई (उबासी) ली थी उसके द्वारा स्वांस के द्वारा वह सूक्ष्म जीव अंदर चला गया और जब गर्भ धारण का समय आया तो उनके गर्भ में स्थान दिया। उस बच्चे के शरीर में प्रवेश हो गया। 12 वर्ष तक वहीं रहा।

आगे कथा, इसमें आगे आयेगी वह बताऊंगा। अब यह वाणी सुनाऊंगा जो आसानी से आपके समझ में आयेगी।

मोक्ष मुक्ति का लखा ना भेवा। भ्रमे पुत्र व्यास सुखदेवा। सतगुरु मिला महादेव बंका। 84 की मिटी निशंका।।

की महादेव जैसे भी उनको मिले फिर भी चौरासी लाख योनियों का चक्कर उनका मिटा नहीं।

अठोतर जन्म गौरी भरमाई। शिव को रूंड माला गल लाई। अर्ध शरीरी देवी गोरा। जिनका थिर भया नहीं भौंरा।।  

108 जन्म पार्वती जन्मती-मरती रही और शिवजी ने उसके सिर की माला सिर के रूंड खोपड़ियां माला बनाकर गले में डाल रखी थी।

अर्ध शरीरी देवी गोरा। जिनका थिर भया नहीं भौंरा।।

अर्धांगिनी थी शिव की पार्वती और उसका भी मोक्ष नहीं हुआ।

नारद मुनि उपदेश बखाना। गिरिजा सुनो मोक्ष पद ज्ञाना।। सुन हे देवी गोरा माई। 68 तीर्थ परभी नहाई।।

पिंड प्रदान किए कई बारा। खुला नहीं मुक्ति का द्वारा।।

यदि पिंड प्रधान। कहते हैं पिंड प्रदान करने से।

भूत जुनी जहां छूटत है, पिंड प्रदान करंत। गरीब दास जिंदा कहै, नहीं मिले भगवंत।।

जैसे पार्वती भूत बनगी पिंड प्रदान कर दिए। भूत जूनी छूट गई और फिर पता नहीं किस जूनी में चला जाता है प्राणी इसके संस्कार अच्छे थे। यह फिर मनुष्य जीवन लड़की का जन्म हुआ, शिवजी के विवाही गई। यह पिछले जन्म-जन्मांतर की शक्ति भक्ति के कारण मनुष्य जीवन ज़्यादा भी हो सकते हैं। लेकिन मोक्ष नहीं होने से फिर 84 लाख योनियों में जाना था इस पार्वती ने। आगे भी जाएगी। शिवजी भी मरेगा। पार्वती भी मरेगी। और फिर यह 84 लाख योनियों में जाएंगे।

कहते हैं

चंद सूरज की आयु लग, जै जीव का रहे शरीर। सतगुरु से भेंटा नहीं, तो अंत कीर का कीर।।

अगर चांद सूरज की आयु तक भी जीव का शरीर रहे और पूरा सतगुरु मिला नहीं तो अंत में कीड़े- मकोड़े बनेगा। अब नारद जी बता रहे हैं पार्वती जी को,

सुन हे देवी गौरा माई। 68 तीर्थ परभी नहाई।। पिंड प्रदान किए कई बारा। खुला नहीं मुक्ति का द्वारा।।

सारे कर्मकांड कर लिए तेरे मृत्यु के बाद, तेरा फिर भी मोक्ष नहीं हुआ। फिर जन्म हुआ। रूंड माला शिव के गले माहीं। सो देवी तुम जानो नाही।।

