वर्तमान मे संतो की स्थिति को समझने की नितांत आवश्यकता है तो चलिये इसकी शुरूवात सतयुग से करते हैं ।
भगवान के विषय में सतयुग के वृहत संतों का ज्ञान केवल इतना ही रहा कि शेषनाग (विष्णु) ने पृथ्वी सर पर रख ली इसलिये वो भगवान, कृष्ण जी ने गोवर्धन उठाया इसलिये वो भगवान, हनुमान जी ने पर्वत उठाया इसलिये वो भगवान मतलब चमत्कार को ही भगवान का पैमाना माना गया जबकी वैदिक मान्यताओ को देखे तो भगवान कोई और ही परिभाषित होता है ।
देखें प्रमाण
भगवान के विषय में सतयुग के वृहत संतों के ज्ञान का वर्णन गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित, श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार और चिमन लाल गोस्वामी द्वारा संपादित श्रीमद् देवी भागवत पुराण में मिलता है ।
जहां, श्रीमद् देवी भागवत, स्कंद ६, अध्याय १०, पृष्ठ ४१४ मे व्यास जी, "जनमेजय" द्वारा पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं :
व्यास जी कहते हैं "कि सतयुग में ब्राह्मणों को वेदों का पूर्ण ज्ञान था। वे निरंतर भगवती जगदम्बिका (दुर्गा) की पूजा करते थे। वे भगवती के दर्शन के लिए हमेशा लालायित रहते थे। वे अपना सारा समय गायत्री के पाठ व स्मरण में व्यतीत करते थे। मायाबीज पाठ उनका प्रमुख कर्तव्य था"।
सार:
अर्थात, व्यास जी के कथनानुसार सतयुग में ब्राह्मणों को वेदों का पूरा ज्ञान था, और तदनुसार वे भगवती जगदम्बिका की पूजा-अर्चना करते थे , जबकी श्रीमद् देवी भागवत पुराण के स्कंद 7, पृष्ठ 562 मे देवी द्वारा हिमालय राज को ज्ञान उपदेश मे दुर्गा जी स्वयं किसी और भगवान की पूजा करने की बात करती हैं।
अब यहां यह साफ तौर पर स्पष्ट है कि इन विद्वानों, संतो के जगदंबिका की पूजा अर्चना के बारे में वर्णित कथन को देवी दुर्गा के श्रीमद् देवी भागवत पुराण के स्कंद 7, पृष्ठ 562 मे कहे गये कथन गलत साबित करते है जहा देवी दुर्गा कहती हैं कि मेरी पूजा को भी त्याग दो और सब बातों को छोड़ दो, केवल ब्रह्म की साधना करो।
इससे ये प्रमाणित है कि सतयुग के "वृहत संतों" को भी परमेश्वर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी ।
अब आप समझ सकते हैं कि जब सतयुग में वृहत संतो की ये स्थिति थी कि वो वैदिक सिद्धांतों को समझने में असमर्थ रहे और लोकवेद पर अधारित हो गये तो कलयुग के विद्वानों की क्या समझ हो सकती हैं। प्रार्थना है सभी वेद और सभी धर्मग्रंथों के ज्ञान को समझकर परमेश्वर, भगवान, और संतो की स्थितियों को समझें ताकि पाखंडवाद को जड़ से मिटाया जा सके।