पवित्र तीर्थ तथा धाम की जानकारी


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किसी साधक ऋषि जी ने किसी स्थान या जलाशय पर बैठ कर साधना की या अपनी आध्यात्मिक शक्ति का प्रदर्शन किया। वह अपनी भक्ति कमाई करके साथ ले गया तथा अपने ईष्ट लोक को प्राप्त हुआ। उस साधना स्थल का बाद में तीर्थ या धाम नाम पड़ा। अब कोई उस स्थान को देखने जाए कि यहां कोई साधक रहा करता था। उसने बहुतों का कल्याण किया। अब न तो वहाँ संत जी है, जो उपदेश दे। वह तो अपनी कमाई करके चला गया।

विचार करें:- कृपया तीर्थ व धाम को हमामदस्ता  जानें। (एक डेढ़ फुट का लोहे का गोल पात्र लगभग नौ इंच परिधि का उखल जैसा होता है तथा डेढ़ फुट लम्बा तथा दो इन्च परिधि का गोल लोहे का डंडा-सा मूसल जैसा होता है जो सामग्री व दवाईंयां आदि कूटने के काम आता है, उसे हमामदस्ता कहते हैं।) एक व्यक्ति अपने पड़ौसी का हमाम दस्ता मांग कर लाया। उसने हवन की सामग्री कूटी तथा मांज धोयकर लौटा दिया। जिस कमरे में हमाम दस्ता रखा था उस कमरे में सुगंध आने लगी। घर के सदस्यों ने देखा कि यह सुगन्ध कहां से आ रही है तो पता चला कि हमाम दस्ते से आ रही है। वे समझ गए कि पड़ौसी ले गया था, उसने कोई सुगंध युक्त वस्तु कूटी है। कुछ दिन बाद वह सुगंध भी आनी बंद हो गई।

इसी प्रकार तीर्थ व धाम को एक हमाम दस्ता जानों। जैसे सामग्री कूटने वाले ने अपनी सर्व वस्तु पोंछ कर रख ली। खाली हमाम दस्ता लौटा दिया। अब कोई उस हमाम दस्ते को सूंघकर ही कृत्यार्थ माने तो नादानी है। उसको भी सामग्री लानी पड़ेगी, तब पूर्ण लाभ होगा।

ठीक इसी प्रकार किसी धाम व तीर्थ पर रहने वाला पवित्र आत्मा तो राम नाम की सामग्री कूट कर झाड़-पौंछ कर अपनी सर्व कमाई को साथ ले गया। बाद में अनजान श्रद्धालु, उस स्थान पर जाने मात्र से कल्याण समझें तो उनके मार्ग दर्शकों (गुरुओं) की शास्त्र विधि रहित बताई साधना का ही परिणाम है। उस महान आत्मा सन्त की तरह प्रभु साधना करने से ही कल्याण सम्भव है। उसके लिए तत्वदर्शी संत की खोज करके उससे उपदेश लेकर आजीवन भक्ति करके मोक्ष प्राप्त करना चाहिए। शास्त्र विधि अनुकूल सत साधना मुझ दास (संत रामपाल दास) के पास उपलब्ध है कृपया निःशुल्क प्राप्त करें।


 

FAQs : "पवित्र तीर्थ तथा धाम की जानकारी"

Q.1 क्या तीर्थयात्रा पर जाने के बारे में गीता जी में कहा गया है?

तीर्थ स्थानों पर जाना केवल अंध पूजा है। यह पूजा का एक मनमाना तरीका है और पवित्र श्रीमद्भगवद गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में तीर्थ स्थलों पर जाना, व्रत आदि करने की मनाही की गई है और अध्याय 16 श्लोक 23-24 के अनुसार यह वर्जित है जबकि यहां का भगवान ब्रह्म-काल यही चाहता है की सभी प्राणी गलत पूजा करते रहें ताकि किसी को पता न चल सके कि असली भगवान कौन है? पूजा का सही तरीका क्या है जिससे आत्माओं को मुक्ति मिल सकती है?

Q.2 तीर्थ स्थान क्या हैं?