गरीब रुंड माला शिव के गले, गिरिजा के सब शीश। भक्ति दुराई देव को, ना परसा जगदीश।।

तुम्हारा देवी रूप विशाला। शिव तो पहर रहे रूंड माला।। भौतिक प्रलय हो हो जाई। लंबी उम्र शिव कलि माही।। दीर्घायु शिव है अनुरागी। तुम देवी गौरी दिल त्यागी।। मूल मंत्र नहीं नाम सुनाया। तातें कल्प होवे तेरी काया।। महादेव देवन पतिदेवा। जाकी करी ना गौरी सेवा।। कर वंदन कर शीश निवावो। तन मन अरपो शीश चढ़ाओ।। शिव है मोक्ष मुक्ति के दाता। तोसे भेद कहूं गौरी माता।। चरण गहो चिंतामणि केरा। तातें प्राण अभय हो तेरा।। कमल रूप देवी दिल कीन्हा। नारद मुनि उपदेश ही चिन्हा।। जब आए शिव मंदिर अवधुता। देवी चरण लिए सतरूपा।।

अब कहते हैं नारद के कहने से, पार्वती जी ने गौरी देवी ने, बिल्कुल पाक़ साफ दिल कर लिया, कमल की तरह। कमल के ऊपर कोई मैल नहीं होता। ना कोई धूल टिकती है, ना जल टिकता है, ना कोई कीचड़ टिकता है। तो ऐसा साफ दिल किया और जब शिवजी घर पर आए उनके चरणों में चरण लिए सतरूपा। सच्चे भाव से चरण लिए।

चरण पकड़ रोवत है बाला। मोरे शीश किए रूंड माला। मोसे भक्ति दुराई देवा। मैं जानी नहीं तुम्हरी सेवा।। मोसे भक्ति दुराई स्वामी।

हमसे भेद कहो निजधामी। मैं अबला हूं बाला भोली। पार निभाओ हमरी डोली।।

बिल्कुल चरण पकड़ के कहने लगी मैं तो भोली सी लड़की हूं और मेरा बेड़ा पार करो। बच्चों! यह सारी कहानी आपको मौखिक सुना दी। इन वाणियों में सारा इसी का निष्कर्ष है। अब क्या बताते हैं गरीब मूल मंत्र महबूब का, ईश सुनाओ मोही। पार्वती जी कहती हैं शिवजी को, की उस परमात्मा का समर्थ शक्ति का जो मूल मंत्र है वह मुझे बता दो। अब इनको मूल मंत्र का पता नहीं जिस भी नाम को यह गुप्त रखते हैं जो विशेष नाम इनके पास है उसी को मूल मंत्र मान रहे थे।

गरीब, मूल मंत्र महबूब का, ईश सुनाओ मोहि। युगन युगन के पातक कटे, छूटै दिल द्रोही। पूर्व जन्म की कथा सुनाओ। मूलमंत्र हमें शिव गौहराओ। भूल रही भवसागर हम ही। मोक्ष मुक्ति के दाता तुम ही। शिव बोले सुन देवी बाता। कौन उपदेशी मिला विधाता। यह तो नाहीं ज्ञान तुम्हारा। हम से भेद कहो परवारा।।

कि आज जैसे तू बोल रही है यह तेरी बुद्धि की बात नहीं। तुझे कौन ऐसा भाग्यवान आत्मा मिल गया जिसने तेरा मन फेर दिया।

गिरिजा कह सुनो शिव स्वामी। तारण तरण आदि घणनामी। नारद मुनि उपदेश समोधं। दीन्हा ज्ञान ध्यान प्रमोदं। शिव समर्थ बोले है जब ही। गोरी ज्ञान सुनाया तब ही।। कोटि क्लप प्रलय युग बीती। ज्ञान ध्यान सभी पर चिती।। तुमरा मन नारद मुनि फेरा। सुनो ज्ञान तुम गोरी मेरा।। बनखंड चलो गौरी दीवानी। पंछी सुने नहीं हमरी बानी।।

ऐसे स्थान पर चलो पक्षी भी कोई हमारी बात नहीं सुन सके।

जब शिव कर से लाई तारी। उड़ गए पंछी नर और नारी। जहां एक सुखा तरवर ताक्या। वहां पर एक सूखा वृक्ष देखा शिव को आसन तहां वहां राख्या। उसके नीचे अपना आसन लगा दिया पार्वती को साथ बैठा लिया। जहां एक गंदा अंडा तिस माही। तिस जानत है समर्थ साईं। युग असंख कल्प भरमाया। पूर्व जन्म कोई पिछला आया।। अब तू सुनो गौरी मेरा ज्ञाना। आसन मुख कर कोटि निशाना। आसन पदम लगाओ गौरा। मेरुदंड सुधा कर भौंरा। गरीब आसन पदम लगाए कर, भंवर चढ़ावो सुन्न। अनहद नादू बाजे ही, जहां लगाओ धुन।।

