Importance-of-Devotion-Salvation-of-Dharamdas-Special-Sandesh-Hindi-Photo

सत साहेब।।

सतगुरु देव जी की जय।

बंदी छोड़ कबीर साहेब जी की जय।

बंदी छोड़ गरीब दास जी महाराज की जय।

स्वामी रामदेवानंद जी महाराज की जय हो।

बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय हो।

सर्व संतों की जय।

सर्व भक्तों की जय।

धर्मी पुरुषों की जय।

श्री काशी धाम की जय।

श्री छुड़ानी धाम की जय।

श्री करोंथा धाम की जय।

श्री बरवाला धाम की जय।

सत साहेब।।

कबीर दंडवत्तम गोविंद गुरु, बंधु अविजन सोए। पहले भए प्रणाम तिन, नमो जो आगे होए।।

गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान। गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो वेद पुराण।।

कबीर सतगुरु के उपदेश का, लाया एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं, जाते नरक द्वार।।

कबीर नरक द्वार में दूत सब, करतें खेंचातान। उनसे कबहूं नहीं छूटता, फिरता चारों खान।।

कबीर चार खानी में भ्रमता, कबहूं ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।

बच्चों! सतगुरु की महिमा कितनी अजब-गजब परमात्मा कबीर जी ने बताई है। संत आदरणीय धर्मदास जी झूठे गुरुओं को, पूर्ण गुरु, सतगुरु मानकर के इतना दृढ़ था, परमात्मा से स्पष्ट कह दिया था प्रथम मीटिंग में, की मैं अपने गुरु पर, उनके द्वारा बताए विधि भक्ति विधि पर और ज्ञान पर कति (बिल्कुल) आरूढ़ हूं। मैं किसी और की मान्या नहीं करूं। बताओ ऐसे व्यक्ति, जो ऐसे जवाब दे देता है उससे आगे वार्ता कैसे बढ़ाएं? तब परमात्मा ने अपने आपको एक जिज्ञासु पेश किया। की महाराज जी मैं तो एक जिज्ञासु हूं। और मेरे मन को संतुष्टि नहीं मिली जो ज्ञान मुझे आज तक बताया गया है। आपने जो ज्ञान किया, ये पाठ किया, किस चीज़ का किया? मुझे बहुत ही अच्छा लगा। अब देखो, काल ने कैसे गजब के किले बना रखे हैं। लेकिन परमात्मा भी पूरे साधन रखता है उसके किले तोड़न (तोड़ने) के। आपने सुना सारा कुछ।

बच्चों! इस धर्मदास दास जी की कथा से आपको इस जीवन का बहुत कुछ लक्ष्य प्राप्त होगा। उपलब्ध होगा। धन था, संतान थी सारी मौज थी, भक्ति भी खूब डटकर किया करता। दान-धर्म में पूरी रुचि थी। लेकिन अंत में खाली हाथ जाना था, उस धर्मराज के दरबार में।

कबीर पीछे लाग्या जाऊं था, लोकवेद के साथ। मार्ग में सतगुरु मिले, दीपक दे दिया हाथ।।

इस भक्ति के मार्ग पर लोकवेद दंतकथाओं के आधार से साधना करता हुआ चल रहा था। इसी भक्ति पथ पर सतगुरु मिल गए, उन्होंने यह तत्वज्ञान रूपी दीपक दे दिया, टॉर्च दे दी। अब इसकी रोशनी में चलूंगा।

बच्चों! धर्मदास जी के प्रसंग से आपको अनेकों पॉइंट (point-बिंदु) मिलेंगे। इस भक्ति में, सावधान होने के और परमात्मा में विश्वास करने के। अब क्या होता है। धर्मदास जी कुर्बान हो जाते हैं मालिक के ऊपर और कहते हैं हे भगवान! बड़ी आंख खोल दी आपने। हे परमात्मा! आपने पुत्र भी दे दिया। यह काल का दूत था मैं तो सारी उमर रोकर मरूं हूं। यह तो खूब दुखी करो।

बच्चों! परमात्मा ने अपनी आत्मा भेजी, उसकी संतुष्टि हुई। उसका वंश चला। अब धर्मदास जी कहता है, ‘केवल मुझे भक्ति दे दो दाता। मुझे मोक्ष दो दाता और किसी चीज़ की बिल्कुल आवश्यकता नहीं।’ कबीर साहेब ने बता दिया,

