दो शब्द


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भक्ति बोध की वाणी का सरलार्थ प्रारम्भ करने से पूर्व कुछ आवश्यक जानकारी कराते हैं। भक्ति बोध में अधिक वाणी सन्त गरीबदास महाराज जी की हैं। सन्त गरीबदास जी का जन्म गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर प्रांत-हरियाणा में सन् 1717 (विक्रमी संवत् 1774) में हुआ। गाँव छुड़ानी में गरीबदास महाराज जी का नानका है। ये गाँव करौंथा (जिला-रोहतक, हरियाणा) के रहने वाले धनखड़ गोत्र के थे। इनके पीता श्री बलराम जी का विवाह गाँव छुड़ानी में श्री शिवलाल सिहाग की बेटी रानी देवी से हुआ था। श्री शिवलाल जी का कोई पुत्र नहीं था। इसलिए श्री बलराम जी को घर-जमाई रख लिया था। गाँव छुड़ानी में रहते 12 वर्ष हो गए थे, तब सन्त गरीबदास महाराज जी जन्म गाँव छुड़ानी में हुआ था। श्री शिवलाल जी के पास 2500 बीघा (बड़ा बीघा जो वर्तमान के बीघा से 2.75 बड़ा होता था) जमीन थी। जिसके वर्तमान से 1400 एकड़ जमीन बनती है। (2500 x 2.75/5 = 1410 एकड़) उस सारी जमीन के वारिस श्री बलराम जी हुए तथा उनके पश्चात् उनके इकलौते पुत्र सन्त गरीबदास जी उस सारी जमीन के वारिस हुए। उस समय पशु अधिक पाले जाते थे। लगभग 150 गऊऐं श्री बलराम जी रखते थे। उनके चराने के लिए अपने पुत्र गरीबदास जी के साथ अन्य कई चरवाहा (पाली = ग्वाले) किराए पर ले रखे थे। वे भी गऊवों को खेतों में चराने के लिए ले जाया करते थे। जिस समय सन्त गरीबदास जी 10 वर्ष की आयु के हुए, वे गायों को चराने के लिए नला नामक खेत में गए हुए थे। फाल्गुन मास को शुद्धि द्वादशी के दिन के लगभग 10 बजे परम अक्षर ब्रह्म एक जिन्दा महात्मा के वेश में मिले। कंवारी गाय का दूध पीया। जिन्दा वेशधारी परमात्मा से ग्वालों ने दूध पीने का आग्रह किया तो परमेश्वर ने कहा कि मैं कंवारी गाय का दूध पीऊँगा। गरीबदास बालक ने एक बछिया जिसकी आयु 1) वर्ष की थी, जिन्दा बाबा के पास लाकर खड़ी कर दी। परमात्मा ने बछिया की कमर पर आशीर्वाद भरा हाथ रख दिया। बछिया के स्तन लम्बे-लम्बे हो गए। एक मिट्टी के 5 कि-ग्रा- की क्षमता के पात्र (बरोले) को बछिया के स्तनों के नीचे रखा। स्तनों से अपने आप दूध निकलने लगा। मिट्टी का पात्र भर जाने पर दूध निकलना बन्द हो गया। पहले जिन्दा बाबा ने पीया, शेष दूध को अन्य पालियों (ग्वालों) को पीने के लिए कहा तो जो बड़ी आयु के ग्वाले (सँख्या में 10-12 थे) कहने लगे कि बाबाजी कंवारी गाय का दूध तो पाप का दूध है, हम नहीं पीऐंगे, दूसरे आप न जाने किस जाति के हो, आपका झूठा दूध हम नहीं पीऐंगे, तीसरे यह दूध आपने जादू-जन्त्रा करके निकाला है। हम पर जादू-जन्त्रा का कुप्रभाव पड़ेगा। यह कहकर जिस जांडी के वृक्ष के नीचे बैठे थे, वहाँ से चले गये। दूर जाकर किसी वृक्ष के नीचे बैठ गए।