तीर्थ स्थान वह स्थान होता है जिसको धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। उस स्थान को संतों, देवताओं या किसी चमत्कारी घटना से जोड़ा जाता है। तीर्थ स्थल वहां जाने वाले भक्तों के लिए आस्था और धार्मिकता का केंद्र होते हैं। परंतु कोई भी तीर्थ स्थल हमारे धार्मिक ग्रंथों के अनुसार प्रमाणित नहीं है। यहां धार्मिक लाभ की इच्छा से जाने वालों को किसी प्रकार का कोई लाभ प्राप्त नहीं हो सकता।

Q. 3 तीर्थ यात्रा का क्या महत्व है?

तीर्थ यात्रा उन लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण है जो इस बात पर विश्वास रखते हैं कि तीर्थ यात्रा करने से आध्यात्मिक लाभ और मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। लेकिन हमारे किसी भी धार्मिक शास्त्र में इस बात का प्रमाण नहीं है कि तीर्थ यात्रा करने से किसी भी तरह के लाभ की प्राप्ति होती है। परमेश्वर कबीर जी के अनुसार लाभ केवल पूर्ण गुरु के द्वारा दिए मोक्ष मंत्रों से ही प्राप्त हो सकता है। इसका प्रमाण कबीर साहेब की बाणी में भी मिलता है।

Q.4 तीर्थ यात्राएं कैसे शुरू हुई थीं?

तीर्थ यात्रा की परंपरा किसी खास स्थान से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं, संतों या देवताओं की याद में शुरु हुई थी। फिर समय के साथ इसका रुझान बढ़ता ही चला गया। लोग इन यात्राओं के द्वारा आध्यात्मिक ज्ञान, भौतिक लाभ और मोक्ष की चाहत रखने लगे। लेकिन मोक्ष प्राप्त करने के लिए तीर्थ यात्रा पर जाना व्यर्थ है क्योंकि ऐसा करने से लोग अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं। इसका एक कारण यह भी है कि लोगों में आध्यात्मिक ज्ञान की कमी है और इसी के कारण लोगों को वास्तविक आध्यात्मिक लाभ नहीं मिलता।

Q.5 तीर्थ यात्रा की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?

तीर्थ यात्रा करने के लिए भक्त/साधक किसी पवित्र स्थान पर जाते हैं। फिर वह भौतिक लाभ और मोक्ष प्राप्त करने के उद्देश्य से तपस्या, प्रार्थना या अनुष्ठान जैसी क्रियाएं शुरू कर लेते हैं। लेकिन सच तो यही है कि वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष केवल पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी की शरण में जाकर ही प्राप्त किया जा सकता है। उसके बाद उनके प्रवचनों को सुनने और उनसे नाम दीक्षा प्राप्त करके ही सभी तरह के लाभ मिल सकते हैैं। केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी वर्तमान में शास्त्र-आधारित उपासना प्रदान कर रहे हैं तथा तीर्थ यात्रा और तीर्थ स्थलों की वास्तविक जानकारी भी बता रहे हैं।

Q.6 भारत में सबसे बड़ी तीर्थ यात्रा कौन सी मानी जाती है?

कुंभ का मेला भारत में मानी जाने वाली सबसे बड़ी तीर्थ यात्रा है। लेकिन यह आध्यात्मिक दृष्टि और तत्वज्ञान के अभाव में शुरू हुई। यह शास्त्र विरुद्ध साधना का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। मनमानी प्रथाओं और आध्यात्मिक ज्ञान की कमी के कारण इस मेले में अकसर झड़पें होती रहती हैं। आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से की जाने वाली यह यात्रा मनुष्य के सिर पर पापों का बोझ डालने वाली है। अधिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी का सत्संग यूट्यूब चैनल पर देखें।

Q.7 किन धर्मों में तीर्थ यात्रा की जाती है?

