भक्ति बोध

भक्ति बोध

सर्व परमात्मा (सतगुरु) प्रेमियों से प्रार्थना है कि महाराज कबीर साहेब व गरीबदास जी की वाणी से यह ‘‘नित्य नियम’’ का गुटका आपके नित्य पाठ के लिए छपवाया गया है। ताकि शुद्धि पूर्वक नित्य पाठ करके आत्मा का कल्याण कर सकें। बन्दी छोड़ कबीर साहेब तथा गरीबदास जी महाराज की वाणी में यह विशेषता है कि इसके नित्य पाठ से आत्मा में दुष्कर्म त्यागने व भगवान चिन्तन की शक्ति आती है। बन्दी छोड़ कबीर साहेब व गरीबदास जी महाराज की वाणी स्व सिद्ध है। इसके नित्य पाठ से ज्ञान यज्ञ का लाभ होता है। जिस प्रकार किसी व्यक्ति को सर्प काट ले और वह मुर्छित हो तो गारडु (सर्प काटे का अध्यात्मिक इलाज करने वाला व्यक्ति) कुछ श्लोक(मन्त्र) पढ़ता है। जिस के कुछ समय में वह मुर्छित व्यक्ति होश में आ जाता है ठीक इसी प्रकार आत्मा पर दुष्कर्मों का विष चढ़ा हुआ है जिससे आत्मा काम क्रोध, मोह वस होकर मुर्छित पड़ी है। जो वाणी का पाठ करने से होश में आ जाती है। फिर परमात्मा का ध्यान, सुमरण, प्रभु गुणगान गुरु धारण करके काल के जाल से मुक्त हो जाती है। कुछ रोग भी वाणी पाठ से कट जाते हैं। यदि पूर्ण संत से नाम लेकर विश्वास करके नित्य पाठ किए जाएं। परिवार में सुख, धन वृद्धि, कुछ कार्य सिद्ध भी नाम जाप तथा वाणी के पाठ से होते हैं क्योंकि यह ज्ञान यज्ञ है। यह निश्चय कर मानें। परंतु पूर्ण मुक्ति के लिए पूर्ण गुरु की तलाश करें तथा नाम लेकर गुरु वचन में चलें और अपना जीवन सफल करें। नित्य पाठ का अर्थ यह है कि जो वाणी(सतगुरु वचन) में लिखा है उस पर अमल करना है। उसी प्रकार अपनी रहनी व करनी करें।

कविर्देवाय नमः
सतगुरु देवाय नमः
कबीर परमेश्वर की दया

आदरणीय गरीबदास जी साहेब की वाणी

।।अथ मंगलाचरण।।

गरीब नमो नमो सत् पुरूष कुं, नमस्कार गुरु कीन्ही। सुरनर मुनिजन साधवा, संतों सर्वस दीन्ही।1।
सतगुरु साहिब संत सब डण्डौतम् प्रणाम। आगे पीछै मध्य हुए, तिन कुं जा कुरबान।2।
नराकार निरविषं, काल जाल भय भंजनं। निर्लेपं निज निर्गुणं, अकल अनूप बेसुन्न धुनं।3।
सोहं सुरति समापतं, सकल समाना निरति लै। उजल हिरंबर हरदमं बे परवाह अथाह है, वार पार नहीं मध्यतं।4।
गरीब जो सुमिरत सिद्ध होई, गण नायक गलताना। करो अनुग्रह सोई, पारस पद प्रवाना।5।
आदि गणेश मनाऊँ, गण नायक देवन देवा। चरण कवंल ल्यो लाऊँ, आदि अंत करहूं सेवा।6।

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परम शक्ति संगीतं, रिद्धि सिद्धि दाता सोई। अबिगत गुणह अतीतं, सतपुरुष निर्मोही।7।
जगदम्बा जगदीशं, मंगल रूप मुरारी। तन मन अरपुं शीशं, भक्ति मुक्ति भण्डारी।8।
सुर नर मुनिजन ध्यावैं, ब्रह्मा विष्णु महेशा। शेष सहंस मुख गावैं, पूजैं आदि गणेशा।9।
इन्द कुबेर सरीखा, वरुण धर्मराय ध्यावैं। सुमरथ जीवन जीका, मन इच्छा फल पावैं।10।
तेतीस कोटि अधारा, ध्यावैं सहंस अठासी। उतरैं भवजल पारा, कटि हैं यम की फांसी।11।

।। मन्त्र।।

अनाहद मन्त्र सुख सलाहद मन्त्र, अजोख मन्त्र, बेसुन मन्त्र निर्बान मन्त्र थीर है।।1।।
आदि मन्त्र युगादि मन्त्र, अचल अभंगी मन्त्र, सदा सत्संगी मन्त्र, ल्यौलीन मन्त्र गहर गम्भीर है।।2।।
सोऽहं सुभान मन्त्र, अगम अनुराग मन्त्र, निर्भय अडोल मन्त्र, निर्गुण निर्बन्ध मन्त्र, निश्चल मन्त्र नेक है।।3।।

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गैबी गुलजार मन्त्र, निर्भय निरधार मन्त्र, सुमरत सुकृत मन्त्र अगमी अबंच मन्त्र अदलि मन्त्र अलेख है।4।
फजलं फराक मन्त्र, बिन रसना गुणलाप मन्त्र, झिलमिल जहूर मन्त्र, सरबंग भरपूर मन्त्र, सैलान मन्त्रसार है।।5।।
ररंकार गरक मन्त्र, तेजपुंज परख मन्त्र, अदली अबन्ध मन्त्र, अजपा निर्सन्ध-मन्त्र, अबिगत अनाहद मन्त्र, दिल में दीदार है।।6।।
वाणी विनोद मन्त्र, आनन्द असोध मन्त्र, खुरसी करार मन्त्र, अनभय उच्चार मन्त्र, उजल मन्त्र अलेख है।।7।।
साहिब सतराम मन्त्र, सांई निहकाम मन्त्र, पारख प्रकास मन्त्र, हिरम्बर हुलास मन्त्र, मौले मलार मन्त्र, पलक बीच खलक है।।8।।

।।अथ गुरुदेवे का अंग।।

गरीब, प्रपटन वह प्रलोक है, जहां अदली सतगुरु सार। भक्ति हेत सैं उतरे, पाया हम दीदार।।1।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, अलल पंख की जात। काया माया ना वहां, नहीं पाँच तत का गात।।2।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, उजल हिरम्बर आदि। भलका ज्ञान कमान का, घालत हैं सर सांधि।।3।।

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गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुन्न विदेशी आप। रोम - रोम प्रकाश है, दीन्हा अजपा जाप।।4।।
गरीब,ऐसा सतगुरु हम मिल्या, मगन किए मुस्ताक। प्याला प्याया प्रेम का, गगन मण्डल गर गाप।।5।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सिंध सुरति की सैन। उर अंतर प्रकासिया, अजब सुनाये बैन।।6।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुरति सिंधु की सैल। बज्र पौल पट खोल कर, ले गया झीनी गैल।।7।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुरति सिंधु के तीर। सब संतन सिर ताज हैं, सतगुरु अदली कबीर।।8।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुरति सिंधु के माँहि। शब्द स्वरूपी अंग है, पिंड प्रान बिन छाँहि।।9।।
गरीब, ऐसा सतगुरू हम मिल्या, गलताना गुलजार। वार पार कीमत नहीं, नहीं हल्का नहीं भार।।10।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुरति सिंधु के मंझ। अंड्यों आनन्द पोख है, बैन सुनाये कुंज।।11।।

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गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुरति सिंधु के नाल। पीताम्बर ताखी धर्यो, बानी शब्द रिसाल।।12।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुरति सिंधु के नाल। गवन किया परलोक से, अलल पंख की चाल।।13।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुरति सिंधु के नाल। ज्ञान जोग और भक्ति सब, दीन्ही नजर निहाल।।14।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, बेप्रवाह अबंध। परम हंस पूर्ण पुरूष, रोम - रोम रवि चंद।।15।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, है जिंदा जगदीश। सुन्न विदेशी मिल गया, छत्र मुकुट है शीश।।16।।
गरीब, सतगुरु के लक्षण कहूं , मधुरे बैन विनोद। चार बेद षट शास्त्र, कह अठारा बोध।।17।।
गरीब, सतगुरु के लक्षण कहूं, अचल विहंगम चाल। हम अमरापुर ले गया, ज्ञान शब्द सर घाल।।18।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, तुरिया केरे तीर। भगल विद्या बानी कहैं, छानै नीर अरु खीर।।19।।

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गरीब, जिंदा जोगी जगत गुरु, मालिक मुरशद पीव। काल कर्म लागै नहीं, नहीं शंका नहीं सीव।।20।।
गरीब, जिंदा जोगी जगत गुरु, मालिक मुरसद पीर। दहु दीन झगड़ा मॅड्या, पाया नहीं शरीर।।21।।
गरीब, जिंदा जोगी जगत गुरु, मालिक मुरशद पीर। मार्या भलका भेद से, लगे ज्ञान के तीर।22।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, तेज पुंज के अंग। झिल मिल नूर जहूर है, नर रूप सेत रंग।।23।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, तेज पुंज की लोय। तन मन अरपूं सीस कुं, होनी होय सु होय।।24।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, खोले बज्र किवार। अगम दीप कूं ले गया, जहां ब्रह्म दरबार।।25।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, खोले बज्र कपाट। अगम भूमि कूं गम करी, उतरे औघट घाट।।26।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, मारी ग्यासी गैन। रोम - रोम में सालती, पलक नहीं है चैन।।27।।

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गरीब, सतगुरु भलका खैंच कर लाया बान जु एक। स्वांस उभारे सालता पड्या कलेजे छेक।।28।।
गरीब, सतगुरु मार्या बाण कस, खैबर ग्यासी खैंच। भर्म कर्म सब जर गये, लई कुबुद्धि सब ऐंच ।।29।।
गरीब, सतगुरु आये दया करि, ऐसे दीन दयाल। बंदी छोड़ बिरद तास का, जठराग्नि प्रतिपाल।।30।।
गरीब, जठराग्नि सैं राखिया, प्याया अमृत खीर। जुगन-जुगन सतसंग है, समझ कुटन बेपीर।।31।।
गरीब, जूनी संकट मेट हैं, औंधे मुख नहीं आय। ऐसा सतगुरु सेइये, जम सै लेत छुड़ाय।।32।।
गरीब, जम जौरा जासै डरैं, धर्म राय के दूत। चौदा कोटि न चंप हीं, सुन सतगुरु की कूत।।33।।
गरीब, जम जौरा जासे डरैं, धर्म राय धरै धीर। ऐसा सतगुरु एक है, अदली असल कबीर।।34।।
गरीब, जम जौरा जासै डरैं, मिटें कर्म के अंक। कागज कीरै दरगह दई, चौदह कोटि न चंप।।35।।

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गरीब, जम जौरा जासे डरैं, मिटें कर्म के लेख। अदली असल कबीर हैं, कुल के सतगुरु एक।।36।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, पहुंच्या मंझ निदान। नौका नाम चढ़ाय कर, पार किये परमान।।37।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, भौ सागर के माहि। नौका नाम चढ़ाय कर, ले राखे निज ठाहि।।38।।
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, भौ सागर के बीच। खेवट सब कुं खेवता, क्या उत्तम क्या नीच।।39।।
गरीब, चौरासी की धार में, बहे जात हैं जीव। ऐसा सतगुरु हम मिल्या, ले प्रसाया पीव।।40।।
गरीब, लख चौरासी धार में, बहे जात हैं हंस। ऐसा सतगुरु हम मिल्या, अलख लखाया बंस।।41।।
गरीब, माया का रस पीय कर, फूट गये दो नैन। ऐसा सतगुरु हम मिल्या, बास दिया सुख चैन।।42।।
गरीब, माया का रस पीय कर, हो गये डामाडोल। ऐसा सतगुरु हम मिल्या, ज्ञान जोग दिया खोल।।43।।