अब क्या बताते हैं कि उस वृक्ष की खोगड़ में एक गंदा अंडा पड़ा था और उस गंदे अंडे वाले जीव के असंख जन्म 84 लाख योनियों में हो चुके थे। यहां से उसके भाग्य जागे और तो पक्षी बनकर उड़ गए। वह पक्षी बन नहीं पाया। वह बाद में उड़ा जब, उसने सारी कथा उसके ऊपर असर कर गई। जैसे बच्चों! बहुत बार बताते हैं, दास आपको बताता है, कि यह अमर कथा जो गरीब दास जी की वाणी है यह शिवजी वाली अमर कथा से कई हज़ार लाख गुना ज़्यादा शक्तिशाली है। ज़्यादा प्रभावी है। अब यह कथा सुनाने का मुझे कोई उद्देश्य नहीं इसमें से ऐसा निष्कर्ष निकालूंगा आप हैरान रह जाओगे। जैसे एक सर्प काटे का इलाज करता है।

अब तो दवाईयां चल गई पहले गारड़ू होते थे, मंत्र बोलकर ज़हर उतार देते थे। जिसको सर्प ने काट लिया वह अचेत हो जाता था, बिल्कुल बेहोश। जैसे मर गया हो। स्वांस-स्वांस आते थे और गारडू क्या करता है एक मंत्र पांच-चार पंक्तियां होती हैं उसको सिद्ध करता है अपने जीवन में 5-4-7-10 साल लगाकर। वह वाणी सिद्ध हो जाती है। फिर उसको बोलता रहता उसके ऊपर साथ बैठकर उस सर्प डसे व्यक्ति पर। उस समय वह सर्प डसा व्यक्ति अचेत होता है। नाहीं वाणी सुन रहा है, नाहीं उसको समझ रहा है इसका अर्थ क्या है? तो कुछ समय के बाद वह उस वाणी के प्रभाव से उस शरीर का विष खत्म हो जाता है और वह व्यक्ति जीवित हो जाता है।

सचेत हो जाता है। इसी प्रकार बच्चों! परमात्मा की अमर कथा जितना जो सक्षम है उसके मुख से सुनी जाती है। तो उस स्तर का उसको लाभ अवश्य मिलता है। तो एक गंदा अंडा था। इसके साथ जीव चिपका हुआ था। यह गंदा अंडा नहीं सुन सके (सकता) था। नहीं बोल सके था। नहीं वह कह क्या रहा है शिवजी  वह समझ सके था और उस वाणी के बोलने से वह अंडा भी स्वस्थ हो गया। उसमें बच्चा भी बन गया। उसके पंख भी उग आई और वह उड़कर भाग भी गया। इसी प्रकार जो आज के मानव के ऊपर जो रहम हुआ है गरीब दास महाराज जी की अमरवाणी इस से भी ज़्यादा स्ट्रांग है और अब यह दास के मुख से चला करेंगे अखंड पाठों में। आसपास के पक्षियों पर भी असर करेंगी।