तब बालक गरीबदास जी ने कहा कि हे बाबा जी! आपका झूठा दूध तो अमृत है। मुझे दीजिए। कुछ दूध बालक गरीबदास जी ने पीया। परमेश्वर जिन्दा वेशधारी ने सन्त गरीबदास जी को ज्ञानोपदेश दिया। तत्वज्ञान (सूक्ष्मवेद का ज्ञान) बताया। सन्त गरीबदास जी के अधिक आग्रह करने पर परमेश्वर ने उनकी आत्मा को शरीर से अलग किया और ऊपर के रुहानी मण्डलों की सैर कराई। एक ब्रह्माण्ड में बने सर्व लोकों को दिखाया, श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा शिव जी से मिलाया। उसके पश्चात् ब्रह्म लोक तथा श्री देवी (दुर्गा) का लोक दिखाया। फिर दशवें द्वार (ब्रह्मरन्द्र) को पार करके ब्रह्म काल के 21 ब्रह्मण्डों के अन्तिम छोर पर बने ग्यारहवें द्वार को पार करके अक्षर पुरुष के 7 शंख ब्रह्माण्डों वाले लोक में प्रवेश किया। सन्त गरीबदास जी को सर्व ब्रह्माण्ड दिखाये, अक्षर पुरुष से मिलाया। पहले उसके दो हाथ थे, परंतु परमेश्वर के निकट जाते ही अक्षर पुरुष ने दस हजार (10000) हाथों का विस्तार कर लिया जैसे मयूर (मोर) पक्षी अपने पंख (चन्दों) को फैला लेता है। अक्षर पुरुष को जब संकट का अंदेशा होता है, तब ऐसा करता है। अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता है क्योंकि अक्षर पुरुष अधिक से अधिक 10 हजार हाथ ही दिखा सकता है। इसके 10 हजार हाथ हैं। क्षर पुरुष के एक हजार हाथ हैं। जो गीता अध्याय 10-11 में अपना एक हजार हाथों वाला विराट रुप दिखाया। गीता अध्याय 11 श्लोक 46 में अर्जुन ने कहा कि हे सहस्त्रा बाहु (एक हजार भुजाओं वाले) अपने चतुर्भुज रुप में आइए। संत गरीबदास जी को अक्षर पुरुष के 7 शंख ब्रह्माण्डों के भेद बता व आँखों दिखाकर परमेश्वर जिन्दा बाबा बारहवें (12वें) द्वार के सामने ले गया जो अक्षर पुरुष के लोक की सीमा पर बना है। जहाँ से भंवर गुफा में प्रवेश किया जाता है। जिन्दा वेशधारी परमेश्वर जी ने संत गरीबदास जी को बताया कि जो दसवां द्वार (ब्रह्म रन्द्र) है, वह मैंने सत्यनाम के जाप से खोला था। जो ग्यारहवां (11वां) द्वार है, वह मैंने तत् तथा सत् (जो सांकेतिक मन्त्र है) से खोला था। अन्य किसी भी मन्त्र से उन द्वारों पर लगे ताले (Lock) नहीं खुलते। अब यह बारहवां (12वां) द्वार है, यह मैं सत् शब्द (सार नाम) से खोलूंगा। इसके अतिरिक्त किसी नाम के जाप से यह नहीं खुल सकता। तब परमात्मा ने मन ही मन में सारनाम का जाप किया, 12वां (बारहवां) द्वार खुल गया और परमेश्वर जिन्दा रुप में तथा संत गरीबदास जी की आत्मा भंवर गुफा में प्रवेश कर गए। फिर सत्यलोक में प्रवेश करके उस श्वेत गुम्बद के सामने खड़े हो गए जिसके मध्य में सिंहासन (उर्दु में तख्त कहते हैं) के ऊपर तेजोमय श्वेत नर रुप में परम अक्षर ब्रह्म जी विराजमान थे। जिनके एक रोम (शरीर के बाल) से इतना प्रकाश निकल रहा था जो करोड़ सूर्यों तथा इतने ही चाँदों (चन्द्रमाओं) के मिले-जुले प्रकाश से भी अधिक था। इससे अन्दाजा लग जाता है कि उस परम अक्षर ब्रह्म (सत्य पुरुष) जी के सम्पूर्ण शरीर की कितनी रोशनी होगी। सत्यलोक स्वयं भी हीरे की तरह प्रकाशमान है। उस प्रकाश को जो परमेश्वर जी के पवित्र शरीर से तथा उसके अमर लोक से निकल रहा है, केवल आत्मा की आँखों से (दिव्य दृष्टि) से ही देखा जा सकता है। चर्म दृष्टि से नहीं देखा जा सकता।