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गरीब, माया का रस पीय कर, हो गये भूत खईस। ऐसा सतगुरु हम मिल्या, भक्ति दई बकसीस।।44।।
गरीब, माया का रस पीय कर, फूट गये पट चार। ऐसा सतगुरु हम मिल्या, लोयन संख उघार।।45।।
गरीब, माया का रस पीय कर, डूब गये दहूँ दीन। ऐसा सतगुरु हम मिल्या, ज्ञान जोग प्रवीन।।46।।
गरीब, माया का रस पीय कर, गये षट दल गारत गोर। ऐसा सतगुरु हम मिल्या, प्रगट लिए बहोर।।47।।
गरीब, सतगुरु कुं क्या दीजिए, देने कूं कुछ नाहिं। संमन कूं साटा किया, सेऊ भेंट चढाहि।।48।।
गरीब, सिर साटे की भक्ति है, और कुछ नाहिं बात। सिर के साटे पाईये, अवगत अलख अनाथ।।49।।
गरीब, सीस तुम्हारा जायेगा, कर सतगुरु कूं दान। मेरा मेरी छाड दे, योही गोई मैदान।।50।।
गरीब, सीस तुम्हारा जायेगा, कर सतगुरु की भेंट। नाम निरंतर लीजिए, जम की लगैं न फेंट।।51।।

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गरीब, साहिब से सतगुरु भये, सतगुरु से भये साध। ये तीनों अंग एक हैं,गति कछु अगम अगाध।।52।।
गरीब, साहिब से सतगुरु भये, सतगुरु से भये संत। धर - धर भेष विशाल अंग, खेलें आदि और अंत।।53।।
गरीब, ऐसा सतगुरु सेइये, बेग उतारे पार। चौरासी भ्रम मेटहीं, आवा गवन निवार।।54।।
गरीब, अन्धे गूंगे गुरु घने, लंगड़े लोभी लाख। साहिब सैं परचे नहीं, काव बनावैं साख।।55।।
गरीब, ऐसा सतगुरु सेईये, शब्द समाना होय। भौ सागर में डूबतें, पार लंघावैं सोय।।56।।
गरीब, ऐसा सतगुरु सेईये, सोहं सिंधु मिलाप। तुरिया मध्य आसन करैं, मेटैं तीन्यों ताप।।57।।
गरीब, तुरिया पर पुरिया महल, पार ब्रह्म का देश। ऐसा सतगुरु सेईये, शब्द विग्याना नेस।।58।।
गरीब, तुरिया पर पुरिया महल, पार ब्रह्म का धाम। ऐसा सतगुरु सेईये, हंस करैं निहकाम।।59।।

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गरीब, तुरिया पर पुरिया महल, पार ब्रह्म का लोक। ऐसा सतगुरु सेईये, हंस पठावैं मोख।।60।।
गरीब, तुरिया पर पुरिया महल, पार ब्रह्म का द्वीप। ऐसा सतगुरु सेईये, राखे संग समीप।।61।।
गरीब, गगन मण्डल गादी जहां, पार ब्रह्म अस्थान। सुन्न शिखर के महल में, हंस करैं विश्राम।।62।।
गरीब, सतगुरु पूर्ण ब्रह्म हैं, सतगुरु आप अलेख। सतगुरु रमता राम हैं, यामें मीन न मेख।।63।।
गरीब, सतगुरु आदि अनादि हैं, सतगुरु मध्य हैं मूल। सतगुरु कुं सिजदा करूं, एक पलक नहीं भूल।।64।।
गरीब, पट्टन घाट लखाईयां, अगम भूमि का भेद। ऐसा सतगुरु हम मिल्या, अष्ट कमल दल छेद।।65।।
गरीब, पट्टन घाट लखाईयां, अगम भूमि का भेव। ऐसा सतगुरु हम मिल्या, अष्ट कमल दल सेव।।66।।
गरीब, प्रपट्टन की पीठ में, सतगुरु ले गया मोहि। सिर साटै सौदा हुआ, अगली पिछली खोहि।।67।।

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गरीब, प्रपट्टन की पीठ में, सतगुरु ले गया साथ। जहां हीरे मानिक बिकैं, पारस लाग्या हाथ।।68।।
गरीब, प्रपट्टन की पीठ में, है सतगुरु की हाट। जहां हीरे मानिक बिकैं, सौदागर स्यों साट।।69।।
गरीब, प्रपट्टन की पीठ में, सौदा है निज सार। हम कुं सतगुरु ले गया, औघट घाट उतार।।70।।
गरीब, प्रपट्टन की पीठ में, प्रेम प्याले खूब। जहां हम सतगुरु ले गया, मतवाला महबूब।।71।।
गरीब, प्रपट्टन की पीठ में, मतवाले मस्तान। हम कुं सतगुरु ले गया, अमरापुर अस्थान।।72।।
गरीब, बंक नाल के अंतरै, त्रिवैणी के तीर। मान सरोवर हंस हैं, बानी कोकिल कीर।।73।।
गरीब, बंकनाल के अंतरे, त्रिवैणी के तीर। जहां हम सतगुरु ले गया, चुवै अमीरस षीर।।74।।
गरीब, बंक नाल के अंतरे, त्रिवैणी के तीर। जहां हम सतगुरु ले गया, बन्दी छोड़ कबीर।।75।।

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गरीब, भंवर गुफा में बैठ कर, अमी महारस जोख। ऐसा सतगुरु मिल गया, सौदा रोकम रोक।।76।।
गरीब, भंवर गुफा में बैठ कर, अमी महारस तोल। ऐसा सतगुरु मिल गया, बज्र पौल दई खोल।।77।।
गरीब, भंवर गुफा में बैठ कर, अमी महारस जोख। ऐसा सतगुरु मिल गया, ले गया हम प्रलोक।।78।।
गरीब, पिण्ड ब्रह्मण्ड सैं अगम हैं, न्यारी सिंधु समाध। ऐसा सतगुरु मिल गया, देख्या अगम अगाध।।79।।
गरीब, पिण्ड ब्रह्मण्ड सैं अगम हैं, न्यारी सिन्धु समाध। ऐसा सतगुरु मिल गया, दिया अखै प्रसाद।।80।।
गरीब, औघट घाटी ऊतरे, सतगुरु के उपदेश। पूर्ण पद प्रकासिया, ज्ञान जोग प्रवेश।।81।।
गरीब, सुन्न सरोवर हंस मन, न्हाया सतगुरु भेद। सुरति निरति परचा भया, अष्ट कमल दल छेद।।82।।
गरीब, सुन्न बेसुन्न सैं अगम है, पिण्ड ब्रह्मण्ड सैं न्यार। शब्द समाना शब्द में, अवगत वार न पार।।83।।

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गरीब, सतगुरु कूं कुरबान जां, अजब लखाया देस। पार ब्रह्म प्रवान है, निरालम्भ निज नेस।।84।।
गरीब, सतगुरु सोहं नाम दे, गुज बीरज विस्तार। बिन सोहं सीझे नहीं, मूल मन्त्र निज सार।।85।।
गरीब, सोहं सोहं धुन लगै, दर्द बन्द दिल माहिं। सतगुरु परदा खोल हीं, परालोक ले जाहिं।।86।।
गरीब, सोहं जाप अजाप है, बिन रसना होए धुन्न। चढ़े महल सुख सेज पर, जहां पाप नहीं पुन्न।।87।।
गरीब, सोहं जाप अजाप है, बिन रसना होए धुन्न। सतगुरु दीप समीप है, नहीं बसती नहीं सुन्न।।88।।
गरीब, सुन्न बसती सैं रहित है, मूल मन्त्र मन माहिं। जहां हम सतगुरु ले गया, अगम भूमि सत ठाहिं।।89।।
गरीब, मूल मन्त्र निज नाम है, सूरत सिंधु के तीर। गैबी बाणी अरस में, सुर नर धरैं न धीर।।90।।
गरीब, अजब नगर में ले गया, हम कुं सतगुरु आन। झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।।91।।
गरीब, अगम अनाहद दीप है, अगम अनाहद लोक।

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अगम अनाहद गवन है, अगम अनाहद मोख।।92।।
गरीब, सतगुरु पारस रूप हैं, हमरी लोहा जात। पलक बीच कंचन करैं, पलटैं पिण्डरु गात।। 93।।
गरीब, हम तो लोहा कठिन हैं, सतगुरु बने लुहार। जुगन-जुगन के मोरचे, तोड़ घड़े घणसार।।94।।
गरीब, हम पसुवा जन जीव हैं, सतगुरु जात भिरंग। मुरदे सैं जिन्दा करैं, पलट धरत हैं अंग।।95।।
गरीब, सतगुरु सिकलीगर बने, यौह तन तेगा देह। जुगन-जुगन के मोरचे, खोवैं भर्म संदेह।।96।।
गरीब, सतगुरु कंद कपूर हैं, हमरी तुनका देह। स्वाति सीप का मेल है, चंद चकोरा नेह।।97।।
गरीब, ऐसा सतगुरु सेईये, बेग उधारै हंस। भौ सागर आवै नहीं, जौरा काल विध्वंस।।98।।
गरीब, पट्टन नगरी घर करै, गगन मण्डल गैनार। अलल पंख ज्यूं संचरै, सतगुरु अधम उधार।।99।।
गरीब, अलल पंख अनुराग है, सुन्न मण्डल रहै थीर। दास गरीब उधारिया, सतगुरु मिले कबीर।।100।।

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साहेब कबीर की वाणी गुरूदेव के अंग से

कबीर, दण्डवत् गोविन्द गुरु, बन्दूँ अविजन सोय। पहले भये प्रणाम तिन, नमो जो आगे होय।।1।।
कबीर, गुरुको कीजे दण्डवत, कोटि कोटि परनाम। कीट न जानै भृंगको, यों गुरुकरि आप समान।।2।।
कबीर, गुरु गोविंद कर जानिये, रहिये शब्द समाय। मिलै तौ दण्डवत् बन्दगी, नहिं पलपल ध्यान लगाय।।3।।
कबीर, गुरु गोविंद दोनों खड़े, किसके लागों पांय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दिया मिलाय।।4।।
कबीर, सतगुरु के उपदेशका, सुनिया एक बिचार। जो सतगुरु मिलता नहीं, जाता यमके द्वार।।5।।
कबीर, यम द्वारेमें दूत सब, करते खैंचा तानि। उनते कभू न छूटता, फिरता चारों खानि।।6।।
कबीर, चारि खानिमें भरमता, कबहुं न लगता पार। सो फेरा सब मिटि गया, सतगुरुके उपकार।।7।।
कबीर, सात समुन्द्र की मसि करूं, लेखनि करूं बनिराय। धरती का कागद करूं, गुरु गुण लिखा न जाय।।8।।
कबीर, बलिहारी गुरु आपना, घरी घरी सौबार।