भाई क्या मांगू, कुछ थिर ना रहाई। देखत नैन चला जग जाई।। 1 लख पूत सवा लख नाती। उस रावण के आज दीवा ना बाती।। सर्व सोने की लंका होती, रावण से रणधीरं। एक पलक में राज विराजी, यम के पड़े जंजीरं।।

बच्चों! परमात्मा की असीम रज़ा है जो आपको यह सच्चा मार्ग और कैसे प्राप्त हो रहा है। शुरुआत अपनी भी इस जीवन में ऐसे ही हुआ है जैसे धर्मदास जी का हुआ। अब वो क्या कहते हैं;

भक्ति दान गुरु दीजियो, देवन के देवा हो। जन्म पाया बिसरूं नहीं, करहूं पद सेवा हो।। जन्म पाया भूलूं नहीं, करहूं पद सेवा हो।। तीर्थ व्रत मैं नहीं करूं, ना देवल पूजा हो। तीर्थ व्रत मैं नहीं करूं, ना देवल पूजा हो। मनसा वाचा कर्मणा, मेरे और न दूजा हो।। मनसा वाचा कर्मणा मेरे ईब और ना दूजा हो।। भक्ति दान गुरु दीजियो, देवन के देवा हो। जन्म पाया भूलूं नहीं, करहूं पद सेवा हो।। अष्ट सिद्धि और नौ निधि बैकुंठ का वासा हो। अष्ट सिद्धि और नौ निधि बैकुंठ का वासा हो। सो मैं तुमसे नहीं मांगता, सब थोथरी आशा हो।। सो मैं तुमसे नहीं मांगता, सब थोथरी आशा हो।। सुख, संम्पति, परिवार, धन और सुंदर नारी हो। स्वप्न में इच्छा नहीं करूं, गुरु आन तुम्हारी हो।। स्वप्न में इच्छा नहीं करूं, गुरु आन तुम्हारी हो।। भक्ति दान गुरु दीजियो, देवन के देवा हो। भक्ति दान गुरु दीजियो, देवन के देवा हो। जन्म पाया बिसरुं नहीं, करहूं पद सेवा हो।। धर्मदास की विनती, समर्थ चित दीजो हो। धर्मदास की विनती, समर्थ चित दीजै हो। आवन-जावन निवार कर, अपना कर लीजो हो।। आवन-जावन निवार कर, अपना कर लीजै हो।। भक्ति दान गुरु दीजियो, देवन के देवा हो। जन्म पाया भूलूं नहीं, करहूं पद सेवा हो।।

बच्चों! उस परिस्थिति में जब धर्मदास जी की ऐसी भावना बनी, विचार करो, परमात्मा ने काल का किला तोड़ दिया, जो चारों तरफ बाँध रखा था उस बच्चे को। वो अज्ञानता की सारी जंजीर तोड़कर रख दी। फोड़ दिया अंदर से, जो अज्ञान ठोक रख्या (रखा) था काल ने।

कबीर और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान। जैसे गोला तोप का, करता चले मैदान।।

In the start (शुरुआत में) आप सारे के सारे ऐसे ही थे। दास भी ऐसा ही था। यह तो परमात्मा की वाणी खुर्चे है अंदर ते (से)। बिल्कुल मांज के रख दे हैं। पहले तो एक सिंपल यह दिखे था बाबा जिंदा और फिर ऊपर सतलोक देखकर आया धर्मदास, फिर धानक रूप देख्या (देखा)। एक जुलाहा रूप में देखा, चरणां में पड़ गए। यदि पहले यह देख लेता तो निकट भी नहीं आवे। यह बामण- बणिये (ब्राह्मण-बनिये), इतनी छुआछूत किया करते थे और जब खुद देखकर आया धनी ने, रेत में लौट गया जाकर, मालिक की खड्डी के आगे जहां वो कपड़े बनाण लाग (बनाने लग) रहे थे, बुन रहे थे।

बच्चों! इस मालिक को पता है की किसके कौन सी चाबी लगानी है और कैसे इसका अज्ञान का ताला खुलेगा जो बाहर निकाल दिया जाए। अब क्या बताता है धर्मदास जी ने एक ही शब्द कह दिया last (लास्ट-अंत) में, हे भगवान! हे देवन के देव! हे परमेश्वर! मुझे भक्ति दे दो और जन्म पाया ही आपके इस मार्ग को और आपको कभी भूलूंगा नहीं।

तीर्थ व्रत मैं ना करूं, ना मंदिर पूजा हो और मनसा वाचा कर्मना, तीन वचन भरूं, त्रिवाचा। मनसा वाचा कर्मणा मेरे और न दूजा हो।।