फिर जिन्दा बाबा अपने साथ बालक गरीबदास जी को लेकर उस सिंहासन क नकट गए तथा वहाँ रखे चंवर को उठाकर तख्त पर बैठे परमात्मा के ऊपर डुराने (चलाने) लगे। बालक गरीबदास जी ने विचार किया कि यह है परमात्मा और यह बाबा तो परमात्मा का सेवक है। उसी समय तेजोमय शरीर वाला प्रभु सिंहासन त्यागकर खड़ा हो गया और जिन्दा बाबा के हाथ से चंवर ले लिया और जिन्दा बाबा को सिंहासन पर बैठने का संकेत किया। जिन्दा वेशधारी प्रभु असंख्य ब्रह्माण्डों के मालिक के रुप में सिंहासन पर बैठ गए। पहले वाला प्रभु जिन्दा बाबा पर चंवर करने लगा। सन्त गरीबदास जी विचार कर ही रहे थे कि इनमें परमेश्वर कौन हो सकता है, इतने में तेजोमय शरीर वाला प्रभु जिन्दा बाबा वाले शरीर में समा गए, दोनों मिलकर एक हो गए। जिन्दा बाबा के शरीर का तेज उतना ही हो गया, जितना तेजोमय पूर्व में सिंहासन पर बैठे सत्य पुरुष जी का था। कुछ ही क्षणों में परमेश्वर बोले हे गरीबदास! मैं असंख्य ब्रह्माण्डों का स्वामी हूँ। मैंने ही सर्व ब्रह्माण्डों की रचना की है। सर्व आत्माओं को वचन से मैंने ही रचा है। पाँच तत्व तथा सर्व पदार्थ भी मैंने ही रचे हैं। क्षर पुरुष (ब्रह्म) तथा अक्षर पुरूष व उनके लोकों को भी मैंने उत्पन्न किया है। इनको इनके तप के बदले में सर्व ब्रह्माण्डों का राज्य मैंने ही प्रदान किया है। मैं 120 वर्ष तक पृथ्वी पर कबीर नाम से जुलाहे की भूमिका करके आया हूँ। भारत देश (जम्बू द्वीप) के काशी नगर (बनारस) में नीरु-नीमा नाम के पति-पत्नी थे। वे मुसलमान जुलाहा थे। वे निःसंतान थे। ज्येष्ठ शुद्धि पूर्णमासी की सुबह (ब्रह्म मुहूर्त में) लहरतारा नामक सरोवर में काशी के बाहर जंगल में मैं नवजात शिशु का रुप धारण करके कमल के फूल पर लेटा था। मैं अपने इसी स्थान से गति करके गया था। नीरु जुलाहा तथा उसकी पत्नी प्रतिदिन उसी तालाब पर स्नानार्थ जाया करते थे। उस दिन मुझे बालक रुप में प्राप्त करके अत्यन्त खुश हुए। मुझे अपने घर ले गए। मैंने 25 दिन तक कुछ भी आहार नहीं किया था। तब शिवजी एक साधु के वेश में उनके घर गए। वह सब मेरी प्रेरणा ही थी। शिव से मैंने कहा था कि मैं कंवारी गाय का दूध पीता हूँ। तब नीरु एक बछिया लाया। शिव को मैंने शक्ति प्रदान की, उन्होंने बछिया की कमर पर अपना आशीर्वाद भरा हाथ रखा। कंवारी गाय ने दूध दिया। तब मैंने दूध पीया था। मैं प्रत्येक युग में ऐसी लीला करता हूँ। जब मैं शिशु रुप में प्रकट होता हूँ, तब कंवारी गायों से मेरी परवरिश की लीला हुआ करती है। हे गरीब दास! चारों वेद मेरी महिमा का गुणगान करते हैं।

वेद मेरा भेद है, मैं ना वेदन के मांही।।
जौन वेद से मैं मिलूं, वह वेद जानते नाहीं।।