आसपास के पशु-पक्षी, जीव-जंतु, पेड़-पौधों सबके ऊपर ऐसे असर करेंगी जैसे इस पर किया था और यह सब धीरे-धीरे यहां से शरीर छोड़ते जाएंगे और मनुष्य जीवन पाते जाएंगे। यह सीधे फिर मालिक के चरणों में आएंगे। बच्चों! भक्ति ज़रूर करेंगे और भक्ति करेंगे तो मालिक कहीं ना कहीं उनको मिलेगा। अब मैं सुखदेव ऋषि की भी  सुनाता हूं। पार्वती का तो हो लिया। अब एक बात विचार करो कि जहां पार्वती जी को मंत्र मिला, अमर मंत्र मिला, वह नाम मिला भक्ति करने का यानी वह शिष्या भई तो वह स्थान पार्वती के लिए तो अमरनाथ हो सके (सकता) है। यह जो वहां आजकल जाते हैं माथा टेकने, देखने, दर्शन करने उनके लिए अमरनाथ नहीं है वह। अब जैसे आपने जिस भी आश्रम नामदान केंद्र पर, या कहीं भी दास से दीक्षा ली है आपका वह स्थान अमरनाथ है। लेकिन उस स्थान से कुछ नहीं लेना देना मोक्ष नाम से होगा। तो बच्चों! उस स्थान से मोक्ष नहीं है, वह स्थान तो आपको ज़िंदगीभर याद रहेगा मुझे वहां दीक्षा मिली थी। बस इतनी बात है और यह अमर ज्ञान मुझे प्राप्त हुआ था। लेकिन मुक्ति नाम से होगी और जो भोली आत्मा इतने ऊंचे पहाड़ों पर जाते हैं दर्शन करके आयेंगे। अब विचार करो जैसे दास ने बहुत बार समझाया आपको यह तीर्थ क्या होते हैं? यह धाम क्या है? जैसे पार्वती ने वहां नाम लिया।

नाम लेकर अपने घर को आ गई। अब भक्ति कर रही है। वहां क्या रखा है अब? अब जैसे तीर्थ हैं वहां किसी ऋषि ने, भगत ने कोई तालाब का सहारा लिया क्योंकि पहले पानी नहाने धोने का पीने का तालाब ही होते थे। कुएं भी बहुत गहरे होते थे एक आदमी नहीं खोद सकता। तो वहां बैठकर अपनी भक्ति करता था जैसे भी उसने डले ढोए क्योंकि सत् साधना तो आपको ईब (अब) मिली है पूरे विश्व को चार युग के बाद, मिलेगी। तो वह जैसा भी तप किया, कुछ किया उसने जैसा भक्ति कि उस आधार से वो उस लोक में चला गया और अब वहां कुछ नहीं। अब जैसे हम किसी का एक हमाम दस्ता ले आते और उसमें सामग्री कूटते हवन की और वापस दे आते हैं मांज धोकर। हमाम दस्ता होता है एक लोहे का, ऊखल सा और एक- डेढ़ एक फुट का उसका मुसल सा होता है लोहे का ही। उससे वह कूटते हैं। जैसे चटनी कूटा करें कौली में। तो हमाम दस्ते में थोड़ी बहुत स्मैल थी और 5-4 दिन में वह भी खत्म हो गईं। जिसका मांग कर लाए थे, उसको दे आए। तो उन घर वालों को महसूस हुआ कि इसमें कुछ स्मैल आवै है (आ रही है)। तो कोई सामग्री कूट रखी है और कुछ दिन के बाद वह स्मैल भी खत्म हो गई और वह सामग्री सारी बिल्कुल साफ करके अपने घर रख ली।

अब उस स्मैल को ही सूंघै बार-बार ओहो! कमाल हो गया। बड़ी स्मैल आई। फिर वह खत्म हो गई, चलो स्मैल लेकर आते हैं। उस स्मैल से कुछ नहीं होने का। वह बनानी पड़ेगी। इसी प्रकार मोक्ष प्राप्ति के लिए यह साधना करनी पड़ेगी। तो वहां जाने से कोई लाभ नहीं जहां पर कभी कोई ऋषि ने कोई साधना की थी। वह तीर्थ बने हुए हैं। तो काल ने परमात्मा से कहा था जब मालिक आए थे जोगजीत रूप में। अपने बच्चे ज्ञानी के रूप में, जोगजीत रूप में, सहज दास रूप में कई रूपो में आते रहते हैं। तब काल ने सारे वचनबद्ध करवाकर मालिक को और फिर अपनी वह दुष्टता दिखाई थी। यह कहा था;