सपने में भी नहीं आवेगा मालिक यह आपके अतिरिक्त।

बच्चों! यह पतिव्रता पद कहलाता है और इस ज्ञान से आप भी ऐसे ही हो जाओगे एक दिन। इसलिए इस ज्ञान को सुनो। पहले जो start (स्टार्ट- शुरू) में दास ने ऐसे मौखिक ज्ञान शुरू किया था ऑडियो चली थी। बीच में फिर यह ज़रूरी था। यह देखो गीता में। यह देखो पुराण में। यह देखो वेदों में। तो बीच में आपको यह प्रूफ दिखाने अनिवार्य थे। उससे पहले केवल मौखिक, यही शब्द दास, यही ज्ञान सुनाया करता था। सन् 1994 - 95 से लेकर और 2001 तक की ऑडियो देख लियो सुनकर। लेकिन ऐसे verbally (वर्बली-मौखिक) था वह। कोई प्रूफ नहीं था। बीच में, अब 2002 से लेकर और 2014 तक आपकी बुद्धि को इतना विकसित कर दिया देखो पुराण, देखो कुरान, बाईबल यह कहता है, वेद यह बताते हैं और गीता में देखो क्या लिखा है? हमें यह क्या बताते रहे और इन सब संतों का झाड़ा देकर, इनके Interview (इंटरव्यू-साक्षात्कार) लेकर आपके रूबरू कर दिया। इनके थैले में, इनके झोले में यह समान है और इनको सबको झाड़े दे दिए। उल्टा करके खोल लिया। सारा निकाल दिया कुबाड़ इनका। यह क्या भरे फिर रहे हैं। ऊपर मार्का (चिह्न) कुछ है, अंदर गंद भर रखा है। तो अब यह परमात्मा की दया हुई है। यह start (स्टार्ट-शुरू) तो दास करना चाहता था बड़े आश्रम से, पर रज़ा दाता की। कबीर साहेब कहते हैं;

कल करे सो आज कर,आज करे सो अब। और पल में पता नहीं क्या हो जा, फिर करेंगे कब।। 

तो उसका आदेश हुआ है, हो जा शुरू, बड़े ने भी देख लेंगे।

तो बच्चों! एक आंख खोलो। तुम अगर अब भी नहीं समझ पा रहे हो तो भाई! तुम तो घने (ज़्यादा) ही बालक हो। विकास करो बुद्धि का। देख कहां से, क्या होने लाग (लग) रहा। उस दयालु पर, रोया तो करो थोड़ी देर बैठकर एकांत में। अगर शर्म आवे तो। एकांत में बैठकर रो लिया करो ताकि आत्मा का मैल फूटे।

जैसे सूरज के आगे बदरा, ऐसे कर्म छया रे। यह प्यार की पवन करें चित मंजन, झलके तेज न्यारे।।

इन बातों को, परमात्मा के प्रयत्न को, उन्होंने हमारे लिए कितना-कितना अखाड़ा, एक जीव धर्मदास क्या लगे था उसका। उनका क्या लगा था वह उनका बेटा है। सारे उसके बेटा-बेटी हैं। पूरी सृष्टि के जीव उसके हैं लेकिन निर्भाग बालक को मां-बाप भी घणां ना टोकया करें (ज़्यादा नहीं कहा करें) और जो दिखे समझने का (समझने का), उसके पीछे पड़ा करें।

तो बच्चों! कै कै (क्या-क्या) अखाड़े किए। अब्राहिम सुल्तान के देख ले, बांदी बन गए। अपनी आत्मा को, जिसको हम स्वर्ग और सब कुछ मान रहे इसको पैसा हो गया, ठाट हो गए। सिर हो गया थारा और कुर्बान नहीं हुआ जाता। उस नरक से निकाला उस आत्मा को। पहले निर्धन था। धन की इच्छा थी। धन से ठोक दिया उसी जन्म में। दिल्ली का एक नंबर का सेठ बना दिया था। ले, चाट ले इस धन को। वह धन ले डूब्या (डूबा)। अब तक वह धन ही चल रहा था। आखिर में इब्राहिम सुल्तान अधम बना तब उस राजा पद को छोड़ा उसने। उस नर्क से, दलदल से, निकालकर बाहर खड़ा किया मार्ग पर, सड़क के ऊपर और फिर कह भी दिया था की अब तुझे ज्ञान हो गया है।