वेद  में लिखा है कि जब परमेश्वर शिशु रुप में पृथ्वी पर प्रकट होते हैं तो उनकी परवरिश की लीला कंवारी गायों द्वारा होती है। मैं सत्ययुग में ‘‘सत्यसुकृत’’ नाम से प्रकट हुआ था। त्रोतायुग में ‘‘मुनीन्द्र’’ नाम से तथा द्वापर में ‘‘करुणामय’’ नाम से और संवत् 1455 ज्येष्ठ शुद्धि पूर्णमासी को मैं कलयुग में ‘‘कबीर’’ नाम से प्रकट व प्रसिद्ध हुआ था। अ यह सब प्रसंग सुनकर सन्त गरीब दास जी ने कहा कि परवरदिगार! यह ज्ञान मुझे कैसे याद रहेगा तब परमेश्वर जी ने बालक गरीबदास जी को आशीर्वाद दिया और कहा कि मैंने तेरा ज्ञानयोग खोल दिया है। आध्यात्म ज्ञान तेरे अन्तःकरण में डाल दिया है। अब आप असँख्य युगों के पहले से लेकर वर्तमान तथा भविष्य का ज्ञान भी याद रखोगे।

> दूसरी ओर नीचे पृथ्वी पर शाम के 3 बजे के आसपास अन्य ग्वालों (चरवाहों) को याद आया कि गरीब दास नहीं है, लाओ उठाकर। तब एक पाली गया। उसने दूर से आवाज लगाई कि हे गरीब दास! आजा गायों के सामने खड़ा होकर अपनी बारी कर। हम बहुत देर से खड़े हैं। भक्त गरीबदास जी नहीं बोले और न उठे क्योंकि पृथ्वी पर तो केवल शरीर था। जीवात्मा तो ऊपर के मण्डलों की सैर कर रही थी। उस पाली ने निकट जाकर हाथ से शरीर को हिलाया तो शरीर जमीन पर गिर गया, पहले सुखासन पर स्थिर था। ग्वाले ने देखा तो बालक गरीबदास को मृत पाया। उसने शोर मचाया। अन्य ग्वाले दौडे़ आए। उनमें से एक गाँव छुड़ानी की ओर दौड़ा। छुड़ानी गाँव से गाँव कबलाना के रास्ते पर वह जांडी का वृक्ष था जिसके नीचे परमेश्वर जी जिन्दा रुप में गरीबदास जी तथा अन्य पालियों के साथ बैठे थे। गाँव कबलाना की सीमा के साथ वह खेत सटा हुआ था जो छुड़ानी गाँव का है जो गरीबदास जी का अपना ही खेत था। वह स्थान गाँव छुड़ानी से 1) कि-मी दूर है। गाँव छुड़ानी में जाकर उस पाली ने गरीबदास जी के पिता-माता, नाना-नानी को सब हाल बताया कि एक बाबा ने कंवारी गाय का दूध जादू-जन्त्रा करके निकाला, वह दूध हमने तो पीया नहीं बालक गरीबदास ने पी लिया। हमने अभी देखा तो वह मर चुका है। बच्चे के शव को चिता पर रखकर अन्तिम संस्कार की तैयारी कर दी। उसी समय परमेश्वर जी ने कहा हे गरीबदास! आप नीचे जाओ। आपके शरीर को नष्ट करने जा रहे हैं। सन्त गरीबदास जी ने नीचे को देखा तो यह पृथ्वी लोक सत्य लोक की तुलना में नरक लोक के समान दिखाई दे रहा था। सन्त गरीबदास जी ने कहा हे प्रभु! मुझे नीचे मत भेजो, यहीं पर रख लो। तब सत्यपुरुष कबीर जी ने कहा कि आप पहले भक्ति करोगे, जो साधना मैं तुझे बताऊँगा, उस भक्ति की कमाई (शक्ति) से फिर यहाँ स्थाई स्थान प्राप्त करोगे। सामने देख वह तेरा महल है जो खाली पड़ा है। सर्व खाद्य पदार्थ भरे पड़े हैं। नीचे पृथ्वी पर वर्षा होगी तो अन्न होगा। कितनी मेहनत करनी पड़ती है। यहाँ जैसे पदार्थ पृथ्वी पर हैं ही नहीं। आप नीचे जाओ। प्रथम मन्त्र मैंने तुझे दे दिया है। फिर सत्यनाम भी तुझे प्रदान करने आऊंगा। यह सत्यनाम दो अक्षर का होता है। एक ऊँ अक्षर दूसरा तत् (यह सांकेतिक है) अक्षर है। फिर कुछ समय उपरान्त तुझे सारनाम दूँगा। इन सर्वनामों (प्रथम, दूसरा तथा तीसरा) की साधना करके ही तू यहाँ आ सकेगा। मैं हरदम भक्त के साथ रहता हूँ। तू चिन्ता मत करना। अब आप शीघ्र जाइए। इतना कहकर परम अक्षर पुरुष जी ने सन्त गरीबदास जी के जीव को शरीर में प्रवेश कर दिया। कुल परिवार के लोग चिता में अग्नि लगाने ही वाले थे, उसी समय बच्चे के शरीर में हलचल हुई। शव को रस्से से बाँध कर ले जाते हैं, वह रस्सा भी अपने आप टूट गया। सन्त गरीबदास जी उठकर बैठ गए। चिता से नीचे उतरकर खड़े हो गए। उपस्थित गाँव के व परिवार के व्यक्तियों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। बालक गरीबदास ऊपर को आँखें करके परमात्मा को देख रहा था तथा जो अमृतज्ञान परमेश्वर जी ने उनके अन्तःकरण में डाला था, वह अमृतवाणी दोहों व चौपाइयों तथा शब्दों के रुप में बोलने लगा। गाँव वालों को उस अमृतवाणी का ज्ञान नहीं था। इसलिए उन्होंने सोचा कि बच्चे को बाबा ने फटकार मार दी जिस कारण से बड़बड़ा रहा है। कुछ का कुछ बोल रहा है, परंतु परमात्मा का सौ-सौ शुक्र मना रहे थे कि लड़की का लड़का जीवित हो गया। पागल है तो भी लड़की रानी देवी अपना दिल रोककर खुश रहेगी। यह समझकर महापुरुष गरीबदास जी को पागल (गाँव की भाषा में बावलिया) कहने लगे।

