आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा: संत रामपाल जी महाराज बनाम आचार्य श्री विजय धर्म धुरंधर सुरेश्वर जी महाराज


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जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने पूरे विश्व के सभी धर्म गुरुओं को आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा के लिए एक ही मंच पर आमंत्रित किया था। आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा की इस कड़ी में संत रामपाल जी महाराज और जैन धर्म के मुनि श्री विजय धर्म धुरंधर सुरेश्वर जी के विचार इस लेख में आपके समक्ष है।


जैन मुनि के अनुसार परमात्मा साकार भी है और निराकार भी है। उनके इस कथन का कोई शास्त्रोक्त प्रमाण भी नहीं है। वहीं संत रामपाल जी महाराज ने वेदों से प्रमाणित करके बताया है कि परमात्मा साकार है और अपने निजधाम सतलोक में राजा के समान सिंहासन पर विराजमान है। 


जैन मुनि यह तो मानते हैं कि वेद और गीता सत्य है। किंतु यह नही मानते कि उनकी साधना गीता और वेदों के बिल्कुल विपरीत है। गीता में हठ योग वर्जित है, जबकि जैन परंपरा हठ योग पर ही आधारित है। जैन मुनि के अनुसार तीर्थंकर का कभी पुनर्जन्म नहीं होता है। अपितु जो भी उनकी जैसी साधना कर लेता है, उसका भी पुनर्जन्म नहीं होता है। किंतु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने जैन धर्म के ही "आओ जैन धर्म को जाने" नामक किताब से प्रमाणित करके दिखाया कि जैन धर्म के अनुसार साधना करने वाले साधकों और तीर्थंकरों का असंख्यों बार जन्म और मृत्यु हुआ है यानि उनका पुनर्जन्म होता है, उनका मोक्ष नहीं होता। 


जैन धर्म में णमोकार मंत्र प्रचलित है जो कि जैन मुनियो के अनुसार गीता और वेद में लिखे ओंकार मंत्र का ही एक रूप है। जिसे संत रामपाल जी ने गीता से प्रमाणित करके दिखाया है कि ॐ मंत्र के जाप से ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है और वहां जाने के बाद पुनः चौरासी लाख योनियों में आना पड़ता है यानि मोक्ष नहीं होता है। संत रामपाल जी ने सच्चे अर्थात् तत्वदर्शी संत और सत साधना को पहचानने हेतु श्रीमदभगवद गीता अध्याय 4 श्लोक 25 से 30, 32 और 34 में प्रमाण दिया हैं। उन्होंने गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 से तत्वदर्शी संत की पहचान भी बताई जिसके बारे में कबीर साहेब ने कहा है

कबीर, अक्षर पुरुष एक पेड़ है, क्षर पुरुष वाकी डार।
तीनों देवा शाखा है, पात रूप संसार।। 

अतः इस धार्मिक चर्चा से यह स्वीकार किया जा सकता है कि जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल गुरु महाराज जी का ज्ञान सत्य  है। आप भी देखे यह ज्ञान चर्चा