राजा योगी एक सुनो रे झूमकरा।।

राजा और भगत। यदि ठीक ढंग से चलता है, उसको पूर्ण ज्ञान है तो राज में कोई दिक्कत नहीं। राज करो लेकिन विचलित ना हो। फिर इब्राहिम सुल्तान बहुत समझदार था। बस जी! ईब (अब) तो हो लिया राज तो, आपने मौज कर दी। बस राज तो ईब (अब) मिला है मुझे। अपने घर जाऊंगा आपके चरणों में रहूंगा।

तो बच्चों! इस मालिक ने आपसे इतना प्रेम है, इतना लगाव है।

गरीब, ज्यों गऊँ की नजर में, यो साईं को संत। भक्तों के पीछे फिरे, यह भगत वछल भगवंत।।

अब यह धर्मदास जी पतिव्रता पद पर आ चुके थे। कहते हैं;

तीर्थ व्रत मैं ना करूं, ना देवल पूजा हो। मैं नहीं तीर्थ करूं दाता अब, नहीं यह व्रत करूं। और नहीं कोई मंदिर में पूजा करूँ। मनसा वाचा कर्मणा, मन, वचन, कर्म से यानी त्रिवाचा तीन वचन मेरे अब और न दूजा हो।। अष्ट सिद्धि और नौ निधि, बैकुंठ का वासा हो। सो मैं तुमसे नहीं मांगता, यह सब थोथरी आशा।। सुख संपत्ति परिवार धन और सुंदर नारी हो। स्वपन में इच्छा नहीं करूं, गुरु आन तुम्हारी हो।। कसम तुम्हारी। आखिर में रोता है। धर्मदास की विनती, समर्थ चित दीजै हो। हे समर्थ! मुझ दीन की यह अर्ज ध्यान दो। ध्यान दो, चित धरो दाता। आवा-गमन निवार कर अपना कर लीजो हो।। यह आवन- जावन निवार कर, अपना कर लीजो हो।। की मेरा यह आना-जाना, जन्म और मृत्यु समाप्त करके मुझे अपना मान लो। मुझे अपना कर जानो।

बच्चों! परमात्मा कबीर साहिब उनको यह सब ज्ञान देकर के मगहर से सशरीर चले गए। धर्मदास जी यहीं रह गए थे। उनको बड़ी टेंशन हुई। उनके वियोग में, मालिक के गुण गाया करते थे।

धन धन सतगुरु सत कबीर, भगत की पीड़ मिटाने वाले। धन धन सतगुरु सत कबीर भक्त की पीड़ मिटाने वाले।। भक्त की पीड़ मिटाने वाले, भगत की पीड़ मिटाने वाले। धन धन सतगुरु सत कबीर भक्त की पीड़ मिटाने वाले।।

आंखों में आंसू भरके उस परमपिता की महिमा, एकांत में बैठकर गाया करता था।

रहे नल नील यत्न कर हार तब सतगुरु से करी पुकार। रहे नल नील यत्न कर हार, तब सतगुरु से करी पुकार। जा सत रेखा काल खी अपार सिंधु पर शिला तैराने वाले।। जा सत रेखा काल खी अपार सिंधु पर शिला तैराने वाले।। धन धन सतगुरु सत कबीर भक्त की पीड़ मिटाने वाले।। राम-कृष्ण सतगुरु शहजादे भक्ति हेत यूं हुए प्यादे।।

गरीबदास जी कहते हैं, राम और कृष्ण भी उस कबीर सतगुरु के शहजादे उस राजा के राजकुमार हैं। उनको वो बहुत प्यारे हैं। ठीक है वो काल के फंस गए बदमाशां में चला जा किसी का बेटा, बेटा पर बुरा नहीं लगता, पर हर संभव कोशिश करता है फिर भी मां-बाप उनको सुखी करने की करते हैं। कदै (कभी) तो आंख खुलेगी इनकी। तो वहां काल ने तो भेज दिया इनको बिरानमाट्टी करवाने के लिए विष्णु अवतार को, राम-कृष्ण के रूप में और वहां अपना इनका वार्ता भी हुई थी काल से भी, परमात्मा ने ही यह सब कहलाई थी। मेरी मदद करिये वहां जाएगा मेरा अंश-अवतार राम रूप में और उसको तो आना ही था वह नहीं कहता तब भी आना था। सब फेल हो गया था। जब हार लिया था रामचंद्र जी, जब दाता गए थे वहां पर।

तो बच्चों!