तीन वर्ष के पश्चात् एक गोपाल दास सन्त दादू दास जी के पंथ से दीक्षित था। वह सन्तों की वाणी को समझता था। उसके महत्व को जानता था। वह वैश्य जाति से था, सन्त वेशभूषा में रहता था। बनिये के घर जन्म होने के कारण कुछ पढ़ा-लिखा भी था। घर त्यागकर सन्यास ले रखा था। अधिकतर भ्रमण करता रहता था। गाँव-गाँव में जाकर प्रचार करता था। कुछ शिष्य भी बना रखे थे। उसका एक बैरागी गाँव छुड़ानी का भी शिष्य था। वह उसके घर रुका हुआ था। उस शिष्य ने सन्त गोपाल दास से कहा कि हे गुरुदेव! हमारे गाँव के चौधरी का दोहता (लड़की का लड़का) किसी साधु की फटकार से पागल हो गया। वह तो मर गया था, चिता पर रख दिया था। लड़की रानी की किस्मत से बच्चा जीवित तो हो गया, परंतु पागल हो गया। सब जगह झाड़-फूंक करने वालों से भी इलाज करा लिया, अन्य दवाई पागलपन दूर करने की भी बहुत खिला ली, लेकिन कोई राहत नहीं मिली। उस शिष्य ने वह सर्व घटना भी बताई जो कंवारी गाय का दूध निकलवाकर बच्चे गरीबदास को पिलाने की घटित हुई थी। फिर उसने कहा कि कहते हैं संत की विद्या को संत ही काट सकता है। कुछ कृपा करो गुरुदेव।

सन्त गोपाल दास जी ने कहा कि बुलाओ उस लड़के को। शिष्य ने चौधरी शिवलाल जी से कहा कि मेरे घर पर एक बाबा जी आया है। मैंने उसको आपके दोहते गरीबदास के बारे में बताया है। बाबा जी ने कहा है कि एक बार बुलाओ, ठीक हो जाएगा। एक बार दिखा लो, अब तो गाँव में ही बाबा जी आया है। बहुत पहुँचा हुआ संत है।