जाओ ज्ञानी, बेशक जाओ जोगजीत संसारा। जीव ना माने कहा तुम्हारा। जीव तुम्हारा कहा ना माने। हमरी ओड़ हो वाद बखाने। तीर्थ व्रत और झूठे जप तप मन लाऊं। देवी देव देवल पुजवाऊं। यह विधि जीवों को भरमाऊं। द्वादश पंथ करूं मैं साजा। नाम तुम्हारा ले करूं आवाजा। द्वादश पंथ  नाम जो लेई। सो मेरे मुख में आन समोई। और अनेक पंथ चलाऊ। या विधि जीवों को भरमाऊं।।

तो आज वह सारा काम इसने कर रखा है। अब आप किसी को समझा कर देख लो आपके सिर हो जाते हैं। तुम हमारे देवताओं को ऐसे बताते हो। हमारी साधनाओं को गलत बताते हो। तीर्थ पर जाना ठीक नहीं। व्रत रखना ठीक नहीं। तो काल ने बोल रखा था कि हमारी ओड़ हो वाद बखाने। हमारी ओड़ हमारी तरफ पक्ष लेकर के वाद विवाद किया करेंगे।

अब बच्चों! जो दास बता रहा है कि जो अमर पाठ, अखंड पाठ या वैसे वाणी, सत्संग जहां भी चल हो रहे हैं, चला करेंगे, चलते हैं, चलेंगे वहां आसपास के पक्षियों को भी इसकी राहत मिलेगी और जैसे सुखदेव ऋषि, सुखदेव व्यास जी की पत्नी के पेट में समा गया गर्भ में। उसके बाद 12 वर्ष तक गर्भ में रहा। वहां उसको याद रहा, कि पिछले जन्म तो असंख खो दिए भक्ति नहीं बनी। अब के मानव शरीर प्राप्त हुआ है और बाहर जाते ही भूल पड़ जाती है तो ज़ुल्म हो जाता है। इस डर के मारे गर्भ से बाहर नहीं आया। 12 वर्ष बीत गए। ब्रह्मा, विष्णु, महेश को टेंशन हुई।

यह तीनों आ गए। इन्होंने कहा कि सुखदेव! बाहर आओ। 12 वर्ष तक गर्भ में ठीक नहीं, हमारी मर्यादा खत्म होती है। 9 महीने भी माताएं गर्भ में बच्चा रखती हैं बहुत परेशान हो जाती हैं और 12-12 वर्ष रखा करेंगी यह गलत परंपरा डलती है। आप ऐसा ना करो बाहर आ जाओ। तो सुखदेव ऋषि ने कहा की हे परवरदिगारो! हे भगवानो! अब मुझे ज्ञान हो गया, बाहर आते ही आपकी माया, यह त्रिगुणमयी माया हमें अचेत कर देती है सब भुला देती है। इस माया को रोक दो, फिर मैं आऊँ बाहर। इन्होंने कहा भाई ज़्यादा हम भी नहीं रोक सकते यह हमारे से भी बहुत ज़्यादा प्रबल है।

हमारे वश की बात नहीं है। बस, कुछ सेकंड के लिए रोक सकते हैं। तब उसने कहा जी! कुछ सेकेंड के लिए ही रोक दो। तो कुछ क्षण के लिए रोकी, इतने में सुखदेव बाहर आया। तो उसको भक्ति की प्रेरणा बनी रही, भगवान की याद रही। उसी समय नौ नाथ, 84 सिद्ध यानी 93 बच्चे और लड़के पैदा हुए। ऐसा इतफ़ाक़ था, संस्कार था उनका। उनको भी यह बातें याद रहीं। उनमें से नौ तो नाथ बन गए और 84 सिद्ध कहलाए। उनमें भक्ति की प्रेरणा बन गई बचपन से ही।