धन धन सतगुरु सत कबीर भगत की पीड़ मिटाने वाले। रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरु से करी पुकार। जा सत रेखा लिखी अपार, सिंधु पर शिला तिराने वाले।।

वह समुद्र पर पुल भी दाता ने बंधवाया। यानी महादुख था उस समय, श्री रामचंद्र जी के पास कोई विकल्प नहीं बचा था अब। तो वह हल्का किया दुख उसका।

डसी सर्प ने जब जाय पुकारी, इंद्रमती अकुलाय। आपने तुरंत करी सहाय, बेरुली मंत्र सुनाने वाले। आपने तुरंत करी सहाय, बेरुली मंत्र सुनाने वाले।। धन धन सतगुरु सत कबीर भगत की पीड़ मिटाने वाले।।

अब आपने इंद्रमती रानी की कथा सुनी वह भी ऐसे ही दलदल में धंसी बैठी थी अपने की तरह और कबीर साहेब कहते हैं;

सौ छल छिद्र मैं करूं, अपने जन के काज। हरिणाकश्यप ज्यूं मार दूं, मैं नरसिंह धर के साज।।

अब कैसी लीला करी अपनी बेटी, अपनी आत्मा को नरक से निकालने के लिए। जो आस्तिक हैं, कोई न कोई क्रिया भगवान के लिए कर रहे हैं, तो उन्हीं को तो समझाया जा सकता है। उन्हीं को कोई झटके आदि देकर राह पर लाया जा सकता है। जो बिल्कुल नास्तिक हुए बैठे हैं, उनका तो फिर अब काल ही जाने क्या होगा। गरीबदास जी ने कहा है,

मेले ठेले जाइयो, मेले बड़ा मिलाप। पत्थर पानी पूजते, कोई साधु संत मिल जात।।

की जो बेचारे इन तीर्थों पर,‌ इन धामों पर,‌‌ कोई अपने सामूहिक परंपरागत जो मेले भरते हैं कही पर, किसी यादगार पर, लेकिन हों धार्मिक टाइप के तो परमात्मा कहते हैं;

“जब तक पूरा गुरु ना मिले, मेले ठेले जाइयो। इस तरह के मेले में जाते रहें मेले बड़ा मिलाप। वहां कम से कम परमात्मा की चर्चा ज़रूर होती है और वहीं पर परमात्मा किसी न किसी रूप में मिल जाते हैं और दो-चारों को तो खींच ही लाते हैं। पत्थर पानी पूजते कोई साधु संत मिल जात।।”

दामोदर सेठ के होवें थे अकाज। अर्ज करी डूबता देख जहाज। दामोदर सेठ के होवे थे अकाज। अर्ज करी डूबता देख जहाज। लाज मेरी रखियो गरीब निवाज, समुंद्र से पार लंघाने वाले।। लाज मेरी रखियो गरीब निवाज, समुंद्र से पार लंघाने वाले।। धन धन सतगुरु सत कबीर भगत की पीड़ मिटाने वाले।। कहे, कर जोड़ दीन धर्मदास, दर्श दे पूर्ण कीजो आस। कहे, कर जोड़ दीन धर्मदास, दर्श दे पूर्ण कीजो आस। मेटियो जन्म मरण की त्रास, सत्य पद प्राप्त करवाने वाले।। मेटियो जन्म मरण की त्रास, सत्य पद प्राप्त करवाने वाले।। धन धन सतगुरु सत कबीर भगत की पीड़ मिटाने वाले।।

बच्चों! परमात्मा की असीम रज़ा है आपके ऊपर है। अब वही धर्मदास जो कति मानन ने (बिल्कुल मानने को) तैयार नहीं था और फिर ऐसा अज्ञान अंधेरा हटया, की हे परमात्मा! आपने कैसे-कैसे दुख दूर किये। इन जिनको हम अवतार समझते थे, भगवान समझते थे। Last (लास्ट-अंत) में क्या demand (डिमांड-मांग) करते हैं, क्या प्रार्थना करते हैं;

कहे, कर जोड़ दीन धर्मदास, दर्श दे पूर्ण कर कीजो आस। मेटियो जन्म-मरण की त्रास, सत्य पद प्राप्त करवाने वाले।।

अब कितनी गजब की बात कही है की,

कहे, कर जोड़ दीन धर्मदास।

एक आधीन आपका दास धर्मदास! हाथ जोड़कर निवेदन करता है एक बार फिर से दर्शन दो दाता। मेरा जन्म- मरण की यह त्रास, दुख मिटाइयो मालिक। हे सत्यपद प्राप्त करवाने वाले, सत्यपद-सच्ची भक्ति पद्धति। सच्चा मोक्ष मार्ग, विधि पद आप प्राप्त करवाने वाले हैं और दूसरा पद का अर्थ है गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वज्ञान की प्राप्ति के पश्चात उस तत्वज्ञान रूपी शस्त्र से अज्ञान को काटकर, उसके पश्चात,‌ परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए जहां जाने के बाद साधक फिर लौटकर संसार में नहीं आते और जिससे संसार रूपी वृक्ष की प्रवृत्ति विस्तार को प्राप्त हुई है। यानी जिसने सारा संसार रचा है उसी की भक्ति करो। तो यह कहते हैं, हे परमात्मा! आपने सच्चा मार्ग बताने वाले आप।