शिवलाल जी के साथ गाँव के कई अन्य व्यक्ति भी बाबा के पास गए। साथ में बच्चे गरीबदास जी को भी ले गए। संत गोपाल दास जी ने बालक गरीबदास जी से प्रश्न किया कि बेटा! वह कौन बाबा था जिसने तेरा जीवन बर्बाद कर दिया। प्रिय पाठकों से यहाँ पर यह बताना अनिवार्य है कि संत गोपाल दास जी सन्त दादू दास जी के पंथ से दीक्षित थे। सन्त दादू जी को भी सन्त गरीबदास जी की तरह 7 वर्ष की आयु में बाबा जिन्दा के वेश में परमेश्वर कबीर जी मिले थे। दादू जी सन्त को भी परमेश्वर शरीर से निकालकर सत्यलोक लेकर गए थे। सन्त दादू जी तीन दिन-रात अचेत अवस्था में रहे थे। तीसरे दिन वापिस सचेत हुए तो कहा था कि मैं परमेश्वर कबीर जी के साथ अमर लोक गया था। वह आलम बड़ा कबीर है। वह सबको रचने वाला है। सर्व सृष्टि का रचनहार है। कहा कि:

जिन मुझको निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार।
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सिरजन हार।।
दादू नाम कबीर की, जै कोई लेवे ओट।
उनको कबहु लागे नहीं, काल वज्र की चोट।।
अब ही तेरी सब मिटै, काल कर्म की पीड़ (पीर)।
स्वांस-उस्वांस सुमरले, दादू नाम कबीर।।
केहरी नाम कबीर का, विषम काल गजराज।
दादू भजन प्रताप से, भागै सुनत आवाज।।

इस प्रकार दादू जी के ग्रन्थ में वाणी लिखी है। गोपाल दास इस बात को जानता था कि दादू जी को बुढ़ा बाबा के रुप में परमात्मा मिला था। दादू जी मुसलमान तेली था। इसलिए मुसलमान समाज कबीर का अर्थ बड़ा करता है। जिस कारण से काशी वाले जुलाहे कबीर को नहीं मानते। दादू पंथी कहते हैं कि कबीर का अर्थ है बड़ा भगवान अल्लाहु कबीर = अल्लाह अकबीर कहते हैं। अ इसी प्रकार श्री नानक देव जी सुल्तानपुर शहर के पास बह रही बेई नदी में स्नान करने गए, परमात्मा जिन्दा बाबा के रुप में उस समय मिले थे। उनको भी तीन दिन तक अपने साथ रखा था। सच्चखण्ड (सत्यलोक) लेकर गए थे। फिर वापिस छोड़ा था।

> एक अब्राहिम सुल्तान अधम नाम का बलख बुखारे शहर का राजा था। (इराक देश का रहने वाला था।) उसको भी परमात्मा जिन्दा बाबा के रूप में मिले थे। उसका भी उद्वार कबीर परमेश्वर जी ने किया था।

सन्त गोपाल दास ने बच्चे गरीबदास जी से प्रश्न किया था कि तेरे को कौन बाबा मिला था जिसने तेरा जीवन बर्बाद कर दिया। सन्त गरीबदास जी ने उत्तर दिया था कि हे महात्मा जी! जो बाबा मुझे मिला था, उसने मेरा कल्याण कर दिया, मेरे जीवन को आबाद कर दिया। वह पूर्ण परमात्मा है।

गरीब, हम सुल्तानी नानक तारे, दादू को उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, काशी माहें कबीर हुआ।।
गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रती नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सिरजन हार।।
गरीब, सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि है तीर।
दास गरीब सत्पुरुष भजो, अविगत कला कबीर।।
गरीब, अजब नगर में ले गए, हमको सतगुरु आन।
झिलके बिम्ब अगाध गति, सुते चादर तान।।
गरीब, शब्द स्वरुपी उतरे, सतगुरु सत् कबीर।
दास गरीब दयाल हैं, डिगे बंधावैं धीर।।
गरीब, अलल पंख अनुराग है, सुन मण्डल रह थीर।
दास गरीब उधारिया, सतगुरु मिले कबीर।।
गरीब, प्रपटन वह लोक है, जहाँ अदली सतगुरु सार।
भक्ति हेत से उतरे, पाया हम दीदार।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, है जिन्दा जगदीश।
सुन्न विदेशी मिल गया, छत्र मुकुट है शीश।।
गरीब, जम जौरा जासे डरें, धर्मराय धरै धीर।
ऐसा सतगुरु एक है, अदली असल कबीर।।
गरीब, माया का रस पीय कर, हो गये डामा डोल।
ऐसा सतगुरु हम मिल्या, ज्ञान योग दिया खोल।।
गरीब, जम जौरा जासे डरें, मिटें कर्म के लेख।
अदली असल कबीर हैं, कुल के सतगुरु एक।।