मालिक की याद बनी रही। लेकिन सच्चा सतगुरु नहीं मिलने से यह भी डले ढोए। अब बच्चों! ज्ञान पूरा आ चुका है और वह ठीक का समय आ गया है। गुरु पूरा, ज्ञान पूरा, भगवान पूरा। तो अब जो यह वाणी चले हैं और दास के मुख से चला करेंगी, यह कती (बिल्कुल) उद्धमस्त उतार देंगी। काल के पता नहीं कितने जुगाड़ को तोड़ेंगी। कितने जीवों का उद्धार बनेगा। मनुष्य का तो कहना ही क्या डांगर (जानवर), ढोर  पशु , पक्षी, कीड़े, मकोड़े को भी सहारा मिलेगा इसका। यह इन्ही पुराणों से कथा है और यह आपके सामने सच्चाई इस तरह है।

अब बच्चों! सुखदेव ऋषि जब बाहर आया उड़कर चल पड़ा। चल पड़ा वहां से। पिता ने कहा  बेटा! व्यास जी ने कहा पुत्र! एक बार शक्ल तो दिखा दे। 12 वर्ष इंतज़ार की पुत्र आवेगा (आएगा), पुत्र होगा। तब उसने कहा,

एक लेवा और एक देवा दूतम। कोई किसी का पिता नहीं पुतम।।

पिताजी पता नहीं कितनी बार तू मेरा पिता बन लिया, पता नहीं कितनी बार मैं तेरा पिता बन लिया। अब मुझे समझ में आ गई है, मैं आपकी तरफ देखूं नहीं। मेरा मोह बन जाएगा। यह छूत की बीमारी है यह मोह। यह विस्तार से फिर कभी बताएंगे और यह हम स्वयं लगावें (लगाते) जानबूझ कर। लेकिन यह उसकी गलती थी। ज्ञान नहीं होने से इसको इतनी ही समझ थी, जो उस समय गलती कर गया चलो जो भी उसकी सोच थी। उस आधार से यह वहां से चल पड़ा। पिता पीछे-पीछे मोह में दूर तक गया। वहां से आकाश में उड़ गया। अंतर्ध्यान हो गया।

आगे जाकर फिर प्रकट हो गया। अपनी ओरनाल जो बच्चे की नाभि से मां की नाभि से चिपकी होती है वह साथ बाहर आकर टूट गई। टूट कर बाहर आ गई। वह बाद में काटा करते हैं। वह भी नहीं कटवाई कंधे पर डाल कर उड़ गया। आगे ही काटूंगा। अब आकाश में उड़ने की सिद्धि उसमें उस मंत्र से आ गई, वह अमर कथा से। अमर कथा में शिवजी ने पूर्ण परमात्मा की महिमा बताई जो कबीर साहेब ने उसको सुना रखी थी। इसमें काफी प्रकरण हैं। अब इतना समय नहीं, जो मैं वह सारी बताऊं आपको। कबीर परमात्मा ने दया की, बड़ी जेल में फिर उनको विस्तार से समझाया करेंगे। तो कहने का भाव यह है, की सुखदेव ऋषि को अभिमान हो गया कि मैं बहुत बड़ा सिद्ध पुरुष हूं। आकाश में उड़ जाता हूं।

तो बच्चों! स्वर्ग में जाने लग गया और स्वर्ग के देवता, ऋषि-महर्षि, सब उसको उसकी, जो है पूरी वह करें सम्मान करें। उसकी आरती उतारें, की बड़ा धन भाग्य हैं तेरे, बड़ी सिद्धि प्राप्त कर ली। इनको इतना ही पता है सिद्धियों का ही और जन्म से ही छोटी उम्र में  आपको इतना कुछ प्राप्त हो गया। आप तो बड़े पहुंचे हुए हो। तो सब उसकी खूब अच्छी तरह प्यार रखें, महिमा गांवै। एक दिन उसको, उसने स्वर्ग में जाने की इच्छा व्यक्त की विष्णु जी के लोक में। वहां उसको इसलिए नहीं जाने दिया गया, कि उसका गुरु नहीं था। विष्णु जी तक बात गई। विष्णु जी ने पूछा की हे ऋषि जी! आपने गुरु नहीं बना रखा? की नहीं! गुरु की क्या आवश्यकता है महाराज? यह गुरु बना रहे, वह नहीं आ पाए और मैं बिना गुरु के आ गया। विष्णु भगवान बोले ठीक है, वह अलग बात है।