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मानुषतें देवता किया, करत न लागी बार।।9।।
कबीर, गुरुको मानुष जो गिनै, चरणामृत को पान। ते नर नरकै जाहिगें, जन्म जन्म होय स्वान।।10।।
कबीर, गुरु मानुष करिजानते, ते नर कहिये अंध। होंय दुखी संसारमें, आगे यमका फंद।।11।।
कबीर, ते नर अंध हैं, गुरुको कहते और। हरिके रूठे ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर।।12।।
कबीर, कबीरा हरिके रूठते, गुरुके शरने जाय। कहै कबीर गुरु रूठते, हरि नहिं होत सहाय।।13।।
कबीर, गुरुसो ज्ञान जो लीजिये, सीस दीजिये दान। बहुतक भोंदू बहिगये, राखि जीव अभिमान।।14।।
कबीर, गुरु समान दाता नहीं, जाचक शिष्य समान। तीन लोककी सम्पदा, सो गुरु दीन्हीं दान।।15।।
कबीर, तन मन दिया तो भला किया, शिरका जासी भार। जो कभू कहै मैं दिया, बहुत सहे शिर मार।।16।।
कबीर, गुरु बड़े हैं गोविन्द से, मन में देख विचार। हरि सुमरे सो वारि हैं, गुरु सुमरे होय पार।।17।।
कबीर, ये तन विष की बेलड़ी, गुरु अमृत की खान।

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शीश दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।18।।
कबीर, सात द्वीप नौ खण्ड में, गुरु से बड़ा ना कोय। करता करे ना कर सकै, गुरु करे सो होय।।19।।
कबीर, राम कृष्ण से को बड़ा, तिन्हूं भी गुरु कीन्ह। तीन लोक के वे धनी, गुरु आगै आधीन।।20।।
कबीर, हरि सेवा युग चार है, गुरु सेवा पल एक। तासु पटन्तर ना तुलैं, संतन किया विवेक।।21।।

।। सतगुरु महिमा।।

साहेब गरीबदास जी की वाणी

सतगुरु दाता हैं कलि माहिं, प्राण उधारण उत्तरे सांई। सतगुरु दाता दीन दयालं, जम किंकर के तोरैं जालं।।
सतगुरु दाता दया करांही, अगम दीप सैं सो चल आहीं। सतगुरु बिना पंथ नहीं पावै, सतगुरु मिलैं तो अलख लखावैं।।
सतगुरु साहिब एक शरीरा, सतगुरु बिना न लागै तीरा। सतगुरु बान विहंगम मारैं, सतगुरु भव सागर सैं तारैं।।
सतगुरु बिना न पावै पैण्डा, हूंठ हाथ गढ लीजै कैण्डा। सतगुरु दर्द बंद दर्वेसा, जो मन कर है दूर अंदेशा।।
सतगुरु दर्द बंद दरबारी, उतरे साहिब सुन्य अधारी।

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सतगुरु साहिब अंग न दूजा, ये सर्गुण वै निर्गुन पूजा।।
गरीब, निर्गुण सर्गुण एक है, दूजा भर्म विकार। निर्गुण साहिब आप हैं सर्गुण संत विचार।।
सतगुरु बिना सुरति नहीं पाटै, खेल मंड्या है सिर के साटै। सतगुरु भक्ति मुक्ति केदानी, सतगुरु बिना न छूटै खानी।।
मार्ग बिना चलन है तेरा, सतगुरु मेटैं तिमर अंधेरा। अपने प्राणदानजो करहीं, तनमन धनसब अर्पण धरहीं।।
सतगुरु संख कला दरसावैं, सतगुरु अर्श विमान बिठावैं। सतगुरु भौ सागरके कोली, सतगुरु पार निबाहैं डोली।।
सतगुरु मादर पिदर हमारे, भौ सागर के तारन हारे। सतगुरु सुन्दर रूप अपारा, सतगुरु तीन लोक सैं न्यारा।।
सतगुरु परम पदारथ पूरा, सतगुरु बिना न बाजैं तूरा। सतगुरु आवादान कर देवैं, सतगुरु राम रसायन भेवैं।।
सतगुरु पसु मानस करि डारैं, सिद्धि देय कर ब्रह्म विचारै।।
गरीब, ब्रह्म बिनानी होत हैं सतगुरु शरणालीन। सूभर सोई जानिये, सब सेती आधीन।।
सतगुरु जो चाहे सो करही, चौदह कोटि दूत जम डरहीं। ऊत भूत जम त्रास निवारे, चित्र गुप्त के कागज फारै।

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साहेब कबीर जी की वाणी

गुरु ते अधिक न कोई ठहरायी। मोक्षपंथ नहिं गुरु बिनु पाई।। राम कृष्ण बड़ तिहुँपुर राजा।तिन गुरु बंदि कीन्ह निज काजा।।
गेही भक्ति सतगुरु की करहीं। आदि नाम निज हृदय धरहीं।। गुरु चरणन से ध्यान लगावै। अंत कपट गुरु से ना लावै।।
गुरु सेवा में फल सर्बस आवै। गुरु विमुख नर पार न पावै।। गुरु वचन निश्चय कर मानै। पूरे गुरु की सेवा ठानै।।
गुरुकी शरणा लीजै भाई। जाते जीव नरक नहीं जाई।। गुरु कृपा कटे यम फांसी। विलम्ब ने होय मिले अविनाशी।।
गुरु बिनु काहु न पाया ज्ञाना। ज्यों थोथा भुस छड़े किसाना।। तीर्थ व्रत अरू सब पूजा। गुरु बिन दाता और न दूजा।।
नौ नाथ चौरासी सिद्धा। गुरु के चरण सेवे गोविन्दा।। गुरु बिन प्रेत जन्म सब पावै। वर्ष सहंस्र गरभ सो रहावै।।
गुरु बिन दान पुण्य जो करई। मिथ्या होय कबहूँ नहीं फलहीं।। गुरु बिनु भर्म न छूटे भाई।कोटि उपाय करे चतुराई।।
गुरु के मिले कटे दुःख पापा। जन्म जन्म के मिटें संतापा।। गुरु के चरण सदा चित्त दीजै। जीवन जन्म सुफल कर लीजै।।
गुरु भगता मम आतम सोई। वाके हृदय रहूँ समोई।।

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अड़सठ तीर्थ भ्रम भ्रम आवे। सो फल गुरु के चरनों पावे।।
दशवाँ अंश गुरु को दीजै। जीवन जन्म सफल कर लीजै।। गुरु बिन होम यज्ञ नहिं कीजे। गुरु की आज्ञा माहिं रहीजे।।
गुरु सुरतरु सुरधेनु समाना। पावै चरन मुक्ति परवाना।। तन मन धन अरपि गुरु सेवै। होय गलतान उपदेशहिं लेवै।।
सतगुरुकी गति हृदय धारे। और सकल बकवाद निवारै।। गुरु के सन्मुख वचन न कहै। सो शिष्य रहनिगहनि सुख लहै।।
गुरु से शिष्य करै चतुराई। सेवा हीन नर्क में जाई।।
रमैनी: शिष्य होय सरबस नहीं वारै।
हिये कपट मुख प्रीति उचारे।।
जो जिव कैसे लोक सिधाई। बिन गुरु मिले मोहे नहिं पाई।। गुरु से करै कपट चतुराई। सो हंसा भव भरमें आई।।
गुरु से कपट शिष्य जो राखै। यम राजा के मुगदर चाखै।। जो जन गुरु की निंदा करई। सूकर श्वान गरभमें परई।।
गुरु की निंदा सुने जो काना। ताको निश्चय नरक निदाना।। अपने मुख निंदा जो करई। परिवार सहित नर्क में पड़ही।।
गुरु को तजै भजै जो आना। ता पशुवा को फोकट ज्ञाना।। गुरुसे बैर करै शिष्य जोई। भजन नाश अरु बहुत बिगोई।।

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पीढि सहित नरकमें परिहै। गुरु आज्ञा शिष्य लोप जो करिहै।। चेलो अथवा उपासक होई। गुरु सन्मुख ले झूठ संजोई।।
निश्चय नर्क परै शिष्य सोई। वेद पुराण भाषत सब कोई।। सन्मुख गुरुकी आज्ञा धारै। अरू पिछे तै सकल निवारै।।
सो शिष्य घोर नर्कमें परिहै। रुधिर राध पीवै नहिं तरि है।। मुखपर वचन करै परमाना। घर पर जाय करै विज्ञाना।।
जहाँ जावै तहाँ निंदा करई। सो शिष्य क्रोध अग्नि में जरई।। ऐसे शिष्यको ठाहर नाहीं। गुरु विमुख लोचत है मनमाहीं।।
बेद पुराण कहै सब साखी। साखी शब्द सबै यों भाखी।। मानुष जन्म पाय कर खोवै। सतगुरु विमुखा जुगजुग रोवै।।
गरीब, गुरु द्रोही की पैड़ पर, जे पग आवै बीर। चौरासी निश्चय पड़ै, सतगुरु कहैं कबीर।।
कबीर, जान बूझ साची तजै, करैं झूठे से नेह। जाकि संगत हे प्रभु, स्वपन में भी ना देह।।
तातै सतगुरु सरना लीजै। कपट भाव सब दूर करीजै।। योग यज्ञ जप दान करावै।गुरु विमुख फल कबहुँ न पावै।

शिष्य की आधीनता

दोउकर जोरि गुरुके आगे।करिबहु विनती चरनन लागे।।

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अति शीतल बोलै सब बैना। मेटै सकल कपटके भैना।।
हे गुरु तुम हो दीनदयाला। मैं हूँ दीन करो प्रतिपाला।। बंदीछोड़ मैं अतिहि अनाथा। भवजल बूड़त पकड़ो हाथा।।
दिजै उपदेश गुप्त मंत्र सुनाओ। जन्म मरन भवदुःख छुड़ाओ।। यों आधीन होवै शिष्य जबहीं। शिष्य पर कृपा करै गुरु तबहीं।।
गुरुसे शिष्य जब दीच्छा मांगै। मन कर्म वचन धरै धन आगै।। ऐसी प्रीति देखि गुरु जबहीं। गुप्त मंत्र कहै गुरु तबहीं।।
भक्ति मुक्ति को पंथ बतावै। बुरो होनको पंथ छुड़ावै।। ऐसे शिष्य उपदेशहिं पाई। होय दिव्य दृष्टि पुरूषपै जाई।।

गुरु सेवा महात्मय

गंगा यमुना बद्री समेते। जगन्नाथ धाम हैं जेते।। भ्रमे फल प्राप्त होय न जेतो। गुरु सेवा में पावै फल तेतो।।
गुरु महातमको वारनपारा। वरणे शिवसनकादिक और अवतारा।। गुरुको पूर्ण ब्रह्मकर जाने। और भाव कबहूँ नहिं आने।।
जिन बातनसे गुरु दुःख पावै। तिन बातनको दूर बहावै।। अष्ट अंगसे दंडवत प्रणामा। संध्या प्रात करै निष्कामा।।

गुरु चरणामृत का महात्मय

कोटिक तीर्थ सब कर आवै। गुरु चरणाफल तुरंत ही पावै।।

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चरनामृत कदाचित पावै। चौरासी कटै लोक सिधावै।।
कोटिक जप तप करै करावै। वेद पुराण सबै मिलि गावै।। गुरुपद रज मस्तक पर देवै। सो फल तत्कालहि लेवै।।
सो गुरु सत जो सार चिनावै। यम बंधन से जीव मुक्तावै।। गुरु पद सेवे बिरला कोई। जापर कृपा साहिब की होई।।
गुरु महिमा शुकदेव जु पाई। चढि़ विमान बैकुण्ठे जाई।। गुरु बिनु बेद पढै जो प्राणी। समझे ना सार, रहे अज्ञानी।।
सतगुरु मिले तौ अगम बतावै। जमकी आँच ताहि नहिं आवै।। गुरु से ही सदा हित जानो। क्यों भूले तुम चतुर स्यानो।।
गुरु सीढी चढि ऊपर जाई। सुखसागर में रहे समाई।। गौरी शंकर और गणेशा। सबही लीन्हा गुरु उपेदशा।।
शिव बिंरचि गुरु सेवा कीन्हा। नारद दीक्षा ध्रु को दीन्हा।। गुरु विमुख सोई दुःख पावै। जन्म जन्म सोई डहकावै।।
गुरु सेवै सो चतुर स्याना। गुरु पटतर कोई और न आना।।

