आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा - संत रामपाल जी महाराज और मुख्य शंकराचार्य 2009


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इस वीडियो के माध्यम से जानें हमारे सदग्रंथो में छिपे गूढ़ रहस्य जिनसे हम अनजान थे। शंकराचार्यों का मानना है कि जीव ही ब्रह्म हैं लेकिन संत रामपाल जी महाराज ने उनकी पुस्तक से ही उनके विचार अहम ब्रह्म अस्मि का खंडन किया हैं।

शंकराचार्यों का मत है "ब्रह्मौवाहं" अर्थात जीव ही ब्रह्म है जो कि उनकी ही पुस्तक में उल्लेख है। परन्तु उसी पुस्तक में आगे जाकर वह कहते हैं कि शिवजी की पूजा करनी चाहिए। संत रामपाल जी महाराज इसका खंडन करते हुए बताते हैं कि अगर शिवजी पूजनीय हैं तो जीव ब्रह्म कैसे हुआ?


गीता जी में देवी देवताओं की भक्ति को व्यभिचारिणी बताया है 

शंकराचार्यों के ईष्ट देव भगवान शंकर जी हैं। लेकिन हमारे हिन्दू धर्म शास्त्रों में कहीं भी इनकी भक्ति करने का वर्णन नहीं है। गीता जी अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा अध्याय 7 के श्लोक 23 में देवी देवताओं की भक्ति करने वालों को अल्प बुद्धि वाला कहा गया है। इसके साथ ही गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने अपनी भक्ति विधि को अध्याय 14 श्लोक 26 में अव्यभिचारणी बताया है और अन्य भक्ति त्यागकर उसकी भक्ति करने से ब्रह्म प्राप्ति को बताया हैं। गीता ज्ञान दाता, गीता जी के अध्याय 16 के श्लोक 23 24 में कह रहा है, हे अर्जुन! जो शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण करते हैं, उनको ना तो कोई सुख प्राप्त होता है, ना उनकी गति होती है और ना ही उनको कोई सिद्धि प्राप्त होती है अर्थात सब व्यर्थ है।


परमात्मा साकार है अथवा निराकार?

शंकराचार्यों का मानना है कि परमात्मा का कोई आकार नहीं है। जबकि हमारे धर्मग्रंथो में परमात्मा के नर आकार होने का उल्लेख है। इसके विपरीत संत रामपाल जी महाराज ने प्रमाण सहित इस धार्मिक ज्ञान चर्चा में यह सिद्ध कर दिया कि परमात्मा का नाम कबीर है जिसका उल्लेख चारों वेद, पुराण, धर्म ग्रंथो में वर्णित है। पवित्र ऋग्वेद से संत रामपाल जी महाराज ने प्रमाण देकर सिद्ध कर दिया कि वह परमात्मा राजा के समान दर्शनीय है तथा अपने निजलोक में सिंहासन पर विराजमान है।


ब्रह्मा, विष्णु, महेश किस परमात्मा की पूजा करते हैं?

शंकराचार्यों का मानना हैं कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश स्वयं भगवान हैं और केवल ब्रह्मा जी की पूजा करते हैं। परन्तु संत रामपाल जी महाराज ने हमारे सदग्रंथो में वर्णित उस परमात्मा परम् अक्षर ब्रह्म के बारे में बताया है। वह परमात्मा कबीर हैं जो सतलोक में अपने सिंहासन पर विराजमान हैं और उनका कभी जन्म मरण नहीं होता और सारे देवता भी उनके ही अधीन हैं।


निष्कर्ष

इस आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा से यह सिद्ध होता है कि भगवान नर आकार है, अजरो-अमर है। जगत गुरु संत रामपाल जी महाराज जी ने सभी धर्म शास्त्रों से प्रमाणित करके बताया है कि शंकराचार्यों के इष्ट भगवान शंकर जी जन्म मरण के चक्रव्यूह में स्वयं फंसे हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि उनको पूजने वाले भी मोक्ष नहीं पा सकते। जन्म मरण सिर्फ पूर्ण परमात्मा कबीर जी की भक्ति तत्वदर्शी संत के मार्गदर्शन में करने से ही खत्म हो सकता है तथा शाश्वत स्थान की प्राप्ति हो सकती है, जहाँ जाने के बाद लौटकर संसार में नहीं आना पड़ता। अधिक जानकारी के लिए देखें यह अध्यात्मिक ज्ञान चर्चा।