यहां वही रह सकता है, जो पहले गुरु बनाओ। फिर एक बीमारी और अहंकार है की मेरे बराबर पृथ्वी पर कोई गुरु नहीं। मैं बाल ब्रह्मचारी। वहां कोई ऐसा संत नहीं। मैं बनाऊं गुरु किसको? विष्णु जी ने कहा कि राजा जनक मेरे परम भक्त हैं। आप उनसे दीक्षा लो। यूं कहकर विष्णु जी चले गए। उसको बाहर निकाल दिया पार्खदों ने। वह स्वर्ग में आए। वहां सारी कथा बताई फिर। अन्य स्वर्ग, common (कोमन) स्वर्ग। फिर ऋषियों के पास आए, नीचे। उनको बताया तो सबने कहा की सुखदेव! बहुत बड़ी गलती कर रखी है।

गुरु नहीं बनाएगा। गुरु नहीं बनाएगा, तो गधा बनेगा। तो पिछले जन्मों में उसको एकदम वह रील सी चल गई कि मैं कभी गधा बना था एक बार और अंधा हो गया, स्वामी ने छोड़ दिया, कुम्हार ने और मैं भटकता-भटकता एक नाले में फंस गया। मेरा पुली बना ली लोगों ने, आने-जाने लग गए। मुझे निकाला नहीं। मैं भटक कर, भूखा मरकर, भूखा होकर तब मरया (मरा)। प्राण निकले। उस भय से, उसको चिंता बनी। फिर अपने पिता के पास वापिस आता है। व्यास जी देखकर बड़े खुश हुए। की बेटा आ गया। सारी बात पूछी।

तो सारी अपनी समस्या बताई पिताजी के सामने। पिताजी ऐसे-ऐसे बात है कि भगवान ने कहा है कि राजा जनक को गुरु बनाओ। तो व्यास जी क्योंकि जितने भी महापुरुष हैं वह एक सुर में बोलते हैं। उनको इतना ज्ञान तो है गुरु बिन बात नहीं बनती। उसने विशेष ज्ञान तो सुना नहीं था वह बैटरी चार्ज हो गई, उड़ा फिर रहा था उससे। ज्ञान था ही नहीं उसको। तो व्यास जी बोले अरे बेटा! मैं तो खुश था, चलो बेटा नहीं मेरे पास आया पर न्यूं (ऐसे) चर्चा तो चल रही है। की व्यास का बेटा, इतना पहुंचा हुआ है। अब तूने गुरु नहीं बना रखा, तूने तो भाई कमाल कर दिया।

तू दो कौड़ी का जीव नहीं। कल ने यह तेरे प्राण छूट जाएंगे यह बैटरी खत्म हो जाएगी और नरक में जाएगा बेटा। गुरु बिन बात नहीं बना करती। तो आखिर में हारकर यह बोला हे गुरुदेव! हे पिताजी! मैं कैसे गुरु बनांऊ राजा जनक को?

राजा जनक गृहस्थी भाई और कैसे शीश निवाऊं जाई। जनक विदेही राजा भाई। कैसे शीश निवाऊं जाई। सुखदेव बोले ज्ञान विवेका। हमने स्त्री का मुख नहीं देखा।

तब उसके पिताजी बोले जब भगवान ने कह दिया और तू अब भी अगरम मगरम कर रहा है। एक आनै का जीव नहीं, तुझे ज्ञान ही नहीं किसी का। कहां जाएगा फिर तु? वहां तेरे को घुसने नहीं देंगे स्वर्ग के अंदर। जब मरता, क्या नहीं करता। राजा जनक के द्वारे गया। वहां चरणों में माथा टेका और अपने कल्याण का मार्ग पूछा।