साहिब कबीर के उपदेश्

कबीर, जो तोको काँटा बोवै, ताको बो तू फूल। तोहि फूलके फूल हैं, वाको हैं त्रिशूल।।
कबीर, दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय।

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बिना जीवकी स्वाँससे, लोह भस्म ह्नै जाय।।
कबीर आप ठगाइये, और न ठगिये कोय। आप ठगाऐं सुख होत है, औरों ठगे दुःख होय।।
कबीर, या दुनियाँ में आइके, छाडि़ देइ तू ऐठि। लेना होय सो लेइले, उठी जातु है पंैठि।।
कहै कबीर पुकारिके, दोय बात लखिलेय। एक साहबकी बंदगी, व भूखोंको कछु देय।।
कबीर, इष्ट मिलै और मन मिलै, मिलै सकल रस रीति। कहै कबीर तहाँ जाइये, रह सन्तन की प्रीति।।
कबीर, ऐसी बानी बोलिये, मनका आपा खोय। औरन को शीतल करै, आपुहिं शीतल होय।।
कबीर, जगमें बैरी कोइ नहीं, जो मन शीतल होय। या आपा कों डारि दै, दया करै सब कोय।।
कबीर, कहते को कही जान दै, गुरु की सीख तु लेय। साकट और स्वानको, उल्ट जवाब न देय।।
कबीर, हस्ती चढिये ज्ञानके, सहज दुलीचा डारि। स्वान रूप संसार है, भूसन दे झकमारि।।
कबीर, कबिरा काहेको डरै, सिरपर सिरजनहार।

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हस्ती चढि डरिये नहीं, कूकर भुसे हजार।।
कबीर, आवत गारी एकहै, उलटत होय अनेक। कहै कबीर नहिं उलटिये, रहै एक की एक।।
कबीर, गाली ही से ऊपजै, कलह कष्ट और मीच। हार चलै सो साधु है, लागि मरे सो नीच।।
कबीर, हरिजन तो हारा भला, जीतन दे संसार। हारा तौ हरि सों मिलै, जीता यमकी लार।।
कबीर, जेता घट तेता मता, घट घट और स्वभाव। जा घट हार न जीत है ,ता घट ब्रह्म समाव।।
कबीर, कथा करो करतारकी, सुनो कथा करतार। आन कथा सुनिये नहीं, कहै कबीर विचार।।
कबीर, बन्दे तू कर बन्दगी, जो चाहै दीदार। औसर मानुष जन्मका, बहुरि न बारम्बार।।
कबीर, बनजारे के बैल ज्यों, भरमि फिरयो बहु देश। खांड लादि भुस खात है, बिन सतगुरु उपदेश।।

।। सुमिरन का अंग।।

कबीर, सुमरन मारग सहज का, सतगुरु दिया बताय। स्वाँस-उस्वाँस जो सुमिरता, एक दिन मिलसी आय।।

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कबीर, माला स्वाँस-उस्वाँस की, फेरेंगे निजदास। चौरासी भरमै नहीं, कटै करमकी फाँस।।
कबीर सुमरन सार है, और सकल जंजाल। आदि अंत मधि सोधिया, दूजा देखा ख्याल।।
कबीर, निजसुख आतम राम हे, दूजा दुःख अपार। मनसा वाचा कर्मना, कबिरा सुमिरन सार।।
कबीर, दुखमें सुमिरन सब करै, सुखमें करै न कोय। जे सुखमें सुमिरन करै, तो दुख काहेको होय।।
कबीर, सुखमें सुमिरन ना किया, दुखमें किया यादि। कहै कबीर ता दासकी, कौन सुने फिरियादि।।
कबीर, साँई यों मति जानियों, प्रीति घटै मम चित्त। मरूं तो तुम सुमिरत मरूं, जीवत सुमरूँ नित्य।।
कबीर, जप तप संयम साधना, सब सुमिरनके माँहि। कबिरा जानें रामजन, सुमिरन सम कछु नाहिं।।
कबीर, जिन हरि जैसा सुमरिया, ताको तैसा लाभ। ओसाँ प्यास न भागई, जबलग धसै न आब।।
कबीर, सुमिरन की सुधि यों करो, जैसे दाम कंगाल। कहै कबीर विसरै नहीं, पल पल लेत संभाल।।20।।

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कबीर, सुमिरन सों मन लाइये, जैसे पानी मीन। प्रान तजै पल बीसरै, दास कबीर कहि दीन।।
कबीर, सत्यनाम सुमिरिले, प्राण जाहिंगे छूट। घरके प्यारे आदमी, चलते लेइँगे लूट।।
कबीर, लूट सकै तो लूटिले, राम नाम है लूटि। पीछै फिरि पछिताहुगे, प्राण जाँयगे छूटि।।
कबीर, सोया तो निष्फल गया, जागो सो फल लेय। साहिब हक्क न राखसी, जब माँगै तब देय।।
कबीर, चिंता तो हरि नामकी, और न चितवै दास। जो कछु चितवे नाम बिनु, सोइ कालकी फाँस।।
कबीर,जबही सत्यनाम हृदय धरयो,भयो पापको नास। मानौं चिनगी अग्निकी, परी पुराने घास।।
कबीर, राम नामको सुमिरतां, अधम तिरे अपार। अजामेल गनिका सुपच, सदना, सिवरी नार।।
कबीर, स्वप्नहिमें बररायके, जो कोई कहे राम। वाके पग की पाँवड़ी, मेरे तन को चाम।।
कबीर, नाम जपत कन्या भली, साकट भला न पूत। छेरीके गल गलथना, जामें दूध न मूत।।

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कबीर, सब जग निर्धना, धनवंता नहिं कोय। धनवंता सोई जानिये, राम नाम धन होय।।
कबीर कहता हूं कहि जात हूँ, कहूं बजा कर ढोल। स्वांस जो खाली जात है, तीन लोक का मोल।।
कबीर, ऐसे महंगे मोलका, एक स्वाँस जो जाय। चौदा लोक नहिं पटतरे, काहे धूरि मिलाय।।
कबीर, जिवना थोराही भला, जो सत्य सुमिरन होय। लाख बरसका जीवना, लेखे धरै न कोय।।
कबीर, कहता हूँ कहि जात हूं, सुनता है सब कोय। सुमिरन सों भला होयगा, नातर भला न होय।।
कबीर, कबीरा हरिकी भक्ति बिन, धिग जीवन संसार। धूंआ कासा धौलहरा, जात न लागै बार।।
कबीर, भक्ति भाव भादों नदी, सबै चली घहराय। सरिता सोई जानिये, जेष्ठमास ठहराय।।
कबीर, भक्ति बीज बिनसै नहीं, आय परैं सौ झोल। जो कंचन विष्टा परै, घटै न ताको मोल।।
कबीर, कामी क्रोधी लालची, इनपै भक्ति न होय। भक्ति करै कोई शूरमां, जाति बरण कुल खोय।।

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कबीर, जबलग भक्ति सहकामना, तब लगि निष्फल सेव। कहै कबीर वे क्यों मिलै, निष्कामी निज देव।।

।। अथ सातों वार की रमैणी।।

सातों वार समूल बखानों, पहर घड़ी पल ज्योतिष जानो।1। ऐतवार अन्तर नहीं कोई, लगी चांचरी पद में सोई।2।
सोम सम्भाल करो दिन राती, दूर करो नै दिल की कांती।3। मंगल मन की माला फेरो, चौदह कोटि जीत जम जेरो।4।
बुद्ध विनानी विद्या दीजै, सत सुकृत निज सुमिरण कीजै।5। बृहस्पति भ्यास भये बैरागा, तांते मन राते अनुरागा।6।
शुक्र शाला कर्म बताया, जद मन मान सरोवर न्हाया।7। शनिश्चर स्वासा माहिं समोया,जब हम मकरतार मग जोया।8।
राहु केतु रोकैं नहीं घाटा, सतगुरु खोलें बजर कपाटा।9। नौ ग्रह नमन करैं निर्बाना, अबिगत नाम निरालम्भ जाना।10।
नौ ग्रह नाद समोये नासा, सहंस कमल दल कीन्हा बासा।11। दिशासूल दहौं दिस का खोया, निरालम्भ निरभै पद जोया।12।
कठिन विषम गति रहन हमारी, कोई न जानत है नर नारी।13। चन्द्र समूल चिन्तामणि पाया, गरीबदास पद पदहि समाया।14।

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।। अथ सर्व लक्षणा ग्रन्न्थ।।

गरीब उत्तम कुल कर्तार दे, द्वादस भूषण संग। रूप द्रव्य दे दया कर, ज्ञान भजन सत्संग।1।
सील संतोष विवेक दे, क्षमा दया इकतार। भाव भक्ति वैराग दे, नाम निरालम्भ सार।2।
जोग युक्ति स्वास्थ्य जगदीश दे, सुक्ष्म ध्यान दयाल। अकल अकीन अजन्म जति,अठसिद्धि नौनिधि ख्याल।3।
स्वर्ग नरक बांचै नहीं, मोक्ष बन्धन सैं दूर। बड़ी गरीबी जगत में, संत चरण रज धूर।4।
जीवत मुक्ता सो कहो, आशा तृष्णा खण्ड। मन के जीते जीत है, क्यों भरमें ब्रह्मंड।5।
साला कर्म शरीर में, सतगुरु दिया लखाय। गरीबदास गलतान पद, नहीं आवै नहीं जाय।6।
चौरासी की चाल क्या, मो सेती सुन लेह। चोरी जारी करत हैं, जाकै मुंहडे खेह।7।
काम क्रोध मद लोभ लट, छुटि रहे बिकराल। क्रोध कसाई उर बसै, कुशब्द छुरा घर घाल।8।
हर्ष शोग है श्वान गति, संशय सर्प शरीर।

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राग द्वेष बड़े रोग हैं, जम के पड़े जंजीर।9।
आशा तृष्णा नदी में, डूबे तीनों लोक। मनसा माया बिस्तरी, आत्म आत्म दोष।10।
एक शत्रु एक मित्र हैं, भूल पड़ीरे प्रान। जम की नगरी जायेगा, शब्द हमारा मान।11।
निंद्या बिंद्या छोड़ दे, संतन स्यौं कर प्रीत। भौसागर तिर जात है, जीवत मुक्त अतीत।12।
जे तेरे उपजै नहीं, तो शब्द साखी सुन लेह। साखी भूत संगीत हैं, जासैं लावो नेह।13।
स्वर्ग सात असमान पर, भटकत है मन मूढ। खालिक तो खोया नहीं, इसी महल में ढूंढ़।14।
कर्म भर्म भारी लगे, संसा सूल बंबूल। डाली पानो डोलते, परसत नाहीं मूल।15।
स्वासा ही में सार पद, पद में स्वासा सार। दम देही का खोज कर, आवागमन निवार।16।
बिन सतगुरु पावै नहीं खालिक खोज विचार। चौरासी जग जात है, चिन्हत नाहीं सार।17।

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मर्द गर्द में मिल गए, रावण से रणधीर। कंस केश चाणूर से, हिरनाकुश बलबीर।18।
तेरी क्या बुनियाद है, जीव जन्म धरलेत। गरीबदास हरि नाम बिन, खाली परसी खेत।19।