अब बच्चों! धर्मदास जी की अनमोल कहानी को आज विराम देना है, थोड़ा सा प्रकरण रहता है। तो अजब और गजब है अब परमात्मा को संसार से जाए कई वर्ष हो चुके थे।

बच्चों! यह काल का इतना pressure (प्रेशर-दबाव), इतना दबाव है की, रह-रह कर सत्संग ना मिलने से और गुरु क्योंकि उस समय तो कोई और साधन था ही नहीं। गुरुजी ही आकर बताया करते उसको। नहीं कोई दूसरा कहनिया (कहने वाला) था की ये भक्ति ठीक से (है) जो तू कर रहा है। लेकिन उसका दृढ़ विश्वास हो चुका था।

अब उसको टेंशन यह बन गई धर्मदास जी को, की मेरा तो उद्धार हो गया मुझे सारनाम भी मिल गया और सारशब्द भी मिल गया। लेकिन भगवान ने मेरे बच्चों को तो नहीं दिया कुछ भी। इस संतान का क्या होगा? तब तक उसकी दो पीढ़ी चालू हो गई थी। धर्मदास जी काफी लंबी उम्र में बताते हैं मरे।

125 साल के आसपास की उम्र में मरे। मरे यानी शरीर छोड़ा। तो उसके मन में एक दोष आया की मैं अपने बच्चे को चूड़ामणि को, बेटे को यह सारनाम और सारशब्द बता दूं। यह आगे इनको देता रहेगा, इनका कल्याण हो जाएगा और परमात्मा ने धर्मदास जी को पहले गुरु पद दिया था। गुरु पद देकर जब उसको डामाडोल देखा तो फिर cancel (कैंसिल-मना) कर दिया की नहीं! आप किसी को कोई उपदेश नहीं दोगे। आपके पुत्र को आदेश देता हूं। तब संभल गया वह। फिर डगमग हो गया। देख काल का इतना ज़बरदस्त प्रेशर है, दबाव है।

बच्चों! पता नहीं किसी मोड़ पर ढाह देगा तुम्हें। तीन-चार साल मालिक के जाने के बाद उसके मन में यह दोष आया और यह सोच ही रहा था की कल या परसों कोई ठीक-सा समय निकालकर इस बच्चे को बता देता हूं। इतनी देर में जब इसने यह पुकार करी।

आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।। आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।।

तो वो सारा शब्द उन्होंने गाया। उसमें सारा आ जाता है।

काशी दोउ दीन का झगड़ा पड़ गया, थारा टोहा पाया ना शरीर।

यह धर्मदास के बाद की बातें हैं जब परमात्मा चले जा चुके थे। तो मालिक आ गए। बोल भाई धर्मदास कैसे याद किया? धर्मदास जी ने देखा भगवान आ गये। उम्र उसकी भी काफी हो रही थी। वहीं गिर गया,‌ पृथ्वी पर। बहुत ही एकदम इतना हर्षित हो गया। चरण पकड़ लिए। हे भगवान! आप तो समर्थ हो। मैं तो विचलित हो गया था। आपके बिना मैं तो अधूरा हो गया था। यहां कोई दूसरा है तो नहीं यह कहने वाला की भाई यह ज्ञान तेरा ठीक से (है)। दाता सारे ही मेरे पीछे पड़ गए। परमात्मा ने फिर पूरा ज्ञान, उसको फिर से समझाया। भाई काल का बहुत बुरा जाल है, ऐसे है, वैसे है।

धर्मदास मेरी लाख दुहाई। मूल ज्ञान और सारनाम, सारशब्द यह कहीं बाहर ना जाई।। मूल ज्ञान बाहर जो पड़ही। बिचली पीढ़ी हंस नहीं तिरही।।

नाश हो जाएगा। तेरे को पहले भी बताया था और भाई यह ऐसा है किसी को मत बताना। देख कितना बड़ा जुल्म हो जाएगा और तेरे को मना कर रखा है मैंने, अब नाम देने का अधिकारी तू रहा नहीं। देख कहीं गलती बन जा तेरे से। ध्यान रखना तुझे इसलिए वापस कहने आया हूं मैं।