सन्त गरीबदास जी को कौन मिला था, बाबा जी को उसका परिचय दिया जो ऊपर लिखी वाणी से स्पष्ट होता है कि जिस परमेश्वर कबीर जी ने हम सबको संत गरीबदास, संत दादू दास, संत नानक देव तथा राजा अब्राहिम सुलतानी आदि-आदि को पार किया। वह भारत वर्ष के काशी शहर में कबीर जुलाहा नाम से प्रसिद्ध हुआ है। वह अनन्त कोटि ब्रह्माण्डों का सृजनहार है। वह मुझे मिला था। यह उपरोक्त वाणी बोलकर सन्त गरीब दास 13 वर्षीय बच्चा चल पड़े। संत गोपाल दास जी समझ गए कि वह कोई सामान्य बच्चा नहीं है। यह तो परमात्मा से मिला है। ऐसी अमृतवाणी बोल रहा है। इस वाणी को लिखना चाहिए। यह विचार करके बालक गरीबदास के पीछे-पीछे चल पड़ा और कहने लगा हे गाँव वालो! यह बालक पागल नहीं है, तुम पागल हो। यह क्या बोल रहा है, तुम समझ नहीं सके। मुझे पता चला है यह बच्चा तो अवतार है प्रभु का। इसको तो जिन्दा बाबा के रुप में स्वयं भगवान मिले थे। इसी प्रकार हमारे पूज्य दादू साहेब जी को भी मिले थे। दादू जी की सब वाणी लिखी नहीं गई थी। अब इस बच्चे से सर्व वाणी लिखवाऊंगा, मैं खुद लिखूंगा। यह वाणी कलयुग में अनेकों जीवों का कल्याण करेगी। संत गोपाल दास जी के बार-बार आग्रह करने पर सन्त गरीबदास जी ने कहा गोपाल दास जी यदि पूरी वाणी लिखे तो मैं लिखवाऊं, कहीं बीच में छोड़े तो नहीं लिखवाऊंगा। संत गोपाल दास जी ने कहा महाराज जी मैं तो घर से निकल चुका हूँ परमार्थ और कल्याण कराने के लिए, मेरी 62 वर्ष की आयु हो चुकी है। मुझे इससे अच्छा कोई कार्य नहीं है। आप कृपा करें।

तब संत गरीबदास जी तथा संत गोपाल दास जी बेरी के बाग में एक जांडी के नीचे बैठकर वाणी को लिखने-लिखवाने लगे। वह बेरी का बाग संत गरीबदास जी का अपना ही था। उस समय छुड़ानी गाँव के आस-पास रेतिला क्षेत्र था जैसे राजस्थान में है। वहाँ पर जांडी के वृक्ष अधिक होते थे। उनकी छाया का ही प्रयोग अधिक किया जाता था। इस प्रकार संत गरीब दास जी ने परमात्मा से प्राप्त तत्वज्ञान आँखांे देखा हाल वाणी रुप में बोला तथा संत गोपाल दास जी ने लिखा। लगभग छः महीनों तक यह कार्य किया गया। फिर जब-तब किसी से वार्ता होती तो संत गरीबदास जी वाणी बोला करते थे तो अन्य व्यक्ति भी लिख लिया करते थे। जिसको एक ग्रन्थ रुप में हाथ से लिखा गया था।

संत गरीबदास जी के समय से ही उस ग्रन्थ का पाठ करना प्रारम्भ हो गया था। उसको कुछ वर्षों पूर्व टाईप कराया गया था। उसी अमृतवाणी (सागर अमृत) से कुछ वाणी (अमृत) निकालकर ‘‘भक्ति बोध’’ पुस्तक में लिखी है। इसके अतिरिक्त परमेश्वर कबीर जी ने जो सूक्ष्म वेद अपने मुख कमल से बोला था। उस अमृत सागर (कबीर सागर) से निकालकर इसी भक्ति बोध पुस्तक में लिखी हैं। उस अमृतवाणी का अब सरलार्थ प्रारम्भ किया जाता है।