।। अथ ब्रह्म्र वेदी।।

ज्ञान सागर अति उजागर, निर्विकार निरंजनं। ब्रह्मज्ञानी महाध्यानी, सत सुकृत दुःख भंजनं।1।
मूल चक्र गणेश बासा, रक्त वर्ण जहां जानिये। किलियं जाप कुलीन तज सब, शब्द हमारा मानिये।2।
स्वाद चक्र ब्रह्मादि बासा, जहां सावित्री ब्रह्मा रहैं। ॐ जाप जपंत हंसा, ज्ञान जोग सतगुरु कहैं।3।
नाभि कमल में विष्णु विशम्भर, जहां लक्ष्मी संग बास है। हरियं जाप जपन्त हंसा, जानत बिरला दास है।4।
हृदय कमल महादेव देवं, सती पार्वती संग है। सोहं जाप जपंत हंसा, ज्ञान जोग भल रंग है।5।
कंठ कमल में बसै अविद्या, ज्ञान ध्यान बुद्धि नासही। लील चक्र मध्य काल कर्मम्, आवत दम कुं फांसही।6।

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त्रिकुटी कमल परम हंस पूर्ण, सतगुरु समरथ आप है। मन पौना सम सिंध मेलो, सुरति निरति का जाप है।7।
सहंस कमल दल भी आप साहिब, ज्यूं फूलन मध्य गन्ध है। पूर रह्या जगदीश जोगी, सत् समरथ निर्बन्ध है।8।
मीनी खोज हनोज हरदम, उलट पन्थ की बाट है। इला पिंगुला सुषमन खोजो, चल हंसा औघट घाट है।9।
ऐसा जोग विजोग वरणो, जो शंकर ने चित धरया। कुम्भक रेचक द्वादस पलटे, काल कर्म तिस तैं डरया।10।
सुन्न सिंघासन अमर आसन, अलख पुरुष निर्बान है। अति ल्यौलीन बेदीन मालिक, कादर कुं कुर्बान है।11।
है निरसिंघ अबंध अबिगत, कोटि बैुकण्ठ नखरूप है। अपरंपार दीदार दर्शन, ऐसा अजब अनूप है।12।
घुरैं निसान अखण्ड धुन सुन, सोहं बेदी गाईये। बाजैं नाद अगाध अग है, जहां ले मन ठहराइये।13।
सुरति निरति मन पवन पलटे, बंकनाल सम कीजिए। सरबै फूल असूल अस्थिर, अमी महारस पीजिए।14।
सप्त पुरी मेरूदण्ड खोजो, मन मनसा गह राखिये। उड़हैं भंवर आकाश गमनं, पांच पचीसों नाखिये।15।

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गगन मण्डल की सैल कर ले, बहुरि न ऐसा दाव है। चल हंसा परलोक पठाऊॅ, भौ सागर नहीं आव है।16।
कन्द्रप जीत उदीत जोगी, षट करमी यौह खेल है। अनभै मालनि हार गूदें, सुरति निरति का मेल है।17।
सोहं जाप अजाप थरपो, त्रिकुटी संयम धुनि लगै। मान सरोवर न्हान हंसा, गंग् सहंस मुख जित बगै।18।
कालइंद्री कुरबान कादर, अबिगत मूरति खूब है। छत्र स्वेत विशाल लोचन, गलताना महबूब है।19।
दिल अन्दर दीदार दर्शन, बाहर अन्त न जाइये। काया माया कहां बपुरी, तन मन शीश चढाइये।20।
अबिगत आदि जुगादि जोगी, सत पुरुष ल्यौलीन है। गगन मंडल गलतान गैबी, जात अजात बेदीन है।21।
सुखसागर रतनागर निर्भय, निज मुखबानी गावहीं। झिन आकर अजोख निर्मल, दृष्टि मुष्टि नहीं आवहीं।22।
झिल मिल नूर जहूर जोति, कोटि पद्म उजियार है। उल्ट नैन बेसुन्य बिस्तर, जहाँ तहाँ दीदार है।23।
अष्ट कमल दल सकल रमता, त्रिकुटी कमल मध्य निरख हीं। स्वेत ध्वजा सुन्न गुमट आगै, पचरंग झण्डे फरक हीं।24।

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सुन्न मंडल सतलोक चलिये, नौ दर मुंद बिसुन्न है। दिव्य चिसम्यों एक बिम्ब देख्या, निज श्रवण सुनिधुनि है।25।
चरण कमल में हंस रहते, बहुरंगी बरियाम हैं। सूक्ष्म मूरति श्याम सूरति, अचल अभंगी राम हैं।26।
नौ सुर बन्ध निसंक खेलो, दसमें दर मुखमूल है। माली न कुप अनूप सजनी, बिन बेली का फूल है।27।
स्वांस उस्वांस पवन कुं पलटै, नाग फुनी कुं भूंच है। सुरति निरति का बांध बेड़ा, गगन मण्डल कुं कूंच है।28।
सुन ले जोग विजोग हंसा, शब्द महल कुं सिद्ध करो। योह गुरुज्ञान विज्ञान बानी, जीवत ही जग में मरो।29।
उजल हिरम्बर स्वेत भौंरा, अक्षै वृक्ष सत बाग है। जीतो काल बिसाल सोहं, तर तीवर बैराग है।30।
मनसा नारी कर पनिहारी, खाखी मन जहां मालिया। कुभंक काया बाग लगाया, फूले हैं फूल बिसालिया।31।
कच्छ मच्छ कूरम्भ धौलं, शेष सहंस फुन गावहीं। नारद मुनि से रटैं निशदिन, ब्रह्मा पार न पावहीं।32।
शम्भू जोग बिजोग साध्या, अचल अडिग समाध है। अबिगत की गति नाहिं जानी, लीला अगम अगाध है।33।

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सनकादिक और सिद्ध चौरासी, ध्यान धरत हैं तास का। चौबीसौं अवतार जपत हैं, परम हंस प्रकास का।34।
सहंस अठासी और तैतीसों, सूरज चन्द चिराग हैं। धर अम्बर धरनी धर रटते, अबिगत अचल बिहाग हैं।35।
सुर नर मुनिजन सिद्ध और साधिक, पार ब्रह्म कूं रटत हैं। घर घर मंगलाचार चौरी, ज्ञान जोग जहाँ बटत हैं।36।
चित्र गुप्त धर्म राय गावैं, आदि माया ओंकार है। कोटि सरस्वती लाप करत हैं, ऐसा पारब्रह्म दरबार है।37।
कामधेनु कल्पवृक्ष जाकैं, इन्द्र अनन्त सुर भरत हैं। पार्बती कर जोर लक्ष्मी, सावित्री शोभा करत हैं।38।
गंधर्व ज्ञानी और मुनि ध्यानी, पांचों तत्व खवास हैं। त्रिगुण तीन बहुरंग बाजी, कोई जन बिरले दास हैं।39।
ध्रुव प्रहलाद अगाध अग है, जनक बिदेही जोर है। चले विमान निदान बीत्या, धर्मराज की बन्ध तौर हैं।40।
गोरख दत्त जुगादि जोगी, नाम जलन्धर लीजिये। भरथरी गोपी चन्दा सीझे, ऐसी दीक्षा दीजिए।41।
सुलतानी बाजीद फरीदा, पीपा परचे पाइया। देवल फेरया गोप गोसांई, नामा की छान छिवाइया।42।

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छान छिवाई गऊ जिवाई, गनिका चढी बिमान में। सदना बकरे कुं मत मारै, पहुँचे आन निदान में।44।
अजामेल से अधम उधारे, पतित पावन बिरद तास है। केशो आन भया बनजारा, षट दल कीनी हास है।44।
धना भक्त का खेत निपाया, माधो दई सिकलात है पण्डा पांव बुझाया सतगुरु, जगन्नाथ की बात है।45।
भक्ति हेतु केशो बनजारा, संग रैदास कमाल थे। हे हर हे हर होती आई, गून छई और पाल थे।46।

 

गैबी ख्याल बिसाल सतगुरु, अचल दिगम्बर थीर हैं। भक्ति हेत आन काया धर आये,अबिगत सतकबीर हैं।47।
नानक दादू अगम अगाधू, तेरी जहाज खेवट सही। सुख सागर के हंस आये, भक्ति हिरम्बर उर धरी।48।
कोटि भानु प्रकाश पूरण, रूंम रूंम की लार है। अचल अभंगी है सतसंगी, अबिगत का दीदार है।49।
धन सतगुरु उपदेश देवा, चौरासी भ्रम मेटहीं। तेज पुंज आन देह धर कर, इस विधि हम कुं भेंट हीं।50।
शब्द निवास आकाशवाणी, योह सतगुरु का रूप है। चन्द सूरज ना पवन ना पानी, ना जहां छाया धूप है।51।

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रहता रमता, राम साहिब, अवगत अलह अलेख है। भूले पंथ बिटम्ब वादी, कुल का खाविंद एक है।52।
रूंम रूंम में जाप जप ले, अष्ट कमल दल मेल है। सुरति निरति कुं कमल पठवो, जहां दीपक बिन तेल है।53।
हरदम खोज हनोज हाजर, त्रिवेणी के तीर हैं। दास गरीब तबीब सतगुरु, बन्दी छोड़ कबीर हैं।54।

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असुर निकंदन रमैणी

।।अथ मंगलाचरण।।

गरीब नमो नमो सत् पुरूष कुं, नमस्कार गुरु कीन्ही। सुरनर मुनिजन साधवा, संतों सर्वस दीन्ही।1।
सतगुरु साहिब संत सब डण्डौतम् प्रणाम। आगे पीछै मध्य हुए, तिन कुं जा कुरबान।2।
नराकार निरविषं, काल जाल भय भंजनं। निर्लेपं निज निर्गुणं, अकल अनूप बेसुन्न धुनं।3।
सोहं सुरति समापतं, सकल समाना निरति लै। उजल हिरंबर हरदमं बे परवाह अथाह है, वार पार नहीं मध्यतं।4।
गरीब जो सुमिरत सिद्ध होई, गण नायक गलताना। करो अनुग्रह सोई, पारस पद प्रवाना।5।
आदि गणेश मनाऊँ, गण नायक देवन देवा। चरण कवंल ल्यो लाऊँ, आदि अंत करहूं सेवा।6।

परम शक्ति संगीतं, रिद्धि सिद्धि दाता सोई। अबिगत गुणह अतीतं, सतपुरुष निर्मोही।7।

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जगदम्बा जगदीशं, मंगल रूप मुरारी। तन मन अरपुं शीशं, भक्ति मुक्ति भण्डारी।8।
सुर नर मुनिजन ध्यावैं, ब्रह्मा विष्णु महेशा। शेष सहंस मुख गावैं, पूजैं आदि गणेशा।9।
इन्द कुबेर सरीखा, वरुण धर्मराय ध्यावैं। सुमरथ जीवन जीका, मन इच्छा फल पावैं।10।
तेतीस कोटि अधारा, ध्यावैं सहंस अठासी। उतरैं भवजल पारा, कटि हैं यम की फांसी।11।

रमैणी

सतपुरुष समरथ ओंकारा, अदली पुरुष कबीर हमारा।1।
आदि जुगादि दया के सागर, काल कर्म के मौचन आगर।2।
दुःख भंजन दरवेश दयाला,असुर निकन्दन कर पैमाला।3।
आव खाक पावक और पौना, गगन सुन्न दरयाई दौना।4।
धर्मराय दरबानी चेरा, सुर असुरों का करै निबेरा।5।
सत का राज धर्मराय करहीं, अपना किया सभैडण्ड भरहीं।6।
शंकर शेष रु ब्रह्मा विष्णु, नारद शारद जा उर रसनं।7।
गौरिज और गणेश गोसांई, कारज सकल सिद्ध हो जाई।8।
ब्रह्मा विष्णु अरु शम्भू शेषा, तीनों देव दयालु हमेशा।9।