हे भगवान! आप तो अंतर्यामी हैं। हे परमात्मा! कहा भाई! काल का ज़बरदस्त जाल है और सब यह काल के दूतां के यह नाम और यह सच्चा भक्ति मार्ग हाथ लग गया तो 5505 वर्ष जब यह बीतेंगे तो उस समय दास को भेजूंगा मैं। वह कैसे अलग-अलग बतायेगा यह गलत है? और यह ठीक है? उस समय यह तेरे बच्चे भी जन्म लेंगे। तेरा 42 पीढ़ी का वंश इसीलिए ही दिया है की ये भक्ति मार्ग पर तो लग ही रहे हैं और वह आयेगा जब उससे नाम ले लेंगे और तुम्हारा कल्याण हो जाएगा। ऐसा नाम दे दिया इसको जप करते रहना ये इससे मनुष्य जीवन मिलते रहेंगे इनको। धर्मदास बुरी तरह रोने लग गया। बुरी तरह।

हे भगवान! मैं तो आपका अपराधी हूं। मैं दुष्ट हूं। महानीच हूं। मेरे अंदर इतना गंद भर गया था दाता! मैं तो आपके इस काम को बिल्कुल बिगाड़ने वाला हो रहा था। मैंने तो नाश कर दिया था। शुक्र है आप आ गए और मेरे मन में मालिक ऐसे और ऐसे आ गई थी और कल ही परसों इस लड़के को बताता। लड़के को अपने को। इस पुत्र, परिवार, मोह में, मैं अंधा हो गया। धर्मदास बुरी तरह रोवे और आंसू पड़ें उसके। न्यूं बोले (ऐसे बोले) परमात्मा माफ कर दो बहुत दुष्ट हो गया मैं तो। हे परमात्मा! मेरा शरीर छुटवा दो।

शरीर छुड़वा दो नही पार, नहीं पड़े। वृद्धावस्था हो गई मन काबू में नहीं रह रहा। परमात्मा बोले दुख ना पा भाई। उसके मन में प्रेरणा की। परमात्मा बोले, मैंने देख तेरे को कितनी शक्ति बताई। भाई तेरे जगन्नाथ का मंदिर मैंने रोका, वहां एक पत्थर पर बैठकर। 5-6 बार तोड़ दिया था। छठी बार मैंने रोका भाई। उसको ऐसी प्रेरणा बनाई हे महाराज! हे भगवान! वह स्थान एक बार देखना चाहूं मैं जहां बैठकर आपने वह समुद्र रोका था और सारी बात समझ में आ गई थी उसके की यह समुद्र कैसे रोक दिया होगा? वह स्थान देखना चाहूं जहां आप बैठे थे।

परमात्मा बोले चाल भाई। पहले पैदल चला ही करते थे। दोनों जने चल पड़े। 3, 4, 5, 6 दिन में और जगन्नाथ के उस स्थान पर पहुंच गए उस पुरी में। जहां परमात्मा ने यह समुद्र रोका था। तो वहां के लोगों ने भी बताया भाई ऐसे-ऐसे कोई संत आये थे और वह बूढ़े बाबा के रूप में उन्होंने ही समुंद्र रोका था। उस टाइम तो यह सच्ची कहानी सही चल रही थी। बाद में आकर इन्होंने दबा दी थी। धर्मदास जी को फिर से वहां पूरा ज्ञान समझाया। 10 दिन लगातार सत्संग सुनाया। अरे! भूल गया तू ऊपर क्या देखकर आया था इस नर्क में फिर रहना चाहता है?

एक लेवा एक देवा दूतम। कोई किसी का पिता नहीं पूतं।। ऋण संबंध जुड़ा एक ठाठा। अंत समय सब 12 बाटा।।

धर्मदास जी बोला जी! मेरा शरीर छुटवा दो। मुझे ले चलो यहां से। नरक से निकाल दो। मैं कति (बिल्कुल) गिर चुका हूं और मालिक आपने समय पर संभाल लिया। परमात्मा ने वहीं खड्डा खुदवा कर और उसमें लेटा दिया। ऐसे बोला मुझे तो दबा दो कहीं मिट्टी में,‌ पापी ने। अब यहां प्रसंग आता है,‌ मालिक ने उसको बहुत सी शंकाएं काल पैदा करता है की भगवान तो वैसे भी शरीर छुटवा सकते थे। भगवान तो वैसे भी कर सकते थे ऐसा क्यों किया? यह तो एक उसको  हत्या कर दी। इसके पीछे बहुत गजब राज़ होता है और भगत के तो मन में ऐसी बातें कभी नहीं आनी चाहिएं। परमात्मा ने कहा कि इसमें तू लेट जा और ऊपर से हम छाप देंगे। लेकिन यह सिमरन जो तुझे दिया है इसे भूल न जाना एक पल भी।