बच्चों! क्योंकि यहां समय बहुत कम मिलता है। इससे बहुत सी जानकारी होगी आपको। अजब गजब ज्ञान होगा क्योंकि अभी तक दास ने आपको केवल प्रमाण दिखाए, सारे ग्रंथ सुलझाए और एक नंबर का ज्ञान आपके हृदय में जमा दिया कि जो दास कह रहा है वह सारी सच्ची है। अब दास कोड वर्डों में, संकेतों में भी ज्ञान समझाएगा तो भी आपकी आत्मा गैले, साथ कैच करेगी। साथ की साथ।

गरीब गोता मारूं स्वर्ग में, जा पैठूं पाताल। गरीब दास ढूंढता फिरूं, अपने हीरे मोती लाल।।

आप वह हीरे मोती लाल हो। बच्चों! आप सामान्य आत्मा नहीं हो। देखो परमात्मा आपको कैसे रंग रहा है रंग में। कैसे दूध अमृत पिला रहा है आपको घर बैठे। आपको नहीं पता इसका क्या प्रतिफल होगा। बच्चे को मात-पिता दूध पिलाते हैं। बढ़िया भोजन खिलाते हैं। उनको पता है, कि इसको कितना इसका लाभ मिलेगा। बच्चे को ज्ञान नहीं होता। वह धक्के से पिलावै (पिलाते) हैं। खेलने लग रहा हो माँ लायेगी बुलाकर आजा भाई! आजा बेटी। दूध पिलावेगी (पिलाएगी)। वह दूध पीता-पीता भी ऐसे सोचै बच्चा अब छोड़ दे जल्दी सी डांक ठोकूं (भागूं बाहर) खेल कर आऊं। अब वह दूध पिलाकर फिर छोड़ देती है। जा भाई खेल आ तू।

तो बच्चों! यह अमृत दूध है आपकी आत्मा के लिए। अपना काम करो, सांसारिक काम करो। फिर दिन का जो होमवर्क, क्लास वर्क है वह भी करो। तो ज्ञान का यह असर है। यह व्यर्थ नहीं जायेगा। आपकी आत्मा को इतनी ताकत दे देगा जिसमें भक्ति बिल्कुल सुदृढ़ हो जाएगी। सुरक्षित रहने लाग जाएगी क्योंकि मन में दोष नहीं रहेगा। कोई गलती करें बनेगी नहीं। तो सब कुछ सुरक्षित रहेगा। आपके मोक्ष के लिए परमात्मा ने कसर नहीं छोड़ रखी। जो भी संभव व्यवस्था है वह सारी कर दी है। बच्चों! तुम भी दया करियो। रहम करियो उस परमपिता पर और इस दास की उम्र देखो और दास कहां है 9 साल से ? यह देखो। और यहां से आपके लिए क्या कर दिया उस दाता ने। उस मालिक को देखो ध्यान से। आप बालक नहीं हो। आपकी आत्मा में समझ आ जानी चाहिए, कि यह क्या हो रहा है। कुर्बान हो जाओ। संसार की भूल जाओ बातों को। जो ज्ञान हम देते हैं उसके ऊपर समर्पित हो जाओ।

तन मन धन सब अर्पिए, भक्ति मुक्ति के काज। जिनके उर में बंदगी, फिर कै(क्या) इंद्र का राज।।

बच्चों! इंद्री कर्म ना लगे लगारम, जो भजन करें निर्द्वंद रे। गरीब दास जग कीर्ती होगी, जब लग सूरज चंद रे।। जब लग सूरज चंद रे।।

बच्चों! आने वाली पीढ़ियां आपको भी याद किया करेंगी। जब तक चांद सूरज रहेंगे आपका नाम रहेगा कि हमारे कौन माता पिता, कौन दादा परदादा-दादी ऐसे अमृत ज्ञान को हमारे कुल में लाए थे। आने वाली पीढ़ियो के उद्धार के लिए तुम जिम्मेवार हो। कुर्बान हो जाओ।

 परमात्मा आपको मोक्ष दे। सदा सुखी रखे। सत साहिब।।।