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सावित्री और लक्ष्मी गौरा, तिहुं देवा सिर कर हैं चैरा।10।
पाँच तत आरम्भन कीना, तीन गुणन मध्य साखा झीना।11।
सतपुरुष सैं ओंकारा, अबिगत रूप रचै गैनारा।12।
कच्छ मच्छ कुरम्भ और धौला, सिरजन हार पुरुष है मौला।13।
लख चौरासी साज बनाया, भगलीगर कुं भगल उपाया।14।
उपजैं बिनसैं आवैं जाहीं, मूल बीज कुं संसा नाहीं।15।
लील नाभ सैं ब्रह्मा आये, आदि ओम् के पुत्र कहाये।16।
शम्भू मनु ब्रह्मा की साखा, ऋग यजु साम अथर्वन भाषा।17।
पीवरत भया उत्तानं पाता, जा कै ध्रूव हैं आत्म ग्याता।18।
सनक सनन्दनं संत कुमारा, चार पुत्र अनुरागी धारा।19।
तेतीस कोटि कला विस्तारी, सहंस अठासी मुनिजन धारी।20।
कश्यप पुत्र सूरज सुर ज्ञानी, तीन लोक में किरण समानी।21।
साठ हजार संगी बाल केलं, बीना रागी अजब बलेलं।22।
तीन कोटि योधा संग जाके, सिकबंधी हैं पूर्ण साके।23।
हाथ खड़ग गल पुष्प की माला, कश्यप सुत है रूप बिसाला।24।
कौसत मणि जड़या विमान तुम्हारा,
सुरनर मुनिजन करत जुहारा।25।
चन्द सरू चकवै पृथ्वी माहीं,निस वासर चरणौं चित लाहीं।26।

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पीठै सूरज सनमुख चन्दा, काटैं त्रिलोकी के फंदा।27।
तारायण सब स्वर्ग समूलं, पखे रहैं सतगुरु के फूलं।28।
जय जय ब्रह्मा समर्थ स्वामी, येती कला परम पद धामी।29।
जय जय शम्भू शंकर नाथा, कला गणेशं रु गौरिज माता।30।
कोटि कटक पैमाल करंता, ऐसा शम्भू समरथ कन्ता।31।
चन्द लिलाट सूर संगीता, जोगी शंकर ध्यान उदीता।32।
नील कण्ठ सोहै गरुडासन, शम्भू जोगी अचल सिंघासन।33।
गंग तरंग छुटैं बहुधारा, अजपा तारी जय जय कारा।34।
ऋद्धि सिद्धि दाता शम्भू गोसांई,
दालीदर मोच सभै हो जाई।35।
आसन पद्म लगाये जोगी, निहइच्छया निर्बानी भोगी।36।
सर्प भुवंग गलै रूंड माला, बृषभ चढिये दीन दयाला।37।
वामैं कर त्रिशूल विराजै, दहने कर सुदर्शन साजै।38।
सुन अरदास देवन के देवा, शम्भु जोगी अलख अभेवा।39।
तू पैमाल करे पल मांही, ऐसे समर्थ शम्भू सांई।40।
एक लख योजन ध्वजा फरकैं, पचरंग झण्डे मौहरै रखै।41।
काल भद्र कृत देव बुलाऊँ, शकंर के दल सब ही ध्याऊँ।42।
भैरों खित्रपाल पलीतं, भूत अर दैंत चढ़े संगीतं।43।

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राक्षस भंजन बिरद तुम्हारा, ज्यूं लंका पर पदम अठारा।44।
कोट्यौं गंधर्व कमंद चढ़ावैं, शंकर दल गिनती नहीं आवैं।45।
मारैं हाक दहाक चिंघारें, अग्नि चक्र बाणों तन जारैं।46।
कंप्या शेष धरनि थॅरानी, जा दिन लंका घाली घानी।47।
तुम शम्भू ईशन के ईशा, वृषभ चढिये बिसवे बीसा।48।
इन्द्र कुबेर और वरूण बुलाऊँ, रापति सेत सिंघासन ल्याऊँ।49।
इन्द्र दल बादल दरियाई, छयानवैं कोटि की हुई चढाई।50।
सुरपति चढ़े इन्द्र अनुरागी, अनन्त पद्म गंधर्व बड़भागी।51।
किसन भण्डारी चढ़े कुबेरा, अब दिल्ली मंडल बौहर्यों फेरा।52।
वरुण विनोद चढ़े ब्रह्म ज्ञानी, कला सम्पूर्ण बारह बानी।53।
धर्मराय आदि जुगादि चेरा, चौदह कोटि कटक दल तेरा।54।
चित्रगुप्त के कागज मांही, जेता उपज्या सतगुरु सांई।55।
सातों लोक पाल का रासा, उर में धरिये साधू दासा।56।
विष्णुनाथ हैं असुर निकन्दन, संतों के सब काटैं फन्दन।57।
नरसिंघ रूप धरे गुरुराया, हिरणाकुस कुं मारन धाया।58।
संख चक्र गदा पद्म विराजैं, भाल तिलक जाकैं उर साजैं।59।
वाहन गरुड़ कृष्ण असवारा, लक्ष्मी ढौरे चोर अपारा।60।

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रावण महिरावण से मारे, सेतु बांध सेना दल त्यारे।61।
जरासिंध और बालि खपाए, कंस केसि चानौर हराये।62।
कालीदह में नागी नाथा, सिसुपाल चक्र सैं काट्या माथा।63।
कालयवन मथुरा पर धाये, ठारा कोटि कटक चढ़ आए।64।
मुचकंद पर पीताम्बर डार्या, कालयवन जहां बेगि सिंघार्या।65।
परसुराम बावन अवतारा, कोई न जानै भेद तुम्हारा।66।
संखासुर मारे निर्बानी, बराह रुप धरे परवानी।67।
राम औतार रावण की बेरा, हनुमंत हाका सुनी सुमेरा।68।
आदि मूल वेद ओंमकारा, असुर निकन्दन कीन सिंघारा।69।
वाशिष्ठ विश्वामित्र आए, दुर्वासा और चुणक बुलाए।70।
कपल कलंदर कीन जुहारा, फौज नकीब सभन सिरदारा।71।
गोरख दत्त दिगम्बर बाला, हनुमंत अंगद रुप विशाला।72।
ध्रुव प्रहलाद और जनक विदेही, सुखदे संगी परम सनेही।73।
पारासुर और व्यास बुलाये, नल नील मौहरे चढ धाए।74।
सुग्रीव संग और लछमन बाला, जोर घटा आए घन काला।75।
जैदे पायल जंग बजाए, अजामेल अरु हरिश्चन्द्र आए।76।
तामरधुज मोरधुज राजा, अम्बीरष कर है पूर्ण काजा।77।
सूरज बंसी पांचों पांडो, काल मीच सिर देवै डांडो।78।

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धर्म युधिष्ठिर धरे धियाना, अर्जुन लख संघानी बाना।79।
सहदे भीम नकुल और कौंता, द्रोपदी जंग का दीना न्यौंता।80।
हाथ खप्पर अरु मस्तक बिंदा, ठारह खूहनीं मेलै दुंदा।81।
देवी शिव शिव करे सिंघारै, खड़ग बान चकरों सैं मारैं।82।
चोंसठ जोगनि बावन बीरा, भक्षण बदन करैं तदवीरा।83।
असुर कटक धूमर उड़ जाई, सुरौं रक्षा करै गोसाईं।84।
पचरंग झण्डे लंब लहरिया, दक्खन के दल उतर उतरिया।85।
पचरंग झण्डे लंब चलाये, दक्खन के दल उत्तर धाये।86।
मौहरै हनुमंत गोरख बाला, हरि के हेत हरौल हमाला।87।
चिंहडोल चुणक दुर्वासा देवा। असुर निकंदन बूड़त खेवा।88।
बलि अरु शेष पतालौं साखा, सनक सनन्दन सुरगों हाका।89।
दहुं दिश बाजु ध्रु प्रहलादा, कोटि कटक दल कटा प्यादा।90।
बज्र बान की बोऊँ बाड़ी, सतगुरु संत जीत है राड़ी।91।
जे कोई माने शब्द हमारा, राज करे काबुल कंधारा।92।
अरब खरब मक्के कुं ध्याऊँ, मदीना बांध हद्द में ल्याऊँ।93।
ईरा तुरा कहां शिकारी, गढ गजनी लग ह्नै असवारी।94।
दिल्ली मंडल पाप की भूमा, धरती नाल जगाऊँ सूमा।95।
हस्ती घोरा कटक सिंघारौं, दृष्टि परै असुरों दल मारौं।96।

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संख पंचायन नादू टेरं, स्वर्ग पतालों हाक सुमेरं।97।
बालमीक सुर बाचा बंधा, पांडो जग्य द्वापर की संधा।98।
नारद कुम्भक ऋषि कुर्बाना,मारकण्डे रूमी रिषि आना।99।
इन्द्ररिषि अरू बकतालब स्वामी, और संत साधू घणनामी।100।
नाथ जलंधर और अजैपाला, गुरु मछंदर गोरख बाला।101।
भरथरी गोपी चन्दा जोगी, सुलतान अधम है सब रस भोगी।102।
नर हरिदास पखै बलि भीषम, व्यास बचन परमानी सीखं।103।
नामा और रैदास रसीला, कोई न जानै अबिगत लीला।104।
पीपा धन्ना चढ़े बाजीदा, सेऊ समन और फरीदा।105।
दादू नानक नाद बजाये, मलूक दास तुलसी चढ आये।106।
कमाल मल्ल और सुर ज्ञानी, रामानन्द के हैं फुरमानी।107।
मीराबाई और कमाली, भिलनी नाचै दे दे ताली।108।
नासकेतु नकीब हमारा, उद्यालक मुनि करत जुहारा।109।
साहिब तख्त कबीर खवासा, दिल्ली मंडल लीजै वासा।110।
सतगुरु दिल्ली मंडल आयसी, सूती धरनी सुम जगायसी।111।
कागभुसुंड छत्र कै आगै, गंधर्व करत चलत हैं रागैं।112।
ऐता गुफ्तार रासा, पढैगा सो चढैगा ।113।
चम्पैगा पर भूमि सीम,

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साक्षीकृष्ण पांचो पांडो भारथी भीम।114।
द्रोपदी के खप्पर में मेदनी समायसी,
चौसठ जोगनी मंगल गायसी।115।
बज्रबाण का ताला राक्षस सिर ठोक सी,
दक्खन के दल दीप उत्तर कुं झोक सी।116।
दिल्ली मंडल राज त्रिकुट कुं साधसी,
यह लीला प्रमान जो सतगुरु कुं आराध सी।117।
कजली बन के कुंजर ज्यूं गोफन के गिलोल हैं,
राक्षस का रासा भंग खाली चहंुडोल है।118।
निहकलंक अंस लीला कालंदर कुं मार सी,
अर्ध लाख वर्ष बाकी दानें और दूतों को सिंघारसी।119।
कलियुग की आदि में चानौर कंस मारे थे,
त्रोता की आदि में, हिरणाकुश पछारे थे।120।
बलि की विलास यज्ञ सुरपति पुकारे थे,
बामन स्वरूप धर कीन्हीं सुरपति पुकार,
बलि बैन निस्तारे थे।121।
कलियुग की आदि, बारां सदी की अंत है दूलह दयाल देव।
जानत कोई संत भेव यौही बाला कंत है।122।