अब बच्चों! उसको last (लास्ट-अंत में) यह हो गया था कि अब तेरे यह स्वांस अंतिम हैं। अंतिम स्वांस हैं। नहीं बेटा याद आया, नहीं बेटी। नहीं वह संपत्ति, नहीं कोई पत्नी। अपना जीवन दिखाई दे था। गरीबदास जी कहते हैं,

अभय मुहूर्त षटदलीप एक घड़ी एक षटदलीप नाम का इस रामचंद्र जी का परदादा था। षटदलीप। वो इंद्र के लिए, इंद्र के पक्ष में, राक्षसों से लड़ने गया था, सेना लेकर। यह सिद्धियां इतनी थीं इनके पास। यह ऐसे आम बातें थीं और इंद्र ने जहाज वायुयान भेज कर ऊपर बुला रखा था। तो राजा वहां युद्ध में, इंद्र जीत गया स्वर्ग का राजा। तब उसको पता चला तेरी दो घड़ी जीवन रहता है। दो घड़ी। एक घड़ी 24 मिनट की। तब उसने कहा, इंद्र से कहा कि, ‘मुझे एक बार सरयू नदी के किनारे भेज दे, अयोध्या में मेरी राजधानी में।’ इंद्र बोला और मेरे पास कोई विकल्प नहीं मैं तेरी उम्र बचा दूं। उस समय एक ऋषि ने उसको दीक्षा दे रखी थी उसने बताया कि ईब मालिक में लौ लगा ले, कोई दूसरा ठिकाना नहीं। एक सेकंड के अंदर उस सरयू नदी के किनारे उसको छोड़ दिया। दो घड़ी ऐसी लौ लगाई, सब कुछ भूल गया भाई। तो यह सिमरन कुछ ही समय का।

जहां आशा तहां वासा होई।

उसकी आशा स्वर्ग की थी। धर्मदास की आशा सतलोक की थी। तो बच्चों! यह है वो सारनाम। यह है वह मूल ज्ञान, धीरे-धीरे आपके भी अंतःकरण के यह संशय थोड़े बहुत जो संशय हैं बिल्कुल नष्ट हो जाएंगे। मालिक के ऊपर विश्वास रखो। इस मार्ग को छोड़ ना देना।

अब बच्चों! फिर हम वहां देखकर आए थे उस जगन्नाथ के उस सारे system (सिस्टम- व्यवस्था) को जहां मालिक ने वह चबूतरे पर बैठकर समुद्र रोका था। वहां अब, एक यह याद सुरक्षित रखने के लिए एक मंदिरनुमा स्थान, मंढ़ी बना रखी है ताकि वह सुरक्षित रहे और पूजा पाजा वगैराह नहीं उसमें कुछ भी। वहां कबीरपंथी महंत रहते हैं। उनको थोड़ा बहुत चढ़ावा चढ़ जाए उससे गुज़ारा कर रहे हैं। वह उसके संरक्षक है बस इतना। फिर आमनी देवी भी, अपना पति नहीं आया तो उसको देखने चली गई। परमात्मा ने फिर उसको भी यही दशा करी, की भगवान मेरा भी यहीं शरीर छुटवा दो। अब मैं भी छिक ली और थक ली। तो उन दोनों की यादगार वहां आज भी बनी हुई है।

बच्चों! यह था वो समय जब धर्मदास से अतिरिक्त कोई भी सच्चे ज्ञान को सुनने वाला और सुनाने वाला नहीं था और आज आपके लिए तो परमात्मा ने खज़ाना खोल दिया। बच्चा-बच्चा एक दूसरे को सपोर्ट करता है। परमात्मा ने यह कहा, परमात्मा ने यह कहा है, यह प्रमाण है। आपको मोक्ष में कोई दिक्कत नहीं आने की। समर्पित हो जाओ। इनको बालकों की कथा मत समझना। कोई यह डूम भाट के गीत नहीं हैं। यह समर्थ की बताई सच्ची कथा, यह सत्यनारायण कथा है। परमात्मा आपको मोक्ष दे। सदा सुखी रखे।

सत साहेब।

 

विशेष संदेश भाग 29: कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को कराया सतलोक दर्शन →