हिंदू, इस्लाम, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और यहूदी धर्म सहित कई अन्य धर्मों में तीर्थ यात्रा को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन इन सभी यात्राओं को करने का मुख्य कारण आध्यात्मिक ज्ञान की कमी होती है। तीर्थ यात्रा करने से होने वाले लाभों के बारे में समाज में गलत धारणा बनी हुई है। जबकि लोग अपना कीमती मानव जीवन बर्बाद कर रहे हैं। तीर्थ यात्रा करने का प्रमाण हमारे किसी भी धार्मिक शास्त्र में उपलब्ध नहीं है।


 

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Supriya Singh

क्या किसी धार्मिक संत का अपने ही बेटे को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना सही है?फिर चाहे वह जिम्मेदारी निभाने के काबिल हो या नहीं?

Satlok Ashram

महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी निभाने के लिए किसी योग्य व्यक्ति की आवश्यकता होती है। फिर वह योग्य व्यक्ति हर क्षेत्र में अपनी ज़िम्मेदारी निभाने वाला होना चाहिए। सांसारिक कार्यों की देखरेख के लिए किसी भी कर्मठ व्यक्ति को उत्तरदायित्व सौंपा जा सकता है, फिर चाहे वह पुत्र, पुत्री, भाई, बहन, परिवार का कोई अन्य सदस्य या कोई शिष्य भी हो सकता है जो सहनशील, सद्बुद्धि वाला , न्यायपूर्ण कार्य करने वाला , कामी, क्रोधी, लालची, अंहकारी न हो, सदाचारी, और कार्यकुशल हो। परंतु धार्मिक संत अपना उत्तराधिकारी अपने पुत्र/पुत्री या अन्य को धार्मिक गद्दी पर नियुक्त नहीं कर सकता क्योंकि सच्चा अधिकारी संत परमात्मा स्वयं मानव-कल्याण के लिए नियुक्त करते हैं या वे स्वयं वह भूमिका निभाने के लिए पृथ्वी लोक पर आते हैं। आध्यात्मिक संत ईश्वर का प्रतिनिधित्व करता है। वह व्यक्ति को सच्ची भक्ति का मार्ग दिखाता है और उससे ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।

Manish Kumar

एक धार्मिक संत में क्या गुण होते हैं?

Satlok Ashram

एक सच्चे धार्मिक संत को सभी पवित्र शास्त्रों का ज्ञान होता है। सच्चा संत असली मोक्ष मंत्र प्रदान करता है। इसका प्रमाण गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में भी है। वर्तमान में केवल एक ही तत्वदर्शी संत हैं अन्य कोई भी धार्मिक संत सच्चा ज्ञान नहीं दे रहा है इसलिए बाकियों को तुरंत उस पद से हटा देना चाहिए। यह एक कड़वा सच है कि कई ऋषि, महामुनि, महंत, मंडलेश्वर महत्वपूर्ण धार्मिक पदों पर विराजमान हैं, जो कि वास्तव में अयोग्य हैं। अगर आज पृथ्वी पर कोई सच्चा संत है तो वो केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी हैं। केवल वे ही शास्त्रों के अनुसार सच्चा ज्ञान और सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान कर रहे हैं।

Satish Singh

वर्तमान में सच्चा संत कौन है?

Satlok Ashram

इसमें कोई शक नहीं है कि केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी सच्चे संत हैं। केवल संत रामपाल जी महाराज जी ही पवित्र शास्त्रों में से प्रमाणित सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर रहे हैं। बाकी सभी संत नकली हैं जिनको आध्यात्मिक ज्ञान का 'ए, बी, सी' भी नहीं पता है और वह सभी भक्त समाज को गुमराह कर रहे हैं। लेकिन वह दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया पहचान जाएगी कि सच्चा संत कौन है? क्योंकि संत रामपाल जी महाराज जी कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। जल्द ही सभी नकली धार्मिक उपदेशकों/कथावाचकों की दुकानें बंद हो जाएंगी। इतना ही नहीं वो दिन जल्दी ही आयेगा जब जनता नकली गुरुओं को त्यागकर सच्चे संत यानि कि संत रामपाल जी महाराज जी की शरण ग्रहण करेगी।