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दिल्ली के तख्त छत्र फेर भी फिराय सी,
खेलत गुफ्तार सैन भंजन सब फोकट फैन,
महियल राज बाला पुरुष सतगुरु दिखलाय सी।123।
आवैगा दक्खन सैं दिवाना , काबुल का
काल कील किलियं गल है तुरकाना।124।
किल किली किलियं औतार कलां, जीतन जंग झुंझमला
ऐसा पुरुष आया कहता है गरीबदास,
दिल्ली मंडल होय विलास, निहकलंक राया।125।

।। रक्षा मंत्र।।

सतगुरु शरण शरणाई, शरण गहे कछु भय
नहीं व्यापै, काल जाल भय मिट जाहीं।
रोग शोग छल छिद्र न व्यापै, सन्मुख ना ठहराई।
जहर अग्नि तन निकट न आवै, दूरी जात रंगाई।
बीर बेताल बाण ना लागै, जम के कोट ढहाई।
अठानवे पुण्य मूठ ना लागै, उल्ट ताही धरखाई।
बैर करे सोए दुःख पावै, सुरति शब्द मिल जाई।
कह कबीर हम जम दल पेल्या, सतगुरु लाख दुहाई।

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संध्या आरती

।।अथ मंगलाचरण।।

गरीब नमो नमो सत् पुरूष कुं, नमस्कार गुरु कीन्ही। सुरनर मुनिजन साधवा, संतों सर्वस दीन्ही।1।
सतगुरु साहिब संत सब डण्डौतम् प्रणाम। आगे पीछै मध्य हुए, तिन कुं जा कुरबान।2।
नराकार निरविषं, काल जाल भय भंजनं। निर्लेपं निज निर्गुणं, अकल अनूप बेसुन्न धुनं।3।
सोहं सुरति समापतं, सकल समाना निरति लै। उजल हिरंबर हरदमं बे परवाह अथाह है, वार पार नहीं मध्यतं।4।
गरीब जो सुमिरत सिद्ध होई, गण नायक गलताना। करो अनुग्रह सोई, पारस पद प्रवाना।5।
आदि गणेश मनाऊँ, गण नायक देवन देवा। चरण कवंल ल्यो लाऊँ, आदि अंत करहूं सेवा।6।

परम शक्ति संगीतं, रिद्धि सिद्धि दाता सोई। अबिगत गुणह अतीतं, सतपुरुष निर्मोही।7।

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जगदम्बा जगदीशं, मंगल रूप मुरारी। तन मन अरपुं शीशं, भक्ति मुक्ति भण्डारी।8।
सुर नर मुनिजन ध्यावैं, ब्रह्मा विष्णु महेशा। शेष सहंस मुख गावैं, पूजैं आदि गणेशा।9।
इन्द कुबेर सरीखा, वरुण धर्मराय ध्यावैं। सुमरथ जीवन जीका, मन इच्छा फल पावैं।10।
तेतीस कोटि अधारा, ध्यावैं सहंस अठासी। उतरैं भवजल पारा, कटि हैं यम की फांसी।11।

आरती

(1)

पहली आरती हरि दरबारे, तेजपुंज जहां प्राण उधारे।1।
पाती पंच पौहप कर पूजा, देव निंरजन और न दूजा।2।
खण्ड खण्ड में आरती गाजै, सकलमयी हरि जोति विराजै।3।
शान्ति सरोवर मंजन कीजै, जत की धोति तन पर लीजै।4।
ग्यान अंगोछा मैल न राखै, धर्म जनेऊ सतमुख भाषै।5।
दया भाव तिलक मस्तक दीजै, प्रेम भक्ति का अचमन लीजै।6।
जो नर ऐसी कार कमावै, कंठी माला सहज समावे।7।
गायत्री सो जो गिनती खोवै, तर्पण सो जो तमक न होवैं।8।

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संध्या सो जो सन्धि पिछानै, मन पसरे कुं घट में आनै।9।
सो संध्या हमरे मन मानी, कहैं कबीर सुनो रे ज्ञानी।10।

(2)
ऐसी आरती त्रिभुवन तारे, तेजपुंज जहां प्राण उधारे।1।
पाती पंच पौहप कर पूजा, देव निरंजन और न दूजा।2।
अनहद नाद पिण्ड ब्रह्मण्डा, बाजत अहर निस सदा अखण्डा।3।
गगन थाल जहां उड़गन मोती, चंद सूर जहां निर्मल जोती।4।
तनमन धन सब अर्पण कीन्हा, परम पुरुष जिन आत्म चीन्हा।5।
प्रेम प्रकाश भया उजियारा, कहैं कबीर मैं दास तुम्हारा।6।

(3)
संध्या आरती करो विचारी, काल दूत जम रहैं झख मारी।1।
लाग्या सुषमण कूंची तारा, अनहद शब्द उठै झनकारा।2।
उनमुनि संयम अगम घर जाई, अछै कमल में रहया समाई।3।
त्रिकुटी संजम कर ले दर्शन, देखत निरखत मन होय प्रसन्न।4।
प्रेम मगन होय आरती गावैं, कहैं कबीर भौजल बहुर न आवै।5।

(4)
हरि दर्जी का मर्म न पाया, जिन यौह चोला अजब बनाया।1।
पानी की सुई पवन का धागा, नौ दस मास सीमते लागा।2।

Page 53

पांच तत्त की गुदरी बनाई, चन्द सूर दो थिगरी लगाई।3।
कोटि जतन कर मुकुट बनाया, बिच बिच हीरा लाल लगाया।4।
आपै सीवैं आपे बनावैं, प्राण पुरूष कुं ले पहरावैं।5।
कहै कबीर सोई जन मेरा, नीर खीर का करै निबेरा।6।

(5)
राम निरंजन आरती तेरी, अबिगत गति कुछ
समझ पड़े नहीं, क्यूं पहुंचे मति मेरी।1।
नराकार निर्लेप निरंजन, गुणह अतीत तिहूं देवा।
ज्ञान ध्यान से रहैं निराला, जानी जाय न सेवा।2।
सनक सनंदन नारद मुनिजन, शेष पार नहीं पावै।
शंकर ध्यान धरैं निषवासर, अजहूं ताहि सुलझावैं।3।
सब सुमरैं अपने अनुमाना, तो गति लखी न जाई।
कहैं कबीर कृपा कर जन पर, ज्यों है त्यों समझाई।4।

(6)
नूर की आरती नूर के छाजै, नूर के ताल पखावज बाजैं।1।
नूर के गायन नूर कुं गावैं, नूर के सुनते बहुर न आवैं।2।
नूर की बाणी बोलै नूरा, झिलमिल नूर रहा भरपूरा।3।
नूर कबीरा नूर ही भावै, नूर के कहे परम पद पावैं।4।

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(7)
तेज की आरती तेज के आगै, तेज का भोग तेज कुं लागै।1।
तेज पखावज तेज बजावै, तेज ही नाचै तेज ही गावै।2।
तेज का थाल तेज की बाती, तेज का पुष्प तेज की पाती।3।
तेज के आगै तेज विराजै, तेज कबीरा आरती साजै।4।

(8)
आपै आरती आपै साजै, आपै किंगर आपै बाजै।1।
आपै ताल झांझ झनकारा, आप नाचै आप देखन हारा।2।
आपै दीपक आपै बाती, आपै पुष्प आप ही पाती।3।
कहैं कबीर ऐसी आरती गाऊँ, आपा मध्य आप समाऊँ।4।

(9)
अदली आरती अदल समोई, निरभै पद में मिलना होई।1।
दिल का दीप पवन की बाती, चित्त का चन्दन पांचों पाती।2।
तत्त का तिलक ध्यान की धोती,मन की माला अजपा जोती।3।
नूर के दीप नूर के चौरा, नूर के पुष्प नूर के भौरा।4।
नूर की झांझ नूर की झालरि, नूर के संख नूर की टालरि।5।
नूर की सौंज नूर की सेवा, नूर के सेवक नूर के देवा।6।
आदि पुरुष अदली अनुरागी, सुन्न संपट में सेवा लागी।7।

Page 55

खोजो कमल सुरति की डोरी, अगर दीप में खेलो होरी।8।
निर्भय पद में निरति समानी, दास गरीब दरस दरबानी।9।

(10)
अदली आरती अदल उचारा, सतपुरुष दीजो दीदारा।1।
कैसे कर छूटैं चौरासी, जूनी संकट बहुत तिरासी।2।
जुगन जुगन हम कहते आये, भौसागर से जीव छुटाये।3।
कर विश्वास स्वास कुं पेखो, या तन में मन मूरति देखो।4।
स्वासा पारस भेद हमारा, जो खोजै सो उतरै पारा।5।
स्वासा पारस आदि निशानी, जो खोजै सो होय दरबानी।6।
हरदम नाम सुहंगम सोई, आवा गवन बहुर नहीं होई।7।
अब तो चढै नाम के छाजे, गगन मंडल में नौबत बाजैं।8।
अगर अलील शब्द सहदानी, दास गरीब विहंगम बानी।9।

(11)
अदली आरती असल बखाना, कोली बुनै बिहंगम ताना।1।
ज्ञान का राछ ध्यान की तुरिया, नाम का धागा निश्चय जुरिया।2।
प्रेम की पान कमल की खाड़ी, सुरति का सूत बुनै निज गाढी।3।
नूर की नाल फिरै दिन राती, जा कोली कुं-काल न खाती।4।
कुल का खूंटा धरनी गाडा, गहर गझीना ताना गाढ़ा।

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निरति की नली बुनै जै कोई, सो तो कोली अविचल होई।6।
रेजा राजिक का बुन दीजै, ऐसे सतगुरु साहिब रीझै।7।
दास गरीब सोई सत्कोली, ताना बुन है अर्स अमोली।8।

(12)
अदली आरती असल अजूनी, नाम बिना है काया सूनी।1।
झूठी काया खाल लुहारा, इला पिंगुला सुषमन द्वारा।2।
कृतघ्नी भूले नरलोई, जा घट निश्चय नाम न होई।3।
सो नर कीट पतंग भवंगा, चौरासी में धर हैं अंगा।4।
उद्भिज खानी भुगतैं प्रानी, समझैं नाहीं शब्द सहदानी।5।
हम हैं शब्द शब्द हम माहीं, हम से भिन्न और कुछ नाहीं।6।
पाप पुण्य दो बीज बनाया, शब्द भेद किन्हें बिरलै पाया।7।
शब्द सर्व लोक में गाजै, शब्द वजीर शब्द है राजै।8।
शब्द स्थावर जंगम जोगी, दास गरीब शब्द रस भोगी।9।

(13)
अदली आरती असल जमाना, जम जौरा मेटूं तलबाना।1।
धर्मराय पर हमरी धाई, नौबत नाम चढ़ो ले भाई।2।
चित्र गुप्त के कागज कीरुं, जुगन जुगन मेंटू तकसीरूं।3।
अदली ग्यान अदल इक रासा, सुनकर हंस न पावै त्रासा।4।

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अजराईल जोरावर दाना, धर्मराय का है तलवाना।5।
मेटूं तलब करुं तागीरा, भेटे दास गरीब कबीरा।6।

(14)
अदली आरती असल पठाऊं,जुगन जुगन का लेखा ल्याऊं।1।
जा दिन ना थे पिण्ड न प्राणा, नहीं पानी पवन जिमीं असमाना।2।
कच्छ मच्छ कुरम्भ न काया, चन्द सूर नहीं दीप बनाया।3।
शेष महेष गणेश न ब्रह्मा, नारद शारद न विश्वकर्मा।4।
सिद्ध चौरासी ना तेतीसों, नौ औतार नहीं चौबीसो।5।
पांच तत्त नाहीं गुण तीना, नाद बिंद नाहीं घट सीना।6।
चित्रगुप्त नहीं कृतिम बाजी, धर्मराय नहीं पण्डित काजी।7।
धुन्धू कार अनन्त जुग बीते, जा दिन कागज कहो किन चीते।8।
जा दिन थे हम तखत खवासा, तन के पाजी सेवक दासा।9।
संख जुगन परलो प्रवाना, सत पुरुष के संग रहाना।10।
दास गरीब कबीर का चेरा, सत लोक अमरापुर डेरा।11।

(15)
ऐसी आरती पारख लीजै, तन मन धन सब अर्पण कीजै।1।
जाकै नौ लख कुंज दिवाले भारी, गोवर्धन से अनन्त अपारी।2।
अनन्त कोटि जाकै बाजे बाजैं,अनहद नाद अमरपुर साजैं।3।

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सुन्न मण्डल सतलोक निधाना, अगम दीप देख्या अस्थाना।4।
अगर दीप में ध्यान समोई, झिलमिल झिलमिल झिलमिल होई।5।
तातें खोजो काया काशी, दास गरीब मिले अविनासी।6।

(16)
ऐसी आरती अपरम् पारा, थाके ब्रह्मा वेद उचारा।1।
अनन्त कोटि जाकै शम्भु ध्यानी, ब्रह्मा संख वेद पढैं बानी।2।
इन्द्र अनन्त मेघ रस माला, शब्द अतीत बिरध नहीं बाला।3।
चन्द सूर जाके अनन्त चिरागा, शब्द अतीत अजब रंग बागा।4।
सात समुन्द्र जाकै अंजन नैना, शब्द अतीत अजब रंग बैना।।5।।
अनन्त कोटि जाकै बाजे बाजें, पूर्णब्रह्म अमरपुर साजैं।6।
तीस कोटि रामा औतारी, सीता संग रहती नारी।7।
तीन पद्म जाकै भगवाना,सप्त नील कन्हवा संग जाना।8।
तीस कोटि सीता संग चेरी, सप्त नील राधा दे फेरी।9।
जाके अर्ध रूंम पर सकल पसारा, ऐसा पूर्णब्रह्म हमारा।10।
दास गरीब कहै नर लोई, यौह पद चीन्है बिरला कोई।11।
गरीब, सत्वादी सब संत हैं, आप आपने धाम।
आजिज की अरदास है, सब संतन प्रणाम।12।

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(आरती के साथ लगातार करनी है)

गुरु ज्ञान अमान अडोल अबोल है,सतगुरु शब्द सेरी पिछानी।
दासगरीब कबीर सतगुरु मिले,आन अस्थान रोप्या छुड़ानी।1।
दीनन के जी दयाल भक्ति बिरद दीजिए,
खाने जाद गुलाम अपना कर लीजिए।टेक।।
खाने जाद गुलाम तुम्हारा है सही,
मेहरबान महबूब जुगन जुग पत रही।1।
बांदी का जाम गुलाम गुलाम गुलाम है।
खड़ा रहे दरबार, सु आठों जाम है।2।
सेवक तलबदार, दर तुम्हारे कूक ही।
अवगुण अनन्त अपार, पड़ी मोहि चूक ही।3।
मैं घर का बांदी जादा, अर्ज मेरी मानिये।
जन कहते दास गरीब अपना कर जानिये।4।

”साखी“

गरीब, जल थल साक्षी एक है, डुंगर डहर दयाल।
दसों दिशा कुं दर्शनं, ना कहीं जोरा काल।1।
गरीब, जै जै जै करुणामई, जै जै जै जगदीश।
जै जै जै तूं जगत गुरु, पूर्ण बिश्वे बीस।2।

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राग रूप रघुवीर है, मोहन जाका नाम।
मुरली मधुर बजावही, गरीब दास बलि जांव।3।
गरीब, बांदी जाम गुलाम की, सुनियों अर्ज अवाज।
यौह पाजी संग लीजियो, जब लग तुमरा राज।4।
गरीब, परलो कोटि अनन्त हैं, धरनी अम्बर धौल।
मैं दरबारी दर खड़ा, अचल तुम्हारी पौलि।5।
गरीब, समर्थ तूं जगदीश है, सतगुरु साहिब सार।
मैं शरणागति आईया, तुम हो अधम उधार।6।
गरीब, सन्तों की फुलमाल है, वरणौं वित्त अनुमान।
मैं सबहन का दास हूं, करो बन्दगी दान।7।
गरीब, अरज अवाज अनाथ की, आजिज की अरदास।
आवण जाणा मेटियो, दीज्यो निश्चल वास।8।
गरीब, सतगुरु के लक्षण कहूं, चाल विहंगम बीन।
सनकादिक पलड़ै नहीं, शंकर ब्रह्मा तीन।9।
गरीब दूजा ओपन आपकी, जेते सुर नर साध।
मुनियर सिद्ध सब देखिया, सतगुरु अगम अगाध।10।
गरीब, सतगुरु पूर्ण ब्रह्म हैं, सतगुरु आप अलेख।
सतगुरु रमता राम हैं, या में मीन न मेख।11।

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पूर्ण ब्रह्म कृपानिधान, सुन केशो करतार।
गरीब दास मुझ दीन की, रखियो बहुत सम्भार।12।
गरीब, पंजा दस्त कबीर का, सिर पर राखो हंस।
जम किंकर चम्पै नहीं, उधर जात है वंश।13।
अलल पंख अनुराग है, सुन्न मंडल रहै थीर।
दास गरीब उधारिया, सतगुरु मिले कबीर।14।
शरणा पुरुष कबीर का, सब संतन की ओट।
गरीब दास रक्षा करैं, कबहु न लागै चोट।15।
गरीब, सतवादी के चरणों की, सिर पर डारूं धूर।
चौरासी निश्चय मिटै, पहुंचै तख्त हजुर।16।
शब्द स्वरूपी उतरे, सतगुरु सत कबीर।
दास गरीब दयाल हैं, डिगे बंधावैं धीर।17।
कर जोरूं विनती करूं, धरूं चरण पर शीश।
सतगुरु दास गरीब हैं, पूर्ण बिसवे बीस।18।
नाम लिये से सब बड़े रिंचक नहीं कसूर।
गरीब दास के चरणां की, सिर पर डारूं धूर।19।
गरीब, जिस मण्डल साधु नहीं, नदी नहीं गुंजार।
तज हंसा वह देसड़ा, जम की मोटी मार।20।

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गरीब, जिन मिलते सुख ऊपजै, मिटैं कोटि उपाध।
भुवन चतुर्दस ढूंढिये, परम स्नेही साध।21।
गरीब, बन्दी छोड़ दयाल जी, तुम लग हमरी दौड़।
जैसे काग जहाज का, सुझत और न ठौर।22।
गरीब, साधु माई बाप हैं, साधु भाई बन्ध।
साधु मिलावैं राम से, काटैं जम के फन्द।23।
गरीब, सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्ध हैं तीर।
दास गरीब सतपुरुष भजो, अबिगत कला कबीर।24।
बिना धणी की बन्दगी, सुख नहीं तीनों लोक।
चरण कमल के ध्यान से गरीब दास संतोष।25।

।। शब्द।।

तारैंगे तारैंगे तहतीक, सतगुरु तारैंगे।।टेक।।
घट ही में गंगा, घट ही में जमुना, घट ही में हैं जगदीश।1।
तुमरा ही ज्ञाना, तुमरा ही ध्याना, तुमरे तारन की प्रतीत।2।
मन कर धीर बांध लेरे बौरे, छोड़ दे न पिछल्यों की रीत।3।
दास गरीब सतगुरु का चेरा, टारैंगे जम की रसीद।4।

(2)
केशो आया है बनजारा, काशी ल्याया माल अपारा।।टेक।।

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नौलख बोडी भरी विश्म्भर, दिया कबीर भण्डारा।
धरती उपर तम्बू ताने, चौपड़ के बैजारा।1।
कौन देश तैं बालद आई, ना कहीं बंध्या निवारा।
अपरम्पार पार गति तेरी, कित उतरी जल धारा।2।
शाहुकार नहीं कोई जाकै, काशी नगर मंझारा।
दास गरीब कल्प से उतरे, आप अलख करतारा।3।

(3)
समरथ साहिब रत्न उजागर,सतपुरुष मेरे सुख के सागर।
जुनी संकट मेट गुसांई, चरण कमल की मैं बली जाही।
भाव भक्ति दिज्यो प्रवाना, साधु संगती पूर्ण पद ज्ञाना।
जन्म कर्म मेटो दुःख दुंदा,सुख सागर में आनन्द कंदा।
निर्मल नूर जहूर जूहारं, चन्द्रगता देखो दिदारं।
तुमहो बंकापुर के वासी, सतगुरु काटो जम की फांसी।
मेहरबान हो साहिब मेरा, गगन मण्डल में दीजौ डेरा।
चकवे चिदानन्द अविनाशी,रिद्धिसिद्धि दाता सब गुण राशी।
पिण्ड प्राण जिन दीने दाना, गरीब दास जाकुं कुर्बाना।।

(4)
कबीर, गुरुजी तुम ना बीसरौ, लाख लोग मिलिजाहिं।

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हमसे तुमकूं बहुत हैं, तुमसे हमको नाहिं।।
कबीर, तुम्हे बिसारे क्या बनै, मैं किसके शरने जाउँ।
शिव विरंचि मुनि नारदा, तिनके हृदय न समाउँ।।
कबीर, औगुन किया तो बहु किया, करत न मानी हारि।
भावै बंदा बखशियो, भावै गरदन तारि।।
कबीर, औगुन मेरे बापजी, बखशो गरीब निवाज।
जो मैं पूत कपूत हों, बहुर पिताकों लाज।।
कबीर, मैं अपराधी जनमका, नख शिख भरे बिकार।
तुम दाता दुख भंजना, मेरी करो संभार।।17।।
कबीर, अबकी जो सतगुरु मिलै, सब दुःख आँखों रोइ।
चरणों ऊपर शिर धरों, कहूँ जो कहना होइ।।
कबीर, कबिरा सांई मिलैंगे, पूछेंगे कुशलात।
आदि अंतकी सब कहूँ, अपने दिल की बात।।
कबीर, अंतरयामी एक तू, आतमके आधार।
जो तुम छाँडौ हाथ , तो कौन उतारै पार।।

(5)
मेरे गुरुदेव भगवान-भगवान,
दियो काट काल की फांसी।।टेक।।

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अवगुण किये घनेरे, फिर भी भले बुरे हम तेरे।
दास को जान कै निपट नादान - हो नादान,
मोहे बक्स दियो अविनाशी।।1।।
मेरै उठै उमंग सी दिल मैं, तुम्हें याद करूं पल-पल मैं।
आपका ऐसा मक्खन ज्ञान - हो ज्ञान,
यो जगत बिलोवै लास्सी।।2।।
या दुनिया सुख से सोवै, तेरा दास उठकै रोवै।
मेरा मेटो आवण जाण - हो जाण,
या करियो मेहर जरा सी।।3।।
नहीं तपत शिला पै जलना, कोए चौरासी का भय ना।
रोग कट्या सुमेर समान - हो समान,
या गई तृष्णा खासीं।।4।।
तुम्हें कहां ढूंढ के ल्याऊँ, अब तड़फ-2 रह जाऊँ।
आप गए अमर अस्थान - हो अस्थान,
दई छोड़ तड़पती दासी।।5।।
स्वामी रामदेवानन्द दाता, आपकी घणी सतावैं वैं बाता।
तेरा रामपाल अज्ञान - हो अज्ञान,
किया सतलोक का वासी।।6।।

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भक्तिबोध

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